रात दस बजे बिलथरे के घर पर सब जमा थे ।
सुकन्या को देखकर कार्लो ने साफ साफ लार टपकाई
"बॉस" - वो दबे स्वर में बोला- "फेनी किसकी है ?"
"क्या ?" - जीतसिंह बोला- "क्या किसकी है ?"
कार्लो ने सुकन्या की तरफ इशारा किया ।
"खबरदार !" - जीतसिंह बोला ।
"वो तो मैं हो गया । लेकिन किस की है ? किसी की नहीं है तो मैं अपना क्लेम लगाऊं ?"
"बिलथरे की है ।"
"तुम्हारी तो नहीं है न ?”
"नहीं।”
"फिर क्या वान्दा है ?"
"बिलथरे कोई वान्दा नहीं ?"
कार्लो ने उत्तर न दिया । वो बड़ी बेशर्मी से हंसा ।
जीतसिंह ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और फिर सबको बताया कि जिमखाना में क्या बीती थी ।
"लेकिन” - बिलथरे बोला- "अब कुंआरी कन्या आएगी कहां से ?”
"तलाश करनी होगी" - जीतसिंह गम्भीरता से बोला ।
"तलाश करनी होगी ! कहां से तलाश करनी होगी ?"
" पूना में जहां से भी वो हासिल हो सकती होगी । तुम लोकल आदमी हो, तुम बताओ ।”
"मुझे इस मामले में कोई जानकारी नहीं ।”
"नहीं है तो पैदा करो।"
"पैदा करो ! सारे फसादी काम मेरे ही पल्ले क्यों पड़ते हैं ?"
"कोई मुश्किल काम नहीं ये । सारे मुल्क में कितनी बाल वेश्यावृत्ति फैली हुई है, ये क्या किसी से छुपा है ? लाखों में तादाद बताई जाती है अकेले गोवा और महाराष्ट्र में ही बालवेश्याओं की । इतनी बड़ी तादाद में से हमने सिर्फ एक अदद बालवेश्या तलाश करनी है । वो भी मोटी कीमत अदा करके ।"
"जो पूना में नहीं" - नवलानी बोला - "तो मुम्बई में तो जरूर मिल जाएगी ।"
"सिन्धी भाई" - बिलथरे चिढकर बोला - "इसकी मांग बालवेश्या नहीं है, कुमारी अनछिदी बालवेश्या है ।”
"तो क्या हुआ ?" - जीतसिंह बोला "बालवेश्यावृत्ति के कारोबार में लगने वाली हर कन्या शुरू में तो कुंआरी ही होती होगी। तलाश करने पर, मांग करने पर ऐसी लड़की हमें हासिल हो सकती है।"
"लेकिन...'
" और हमें लड़की नहीं ढूंढनी, दलाल ढूंढना है, सप्लायर ढूंढना है, मैडम ढूंढनी है कोई । "
"ठीक है।" - बिलथरे मरे स्वर में बोला- "मैं तलाश करता हूं ऐसा कोई शख्स | "
“जल्दी ।" - जीतसिंह बोला "कल ही ।"
"हां, भई । कल ही । कल सुबह सवेरे ही । "
"तुम्हारी क्या खबर है ?" - जीतसिंह कार्लो से बोला
"अभी क्या खबर होगी ?" - कार्लो बोला- “अभी तो मैं बस पहचाना है उस छोकरी को । नाम जाना है उसका ।"
"क्या नाम है ?"
"ऐग्नेस ।”
"कुछ कर पाएगा ?"
“उम्मीद तो फुल है ।”
"कैसे कर पाएगा ? कोठी में कौन घुसने देगा तुझे ?"
" एग्नेस को फिट करने के लिए अभी कोठी में घुसना जरूरी भी नहीं है । वो क्या है कि बाजार का सारा काम जैसे दूध लाना, सब्जी भाजी लाना या कुछ भी लाना या छोड़ के आना - वो करती है। आज दिन में कई बार मैं उसे कोठी से अकेले बाहर निकलते देखा। मैं ये भी नोट किया कि वो जाती है तो उसे लौटने की कोई जल्दी नहीं होती। मैं उससे बात किया तो वो बहुत भाव देकर बोली । मैं बोला मैं सोनुले साहब के डिरेवर का भांजा । इधर ही रहने को आया । तभी वो मेरे को अपना नाम बोली । एग्नेस | "
"सोनुले साहब कौन ?"
"क्या मालूम कौन ? पिछले ब्लाक की एक कोठी पर नाम लिखा देखा । दर्पण सोनुले । मैं बोल दिया मैं उनके डिरेवर का भांजा । "
"हूं । लगता है कुछ कर गुजरेगा ।"
“करना ही पड़ेगा । मैं एक बार पहले इन हो के आउट हुआ, अब दोबारा वैसा मिसएडवेंचर नहीं मांगता ।"
"बढिया ।"
"बॉस, अब तो फुल कोरम काल है ।"
"क्या है ?"
"कोरम काल । सब लोग जमा हैं। नवां आदमी भी " उसने मिर्ची की ओर इशारा किया- "इधर है। अब तो कुछ माल पानी का हिंट दो । "
"बाप" - मिर्ची व्यग्र भाव से बोला- "मेरे को भी जानना मांगता है। "
"नवलानी से कुछ नहीं पूछा ?" - जीतसिंह बोला ।
"बहुत पूछा । पण ये कुछ नहीं बताया । हर बार गोलमोल जवाब देकर टाल दिया ।"
"ठीक है। तुम दोनों की खातिर बिलथरे दोहराता है कि क्या किस्सा है।"
बिलथरे ने सहमति में सिर हिलाया, फिर उसने शुक्रवार होटल ब्लू स्टार में होने जा रही कायन कनवेंशन और उसमें से कीमती सिक्के लूटने की योजना को बयान करना आरम्भ किया ।
बीच बीच में जीतसिंह दखलअन्दाज होता रहा और बताता रहा कि क्या कुछ हो गया था और क्या कुछ होना बाकी था ।
"बंटवारा ?" - आखिर में बिलथरे चुप हुआ तो मिर्ची बोला - "माल का बंटवारा कैसे होगा ?"
बिलथरे ने जीतसिंह की ओर देखा ।
"हासिल माल का आधा हिस्सा बिलथरे का ।" - जीतसिंह बोला - "सुकन्या का हिस्सा उसी में से । "
"कितना ?" - कार्लो बोला ।
“हमारे लिए ये बात बेमानी है । ये भले ही सुकन्या को अपने हिस्से का सारा माल सौंप दे, भले ही ये इसे कुछ भी न दे । ये इन दोनों का आपस का मामला है ।"
"ओह !"
"बाकी के आधे के हम चार हिस्सेदार होंगे। मैं, नवलानी, मिर्ची और तुम । "
"गुस्ताखी माफ, बाप" - मिर्ची बोला - "पण बिलथरे का हिस्सा बड़ा क्यों ?"
"क्योंकि तमाम खर्चा इसके जिम्मे है । ये गांठ का पैसा लगाएगा इसलिए ये बड़े हिस्से का हकदार है । "
"बरोबर ।"
"बाद में क्या होगा ?" - कार्लो बोला ।
"बाद में कब ?" - जीतसिंह बोला ।
"वारदात के बाद । हम फौरन बिखर जाएंगे या ***
"फौरन नहीं बिखर जाएंगे। इस इमारत में एक तहखाना है जोकि आसानी से दिखाई नहीं देता । इमारत की शक्ल देखकर भी ऐसा नहीं लगता कि इसमें कोई तहखाना होगा । हम दो-तीन दिन तहखाने में छुपकर रहेंगे ।"
"ऊपर ही रहने में क्या वान्दा है ?"
"है वान्दा । ये जिस शख्स का घर है, वो खुद एक कायन डीलर है और उसकी उस नुमायश में शिरकत है जिसे कि हम लूटने जा रहे हैं । ऐन वारदात के बाद ऐसे लोकल कायन डीलर से पूछताछ हो सकती है । तफ्तीश के लिए पुलिस यहां आ सकती है ।"
बिलथरे सकपकाया ।
"पुलिस यहां आएगी ?" - वो बोला ।
"तुम्हें खुद सूझना चाहिए था । "
"लेकिन खास मेरे पास..."
“खास तुम्हारे पास कौन बोला ? मैं बोला लोकल कायन डीलरों के पास ।"
"बाहर वालों के पास क्यों नहीं ?"
"उनके पास भी, लेकिन पहले लोकल डीलरों के पास।"
"क्यों ?" - बिलथरे जिदभरे स्वर में बोला ।
"क्योंकि वारदात में अगर किसी डीलर का हाथ समझा जाएगा तो उसके लोकल होने की सम्भावनाएं ज्यादा होंगी। किसी बाहर से आए शख्स के मुकाबले में कोई लोकल आदमी, जोकि खुद कायन डीलर भी हो, ऐसी वारदात को बेहतर तरीके से प्लान कर सकता है । "
"हूं।"
"साई" - नवलानी बोला- "ऐसी किसी लिए तुम्हें तैयार रहना होगा।" पूछताछ के
"हां ।" - जीतसिंह बोला - "वरना पुलिस को एकाएक सामने पाकर तुम वैसे ही सब पोल खोल दोगे ।”
"मैं तैयार रहूंगा।" - बिलथरे नर्वस भाव से बोला ।
सुकन्या ने यूं सहमति में सिर हिलाया जैसे उसका जिम्मा अपने सिर ले रही हो ।
“और कुछ ?" - खास कार्लो और मिर्ची की ओर देखता जीतसिंह बोला ।
दोनों के सिर इन्कार में हिले ।
फिर मीटिंग बर्खास्त हो गई ।
*****
शनिवार : छ दिसम्बर
अगले रोज साढे ग्यारह बजे के करीब तब फोन की घण्टी बजी जबकि जीतसिंह खुद भी फर्श उधेड़ने के काम में इमरान मिर्ची और नवलानी की मदद कर रहा था ।
फोन बिलथरे का था ।
"बहुत मुश्किल से एक सप्लायर मैं तलाश कर पाया हूं" - वो बोला- "जिससे कि हमारा काम बन सकता है। ठीक आधे घण्टे बाद मैं उसे साथ लेकर मालाबार पहुंचूंगा।”
"ठीक है ।"
निर्धारित समय पर जीतसिंह मालाबार में पहुंचा तो उसने पाया कि कथित सप्लायर एक बहुत सजीधजी, बहुत आधुनिक और बहुत सम्भ्रान्त लगने वाली स्त्री थी । उम्र में वो कोई चालीस साल की थी, मोटापे की ओर अग्रसर थी लेकिन जिस्म फिर भी कसा हुआ और आकर्षक मालूम होता था । दोनों कलाइयों में वो सोने के मोटे कड़े और चूड़ियां पहने थी, गले में भी वैसा ही भारी हार था और कान में हीरे के टाप्स थे
“ये मिसेज अब्राहम हैं ।" - बिलथरे बोला ।
स्त्री ने जेवरों जैसी ही जगमग मुस्कुराहट पेश की ।
"नमस्ते ।" - जीतसिंह भी मुस्कुराता हुआ बोला "मुझे बी नाथ कहते हैं । "
"हल्लो देयर ।" - वो बोली ।
"बिलथरे ने आपको बताया कि..."
"हां बताया । सब बताया। मैं सब सुना। और समझा।"
"बढिया ।"
"मेरा बहुत हाई क्लास कलायंटेल है। मेरा छोकरी लोग या फाइव स्टार होटल में जाता है या टॉप के लोगों के फार्म हाउसिज में जाता है। मेरा छोकरी लोग के साथ एन्जॉय करने के लिए गांठ में पैसा होना ही जरूरी नहीं होता, हैसियत होना भी जरूरी होता है। कोई साला मवाली, कोई हलकट, कोई टपोरी रोकड़ा चमकाए और मेरा छोकरी को साथ ले जाए, ऐसा नहीं होना सकता । मेरा क्लायंटेल हाई क्लास । मेरा छोकरी लोग हाई क्लास । इसी वास्ते मेरे लिए हर तरह के क्लायंट का हर तरह का डिमांड फुलफिल करना जरूरी । क्लायण्ट बोलेगा ट्वेंटी ईयर्स का छोकरी मांगता है, मैं बोलेगा, देंगा | क्लायंट बोलेगा नेपाली छोकरी मांगता, मैं बोलेगा, देंगा | क्लायंट बोलेंगा क्रिस्तान की वाइट बॉडी मांगता है, मैं बोलेंगा, देगा| क्लायंट बोलेंगा..."
जीतसिंह ने हौले से जमहाई ली ।
"बोर हो के दिखाने को नहीं मांगता, मैन । मैं जो बोला, उसका कुछ मतलब ।"
"क्या मतलब ?"
"मेरा फिक्सड क्लायंटेल । नवां गिराहक मेरे को तभी मंजूर जब कोई मेरा क्लायंट उसे रिकमैंड करे | मिस्टर बिलथरे मेरा क्लायंट, इसलिए मेरे को मालूम होना मांगता कि क्लायंट कौन है ।”
"क्यों मालूम होना मांगता है ?"
“ताकि मेरे को गारन्टी हो कि वो क्लीन है। ताकि मेरे को गारण्टी हो कि वो मेरा क्लीन छोकरी को बीमार नहीं कर जाएगा।"
"
अगर क्लायंट क्लीन नहीं होगा तो आप उसे लड़की सप्लाई नहीं करेंगी ?"
"बरोबर करेंगा | क्यों नहीं करेंगा । दिस इज बिजनेस । आई कैन नाट टर्न डाउन गुड बिजनेस | "
"तो ?"
"तो ये कि अनक्लीन क्लायंट को मैं अनक्लीन छोकरी सप्लाई करेंगा ।"
"मैडम, कुमारी कन्या अनक्लीन कैसे होगी ?"
"जो जो कुछ करेगी" - बिलथरे बोला- "पहली बार करेगी तो वो..."
"देयर लाइज दि प्रॉब्लम ।" - वो एक क्षण खामोश रही और फिर बोली - "बाई दि वे, तुम्हारा फ्रेंड क्यों वर्जिन मांगता है ?”
"कोई खास वजह नहीं । समझ लो कि चेंज की खातिर।”
"बट दिस इज कास्टली चेंज । वर्जिन कास्ट्स मनी
"वो देगा । कितना मनी ?"
"डिपेंड करता है । लुक्स पर डिपेंड करता है । अभी कितना बॉडी निकाला है, इस बात पर डिपेंड करता है । "
"कन्या कुमारी होने की गारण्टी होगी तो मामूली शक्ल-सूरत भी चलेगी । प्लेन बॉडी भी चलेगी।”
"ऐसा ?"
"हां ।”
"फिर जो रीजन तुम बोला वो बण्डल । वो तुम्हारा फ्रेंड चेंज का खातिर वर्जिन नहीं मांगता । रीजन कोई और ?"
" और क्या रीजन होगा ?"
" है एक रीजन !"
"क्या ?"
"लाइक एन ईडियट, कहीं वो भी तो ये नहीं समझता कि वर्जिन से इण्टरकोर्स से मर्दाना बीमारी ठीक होता ?"
जीतसिंह ने जवाब न दिया । उसने मुंह बाए बिलथरे की ओर देखा ।
“कम क्लीन, मैन ।” - मिसेज अब्राहम बड़ी आत्मीयता से बोली - "वुई आर बिटविन फ्रेंड्स । एण्ड आल दि सेम, आई विल सॉल्व युअर प्रॉब्लम ।"
"ऐसा !" - जीतसिंह बोला ।
"हां ।”
"और बात को आप अपने तक ही रखेंगी ?"
"बरोबर ।" - उसने दाएं हाथ से छाती के आगे क्रॉस बनाया - "क्रॉस माई हार्ट ।"
" तो हकीकत ये है कि यही बात है। उसके दिमाग में ये बात फिट है कि कुमारी कन्या के साथ सम्भोग से मर्दाना बीमारी दूर हो जाती है ।"
“उसको है ऐसा बीमारी ?"
"हां"
"तुम भी ऐसा समझता है ?"
“नहीं।”
उसने बिलथरे की तरफ देखा तो उसने भी इन्कार में सिर हिलाया ।
“उसको ऐसा समझने देने में" - वो फिर जीतसिंह की ओर आकर्षित हुई - "तुम्हारा कोई एडवांटेज है ?"
"हां"
"क्या ?"
"कोई बात बनेगी तो बता देंगे। बताना ही होगा, क्योंकि लड़की के सहयोग के बिना हमारा काम नहीं हो सकेगा ।"
“आई सी । आई सी । वर्जिन कास्ट्स मनी ।”
" आप पहले भी बोला । कितना ?"
"एक लाख । दो लाख । तीन लाख । मे बी मोर । " "ये तो बहुत ज्यादा है। हमें नहीं मालूम था ।” "तुम्हें क्या मालूम था ?”
"मालूम तो कुछ नहीं था । बस, अन्दाजा था।"
"क्या ?"
"तीस । चालीस | बड़ी हद पचास | "
" दैट इज आउट ऑफ क्वेश्चन ।”
“मैं अपने... उस जरूरतमन्द से भी पचास ही बोला
"बट दैट इज अब्सोल्युटली आउट ऑफ क्वेश्चन | "
"तो फिर क्या बात बनी ?"
"फिर तो" - बिलथरे बोला - "आपकी ये बात बात ही हुई कि आप हमारी प्रॉब्लम सॉल्व कर सकती हैं । "
"आपका प्रॉब्लम में दो फरदर प्रॉब्लम हैं।" - वो बोली - “वन, आपका आदमी अनक्लीन है। टू वो वर्जिन मांगता है । मिस्टर नाथ, वो कैसे जानेगा कि जो छोकरी उसको मिला वो वर्जिन है ?"
"वैसे ही" - जीतसिंह बोला - "जैसे जाना जाता है ।"
"कैसे जाना जाता है ?"
"बताओ, भई" - जीतसिंह बिलथरे से बोला "कैसे जाना जाता है ?”
"ब... ब... ब्लड से।" - बिलथरे बोला ।
" राइट ?" - वो जीतसिंह से बोली ।
जीतसिंह ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया
"गुड । दैन कनसिडर युअर प्रॉब्लम साल्व्ड ।"
"ऐसा !"
"हां । मैं तुम्हारे फ्रेंड को ट्वेल्व ईयर्स ओल्ड छोकरी देंगी । ऐसा चाइल्ड जो उस खास मूमेंट पर ब्लीड करके भी दिखाएगा | तब तुम्हारे क्लायंट को कोई शिकायत होगा ?”
"तब तो नहीं होगा, लेकिन बाद में..."
"हैल विद बाद में । ही कैन नाट... ही जस्ट कैन नाट गैट वैल बाई लेइंग ए वर्जिन । वो ईडियट ऐसा समझता है तो वो ईडियट नहीं, सुपर ईडियट है। बाद में जब वो ठीक नहीं होएंगा तो उसको अक्ल आ जाएंगा कि कोई उसको गलत एडवाइज दिया । कोई उसको मिसगाइड किया ।"
"तब तक" - बिलथरे व्यग्र भाव से जीतसिंह से बोला “हमारा काम तो हो चुका होगा ।"
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
"सो" - मिसेज अब्राहम बोली- "देयर यू आर ।"
"लेकिन ये करिश्मा होगा क्योंकर ?" - जीतसिंह बोला- "जब लड़की कुमारी कन्या नहीं होगी तो खून...."
"दैट्स माई प्रॉब्लम । आई गिव यू माई वर्ड दैट माई चाइल्ड विल ब्लीड | "
"जबकि वो कुमारी कन्या नहीं होगी ?"
"किधर से होएंगा ? वर्जिन रैडी स्टॉक में कौन रखता ? वर्जिन ढूंढना पड़ता । या बाई चांस मिलता । प्लस वर्जिन कास्ट्स मनी । "
" ऐसी बनाई हुई कुमारी कन्या की क्या फीस होगी?"
“वैरी लो फी । ओनली । एटीन थाउजेंड्स । सिर्फ अट्ठरह।”
"अट्ठारह !"
"पन्दरह लड़की के लिए । तीन डॉक्टर के लिए "
"डी... डॉक्टर के लिए !"
"जो उसे ब्लीड करने के काबिल बनाएगा ।"
"मैडम, अब बताइए तो सही कि कैसे बनाएगा ? मैं सस्पेंस से मरा जा रहा हूं।"
"मैं भी ।" - बिलथरे बोला ।
“बताएगा ।" - वो मुस्कुराती हुई बोली- "पहले तुम डील क्लोज करो । यस बोलो । "
"ठीक है।" - जीतसिंह बोला - "बोला यस ।”
"एडवांस निकालो।"
"कितना ?"
“हाफ।" "
जीतसिंह ने बिलथरे की तरफ देखा । बिलथरे ने कन्धे उचकाकर जताया कि उसके पास पैसा नहीं था । जीतसिंह ने अपने पास से मैडम को नौ हजार रुपए दिए ।
"थैंक्यू" - वो दांत चमकाती हुई नोटों को अपने उन्नत वक्ष की घाटियों में खोंसती हुई बोली ।
"अब बताइए, क्या राज है ?" - जीतसिंह बोला "क्या डॉक्टरी करेगा डॉक्टर ?" "
मिसेज अब्राहम ने बताया ।
***
मदाम के चले जाने के बाद भी पीछे बिलथरे और जीतसिंह रेस्टोरेंट में बैठे रहे ।
जो राज मदाम उजागर करके गई थी, वो टांय-टांय फिस्स जैसा था । उसके कथनानुसार डॉक्टर लड़की के गुप्तांग के भीतर कहीं एक सर्जिकल स्टिच, एक टांका भर देता था जो कि अभिसार के दौरान टूट जाता था और रक्तस्राव का कारण बनता था । बकौल मैडम, उसने बिलथरे का लिहाज किया था वरना जेनुइन वर्जिन वाली कीमत में वो दर्जनों पहले से पेशे में लगी कमउम्र लडकियों को दर्जनों बार ऐसे ही वर्जिन बनाकर कुमारी कन्या के शौकीन सुपर ईडियट ग्राहकों को परोस चुकी थी ।
"क्या ख्याल है ?" - बिलथरे बोला - "चलेगा ?"
"चलेगा । असल में मेरी अक्ल तो ये कहती है कि हमारा काम तो शिवारामन के लड़की के आगोश में पहुंचने भर से हो जाएगा । तब लड़की नहीं भी कुमारी कन्या निकलेगी तो वो हमारा क्या कर लेगा ? लेकिन अगर उसका काम उसकी उम्मीद के मुताबिक होगा, उसके द्वारा खर्ची गई रकम के मुताबिक होगा तो कम से कम उसे ये शक नहीं होगा कि उसे कोई धोखा दिया गया था । वो लड़की की सोहबत से सन्तुष्ट होकर लौटेगा तो उसे वो सब सहज स्वाभाविक ढंग से हुआ लगेगा और उसकी तवज्जो इस बात की तरफ नहीं जाएगी कि उसने एक पराई जगह पर अपने गले से चाबी वाली जंजीर उतारने का असाधारण काम किया था।”
"ओह !"
"बिलथरे, अब हमारे काम की मुनासिब जगह तुमने तलाश करनी है और लड़की से मिलकर उसका रोल उसे तुमने समझाना है । "
"ठीक है । वो पैसा जो तुमने दिया वो मैं..."
"कोई जरूरत नहीं । पैसा मैं शिवारामन से वसूल कर लूंगा ।"
"फिर ठीक है ।"
“आज शाम मैं जिमखाना में उससे मिलूंगा।"
"गुड |"
***
साढे पांच बजे जीतसिंह इमरान मिर्ची के साथ मोदी कालोनी पहुंचा ।
उसने उसे सड़क पर खड़े होकर तफसील से समझाया कि ऊपर वाली मंजिल पर स्थित मैट्रो सिक्योरिटी सर्विसिज के ऑफिस में क्या कहां था ।
"तुमने" - वो बोला- “दाई तरफ के दो कमरों के बीच के दरवाजे पर तवज्जो देनी है । उस दरवाजे के पार मैनेजर का निजी कक्ष है और इधर जनरल स्टाफ का ऑफिस है। तुमने जाहिर ये करना है कि तुम सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए दरयाफ्त करने आए हो ।"
“ऐसी कोई वैकेंसी है वहां ?"
"मुझे पता चला है कि ऐसी जगहों पर गार्डों के लिए वैकेंसियां हमेशा ही होती हैं । होगी तो कोई झूठ-मूठ बात कर लेना, नहीं होगी तो मायूसी जाहिर करते और फिर कब आऊं पूछते चले आना ।”
"ठीक है ।"
"तुमने देखना ये है कि बीच के दरवाजे पर बाहर की तरफ कोई चिटकनी, कुंडी वगैर फिट है या नहीं ।”
“हासिल ?"
जीतसिंह ने घूरकर उसे देखा ।
"ठीक है।" - मिर्ची हड़बड़ाया - "जाता हूं।"
“अभी ओर सुनो ।"
"बोलो।"
"ये बात तुमने बाहरी ऑफिस में कदम रखते ही जाहिर कर देनी है कि तुम गार्ड की नौकरी की खातिर वहां पहुंचे हो । यूं मैनेजर के पास से लौटते वक्त जब तुम बाहरी ऑफिस में नौकरी से ताल्लुक रखते कोई सवाल करोगे तो किसी को कोई हैरानी नहीं होगी, किसी को कुछ अजीब नहीं लगेगा।”
"कोई सवाल करने होंगे ?"
"हां ।"
"क्या ?"
“एक तो ये मालूम करना है कि साप्ताहिक छुट्टी क होती है ! दूसरे, साप्ताहिक छुट्टी वाले दिन जनरल ऑफिस बन्द ही रहता है या स्टाफ की जगह लेने कोई कैजुअल लोग वहां बुलाए जाते हैं ! तीसरे, छुट्टी वाले दिन गार्ड्स की भी छुट्टी होती है या नहीं ! समझ गए ?”
"हां"
"अब जाओ।"
वो चला गया । पीछे जीतसिंह ने एक सिगरेट सुलगा लिया और उसके कश लगाता फुटपाथ पर इधर-उधर टहलने लगा ।
पांच मिनट बाद मिर्ची लौटा ।
जीतसिंह ने सिगरेट फेंक दिया और उसकी बांह थामे एक ओर चलने लगा ।
"वैकेंसी है।" - मिर्ची बोला- "मैनेजर तो हाथ के हाथ फार्म भरवाकर मुझे मुलाजिम रखने की तैयारी करने लगा था । बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया ।"
"उसे शक तो नहीं हुआ कि असल में तुम नौकरी के तलबगार नहीं थे ?"
"नहीं । बिल्कुल नहीं । मैं तो ये कहके वहां से चला आया था कि मैं तनखाह के बारे में सोचूंगा।"
"बढिया ।"
“हफ्तावारी छुट्टी मंगलवार को होती है । क्लैरिकल स्टाफ में से उस रोज सिर्फ एक टेलीफोन आपरेटर और एक डिस्पैचर आता है जो कि छुट्टी वाले दिन का एक तरह से मैनेजर होता है । गार्ड्स लोग रोजमर्रा की तरह ही आते हैं।"
" यानी कि कल इतवार को मैट्रो ऑफिस ऐसे ही खुला होगा जैसे कि आज खुला है ?"
"जाहिर है ।"
"ये अच्छी खबर है। अब बीच के दरवाजे की बोलो।"
"उस पर चिटकनी नहीं है। सिर्फ एक कुंडी है। बीच । बाएं से दाएं सरकाकर लगाई जाने वाली ।”
"यूं ?" - जीतसिंह ने हाथ से एक्शन किया- “लगने वाली ?"
"हां । कुंडी दरवाजे पर और उसके आगे एक आंख जैसी ब्रैकेट दाई ओर चौखट पर । ब्रैकेट में कुंडी के घुस जाने पर उसका लम्बे छेद वाला ढक्कन जैसा हिस्सा नीचे हुक में पिरोया जाता है और फिर ऊपर से ताला लगता है । "
"ताला ! कैसा ताला ?"
"मालूम नहीं कैसा ताला ! वहां कोई ताला नहीं था ।”
"वो बीच का दरवाजा है। वहां ताले का क्या काम?"
"मेरा भी यही ख्याल है । वहां कोई ताला होता तो वो वहीं हुक में लटका होता ।"
"ठीक । ऐसे ताले गैरइस्तेमाल के वक्त वहीं छोड़ दिए जाते हैं जहां कि वो लगने होते हैं । "
"ठीक बोला, बाप । वैसे बाहर के दरवाजे पर ताला था । चैनल गेट पर ताला था, लेकिन बीच के दरवाजे पर नहीं था तो वहां नहीं लगता होगा ताला ।”
“ताला न भी हो" - जीतसिंह बड़बड़ाया- "सिर्फ कुंडी ही लगी हो तो भी दरवाजा भीतर से तो नहीं खोला जा सकता न !"
"वो तो है । "
"लेकिन चौखट पर लगी वो आंख सी जिसे तू ब्रेकेट बोला, अगर वो चौखट में न हो तो ?”
"तो कुंडी बंद नहीं हो सकती । दरवाजे और चौखट के बीच में पकड़ उसके बिना नहीं बन सकती ।"
"फिर ताला हो न हो, क्या फर्क पड़ता है ?"
"कोई फर्क नहीं पड़ता । ताला इसलिए लगाया जाता है ताकि कोई कुंडी न खोल सके । जब कुंडी ही बन्द नहीं होगी तो उसमें पिरोया गया ताला किस काम का ?"
"बढिया । मिर्ची, कल तूने वो ब्रैकेट उखाड़नी होगी
"कब ? कैसे ?"
जीतसिंह ने बताया ।
***
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