शाम तक जीतसिंह अपने कमरे में उस जगह का हिसाब लगाता रहा, जहां कि फर्श खोदा जाना था । उस कोशिश में उसने नेपोलियन हाल और बगल की इमारत की छत के कई चक्कर लगाए । आखिरकार जो जगह उसने छांटी वो कमरे में लगे डबल बेड के ऐन नीचे थी जोकि अच्छा ही था । तब अनजाने में भी किसी का पांव कालीन पर वहां नहीं पड़ सकता था जहां कि फर्श को पर्त-दर-पर्त उधेड़ा जाना था । यानी कि फर्श उधेड़ने की प्रक्रिया में रोज फर्श पर से कालीन ही नहीं सरकाया जाना था पलंगों को भी परे सरकाया जाना था ।
आठ बजे तसवीरों के साथ सुकन्या वहां पहुंची ।
जीतसिंह ने उसकी खींची पोलेरायड तसवीरें देखीं और उन्हें बहुत संतोषजनक पाया ।
" बढ़िया ।" - वो बोला ।
“अब कल्याण कब जाना होगा ?" - वो बोली ।
“अभी कोई जल्दी नहीं । "
"क्या ?"
"क्योंकि अभी हमारे हाथ कुछ भी नहीं है । अभी न फर्श की खुदाई शुरू हुई है और न किसी चाबी की छाप हमारे हाथ लगी है । सबसे पहले एम्बुलेंस का इंतजाम करने लग जाना खामखाह बिलथरे का पैसा ब्लॉक करना होगा।"
"जैसे तुम्हें बिलथरे के पैसे की या उसके ब्लॉक हो की परवाह है ।"
"अभी उस काम में टाइम है। अभी उस काम को टाला जा सकता है। अभी यहीं कई अहम काम हैं । "
"मसलन ?"
"मसलन मैं सर्कस देखने जाना चाहता हूं।"
"क्या !"
"शहर में अपोलो सर्कस लगा हुआ है जिसे तुमने कहा था कि तुम देख चुकी हो । मैं भी वो सर्कस देखना चाहता हूं।"
"तो देख आओ ।”
“तुम्हारे साथ ।”
“आधी रात हो जाएगी। ये बिलथरे को खामखाह भड़काने वाला काम होगा ।"
“आधी रात से ज्यादा हो जाएगी ।"
"क्या !"
“एक बजे हमने मोदी कालोनी में मैट्रो सिक्योरिटी सर्विसिज के ऑफिस के सामने भी मौजूद होना है । "
"ओह !"
"तुम ये समझो कि सर्कस हम टाइम पास करने के लिए देखने जा रहे हैं । "
" यानी कि अहम काम मैट्रो का चक्कर लगाना है ?"
"हां । जहां कि हमारा सिन्धी भाई भी हमारे साथ चलेगा।"
"
ओह ! उसे खबर है इस बात की ?"
"हां । साढे बारह बजे वो वहां होगा ।"
"यानी कि सब कुछ पहले से ही सैट है ?"
"हां"
"फिर सर्कस देखना तो जरूरी न हुआ ?”
"नहीं। टाइम पास के लिए हम यहां अपना सर्कस भी कर सकते हैं।"
"मेरे ख्याल से देखना ही ठीक होगा ।"
"मर्जी तुम्हारी ।"
डेढ बजे से काफी पहले जीतसिंह, नवलानी और सुकन्या मैट्रो सिक्योरिटी सर्विसिज के ऑफिस के सामने की सड़क पर मौजूद थे।
तब जीतसिंह ने उस रेस्टोरेंट का भी चक्कर लगाया जहां कि वाचमैन का बीच रात का खानपान चलता था ।
वहां वो अपने कई औजारों और कई डुप्लीकेट चाबियों और उन चाबियों के साथ पहुंचा था जो कि ब्लैंक्स कहलाती थीं और जिनको रेतकर, घिसकर मनमाफिक चाबियां तैयार की जा सकती थीं ।
- "वाचमैन के जाते ही" - जीतसिंह बोला - "मैं सीढियों पर ऊपर जाऊंगा । रात के वक्त इधर कोई गश्त का सिपाही निकल आया तो सुनसान सड़क पर मौजूद तुम लोगों से वो सवाल कर सकता है । तब क्या जवाब दोगे ?"
"साई" - नवलानी बोला- "कल तो सारी रात कोई गश्त का सिपाही मुझे इधर दिखाई नहीं दिया था।”
“आज दिखाई दे सकता है । तब क्या जवाब दोगे ?" “तुम बताओ।”
"बोलना, सिनेमा देखकर लौट रहे हो । एक साथी इधर उधर हो गया है जिसके इन्तजार में खड़े हो ।"
"ठीक है ।"
“वाचमैन के जल्दी लौट आने की भले ही कोई उम्मीद नहीं होगी, फिर भी लौट आए तो मुझे सावधान करना होगा
"ठीक है ।"
"डेढ बजने ही वाला है।" - सुकन्या बोली ।
ठीक डेढ बजे ऊपर छज्जे पर तीखी रोशनी वाला बड़ा बल्ब जगा, फिर चैनल गेट के खड़कने की और फिर सीढियों पर पड़ते कदमों की आवाज आई।
वो तीनों बगल की गली में सरक गए ।
वाचमैन ने सीढियां उतरकर सड़क पर कदम रखा और एक फौजी की सी मुस्तैदी से रेस्टोरेंट की ओर बढ़ चला ।
तीनों गली में से निकलकर सड़क पर आ गए ।
फिर नवलानी और सुकन्या को सड़क पर खड़ा छोड़कर जीतसिंह दबे पांव सीढियां चढ गया ।
वो बन्द चैनल गेट के दहाने पर पहुंचा।
वो अपने साथ टार्च लेकर गया था, लेकिन वहां बड़े बल्ब की रोशनी ही इतनी प्रतिबिम्बित हो रही थी कि टार्च जलाने की जरूरत न पड़ी ।
उसने ताले को थामा, उसका कुछ क्षण मुआयना किया और फिर अपना वो काम शुरू किया जिसमें उसे महारत हासिल थी ।
लेकिन तसल्लीबख्श चाबी बनने में पूरे दस मिनट सर्फ हो गए ।
तभी नीचे से सीटी बजने की आवाज आई ।
उसने अपने औजार समेटे और दबे पांव सीढियां उतरने लगा ।
वो सड़क पर पहुंचा और फिर तीनों रेस्टोरेंट से विपरीत दिशा में सड़क पर उधर चलने लगे जिधर सुकन्या कार खड़ी करके आई थी। कार के करीब पहुंचकर वो उसमें सवार हो गए लेकिन जीतसिंह के इशारे पर सुकन्या ने कार आगे बढाने की कोशिश न की ।
वाचमैन वापस लौटा और खामोशी से सीढियां चढ़ने लगा।
"काम बना, साई ?" - नवलानी व्यग्र भाव से बोला ।
"तुम्हारा क्या ख्याल है ?"
" यानी कि बना ।"
"हां । बना ।"
तभी बड़ा बल्ब ऑफ हो गया और इमारत के सामने सड़क पर नीमअंधेरा छा गया ।
"साई" - नवलानी बोला- "उस बल्ब का चक्कर मेरी समझ में आ गया है । "
“अच्छा !" - जीतसिंह बोला ।
"वो रेस्टोरेंट पर से दिखाई देता है । वाचमैन के पीछे जाकर मैंने खुद चैक किया है। रेस्टोरेंट इतने फासले पर है, फिर भी वो वहां से दिखाई देता है । जरूर तेज रोशनी वाला वो बल्ब वो इसीलिए जलाकर जाता है क्योंकि वो रेस्टोरेंट से भी दिखाई देता है। "
"वो बल्ब पर निगाह रखता होगा ?" - सुकन्या बोली - "उसे वो जलता नहीं दिखाई देता होगा तो वो दौड़कर वापस लौट आता होगा ?"
“ऐसा ही मालूम होता है।"
"ऐसा ही है।" - जीतसिंह बोला - "उस बल्ब की और कोई वजह नहीं हो सकती । और उस बल्ब की मौजूदगी में ऑफिस पर लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनाने की कोशिश करना मूर्खता होगी।"
"फिर कैसे काम बनेगा ?"
"फिर" - सुकन्या बोली- " जो चाबी बनाई, वो भी किस काम की ?”
"वो कोशिश आज की तरह उसी वक्फे में की जा सकती है" - जीतसिंह बोला- "जिसमें कि वाचमैन गैरहाजिर होता है। लेकिन तब वो तीखी रोशनी वो जैसे अपनी जगह वाचमैन का काम करने के लिए जलती छोड़ जाता है । रोशनी बन्द नहीं की जा सकती क्योंकि जाहिर है उसके बन्द होते ही वाचमैन बन्दूक से छूटी गोली की तरह दौड़ा वापस लौटेगा ।"
"बत्ती बिजली वालों के बन्द किए भी तो बन्द हो जाती है।"
" यूं एक बत्ती बन्द नहीं होती, सारे इलाके की बत्ती बन्द होती है। सारे इलाके की बत्ती हम कैसे बन्द कर सकते हैं ? कर सकते भी हों तो मुझे गारण्टी है कि उस सूरत में भी वाचमैन अपना खानपान का प्रोग्राम मंझधार में छोड़कर दौड़ा वापस आएगा।"
"ओह !" - सुकन्या एक क्षण खामोश रही और फिर बोली - "वाचमैन को पटाकर अपनी तरफ नहीं किया जा सकता ?"
"ये वो ही वाचमैन नहीं था" - नवलानी बोला - "जो कि मैंने कल यहां देखा था। इस लिहाज से इस बात की कोई गारण्टी नहीं कि आज वाला वाचमैन कल यहां होगा । या कल वाला वाचमैन परसों यहां होगा।"
"मिल गया जवाब ?" - जीतसिंह बोला ।
"हां।" - सुकन्या बोली- "यानी कि हम वाचमैन को पटा सकते हैं, लेकिन ये गारण्टी नहीं कर सकते कि पटे हुए वाचमैन की हमारी जरूरत और सहूलियत के मुताबिक यहां ड्यूटी लगेगी ।”
"हम वाचमैन को भी नहीं पटा सकते । वो न पटा तो हमारी ये कोशिश ही हमारी नीयत का ढिंढोरा पीट देगी ।"
"तो फिर कैसे बीतेगी ?"
"बीतेगी । अच्छा हुआ जो आज हम सर्कस देखने गए।”
"क्या मतलब ?"
"तुम मेरे साथ मैट्रो के मैनेजर के ऑफिस में गई थी । तुमने देखा था कि मैनेजर की पीठ पीछे ऊपर दीवार पर एक रोशनदान था जोकि दाई ओर के छज्जे पर खुलता था ?"
"देखा तो था ।”
"वो रोशनदान जिसके बीच में एक फर्श से समानान्तर लोहे की सलाख थी और सामने शीशे का बन्द पल्ला था ?"
"हां ।”
"
अपना काम बनाने के लिए हमें उस रोशनदान को आजमाना होगा ।”
"कैसे ?”
जीतसिंह ने बताया ।
शुक्रवार: पांच दिसम्बर
अगले रोज इमरान मिर्ची पूना पहुंच गया ।
नवलानी उसे लेकर होटल, जीतसिंह के पास पहुंचा ।
जीतसिंह को वो शख्स देखते ही पसन्द आ गया । वो उम्र में उससे कोई पांच साल बड़ा, उसी जैसे मिजाज वाला, क्लीनशेव्ड आदमी था जिसने आते ही बड़े अदब से जीतसिंह का अभिवादन किया ।
" औजार लाए हो ?" - जीतसिंह ने नवलानी से पूछा
खुरचन "हां, साई ।" - नवलानी बोला- "औजार भी और संभालने के लिए पोलीथीन के मजबूत बैग भी ।"
"कार्लो अभी कर्वे नगर में बिजी रहेगा । जब तक वो वहां से फारिग नहीं हो जाता, तब तक तुम दोनों को यहां काम करना होगा।”
"ठीक है ।"
"लेकिन बड़ी होशियारी से । बड़ी मुस्तैदी से । बड़ी खामोशी से। बाहर दरवाजे पर डोंट डिस्टर्ब का साइन टांग कर ।"
"सब ऐसे ही होगा ।"
"मेड अभी यहां से होकर गई है । वेटर बुलाए बिना नहीं आता । इसलिए आम हालात में तुम्हें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं होगा । फिर भी कोई आ जाए तो दरवाजा खोलने से पहले कालीन को वापस फर्श पर व्यवस्थित करना होगा और डबल बैड को उसकी पोजीशन पर पहुंचाना होगा । की-होल को अन्दर की तरफ से ढक कर रखना होगा ताकि उसमें आंख लगाकर कोई बाहर से भीतर न झांक सके ।"
“कोई ऐसा करेगा ?”
"उम्मीद तो नहीं लेकिन सर्विस स्टाफ का क्या पता लगता है ? डोंट डिस्टर्ब के साइन से सस्पेंस में आकर शायद कोई ऐसी कोशिश करे।"
“खबरदार रहने में क्या हर्ज है ?" - इमरान मिर्ची बोला ।
"बिल्कुल ।"
" और ?" - नवलानी बोला ।
"फर्श से उखड़ा कूड़ा या मलबा या जिसे तुमने खुरचन कहा, रोज का रोज यहां से बाहर निकालकर किसी ठिकाने लगाना होगा ।"
"ठीक ।"
"यहां मेरे सिवाय कोई नहीं आएगा । बिलथरे का यहां कदम रखना मना है, कार्लो ने कुछ कहना सुनना होगा तो पहले फोन करेगा, मैं आऊंगा तो यूं ?" - जीतसिंह ने एक खास तरीके से मेज को ठकठकाया - "दरवाजे पर दस्तक दूंगा । दस्तक के तरीके की खबर मैं सुकन्या को भी कर दूंगा, वैसे वो बिनबुलाए शायद ही यहां आएगी । बहरहाल अहम बात ये है कि खास दस्तक के जवाब में दरवाजा खोलने के अलावा जब भी दरवाजा खुले, तब पहले कालीन और पलंग अपनी जगह पर हों।"
"हम खास ख्याल रखेंगे ।"
“खास ही ख्याल रखना है । अब अपने अपने बिग बॉस को याद करो और शुरू हो जाओ।"
दोनों के सिर सहमति में हिले ।
"मैं अभी जरा अपोलो सर्कस का चक्कर लगाने जा रहा हूं । मेरी गैरहाजिरी में बिलथरे का फोन आए तो उसको बोल देना कि मैं उसे दो बजे मालाबार में मिलूंगा ।"
"ठीक है।"
दो बजे जीतसिंह जब मालाबार में पहुंचा तो उसने पाया कि बिलथरे वहां पहले से मौजूद था ।
“अभी आया ।" - वो बोला- "बस तुम्हारे आगे आगे|"
"खाना खाया ?"
" अभी नहीं ।”
"कुछ काम बना ?"
"हां"
"यहां क्या मिलता है ?"
“साउथ इण्डियन खाना ही मिलता है। चावल साम्भर, रसम वगैरह...
"खाने का आर्डर दो ।"
वेटर को बुलाकर बिलथरे ने खाने का आर्डर दिया ।
"अब बोलो।" - जीतसिंह बोला ।
"जिमखाना की टैम्परेरी मैम्बरशिप का इन्तजाम हो गया है । ये" - उसने सेलोफेन की खिड़की में लगा एक आयताकार कार्ड जीतसिंह की तरफ बढाया - "तुम्हारे नाम का एक हफ्ते की टैम्परेरी मेम्बरशिप का कार्ड है । "
"मेरे से ये सवाल नहीं होगा कि मैं वहां किस का मेहमान हूं ?"
"उम्मीद तो नहीं है, फिर भी सवाल हो तो अपने स्पोंसर का नाम याद कर लो । नाम आलोक पारेख है, मेरी तरह कायन डीलर है और जिमखाना का पुराना मैम्बर है ।”
"शाम को वो भी वहां हुआ तो अजीब नहीं लगेगा कि मैं अपने स्पोंसर को पहचानता नहीं? मेरा मतलब है क्या मेरी उससे एक रूबरू मुलाकात नहीं होनी चाहिए ?"
"मुलाकात अब मुमकिन नहीं । उसकी जरूरत इसलिए नहीं क्योंकि पारेख तुम्हें क्लब में नहीं मिलेगा ।"
"क्या ?"
"वो शाम चार बजे की फ्लाईट से बैंगलौर जा रहा है कई दिन में लौटेगा ।"
"बढिया । लेकिन मैंने अकेले तो क्लब में नहीं जाना।"
"तुम कितने जनों को वहां ले जाना चाहते हो ?" "तीन जनों को । हम चार जने तो हों वहां । "
"एक जने को कट कर दो। टैम्परेरी मैम्बर दो मेहमान साथ ले जा सकता है । "
"ठीक है । ऐसे ही सही ।"
"किसे साथ ले जाओगे ?"
"एक तो तुम हो गए....
बिलथरे पहले ही इन्कार में सिर हिलाने लगा ।
"क्यों ?" - जीतसिंह बोला - "क्या हुआ ?"
"जब मेरा होटल में तुम्हारे पास फटकना मुनासिब नहीं तो क्लब में भी तुम्हारे साव बैठा होना मुनासिब नहीं होगा, क्योंकि कोठारी मुझे पहचानता है ।"
"
ओह ! फिर तो कोई खास चायस न रही। फिर एक मेहमान तो नवलानी होगा और दूसरा इमरान मिर्ची या कार्लो में से एक ।"
"कार्लो का ख्याल भी छोड़ दो। वो पंजे झाड़कर कोठारी के घर की मेड के पीछे पड़ा हुआ है । कोई बड़ी बात नहीं कि जरूरत के वक्त पर वो कर्वे नगर से फारिग होकर वापस ही न लौटे।"
"ठीक है, फिर मिर्ची । लेकिन उसके लिए तरीके की, सलीके की पोशाक का इन्तजाम करना होगा। सच पूछो तो नवलानी के लिये भी । "
"वो सब हो जाएगा । फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट के पास एक थियेट्रीकल सामान की सप्लाई की दुकान है, वहां से हर तरह की पोशाक किराए पर हासिल की जा सकती है ।"
"बढ़िया । "
तभी वेटर खाना ले आया ।
***
आठ बजे जीतसिंह, नवलानी और इमरान मिर्ची निर्विघ्न जिमखाना क्लब के विशाल बार में पहुंच गए। तीनों उस वक्त बढिया सूट पहने थे, टाई लगाए थे और बड़े कुलीन और सम्भ्रान्त लग रहे थे । नवलानी का हुलिया प्रेजेंटेबल बनाने के लिए जीतसिंह ने उसे हजामत कराने के लिए भी मजबूर किया था ।
उस घड़ी बार आधे से ज्यादा खाली था ।
शिवारामन उन्हें एक कोने में अकेला बैठा मिला । उसके सामने विस्की के भरे गिलास की मौजूदगी सिद्ध करती थी कि अपने निश्चित शिड्यूल के मुताबिक वो बिलियर्डरूम से निकलकर बस वहां पहुंचा ही था ।
तीनों बिना उसकी तरफ निगाह उठाए उसके करीब की एक टेबल पर जा बैठे । तल्काल एक वेटर उनके करीब पहुंचा । जीतसिंह ने तीनों के लिए विस्की का आर्डर किया।
तत्काल वेटर उनके सामने विस्की के गिलास और पीनट्स का कटोरा रख गया ।
तीनों ने चियर्स बोला ।
जीतसिंह उन्हें पूरी तरह से समझाकर, बार बार रिहर्सल कराकर, लाया था कि उन्होंने कब क्या वार्तालाप करना था ।
साढे आठ बजे जब उन लोगों का ड्रिंक्स का दूसरा राउण्ड चल रहा था, तब वेटर शिवारामन को उस रात का पांचवां जाम सर्व कर रहा था ।
तब जीतसिंह ने अपने साथियों को इशारा किया ।
दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।
जीतसिंह ने एक गुप्त निगाह शिवारामन की दिशा में डाली और फिर बोला- "क्या बात है, नवलानी साहब ? आज आप ड्रिंक्स में कोई खास रस लेते नहीं मालूम हो रहे !"
" ऐसी कोई बात नहीं ।" - नवलानी नर्वस भाव से बोला ।
"मूड भी उखड़ा उखड़ा है आपका !"
"नहीं, साई । सब ठीक है ।"
"कहां ठीक है ! मैं एक हफ्ते से नोट कर रहा हूं आपके मिजाज में तब्दीली ।"
“कुछ नहीं, यार ।”
"
अरे, आप दोस्तों में हो । कोई फिक्र-फाके की बात है तो साफ बोलो।"
“आपसदारी में पर्दादारी कैसी ?" - मिर्ची बोला ।
"कोई प्रॉब्लम हो तो नाम लो उसका । शायद हम कोई हल सुझा सकें ।"
"प्राब्लम तो है, साई ।" - नवलानी संकोच से बोला - "लेकिन नाम लेने के काबिल नहीं ।"
" यानी कि प्रॉब्लम है ? "
"जोकि आपके उखड़े मूड की वजह है ।"
"हां"
"फिर तो हम जान के रहेंगे । "
"साई, कहने लायक बात नहीं है । "
"हम जरूर जरूर जान के रहेंगे । "
"आखिर हम" - मिर्ची बोला - "आपके जिगरी हैं । "
"साई, वो बड़े शर्म की बात है । "
"तो क्या हुआ ? मर्दों में बैठे हो। औरतों में तो नहीं हो । "
"अब बोलिए" - मिर्ची जिदभरे स्वर में बोला - "क्या है ?
"ठीक है । तुम लोग जिद करते हो तो बोलता हूं।"
"बढिया ।" - जीतसिंह बोला ।
"लेकिन पहले ड्रिंक मंगाओ।"
“अभी लो।"
तीनों ने जाम खाली किए और नए राउंड का आर्डर दिया।
नवलानी, जैसे बात कहने को अपने में हिम्मत पैदा करने के लिए, नया जाम एक ही सांस में तीन चौथाई पी गया |
“अब कह भी डालो।" - जीतसिंह उतावले स्वर में बोला ।
"साई" - नवलानी संकोच और शर्माने का बड़ा शानदार अभिनय करते हुए बोला- "फंस गया हूं।"
" आगे बोलो ।"
“एक कमबख्तमारी विलायती पुटड़ी फंसा गई ।"
"फंसा गई या फंस गई ?"
"पहले फंस गई फिर फंसा गई । खुद तो हफ्ते बाद काठमाण्डू चली गई । पीछे मुझे अपना प्रसाद दे गई ।"
"ओह !"
"अब हाल ये है कि दो हफ्ते हो गए हैं कि न ठीक से बैठा जाता है, न लेटा जाता है, न चला जाता है और न छुआ जाता है । नर्क का नजारा है, साई ।"
"किसी डॉक्टर को दिखाया ?" - मिर्ची हमदर्दीभरे स्वर में बोला ।
"हां । शहर के इन बीमारियों के बड़े नामी डॉक्टर को दिखाया ।”
"वो कौन हुआ ?"
"डॉक्टर सोनटाके । सिफलिस और गोनोरिया का स्पेशलिस्ट है । कनाट रोड पर क्लीनिक है । पन्दरह दिन से हर तीसरे दिन बुला रहा है, लेकिन कोई फायदा तो सामने आ नहीं रहा ।"
जीतसिंह ने नोट किया कि तब तक शिवारामन के कान खड़े हो चुके थे । वो देख परे रहा था, लेकिन उसकी पूरी तवज्जो तब तक उनकी तरफ लग चुकी थी ।
"कहता क्या है वो डॉक्टर सोनटाके ?" - मिर्ची बोला
"कहता है अभी पन्द्रह दिन और लगेंगे कोई फर्क दिखाई देने में, फिर एक महीना ठीक होने में लगेगा ।"
"यानी कि" - जीतसिंह बोला- "कम से कम दो महीने की तो मौजमेले की छुट्टी !"
"अरे साई, मुझे तो लग रहा है कि हमेशा के लिए छुट्टी । मौजमेला तो गया भाड़ में, अब तो जान बच जाए तो गनीमत है ।"
"जान बच जाएगी।" - मिर्ची बोला- "ये बीमारी हालत मरे जैसी कर देती है, लेकिन अच्छे डॉक्टर का इलाज हासिल हो तो मरता कोई मुश्किल से ही है ।"
"हालत तो, मानते हो न, कि मरे जैसी कर देती है ?"
"कोई जाती तर्जुबा तो नहीं, न ही अल्लाह करे कि हो, लेकिन सुना ऐसा ही है ।"
"वही तो ।”
"मुझे आपसे हमदर्दी है, नवलानी साहब" - जीतसिंह बोला - "लेकिन साथ ही आपकी अक्ल पर तरस भी आता है जोकि आपने दोस्तों से ये बात छुपाकर रखी ।”
"जिक्र का भी क्या फायदा, साई ?"
"क्यों नहीं फायदा ? बराबर फायदा है ।”
“क्या फायदा है ?"
“आप इतने सयाने आदमी हैं, नहीं जाने कि जहां ऊंची डॉक्टरी शिक्षा का कौशल काम नहीं आता, वहां किसी फकीर का टोटका काम आ जाता है। जहां कीमती दवा काम नहीं आती, वहां राख की एक चुटकी काम कर जाती है ।"
"क्या मतलब ?"
"मैं दो दिन में" - जीतसिंह आवाज तनिक और ऊंची करता हुआ बोला- "सुना ? दो दिन में आपको आपकी मौजूदा दुश्वारी से निजात दिला सकता हूं।"
"क्या कह रहे हो साई ?"
जीतसिंह ने नोट किया कि अब शिवारामन विस्की पीना भूल गया था और कान और भी खड़े करके उनकी बातें सुन रहा था ।
"जो झूठ बोले, उसे कौवा काटे ।" - जीतसिंह बोला
"वो तो हुआ" - नवलानी बोला - "लेकिन कैसे ?”
"वो भी बताता दं लेकिन सोच लो, पैसा करारा खर्च होगा ?"
"अरे, हो जाए साई, जितना मर्जी हो जाए। तन का कपड़ा भी उतर जाये तो एतराज नहीं...'
"नहीं, इतनी नौबत नहीं आएगी।"
“लेकिन तुम इलाज तो बताओ।"
“इसका फौरन असर दिखाने वाला इलाज एक ही है जो कि आदिकाल से आजमाया जाता चला आ रहा है । "
"क्या ?"
"कुमारी कन्या ।"
"क्या ?"
"कुमारी कन्या । अक्षतयोनि बाला । अचूक इलाज है तुम्हारी इस बीमारी का ।"
“नहीं।”
"हां । मेरा यकीन मानो । बहुत बार आजमाया हुआ टोटका है ये। मौजमेले के शौकीन मर्दों के साथ ऐसा हो ही जाता है लेकिन वो क्या तुम्हारी तरह तड़पते रहते हैं ? ठीक हो जाते हैं। दो दिन में ठीक हो जाते हैं।”
"लेकिन कुमारी कन्या ?"
"हां । यही इलाज है तुम्हारा । "
"वो मिलेगी कहां से मुझे ? और मेरे साथ... कुछ करने को राजी कैसे होगी ?"
"वो सब मेरा जिम्मा । तुम सिर्फ खर्चा उठाने की हामी भरो । बाकी सब इन्तजाम मैं कर दूंगा।"
"ठीक है। मैंने भरी हामी ।"
"तो समझ लो मैंने किया इन्तजाम | "
"गुड | "
"इसी बात पर" - मिर्ची बोला- "चियर्स हो जाए।"
“हो जाए ।" - नवलानी जोश से बोला - " और आज का इधर का बिल भी मेरे जिम्मे ।"
उन्होंने नए जाम मंगाए ।
“आपकी तन्दुरुस्ती के लिए।" - जीतसिंह नवलानी से जाम टकराता हुआ बोला । "
"आपकी लम्बी उम्र के लिए।" - मिर्ची बोला ।
"शुक्रिया!" - नवलानी तब पहली बार चहका"शुक्रिया !"
जीतसिंह ने नोट किया, शिवारामन अब बेचैनी से पहलू बदल रहा था । यानी कि बकरा जिबह होने के लिए तड़फड़ाने लगा था । जीतसिंह ने नवलानी को इशारा किया ।
"साई" - नवलानी उठता हुआ बोला- "मैं जरा टायलेट हो के आता हूं।"
"मैं भी ।" - मिर्ची बोला ।
पीछे टेबल पर जीतसिंह को अकेला छोडकर दोनों वहां से रुख्सत हो गए ।
शिवारामन कुछ क्षण हिचकिचाता रहा और फिर अपने स्थान से उठा । अपना विस्की का गिलास थामे वो जीतसिंह के पास पहुंचा ।
"हल्लो !" - वो जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
"हल्लो ।" - जीतसिंह सहज भाव से बोला ।
"मेरा नाम शिवारामन है । लोकल ब्लू स्टार होटल का मैनेजर हूं । यहां का पुराना मैम्बर हूं। मैं एक मिनट आप से बात करना चाहता हूं।"
"हां, हां | जरूर । तशरीफ रखिए ।"
"थैंक्यू ।" "मुझे बी नाथ कहते हैं । "
"मैंने पहले कभी आपको यहां नहीं देखा। नए मैम्बर हैं ?"
"नहीं, साहब । किसी मैम्बर के आलोक पारेख साहब के मेहमान हैं। कभी कभार ही आना होता है । " -
“तभी तो ।”
"क्या बात करना चाहते हैं आप ?"
"वो क्या है कि " - शिवारामन बेचैनी से पहलू बदलता हुआ बोला- "अपनी टेबल से मुझे आप लोगों की बातें सुनाई दे रही थीं ।”
“अच्छा ! फिर तो अफसोस है हमने ऊंचा बोल बोलकर आपको डिस्टर्ब किया । "
"अरे, वो बात नहीं । मैं बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं हुआ। मैं शिकायत नहीं कर रहा । "
"तो ?"
"क्या ये सच है कि... कि... किसी कुमारी कन्या से... वर्जिन से... इण्टरकोर्स से... वो... वो... सैक्सुअल डिजीज दूर हो जाती है ?"
"हां ! सिर्फ दो दिन में। गारण्टी के साथ। आप क्यों पूछ रहे हैं ?"
"बद्किस्मती से आपके फ्रेंड वाली प्रोब्लम आजकल मेरे साथ भी है । मैं भी डॉक्टर सोनटाके से ही ट्रीटमेंट हासिल कर रहा हूं लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा । मैं भी आपके दोस्त की तरह ही परेशान हूं और इस बीमारी से पीछा छुड़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।"
"कुछ क्या करना है ! एक ही काम करना है । वही जो मैंने अपने दोस्त मिस्टर नवलानी को करने को कहा है ।”
"लेकिन मैं तो वैसी... वैसी लड़की तलाश नहीं कर सकता ।"
"कोई बड़ी बात नहीं । मिस्टर नवलानी भी कहां कर सकते हैं ! उनके लिए ये काम तो मुझे करना होगा ।"
“आप कर सकते हैं ? "
"हां । तभी तो बोला ।"
“आप कैसे कर सकते हैं ?"
“अब हर बात तो नहीं बताई जाती न, मिस्टर... मिस्टर..."
"शिवारामन ।”
"हां । मिस्टर शिवारामन । और वो भी ऐसे शख्स को जिससे मेरी जानकारी कुल जमा दो मिनट की है । "
“आप न बताइए लेकिन ये काम कर तो आप सकते हैं ?"
"हां । यकीनन ।”
" और अपने फ्रेंड के लिए करेंगे ?"
“जरूर करेंगे । दोस्त के लिए तो जान हाजिर है । "
"क्या यही काम आप मेरे लिए भी नहीं कर सकते ?"
" आपके लिए ?"
"काम तो आप करेंगे ही। एक अदद के लिए किया या दो अदद के लिए किया, क्या फर्क पड़ता है ?"
“फर्क तो नहीं पड़ता, लेकिन... "
"मिस्टर नाथ, प्लीज..."
"देखिए, कन्या कुमारी होगी तो नाबालिग भी होगी । नाबालिग के साथ सम्भोग की गम्भीरता को आप समझते हैं ?"
"लेकिन जब वो ये काम अपनी मर्जी से करेगी तो..."
"नाबालिग की मर्जी नहीं चलती । वो अदालत के कठघरे में खड़ी होकर बयान दे कि जो हुआ था, उसकी मर्जी से हुआ था तो भी पुरुष को ही जिम्मेदार माना जाता है ।”
"सर, ये रिस्क आपके फ्रेंड के सामने भी तो है । "
“मिस्टर नवलानी भुगत लेंगे।"
"मैं भी भुगत लूंगा ।"
" यानी कि कोई बखेड़ा हो गया तो आप मेरा नाम बीच में नहीं लाएंगे ? ये नहीं कहने लगेंगे कि ऐसी कोई लड़की मैंने आप तक पहुंचाई थी ?"
"हरगिज नहीं" - उसने बड़ी व्यग्रता से अपनी छाती पर हाथ रखा - “आई स्वियर बाई मुरुगन ।”
"ठीक है । आपका इसरार है तो...
“मेरा इसरार है । प्लीज प्लीज, मिस्टर नाथ | "
"लेकिन पैसा ज्यादा खर्च हो सकता है ।"
"मैं करूंगा।"
"आपकी उम्मीद से ज्यादा । "
"कितना ?"
"कम से कम पचास हजार रुपया ।"
उसका चेहरा उतर गया ।
"इतना ?" - वो बोला ।
"कुंआरी कन्या का मामला है । कन्या बार-बार कुआंरी नहीं हो सकती। सारी जिंदगी में एक ही बार होने वाले काम की कीमत तगड़ी ही होती है ।"
"वो तो ठीक है, लेकिन..."
“पचास हजार में भी मैं आपके लिए कोशिश करूंगा क्योंकि मैंने अपने दोस्त के लिए भी करनी है, ज्यादा भी हो सकती है।"
" ज्यादा भी हो सकती है ?"
"जी हां । "
"लेकिन होगी तो नहीं न ?”
"मैं कोशिश करूंगा कि न हो । जब मैं अपने फ्रेंड का नुकसान नहीं चाहता तो आपका नुकसान भी कैसे चाह सकता हूं ?"
" यानी कि आप ये काम मेरे लिए करेंगे ? पचास हजार में ?"
"हां"
"जल्दी ? क्योंकि मैं बहुत तकलीफ में हूं।"
"नवलानी साहब भी बहुत तकलीफ में हैं। इसलिए जल्दी तो करनी ही होगी ।"
"क... कब तक ?"
"कल ही । बड़ी हद परसों ।"
“आज ही कुछ नहीं हो सकता ?"
"आप मजाक कर रहे हैं । "
"ठीक है । कल की कोशिश कीजिएगा । सर, आई विल बी एटर्नली इनडेटिड टू यू ।”
"क्या ? क्या बोला ?"
"मैं ताजिन्दगी आपका शुक्रगुजार रहूंगा।"
"अच्छा, वो !"
"जी हां ! पैसा कब देना होगा ?"
"मैं खबर कर दूंगा । होटल ब्लू स्टार बोला न ?”
"जी हां । कनाट रोड पर है । फेमस होटल है । "
"जहां कि आप मैनेजर हैं ?"
" जी हां । "
"ठीक है । "
तभी नवलानी और मिर्ची उधर बढ़ते दिखाई दिए ।
"मैं अब आपको और डिस्टर्ब नहीं करूंगा" - वो उठता हुआ बोला- "मैं आपसे दोबारा कांटैक्ट का इन्तजार करूंगा।"
"बरोबर । मेरा मतलब है ठीक है । "
वो वापस अपनी मेज पर चला गया ।
"मछली !" - नवलानी आशापूर्ण स्वर में बोला ।
"चारा !" - मिर्ची बोला ।
“निगल गई है” - जीतसिंह मुस्कराता हुआ बोला ।
***
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