सात बजे तक इन्तजार करते तीन गार्ड भी वहां से चले गए और पीछे मैनेजर और एक चपरासी रह गए ।
साढे सात बजे मैनेजर चला गया और केवल चपरासी पीछे रह गया । उसने साहब के कक्ष की और गार्ड्स के वेटिंगरूम की बत्तियां बुझा दीं और टेलीविजन लाकर ऑफिस में रख लिया। जीतसिंह ने नोट किया कि वेटिंगरूम के दो दरवाजे छज्जे पर खुलते थे जिन्हें कि चपरासी ने भीतर की तरफ से बन्द किया। तब ऑफिस का सीढ़ियों के करीब पड़ने वाला इकलौता दरवाजा ही खुला रह गया । तब रोशनी या ऑफिस में थी या छज्जे के दोनों बाजुओं में थी ।
नौ बजे वहां वाचमैन के कदम पड़े ।
तब चपरासी ने टीवी बन्द किया, उसे वापस उसकी असली जगह पर पहुंचाया, भीतर की तमाम बत्तियां बन्द कीं और ऑफिस का दरवाजा बन्द करके उसे बाहर से ताला लगा दिया ।
चपरासी वहां से रुख्सत हो गया तो वाचमैन ऑफिस के बन्द दरवाजे के करीब छज्जे पर ऐसी जगह पर कुर्सी डाल के बैठ गया जहां से कि वो छज्जे की दोनों लम्बवत् भुजाओं में निगाह दौड़ा सकता था ।
वाचमैन की रात की दिनचर्या वाच करने के लिए भागचन्द नवलानी को नियुक्त किया गया ।
गुरुवार : चार दिसम्बर
आठ बजे नवलानी जीतसिंह के होटल के कमरे में पहुंचा।
सारी रात का जागा, थका हारा वो आते ही एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
"मर गया, साई।" - वो आह भरकर बोला ।
"तभी तो बोला" - जीतसिंह सख्ती से बोला- "कि ये तुम्हारे बस का काम नहीं । "
"साई" - वो आहत भाव से बोला- "मैंने पूरी ईमानदारी से मुझे सौंपा गया काम किया है ।"
"लेकिन हालत ऐसी बनाकर लौटे हो कि अब कोई और काम करने के काबिल नहीं हो ।"
"काबिल हो जाऊंगा, साई । तांगे में जुता घोड़ा भी बीच-बीच में आराम चाहता है । मैं तो फिर इन्सान हूं । "
"क्या जाना ?"
"वो नाइट वाचमैन दस घण्टे की ड्यूटी भरता है । नौ बजे का वहां पहुंचा वो सुबह सात बजे वहां से रुख्सत होता है जबकि वहां ऑफिस खोलने के लिए और उसकी झाड़-बुहार करने के लिए एक चपरासी पहुंचता है ।"
“वाचमैन रातभर छज्जे पर ही जमा रहता है ?"
"डेढ बजे उठता है। मेरे सामने वो ठीक डेढ बजे उठा था। मैंने इस बात की तसदीक भी कर ली कि वो डेढ बजे ही उठता है।"
"कैसे ? कैसे तसदीक कर ली है ?"
“वहां एम्प्लोयमेंट एक्सचेंज के बाजू में एक रेस्टोरेंट है जो कि करीब ही एक सिनेमा होने की वजह से देर रात तक, नाइट शो खत्म होने के बाद तक, खुलता है। वाचमैन उस रेस्टोरेंट का आखिरी ग्राहक होता है जोकि ठीक डेढ बजे अपनी ड्यूटी पर से उठता है तो पांच मिनट में वहां पहुंच जाता है । वहां वो चाय-वाय पीता है, अंडा, बिस्कुट, पकौड़े जैसा कोई छोटा मोटा खानपान करना हो तो करता है, कोई धार-वार मारनी हो तो मारता है और फिर वहां से वापस आ जाता है । एक पचास पर वो निश्चित रूप से छज्जे पर वापस लौट आता है ।"
" यानी कि वो बीस मिनट अपनी ड्यूटी से दूर रहता है?"
"हां"
"आगे।"
"रेस्टोरेंट में उसके पीठ फेरते ही रेस्टोरेंट बन्द हो जाता है। लेकिन उसमें काम करने वाले दो छोकरे वहीं रेस्टोरेंट के सामने ही एक तख्तपोश पर सोते हैं। मैंने उन्हीं में से एक को काबू में किया था और वाचमैन की बाबत सवाल किए थे। उसी छोकरे ने इस बात की तसदीक की थी कि वाचमैन ठीक एक पैंतीस पर वहां पहुंचता था और दस मिनट रुककर वापस चला जाता था । वो रेस्टोरेंट वाला वाचमैन का खास लिहाज ये करता है कि सिनेमा का नाइट शो कभी जल्दी भी खत्म हो जाए- जो कि फिल्म छोटी होने पर ही हो सकता है तो भी वाचमैन के वहां पहुंचने का इन्तजार करता है।"
"अपनी गैरहाजिरी का पीछे वो कोई इन्तजाम तो करके जाता होगा ?"
"करके जाता है । एक तो वो ऑफिस के बन्द दरवाजे के ऊपर लगा एक कोई दो सौ वॉट का बल्ब जगाकर जाता है ।"
"वो किसलिए ? रोशनी तो छज्जे के दोनों बाजुओं पर चपरासी ही जाने से पहले करके जाता है ।"
"वो मामूली रोशनी है और बड़ा बल्ब जलने पर भी जली रहती है । वो रोशनी तो उजाला होने तक रहती है, लेकिन वो बड़ा बल्ब वाचमैन सिर्फ अपनी गैरहाजिरी में जलाकर जाता है।"
देता है ?" " यानी कि जब वो लौट के आता है तो उसे बन्द कर
"हां । आते ही ।"
"मकसद क्या हुआ इस बड़े बल्ब का ?"
"पता नहीं । मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया।"
"और क्या इन्तजाम करके जाता है वो ?”
"और सीढियों के दहाने पर चैनल गेट लगा हुआ है जिसको बन्द करके वो उस पर ये मोटा" - नवलानी ने हाथ के इशारे से ताले के आकार का अपना अन्दाजा बताया. "ताला जड़ के जाता है ।"
"यानी कि" - जीतसिंह बड़बड़ाया- "उन बीस मिनटों में ऑफिस में घुसना हो तो पहले दो ताले खोलने होंगे|"
"जाहिर है । एक जो सीढियों के दहाने पर चैनल गेट पर लगा होगा और दूसरा ऊपर ऑफिस के दरवाजे पर लगा हुआ।"
"हूं।"
"लेकिन दो क्यों ? तीन कहो । की-बोर्ड को भी तो ताला लगा होगा ।"
"वो की-बोर्ड वाला ताला कल मैंने देखा था । वो बोर्ड की पैनल में लगा बिल्ट-इन लॉक है, जिसे मैं चुटकियों में खोल लूंगा ।"
"खोलकर उसमें मौजूद कई चाबियों में से अपने मतलब की चाबी छांटनी होगी और फिर उसका सांचा तैयार करना होगा ।"
"हां"
"इतनी चाबियों में से अपने मतलब की चाबी कैसे पहचानेगा ?"
"ये भी एक समस्या है। हम वॉल्ट की चाबियों की सूरत नहीं पहचानते, उनकी किस्म नहीं पहचानते ।”
"तो ?"
"एक तरीका तो ये है कि वहां जितनी भी चाबियां मौजूद हैं उन सबकी छाप ली जाए और फिर बाद में छांटा जाए कि उसमें हमारी जरूरत की छाप कौन सी थी । लेकिन इसमें वक्त की भारी बर्बादी होगी जबकि वक्त हमारे पास ऐन फुटे से नपा हुआ होगा । सिर्फ बीस मिनट का । बल्कि उससे भी कम का, क्योंकि हमें वाचमैन के चले जाने का इंतजार करना होगा और उसके लौट आने से पहले वहां से निकल चलना होगा।”
नवलानी ने सहमति में सिर हिलाया, वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - "साई, छाप लेने की जगह तमाम चाबियां ही चुरा लाएं तो ?"
"यूं तो की-बोर्ड का ताला खोलने की कोशिश करने की भी क्या जरूरत है ? यूं तो की-बोर्ड ही उखाड़कर साथ लाया जा सकता है। एक बार मैनेजर के कमरे तक पहुंच जाने के बाद क्या मुश्किल काम होगा ये ?"
"लेकिन ऐसा हो नहीं सकता ?"
"नहीं हो सकता । वहां से चाबी चुराना हमारी करतूत के इश्तिहार छपवाकर बंटवाने जैसा होगा । वो चाबी गायब हो गयी जानते ही होटल वाले फौरन समझ जाएंगे कि आइन्दा सिक्कों की नुमायश के दौरान होटल का वॉल्ट किन्हीं डकैतों का निशाना बनने वाला था । ऐसा न होने देने के लिए फिर वहां जो न हो जाए थोड़ा है।"
"मसलन क्या हो सकता है ?"
"नुमायश ही कैंसल हो सकती है । "
"ओ, नो ।”
"होटल वाले कह सकते हैं कि करोड़ों के माल की हिफाजत करना उनके बस की बात नहीं थी । "
" ऐसा नहीं होना चाहिए । "
“वो वॉल्ट बनाने वाली कंपनी को बुलाकर उसके ताले बदलवा सकते हैं और फिर चाबियों की हिफाजत का कोई ऐसा इन्तजाम कर सकते हैं, लाख सिर पटकने पर भी जिसकी हमें भनक नहीं लगेगी ।"
"वो भी सत्यानाशी काम होगा। साई, कोई हल सोच न इस प्रॉब्लम का ।"
"इसका यही हल है कि हमें पहले अपनी जरूरत की चाबी की शिनाख्त हो ।"
"वो कैसे होगी ?”
"उस चाबी से होगी जो कि शिवारामन के गले में लटकी हुई है या उस चाबी से होगी जो कि होटल के सीनियर पार्टनर कोठारी के अधिकार में है, लेकिन जिसके बारे में हमें अभी पता नहीं कि वो उसे कहां रखता है ! वो तीनों चाबियां इस्तेमाल में जुदा होंगी, लेकिन शक्ल-सूरत में एक जैसी होंगी । हो सकता है उन पर वॉल्ट बनाने वाली कंपनी का मार्का या होटल का नाम गुदा हो । कहने का मतलब ये है कि हम एक चाबी पहचान लेने के बाद दूसरी चाबी या तीसरी चाबी बड़ी आसानी से पहचान सकते हैं।"
"फिर तो पहले शिवारामन के गले का हार बनी चाबी पर हाथ डालना होगा ।"
“हां । और इस कोशिश की शुरूआत हम आज ही रात करेंगे।"
"कैसे ?”
"खबर लग जाएगी । तुम वापस जाओ और बिलथरे से मेरी बात कराओ।"
"साई, यूं तो न भेज ।”
"क्या ?"
के आया हूं।" "कोई चा पानी तो पिला दे। सारी रात आंखों में काट
"ओह ! सॉरी । मैं अभी ब्रेकफास्ट का इन्तजाम करता हूं।"
"जीता रह, साई।"
दोपहरबाद बिलथरे ने जीतसिंह को फोन किया ।
"करीब से ही बोल रहा हूं" - वो बोला- "तुम्हें मेरे होटल में तुम्हारे पास आने से एतराज है, इसलिए फोन किया |"
"करीब से कहां से ?"
"कनाट रोड पर ही मालाबार करके एक साउथ इण्डियन रेस्टोरेंट है । वहां से । "
“आता हूं।"
मालाबार एक बहुत बड़ा रेस्टोरेंट निकला जिसके एक तनहा कोने में बिलथरे बैठा था । उसके साथ एक कोई चौबीस-पच्चीस साल का खुबसूरत युवक था जो अपनी सूरत जैसी ही खूबसूरत और आधुनिक पोशाक पहने था।
जीतसिंह उनके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया, उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से बिलथरे की तरफ देखा ।
"कार्लो ।" - बिलथरे बोला - "गोवा से आया । एडुआर्डो ने भेजा ।”
"हल्लो !" - कार्लो चहका ।
"ये बद्रीनाथ है" - बिलथरे कार्लो से बोला - "जिसका मैंने तुमसे जिक्र किया था ।”
"जिक्र तो मैं पहले भी सुना बॉस का । लेकिन पहले मुलाकात होने से रह गई। क्योंकि डैडियो धोखा दे गया । पहले इन बोल के भी मेरे को ऐन टेम पर आउट कर दिया। "
"क्या मतलब हुआ इन बातों का ?" - जीतसिंह सख्ती से बोला ।
"तेरे को मालूम, बॉस । कुछ लोग सूरत से ज्यादा कारनामों से पहचाने जाते हैं । "
“कारनामे !”
"डबल बुल का वाल्ट खोलना कोई मामूली कारनामा था !"
"कतरनी हमेशा ऐसे ही चलती है तेरी ?"
उसके जोश को झटका लगा । तल्काल वो खामोश हुआ । जीतसिंह फिर भी उसे घूरता रहा तो उसने बेचैनी से पहलू बदला और होंठों में बुदबुदाया- "सॉरी!”
"दूसरा आदमी आया ?" - जीतसिंह बिलथरे की तरफ आकर्षित ह आ ।
“अभी नहीं ।" - बिलथरे बोला - "लेकिन आ जाएगा । आज रात नहीं तो कल सुबह जरूर यहां पहुंच जाएगा । एडुआर्डो ने सब सैट कर दिया है । "
"कौन है वो ?"
"उसका नाम इमरान मिर्ची है। एडुआर्डो कहता है कि बहुत भरोसे का आदमी है । "
"ठीक है ।"
"मुझे क्यों याद किया था ?"
"मैंने कहा था मैं अपनी स्कीम में कुछ सुधार करुगा
"शिवारामन से ताल्लुक रखती स्कीम में ?”
"हां । सुधार क्या किया है, नया ही कुछ सोचा है ।”
"क्या ?"
"मुझे पता चला है कि होटल मैनेजर शिवारामन रोज शाम को बिना नागा जिमखाना क्लब जाता है, जहां वो पहले एक घण्टा बिलियर्ड खेलता है और फिर एक घण्टा बार में गुजारता है । बिलियर्ड के खिलाड़ी तो हम खड़े पैर नहीं बन सकते लेकिन बार में गिलास हम भी थाम सकते हैं ।"
"उस क्लब में तो सिर्फ मैम्बर ही जा सकते हैं । "
"ऐसा ही मालूम पड़ा है। तुम लोकल आदमी हो । तुम ऐसा कोई जुगाड़ कर सकते हो कि जो मैम्बर नहीं है, उसकी भी पहुंच वहां हो सके ।”
"टैम्परेरी ?"
"जाहिर है ।"
"मैम्बर अपने मेहमानों को वहां ले जा सकते हैं । वो उन्हें तीन दिन की या एक हफ्ते की या एक महीने की टैम्परेरी मेम्बरशिप दिला सकते हैं। ऐसा कोई मैम्बर ढूंढना होगा और उसे इस काम के लिए तैयार करना होगा ।"
" ढूंढ सकोगे ?"
"उम्मीद तो है । कई कायन डीलर्स लोकल क्लबों के मैम्बर हैं। कोई न कोई जिमखाना का मैम्बर भी निकल ही आएगा ।"
" ढूंढ ही लेना ऐसा कोई मैम्बर, क्योंकि अब शिवारामन वाली चाबी पहले हथियाना जरूरी हो गया है । वजह नवलानी ने बताई होगी ।"
"बताई थी । मैं करता हूं अपनी कोशिश ।”
“हां | जरूर ।”
"तब तक इसके लिए क्या हुक्म है ?"
"इसे बता दिया कि सिलसिला क्या है और इसने करना है ?"
"हां"
"मैं सब फालो किया ।" - कार्लो बोला ।
"बढिया । अब तुमने होटल ब्लू स्टार पहुंचना है और वहां अपने लिए एक डबल रूम बुक करना है । "
"डबल !"
"तुम्हारा दोस्त, इमरान मिर्ची, बाद में पहुंचेगा।"
"मैं उसकी शक्ल नहीं पहचानता ।"
”कोई वान्दा नहीं । मैं भी तेरी शक्ल नहीं पहचानता था।
"यू आर राइट, बॉस" - फिर उसने अपना एक हाथ सामने फैला दिया।"
"क्या ?" - जीतसिंह बोला - "क्या मांगता है ?"
"कोई मालपानी । रोकड़ा | मनी ।"
"क्यों ? अभी पिछले महीने जो डेढ लाख रुपया मिला वो सब खलास कर चुका ?"
कार्लो हड़बड़ाया ।
“साले ! ब्लैकमेलर ! अपनी कजन शालू को भी न बख्शा ! उससे भी पचास हजार झटक लिए !"
कार्लो ने तत्काल अपना हाथ वापस खींच लिया ।
"होटल पहुंच । अभी जा के कमरा बुक करा । वहां फौरन कोई खर्चा नहीं होने वाला । जब होटल का बिल चुकाने की नौबत आएगी तो देखेंगे।"
"ओके" - कार्लो दबे स्वर में बोला ।
"फूट ।"
कार्लो ने अपनी कुर्सी के पाए के करीब रखा एक बैग उठाया और उठ के खड़ा हो गया ।
“अब क्या है ?" - उसे जाता न पाकर जीतसिंह कर्कश स्वर में बोला ।
"इतना तो बता दो कि कितने मालपानी का मामला है और उसमें मेरा हिस्सा क्या होगा ?"
जीतसिंह ने घूरकर उसे देखा।
"ये सवाल" - कार्लो धीरे से बोला- "मैं पणजी से रवाना होने से पहले भी कर सकता था ।"
"तो किया क्यों नहीं ?"
"तुम्हारा लिहाज किया ।"
"मेरा या एडुआर्डो का ?"
“एक ही बात है ।"
"जाने बिना नहीं हिलेगा यहां से ?"
"हिल जाऊंगा, लेकिन ऐसे काम में दिल लगाना मुश्किल होता है जिसके हासिल की खबर न हो ।"
“काफी सयानी बात कही ।"
कार्लो खामोश रहा ।
“एक आदमी और आने वाला है।" - जीतसिंह अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला- "इमरान मिर्ची । पहले भी बोला । वो भी अभी कुछ नहीं जानता । तेरी तरह वो भी इस बाबत सवाल करेगा । वो आ जाए, फिर मैं एक ही बार सब समझाता हूं।"
"ठीक है । "
कार्लो वहां से रुख्सत हो गया ।
"तसवीरों का क्या हुआ ?" - पीछे जीतसिंह ने पूछा
"सुकन्या खींच लाई है।" - बिलथरे बोला ।
"कहां हैं ?"
"उसी के पास हैं । बुलाएं उसे ?"
"अभी नहीं । उसको बोलना शाम को तसवीरों के साथ मेरे से मिले।"
"शाम को मिले ?"
"कोई एतराज ?"
"होगा तो चल जाएगा ?"
"नहीं ।”
"फिर तो बात ही खत्म हो गई। मैं सुकन्या को बोल दूंगा।"
" और क्या खबर है ?"
" है तो सही और खबर ।"
"मैं सुन रहा हूं।"
"मेरी होटल के पार्टनर कोठारी की पड़ताल ये है कि वो अपनी वाली चाबी अपने पास अपनी किसी जेब में या होटल में स्थित अपने ऑफिस में नहीं रखता ।"
"कैसे जाना ?"
"उसकी गैरहाजिरी में उसके ऑफिस को ताला नहीं लगता और उसमें उसकी गैरहाजिरी में भी होटल स्टाफ की - जैसे उसके पी एस की, चपरासी, स्टेनो की आवाजाही रहती है । उसके आने से पहले रोज सुबह ऑफिस की मुकम्मल झाड़पोंछ होती है और वैक्यूम क्लीनर से फर्श का कालीन और खिड़की के पर्दे साफ किए जाते हैं। ये कोई आधे घंटे का काम है जो रोज सुबह कोई वेटर या कोई बैलबाय या कोई मेड करती है ।"
"तो ?"
"बद्री । बारीक सफाई में और बारीक तलाशी में कोई खास फर्क नहीं होता। सफाई में भी जगह का हर कोना खुदरा टटोला जाता है और तलाशी में भी ।"
"तुम्हारा मतलब है जिस जगह पर इतने लोगों के हाथ पड़ते हों, वो जगह चाबी के लिए सेफ नहीं ? "
"हां । चाबी वहां हो तो किसी वेटर को किसी बैलबाय को, किसी मेड को या होटल के किसी और स्टाफ को रिश्वत देकर उसकी छाप हासिल कर लेना क्या बड़ी बात है ?"
"कोई बड़ी बात नहीं ।"
"चाबी ऑफिस में होती तो वो रेलवे प्लेटफार्म जैसा खुला खेल न होता । फिर कोठारी की गैरहाजिरी में वहां ताला मिलता, उसकी हाजिरी में भी, जबकि वक्ती तौर पर वहां ताला न होता, वहां कदम रखने पर पाबन्दी होती और वहां की रोजाना सफाई किसी जिम्मेदार आदमी के सुपरविजन में होती ।"
"तुम्हारी बात में दम है। चाबी उसकी जेब में क्यों नहीं हो सकती ?"
"क्योंकि वो रोज सोना बाथ लेता है जोकि होटल में ही है। उस बाथ में दाखिल होने से पहले वो अपने तन के कपड़े उतारकर बहुत लापरवाही से इधर उधर डाल देता है - कभी बाथ के बाहर की किसी कुर्सी या बैंच पर तो क भी वहां उपलव्य किसी खुली वार्डरोब में । आधा घंटा वो बाथ में बन्द रहता है । उस दौरान उसकी पोशाक की जेबें टटोल लेना हंसी खेल है। ऐसी, यूं ही कहीं भी पड़ी, पोशाक में वॉल्ट की चाबी नहीं हो सकती ।"
"तो कहां हो सकती है ?"
“जाहिर है कि उसकी कोठी में जोकि दरिया के पार कर्वे नगर में है ।"
"कोठी देखी ?"
"हां । वो चार सौ गज में बनी एकमंजिला कोठी है ।"
"फैमिली ?”
"बीवी । गैरशादी शुदा नौजवान लड़की । बस ।”
"नौकर-चाकर ?"
"एक आया, एक खानसामा, एक माली, एक चौकीदार, एक ड्राइवर । चौकीदार सिर्फ रात का मुलाजिम, ड्राइवर और माली सिर्फ दिन के । आया और खानसामा चौबीस घण्टे के । वहीं रहते हैं । "
"कोठी के भीतर क्या है ? कैसे कैसे है ?"
"नहीं मालूम हो सका।"
"कोई तरीका कि मालूम हो सके ।"
"आया । नौजवान है । कोई अट्ठारह साल की । चंचल । काबू में आ सकती है।"
"किसके ?"
"जाहिर है मेरे या नवलानी के तो नहीं ।”
“तो ?"
“तुम्हारे ।”
जीतसिंह हंसा ।
"कार्लो के बारे में क्या ख्याल है ?"
"ठीक ख्याल है । फिर उसकी जगह फर्श तुम्हें खोदना पड़ेगा ।"
बिलथरे का रंग बदरंग हुआ ।
“नवलानी को भी । तब तक जब तक कार्लो फारिग नहीं हो जाता और वो इमरान मिर्ची नाम का आदमी नहीं पहुंच जाता।”
"ठीक है ।" - बिलथरे मरे स्वर में बोला ।
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