5. "चीखने वाला कुआँ"
दिन शनिवार 1 मई अमावस की रात, राजेश अपना दिन भर का काम करके घर लौट रहा था, जैसे ही हॉस्पिटल के पीछे वाली रोड पर पहुँचा तभी उस सुनसान सड़क में किसी लड़की के चीखने की अवाज़ सुनायीं दी , अचानक से आयी इस आवाज़ को सुनकर राजेश पहले तो चौकन्ना हुआ, फ़िर खुद को थोड़ा सँभालते हुए जोर से चिल्लाया - कौन है वहां ? राजेश के चिल्लाते ही वहां बिल्कुल शांति हो गयी |
अपने हाथ में लिए टॉर्च से उसने सड़क के दायी ओर और फिर बायीं ओर लाइट मारी और उस लड़की को ढूढ़ने के लिए थोड़ा आगे बढ़ा ही था की अचानक से राजेश के फ़ोन की घंटी बज गयी इस बार राजेश खुद को संभाल नहीं पाया और वही गिर गया राजेश के हाथ से फ़ोन छूट गया|
एक पल को उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे किसी ने धक्का दिया हो , खुद को सँभालते हुए राजेश ने पहले टॉर्च उठाया और फिर मोबाइल उठाया, स्क्रीन ऑन की तो देखा- मीरा इस ट्राइंग टू कॉल, यू हव थ्री मिस्ड कॉल्स ||
राजेश ने कॉल बैक की और बोला अ रहा हूँ, कार खराब हो गयी थी सारे गैराज कोरोना के चलते बंद है| मुझे देर हो रही थी और फैकल्टी वैन अभी कुछ कर्मचारियों को उनके घर छोड़ने गयी हुई थी इसलिए फैकल्टी वैन का इंतज़ार किये बिना मै पैदल ही निकल गया |
मीरा - ठीक है ,आप आराम से अ जाओ मै आपका इंतज़ार कर रही हूँ| राजेश ने खुद को संभाला कुछ देर इधर- उधर देखा कोई हलचल न दिखने की वजह से उसे लगा ये उसका वहम होगा और बिना देर किये वहां से निकल गया|
उस रास्ते से तो वह निकल गया लेकिन वह आवाज़ उसके जेहन से नहीं ज रही थी, घर पहुंचते ही राजेश फ्रेश होने गया और अपने कमरे में आकर बैठ गया दिनभर की भाग दौड़ से थके राजेश ने मीरा को आवाज़ लगायी, मीरा ने राजेश को कुछ दूर से ही खाना दिया जब तक राजेश खाना खाते रहे, तब तक मीरा उनसे बात करती रही , दिन भर की गाथा सुनाने के बाद राजेश ने मीरा से पुछा क्या तुम भूत प्रेत को मानती हो ?
मीरा जोर से हस पड़ी और बोली आपसे बेहतर मुझे कौन जानता है, राजेश भी पुराने दिन याद करके मुस्कुराने लगा मीरा ने सारा सामान समेटा और अपने कमरे में सोने चली गयी ||
राजेश पेशे से डॉक्टर है और हॉबी से राइटर खाली समय में उसे लिखना और किताबे पढ़ना बहुत पसंद है राजेश के परिवार में पांच सदस्य है राजेश की माता जी , पिता जी ,अर्धांगिनी मीरा और एक नन्ही सी बेटी गुनगुन |
देश इस समय कोरोना नामक महामारी से पीड़ित है जैसा की हम सभी जानते है कोरोना नमक वायरस अपने चरम पर है आये दिन मौत का आकड़ा बढ़ रहा है आम आदमी से लेकर आला अधिकारी भी ख़ौफ़ के इस साये से खुद को नहीं बचा पा रहे है उनको इस समस्या से पार पाने का एक ही उपाये नज़र आया वो है लॉकडाउन |
लॉकडाउन के चलते आजकल सड़के दिन के उजाले से लेकर रात के अंधेरे तक बिल्कुल सुनसान रहती हैं राजेश भी इस समय बहुत व्यस्त चल रहा है उसके पास लिखने और पढ़ने का टाइम ही नहीं था , दो हफ्ते में सिर्फ दो दिन की छुट्टी मिल रही है बाकी दिन हॉस्पिटल में ही ठहरना पड़ता है|
राजेश जैसे ही लाइट ऑफ करके बेड में लेटा उसे किसी के चीखने की आवाज़ सुनायी दी यह वही आवाज़ थी जो उसे रास्ते में सुनाई दी थी, राजेश हड़बड़ा कर उठ गया चेहरे पर हाथ लगाया तो महसूस करता है की वह पसीना पसीना हो चूका है , राजेश तुरंत बिस्तर से उठा लाइट ऑन की टॉवल से चेहरे को पोछा और बिस्तर में फिर से लेट गया इस बार उसे पता ही नहीं चला पंखे को देखते देखते कब आँख लग गयी |
सुबह उठा तो उसे लगा शायद उसने कोई डरावना सपना देखा होगा नाश्ता करके अपने लैपटॉप में कुछ सर्च करने बैठ गया और कुछ कर भी नहीं सकता था, क्योंकि उसे खुद को क्वारांटाइन में रखना था आये दिन वह कोरोना पेसेंट से दो चार जो हो रहा था अपने परिवार की सुरक्षा के लिए उसने खुद को सबसे दूर रखना ही सही समझा मीरा भी इस काम में उसका पूरा सहयोग कर रही थी वह सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखकर ही राजेश को खाना पीना दे रही थी।
दूसरे दिन राजेश तैयार होकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया उसकी कार ठीक होकर अ गई थी हॉस्पिटल जाते समय वह उस रास्ते को देखते हुए जा रहा था।
उसका ध्यान रास्ते से ज्यादा उस जगह पर था जहां कल उसके साथ कुछ अजीब हुआ था।
हॉस्पिटल के बाद एक तीराहा था राजेश उधर कब मुड़ा उसे खुद भी नहीं पता चला तभी अचानक से एक लडका आया और बोला साहब उधर कहां जा रहे हो आगे बूढ़े कुएं के सिवा कुछ भी नहीं है और उसके बारे में कहा जाता है जो भी वहां जाता है कभी वापस नहीं आता उस बूढ़े कुएं में एक लड़की ने अपनी जान दे दी थी तब से उधर कोई भी नही जाता और उस दिन के बाद से वह कुआ धीर धीरे सुख गया ।
इतना कहते हुए वह लड़का आगे निकल गया राजेश ने गाड़ी को ब्रेक लगाई और गेट की खिड़की से बाहर देखा तो वहां कोई लड़का नहीं था।
आगे देखा तो सुनसान सड़क के सिवा कुछ नहीं था उसे समझ नहीं अ रहा था आख़िर उसके साथ हो क्या रहा है ये रास्ता उसके लिए नया और बिल्कुल अनजान था, कार की डेस्क पर रखा मोबाइल उठाया और हॉस्पिटल का नाम डालकर गूगल किया कार बैक कि और चल दिया गूगल जैसा जैसा बताता गया वह वैसे ही चलता गया थोड़ी देर बाद देखता है रास्ता हॉस्पिटल के पास तो नहीं पर एक अनजान जगह पर आकर खत्म हो गया उसने फ़िर से गूगल किया इस बार गूगल अपडेट मांगने लगा राजेश ने अपडेट करना चाहा तो स्क्रीन पर लिख कर रिट्राई लिखकर अ गया नीचे लाल कलर की एक लाइन में लिखा था यूं आर ऑफलाइन!!
राजेश ने गुस्से में फोन गाड़ी में ही फ़ेक दिया और कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला तो देखता है जैसे वो रास्ता भटक कर किसी गांव में पहुंच गया है दूर दूर तक खेतों के सिवा कुछ भी नज़र नहीं अ रहा था पीछे मुड़ा तो देखता है गाड़ी के किनारे की तरफ़ सुखी घास पड़ी है उसे ऐसा लगा जैसे उसपर आग जल रही है वाह आग उसकी गाड़ी तक न पहुंच जाए इसलिए कार से पानी की बोतल निकालकर वह उसे बुझाने के लिए बढ़ा पास गया तो पाया ये उसका वहम था वहां कोई आग नहीं लगी थी उसने गुस्से में बोतल उस घास के ऊपर फेक दी बोतल घास को हटाते हुए अंदर की तरफ चली गई। राजेश चौक गया यह क्या उसे तो लगा था कि ये सिर्फ सुखी घास का ढेर है परन्तु यह तो कोई गढ्ढा था उसने जल्दी जल्दी हाथ से घास हटाई की उसे अचानक से फिर उस लड़की के चीखने की आवाज़ सुनाई दी - बचाओ मुझे!! बचाओ मुझे!! राजेश पीछे को गिर गया थोड़ी देर बाद आवाज़ अाई मेरा दम घूट रहा है यहां अब मै यहां क़ैद नहीं रह सकती।
राजेश घबराया सा एक बार खुद को फिर से संभालते हुए आगे बढ़ता है तो देखता है यह कोई गढ्ढा नहीं बल्कि एक विशाल कुंआ है जिसमें बेल वाले घाने पौधे उग आए है इस वजह से ही घास इसके ऊपर इक्कठा हो गई अंदर नहीं जा पाई।
पहले तो बहुत तेज़ से आवाज़ आई थी फिर धीरे धीरे कम होने लगी जैसे कोई चीख चीख के थक गया हो।
राजेश डारा और सहमा सा एक पल के लिए बुत बनकर वहीं जम गया उसे कुछ समझ नहीं आया क्या करे।
थोड़ी देर में जब राजेश को सुध अाई तो उसने वहां से भागने की कोशिश की उसे लगा कि यहां पर सच में कोई भूतिया साया है जैसा उस लड़के ने बताया था।
वह दौड़ते हुए गाड़ी में बैठ गया गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी बहुत कोशिश करने के बाद अचानक से स्टार्ट ही गई उसने ड्राइविंग स्टार्ट कि उसके दिमाग में अब एक ही बात चल रही थी आख़िर वह लड़का कौन था और वह लड़की जो चीख रही थी वह कौन थी क्या सच में उस कुएं में कोई लड़की है या ये सब सिर्फ मेरा वहम था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था थोड़ी देर में उसने महसूस किया वह गोल चक्कर लगा रहा है जिसे कोई किसी कुएं कि परिक्रमा कर रहा हो वह बार बार घूमकर उसी जगह आ जा रहा था जहां से जा रहा था थक्ककर उसने गाड़ी रोकी और स्टेयरिंग पर अपना हाथ जोर से पटक दिया और अपना सर स्टेयरिंग पर रखकर रोने लगा, थोड़ी देर में उसे ऐसा लगा मानो कोई उसके सिर हाथो से सहला रहा हो, डर के कारण वह पसीने से लथपथ हो गया सर उठाया तो देखता है कि आस पास कोई नहीं है।
थोड़ी देर में अचानक से उसका फ़ोन बज गया राजेश ने जल्दी से फोन ढूंढा उठाया स्क्रीन पर लिखा था देवेश कॉलिंग उसने कॉल रिसीव की....
राजेश कहां है तू इमरजेंसी वार्ड में तेरी ज़रूरत है, राजेश खुद को, संभालते हुए रास्ते में हूं, बस आ रहा हूं फ़ोन कट कर दिया, मोबाइल देखा तो फुल नेटवर्क था गूगल अपडेट किया और फिर से हॉस्पिटल का नाम डाला गूगल ने कुएं के बगल से एक कच्चा रास्ता बताया उस रास्ते को फॉलो करते हुए आख़िर राजेश हॉस्पिटल पहुंच ही गया।
हॉस्पिटल के सामने गाड़ी लगाते ही उसने चैन कि सांस ली इतने में गाड़ी के पीछे से देवेश आ गया, कहां था तू ? देख नहीं रहा हॉस्पिटल ओवरलोडेड है कोरोना कि वजह से ऊपर से तूने इतना लेट कर दिया और ये क्या हाल बना रक्खा है ऐसा लग रहा है कार से नहीं दौड़ के हॉस्पिटल आया हो।
देवेश की आवाज़ सुनकर राजेश ने हड़बड़ा कर सर उठाया और देवेश की तरफ देखकर फेक स्माइल दी।
देवेश सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखकर राजेश से बात कर रहा था।
आरे डॉ साहब आप तो ऐसे हस रहे है जैसे मैंने कोई ऐसा जोक सुनाया हो जिसपर आप हस्ना तो नहीं चाहते लेकिन फिर भी हसना पड़ रहा हो, जल्दी अंदर चलिए डॉ मिश्रा काफ़ी देर से आपको ढूंढ रहे है।
राजेश ने कार के शीशे में देखा और खुद को नैपकिन से फ्रेश किया कंघी की, मस्क , ग्लब्स और पीपी किट पहनी और कोरोना वार्ड कि तरफ निकल गए।
इतना सारा काम था हॉस्पिटल में की उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह किस हालात से गुज़र कर आया है।
आजकल हॉस्पिटल में इतना काम था कि राजेश को दिन रात का पता ही नहीं चलता और ऐसे ही एक हफ्ते कब गुज़र गए और कब राजेश का ऑफ डे आ गया पता ही नहीं चला।
राजेश अपनी कार को ओर देवेश से बात करते हुए पहुंचा जैसे ही गेट का लॉक खुलने के लिए गेट पर हाथ रखा उसे सारी बाते फिर से याद आ गई अचानक से एक झटका लगा राजेश पीछे हट गया।
देवेश - तू ठीक है ना ,राजेश
राजेश - हां मै बिल्कुल ठीक हूं,
राजेश - देवेश से तू गोमती नगर में रहता है ना, देवेश 'हा' चल आ आज मै तुझे तेरे घर तक छोड़ दूं देवेश रहने दे राजेश तू खामखां परेशान होगा , राजेश आरे चल ना मै उधर से ही गुजरता हूं तुझे छोड़ दूंगा अभी फैकल्टी वैन को वापस आने में टाइम लगेगा।
देवेश अच्छा तू इतना बोल रहा है तो मै चलता हूं लेकिन याद है ना सोशल डिस्टेंसिंग राजेश आरे हां यार एक काम कर तू पीछे बैठ जा मै ड्राइव कर लेता हूं।
राजेश ने अपने घर जाने का रास्ता बदल दिया और देवेश से पहले राजेश का घर आता है तो देवेश वहीं उतर गया और बोला अब मै पैदल ही निकल जाऊंगा पास में ही है मेरा घर पहले राजेश ने बोला अरे यर मै छोड़ देता हूं तू क्यों परेशान होगा, देवेश के बार बार बोलने से राजेश ने बोला ठीक है लेकिन आराम से घर जाना।
रास्ते में राजेश ने देवेश को सब बताने की कोशिश की लेकिन पता नही क्यों वो ये बात करने के लिए जब मुंह खोलता तो उसके हलक से मानो आवाज़ ही चली जाती।
कई महीने बीत गए कोरोना नामक महामारी पर सरकार ने काबू पा लिया लेकिन अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रह गया था लोग अब एक दूसरे से पहले से भी ज्यादा दूर हो गए सफाई पर सरकार और जनता ज्यादा ध्यान देने लगी।
लेकिन राजेश अब टूट चुका था उसकी रातों कि नींद उड़ गई थी वह जब भी सोता तो उसे वहीं चीखें सुनाई देती और जब किसी को बताने की कोशिश करता तो उसके हलक से मानो आवाज़ ही चली जाती,
उसने तय किया की अब और नहीं, उसने उस जगह के बारे में रीसर्च करना शुरू कर दिया।
हॉस्पिटल के पास सिर्फ स्टाफ के क्वार्टर थे, वहां हर साल नये लोग ही अपॉइंट होते थे, हां! कुछ दूरी पर एक- दो गांव बसे हुए थे।
ये एक सरकारी चैरिटेबल हॉस्पिटल था इसको पास के गांव के लोगो को चिकित्सा सुविधा देने के लिए ही खोला गया था ।
राजेश को समझ नहीं आ रहा था किससे बात करे, कुछ देर सोचने के बाद उसने तय किया कि वह पास वाले गांव के लोगो से बात करेगा।
अगली सुबह राजेश गांव के लोगो से बात करने के लिए निकल गया
कुछ लोगों से बात करने पर पता चला कि हॉस्पिटल बनने के पहले उसके पास की और जहां हॉस्पिटल बना है वह ज़मीन सेठ धनी राम की हुआ करती थी ।
सेठ धनी राम ने अपनी ज़मीन हॉस्पिटल के करता धरता स्वर्गीय राम मोहन को बेच दी थी और राम मोहन जी ने इस चेरिटेबल हॉस्पिटल का निर्माण करवाया था।
हॉस्पिटल के पहले एक तिराहा पड़ता है उसके आगे की ज़मीन भी सेठ धनी राम की ही हुआ करती थी और वहां ग्रामपुर नाम का एक छोटा सा खुशहाल गांव हुआ करता था गांव में हरे भरे खेत लहलाया करते थे पास में ही एक कुआं था उस कुएं को बूढ़ा कुएं के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि ये कुआं करीबन 4 दशक से गांव के लोगो को सिंचाई से लेकर रोजमर्रा की जिंदगी के लिये पानी की सुविधा उपलब्ध करता था।
एक बार उस गांव के एक लड़का लड़की आपस में प्रेम कर बैठे जब उनके बारे में गांव लोगों को पता चला तो सबने उन दोनों का बहुत विरोध किया यहां तक कि उन दोनों को जान से मारने का कोशिश भी की गई दोनों गांव में ही छुपते छुपाते अपनी जिंदगी गुजार रहे थे एक दिन वो लड़का इस जिंदगी से तंग आ गया अपनी साइकिल उठाई और तेज़ से चलाते हुए कुएं में छलांग लगा दी लड़की पीछे से चिलाते हुए अाई प्रखर रुक जाओ तुम्हारे बिना मेरा क्या होगा उसकी आवाज सुनकर गांव के लोग भी उसके पीछे हो लिए प्रखर के कूदने के बाद तान्या चीखती रही कोई उसे बचा लो अभी जिंदा होगा कहीं उसका दम घुट गया तो वह मर जायेगा।
मै उसके बिना रह नहीं पाऊंगी बचा लो उसे उसका दम घुट जायेगा बोलते बोलते सुध खो बैठी उसे जब हो होश आया वह तुरंत कुएं के पास पहुंची अपने कुएं की गहराई देखकर पहले तो घबरा गई फिर गाँव की ओर भागी और लोगो से कहने लगी कुँए से प्रखर आवाज़ लगा रहा है |
मैंने उसके चीखने की आवाज सुनी वो बोल रहा था बचा लो मुझे बचा लो मेरा दम घुट रहा है यहाँ मई अब और कैद में नहीं रह सकता |
जब किसी ने भी तान्या की बात नहीं सुनी तो वह अपने घर गयी और दुप्पटे की एक रस्सी बनायी और कुएँ में उतर गयी मोहल्ले के लोगो ने दोनों के शवो को ढूढ़ने की बहुत कोशिश की पर दोनों में से कोई भी न मिला|
महीने गुज़रे देखते देखते साल गुज़र गए लोग गाँव छोड़कर जाने लगे क्योकि उस कुएँ में हुए हादसे के बाद लोगो ने वहां जाना छोड़ दिया किसी ने ये अफवाह फैला दी थी की कुएँ से किसी के चीखने की आवाजे आती है, पहले तेज़ और फिर धीमे हो जाती है जैसे कोई चीखते चीखते थक गया हो|
कुछ साल बाद धनीराम ने इन अफवाओं से आहत होकर ये ज़मीन शहर के किसी व्यापारी को बेचकर चला गया वह व्यापारी कभी गाँव नहीं आया क्योकि उसने यह ज़मीन खेती के लिए नहीं अपने खराब समय के लिए खरीद कर डाल दी थी, धीरे धीरे गाँव बंजर ज़मीन बन गया |
पहले पानी फिर रोजगार गाँव वालो के ऊपर मानो दुखो का पहाड़ टूट पड़ा हो आखिर में लोगो ने पलायन को ही अपने जीने का साधन बनाया कुछ शहर की ओर पलायन कर गए तो कुछ इस गाँव में आकर बस गए |
राजेश ने जब ये सारी बाते सुनी तो भौचक्का रह गया उसे ये विशवास हो गया था की वहां जो भी है आज भी जिन्दा है अगर मर गए होते तो उनका शव जरूर मिलता लगभग एक सदी बीत गयी अगर वहां कोई है भी तो क्या वह आज तक जिंदा है और अगर ज़िंदा है तो क्या खाता होगा क्या पीता होगा और फिर मेरी गाडी को क्या हुआ था उस दिन जो उस कुएँ का चक्कर लगाने लगी थी मेरा गला जब मै इस बारे में किसी से जिक्र करना चाहता हूँ तो आवाज़ क्यों नहीं निकलती |
राजेश गुत्थी सुलझाने निकला था पर ये क्या? वो तो दूसरी गुत्थी में उलझ गया राजेशअपनी कार स्टार्ट करके घर की ओर निकल गया रास्ते भर उसके दिमाग में न जाने कितने सवाल कौंधते रहे, उसका सर दर्द से भरी हो गया ऐसे लग रहा था मानो अभी फट जायेगा|
बहुत देर तक गूगल किया अपनी किताबे निकाली उनको पढ़ा करीबन तीन दिन की रिसर्च के बाद उसको पता चला की गले से आवाज़ जाना एक कॉमन बात है जब हम बहुत ज्यादा डर जाते है अथवा इमोशनल हो जाते है तो चाह कर भी अपने अंदर की आवाज़ को बहार नहीं निकाल पाते|
राजेश डॉक्टर था इसलिए भूत प्रेत में विशवास करके दुबक के बैठ जाना उसके पेशे के खिलाफ था हाँ एक वक़्त ऐसा भी था उसने इन बातो को खुद पर हावी होने दिया और धीरे धीरे इन बातो ने उसका जीना दूभर कर दिया|
दूसरे दिन सुबह उठते ही राजेश हॉस्पिटल के पीछे वाले रास्ते से उस वीरान गाँव की ओर बढ़ गया जो एक समये में बहुतखूबसूरत हुआ करता था |
इस बार राजेश पूरी तैयारी के साथ आया था उसने उस तिराहे से टर्न लिया और फिर उसी कच्चे रास्ते से होता हुआ वह कुएँ कि तरफ बढ़ ही रहा था की सामने से अचानक एक लड़की सामने आ गई राजेश ने पावर ब्रेक लगाकर गाड़ी को रुक दिया वो लड़की कार के आगे आकर चिल्लाने लगी बचाओ ! बचाओ ! मेरा दम घुट रहा है |
लड़की दिखने में बिल्कुल ठीक ठाक थी जैसे ही राजेश गाड़ी से बहर निकला तो वह चिल्लाने लगी साहब उधर नहीं जाओ वहाँ एक "प्राचीन बूढ़ा कुआ" है उसके पास जो भी जाता है कभी वापस नहीं आता, वहाँ से कभी तान्या के, तो कभी प्रखर के चीखने की आवाज़े सुनाई देती है | तुमको पता है न साहब उनदोनों के साथ ग्रामपुर वासियों ने क्या किया था|
राजेश इस बार ख़ुद को तैयार और मजबूत बना कर आया था राजेश ने जैसे ही तान्या को पकड़ने की कोशिश की वह भाग कर सुखी घास में छुपने लगी जैसाकी वो हमेशा लोगो को डराने के लिए करती थी पर राजेश ने तान्या को आख़िर पकड़ ही लिया |
पकडे जाने के बाद तान्या के पास सच बोलने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं था अतः तान्या ने राजेश को अपनी और प्रखर की पूरी दास्तां सुनायी |
मै और प्रखर इस गाँव में पाले बढे हम एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे हम कब प्यार में पड़ गए पता ही नहीं चला एक दिन मै इस कुएँ में पानी भरने आयी पीछे पीछे प्रखर भी आ गया हम पानी की बाल्टी खींच ही रहे थे की बाल्टी के टकराने की आवाज़ सुनायी दी ऐसा लगा कुएँ की दीवार में कोई सुरंग खुदा हो मैंने और प्रखर ने दोनों ने ही वह आवाज़ सुनी और एक साथ हमारे मुँह से निकला, "अंदर कोई सुरंग ह है क्या ?"
मेरे मना करने के बाद भी प्रखर नहीं माना उसने ठान ली की वह एक बार कुएँ में उतरेगा जरूर और एक दिन प्रखर उतर गया ,वह एक दिन तक वापस नहीं आया, मुझे लगा मैंने उसे खो दिया है मै बेसुध सी वही पड़ीं रही, दूसरे दिन सुबह होते ही जो रस्सी हमने कुएँ में उतरने के लिये बंधी थी उसमे कुछ हलचल नज़र आयी मै उठी और आवाज़ लगायी - प्रखर ! प्रखर ! अंदर से आवाज़ आयी जैसे कोई चीख रहा हो - "बचाओ मुझे! बचाओ मुझे ! मेरा दम घुट रहा है" मै मर जाऊंगा, और फिर आवाज़ धीमी हो गयी मै हड़बड़ी में कुएँ की मेढ़ पर चढ़ गयी तभी देखा प्रखर ऊपर आने की कोशिश कर रहा है, मै वापस उतरी और रस्सी को खींचने लगी कुछ ही देर में प्रखर ऊपर अ गया मैंने प्रखर को अपने सामने जिन्दा देखकर उसे गले लगा लिया तभी गांव के सुरेश चाचा ने हमें ऐसी अवस्था में देखा तो पुरे गाँव में ढिंढोरा पीट दिया और हमारे बीच के प्रेम के बारे में गाँव वालो को समये से पहले पता चल गया|
मै और प्रखर दोनों ही अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहते थे ,जैसे ही हमारे घर वालो तक बात पहुंची तो वो हमे अलग करने के लिये अ गये वो नहीं चाहते थे प्रखर का सम्बन्ध हमारे घर से हो क्योकि प्रखर हमारी गोत्र में आता था लेकिन बहुत दूर के रिश्ते से, जहाँ तक मेरे और प्रखर के समझ में था हम किसी भी रिश्ते से भाई- बहन नहीं लगते थे |
इसके पहले भी मेरे घर वालो को इस बात की भनक लग चुकी थी और वो प्रखर के परिवार के बारे में सारी जानकारी निकाल चुके थे लेकिन इस बार बात जगहस्यी की थी , बात चार दीवारी से निकलकर समाज के सामने फ़ैल चुकी थी, अतः इस बार उन्होंने हमें जान से मरना ही उचित समझा हम मौका पाते ही वहाँ से भाग निकले|
प्रखर ने मुझे उस कुएँ का रहस्य बताया उसके अकॉर्डिंग उसके कुएँ के अंदर एक महल बना हुआ है जहाँ अब कोई नहीं रहता और मुझे वहाँ एक किताब और एक ऑडियो टेप मिला है क़िताब तो मैंने पढ़ी नहीं लेकिन इस ऑडियो टेप से बस एक ही आवाज़ आती है - "बचाओ मुझे मेरा दम घुट रहा है"और फिर ये अचानक से धीमी हो जाती है||
मैंने और प्रखर ने तभी सोचा हम उसके अंदर ही रहेंगे जाके, पहले प्रखर ने कुएँ में कूदकर जान देने का नाटक किया और फिर एक दिन मै उस कुएँ में ऐसा बहाना बनाकर उतर गयी मैंने खुद को कुएँ में उतारने से पहले सबको विशवास दिला दिया की प्रखर के बाद से मै अपना सुध खो बैठी थी और फिर सबको लगा मानो मैंने जान दे दी है |
राजेश अगर ये बात सच है तो मेरी गाडी उस दिन इस कुएँ के चक्कर क्यों लगा रही थी ?
तान्या - हमारी वजह से लोग पलायन करने को विवश हो गए थे लेकिन वे सभी अंत तक कुछ गाँव में कुछ न कुछ बनाते रहे ये अधूरी सड़के उनकी ही बनायी हुई है जिनका निर्माण एक कट के बाद अधूरा रह गया और वो सारे कट घूम के इस सड़क से आ मिलते है, और इसके बारे में बस वही लोग जानते है जिन्होंने इस सड़क का निर्माण किया था, वे सारे मजदूर अधेड़ उम्र के थे अतः एक एक करके सबकी मृत्यु हो गयी|
और मोबाइल नेटवॉर्क का क्या मतलब था ?
साहब ये रिमोट एरिया है यहाँ नेटवर्क की दिक्कत रहती है |
राजेश - वह लड़का जो मुझे उस दिन मिला था वह कौन था?
तान्या - वो ही प्रखर था |
राजेश- वो अचानक से कहाँ गायब हो गया था ?
तान्या- वैसे तो महल में सभी जरूरी सामान का उपलब्ध है लेकिन अनाज के लिये हमें बाहर आना पड़ता है उस दिन वह उसके लिए ही बाहर आया था आपको इस तरफ आते देख वह घबरा गया और आपको डराने की कोशिश की आप जैसे ही पीछे मुड़े वो आपकी कार के पीछे बैठ गया और फिर खिड़की से हाथ डालकर आपका सर सहलाया और मौका पाते ही कुएँ में उतर गया|
राजेश के कहने पर तान्या उसे उस कुएँ में ले गयी उस महल को देखकर राजेश भौचक्का रह गया फिर राजेश ने वह किताब पढ़नी शुरू की जिसमे उस कुएँ का इतिहास था|
तान्या और प्रखर कई सालो से लोगो को बेवकूफ बना रहे थे और लोग डर के कारण उस गाँव को छोड़कर चले गये ||
सीख - हम अक्सर इन अंधविश्वासों में फस कर भूत प्रेत को मानने लगते है और धीरे धीरे हम उस डर को खुद पर हावी होने देते है और देखते ही देखते हम तंत्र मंत्र और जादू टोने के चक्कर में पड़ जाते है |
तंत्रा मंत्रा उस गहरे कुएँ की तरह है जिसपर एक बार हम उतर गए तो वापस आना बहुत मुश्किल हो जाता है |
राजेश के पास दो रास्ते थे पहला- चुप चाप बैठ जाना घर में थोड़ी पूजा पाठ करवाना और दिक्कत हो तो झाड़ फुक करने वालो की सहायता लेना और दूसरा सत्य की खोज में निकलना |
राजेश ने दूसरा और सही रास्ते को प्रथमिकता दी ||
***
स्वाति की कलम से - "चीखने वाला कुआँ "
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