सीख
जिला अस्पताल के मुख्य द्वार के सामने पेड़ की आलवाल पर बैठी एक वृद्धा निरंतर रो रही है। आसपास थोड़ी भीड़ जमा हो गई है -कुछ उस से सहानुभूति जताते हुए दुखी नजर आ रहे हैं और कुछ आदमी औरत उसे उपेक्षित नज़रों से देखते हुए उसके रोने को नाटक बता रहे हैं ।वह बीच-बीच में चुप होकर सूुनी-सूनी आंखों से सबको देखने लगती है ।व्यथा से गहरी होती हुई झुर्रियां, अस्त- व्यस्त कपड़े, रूखे बालों और चेहरे पर आंसुओं के सूखने से बनी सफेद लकीरें उसकी वेदना की कहानी कह रही थी। मैं उसके पास जाकर उसके कंधों पर बहुत ही प्रेम से हाथ रखते हुए कहती हूं "मांजी, मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं ?आप मुझे बताइए मैं आपकी मदद जरुर करूंगी।"
थोड़ी सी सहानुभूति और स्नेह पाकर उसका आवेग फूट पड़ता है, और वह सिसक सिसक कर रो पड़ती है ।मैं बहुत ही स्नेहपूर्वक उसकी पीठ थपथपाती हूं -"मांजी रोने से काम कैसे चलेगा, जो भी दुख है ,कठिनाई है, उसका हल तो ढूंढना ही पड़ेगा न। आप मुझे बताइए तो कि हुआ क्या है"?बहुत ही कोशिश करके हिचकियों के बीच अस्पष्ट स्वर में वह बोल सकी "म्हारी पोरी उपर अस्पताल मा भर्ती से।ई पुलिसवाला म्हने मलवा नी दे हे।"कह कर वह फफक पड़ी।
"अरे !क्यों नहीं मिलने देंगे? चलो चुप हो जाओ , मैं तुम्हारे साथ ऊपर चलती हूं । बताओ कि यह क्यों नहीं मिलने दे रहे हैं और क्या हुआ है बेटी को?"मैंने उसे धीरज बंधाते हुए कहा।
"नी मालम, म्हें तो खेत पर काम करवा गी थी। गामवाला ए ज खबर दी कि कमली अस्पताल में भरती से । म्हे वेगी-वेगी आवी हूं। ई पुलिसवाला मलवा ज नी दे ,तो कांइ करुं? फेर सरपंच की चिट्ठी लावी ,तो हवलदार हड़कई रियो हे।"उसने बहुत ही दुखी और निराश स्वर में कहा।
"चलो आप मेरे साथ मैं मिला लाती हूं आपकी बेटी से ।"कहकर मैं उसका हाथ पकड़ कर सीढ़ियां चढ़ाते हुए ऊपर ले जाती हूं। महिला वार्ड के सामने दो पुलिस वाले बैठे थे। वृद्धा को देखते ही आक्रामक स्वर में बोले -ये डोकरी ऐसे नहीं मानेगी, चल नीचे । बहुत गर्मी है , पुलिस वालों से पंगा लेती है ,सरपंच और कमिश्नर के पास जाती है ,अब जा उनको बुला कर ला।" कहते हुए वे उसे अंदर जाने से रोक देते हैं ।मैं अंदर जाकर मामले का पता लगाती हूं - मालूम होता है कि अभी लड़की होश में नहीं आई है ।थोड़ी देर में डॉक्टर आने वाले हैं ,वही बता पाएंगे कि क्या हुआ है। मैं वृद्धा का हाथ पकड़कर उसे अंदर लाती हूं -"दूर से देखो बेटी को, अभी वह सो रही है -दवाई दी है उसे ।थोड़ी देर में उठेगी, तब मिल लेना" ।वृद्धा उसे बहुत ही स्नेहपूर्ण दृष्टि से निहारती रही ,मानो,उसकी अदृश्य स्नेहधार उसे ठीक कर देगी। मैं उसका हाथ पकड़ कर नीचे ले आती हूं ।वह मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी बैठा लेती है।
दूर से कई महिलाओं के नारे लगाने की आवाजें आने लगती है- 'नारी शक्ति जिंदाबाद', 'हमारी एकता बनी रहेगी,बनी रहेगी'- लग रहा था कोई रैली आ रही है । थोड़ी ही देर में तेजी से बढ़ती हुई 30 40 महिलाओं का समूह हमारे सामने आ रहा था -'गुंडाराज नहीं चलेगा नहीं चलेगा' के स्पष्ट स्वर स्पष्ट सुनाई देने लगे हैं। वृद्धा मेरा हाथ छोड़कर दौड़ी- "गाम से सब अइ गइ"। एक गरिमामय व्यक्तित्व उनका नेतृत्व कर रहा था। सामने आने पर मैं आश्चर्य में पड़ गई- मेरी प्रिय बालसखी जया! अरे,यहां कैसे?यह विदेश में बस गई थी? सोचते हुए मैं उसके निकट पहुंचकर उसे पकड़ लेती हूं,-जया, तुम यहां?
वह संकेत से सभी महिलाओं को वहीं रोक कर, मुझे और एक अन्य महिला को साथ लेकर तेजी से ऊपर बढ़ जाती है। महिलाओं की नारेबाजी जोश पकड़ रही थी।
हमारे ऊपर पहुंचते ही पुलिस वाले मुस्तैदी से खड़े हो जाते हैं। वह अंदर जाकर लड़की को देखती है ,नर्स से कुछ कहती है और ड्यूटी डॉक्टर को बुलाती है। डॉक्टर उसे बताते हैं कि अभी कुछ देर में होश आने की उम्मीद है। तभी मजिस्ट्रेट के सामने लड़की के बयान लिए जाएंगे। अभी लड़की गहरे सदमे में है ,पर खतरे की कोई बात नहीं है ।जया कहती है -"हम नीचे ही इंतजार कर रहे हैं, होश में आते ही हमें बुलवा लीजिए ,हमारे सामने ही बयान होंगे"।नीचे आकर सभी महिलाओं को इंतजार करने का संदेश देकर वहां बैठा देती है और वह मेरे साथ पेड़ के नीचे बैठ जाती है। मैं जया विषय में जानने को अत्यंत उत्सुक थी ।मैंने पूछा- "जया , तुम भारत कब आई?तुम्हारे बच्चे और डॉक्टर साहब कैसे हैं ?यह बालिका कौन है? क्या हुआ है इसे? "मैंने एक साथ अपने मन की सारी जिज्ञासाएं उसके समक्ष रख दी।
वह बहुत ही संयत स्वर में बोली -"आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व ही मैं और सोमेश यहां आ गए हैं । पास वाले गांव में सोमेश का पैतृक घर है, वहीं डॉक्टर साहब आदिवासियों और गरीबों की चिकित्सा सेवा कर रहे हैं ।मैंने वहां की महिलाओं की स्थिति का अध्ययन किया इनमें क्षमताएं और प्रतिभा तो है किंतु आत्मविश्वास की बहुत ही कमी थी और अशिक्षा के कारण शोषण भी बहुत था। मैंने महिलाओं को जागृत करने और कुशल बनाने के लिए एक स्वयं सिद्धा समूह तैयार किया है, जो महिलाओं को अधिकारों ,सरकारी सुविधाओं, योजनाओं आदि की जानकारी देते हुए उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखाता है ,साथ ही उन्हें रोजगारोन्मुखी कौशल विकसित करने के लिए प्रशिक्षण भी देता है। थोड़ी सी शिक्षा और आर्थिक स्वावलंबन से अब सभी बहनों में विश्वास और उत्साह आ गया है।अब हमारी प्रशिक्षित बहनें आसपास के गांव में भी यह अभियान चला रही हैं । स्नेहा,मैंने यहां आते ही तुम्हें बहुत याद किया था ।तुम्हारा मोबाइल नंबर भी जानने की कोशिश की पर नहीं मिल सका"।मैंने जया का हाथ पकड़कर कहा-"कोई बात नहीं जया,अब हम मिलकर काम कर सकते हैं। पर पहले यह बताओ कि वह बालिका कौन है और इसे क्या हुआ है ?वृद्धा नीचे बैठी थी.. जया बोली-"ऊपर कमली भर्ती है । वह मेरी बेटी जैसी ही है । मैं जब से यहां आई हूं ,तभी से यह इसकी मां के साथ मेरे घर आती थी ।कॉलोनी के घरों में बर्तन झाड़ू कपड़े करती थी और पढ़ाई भी कर रही थी। इसके पिताजी को वहां जन्म के पहले ही खो चुकी थी। मैंने इसे सब काम छुड़वा कर अपने घर पर ही रख लिया था। स्कूल तक पढ़ाई करवाई फिर इसकी मां-नानी इसे ले गए थे ।कमली पढ़ने में बहुत ही अच्छी और हुनरमंद है ।यहां की लोक कलाओं में उसकी बहुत रुचि है- मांडने,चुमली,टोकनी गुड़िया जैसे सभी सजावटी सामान बनाने में वह माहिर है ।देखने में जितनी सुंदर है , सुघड़ है ,उससे भी अच्छा उसका मन है -सभी की मदद करने के लिए सदैव तैयार रहती है ।दूसरों के दुख में दुखी और खुशियों में झूमने वाली।
गांव के जमीदार के अय्याश बेटे से उसकी सुंदरता छुपी न रह सकी और वह इस पर बुरी नजर रखने लगा ।कमली के घरवालों ने उसका विवाह पास के गांव के संस्कारवान, शिक्षक युवक से कर दिया। दोनों सुखी और संतुष्ट रहने लगे ।कमली वहां भी लड़कियों को जागृत करने और मांडने आदि सिखाने का काम करने लगी ।अभी दो महीने ही हुए थे ।एक दिन कमली बहुत घबराते हुए रात को ही मेरे पास आई और कहने लगी -"सुरेंद्र स्कूल गए थे तो लौटकर ही नहीं आए हैं कल से। सब दूर ढूंढ लिया रिश्तेदारों में भी पूछताछ की, किंतु नहीं मिल रहे हैं।
मेरा सिर ठनका और मैंने उसे तुरंत ही पुलिस में रिपोर्ट करने की सलाह दी ।हमको जमीदार के बेटे पर शक था।
कमली अपने काका के साथ रिपोर्ट लिखवाने जा रही थी। मुझे कल रात को खबर मिली कि कमली गांव के बाहर वाले नाले के पास बेहोश मिली है। मैं अपने साथियों के साथ तुरंत ही वहां पहुंची।
पुलिस जमीदार के खिलाफ रिपोर्ट लिखने के लिए तैयार नहीं थी। हमारे पास कोई प्रमाण भी नहीं था ।हम कमिश्नर से मिले विधायक से मिले और पूरा गांव इकट्ठा हो गया ,तब कहीं जाकर उसकी रिपोर्ट लिखी गई और अब डॉक्टर भी आज इलाज में जुटे हैं ।अब कमली होश में आए ,तभी कुछ जानकारी मिलेगी। अभी न काका का पता है और न सुरेन्द्र ही मिला है।मन बहुत ही बैचेन हो रहा है- बेचारी कमली के साथ पता नहीं क्या हुआ होगा"-कहते हुए जया की आंखें नम हो गई।"वह जो नीचे बैठी थी वही कमली की नानी है? हमारे साथ जो ऊपर चली थी मैना -वह उसकी मां है - बहुत ही समझदार और परिश्रमी है"।जया बहुत ही आत्मीयता से कह रही थी।
उसी समय वार्ड बॉय आकर बताता है, ऊपर बुला रहे हैं ।हम दोनों तेजी से ऊपर पहुंचते हैं- कमली को होश आ गया है और बयान लेने की पूरी तैयारी हो चुकी है। कमली बहुत ही सहमी हुई अजनबी चेहरों को देख रही है। जया को देखते ही वह थोड़ा आश्वस्त हो गई है। जया उसके सिर पर हाथ रख कर कहती है-" बेटा सच-सच सारी बातें बताना। डरना किसी से नहीं और न ही घबराना। हम सब है न तुम्हारे साथ ।"
कमली बहुत ही थकी हुई आवाज में बयान देती है -"मैं और काका पुलिस में सुरेंद्र की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने जा रहे थे ।रास्ते में एक मूछ वाले डरावने-से आदमी के साथ जमीदार का बेटा बाईक पर आया। काका को उसने जान से मार देने की धमकी देते हुए जबरन उस बड़ी-बड़ी मूंछ वाले की बाइक पर बैठाकर भेज दिया और मेरा हाथ खींच कर मुझे जबरदस्ती सड़क से नीचे नाले की तरफ ले गया ।वह बहुत ही नशे में था। मैं उसकी खराब नियत समझकर कांप गई थी"-इतना कहकर कमली आस पास खड़े लोगों और जज साहब को देखते हुए चुप हो गई। ऐसा लग रहा था कि इन लोगों की उपस्थिति में वह कुछ कहने में संकोच कर रही हो।जज साहब ने उसे आश्वस्त करते हुएकहा,"बोलो बेटा फिर क्या हुआ?"
मैं बुरी तरह सिहरी हुई थी ।कान आगे सुनना नहीं चाहते थे, पर जया उसके सिर पर हाथ रख उसे हिम्मत दे रही थी। कमली फिर धीरे -धीरे बहुत कमजोर सी आवाज में कहने लगी"मेरे दिमाग में एकाएक दीदी बाईसाहब (शायद यह संबोधन जया के लिए था) की सीख आ गई। मैंने उसको चाले में लिया और अपनी सारी ताकत पैर में लेकर उसकी नाज़ुक जगह पर एक जोरदार लात मारी।वह चीखते हुए दूर जा गिरा। मैं तेजी से उठकर भागने लगी । थोड़ी ही दूर पर एक बड़े पत्थर की ठोकर खाकर गिर गई।उठने की बहुत कोशिश की, पर जोरदार घन्नाटी आई। उसके बाद जब आंख खुली तो डॉक्टर साहब को देखा"- ऐसा कहते हुए उसकी आंखें बंद होने लगी।
डॉक्टर साहब ने अपने बयान देते हुए कहा-जब कमली को यहां लाया गया वह बेहोश थी।सिर में गहरा घाव था।काफी खून बहने और सदमे के कारण ही वह बेहोश थी।उसे प्राथमिक चिकित्सा गांव के डॉक्टर द्वारा दे दी गई थी। इसीलिए जान को कोई खतरा नहीं रहा।सिर की चोट के कारण ही इसे अत्यंत कमजोरी है। इसके सिवा कोई और परेशानी नहीं है।"
जया बोल उठी"इसका मतलब इसके साथ कोई...."। इतना बोल कर वह आश्चर्य मिश्रित हर्ष से डॉक्टर के ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी।
"हां, हां कोई घटना नहीं हुई है।"डॉक्टर ने सभी को एकदम निश्चिंत कर दिया।
जया खुशी से उछल कर लगभग दौड़ते हुए नीचे पहुंचती हैं। गांव की सभी महिलाएं बेसबरी से उसका इंतज़ार कर रही थीं- सभी ने उसे घेर लिया।जया बहुत खुशी से कहती है-"भगवान की कृपा से कमली को कुछ नहीं हुआ। हमारी सीख ने ही उसे बचाया है।पर हमारी लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई है।अपराधी को पकडा़ने के लिए हम संकल्पित हैं।"
सभी महिलाएं एक बार फिर नारे लगाने लगती हैं-'गुंडाराज नहीं चलेगा, नहीं चलेगा'।
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