5. एक प्रश्न

ग्रीष्म की सुहानी प्रभात बेला। सूर्योदय के पूर्व का सौम्य, आल्हादक वातावरण। शीतल पवन के झोंकों में वृक्ष घूम रहे हैं । पिछली रात हुई वर्षा से धुलकर वृक्षों के पत्ते चमकने लगे हैं । सारा वातावरण ही धुला-धुला  सा और पवित्र अनुभव हो रहा है। पक्षियों का मधुर कलरव मन में उत्साह और मधुरता का संचार कर रहा है। बादलों के कारण पूर्व दिशा में लालिमा दिखाई नहीं दे रही है। पानी की हल्की फुहारें प्रातः भ्रमण का आनंद द्विगुणित कर रही हैं।

सोसायटी के चार चक्कर लगाने पर तीन किलोमीटर चलना हो जाता है । अनन्या तेज गति से चल रही थी - एक चक्कर पूरा होने को है ।वह सोच रही थी कि आज फुहारों के कारण शायद कोई भी वाॅक और योग करने नहीं आएंगे। उसी समय उसने देखा कि क्लब हाउस के सामने पड़ी बेंच पर भारती आंटी प्राणायाम कर रही हैं अर्थात उन्होंने अपना घूमना पूरा कर लिया है।उन्हें देखकर मन प्रसन्न हो गया।वह सोचने लगी आज सबसे पहले इन्हें देखा है तो पूरा दिन शुभ ही रहेगा।

भगवान ने भी भारती आंटी को फुर्सत में गढ़ा है। सुंदरता,स्वास्थ्य और संस्कारों की प्रतिमूर्ति- सी लगती हैं। सोसायटी की सभी महिलाएं उनके स्वास्थ्य व्यवहार रहन-सहन और हमेशा चेहरे पर खेलती मुस्कुराहट की कायल हैं। शरीर में ताजगी और स्फूर्ति तथा चुस्ती भरी देहभाषा उन्हें बहुत ही विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान करती है। यहां रहते हुए लगभग 10 वर्ष हो गए हैं ,पर कभी किसी को कोई असंतोष या शिकायत नहीं शाम 5:00 बजे वह प्ले एरिया में नजर आ जाती थी पीछे की ओर बनी बेंचो पर अपनी हम उम्र के साथ बैठी दिखाई दे जाती ।वैसे  उन के बीच तुलनात्मक रूप से वे कम लोकप्रिय हैं, क्योंकि उनके पास न बहू के किस्से होते थे, और न किसी की रस देने वाली निंदा । कई बार अपनी उम्र की महिलाओं की निराशाजनक बातों से ऊबकर बच्चों के बीच पहुंच जाती हैं - उनकी बॅाल पकड़ देना ,स्केटिंग करते हुए किसी बालक के गिरने परिवार की प्यार से उठाकर उसे दोबारा दौड़ने के लिए प्रेरित करना , कभी साइकिल सीखते बच्चों को सहारा देना- यह उनकी रुचि के कार्य हैं।

कभी किसी को अकेले बैठे देखकर उसके साथ बैठ जाना और ठहाके लगाना ।कभी युवतियों के ग्रुप में बैठकर बाहर की दुनिया के नए हालचाल और अनुभव जानते हुए उत्साह और जिज्ञासा से भर जाना, उन्होंने यहां भी अपना स्थान सुरक्षित कर लिया है। सभी उनसे कहती हैं - आंटी आपकी हेल्थ का राज हमें भी बताइए न ,ताकि हम भी आपकी तरह मस्त रह सकें "।वह हंसकर कह देती हैं -  "तुम सभी का साथ और स्नेह ही मेरा राज है ।इसे कभी भी टूटने मत देना। कभी किसी की तबीयत खराब है ,बच्चा बीमार है तो दादी के नुस्खे तैयार रहते थे।

वह अपने पोते अनिंद्य को स्कूल बस में बैठाने के बाद भी वहां बैठकर अन्य बच्चों को खेलता हुआ देखती रहती हैं। कल ही तो मैंने उनसे पूछा था - "आंटी अनिंद्य को बस में बैठा कर भी आप यहां बैठी हैं?

उन्होंने हंसकर कहा था -

"आओ तुम भी 5 मिनट बैठो। देखो, कितना आनंद आता है । मैं तो इन सब को देख कर अपना बचपन जी लेती हूं"।

अक्षता भी कितनी भाग्यवान है जो उसे भारती आंटी जैसी सास मिली हैं।

इन विचारों की गति में ही अनन्या ने अपने चार राउण्ड पूरे कर लिए हैं।

"गुडमार्निंग, आन्टी।आज मौसम कितना सुहाना है । सोचा पांच मिनट सुस्ता कर ही ऊपर चलते हैं, एक बार घर में घुसी तो फिर तो काम में जुटना ही है"कहते हुए वह भारती आंटी के पास बैठ कर पसीना पोंछने लगी।

अनन्या की बेटी स्वधा और भारती आंटी का पोता अनिंद्य एक ही कक्षा में पढ़ते हैं ।बचपन से साथ ही बड़े हुए हैं ।दोनों के परिवार में मैत्री विकसित हो गई है। दोनों का घर ए ब्लॉक में ही है ऊपर-नीचे ।

लिफ्ट में अनन्या ने कहा "आंटी आप दोपहर में अनिंद्य को लेने मत आइएगा ।मैं ही उसे घर तक छोड़ दूंगी"।

घर पर भी अक्षता और मयंक रोज कहते हैं कि अब अनिंद्य बड़ा हो गया है, उसे नीचे लेने जाने की परेशानी मत उठाया करो; पर उनका मन मानता ही नहीं है-यह एक आनंद है जिसे वह छोड़ना नहीं चाहती हैं।

आज भी रोज की ही तरह 1:45 बजे से वह बस स्टॉप पर बैठी हैं। उन्हें मालूम है कि बस 2:00 बजे आएगी प्रतीक्षा मे भी एक सुख है।

अनन्या घर का काम निपटा कर ठीक 2:00 बजे नीचे पहुंचती है देखती है कि भारती आंटी पहले ही बस स्टॉप पर पहुंच चुकी हैं।

"आओ अनन्या, तुम एकदम सही समय आई हो ।देखो, बस टाउनशिप में प्रवेश कर रही है"- मुस्कुराते हुए भारती आंटी ने कहा ।

बस रेंगती हुई सी उनके पास आकर रुकी और बच्चे अपने दोस्तों को हाथ हिलाकर बिदाई देते हुए लस्त-पस्त, बस्ता- बोतल झुलाते हुए घरों की ओर जा रहे हैं।

स्वधा अपनी मां को देखकर बस्ता और बाॅटल वहीं पटक कर भाग जाती है ।आनिंद्य से भी दादी बस्ता लेने की कोशिश करती है, पर वह देने को तैयार नहीं है। वह कभी नहीं देता है अपनी दादी को बस्ता। और न ही भागकर जाता है-उसे दादी का हाथ पकड़कर चलना बहुत भाता है ।घर तक जाते-जाते वह स्कूल की पूरी कथा कह देता है दादी से। घर पहुंचते ही अपना सभी सामान व्यवस्थित रखना और फिर होमवर्क पूरा करके ही दादी के हाथ से गरम गरम नाश्ता व दूध पीकर खेलने जाना उसकी दिनचर्या का सबसे अहम् हिस्सा है।

"अनि आज तुम बहुत थके और उदास लग रहे हो क्या बात है कुछ बोल ही नहीं रहे हो" उसे चुप देखकर दादी ने कहा । अनन्या ने भी लिफ्ट का बटन दबाते हुए कहा -"आज तुम चुप क्यों हो? झगड़ा हुआ है क्या? तुम्हारी यूनिफार्म और बाल कैसे अस्त-व्यस्त हो रहे हैं, जैसे कुश्ती लड़ी हो !कोई टेंशन है क्या"?

"आज होमवर्क बहुत है उसी का टेंशन है" लिफ्ट में से निकलते हुए अनिंद्य ने कहा और दादी के आगे चलता हुआ, दरवाजा खोल कर सीधे अपने कमरे में चला गया।

दादी ने उसकी पसंद की सेवइयां बनाई, और निश्चित समय पर आवाज दी - "होमवर्क हो गया क्या बेटू! देखो दादी ने क्या बनाया है आपके लिए" कहते हुए अनिंद्य के कक्ष में जा पहुंची ।अनिंद्य हड़बड़ाया और एक दम उठा- "हां दादी अभी हाथ धो कर आया", कहते हुए वह वाशबेसिन में हाथ धोने जाने लगा ।दादी उसका हाल देखकर आश्चर्यचकित थी -कपड़े बदले न बस्ता खोला क्या कर रहा था यह?

टिफिन देखा तो खाना वैसा ही रखा हुआ था जबकि उसकी पसंद का आलू का पराठा दिया था । उन्होंने अनिंद्य को हाथ पकड़ कर बड़े ही प्यार से पूछा आपने खाना भी नहीं खाया, आपकी मम्मा ने कितनी मेहनत और प्यार से बेस्ट पराठा बनाया था आपके लिए।

"हां दादी, सॉरी अब मम्मा डांटेगी इसलिए मैं यह पराठा अभी खा लेता हूं ।आप मम्मा को मत बताना प्लीज। उन्हें दुख होगा ।

"कोई बात नहीं बेटू! अब यह पराठा अपन फ्रिज में रख लेते हैं ।अभी तो गरम गरम सेवइयां तैयार है चलो।

डाइनिंग टेबल पर अपनी पसंद का नाश्ता देखकर उसकी भूख भड़क गई और वह जल्दी जल्दी खाने लगा। उसके मन में पता नहीं क्या चल रहा था। वह अपने स्वभाव के विपरीत एकदम चुप था। दादी पास में बैठकर उसके सिर पर हाथ धरकर पूछने लगी- "बेटू, तुमने अभी तक यूनिफार्म नहीं उतारी ?जूते भी उठा कर नहीं रखे ,तो कोई बात जरूर है ,जो तुम अपनी दादी से छुपा रहे हो। तुम तो कहते हो कि दादी तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड है , फिर क्यों नहीं बता रही हो ? दादी तो आपको डांटती भी नहीं है और सही रास्ता निकाल देती है न?

सच बताओ, क्या बात है? तुमने कहा था- होमवर्क बहुत है और बस्ता खोला भी नहीं "?

"दादी, आज मेरा अक्षय से झगड़ा हो गया ।मैं और स्वधा रेसेस में टिफिनखोलते हुए बात कर रहे थे। उसकी नानी दशहरे पर आने वाली है तो वह भी बहुत खुश थी ।मैं उसे कह रहा था -नानी की दादी से दोस्ती करा देंगे और फिर अपन सब पिकनिक चलेंगे । उसी समय अक्षय आकर हमारे पास बैठ गया और बोला कि "दादा-दादी तो हमारे वॉचमैन होते हैं ।हम छोटे होते हैं तो वे हमें संभालते हैं , ताकि हमारे मम्मी- पापा खूब सारे पैसे कमा सकें। उनके साथ घूमने और पिकनिक मनाने नहीं जाना ।संडे संडे अपने मम्मी -पापा के साथ जाना चाहिए।" वह और भी गंदी गंदी बातें बोलने लगा -तो मुझे गुस्सा आ गया ।मैंने उसे पटक मारा। उसने भी मुझे गिरा दिया- स्वधा भी रोने लगी । टीचर ने हम सब को डांटा । मेरी गलती नहीं थी दादी ।आप गुस्सा मत होना ,मैं किसी को नहीं मारता हूं पर गुस्सा आ गया था । मम्मी से भी मत कहना आप"।

"हां बेटा तुम तो बहुत प्यारे बच्चे हो ।आप फटाफट दूध पीकर तैयार हो जाओ और खेलने जाओ। मैं सब समेट दूंगी, कपड़े तह कर दूंगी" -मैंने उसे समझाते हुए कहा ।

"नहीं दादी, अपन सब ऐसे ही अलमारी में रख देते हैं, रात को ठीक कर लेंगे ।मैं होमवर्क करूंगा तब आप कर लेना। अभी आप भी नीचे चलिए -आपकी भी तो फ्रेंड रास्ता देख रही होंगी" - कहते हुए अनिंद्य ने ही अपने सब सामान को अलमारी में ठूस दिया, और दोनों नीचे पहुंच गए।

हरियाला मौसम,हवा में नाचते पेड़ ,सेंड मे घर बनाते बच्चे ,झूले, फिसलपट्टी ,स्कूटर और साइकिल पर दौड़ते बच्चे , वृद्ध और युवा महिलाओं के समूह ,स्ट्रॉलर में घूमते शिशु और उनकी किलकारियां -सभी वातावरण को आल्हादित बना रहे थे ।भारती और अनिंद्य अपने अपने दोस्तों में मस्त हो गए।

पक्षियों ने शोर मचाते हुए अपने अपने पेड़ों पर डेरा डाला और प्ले एरिया की रौनक घटने लगी । अनिंद्य भी दादी के साथ अपने बैट-बाॅल और रैकेट समेटे हुए घर की ओर चल दिया। दोस्तों के साथ मस्ती में दिन भर का दुख और अवसाद हवा हो चुका था ।

अक्षता ऑफिस से लौटकर कॉफी और आलू की चिप्स तैयार कर सभी का इंतजार कर रही थी। अनिंद्य अपनी मम्मा को देखते ही उनके गले में झूम गया "मेरी प्यारी मम्मा, यू आर द बेस्ट ।"

"तुम भी तो दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे हो न" कहते हुए अक्षता ने अनिंद्य को प्यार से गोद में भर लिया।

"और दादी भी सबसे बेस्ट, है न मम्मा" ऐसा कहते हुए अनिंद्य ने कप में कॉफी डालती हुई अक्षता का हाथ पकड़ लिया ।

"हां भाई हां, इसमें कोई संदेह है क्या"? कहकर उसने अनिंद्य को प्यार से बैठा लिया -"चलो, यह तुम्हारे लिए चिप्स हैं, और हम तीनों की कॉफ़ी है"।

"तुम्हारा होमवर्क कंप्लीट है क्या बेटा? चलो आज तुम्हें चौपाटी ले चलते हैं "मयंक ने अनिंद्य को खुश करने के उद्देश्य से कहा।

"नहीं पापा, बहुत है आज होम वर्क। अपन कल चलें?"

"नहीं मुझे कल बाहर जाना है। चलो लौटकर दादी कीे हेल्प से जल्दी-जल्दी कर लेना" - कहते हुए मयंक और अक्षरा अपने कमरे में चेंज करने चले गए ।

अनिंद्य ने दादी की और देखा दादी मुस्कुरा रही थी। वह आश्वस्त हो गया कि सब हो जाएगा । चलिए दादी, अपन मम्मा पापा से पहले रेडी हो जाते हैं"कहते हुए अपने कमरे में भाग जाता है।

चारों लोग चौपाटी पर अपनी अपनी पसंद से रस ले रहे थे। वहीं अक्षय भी मिल गया अपनी मम्मी के साथ ।दोनों मुस्कुराकर अपनी अपनी राह चल दिए।

अक्षता के मोबाइल पर अनिंद्य के स्कूल से मैसेज आया कि कल भारत बंद के कारण स्कूल में छुट्टी घोषित कर दी गई है । उसने कहा "बेटा, अब तुम्हें देर तक जागकर होमवर्क करने से छुट्टी मिल गई है ।कल दिन में पूरा होमवर्क कर लेना । अभी मज़े से सो जाना"।

"अरे नहीं मम्मा, कल दिन में से तो दादी सभी बच्चों को मिट्टी के गणेश जी बनाने का प्रशिक्षण शुरू कर रही हैं। मैं तो आज ही काम पूरा करके आराम से सोऊंगा"।अनि ने उत्साहित होते हुए कहा ।

"ठीक है, पर ध्यान रखना, ज्यादा देर मत जागना"।अक्षता ने सोफे पर बैठते हुए कहा।

मयंक टी.वी. देखते हुए अक्षिता को बताने लगा कि आज दोपहर में रतलाम से फोन आया था -सुबोध और सविता बहुत परेशान हो रहे हैं ‌उनकी कामवाली आए दिन छुट्टी कर रही है ‌बीमार हो गई है वह और सविता की छुट्टियां समाप्त हो गई हैं ।वह चाहते हैं कि मां अब थोड़े दिन उनके साथ रहे। ईशा बहुत छोटी है, उसे देखभाल की आवश्यकता भी है। शायद एक-दो दिन में वे लोग आएंगे मां को लेने ।तुम मां से बात कर लेना"।

अनिंद्य किचन में पानी पीते हुए उनकी बात सुन रहा था। वह तेजी से कहता है - "दादी कहीं नहीं जाएगी। दादी वॉचमैन है क्या? निशा की केयरटेकर? सब मम्मी पापा एक से हैं " कहते हुए वह रिमोट उठाकर फेंक देता है। मयंक ने भी आव देखा ना ताव और एक जोरदार थप्पड़ अनिंद्य के गाल पर जड़ दिया। उसके नाजुक गोरे गालों पर उंगलियों के लाल निशान उभर आए और वह जोर जोर से रोते हुए कहने लगा "मुझे नहीं रहना है आपके घर में"

अक्षता भी चुप न रह सकी और कहने लगी - "बहुत बदतमीज हो गए हो तुम? आखिर बात क्या है? दादी के लाड़-प्यार ने तुम्हें क्या बना दिया है? इतना गुस्सा, मां-बाप से अपशब्द? यह संस्कार दे रहे हम तुम्हें"?

तेज आवाज सुनकर भारती भी लिविंग रूम में आ गई ।

"क्या हुआ है बेटा? क्या परेशानी है? क्यों नाराज हो रहे हो सब"? आश्चर्य से पूछने लगी।

"संभालो,संभालो अपने लाडले सपूत को । कैसे तेवर हो गए हैं इसके ! हमें स्वार्थी कह रहा है! और यह 'केयरटेकर' और 'वाचमैन' जैसे शब्द किसने सिखाएं इसे? हमने तो कभी सोचा तक नहीं स्वप्न में कि....."

"क्यों अनिंद्य, ऐसे बात करते हैं मम्मी पापा से? मैंने तुम्हें कहा न कि अक्षय ने जो भी कहा है, वह गलत है । चलो ,माफी मांगो सबसे और आज के बाद कभी ऐसा किया तो मैं कभी बात नहीं करूंगी तुमसे"।

"मां आपने ही इसे ज्यादा लाड़ प्यार में ..."कहकर अक्षता चुप हो गई ।

"तुम दोनों को उसकी मानसिक स्थिति नहीं मालूम है। वह दिन भर से परेशान था। अभी एकाएक क्या हुआ"?

सन्नाटा छा गया सभी परेशान है- एकाएक अनिंद्य के ऐसे व्यवहार से आहत हैं ।

"सॉरी मम्मा, सॉरी पापा" कहते हुए वह पैर पटकते हुए अपने कक्ष में चला गया।

भारती ने अक्षता और मयंक को स्कूल की घटना बताई और कहा कि "आज वह उत्तेजना में है। मैं उसे समझा लूंगी ।अब अपन सुबह बात करेंगे"। कहते हुए भारती भी आनंद के पास सोने चली गई ।

अनिंद्य कुर्सी पर बैठा कागज पढ़ रहा था। दादी ने उसे प्रेम से हाथ पकड़कर बिस्तर पर ले लिया और कहा- "चलो सो जाओ।"

दोनों करवट बदल रहे हैं । अनिंद्य बोला- "नींद नहीं आ रही है दादी !आप मुझसे बात करो।आप भी नाराज हो क्या? हे भगवान ये बड़े लोग भी न.."

"सो जाओ,सुबह बात करेंगे " दादी ने कहा ।

"नहीं दादी आप अभी बताओ 'आप चाचा के घर ईशा

को संभालने जाओगी.? तो क्या अक्षय ने सच नहीं कहा? झूठ कहा था ? सब मम्मी पापा दादा -दादी को केयरटेकर ही समझते हैं ।बहुत गंदे लोग हैं सब"।

समय की नजाकत को समझते हुए भारती उठ बैठी और समझाते हुए बोली "बेटा ऐसी सोच ही गलत है। दादी पर जैसा तुम्हारा अधिकार है, वैसा ही ईशा का भी है।वह छोटी है ।

अच्छा बताओ मम्मा तुम्हारा सब काम करती है ,तो क्या वह तुम्हारी केयरटेकर है?बच्चे छोटे होते हैं ,तो सभी बड़े उन्हें ताकतवर बनने में ,बड़ा बनाने में मदद करते हैं ।अपने बच्चों का काम तो सभी को करना होता है ।आपके चाचा भी तो मेरे बेटे हैं न।उन्हें भी तो कभी मां की याद आती है,वहां भी जाना चाहिए"।

"पर दादी उन्हें याद आती है तो मिलने क्यों नहीं आते? ईशा के लिए ...."

"नहीं ऐसा नहीं कहते बेटा ।तुम्हारे मित्र ने तुम्हारी सोच बिगाड़ दी है"।

" उसे तो उसके मम्मी पापा ने कहा था। वह क्यों झूठ बोलेगा? सब बड़ों का..."

"नहीं बेटे वे लोग किसी अन्य संदर्भ में बात कर रहे होंगे और अक्षय को गलत समझ आ गया होगा ।सभी अपने बच्चों की मदद करते हैं "।

"पर दादी बच्चे बड़े होकर अपने मां-बाप को घर से निकाल देते हैं ,यह सही है हमको स्कूल से भी 'ओल्ड होम'ले गए थे वहां भी एक दादा जी यही कह रहे थे "वह बहुत ही दुखी स्वर में बोला।

"बेटा, कभी कोई बेटा गलत हो सकता है और कभी मां-बाप भी गलत हो सकते हैं -जिनकी सहायता करने की भावना नहीं होती है तो गलत फहमी फैला देते हैं ।तुम इन बेकार की बातों पर विचार मत करो ,अपने यहां ऐसी कोई बात नहीं है"।

"दादी एक प्रश्न तो है बच्चों को मां-बाप इतने प्यार से बडा़ करते हैं, पढ़ाते लिखाते हैं फिर ऐसे स्वार्थी क्यों हो जाते हैं बच्चे? क्या उन्हें अपने मां-बाप से प्यार नहीं होता?"

एक प्रश्न और मुझे परेशान कर रहा है दादी-मेरा एक दोस्त बता रहा था कि उसके चाचा ने दादा-दादी के सब रुपए अपने नाम करके उन्हें घर से निकाल दिया है इसलिए उनके यहां रहते हैं।यह पसंद नहीं है उसके मम्मी पापा को भी।वह भी बहुत दुखी था। और स्वधा बता रही थी कि पेपर में भी आया था कि किसी बड़े आदमी के बच्चों ने भी ऐसा ही किया है। दादी बताओ ना सब ऐसे क्यों हो जाते हैं"?

अनिंद्य को दादी एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी है।

उसी समय मयंक भी वहां आ जाते हैं ।आवेश में बेटे  मारकर वह स्वयं भी परेशान हैं। सारा वृत्तांत जानकर दुखी भी हैं। उन्हें लग रहा है कि अनिंद्य की बातों में कुछ तो सच्चाई है -समाज में यह सब हो रहा है ,पर हमने तो कभी मां से ऐसा व्यवहार नहीं किया जो ....

"अरे मयंक बेटा !आओ खड़े क्यों हो"? भारती ने पलंग पर जगह बनाते हुए कहा - बैठो।

"तुम दोनों क्या खुसर-पुसर कर रहे हो ,हमें भी तो बताओ?" कहते हुए मयंक बैठ गया और बोला -"तुमने अभी तक क्यों मुंह फुला रखा हैअनि"?

" आपने इतनी जोर से मारा कि मुंह फूल गया तो मैं क्या करूं" कहते हुए अनिंद्य ने गाल को पापा के सामने कर दिया।

मयंक ने बेटे के गाल को चूम लिया और कहा "सॉरी बेटा मुझे भी गुस्सा आ गया था जैसा तुम्हें अक्षय पर आया था"।

" तो दादी आपने पापा - मम्मा को क्यों बताया ?अब मैं आपसे भी कभी अपनी कोई बात शेयर नहीं करूंगा" कहते हुए दादी को शिकायत भरी नजरों से देखने लगा।

"न कहती तो तुम्हारे गुस्से का कारण कैसे पता लगता? कैसे समझते ये लोग तुम्हें? और तुमने तो कोई गलती भी नहीं की है । हां ,तुमने जो अशिष्टता घर पर की है, अधूरी बात समझ कर - वह बहुत ही गलत है और तुम्हारी मम्मी और दादी दोनों ही तुम्हें कभी माफ नहीं करेंगी" उन्होंने समझाते हुए कहा।

"पापा ,मम्मा जाग रही हैैं क्या ?हां ,जागी ही होगी ;हम सब जागेंगे तो वह कैसे सोएंगी"? कहते हुए अनि मम्मी के कमरे की ओर भाग गया।

अक्षता दीवार की ओर मुंह किए हुए बिस्तर पर लेटी थी। अनिंद्य ने बहुत ही प्यार से सिर पर हाथ रख दिया। सिर तकिए की ओर नीचे तक गीला था ,घबराकर दुखी स्वर में वह बोला "मम्मा , आप रो रही हैं? क्यों? मम्मा सॉरी । मम्मा आप मुझसे बोलो ना ‌प्लीज रोओ नहीं "

रोऊं नहीं ,तो क्या खुशियां मनाऊं? मेरा बेटा इतना सुधर गया है -बहुत नाज़ था मुझे तुम्हारी समझदारी पर और दादी के दिए संस्कारों पर, तुमने सब पर पानी फेर दिया? अक्षता ने बहुत ही आवेश में कहा ।

"माफ कर दो ,मेरी प्यारी मम्मा ।मुझसे गलती हुई है ।मैं गलत समझ रहा था और दादी के जाने की बात पर मुझे गुस्सा आ गया था ।अब कभी नहीं करुंगा ,कान पकड़ता हूं।"

ताली की आवाज से दोनों ही चौक जाते हैं ताली बजाकर दादी कह रही थी कि -"ऐसी ही होती है गलतफहमी।"

" मयंक और अक्षरा, तुम भी सावधान रहो ।बच्चों के सामने बहुत सोच समझकर बातें किया करो- मां बाप के व्यवहार से ही बच्चे सामाजिक व्यवहार को परखते हैं ,सीखते हैं।यह छोटा सा बच्चा है ,पर इसके दिमाग में देखो ना कितने प्रश्न भरे हैं और कैसा विकृत हो रहा है सोच भी।"

"अक्षता ,अब सबकी नींद उड़ गई है तो दूध हो जाए केशर वाला ।मेरा तो सर दर्द हो रहा है।" मयंक ने प्यार से कहा।

दादी बोल पड़ीं "अब तो सर दर्द मिट जाना चाहिए ।सब खुश हैं। गलतफहमी भी दूर हो गई है बच्चे की एक गलतफहमी कितना बवाल मचा देती है"।

"पर दादी एक प्रश्न तो अभी बाकी ही है "अनिंद्य ने गंभीरता से कहा।