सपना टूट गया
रात को दो बजे कॉल बेल की आवाज से मैं घबराकर उठ बैठती हूं। कॉल बेल लगातार बजती जा रही थी ।हम दोनों ही बहुत घबराए हुए दरवाजे की ओर तेजी से जाते हैं।
"अरे ,अरे किवाड़ मत खोल देना एकदम से ।रुको , मैं पहले ऊपर से देखती हूं" - कहते हुए मैं ऊपर दौड़ती हूं । दरवाजा खोलकर गैलरी से नीचे झांकती हूं ,तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होता, दो - तीन बार आंखे मसल कर देखती हूं फिर से ,और खुशी से नाच उठती हूं । वहीं से चिल्लाती हूं -"जल्दी दरवाजा खोलो, हमारे तो भाग जाग गए हैं। जल्दी करो जल्दी" और दौड़कर नीचे आते हुए आंगन पार करके , मेन गेट का ताला खोलती हूं -"पधारो प्रभु धन्य भाग हमारे, आप आज हमारे यहां पधारे"- पर प्रभु को तो जैसे मेरी बात से कोई लेना देना ही नही।वे सीधे अंदर आते हुए बोले- "आप दोनों डॉक्टर हैं। आज आप मेरी सहायता करें।"
मैं गिड़गिड़ाती हुए बोली," हम अकिंचन प्रभु !आप सर्वशक्तिमान। स्वामी क्यों हंसी कर रहे हैं या हमारी परीक्षा ले रहे हैं ।"
मेरे श्रीमानजी को तो जैसे लकवा मार गया हो ,हाथ जोड़े मूर्ति बने खड़े थे ।
प्रभु अपनी सूंड उनके कंधे पर रखते हुए बोले -"मुझे कोई दवा दीजिए डॉक्टर ,मेरा दर्द सर से फटा जा रहा है - डॉक्टर से अपना हाल क्या छिपाऊं -बहुत परेशान हूं, बेहद तनाव में हूं ।तीन दिन से मेरे द्वारे जो भीड़ जुटी है - भजन पूजन प्रसाद और लुभावनी मन्नतों के अंबार। इच्छाओं को पूरा करने की गुहार। थोड़ा सा सिंदूर चढ़ाएंगे और उससे भी चटखदार कांक्षाएं गिनाएंगे।"
मैं अपने भावावेग को न रोक सकी और बीच में ही बोल पड़ी-" प्रभु आप के लिए यह क्या कोई नई बात है ?आप तो प्रथम पूज्य हैं ,विघ्नहर्ता ,मंगलकर्ता ,भक्तों के उद्धारक हैं -आपके द्वार न आएंगे तो कहां जाएंगे सब?"
प्रभु बहुत ही आवेश में कह रहे थे-"मैं क्या हूं - यह सब केवल तुम मनुष्यों की कल्पना है। तुमने मेरे रूपाकार ,गुण ,शक्ति सभी को अपनी कल्पना और स्वार्थ के अनुरूप गढ़ा है । किसी ने मुझे लंबोदर कहकर मेरे उदर को बड़ा कर दिया ,कभी वक्रतुंड कहकर सूंड को टेढ़ा कर दिया ,किसी ने महाकाय कहकर महाकार प्रदान कर दिया कभी धूम्रवर्ण कहकर श्यामवर्णी बना दिया ,किसी ने एकदंत बना दिया ,किसी ने मूषक वाहन बना दिया ,किसी ने विघ्नहर्ता -मंगलकर्ता कहकर अपना स्वार्थ साधना चाहा। मुझे तो कभी अवसर ही नहीं दिया कि मैं अपने आकार और गुणों के बारे में विचार भी कर सकूं।
जिसकी जैसी सुविधा रही उसके अनुसार मेरी मूर्ति गढ़ दी गई। प्लास्टर ऑफ पेरिस ,मिट्टी अष्टधातु , संगमरमर ,रजत या स्वर्ण प्रतिमाएं बन गई ।किसी ने मुझे राम , किसी ने कृष्ण ,किसी ने शिव, किसी ने रहीम किसी ने ईसा,किसी ने मुझे ब्रह्मा बना दिया और बड़े-बड़े मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारों में बैठा दिया। मैं तो सोने -चांदी के दरवाजे में कैद हूं।- जब चाहे वे जगाते हैं -सुलाते हैं ,अजान लगाते हैं ,शंख ,नगाड़े और घंटियां बजाते हैं- अपनी आरजू ,तमन्ना और मनोकामनाएं सुनाते हैं।पहले पहले तो यहीं तक ठीक था पर अब तो SMS करके जगाते हैं ,मेल करके सताते हैं।
मेरे नाम पर न जाने कितने बाबा और भगवान अपना साम्राज्य फैलाते हैं। सीधी साधी भोली भाली जनता को भरमाते हैं-मेरा डर दिखाते हैं।
वास्तव में तो ये कोई भी मुझसे डरते नहीं हैं -तुम ही विचारो ,जो मुझसे डरते होते तो ऐसे अनाचारी, भ्रष्टाचारी,आतंकवादी, दुष्कर्मी और अन्यायी बनते ? मेरी बनाई हुई दुनिया को इतना गंदा बनाते ?आज तो मनुष्य ने अनीति की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं। रिश्तों की सारी मर्यादाएं भुला दी हैं । कामेच्छा, वासना और महत्वाकांक्षाओं के दलदल में ऐसा फंसा है कि उसे अपने स्वार्थ पूर्ति के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता है।
पहले तो कहते थे भगवान भावनाओं के भूखे हैं पर अब तो सब भावनाएं ही रीत रही है- अपना पेट भरते भरते। आज ये लोग ही हैवान बन गए हैं - धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं दुखी और गरीबों का खून चूसते हैं द्वार पर आए हुए जरूरतमंदों को दुत्कारते हैं और मंदिर -मस्जिद में लड्डू और चादर चढ़ाते हैं ।मेरे नाम की माला जपते हैं, सुमिरन करते हैं पर मन पता नहीं किन कामनाओं में लगाते हैं ।बिना स्वार्थ के एक क्षण भी कोई मुझे याद नहीं करता, कभी किसी ईश्वर को याद नहीं करता। परीक्षा है ,इंटरव्यू में जाना है, संपत्ति के झगड़े सुलझाना है ,कानूनी विवाद में मुक्ति पाना है - तो सभी मुझे याद करते हैं ।अरे स्वार्थी मनुष्यों मैं तो हर पल तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे पास हूं ,क्यों तुम ईश्वर अल्लाह और ईसा में मुझे बांटते हो ?क्यों मंदिर, मस्जिद ,गुरुद्वारे और गिरिजाघर बनाते हो? क्यों हमारे नाम पर विद्वेष और नफरत फैलाते हो,खून बहाते हो? आज मैं तुम्हारे पास हूं ,कल सैफुद्दीन के घर था और कल परविंदर के घर रहूंगा -मैं तो निराकार हूं !सर्वत्र व्याप्त हूं !न मंदिर में हूं ,न मस्जिद में रहता हूं और न गिरजाघर और गुरुद्वारे में ।मैं तो प्रेम से पवित्र दिलों में रहता हूं ।जब तुम हमारे नाम पर मस्जिद बनाते हो ,या मंदिर ढहाते हो,तो सच मानो हम सबको लजाते हो।
मैंने पहले गीता ,कुरान , बाइबिल और गुरुग्रंथ साहिब में कहा था और आज फिर कहता हूं मेरे भरोसे रहोगे तो कुछ नहीं पाओगे, कुछ नहीं कर पाओगे - न परीक्षा में लिख पाओगे ,न नौकरी पाओगे, न संपत्ति के मामले ही सुलझेंगे और न ही कोई पद पाओगे किंतु यदि अपने भरोसे रहोगे तो बहुत कुछ कर दिखाओगे ,बहुत कुछ पा जाओगे एक सुंदर दुनिया बनाओगे।"
मैंने ऐसे वचनामृत को सुनकर भाव विभोर होते हुए प्रभु चरणों को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया और तेज आवाज के साथ साइड टेबल पर रखा तांबे का लोटा दूर जा गिरा।
सपना टूट गया ,नींद हवा हो गई। बाहर सुशीलाबाई जोर जोर से दरवाजा खटखटाकर कह रही थी-"जल्दी दरवाजा खोलो मैं चली गई तो लौटकर नहीं आऊंगी।
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