ऋषभ ने 'पार्टी ऑन’ बार में कदम रखा।

ऋषभ एक 24 वर्षीय युवक था। वो फ्री लांसर फोटोग्राफर के रूप में काम करता था। पुणे में कल्याणी नगर में उनका एक बहुत पुराना फोटो स्टूडियो भी था, जो किसी समय उसके पिता संभाला करते थे लेकिन अब उसे ऋषभ और उसका भाई मिल कर संभालते थे।

बार में उसका दोस्त निरंजन पहले से मौजूद था।

दोनों ने एक टेबल पर साथ-साथ महफिल जमाई।

हालांकि आमतौर पर वो महफिल तीन लोगों की होती थी, बार में उस जगह पर जमने की जगह-जहां आम ग्राहक बैठते थे-बार के अंदर बार मालिक के रूम में जमती थी और उसमें बार मालिक देवेश भी शामिल होता था।

ऋषभ, निरंजन और देवेश तीनों की ही काफी जमती थी। तीनों दोस्त लगभग रोज ही उस बार में अपनी महफिल जमाने के लिए वक्त निकाल ही लिया करते थे। उनकी उस छोटी-सी महफिल में एक-दो पैग मारते थे और देर तक बतियाते थे। कभी-कभार किसी खास मौके पर या मौसम का मिजाज होता था, तभी वे तीसरे पैग तक पहुंचते थे। कोई बेहद जरूरी काम होने पर ही उनका ये डेली रूटीन का गेट टुगेदर नहीं होता था। कभी-कभी उनमें से किसी एक के नहीं आ पाने पर बाकी दोनों ही महफिल जमाते थे।

जैसा आज हो रहा था।

देवेश किसी जरूरी काम से मुम्बई गया हुआ था। उसकी गैर मौजूदगी में ऋषभ और निरंजन को आम ग्राहकों की तरह बार के बाहरी हॉल में बैठकर ही पीने-पिलाने का प्रोग्राम करना पड़ रहा था।

निरंजन पुलिस फोटोग्राफर था। ऋषभ और उसके पेशे और इंट्रेस्ट दोनों में ही समानता होने के कारण दोनों की आपस में खूब बनती थी।

कई बार तो निरंजन पुलिस केस से संबंधित फोटोज व केस की इन्वेस्टिगेशन से जुड़ी जानकारी भी देवेश और ऋषभ के साथ शेयर करता था, जिसमें देवेश तो ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता था लेकिन ऋषभ बहुत ध्यानपूर्वक सुनता था।

उसका कारण ये था कि फ्रीलांसर फोटोग्राफर के रूप में अपने कैरियर के दौरान ऋषभ ने एक बार दिल्ली में एक प्राइवेट डिटेक्टिव के साथ काफी समय तक काम किया था। उसके साथ रहकर ही ऋषभ की क्राइम इन्वेस्टिगेशन में दिलचस्पी जाग गई थी।

निरंजन और ऋषभ के बीच पुलिस के विभिन्न केसों को लेकर लंबी-लंबी चर्चाएं होतीं थीं। ऋषभ ने इस बात को नोट भी किया था कि निरंजन की क्राइम इन्वेस्टिगेशन में गहरी रूचि थी। वो केसों के बारे में जिस तरह विस्तारपूर्वक, बारीकी से बताता था, उससे भी पता चलता था कि उसकी इन्वेस्टिगेशन में गहरी दिलचस्पी थी।

ऋषभ तो कई बार मजाक-मजाक में ही उससे कह भी देता था-''यार, तुम्हें तो फोटोग्राफर नहीं, डिटेक्टिव होना चाहिए था।’’

उस पर निरंजन का एक ही जवाब होता था-

''नहीं यार। मुझे अपना काम ही पसंद है। समझ लो, मैं एक एयर होस्टेस हूं, जिसे प्लेन चलाना पसंद तो है लेकिन वो प्लेन चला नहीं सकती। वो पायलट को देख-देखकर प्लेन चलाना थोड़ा-बहुत सीख भी सकती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसे प्लेन उड़ाने की इजाजत मिल जाए। या वो प्लेन उड़ाने के लायक हो गई हो।’’

लेकिन हकीकत यही थी कि निरंजन की क्राइम इन्वेस्टिगेशन में गहरी दिलचस्पी का असर ऋषभ के दिमाग पर भी पड़ चुका था। वो उसके द्वारा बताए जाने वाले पुलिस केसों की विवेचना को बेहद गौर से सुनता था और विभिन्न पॉइंटों पर उससे बहस भी करता था।

फोटोग्राफी के अलावा उन दोनों के बीच सबसे ज्यादा चर्चा पुलिस केसों पर ही होती थी।

निरंजन एक दुबला-पतला, औसत कद-काठी का, करीब 40 वर्ष की उम्र का व्यक्ति था। मूंछें रखता था और खुलकर कम ही हंसता था।

वहीं ऋषभ छः फ़ीट कद का फ़िल्मी हीरो जैसी पर्सनालिटी वाला युवक था

निरंजन कि शादी नहीं हुई थी और वो मुम्बई में अकेला ही रहता था। जहां तक ऋषभ को जानकारी थी, निरंजन के परिवार के नाम पर केवल दूर के रिश्तेदार ही थे, जिनके बारे में ऋषभ को कम ही जानकारी थी।

वो निरंजन की हर बात को ही बहुत ध्यान से सुनता था क्योंकि वो उसे एक बहुत अच्छा फोटोग्राफर मानता था। ऋषभ के फ्री लांस फोटोग्राफर बनने के पीछे भी यही कहानी थी कि वो कहीं न कहीं निरंजन से प्रेरित था।

उसके हिसाब से पुलिस फोटोग्राफर की जॉब करके निरंजन अपनी योग्यता को बहुत सीमित दायरे में रख रहा था। फोटोग्राफी से संबंधित जितना ज्ञान उसे था, उसका उपयोग करके वो बहुत आगे जा सकता था।

लेकिन जहां तक वो निरंजन को जानता था, उसे यही लगता था कि निरंजन को उस दिशा में आगे जाने की कोई महत्त्वाकांक्षा ही नहीं थी।

वो अपनी जॉब से संतुष्ट था।

फोटोग्राफी से संबंधित अपनी जानकारी को तो वो इसलिए बढ़ाता रहता था, हुनर को इसलिए निखारता रहता था क्योंकि उसे फोटोग्राफी से प्यार था।

ऋषभ मन-ही-मन सोचता था कि अगर उसके अंदर भी फोटोग्राफी से संबंधित निरंजन जितनी काबिलियत होती तो वो भी फोटोग्राफर के रूप में अपने कैरियर को बहुत आगे ले जा सकता था।

''उस आदमी को जानते हो?’’-निरंजन अपने ग्लास से व्हिस्की का घूंट भरते हुए उनकी दाहिनी ओर एक टेबल पार करके दूसरी टेबल पर बैठे दो युवकों की ओर इशारा करते हुए बोला।

ऋषभ ने उन दोनों पर नजर मारी, फिर बोला-''दोनों को जानता हूं। काली शर्ट वाला प्रताप सालुंके है। हमारे स्टूडियो की जमीन को लेकर इसके बाप ने केस किया था। उसके गुजर जाने के बाद उसकी ओर से इसने केस लड़ा था।’’

''स्टूडियो की जमीन को लेकर?’’

''हां। इसका बाप दारूबाज आदमी था। पापा ने स्टूडियो की जमीन उसी से खरीदी थी। लेकिन बाद में वे परेशान करने लगा। जमीन पर अपना हक जताने लगा।’’

''तुम लोगों के पास जमीन के कागज वगैरह तो होंगें।’’

''कागज तो हैं लेकिन उसमें भी गड़बड़ हो गई थी। शायद इसके बाप ने रजिस्ट्री ऑफिस के किसी आदमी के साथ मिलकर उसमें भी गड़बड़ की थी। हमारे खिलाफ कोर्ट में मुकदमा भी किया था।’’

''अरे।’’

''वैसे इसके बाप की-और शायद इसकी भी-मंशा सिर्फ ब्लैकमेलिंग करने की थी। शुरू में पापा ने इसके बाप को कुछ पैसे दिए भी थे। कि बात कोर्ट तक न जाए। लेकिन वो बार-बार मुंह फैलाने लगा तो पापा ने उसके मुंह पर पैसे मारना बंद कर दिया। कोर्ट में भी हमारी जीत हुई।’’

''कमाल है। तुमने पहले कभी बताया नहीं।’’

''तुमने पहले कभी पूछा ही नहीं।’’

''मैं तो प्रताप को बहुत सीधा-सादा, अच्छा इंसान समझता था।’’

''पर्सनली मैं भी इसे ज्यादा नहीं जानता। कोर्ट केस के दौरान भी इससे ज्यादा बात नहीं होती थी। काफी उदासीन भाव से ये कोर्ट में आता था। उस समय मैं यही समझता था कि इसे भी पता है कि ये केस नहीं जीतने वाला। इसीलिए रोनी सूरत बनाए है।’’

''प्रताप ने मुझसे दस हजार रूपए लिए थे दो महीने पहले। पैसे लेने के बाद से मुझे देखकर ऐसे मुंह फेरने लगता है, जैसे मैं खुद उससे उधार मांगने वाला हूं।’’

''नहीं देना चाहिए था ऐसे आदमी को पैसा।’’

''कह रहा था बहुत जरूरत है। कुछ ही दिन में वापस कर देगा। कुछ दिन की जगह दो महीने हो गए। बात पैसे की है भी नहीं। मैंने खुद ही उससे पैसे वापस मांगने की पहल नहीं की थी। लेकिन पैसे लेने के बाद उसका बर्ताव काफी अजीब हो गया है।’’

''उसके साथ वाले को भी जानते हो?’’

''सौरभ नाम है उसका। दोनों रूम पार्टनर हैं।’’

''उसे मैंने पलक के साथ घूमते देखा है।’’

''तुम्हारी पलक?’’

''मेरी पलक नहीं भाई।’’-ऋषभ ने गहरी सांस लेते हुए कहा-''उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत बस एक दोस्त की है। उससे ज्यादा कुछ नहीं।’’

''कब तक ऐसे ठण्डी आहें भरता रहेगा? अपने दिल की बात बता क्यों नहीं देता उसे?’’

''कोई फायदा नहीं है। मुझे पता है वो मुझे उस नजर से देखती ही नहीं।’’

''तू ऐसा फट्टू निकलेगा, इस बात की उम्मीद मुझे नहीं थी।’’

''छोड़ यार।’’

''बल्कि सच कहूं तो उम्मीद नहीं, विश्वास था कि उसके सामने तेरी जबान ही नहीं खुल सकती। तू लव मैरिज की टाइप वाला आदमी ही नहीं है।’’

''जाने दे, भाई।’’

''तू अरेंज मैरिज वाला आदमी है। देख लेना, तेरी भाभी एक दिन अपनी पसंद की एक सुन्दर सी कन्या ढूंढकर तेरे गले बांध देंगीं। और तू कुछ भी नहीं कर पाएगा।’’

''हद है यार। मेरे मुंह से पलक का नाम निकला और तुम शादी तक पहुंच गए।’’

''क्यों? खुद पलक को प्रपोज करने तक भी नहीं पहुंच पा रहे हो तो दूसरों को शादी तक पहुंचते देखकर जलन हो रही है?’’

''फालतू बकवास मत कर यार। कहा न, पलक इजन्ट इंट्रेस्टेड इन मी दैट वे।’’

''वाह रे अंग्रेज। मेरे सामने लंबी-लंबी अंग्रेजी झाडऩे से क्या होगा? दम है तो पलक से जाकर वो तीन जादुई शब्द बोलकर दिखा।’’

''आई लव यू?’’

''नहीं। गोना फ्लाई नाओ। रॉकी बन जा उसके सामने। साले, प्रपोज ही नहीं करेगा तो उसे क्या सेंटा क्लॉज सपने में बताकर जाएगा कि तू उससे प्यार करता है?’’

''प्रपोज तो तब करूं, जब प्रपोज करने लायक कुछ हालात दिखें।’’

''क्यों? क्या हो गया हालातों को?’’

''जब भी उससे मिलता हूं या उसे देखता हूं, उसके आसपास कोई और भी मंडराता हुआ नजर आता है।’’

''अबे मंडराने वालों को धकेल कर ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।’’

''अब ये धक्का-मुक्की करने का तो मेरा कोई इरादा नहीं है।’’

''बढिय़ा। फिर बैठकर टापते रह।’’

''वही तो कर रहा हूं।’’

दोनों ने अपने-अपने गिलासों से एक-एक घूंट भरा।

''बार में भी कैमरा गले में लटकाना जरूरी है?’’-फिर निरंजन ने कहा।

ऋषभ ने सिर नीचे झुकाकर गले में लटके कैमरे को देखा, फिर बोला-''मैं एक फोटोग्राफर हूं।’’

''हां। और मैं मंगल ग्रह से आया एलियन हूं।’’

''तुम भी फोटोग्राफर हो।’’

''फिर?’’

''लेकिन तुम पुलिस फोटोग्राफर हो।’’

''पुलिस फोटोग्राफर होना गुनाह है?’’

''नहीं। लेकिन तुम्हें कैमरे की जरूरत तब पड़ती है, जब तुम किसी वारदात वाली जगह पर जाते हो।’’

''इतनी रोचक जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे तो पता ही नहीं था।’’

''मैं एक फ्रीलांस फोटोग्राफर हूं। मुझे कभी भी, कहीं भी कैमरे की जरूरत पड़ सकती है। जैसे...।’’-ऋषभ ने कैमरा हाथ में लेकर उसे निरंजन की ओर किया, फिर इधर-उधर घुमाते हुए दूर टेबल पर बैठेे प्रताप और सौरभ की ओर कर दिया-''अभी।’’

कहने के साथ उसने उन दोनों की फोटो खींच ली।

वे दोनों आपस में किसी बात पर बहस कर रहे थे। उनके हाव-भाव देखकर लग रहा था कि बहस किसी भी वक्त झगड़े में बदलने वाली थी।

फिर वही हुआ।

सौरभ अपनी कुर्सी से उठा और उसने प्रताप के पास पहुंचकर उसकी कॉलर पकड़कर उसे कुर्सी से उठा लिया।

''ए।’’-निरंजन ने कहा-''उनकी फोटो क्यों खींच रहा है?’’

''इतना बढिय़ा फाइट सीन है। एक तस्वीर तो बनती है।’’

''लगता है तुझे नशा हो गया है।’’

''शराब पिऊंगा तो नशा नहीं होगा?’’

उनके बीच झगड़ा बढ़ता देखकर निरंजन उठा।

''कहां जा रहे हो?’’-ऋषभ ने कहा-''रोशन देख लेगा इन्हें।’’

रोशन बार के बाउंसर का नाम था।

''उसके आने तक किसी के दांत जमीन पर होंगें।’’-कहकर निरंजन झगड़ा कर रहे प्रताप और सौरभ के नजदीक जा पहुंचा।

सौरभ ने प्रताप की कॉलर पकड़ी हुई थी और उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वो किसी भी वक्त उस पर हाथ छोडऩे वाला था।

अन्य टेबलों के गिर्द बैठे लोग भी नौबत मारपीट तक पहुंचती देखकर उठ खड़े हुए थे।

सौरभ की हाइट छ: फीट थी और बदन भी बॉडी बिल्डरों की तरह था। उसे गुस्से में देखकर कोई भी बीच में पडऩे की हिम्मत नहीं कर रहा था।

शायद रोशन कहीं इधर-उधर था वरना अब तक वो ग्राहकों के बीच मारपीट होने से रोकने के लिए पहुंच चुका होता।

निरंजन को फाइट सीन की ओर जाते देखकर ऋषभ को भी मजबूरन उठना पड़ा।

''ऐ।’’-उनके पास पहुंचकर निरंजन ने कहा-''छोड़ो उसे।’’

''तू कौन है बे?’’-सौरभ ने मुंह से थूक उड़ाते हुए कहा।

''इंसानों की तरह बैठकर बात करो। ये बार है, कुश्ती का अखाड़ा नहीं।’’

सौरभ ने प्रताप को इतनी जोर का धक्का दिया कि वो पीछे फर्श पर जाकर गिरा।

''मैं तुझे बताता हूं कि ये अखाड़ा है या नहीं।’’-कहकर वो निरंजन की ओर घूमा और उसने निरंजन पर हाथ भी घुमा दिया।

लेकिन उसके हाथ को बीच में ही ऋषभ ने थाम लिया।

ऋषभ ने मन-ही-मन शुक्र मनाया कि वो ऐन वक्त पर उनके इतने पास आ गया था। वरना सौरभ का हाथ निश्चित रूप से निरंजन पर पड़ जाता। क्योंकि निरंजन ने भी उसके वार से बचने की कोई कोशिश नहीं की थी। वो अपनी जगह पर अडिग खड़ा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

निरंजन देखने में भले ही पतला-दुबला था लेकिन काफी हिम्मतवाला था।

सौरभ ने नशे और गुस्से से लाल हो रही आंखों से ऋषभ की ओर देखा, फिर उसे जोर का धक्का दिया।

ऋषभ ने उसे पकडऩे की कोशिश की तो वो उसकी शर्ट ही पकड़ पाया। लेकिन सौरभ ने उसे इतनी जोर का धक्का दिया था कि ऋषभ पीछे की ओर होते हुए गिरते-गिरते बचा। और सौरभ की शर्ट का बड़ा हिस्सा फटकर उसके हाथ में आ गया।

बार में बैठे लोग उनके इर्द-गिर्द इकठ्ठा हो गए थे लेकिन शायद सौरभ की कद-काठी और गुस्से को देखते हुए दखल देने से झिझक रहे थे।

ऋषभ जब तक संभल पाता, सौरभ उसके सिर पर सवार था। उसने दोनों हाथों से ऋषभ की शर्ट को सामने से पकड़ लिया और एक झटके से फाड़ दिया।

शर्ट को पकडऩे के चक्कर में उसके हाथ में ऋषभ के गले में लटके कैमरे का पट्टा का एक-एक सिरा भी फंस गया था।

जैसे ही उसने झटके से शर्ट फाड़ी, कैमरे का पट्टा भी टूट गया और कैमरा जोर से फर्श पर गिरकर टूट गया।

ऋषभ ने सौरभ के मुंह पर एक जोरदार घूंसा रसीद किया।

सौरभ पर घूंसे का कोई विशेष असर तो नहीं पड़ा, उल्टे उसने पलटकर जवाब में ऋषभ को घूंसा मारा तो ऋषभ को अपना जबड़ा हिलता महसूस हुआ।

सौरभ ने घूंसे पर ही बस नहीं की। वो ऋषभ पर दोबारा झपटने वाला था।

तभी भीड़ से रोशन प्रकट हुआ और उसने पीछे से उसे दबोच लिया।

सौरभ ने उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश की लेकिन रोशन ऐसे कामों का अभ्यस्त था। बार में होने वाले छोटे-मोटे झगड़ों को सुलझाना ही तो उसका काम था।

रोशन के पहल करने पर बार में उपस्थित अन्य लोगों में भी साहस जाग्रत हुआ और उन्होंने भी आगे बढ़कर सौरभ को दबोच लिया।

''छोड़ो।’’-सौरभ उनकी पकड़ से छूटने की कोशिश करते हुए चीखा-''छोड़ो मुझे।’’

ऋषभ ने फर्श पर पड़ा कैमरा उठाया। वो इतनी बुरी तरह टूट चुका था कि उसके ठीक होने की भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी।

निरंजन उसके पास पहुंचा। उसने कैमरे की हालत देखकर अफसोस भरे स्वर में कहा-''अरे यार।’’

''कैमरा टूट गया।’’-ऋषभ ने कहा।

''पैसे इसी से वसूलते हैं।’’-रोशन ने सौरभ की कॉलर पकड़कर मरोड़ते हुए कहा।

''इसका कैमरा मैंने जान-बूझकर नहीं तोड़ा।’’-सौरभ ने कहा-''लेकिन मुझे कोई अफसोस भी नहीं है। ये हमसे बिना पूछे हमारी फोटो खींच रहा था।’’

''अफसोस तो तुझे अभी होगा।’’-ऋषभ उसकी ओर बढ़ा लेकिन निरंजन ने उसे रोक दिया।

''आ जा।’’-सौरभ चुनौतीपूर्ण स्वर में बोला।

रोशन बाकी लोगों की मदद से सौरभ को दरवाजे की ओर धकेलने लगा।

तब तक प्रताप भी उठकर निरंजन और ऋषभ के पास आ चुका था।

''छोड़ो मुझे।’’-सौरभ लोगों की पकड़ से छूटने की कोशिश करते हुए बोला-''आज मैं इसे नहीं छोडूंगा।’’

रोशन अन्य लोगों की सहायता से उसे खींचते हुए दरवाजे की ओर ले जा रहा था।

''जल्द ही पलक से मिलता हूं।’’-प्रताप ने ऊंची आवाज में कहा।

रोशन और बाकी लोगों ने सौरभ को घुमाकर उसका मुंह दरवाजे की ओर कर दिया था। लेकिन प्रताप के मुंह से पलक का नाम सुनकर सौरभ एक झटके से उसकी ओर पलटा और उसकी ओर झपटने को हुआ।

उसे रोकने में रोशन और बाकी लोगों को अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ी।

''हरामजादे।’’-सौरभ इतनी जोर से चिल्लाया कि आवाज पूरे हॉल में गूंज उठी-''तूने पलक से एक शब्द भी कहा तो मैं तुझे जान से मार दूंगा। सुना तूने। जान से मार दूंगा तुझे।’’

फिर रोशन और उसके साथियों ने उसे उठाकर बार से बाहर फेंक दिया।

निरंजन प्रताप को अपनी टेबल पर ले गया।

रोशन ने एक थैले की व्यवस्था की, जिसमें ऋषभ ने कैमरे के अवशेष सुरक्षित कर लिए।

"आपको बहुत पसंद था ये कैमरा।"-रोशन ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

सहानुभूति भरे शब्दों के लिए उसके प्रति कृतज्ञ अनुभव करता हुआ ऋषभ भी निरंजन और प्रताप के साथ टेबल पर आ बैठा।

''क्या हो रहा था ये सब?’’-वे तीनों बैठ गए, उसके बाद निरंजन ने पूछा।

प्रताप ने जेब से एक मुड़ा-तुड़ा सिगरेट का पैकेट निकालकर उससे एक सिगरेट बरामद की, उसे अपने होंठों से लगाया, फिर लाइटर की तलाश में अपनी जेबें टटोलने लगा।

ऋषभ ने लाइटर जलाया और उसकी ओर बढ़ाया।

वो एक पल रूककर ऋषभ को देखता रहा, फिर उसने चेहरा आगे बढ़ाकर होंठों में दबी सिगरेट लाइटर की लौ से सुलगा ली।

''थैंक्स।’’-फिर वो सिगरेट को दो उंगलियों के बीच पकड़कर होंठों से अलग करके गहरी निगाहों से ऋषभ को देखते हुए बोला-''पता नहीं था कि तुम भी सिगरेट पीते हो।’’

''नहीं पीता। ये लाइटर वहां गिर गया था। शायद तुम्हारा ही है।’’

उसने लाइटर को देखा, फिर चौंकते हुए उसे सौरभ से ले लिया-''ओह हां। फिर से थैंक्स।’’

"पलक की क्या बात थी?"-ऋषभ ने पूछा।

उसने होंठों से सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए ऋषभ की ओर देखा।

"क्या?"-वो बोला।

"तुमने सौरभ से कहा कि जल्द ही पलक से मिलता हूं। जिस पर वो भड़क गया। तुम्हें जान से मारने की धमकी देने लगा?"

प्रताप ने हाथ ऐसे हिलाया, जैसे मक्खी उड़ा रहा हो।

''कोई खास बात नहीं थी।’’-प्रताप ने कहा-''हम लोग यूं ही कुछ बात कर रहे थे। उसमें पलक का जिक्र आने पर वो अपसेट हो गया था। मैं उसे चिढ़ाने के लिए बार-बार उसका नाम लेने लगा। नशे में होने के कारण वो ज्यादा भड़क गया। और कोई धमकी-वमकी नहीं दे रहा था वो। बस नशे में बड़बड़ा रहा था। सौरभ दिल का बुरा नहीं है। वो शराब पचा नहीं पाता। गलती मेरी ही थी। मैंने ही उसे साथ में पीने के लिए मजबूर किया था।’’

''वाह। तुमने तो उसे हाथ के हाथ माफ भी कर दिया।’’

''माफ करने वाली कोई बात ही नहीं है। बेचारा आजकल बहुत परेशान है। मेरे फ्लैट में रूम पार्टनर के तौर पर रहता था। दो दिन पहले ही फ्लैट छोड़ कर दूसरी जगह रहने चला गया।’’

''लेकिन आज तो तुम दोनों साथ थे।’’

''मैं उससे कुछ जरूरी बात करने के लिए यहां ले आया था। आज पता चला कि जो शराब नहीं पचा पाता, उसे कभी शराब पिलाने की जिद नहीं करनी चाहिए। ओह हां।’’-प्रताप ने निरंजन की ओर देखा-''तुम्हारे पैसे मैं जल्द ही लौटा दूंगा।’’

''पैसों के लिए मैंने कुछ कहा क्या?’’-निरंजन ने कहा।

''कहा नहीं लेकिन फिर भी...। तुम्हें लग रहा होगा मैं तुम्हें अवॉइड करने की कोशिश कर रहा हूं। दरअसल...मैं कोशिश करता हूं कि दोस्तों से उधार न लेना पड़े। क्योंकि उधार लेने के बाद मैं काफी एम्बैरेस्ड फील करता हूं।’’

''अरे रहने दो यार।’’-निरंजन ने उसका कंधा थपथपाया-''तुम भी किस बात को ले बैठे। छोड़ो इन सब बातों को। ड्रिंक का मजा लो।’’

निरंजन ने उसके लिए भी ड्रिंक का ऑर्डर किया।

तीनों ने थोड़ी देर यहां-वहां की बातें की, फिर प्रताप ने उनसे विदा ली।

अगले दिन ऋषभ स्टूडियो पहुंचा, उस वक्त उसका भाई विनीत स्टूडियो में मौजूद था।

उन दोनों की एक बहन भी थी, जिसकी शादी हो चुकी थी और वो अमरावती में रहती थी।

बार से लौटने के बाद रात में ऋषभ निरंजन के ही घर पर रूक गया था, जहां दोनों ने साथ-साथ एक फिल्म देखी थी।

''आज तू स्टूडियो पर बैठ ले’’-विनीत ने कहा-''मुझे थोड़ा जरूरी काम है।’’

विनीत उम्र में उससे साल भर ही बड़ा था इसलिए उनके बीच दोस्तों जैसा ही रिश्ता था।

ऋषभ ने उड़ती हुई नजर उस पर डाली और अंदर की ओर बढ़ते हुए कहा-''स्टूडियो बंद करके घर चले जाओ। वैसे भी यहां कौन-सी ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है।’’

''थोड़ा एक जगह टिकने की भी आदत डाल ले।’’-विनीत ने कहा-''पैरों में रॉकेट बांध कर घूमता रहता है सारा दिन।’’

ऋषभ ने कोई जवाब नहीं दिया। वो जानता था कि विनीत को उसका इस तरह घूमते-फिरते रहना पसंद नहीं था। वो अक्सर उसे कोई ऐसा काम करने की सलाह देता रहता था, जिसमें उसके बेलगाम घोड़े की तरह घूमते रहने पर लगाम लग सके।

इसीलिए अक्सर उसे स्टूडियो पर रोकने के बहाने ढूंढता रहता था।

लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता था कि ऋषभ स्टूडियो पर रूकता हो।

सिवाय एक दिन छोड़कर।

शुक्रवार।

शुक्रवार का दिन ऋषभ स्टूडियो पर ही बिताता था। अगर कोई एकदम ही जरूरी काम नहीं होता था तो सुबह स्टूडियो को खोलता भी वो ही था और शाम में बंद भी वो ही करता था।

विनीत भी एक हद तक इस बात से संतुष्ट रहता था कि हफ्ते में एक दिन ही सही, ऋषभ स्टूडियो की जिम्मेदारी लेता था।

वैसे इसके अलावा भी ऋषभ का जब मन होता था, वो स्टूडियो आता ही रहता था-आखिर उसका अपना स्टूडियो था-स्टूडियो में एक कमरा उसने अपने लिए स्पेशल बुक किया हुआ था, जो स्टूडियो के सबसे पिछले हिस्से में मौजूद था। पर्सनल रूम स्टूडियो के सबसे पिछले हिस्से में होने से उसे ये फायदा था कि स्टूडियो में किसी कस्टमर के आने पर भी उसे डिस्टर्बेंस नहंी होता था। वो अपना फोटोग्राफी से जुड़ा कोई भी काम बिना किसी व्यवधान के कर पाता था। डिस्टर्बेंस तो दूर की बात, उसे पता भी नहीं चलता था कि कौन आया, कौन गया? ऋषभ के रूम में एक दरवाजा स्टूडियो के अंदर की ओर और एक दरवाजा स्टूडियो की पिछली गली में भी खुलता था। इससे ऋषभ कई बार विनीत की जानकारी के बिना भी स्टूडियो में आकर चला जाता था।

उन्होंने वो दौर भी देखा था, जब फोटो स्टूडियो होना बेहद शान की बात लगता था और अब ये दौर भी देख रहे थे, जब सारा-सारा दिन दुकान पर मक्खी मारते हुए बिताना पड़ता था। दिन भर में गिनती के ही ग्राहक दुकान पर आते थे।

मोबाइल कैमरा के प्रचलन के बाद उनके ही नहीं, बल्कि बहुत से फोटो स्टूडियोज की यही हालत थी।

वैसे ऋषभ स्टूडियो में बहुत कम ही बैठता था। उसे फ्रीलांस फोटोग्राफी का काम करने में ही मजा आता था।

समय का कोई बंधन नहीं, एक जगह पर बैठे रहने की कोई बंदिश नहीं, बल्कि उल्टे नई-नई जगह पर घूमने को भी मिलता था।

अपने फोटोग्राफी के शौक को पूरा करने का मौका भी मिल जाता था।

कुछ कमियां भी थीं। जैसे आय को लेकर कोई निश्चितता नहीं थी। लेकिन इन सबके बाद भी ऋषभ को फ्री लांसिंग फोटोग्राफी का अपना काम काफी पसंद था।

तभी उसका मोबाइल बजा।

कॉल महेश जोशी की थी। वो एक स्थानीय अखबार न्यूज वन का एडीटर था। ऋषभ अक्सर उनके अखबार के लिए फोटोग्राफर के रूप में काम करता रहता था।

''हैलो ऋषभ’’-उधर से जोशी की आवाज सुनाई दी-''कहां हो?’’

''स्टूडियो में।’’-ऋषभ ने जवाब दिया।

''कल बार में किसके साथ सिर फुटौव्वल कर ली?’’

उसने गहरी सांस ली।

अखबार में काम करने वालों से कुछ छिपता है?

''सौरभ नाम का एक बंदा है। शायद आप भी जानते होंगें उसे।’’

''नहीं। फोटो देखी थी मैंने उसकी।’’

नहीं जानते।-ऋषभ ने मन ही मन सोचा-आपकी बेटी आजकल किसके साथ घूम रही है, आपको ये भी नहीं पता।

''मुझे लगा जानते होंगें।’’-प्रत्यक्षत: उसने कहा।

''तुम्हारा कैमरा भी टूट गया, सुना है।’’

''सही सुना है।’’

''अफसोस। तुमसे एक काम था। पर अब कैमरा ही टूट गया है तो शायद किसी और को बोलना पड़ेगा।’’

''क्या काम है? कैमरे तो स्टूडियो में और भी हैं। वैसे भी वो कैमरा टूटने के बाद मुझे नया कैमरा भी लेना ही होगा।’’

''ठीक है। दो बजे शिवालिक मॉल में एक कार्यक्रम है। उसकी कुछ बढिय़ा फोटो ला सको तो अच्छा रहेगा। हमारे यहां उस कार्यक्रम पर एक स्पेशल आर्टिकल प्रकाशित होने वाला है। फ्रंट पेज पर जाएगा। फोटो लेते समय ध्यान रखना।’’

''ठीक है। मैं चला जाऊंगा।’’

''गुड। शाम तक फोटोज मेल कर देना। या इधर से गुजरोगे तो ऑफिस पर ही छोड़ देना।’’

''ठीक है।’’

कॉल डिस्कनेक्ट हो गई।

ऋषभ अपने रूम को लॉक करके स्टूडियो के सामने वाले रूम में पहुंचा।

''इतनी जल्दी जा रहे हो?’’-विनीत ने पूछा।

''अपना क्रेडिट कार्ड दो’’-ऋषभ ने कहा।

''क्रेडिट कार्ड? वो किसलिए?’’

''नया कैमरा लेना है। बताया था न, मेरा कैमरा टूट गया कल बार में जो झगड़ा हुआ था उसमें।’’

''क्यों गुण्डागर्दी करते घूम रहे हो? 25 हजार का कैमरा तुड़वा लिया।’’

''जान-बूझकर थोड़े ही तुड़वाया है। न ही मारपीट जान-बूझकर की थी। सब बताया तो था तुम्हें।’’

क्रेडिट कार्ड ऋषभ के पास भी था लेकिन उसने दो महीने पहले ही घर के लिए 55 इंच का टीवी खरीदा था, जिसके चलते उसके में फिलहाल क्रेडिट लिमिट में यूज करने के लिए पैसा काम था।

''ठीक है। ठीक है।’’-विनीत ने भुनभुनाते हुए पर्स से क्रेडिट कार्ड निकालकर उसकी ओर बढ़ाया-''ऐसे मामलों में अपना सिर मत फंसाया करो। हो गया न नुकसान? इसमें 40 हजार तक की लिमिट ही बची है। ज्यादा महंगा कैमरा मत लेना।’’

''मोबाइल के कैमरे से ही फोटुएं खींचना शुरू कर दूं?’’

''वो भी ठीक रहेगा। मोबाइल से भी बुरी फोटो नहीं आती।’’

ऋषभ अपने बड़े भाई को एक उपाधि से विभूषित करते हुए स्टूडियो से बाहर निकल गया।






न्यूज वन के एडीटर महेश जोशी ने उन फोटो का जायजा लिया, जो उसे अभी-अभी ऋषभ ने लाकर दी थीं।

रात हो चुकी थी

वो फोटुएं ऋषभ ने अपने नए कैमरे से खींचीं थीं, जिसे उसने विनीत के क्रेडिट कार्ड से सुबह ही 25, 000 रूपए में खरीदा था।

कैमरा स्ट्रैप के सहारे इस वक्त भी उसके गले में पड़ा हुआ था।

''वाओ।’’-जोशी के मुंह से निकला-''वाओ।’’

''थैंक्स।’’-ऋषभ ने कहा।

''तुम जो फोटो लाकर देते हो’’-जोशी ने चश्मे के पीछे से उसकी ओर झांकते हुए कहा-''उन्हें देखकर मुझे समझ में आ जाता है कि मेरे बार-बार कहने पर भी तुम यहां जॉब करने के लिए राजी क्यों नहीं होते?’’

''क्यों नहीं होता?’’

''क्योंकि तुम एक बहुत अच्छे फोटोग्राफर हो। मुझे यकीन है एक दिन तुम अपने हुनर से धूम मचा दोगे। किसी नाइन टू फाइव जॉब से बंधे रहकर ऐसा नहीं होने वाला।’’

ऋषभ ने मुस्कुराते हुए सिर नवा दिया, जैसे उसकी तारीफ कबूल कर रहा हो।

''लेकिन आज ऐसा नहीं होने वाला।’’-जोशी ने कहा।

''कैसा नहीं होने वाला?’’

''मैं इन तस्वीरों से खुश तो हूं। लेकिन आज मैं तुम्हें जॉब ऑफर नहीं करने वाला।’’

''फिर? पैसे ज्यादा देंगें?’’

''उसके लिए तुम्हें कहने की जरूरत नहीं है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ और भी करना चाहता हूं।’’

''क्या?’’

''तुम बताओ।’’

''मैं?’’

''हां।’’

''मैं क्या बताऊं?’’

''जो भी। मैं इन तस्वीरों से बहुत खुश हूं। मेरा मन कर रहा है कि इनके बदले तुम्हें कुछ न कुछ तो और मिलना ही चाहिए।’’

ऋषभ ने खिड़की के शीशे के पार रूम में नजर डाली, जहां पलक की डेस्क खाली थी।

क्या एडीटर साहब सचमुच उन तस्वीरों से इतने खुश थे कि अपनी बेटी का हाथ उसके हाथों में दे देते?

नहीं।

शर्तिया नहीं।

पलक जोशी एडीटर महेश जोशी की बेटी थी, उसी अखबार में काम करती थी, एडीटिंग डिपार्टमेंट में ही काम करती थी और ऋषभ की बहुत अच्छी दोस्त भी थी। हालांकि ऋषभ उसे चाहता था। फिर भी बेँस्ट फ्रेंड के दायरे में सीमित रहने के लिए मजबूर था क्योंकि अब तक वो अपने दिल की बात पलक से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था।

और न ही उसे निकट भविष्य में ऐसा कर पाने के आसार लग रहे थे।

''कहां खो गए?’’

जोशी की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की।

''क्या? कहीं नहीं।’’-उसने संभलकर बैठते हुए कहा-''आप कह रहे थे इन तस्वीरों के लिए आप मुझे फीस के अलावा कुछ और भी देना चाहते हैं?’’

''हां। क्योंकि जॉब ऑफर तो तुम कबूल करते नहीं हो। वैसे देख रहा हूं कि तुम सोच नहीं पा रहे। कोई प्रॉब्लम नहीं है। ऐसी कोई आफत नहीं टूटी पड़ रही है, जो तुम्हें अभी तुरंत ही मांगना हो। तुम एक-दो दिन बाद भी आराम से सोचकर बता सकते हो कि तुम्हें क्या चाहिए?’’

''प्रेस कार्ड।’’

''प्रेस कार्ड?’’

''हां। मैं यहां जॉब तो नहीं कर सकता। क्योंकि-जैसा कि मैं पहले भी आपको कई बार बता चुका हूं-मुझे फ्री लांसर फोटोग्राफर के रूप में ही काम करना पसंद है। लेकिन फिर भी फ्री लांसर के तौर पर भी कई बार कुछ जगहों पर घुसने के लिए, कुछ लोगों से बात करने के लिए किसी अथॉरिटी लैटर टाइप की चीज की जरूरत पड़ती है। अगर आप मुझे कोई प्रैस कार्ड उपलब्ध करा सकें तो वो मेरे काफी काम आ सकता है।’’

''जब तुम यहां काम करोगे ही नहीं, तो मैं तुम्हारे नाम पर यहां का आई कार्ड कैसे ईशू करवा सकता हूं?’’

''परमानेंट वाला नहीं। अगर अस्थाई भी मिल जाए, तब भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है।’’

''ओह। फिर तो कोई दिक्कत नहीं है। कल किसी भी समय ऑफिस आकर कार्ड ले जाना।’’

''थैंक्स।’’

''इसकी कोई जरूरत नहीं। बल्कि इतने शानदार, मौके के फोटो लाने के लिए तुम्हें थैंक्स।’’

ऋषभ मुस्कुराया।

फिर उसने जोशी से इजाजत ली और वहां से चला गया।

ऋषभ अखबार के ऑफिस से निकलकर पार्किंग में खड़ी अपनी बाइक तक पहुंचा ही था कि उसका फोन बजने लगा।

कॉल पलक की थी।

''हैलो।’’-उसने कॉल रिसीव करते हुए कहा।

''ऋषभ कहां हो?’’-दूसरी ओर से पलक की आवाज सुनाई पड़ी।

एक पल के लिए ऋषभ को लगा, जैसे हवाओं में खुशबुएं फैल गई हों।

पलक के मुंह से अपना नाम सुनना।

ये एक ऐसा अहसास था, जिसे वो शब्दों में नहीं बयां कर सकता था।

''वहीं, जहां तुम्हें होना चाहिए था।’’-उसने कहा।

''पहेलियां मत बुझाओ। साफ-साफ बोलो।’’

''अखबार के ऑफिस में। अभी-अभी तुम्हारे पापा को फोटोज देकर आ रहा हूं।’’

''यानि हीरो बनकर आ रहे हो?’’

''हीरो तो उन्होंने बना दिया। मैं तो सिर्फ फोटोज देने गया था।’’

''सचमुच ऋषभ, तुममें फोटोग्राफी का कमाल का हुनर है। मैं तो कहती हूं तुमने फ्री लांस फोटोग्राफर के रूप में कैरियर चुनकर बहुत अच्छा किया। एक दिन तुम सचमुच बहुत ऊंचाई तक पहुंचोगे।’’

''बाप-बेटी दोनों सिर्फ झाड़ पर चढ़ाते रहते हैं। वरना हकीकत तो यही है कि मेरे जैसे न जाने कितने फोटोग्राफर गलियों की ठोकरें खाते रहते हैं।’’

''शटअप स्टूपिड। ज्यादा मॉडेस्ट बनने की कोशिश मत करो। अच्छा, अगर ऑफिस में ही हो तो लौटते समय सनशाइन अपार्टमेंट्स से होते हुए जाना।’’

''वहां क्या है?’’

''वहां मैं हूं। अपनी एक सहेली से मिलने आई हूं। बिल्डिंग की पार्किंग में मेरा इंतजार करना। और कॉल भी कर देना। मैं आ जाऊंगीं।’’

''ठीक है।’’

पलक ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।

ऋषभ सनशाइन अपार्टमेंट के सामने पहुंचा।

वो एक पांच मंजिला बिल्डिंग थी।

मुम्बई जैसे महानगर से सटे हुए पुणे में तो उससे भी ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों की भरमार थी। इसलिए उसे ज्यादा बड़ी बिल्डिंग तो नहीं कहा जा सकता था लेकिन उस इलाके में आसपास दो-तीन मंजिला मकान ही ज्यादा दिख रहे थे, जिसके चलते वो पांच मंजिला बिल्डिंग भी बडी लग रही थी।

जैसा कि पलक ने कहा था, ऋषभ बिल्डिंग के पिछले हिस्से में स्थित पार्किंग में पहुंचा और उसे कॉल करके अपने आ चुके होने के बारे में बताया।

"ओके। तुम वहीं रूकना। मैं बस अभी आई।"-दूसरी ओर से पलक ने कहा।

वो पार्किंग में ही खड़े रहकर पलक का इंतजार करने लगा।

रात की उस घड़ी पार्किंग में कोई नहीं था। बस कुछ गाडिय़ां खड़ी थीं, जो उस बिल्डिंग में रहने वालों की ही थीं।

ऋषभ ने समय बिताने के इरादे से कैमरा निकाल लिया।

वो जहां खड़ा था, वहां से बिल्डिंग का पिछला दरवाजा दिखाई दे रहा था, जो कि बंद था। पार्किंग की तरह ही बिल्डिंग का पिछला हिस्सा भी सुनसान था। वहां इंसान तो क्या, चिडिय़ा का बच्चा भी दिखाई नहीं दे रहा था।

तभी ऋषभ का ध्यान दरवाजे पर गया।

दरवाजा खुल रहा था। कोई बाहर आ रहा था।

बाहर निकल रहे शख्स पर नजर पड़ते ही ऋषभ हैरान हुए बिना नहीं रह सका।

वो सौरभ था।

सौरभ?

वो रात की उस घड़ी वहां क्या कर रहा था?

बिल्डिंग के पिछले दरवाजे के पास लगे शक्तिशाली बल्ब की रोशनी में ऋषभ की नजर उसके चेहरे पर पड़ी।

वो काफी बदहवास लग रहा था।

कैमरा ऋषभ के हाथ में ही था।

न जाने उस वक्त उसके दिमाग में क्या आया कि उसने कैमरा सौरभ की ओर किया और उसकी फोटो खींच ली।

वो दरवाजे से थोड़ी दूरी पर झाडिय़ों की ओर बढ़ा और उनके पीछे चला गया।

उसका इस तरह झाडिय़ों के पीछे जाना ऋषभ को और भी अजीब लगा।

लेकिन फिर अगले ही पल उसे समझ आ गया कि वो झाडिय़ों के पीछे क्या करने गया था।

झाडिय़ों के पीछे से बाइक स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी।

वो बाइक पर सवार होकर झाडिय़ों के पीछे से निकला तो ऋषभ ने उसकी एक और फोटो खींच ली।

फिर अगले ही पल उसकी बाइक हवा से बातें करते हुए वहां से गायब हो गई।

''इतनी रात को भी फोटोग्राफी?’’

पीछे से आवाज सुनकर ऋषभ चौंका।

उसने पलटकर देखा। पलक उसके पीछे खड़ी थी।

''फोटोग्राफी तो 24 घंटों का काम है।’’-उसने कहा-''भूल गईं? मैं फ्रीलांसर फोटोग्राफर हूं। नाइन टू फाइव वाली जॉब नहीं है मेरी। जहां अच्छी फोटो मिले, वहीं तुरंत फोटो खींच लेना ही मेरा काम है।’’

''यहां कौन-सी अच्छी फोटो मिल गई तुम्हें?’’-पलक ने बिल्डिंग के पिछले दरवाजे की ओर देखते हुए कहा।

''रात की इस घड़ी बिल्डिंग का वीरान पिछला हिस्सा। इस तरह के फोटो कलात्मक होते हैं। तुम नहीं समझोगीं।’’

''ठीक है पिकासो।’’-पलक ने कंधे उचकाते हुए कहा-''तुम्हारी आर्ट क्लास संपन्न हो चुकी हो तो बरायमेहरबानी मुझे घर छोड़ दो।’’

''क्यों नहीं?’’-ऋषभ ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा-''और मैं यहां आया किसलिए हूं?’’

वो उसके पीछे बैठ गई।

ऋषभ बाइक को पार्किंग से निकालकर सड़क तक लाया ही था कि अचानक पलक उसका कंधा थपथपाकर बोली-''रूको। रूको।’’

''अब क्या हुआ?’’-वो बाइक रोकते हुए बोला।

''मेरा ईयररिंग।’’

''तुम्हारा क्या?’’

''ईयररिंग। जो कान में पहनते हैं। लगता है पार्किंग में वहीं गिर गया, जहां हम खड़े थे।’'

''कमाल है। तुम ये सब भी पहनती हो?’’

''तुम्हें नहीं पता?’’

''तुमने कान में कुछ पहना है या नहीं, इस पर मेरा कभी ध्यान ही नहीं गया। तुम्हारे चेहरे से नजरें हटें, तब तो ईयररिंग वगैरह देखूं।’’

उसने हल्के से ऋषभ के कंधे पर घूंसा मारा।

''जरा सा मौका मिला नहीं कि फ्लर्ट करना शुरू।’’-वो बाइक की पिछली सीट से उतरते हुए बोली-''तुम यहीं रूको। मैं अभी ईयररिंग ढूंढकर लाती हूं।’’

''अरे कहां जा रही हो? मैं बाइक मोड़ता हूं न।’’

''इतने से काम के लिए बाइक मोडऩे की जरूरत नहीं है। मैं बस गई और आई।’’

''अरे वहां अंधेरे में कहां मिलेगी तुम्हारी ईयररिंग?’’

''मोबाइल की टॉर्च है न। नहीं मिली तो आ जाऊंगीं। पूरी रात एक ईयररिंग के लिए यहां काली नहीं करने वाली। सोने का नहीं था।’’

''तो जा ही क्यों रही हो?’’

''जोड़ी बिगड़ जाएगी। एक कोशिश तो बनती है।’’

कहती हुई वो पार्किंग की ओर चली गई।

''यहां मेरी जोड़ी बन नहीं रही’’-पीछे ऋषभ धीमे से बुदबुदाया-''इसे ईयररिंग की जोड़ी की पड़ी है।’’

वो उसकी बात मानकर वहीं बाइक पर उसका इंतजार करता रहा।

उसे सचमुच ज्यादा समय नहीं लगा।

''चलो।’’-कुछ ही देर में वो वापस आकर बाइक की पिछली सीट पर सवार होते हुए बोली।

अगले ही पल वे पलक के घर की ओर उड़े जा रहे थे।

अगर वे लोग थोड़ी देर भी और वहां रूकते तो उन्हें रूपाली की चीख सुनाई पड़ती।