आर. के. राजदान था। एक युवा बिजनेसमैन उसके छोटे भाई का नाम देवांश था। राजदान आज अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा के बूते पर 'राजदान ऐसोसियेट्स' नामक कंस्ट्रक्शन कम्पनी का मालिक था। देवांश से वह बेइंतिहां प्यार करता था।
राजदान की पत्नी का नाम था-दिव्या।
देवांश अगर राजदान की आंखों का तारा था तो दिव्या थी उन आंखों की ज्योति । देवर-भाभी के रूप में देवांश और दिव्या थी एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे।
आर. के. राजदान करीब बीस दिन बाद कनाडा से भारत लौट रहा था। दिव्या और देवांश 'राजदान ऐसोसिएट्स' के चुनिंदा स्टॉफ के साथ उसे रिसीव करने आये थे। वे सब विजिटर्स लॉबी में थे जबकि एयरपोर्ट के बाहर, कार पार्किंग में खिल रहा था एक गुल।
राजदान के ड्राइवर का नाम-केशोराज बन्दूकवाला था। उस वक्त वह अपने मालिक की सिल्वर कलर की चमचमाती मर्सडीज पर कूल्हा टिकाये सिगरेट के कश लगा रहा था। जब एक अत्यन्त खूबसूरत और सैक्सी लड़की लड़की ने उसे अपनी नग्नता के लपेटे में लपेटा । इतने झीने कपड़े पहन रखे थे उसने कि पट्टी का सब कुछ नुमाईया हो रहा था। छक्के तो केशोराज बन्दूक वाला के उसे देखते ही छूट गये थे परन्तु उस वक्त तो होश ही फाख्ता हो गये जब बन्दूकवाला के अत्यन्त नजदीक पहुंचकर उसने अपनी छातियां तान दीं। अपने वक्षस्थल की तरफ इशारा करके कहा-देख क्या रहा है? भींच इन्हें।
कौन मर्द का बच्चा होगा जो ऐसी अवस्था में होशो-ह -हवास न गंवा बैठेगा? वही हुआ बन्दूकवाला के साथ। जैसे ही उसने वह करना चाहा जो खुद लड़की ने कहा था, वैसे ही लड़की ने शेर मचा दिया, 'देखो, ये गुण्डा सरेआम एक लड़की की इज्जत पर हाथ डाल रहा है।" फिर क्या था?
चारों तरफ से लोग बन्दूकवाला पर झपट पड़े। ऐसी मार पड़ी कि छकड़ी भूल गया। जिसने उसकी करतूत के बारे में सुना वही अपने हाथों की खुजली मिटाने में जुट गया। एक पुलिस वाले को उधर आता देखते ही पारदर्शी कपड़ों वाली लड़की मर्सडीज के दूसरी तरफ सरकी। उसी वक्त-शक्ल में से गुण्डा नजर आने वाला एक लड़का मर्सडीज का दरवाजा खोलकर बाहर निकला। वह लड़की का साथी था। आंखों की आंखों में दोनों की बातें हुई। पता लगा-लड़की ने बन्दूकवाला को इसलिए खुद में उलझाया था ताकि उसका साथी आराम से मर्सडीज में टाइम बम फिट कर सके । बन्दूकवाला ठुकता रहा, वे दोनों अपना काम करके निकल गए।
उधर-दिव्या, दिवांश और 'राजदान एसोसिएट्स' के स्टाफ ने गर्मजोशी के साथ राजदान का स्वागत किया। देवांश तो बाकायदा पूरा बैण्ड और फूलमालाएं लेकर पहुंचा था वहां। वह चहक रहा था। दिव्या की आंखों में खुशी के आंसू थे, मगर राजदान में उन्हें देखकर वह गर्मजोशी नहीं थी जो होनी चाहिए थी। जाने क्यों, वह उदास-उदास और कुछ हद तक टूटा हुआ लग रहा था। दिव्या और देवांश ने कारण जानना चाहा। राजदान ने कुछ बताया नहीं बल्कि खुद को सामान्य दर्शाने की नाकाम कोशिश करने लगा। अंततः वे एयरपोर्ट से बाहर निकले। पार्किंग में पहुंचे। बन्दूकवाला की करतूत के बारे में पता लगा। उस बेचारे की इस बात पर राजदान सहित कोई विश्वास करने को तैयार नहीं था कि जो कुछ उसने किया वह करने के लिए खुद लड़की ने उकसाया था। बन्दूकवाला को पुलिस के हवाले कर दिया गया। देवांश ने सिल्वर कलकर की उस मर्सडीज की ड्राइविंग सीट संभाली जिसमें टाइम बम फिट किया गया था और राजदान दिव्या के साथ पिछली सीट पर बैठा। बाकी लोग देवांश को 'जेन' और स्टाफ कार में थे। ।
काफिला 'राजदान विला' की तरफ चल दिया।
रास्ते में राजदान ने दिव्या और देवांश से पूछा कि 'बबलू' उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट पर क्यों नहीं पहुंचा? दोनों का जवाब था-हमें नहीं मालूम । असल में बबलू का नाम बीच में आते ही उनका मूड ऑफ हो गया था। यह कहा जाये तो ज्यादा मुनासिब होगा, बबलू का नाम राजदान की जुबान पर आते ही अक्सर उनका ऑफ हो जाया करता था।
। बबलू एक गरीब लड़का था। उम्र करीब सोलह साल। उसके पिता टीचर थे। वह राजदान विला के ठीक सामने सड़क के उस पार बनी तीन मंजिला इमारत में, एक फ्लैट में रहता था। जाने कैसे, राजदान का बबलू में और बबलू का राजदान में प्यार पड़ गया था। बबलू के प्रति राजदान की यह चाहत दिव्या और देवांश को बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसके बारे में राजदान से बातें तक करना नहीं चाहते थे वे, अतः टॉपिक चेन्ज करने की गर्ज से कार ड्राइव करते देवांश ने राजदान से उसकी मायूसी और उखड़ेपन का कारण पूछा। जवाब में राजदान भड़क उठा जबकि यूं भड़क उठना उसके स्वभाव में नहीं था। इससे दिव्या और देवांश को पूरा यकीन हो गया राजदान कनाडा से कोई बड़ी उलझन दिमाग में लेकर आया है। दोनों उस उलझन को जानने के लिए बेचैन हो उठे। बहरहाल, प्यार तो वे भी राजदान को बेइंतिहा करते थे परन्तु तत्कालीन माहौल में कुछ पूछने की हिम्मत न जुटा सके। कार में तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया था। और शायद इस सन्नाटे के कारण ही 'टिक्-टिक्-टिक की आवाज देवांश के कान खड़े कर सकी। टिक्-टिक् की उसी आवाज का पीछा करते वे मर्सडीज में छुपे टाइम बम तक पहुंच गये और उसे उठाकर गाड़ी से बाहर फेंका ही गया था कि वह फट गया।' अर्थात । मरते-मरते बचे थे दिव्या, देवांश और राजदान।
यहां इन्टरड्यूज होता है-इंस्पैक्टर ठकरियाल । अदरक की गांठ जैसे शरीर का मालिक । बेहद काईयां और मुंहफट पुलिसिया। जो दिमाग में आये उसे फट से कह देने में जरा नहीं हिचकता। घटनास्थल पर पहुंचते ही उसने केशोराज बन्दूकवाला को भी तलब कर लिया। उसके मुंह से पार्किंग में घटी घटना की डिटेल सुनी। पहली बार बन्दूकवाला को यह महसूस करके राहत मिली कि अब लोग उसकी बात पर विश्वास कर रहे थे। ठकरियाल इसी नतीजे पर पहुंचा कि बन्दूकवाला को उलझाने की घटना मर्सडीज में बम रखने के लिए की गई थी परन्तु सबसे बड़ा सवाल था यह सब किया किसने? कौन था उनके खात्मे का तलबगार? क्यों मार डालना चाहता था उन्हें?
ये कुछ ऐसे सवाल थे जो हर दिमाग को मथ रहे थे। देवांश इस वारदात के जनक का पता लगाने के लिए पगलाया हुआ था। उसका ख्याल था-शायद राजदान का कोई बिजनेस प्रतिद्वन्द्वी उन्हें खत्म कर देना चाहता है। ठकरियाल को ही नहीं, दिव्या और देवांश को भी सबसे ज्यादा चक्कर में डाला था। राजदान के व्यवहार ने। एक उसके फेस पर वह खौफ था जो अभी-अभी मौत के मुंह से बचेख्सि के फेस पर होना चाहिए था। न ही यह जानने की उत्सुकता कि उसका क़त्ल आखिर कौन क्यों करना चाहता है? जब ठकरियाल ने यह कहा 'हमलावर अपना एक हमला नाकाम होने पर दूसरा-तीसरा हमला भी कर सकता है। तब, राजदान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा था-“अगर वह ऐसा करता है तो बड़ा दुर्भाग्यशाली होगा।' राजदान के इस अटपटे वाक्य का मतलब किसी की समझ में नहीं आया।
कोशिश के बावजूद कोई समझ नहीं पा रहा था। राजदान आखिर है किस मानसिक उलझन में? क्या समस्या लेकर आया है कनाडा से? उसके होठों पर पहली बार मुस्कान तब आई जब बबलू के फ्लैट में जाकर उससे मिला। बबलू को बुखार था। इसके बावजूद वह राजदान को रिसीव करने एयरपोर्ट जाना चाहता था। परन्तु उसके माता-पिता ने नहीं जाने दिया। यहां जब एकान्त में राजदान और बबलू की बातें हुई तो पता लगा-बबलू का इश्क उसके स्कूल में पढ़ने वाली एक हमउम्र लड़की से चल रहा है। राजदान से वह उसी लड़की के बारे में घुट-घुट बातें करता है। बड़ा ही मासूम प्यार था बबलू और उस लड़की के बीच । राजदान की कोशिश थी-उस प्यार को 'मासूम' ही बनाये रखना है। दरअसल, वह बच्चों को बहकने नहीं देना चाहता था।
उधर, विला में दिव्या और देवांश कुढ़ रहे थे। कुढ़न का कारण था-राजदान का बबलू के पास से अब तक न लौटना। उनका ख्याल था-बबलू के मां-बाप ने अपने बेटे को जानबूझ कर राजदान के पीछे लगा रखा है ताकि वक्त आने पर किसी बहाने से 'नावा-पत्ता' झटक सके।
दिव्या और देवांश के बीच इस बारे में बातें चल ही रही थी कि राजदान पहुंच गया। बोला-"तुम्हें आदमी की पहचान नहीं है। वे लोग वैसे नहीं है।" इस बारे में न दिव्या ने बहस की, न देवांश ने। हां, एक बार फिर देवांश ने राजदान की उदासी का कारण जरूर जानना चाहा। जवाब में राजदान पुनः भड़क उठा।
तब, दिव्या ने निश्चय किया-वह इस भेद तक रात के वक्त बैडरूम में पहुंचेगी।
उस रात दिव्या ने खुद को विशेष रूप से सजाया-संवारा। वे कपड़े पहने जो राजदान विशेष रूप से ऐसे ही किसी अवसर पर पहनने के लिए लाया था। गर्ज यह कि उसने वे सभी लटके-झटके इस्तेमाल किये जो एक पत्नी अपने पति को लुभाने के लिए कर सकती थी मगर राजदान विला के पिछले हिस्से में बने किचन लॉन की रोशनियों में खोया रहा। यह किचन लॉन खुद राजदान ही ने बनवाया था। अपने और दिव्या के लिए। दो हजार गज में फैले उस लॉन में कृत्रिम पहाड़ और झरने थे। पेड़-पौथे और झाड़ियां थीं ओर थे ऊंचे-ऊंचे फव्वारे। रात के वक्त जब वह रोशनियों से जगमगाता तो 'परिस्तान' जैसा लगता था।
बॉल्कनी में बैठा राजदान उस वक्त उसी का नजारा कर रहा था। जब दिव्या उसे अपने मादक स्पर्श से उत्तेजित करने का प्रयास करती बैडरूम में ले आई। जब तब भी राजदान उत्तेजित न हुआ तो दिव्या हैरान रह गई। बोली-“आखिर बात क्या है राज, बाहर से आकर तो खुद ही मुझ पर इस तरह झपट पड़ते थे जैसे कई दिन का भूखा थाली पर झपटता है मगर इस बार मैं खुद उत्तेजित करने की कोशिश कर रही हूं। तुममे करेंट ही मालूम नहीं पड़ता। दिमाग में ऐसी क्या प्रॉब्लम लेकर आये हो कनाडा से जो तुम्हारा ध्यान किसी ओर तरफ नहीं लगने दे रही? मुझे बताओ राज! मैं पत्नी हूं तुम्हारी। तुम्हारी हर प्रॉब्लम के बारे में जानने की हकदार।” और तब राजदान बुरी तरह उत्तेजित हो उठा। जेब से एक कागज निकालकर उसकी तरफ फेंकता हुआ चीखा-“जानना ही चाहती हो तो लो देखो इसे।ये है मेरी प्रॉब्लम।' कागज को पढ़ते ही दिव्या के हलक से चीख निकल गई-'नहीं! ऐसा नहीं हो सकता। तब राजदान ने बहुत ही गन्त स्वर में कहा था-'ऐसा हो चुका है।' तब दिव्या राजदान की तरफ इस तरह देखती रही गई थी जैसे अपने पति की तरफ नहीं बल्कि चिड़ियाघर से भागकर आये संसार के किसी विचित्र प्राणी की तरफ देख रही हो।
अगले दिन! इंस्पेक्टर ठकरियाल ने सुबह-सुबह राजदान, देवांश और दिव्या को बन्दूकवाला सहित थाने में तलब किया। कारणा था कम्मो और बुग्गा की गिरफ्तारी । बन्दूकवाला ने पुष्टि की कम्मो वही लड़की थी जिसने पार्किंग में उसकी 'छिताई' कराई थी और बुग्गा था उसका वह साथी जिसने मर्सडीज में टाइम बम फिट किया था। ठकरियाल ने काफी तत्परता के साथ उन दोनों को खोज निकाला था। उन्हें सामने देखते ही देवांश मारे गुस्से के मानो पागल हो उठा। वह यह जानना चाहता था उन्होंने उन्हें मारने की कोशिश क्यों की? पता लगा यह काम कम्मो और बुग्गा को मुनासिब फीस के साथ एक ऐसे नकाबपोश ने सौंपा था जो थोड़ा लंगड़ाकर चलता है। सवालों के जवाब में उन्होंने बताया-“वह नकाबपोश खुद 'सवाया होटल' स्थित हमारे कमरे में आया था।"
कम्मो-बुग्गा नकाबपोश के बारे में इससे ज्यादा जानकारी न दे सके। देवांश को था कि वे झूठ बोल रहे हैं। सच्चाई का पता लगाने के लिए उसने खुद सवाया होटल जाने का फैसला किया। हालांकि राजदान ऐसा नहीं चाहता था परन्तु देवांश पर हमलावर तक पहुंचने का जुनून सवार था। ।
उसके बाद देवांश नजर आता है-एक फाइव स्टार होटल के शानदार सुईट में। वह सिगरेट पी रहा है। शराब पी रहा है। साकी-एक सांवली परन्तु तीखे नाक-नक्श वाली बेहद आकर्षक और सैक्सी लड़की । देवांश उसे 'विनीता' कह रहा है। उनकी बातचीत से स्पष्ट होता है कि लंगड़ा नकाबपोश बनकर देवांश ही सवाया होटल गया था। उसी ने कम्मो और बुग्गा से सौदा किया था। वह टाइम बम दिया था जो बाद में उन्होंने मर्सडीज में रखा।
फिर देवांश खुद भी उसी मर्सडीज में क्यों बैठा? क्यों बम को फटने से 'ऐन' पहले उसने गाड़ी से बाहर फेंक दिया? इन सवालों के जवाब भी देवांश और कथित विनीता की बातचीत से ही मिलते हैं। दरअसल उनका उद्देश्य राजदान और दिव्या को दुनिया से उठा देना था ताकि उनके बाद सारी जायदाद देवांश की हो जाये परन्तु मर्सडीज में टाइम बम किसी की हत्या करने के लिए नहीं बल्कि ठीक वही ड्रामा प्लान्ट करने के लिए रखा गया था जो किया गया। और यह उपज थी देवांश के दिमाग की। वह जानता था। राजदान और दिव्या के मरते ही पुलिस सीधा शक उसी पर करेगी, क्योंकि उनके बाद जायदाद का वारिस वही है ड्रामा रचा ही इसलिए गया था ताकि बाद में तब, जबकि किसी अन्य तरीके से वास्तव में राजदान और दिव्या का मर्डर हो तो देवांश इन तर्को के साथ खुद को कटघरे के दायरे से दूर रख सके कि अगर उनकी हत्याओं के पीछे वह होता तो खुद उस गाड़ी में क्यों बैठता जिसमें बम था? क्यों खुद ही बम को फटने से पहले गाड़ी के बाहर फेंक देता?
अर्थात् गाड़ी में टाईम बम वाली घटना को देवांश ने केवल अपनी 'एलीबाई' तैयार करने के लिए अंजाम दिया था। असल मर्डर तो अब यानी आगे, किसी और तरीके से होना था। यहां मेरे पाठकों के दिमाग में यह सवाल कौंध सकता है कि जब देवांश अपने भैया और भाभी से इतना प्यार करता था तो वह जायदाद के लिए उनकी हत्या क्यों नहीं करनी चाहता था? जवाब है-शराब और शबाब।
ये दो चीजें अच्छे-भले आदमी को जहनी तौर पर अंधा बना देती हैं।
कठित विनीता ने देवांश को अपने शबाब का ऐसा जलवा दिखाया कि वह उन बातों को सच मान बैठा जिनको जानता था कि झूठ हैं। जैसे-विनीता ने कहा-'राजदान तुमसे वास्तविक प्यार नहीं करता, केवल दिखावा करता है। गौर करो-हर जायदाद या तो राजदान के नाम से खरीदी गई है या दिव्या के। अगर वे तुमसे प्यार करते तो क्या एक भी 'प्लॉट' तुम्हारे नाम से न खरीदते?'
किसी ओर ने, किसी और माहौल में यही बात कही होती तो मुमकिन है देवांश ने उसका मुंह थपेड़ दिया होता परन्तु कहने वाली हुस्न की मलिका थी। वह, जो उससे सच्चा प्यार करने का दम भरती थी। वह, जिसे अपनी बनाने के लिए देवांश मरा जा रहा था और वह, जिसने कहा था-'मैं किसी फक्कड़ से नहीं, अरबपति से शादी कर सकती हूं। और अरबपति तुम तब हो सकते हो जब राजदान और दिव्या इस दुनिया में न रहे।' इस तरह-कथित विनीता के चंगुल में फंसा देवांश अपने भैया व भाभी का मर्डर करने के लिए तैयार था।
अब जरूरत थी एक योजना की! उस काम में उनकी मदद 'विषकन्या' नामक एक किताब ने की। असल में यह किताब विनीता ही अपने साथ लाई थी। किताब में एक ऐसी विषकन्या का जिक्र था जिसने अपने उरोजो के निप्पल पर घातक जहर का लेप किया और तिगड़म से उस राजा के बैडरूम में पहुंच गई जिसकी हत्या करनी चाहती थी। वह पहले से ही जानती थी राजा विलासी है। सब कुछ बहुत आसान था। सहवास से पूर्व और सहवास के दरम्यान कामतुर राजा ने स्वाभाविक रूप से उसके निप्पल चूस के ओर सहवास पूर्ण करने से पूर्व ही खुदा को प्यारा हो गया। उसका निर्जीव शरीर विषकन्या के ऊपर पड़ा रह गया था।
देवांश ने किताब में तरकीब पढ़ने के बाद कहा-'तरकीब तो वाकई लाजवाब है मगर 'भैया' पर कारगर नहीं होगी। वे विलासी नहीं है। 'भाभी' के अलावा किसी की तरफ देख तक नहीं सकते। तब विनीता ने कहा-'जहर दिव्या के ही निप्पल पर लगाया जायेगा।वह काम तुम्हें इस तरह करना होगा कि खुद दिव्या न जान सके तुम कब उसके निप्पल पर जहर लगा गये? इस तरह-विनीता उसे समझाने लगी कि किस तरह राजदान की हत्या करके न केवल दिव्या को उसमें फंसाया जा सकता है बल्कि यह भी साबित किया जा सकता है कि राजदान एसोसिएट्स का चीफ एकाउन्टेंट उसका आशिक है और यह काम उसने उसी के साथ मिलकर किया है। देवांश प्लान से सहमत था मगर यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि दिव्या की नॉलिज में लाये बगैर वह उसके निप्पल पर जहर कैसे लगा सकेगा? विनीता उस वक्त उसे अपने शबाब के सागर में डुबोने का प्रयत्न कर रही थी जब अचानक इंस्पेक्टर ठकरियाल वहां पहुंच गया।'
उसे वहां देखकर जहां विनीता और देवांश के होश फाख्ता हो गय वहीं, ठकरियाल के तो उन दोनों की जुगलबंदी माना हलक में अटककर रह गई। उसने देवांश को थाने ले जाकर एकान्त में समझाया भी। कहा-'मैं अच्छी तरह जानता हूं। विनीता का असली नाम विचित्रा है। वह एक तवायफ की बेटी है। अगर तुम उसके मोहपोश में पड़े रहे तो निश्चित रूप से किसी बखेड़े में फंस जाओगे।' मगर, सिर पर जब इश्क का भूत सवार हो तो 'मरीज' की समझ में कुछ नहीं आता। और तब तक तो देवांश न केवल विचित्रा के जिस्म का स्वाद चख चुका था बल्कि दिव्या के निप्पल पर जहर लगाने की तरकीब भी सोच चुका था।
वह घर पहुंचा। उस वक्त वहां बबलू और भट्टाचार्य भी थे। भट्टाचार्य राजदान के बचपन का दोस्त भी था ओर डाक्टर भी। राजदान को हल्का सा बुखार था। कुछ देर बाद वह दवा के असर से सो गया। भट्टाचार्य और बबलू अपने-अपने घर चले गये। देवांश अपने कमरे में था। नींद नहीं आ रही थी उसे । दिमाग में लगातार वह 'प्लान' घूम रहा था जिसके तहत दिव्या के निप्पल पर जहर लगाना था। हालात का जायजा लेने रात के करीब दो बजे चारो की मानिन्द दबे पांव कमरे से निकला। 'की-हॉल' के जरिए राजदान के कमरे में झांका ओर दिव्या को बैड से गायब पाकर हैरान रह गया। राजदान वहां अकेला सोया पड़ा था। देवांश के दिमाग में सवाल कौंधा-रात के इस वक्त, अपने पति को यूं सोता छोड़कर दिव्या आखिर गई कहां है? कहीं सचमुच ही तो कोई आशिक नहीं पाल रखा है उसने? देवांश को 'विला' के एक हट्टे-कट्टे नौकर आफताब के साथ दिव्या के संबंधो का शक हुआ। परन्तु उसके सभी कयास उस वक्त धरे रह गये जब दिव्या को खोजता किचन लॉन में पहुंचा और ठण्डे पानी के एक झरने के नीचे नहा रही दिव्या को देखा । ऐसा दृश्य था वह जिसने देवांश के होश उड़ा दिये। जिस दिव्या को उस दिन से पहले देवांश ने सचमुच हमेशा उस नजर से देखा था जिससे 'मां' को देखा जाता है, वही दिव्या-उस रात उसे 'अप्सरा' सी नजर आई। तीन कारण थे उसके। पहला-विचित्रा ने उसे औरत के जिस्म को किसी और नजरिए से देखने का चस्का डाल दिया था। दूसरा-विचित्रा की बातों के बाद उसकी नजर में दिव्या की इज्जत 'मां' वाली रह ही नहीं गई थी और तीसरा कारण था-सामने मौजूद, दिव्या का लगभग नग्न जिस्म । जिस्म पर मौजूद एकमात्र सफेद साड़ी झरने के पानी में गीली होने के कारण जिस्म से इस कदर चिपक गई थी कि सब कुछे सब कुछ नुमाईया हो रहा था।
बहके हुए युवा देवांश का जी तो जाने क्या-क्या चाहा परन्तु अपनी भावनाएं खुलकर दिव्या के समझ व्यक्त करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता था। अतः चुपचाप वहां से खिसक लिया। उस घटना के बाद दिव्या के प्रति देवांश का नजरिया पूरी तरह बदल चुका था।
अगले दिन, तब जबकि राजदान ऑफिस जा चुका था। दिव्या शॉपिंग हेतु बाजार गई थी। देवांश उनके कमरे में पहुंचा। उसे दिव्या के उस खास पैन की तलाश थी जो सोने का बना था। जिसमें डायमण्ड्स जड़े थे। लाखों की कीमत का वह पैन दिव्या को राजदान ने भेंट किया था। देवांश और विचित्रा का प्लान था उस खास-पैन से 'विषकन्या' नामक किताब की उन पंक्तियों को अण्डरलाईन करना जिनमें हत्या का यह विवरण था जिस तरीके से राजदान की हत्या होनी थी। उनके प्लान के मुताबिक वह किताब हत्या के बाद 'समरपाल' के घर से बरामद होनी थी जिससे यह साबित हो जाता कि समरपाल दिव्या का आशिक है और उन दोनों ने मिलकर किताब में लिखे गये प्लान के मुताबिक राजदान की ईहलीला समाप्त की है। पैन की तलाश में जिस वक्त वह दिव्या की संपूर्ण ज्वैलरी बैड पर फैलाये हुए था उसी वक्त इत्तफाक से आफताब वहां घुस आया और इस घटना ने देवांश को इस कदर डरा दिया कि इस तरीके से राजदान का मर्डर करने का ख्याल ही उसके दिमाग से निकल गया। उसे लगा-अगर उसने यह मर्डर इस ढंग से किया तो बाद में आफताब का बयान उसे फंसा देगा। तभी, मोबाइल पर उसकी बात विचित्रा से हुई। विचित्रा ने समझाया कि वह बेवजह डर रहा है। बात पुनः देवांश की समझ में आ गई। अपने पूर्व प्लान पर आगे बढ़ गया वह । दिव्या का पैन तलाश किया। खास पंक्तियां अण्डरलाइन की और किताब को समरपाल के घर में छुपा भी आया। अब बाकी था-जहर दिव्या के निप्पल पर पहुंचाना। वह जहर जो उसने एक सपेरे से हासिल किया था।
रात नौ बजे के आसपास दिव्या को नहाने की आदत थी। देवांश दिन ही में बाथरूम की उस खिड़की की चटकनी अंदर की तरफ से गिरा आया था जो 'फ्रन्ट लॉन' की तरफ खुलती थी।अपने प्लान के मुताबिक उसी खिड़की के जरिए वह पौने नौ बजे बाथरूम में दाखिल हुआ तथा ड्रेसिंग में उस अलमारी के अंदर छुपकर खड़ा हो गया, जिसमें राजदान के कपड़े थे। दिव्या ड्रेसिंग में आई। अपनी अलमारी से वे कपड़े निकालकर ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे जो स्नान के बाद उसे पहनने थे। एक ब्रा, अण्डरवियर, झीना गाऊन और कोट। उन्हें निकालने के बाद स्नान हेतु वह बाथरूम में चली गई। बाथरूम और ड्रेसिंग के बीच अपारदर्शी कांच का एक दरवाजा था। देवांश छुपे स्थान से निकला। जहर की बूंदै ब्रा की कटोरियों पर ठीक वहां टपकाई जहां पहनी जाने के बाद दिव्या के निप्पल को शरण लेनी थी। तो यह था देवांश और विचित्रा का प्लान।
इस ढंग से जहर पहुंचाया गया दिव्या के निप्पल पर।
काम इतना आसान था कि बगैर किसी विघ्न-बाधा के करने के बाद वह पुनः अलमारी में आ छुपा। अब बस-उसे करना यह था कि जैसे ही स्नान के बाद दिव्या ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर जाये, वह भी जिस खामोशी के साथ खिड़की के जरिए अंदर आया है, उसी खामोशी के साथ बाहर चला । परन्तु हमेशा वैसा होता कहां है जैसा आदमी ने सोचा होता है। अलमारी में छुपे देवांश की सांसे उस वक्त ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई जब कांच का दरवाजा खुला और दिव्या ने बाथरूम से ड्रेसिंग में कदम रखा। उफ्फ! पूरी तरह नग्न थी वह । कपड़े का एक रेशा भी तो नहीं था जिस्म पर! और होता भी क्यों? बहरहाल, एक औरत उस वक्त अपने नितांत प्राइवेट बाथरूम में थी। किसी अन्य के वहां होने की कल्पना भी कैसे कर सकती थी वह । कैसे जान सकती थी अलमारी के किवाड़ों के बीच बनी झिरी से उसे कोई देख रहा है? उसने स्वच्छन्द और उन्मुक्त भाव से अपने गीले बालों को झटका। संगेमरमरी जिस्म पर सिर्फ और सिर्फ पानी की बूंदे झिलमिला रही थी। देवांश पागल हो उठा। इस कदर कि जब वह ड्रेसिंग टेबल की तरह बढ़ी और झिरी से नजर आना बंद हो गई तो झिरी चौड़ी कर ली उसने। वह उस जिस्म को देखते रहने का उन्माद ही था जिसके तहत देवांश झिरी को इस कदर चौड़ी कर बैठा कि दिव्या को उसकी वहां मौजूदगी का अहसास हो गया और एहसास ही क्यों-दिव्या ने रंगे हाथ पकड़ ही जो लिया देवांश को। जहां दिव्या उसे वहां देखकर हतप्रभ रह गयी वहीं, देवांश के तो मानो होश ही उड़ गये। वासना का सारा नशा काफूर हो गया। दिव्या के कदमों में गिर पड़ा वह। रो पड़ा गिड़गिड़ाया-'गलती हो गई मुझसे । मेरी इस हरकत का जिक्र भैया से मत करना।' दिव्या इस कदर हैरान थी कि काफी देर तो कुछ समझ ही न सकी। होश आया तो उसने गुर्राकर देवांश को चुपचाप उसी रास्ते से चले जाने के लिए कहा जिससे आया था चुपचाप उसी रास्ते से चले जाने के लिए कहा जिससे आया था और देवांश यूँ भागा जैसे सिंहनी के पंजे से हिरन निकलकर भागा हो। बौखलाया हुआ उस वक्त वह शहर की सुनसान पड़ी सड़कों पर कार दौड़ाये फिर रहा था। जब दिमाग ने कहा-“इन हालात में अगर राजदान दिव्या के निप्पल चूसकर मर गया तो दुनिया की कोई ताकत उसे फांसी के फंदे से नहीं बचा सकेगी। कल-जब राजदान की लाश के नजदीक खड़ा ठकरियाल यह घोषणा करेगा, यह हत्या दिव्या के निप्पल पर लगे जहर से हुई है तो वह दिव्या जो इस वक्त यह समझ रही है कि देवांश ड्रेसिंग में 'नीयत खराब' होने की वजह से था वह समझ जायेगी कि उसकी यहां मौजूदगी का असल कारण ‘नीयत खराब' होना नहीं बल्कि 'यह' था-यह कि उसी ने जहर उसके निप्पल तक पहुंचाया और जब वह ये बयान ठकरियाल को देगी तो ठकरियाल को उसे हथकड़ी पहनाने में एक सेकण्ड नहीं लगेगा।
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👍👍👍👍👍 Good......👍
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