सुकन्या ने भी चैन की मील लम्बी सांस ली।


फिर वो अधूरा काम पूरा करने में जुट गए ।


"मुझे एक बात सूझी है ।" - एकाएक सुकन्या बोली


"क्या ?"


"हम बलसारा को छका सकते हैं । "


“कैसे ?”


"एम्बुलैंस अब खाली है। हम उसमें सवार होकर उसे नीचे ले जा सकते हैं और उसे पार्किंग के गेट से बाहर खड़ा करके किसी बहाने वापस लौट सकते हैं । बलसारा को खबर नहीं है कि एम्बुलेंस में से माल उतारा जा चुका है। लावारिस एम्बुलैंस को अपने सामने खड़ी पाकर वो उसे माल पर झपट्टा मारने का सुनहरा मौका समझेगा । वो एम्बुलेंस के साथ भाग खड़ा होगा। फिर पुलिस उसके पीछे पड़ेगी और हम बड़े इत्मीनान से जहां चाहेंगे, जा सकेंगे । "


जीतसिंह ने इन्कार में सिर हिलाया ।


"क्यों ? क्या खराबी है ?"


"वो एम्बुलैंस ले के नहीं भागेगा । खतरे का अहसास उसे भी कम नहीं होगा। ऐसे में अकेले पंगा लेने की उसकी मजाल नहीं हो सकती ।"


"हूं।"


"दूसरे, उसको हमारी जरूरत हो न हो, हमें उसकी बहुत जरूरत है। माल को रोकड़े में तब्दील करने का सामान बिलथरे ही कर सकता था। उसकी गैरहाजिरी में वो काम अब बलसारा कर सकता है ।"


"कैसे मालूम ?"


"वो कहता है वो कर सकता है ।"


"उस दगाबाज का, उस कातिल का, क्या एतबार ?"


“फिलहाल उसका एतबार करना हमारी मजबूरी है ।” 


"वो धोखा देगा ।”


"हम खबरदार रहेंगे। धोखा वही खाता है जिसे धोखे का इमकान नहीं होता । खबरदार को धोखा देना मुश्किल होता है।"


 "तुम उसे संभाल लोगे ?"


"सवाल कर रही हो ?"


"नहीं । मुझे यकीन है तुम उसे संभाल लोगे ।”


"हूं।"


फिर जीतसिंह ने एम्बुलैंस में से मैटाडोर वैन की असली नम्बर प्लेट्स निकाली और उन्हें सूमो की नम्बर प्लेट्स हटा कर उनकी जगह लगा दिया ।


"कागजात भी निकाल ले।" - वो बोला- "और सूमो में बैठ | मैं नीचे हो के आता हूं।"


सुकन्या ने सहमति में सिर हिलाया । ।


जीतसिंह सीढ़ियों के रास्ते नीचे अटेंडेंट के केबिन पर पहुंचा । उसने वहां भीतर मौजूद बलसारा को बाहर बुलाया ।


"सब सैट हो गया है ।" - वो दबे स्वर में बोला - " अब थोड़ी देर के लिए राजे का पयूज उड़ाओ और उसकी जगह बैठो।"


"क्या सैट हो गया है ?"


"अभी दिखाई दे जाएगा।”


"ठीक है ।"


"लड़के ने बहुत बढ़िया काम किया है। हम उसे कोई इनाम नहीं दे सकते तो सजा भी नहीं देनी चाहिए।"


"क्या मतलब ?"


"उसका पयूज ही उड़ाना । मार ही न डालना ।”


"नहीं, यार । मैं क्या कोई...'


"मुझे मालूम है तू क्या कोई ।"


उसने आहत भाव से जीतसिंह की तरफ देखा, लेकिन मुंह से कुछ न बोला ।


जीतसिंह वापस ऊपर लौटा ।


सुकन्या उसे सूमो की पैसेंजर सीट पर बैठी मिली ।


वो ड्राइविंग सीट पर सवार हुआ, उसने फिर से इग्नीशन शार्ट करके इंजन चालू किया और उसे वहां से निकाला ।


वो केबिन पर पहुंचे तो बलसारा वहां से बाहर निकला । उसने सुकन्या की ओर का दरवाजा खोलकर उसके साथ बैठने की कोशिश की तो जीतसिंह तीखे स्वर में बोला - "पीछे।”


बलसारा हड़बड़ाया ।


"पीछे जगह कहां है ?" - वो बोला ।


" बना । नहीं बनती तो दो चार सूटकेस आगे पकड़ा दे।"


भुनभुनाते हुए बलसारा ने आदेश का पालन किया । जीतसिंह ने गाड़ी को आगे बढाया । "गाड़ी बदलने का आइडिया बढिया लगा मेरे को ।”


बलसारा यूं बोला जैसे मस्का मार रहा हो ।


जीतसिंह ने उत्तर न दिया । उसने खामोशी से सूमो को सड़क पर एक तरफ दौड़ाया ।


तब पौ फटने लगी थी और सड़क पर आवाजाही शुरू हो चुकी थी ।


"हम कहां जा रहे हैं ?" - बलसारा फिर बोला ।


"मालूम नहीं।" - जीतसिंह बोला- "सुकन्या बताएगी ।"


सुकन्या ने सकपकाकर सिर उठाया ।


"हमें ऐसी जगह चाहिए जहां कुछ अरसा छुपकर रहा जा सके । जहां ये गाड़ी भी छुपा के रखी जा सके । छुपा के न रखी जा सके तो जगह कम से कम ऐसी जरूर हो जहां कि इस गाड़ी की मौजूदगी आम बात लगे, जहां कि किसी की इस गाड़ी की तरफ कोई खास तवज्जो न जाए | तुम इस शहर से वाकिफ हो । तुम जरूर ऐसी कोई जगह सुझा सकती हो ।”


वो सोचने लगी ।


“जगह ऐसी होनी चाहिए जिसका मालिक दो तीन दिन उन जगहों पर दिखाई न दे जहां कि वो अक्सर देखा जाता हो तो किसी को ये बात खटके नहीं।"


"तुम उसे मार ही तो नहीं डालोगे ?"


" ऐसा कुछ नहीं होगा।" - बलसारा बोला ।


"मैंने तुम्हारे से सवाल नहीं किया ।”


"तुम खामखाह नाराज हो रही हो । बिलथरे अगर पहले रिवॉल्वर न निकालता तो..."


"शटअप ।"


"लेकिन..."


"इसे" - वो जीतसिंह से बोली- "उस जिक्र से रोको । प्लीज । "


"बलसारा, चुप बैठ ।”


बलसारा ने होंठ भींच लिए ।


"मेरी एक वाकिफकार है।" - फिर सुकन्या बोली " संगीता नाम है । शादीशुदा है लेकिन घरवाले से अलग हो चुकी और कोई बच्चा नहीं है । तलाक का केस कोर्ट में है लेकिन सिन्धी कालोनी में अभी से अकेली रहती है । " -


"हम वहां रह सकेंगे ?" - जीतसिंह बोला ।


"उम्मीद तो पूरी पूरी है। बाकी जा के पता चलेगा ।" "रास्ता बोलो ।”


सुकन्या बोलने लगी।


उसके निर्देश पर जीतसिंह खामोशी से गाड़ी चलाता रहा । 


*****

रविवार : चौदह दिसम्बर


कितनी ही देर कालबैल बजाने और दरवाजा खटखटाने के बाद भीतर दरवाजे की ओर बढ़ते कदमों की आहट हुई। दरवाजा खुला और गाउन पहने एक महिला ने, जोकि साफ साफ सोते से जगाई गई मालूम होती थी, दरवाजा खोला ।


"हद है !" - वो भुनभुना रही थी - "छुट्टी वाले दिन भी चैन नहीं ।”


फिर उसने आंखें मिचमिचाकर सामने देखा तो जीतसिंह की सूरत से पहले उसकी निगाह उसके हाथ में थमी रिवॉल्वर पर पड़ी । तत्काल उसके हवास चौकस हुए और उसने बड़ी फुर्ती से दरवाजा वापस बन्द कर लेने की कोशिश की ।


जीतसिंह ने पांव की इतनी जोर की ठोकर दरवाजे पर जमाई कि दरवाज महिला के हाथ से छूट गया ।


उसने तत्काल भीतर कदम डाला ।


बलसारा ऐन उसके पीछे था ।


“आवाज न निकले।" - जीतसिंह डपटकर बोला ।


"क्या है ?" - वो भयभीत भाव से बोली ।


"कुछ नहीं है । अभी सिर्फ सात बजे हैं । फिर सो जाओ।"


"सो जाऊं ?"


"हां"


" और तुम लोग ?"


"हम इधर ही हैं । "


"क्यों भला ? ये मेरा घर है । "


“जिन्दा रहोगी तो आगे भी तुम्हारा ही रहेगा ।"


"क्या चाहते हो ?"


“कुछ अरसा यहां रुकना चाहते हैं। वजह पूछ सकती हो, लेकिन जवाब नहीं मिलेगा। तुम कोई पंगा नहीं लोगी तो विश्वास करो, हम भी कोई पंगा नहीं लेंगे ।"


"लेकिन ये जबरदस्ती...' "


" तुम्हें बर्दाश्त करनी पड़ेगी । जिन्दा रहने के लिए "


"कमाल है ! इतनी दीदादिलेरी !”


"बैडरूम में पहुंचो । नींद पूरी करो ।"


"तुम लोगों को रणवीर ने तो नहीं भेजा ?"


"रणवीर कौन ?"


"रणवीर आमरे । मेरा पति । जिससे मैं तलाक लेने की कोशिश कर रही हूं । उसने मुझे डराने धमकाने के लिये अब मवाली तो नहीं मेरे पीछे लगा दिये ! तुम लोग कहीं....


जीतसिंह ने आगे बढकर उसकी बांह थामी तो वो खामोश हो गई । उसने उसकी बांह तनिक मरोड़ी तो उसके मुंह से कराह निकल गई ।


"बैडरूम कहां है ?”


उसने एक छोटे से गलियारे के एक अधखुले दरवाजे की तरफ इशारा किया ।


जीतसिंह ने उसे उधर धकेल कर चलाना शुरू किया ।


बलसारा उसके पीछे हो लिया ।


सुकन्या नीचे गाड़ी में मौजूद थी। उसको नीचे इसलिए छोड़ा गया था ताकि फ्लैट की मालकिन उसकी सूरत न देख पाती और ये न समझ पाती कि वो ही वजह थी उन दोनों के वहां जबरन घुस आने की । सुकन्या उसकी वाकिफकार जो थी ।


जीतसिंह ने बैडरूम में पहुंचकर उसे पलंग पर धकेल दिया और नम्र स्वर में बोला- "संगीता नाम है न तुम्हारा ?"


" नाम भी जानते हो ?" - महिला विस्फारित नेत्रों से उसकी तरफ देखती हुई बोली ।


"तुम्हें थोड़ी-सी तकलीफ जरूर होगी लेकिन किसी तरह का जान माल का कोई नुकसान तुम्हारा नहीं होगा ।"


"त... तकलीफ ? कैसी तकलीफ ?"


"लेटो ।”


"क... क्या ?"


"मुंह के बल । "


" मुंह के बल ! क्या करोगे ?"


“बोला न, कोई नुकसान नहीं होगा ।"


"तुम बलात्कारी हो ?"


"नहीं । होते तो मुंह के बल लेटने को कहते ?”


"तुम निम्न कोटि के बलात्कारी हो ।”


"अब बक बक बन्द भी कर ।" - जीतसिंह उखड़कर बड़े हिंसक भाव से बोला ।


संगीता ने तत्काल आदेश का पालन किया ।


बलसारा कमरे में रस्सी तलाश करने लगा । रस्सी न मिली तो उसने पर्दे की नीचे को लटकती डोरियां काट लीं । फिर वो उनसे संगीता के हाथ-पांव बांधने लगा ।


"पुलिस हमारे पीछे है।" - जीतसिंह ने उसकी जिज्ञासा शान्त करने की खातिर कहा- "उनसे बचने के लिए हमें यहां पनाह चाहिए। दो तीन दिन में हमारी तलाश ठंडी पड़ जाएगी तो हम चुपचाप यहां से चले जाएंगे। हमारी मौजूदगी से तुम्हें कतई कोई तकलीफ नहीं होगी। वादा करते हैं । ठीक ?"


संगीता का सिर सहमति में हिला ।


बलसारा हाथ पांव बांध चुका तो उसने गले में बांधे जाने वाले एक रूमाल को उसके मुंह पर यूं बांध दिया कि वो मुंह से आवाज न निकाल पाती ।


आखिर में उसने बैडरूम की बत्ती बुझाई, फिर वो दोनों वहां से बाहर निकल आए। जीतसिंह ने बैडरूम को बाहर से कुंडी लगा दी ।


"सुकन्या को बुला लो।" - वो बोला ।


सहमति में सिर हिलाता बलसारा वहां से चला गया ।


दो मिनट बाद सुकन्या भी फ्लैट में थी । आते ही वो सोफे पर ढेर हो गई ।


जोकि स्वाभाविक था ।


आखिर सारी रात आंखों में गुजारी थी ।


बलसारा किचन में घुस गया जहां कि वो चाय बनाने लगा और डबलरोटी को मक्खन लगाने लगा ।


"बहुत भूख लगी थी, यार ।" - चाय बनने के इन्तजार में डबलरोटी चबाता वो बोला ।


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


थोड़ी देर बाद चाय और मटर टोस्ट्स की ट्रे के साथ वो ड्राइंगरूम में लौटे तो उन्होंने पाया कि सुकन्या दीन दुनिया से बेखबर सोई पड़ी थी ।


दोनों उससे परे बैठकर नाश्ता करने लगे ।


“अब क्या कहता है ?" - एकाएक जीतसिंह बोला ।


"किस बारे में ?" - बलसारा सकपकाया ।


"माल को रोकड़े में तब्दील करने के बारे में ?"


"वो हो जाएगा ।" - बलसारा लापरवाही से बोला “वक्त आने दो ।”


"कैसे हो जाएगा ?”


"वैसे ही जैसे ऐसे काम होते हैं। फैंस के जरिए । वो माल लेगा, रोकड़ा देगा ।"


"फैंस कौन है ?"


" है कोई ।"


"नाम पता बोल ।”


"क्यों उल्लू बना रहे हो, भाई ? वो नाम-पता ही तो मुझे जिन्दा रखे हुए है । फैंस का नाम पता जान चुकने के बाद तो मेरी लाश का पता नहीं लगने दोगे ।"


"किसी पर एतबार करना नहीं सीखा ?"


"तुम सीखे हो ? "


"मैं तो सीखा हूं।"


हो जाएगा ।” "तो खातिर जमा रखो, वक्त आने पर सब काम आप


"तुम्हें तुम्हारा हिस्सा देने में मुझे क्या वान्दा है ?"


" होना तो नहीं चाहिए कोई वान्दा ।"


"तो फिर मैं क्या हिस्सा बचाने के लिए तुम्हारा कत्ल करूंगा ? जो मर गए, वो क्या मेरे सगे वाले थे ? अब तो उल्टा मेरा हिस्सा बढ़ गया है। अब तो हिस्सा बांटने वाले हम तीन ही बाकी हैं । "


"ठीक ।"


"तो फिर फैंस का नाम बताने में क्या वान्दा है ?"


" है वान्दा । वही वान्दा है जो बोला ।"


"लेकिन..."


" ऐसे ही चलने दो, बाप, जैसे कि चल रहा है । "


"ठीक है। ऐसे ही सही ।"


कुछ क्षण खामोशी रही ।


"हमें किराए की एक डिलीवरी वैन हासिल करनी होगी।" - फिर एकाएक जीतसिंह बोला ।


"डिलीवरी वैन ?" - बलसारा ने दोहराया - "किराए की ?"


"हां । जो थोड़ा बहुत रैस्ट - वैस्ट करना है, कर ले और फिर उसकी तलाश में निकल । "


"मैं क्यों ?"


“इसलिए क्योंकि सब बखेड़ा तेरा ही खड़ा किया हुआ है।" 


"वैन के पीछे इसलिए तो नहीं भगा रहे हो ताकि तुम पीछे माल के साथ रह जाओ।"


"क्या करूंगा पीछे माल का मैं ? जेब में रख लूंगा ?"


वो खामोश रहा ।


"माल यहां से कहीं नहीं जाने का । इसीलिए हम यहां आए हैं, क्योंकि ये जगह माल के लिए और हमारे लिए, दोनों के लिए सेफ है । माल कहीं निकाल ले जाना मुमकिन होता तो यहां आने की क्या जरूरत थी ?"


"हूं।" - वो एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला. "ठीक है। मैं निकलूंगा वैन की तलाश में ।"


"बढिया ।"


दरिया के किनारे की एक उजाड़ बियाबान जगह पर उन्होंने चोरी की सूमो का माल किराए की डिलीवरी वैन में ट्रांसफर किया । एक तो वो जगह वैसे ही उजाड़ थी, ऊपर से रविवार होने की वजह से दूर दूर तक भी कोई नहीं दिखाई दे रहा था ।


सब कुछ बड़े तसल्लीबख्श ढंग से हुआ I


फिर वो सिन्धी कालोनी वापस लौटे ।


सुकन्या को वो पीछे सोता छोड़कर गए थे और उसके तब भी अभी सोते होने की ही आशा थी जबकि दोपहर होने को थी ।


“उतर अब ।" - जीतसिंह उतावले स्वर में बोला ।


"उतरता हूं।" - बलसारा वैन का अपनी ओर का दरवाजा खोलता हुआ बोला- "लेकिन मैं एक घंटे से ज्यादा इंतजार नहीं करूंगा।"


"उसके बाद क्या करेगा ?"


"खुद ही सोच, बाप ।"


"मैं लौट के आऊंगा । फिक्र न कर ।”


"फिक्र तो मैं बराबर करूगा । फिक्र किए बिना कहीं काम चलता है ।"


वो वैन से नीचे कूद गया। उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।


जीतसिंह ने वैन आगे बढ़ा दी ।


जीतसिंह एक नए पार्किंग स्थल पर पहुंचा जोकि उसने पहले से ही ताड़ के रखा हुआ था ।


पार्किंग अटेंडेंट जोकि एक लम्बा चौडा, उम्रदराज सिख था, खुद ही उसके पास पहुंच गया । वो वैन का नम्बर एक टोकन पर लिखने लगा। फिर टोकन उसने जीतसिंह को सौंपा और बोला - "आगे लगा दो ।"


"वो तो मैं लगा देता हूं लेकिन गाड़ी यहां दो तीन दिन के लिए खड़ी होगी। कोई ऐसी जगह बताओ जहां ये दो तीन दिन सेफ खड़ी रहे ।"


"चौबीस घण्टे के सौ रुपये लगते हैं।"


"पहले देने हैं ?"


"नहीं । बाद में ।"


"कोई वान्दा नहीं । "


फिर अटेंडेंट ने खुद उसके साथ चलके उसकी गाड़ी एक जगह लगवाई |


जीतसिंह वहां से बाहर निकला और एक टैक्सी पर सवार होकर सिन्धी कालोनी पहुंचा ।


उसने फ्लैट में बलसारा को सोफे पर सोता पाया और सुकन्या को किचन में एक स्टूल पर बैठे चाय पीते पाया ।


"तुम्हारे लिए चाय बनाऊं?" - उसे देखकर वो बोली


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


बिजली की केतली में अभी पानी गर्म था । वो उसके लिए चाय बनाने लगी ।


"संगीता का क्या होगा ?" - एकाएक वो बोली ।


"जो होना होगा, बलसारा सोकर उठेगा तो कर लेगा"


"आगे क्या प्रोग्राम है ?"


“अपना बोलो ।"


“अपना क्या बोलूं ? वापस तो तुम कहते हो कि मैं जा नहीं सकती । इसलिए पहले वाला प्रोग्राम ही ठीक है कि जब तक चले तब तक तुम्हारे साथ, फिर तुम अपनी राह, मैं अपनी किसी नई राह | "


"ठीक है ।"


"तुम्हारा मेरा सदा का साथ नहीं बन सकता ?" 


"नहीं।"


“साफ ही कह रहे हो ?"


"हां । साफ ही कहना चाहिए।" 


"क्यों नहीं बन सकता ?"


"क्योंकि मैं किसी औरत के साथ का तलबगार नहीं


"वजह ?"


"वजह तुम नहीं समझोगी ।"


"कतई कोई गुंजायश नहीं ?"


"कतई कोई गुंजायश नहीं।"


"किसी और से मुहब्बत करते हो ?"


"मुहब्बत करने वाली जो मशीनरी मेरे में फिट थी, वो कंडम हो गई है । अब मैं किसी औरत से मुहब्बत नहीं कर सकता । सिर्फ नफरत कर सकता हूं। बड़ी हद उसे अपनी हवस का शिकार बना सकता हूं लेकिन वो भी वक्ती तौर पर ।"


“अजीब आदमी हो ।”


जीतसिंह खामोश रहा ।


"किसी औरत से खता खाई ? दिल तोड़ा किसी ने ?" "जो चीज है ही नहीं, वो टूटेगी कैसे ?"


"फिर क्या फायदा तुम्हारे साथ जाने का ?”


“तुम जानो ।” 


"कोई फायदा नहीं ।"


"तो ?"


"होटल में तुमने मेरे अगवा का ड्रामा किया था । हम दोनों की निगाह में वो ड्रामा था, लेकिन देखने वालों की निगाह में हकीकत थी । मेरी अक्ल ये कहती है कि मैं लौट जाऊंगी तो लोगों को मेरे से हमदर्दी होगी। पुलिस मुझे बधाई देगी कि मैं एक कातिल, एक डकैत के चंगुल से जिन्दा बचकर वापस लौट आई थी ।"


“अगवा करने वाले के चंगुल में फंसी कैसे ? इसका क्या जवाब दोगी ?"


"लॉबी में अपने बॉयफ्रेंड का इन्तजार करते-करते बोर होकर मैं बाहर सड़क पर निकल गई थी जहां कि मैंने उस किसम के सूटकेस एक एम्बुलैंस में लादे जाते देखे थे जिन्हें कि कायन डीलर अपने डिस्पले रैक्स ढोने के लिए इस्तेमाल करते थे। मैं समझ गई कि किन्हीं डाकुओं ने किसी तरीके से वॉल्ट खोल लिया था और अब वो वॉल्ट में जमा कीमती सिक्कों से भरे सूटकेस चुरा रहे थे। मैंने वहां से खिसक आने की कोशिश की तो उनको मेरी भनक लग गई । उन्होंने मुझे पकड़ लिया और फिर बगल की इमारत के रास्ते दूसरी मंजिल के एक कमरे में ले आए जिसके फर्श में एक छेद बना हुआ था जिसमें से कि नीचे वॉल्ट दिखाई दे रहा था । वहां उन लोगों में आपस में कोई झगड़ा हो गया जिसकी वजह से गोलियां चलने लगीं । फिर खुद को बचाने की खातिर एक डाकू ने मुझे दबोच लिया और फिर मुझे बन्धक बनाकर वहां से निकल गया।"


"बाद में छोड़ कैसे दिया ?"


"क्योंकि वो सुरक्षित निकल भागने में कामयाब हो गया था । उसने खामखाह मेरी जान लेना जरूरी नहीं समझा था । उसने मुझे ये वार्निंग देकर छोड़ा था कि मैं पुलिस के पास जाने की कोशिश हरगिज न करू । लिहाजा मैं अपने घर नारायणगांव लौट गई थी ।"


"हूं।"


"मेरा बिलथरे को जानता होना मेरे हक में ही जाएगा क्योंकि मैं बतौर कायन डीलर उसे न जानती होती तो डिस्पले रैक्स को ढोने वाले सूटकेसों को भी न पहचानती होती । वो भी डकैती में शामिल था तो ये मेरे लिए हैरानी की बात थी ।"


"बढिया ।"


"यहां अच्छा हुआ कि संगीता ने मुझे तुम लोगों के साथ नहीं देखा । साथ देख लेती तो बाद में उसके बयान की बिना पर मुझे अगवा की शिकार नहीं, बल्कि डकैतों की संगिनी माना जाता । अब बाद में वो यही बयान देगी कि उस पर यहां दो शख्स काबिज थे और दोनों मर्द थे ।"


"मतलब ये हुआ कि तुम्हारी अक्ल ने ये फैसला किया है कि तुम वापस जा सकती हो ?”


"हां । और तुम्हारे सर्द मिजाज, तुम्हारी बेरुखी के मद्देनजर मुझे जाना ही चाहिए।"


"ठीक है।"


"लेकिन अब मेरा सवाल ये है कि यूं चले जाने के बाद क्या मेरा हिस्सा मुझे मिलेगा ?"


"अभी क्या कहा जा सकता है ?"


"क्यों नहीं कहा जा सकता ?"


"क्योंकि अभी तो मेरे खुद के हिस्से की कोई गारंटी नहीं।”


"बात का दूसरे तरीके से जवाब दो । तुम्हारा हिस्सा तुम्हें मिलेगा तो मेरा हिस्सा मुझे मिलेगा ?"


"वो बलसारा पर निर्भर करता है ।"


"उसकी बाबत भी मैं सवाल करने जा ही रही थी ।"


“तो जवाब ये है कि उसका खलास होना जरूरी है । पहला सेफ मौका हाथ आते ही मैं उसका खून कर देने वाला हूं। वो..."


तभी सुकन्या के मुंह से तीखी सिसकारी निकली ।


*****

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