उस सारे ड्रामे का मकसद फाटक खुलवाना और चौकीदार को बाहर निकालना था जो कि हल हो चुका था।


चौकीदार वापस फाटक की तरफ घूमा ।


तभी सड़क पर एक काली एम्बैसेडर कार प्रकट हुई और ऐन फाटक के सामने आकर रुकी।


चौकीदार ठिठका । उसने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर एक वर्दी धारी शोफर मौजूद था ।


शोफर पर निगाह पड़ते ही चौकीदार की निगाह स्वयंमेव ही पिछली सीट की ओर उठ गई जिधर कि उसकी ओर की खिड़की का शीशा धीरे धीरे नीचे गिर रहा था ।


शीशा पूरा नीचे सरक गया तो पैसेंजर की शक्ल दिखाई दी । 


पैसेंजर एक निहायत खुबसूरत युवती थी ।


"जरा सुनना ।" - सुकन्या मधुर स्वर में बोली ।


चौकीदार तत्काल लपककर कार के करीब पहुंचा।


सड़क पर उगे एक गुलमोहर के पेड़ के पीछे से दो खामोशी से बाहर निकले और चौकीदार की पीठ पीछे जैसे अंडों पर पांव रखते हुए खुले फाटक की ओर बढे । साए


स्वर में बोली । "ये सोनुले साहब की कोठी है ?" - सुकन्या मधुर


"सोनुले साहब ?" - चौकीदार ने बड़े अदब से दोहराया - "दर्पण सोनुले साहब ?"


"हां । उनकी कोठी हे ये ?"


“जी नहीं । ये तो कोठारी साहब की कोठी है ।"


"कमाल है ! तो सोनुले साहब की कोठी कहां गई ?" "वो तो पिछले ब्लाक में है । "


"ओह ! पिछले ब्लाक में है। किधर से जाएं ?"


“वापस घूमना पड़ेगा। फिर सड़क के मोड़ से आप पिछले ब्लाक की तरफ घूम सकती हैं।"


" ड्राइवर ! सुना ?"


"जी, मेम साहब ।" - बिलथरे बोला ।


तब तक जीतसिंह और कार्लो फाटक पर पहुंच चुके थे।


"शुक्रिया ।" - सुकन्या बोली - "ये लो।"


चौकीदार ने देखा युवती खिड़की में से हाथ निकालकर उसकी तरफ दस का नोट बढ़ा रही थी ।


कमाल है ! - चौकीदार ने मन ही मन सोचा - इतनी सी बात की बख्शीश ! बड़ी मेहरबान मेम साहब थी ।


उसने नोट की तरफ हाथ बढाया तो सुकन्या ने नोट ने को हाथ से निकल जाने दिया। नोट फड़फड़ाता हुआ जमीन पर गिरा ।


चौकीदार झुककर नोट उठाने लगा ।


तब तक जीतसिंह और कार्लो फाटक से भीतर दाखिल होकर इमारत की ओट में कहीं पहुंच गए थे।


बिलथरे ने कार आगे बढ़ा दी ।


चौकीदार नोट उठाकर सीधा हुआ तो उसने पाया कार जा भी चुकी थी ।


शायद आगे से यू-टर्न लेकर लौटेगी सोचता चौकीदार वापस कोठी में दाखिल हुआ और उसने अपने पीछे फाटक को और उसमें बनी खिड़की को बदस्तूर भीतर से बंद कर लिया ।


कार्लो जीतसिंह को लेकर कोठी के पहलू के एक बन्द दरवाजे पर पहुंचा । उसने दरवाजे को धक्का दिया तो उसे भीतर से बन्द पाया ।


कार्लो ने एक निगाह अपनी कलाई घड़ी पर डाली और फिर बोला- "जल्दी आ गए हैं। अभी खुल जाएगा।"


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


दोनों सावधान की मुद्रा में दरवाजे के करीब दीवार से चिपककर खड़े हो गए और प्रतीक्षा करने लगे ।


थोड़ी देर बाद एक हल्की-सी आहट हुई और फिर इंच-इंच करके दरवाजे का एक पल्ला चौखट से अलग होने लगा ।


दोनों तत्काल उसके सामने पहुंचे ।


"कार्लो !” 


“एग्नेस !” - कार्लो फुसफुसाया ।


"हां।" - दरवाजे का एक पट पूरा खुला - "जल्दी ।”


दोनों भीतर दाखिल हो गए ।


उनके पीछे कोठारी की नौजवान आया एग्नेस ने दरवाजे को बदस्तूर भीतर से बंद कर दिया ।


"सामने बेसमेंट की सीढियां हैं । " - वो अंधेरे में फुसफुसाई - "सीधे उतर जाओ। आवाज न करना । कोई तेज रोशनी न करना ।"


"तुम ?"


'मैं यहीं हूं । "


दोनों दबे पांव बेसमेंट की सीढियां उतर गए।


जीतसिंह बोला । "पहले सिर्फ स्टोरेज रैक टटोलना ठीक होगा।"


"हां।" - कार्लो बोला- "वो भी ऊपर वाले पहले ।”


"क्या ?"


"मैं बोला न कि बेसमेंट में सिर्फ कोठारी की मिसेज जाती है । चाबी पर खामखाह ही उसकी निगाह न पड़ जाए, इसके लिए वो उसे किसी ऐसी जगह तो नहीं रखता होगा जहां कि आम कदवाली औरत का हाथ आसानी से पहुंच सकता हो ।”


"शाबाश ।"


उन्होंने ऊपर के रैंकों को उंगलियों से टटोल-टटोलकर चाबी की तलाश शुरू की । ऊपर के रैकों पर धूल का बोलबाला था जो जल्दी ही उड़ उड़कर उनके नथुनों से टकराने लगी । तब धूल की वजह से छींकने से बचने के लिए उन्होंने रूमाल निकालकर अपने अपने चेहरे पर बांध लिए ।


दस मिनट बाद एक चाबी कार्लो की उंगलियों से टकराई ।


"बॉस !" - तत्काल वो बोला ।


"मिली ?" - जीतसिंह आशापूर्ण स्वर में बोला ।


"लगता है।"


जीतसिंह ने जेब से टार्च निकालकर जलाई और उसकी रोशनी कार्लो के हाथ में थमी चाबी पर डाली ।


"लानत !" - फिर वो फुसफुसाया - "अच्छा हुआ, अंधेरे में ही चाबी लेकर चल न दिए । "


" है तो ये वैसी ही चाबी ?"


"वैसी है लेकिन वो नहीं है । हो भी नहीं सकती ।"


"क्या ?"


"जंग लगा हुआ है । अक्सर इस्तेमाल होने वाली चाबी को कहीं जंग लगता है ! वो भी किसी फैंसी वॉल्ट की चाबी को ? इसे तो लगता है कि सालों से किसी ने छुआ तक नहीं ।”


"ओह !"


"दफा कर इसे ।"


कार्लो ने चाबी वापस वहीं रख दी जहां से कि वो उसने उठाई थी ।


तलाश फिर शुरू हुई । इस बार कदरन तेजी से शुरू हुई क्योंकि जीतसिंह ने टार्च बुझाने की कोशिश न की ।


आखिरकार चाबी जीतसिंह के ही हाथ लगी ।


नयी-नकोर, जगमग चाबी ।


वैसी चाबी जैसी दो की डुप्लीकेट उनके पास थी ।


जीतसिंह ने बड़ी दक्षता से मोम के सांचों पर उसके दोनों पहलुओं की छाप उतारी ।


फिर उसने चाबी को पोंछकर, उसे स्पिरिट से साफ करके वापस रख दिया ।


अब वॉल्ट की तीनों चाबियों का जुगाड़ उनके पास था


"टाइम देख ।" - सांचे सुरक्षित दो विभिन जेबों के हवाले करता जीतसिंह बोला ।


“पौने एक ।”


दोनों दबे पांव ऊपर पहुंचे ।


एग्नेस साइड डोर पर मौजूद थी।


"गया ?" - कार्लो ने पूछा ।


"नहीं।"


"इन्तजार करने के लिए किधर रुकें ?"


"मेरे करीब नहीं ।”


"वापस बेसमेंट में ?"


"ठीक है । "


दोनों फिर सीढियां उतर गए ।


कोठी में दाखिल होना भी उतना ही विकट काम था जितना कि दाखिल हो जाने के बाद वहां से रुख्सत होना। उस सिलसिले में भी एग्नेस की ही मदद काम आने वाली थी । बकौल उसके, खानसामा गैरेज के ऊपर के ही एक क्वार्टर में रहता था । उसको अनिद्रा की बीमारी थी जिसकी वजह से वो काफी रात गए तक टीवी देखता रहता था । आधी रात के किसी वक्त चौकीदार उसके क्वार्टर का एक चक्कर किसी चाय-पानी के लालच में जरूर लगाता था । उस चक्कर का कोई निर्धारित वक्त नहीं था। कभी इत्तफाक से खानसामा सो जाता था तो चौकीदार उलटे पांव वापस भी लौट जाता था ।


दोनों दुआ कर रहे थे कि कम से कम उस रोज वैसा न हो। 


बड़े सस्पैंस में वो प्रतीक्षा करते रहे ।


पता नहीं कितनी देर बाद सीढियों के दहाने पर ऐग्नेस का साया प्रकट हुआ ।


तत्काल दोनों ऊपर उसके पास पहुंचे ।


"गया ?" - कार्लो बोला ।


"हां।" - एग्नेस बोली- “आओ ।”


तीनों साइड डोर पर पहुंचे। एग्नेस ने सावधानी से दरवाजा खोला और फिर उन्हें इशारा किया ।


दोनों बाहर निकले और सिर झुकाये दबे पांव फाटक की ओर लपके । फाटक पर भीतर से ताला लगा हुआ था लेकिन वो उनके लिए कोई व्यवधान नहीं था। दोनों बंदर की सी फुर्ती से फाटक पर चढ गए और उसे फांदकर परली तरफ कूद गए ।


तभी काली एम्बैसेडर, जिसकी तमाम बत्तियां बुझी हुई थीं, उनके सामने आकर रुकी ।


ड्राइविंग सीट पर तब भी शोफर की वर्दी पहने बिलथरे था और उसकी बगल में सुकन्या बैठी हुई थी । पिछली सीट पर नवलानी और मिर्ची मौजूद थे। जीतसिंह कार में आगे और कार्लो पीछे बैठ गया । तत्काल कार सुनसान सड़क पर आगे दौड़ चली ।


*****

शुक्रवार: बारह दिसम्बर


कायन कनवेंशन का दिन ।


ग्यारह बजे के करीब दिलीप बिलथरे ने अपने दो सूटकेसों के साथ होटल ब्लू स्टार की उस रोज की विशेष चहल-पहल में कदम रखा । लिफ्ट में सवार होकर, इक्के-दुक्के वाकिफकार कायन डीलर से हल्लो करता वो लिफ्ट द्वारा पहली मंजिल पर पहुंचा जहां सिक्योरिटी स्टाफ को उसने वो चिट्ठी दिखाई जो ये स्थापित करती थी कि वो उस कनवेंशन का रजिस्टर्ड पार्टीसिपेंट था । सिक्योरिटी वाले ने एक लिस्ट में उसका नाम तलाश करके उसे टिक किया और फिर उसे एक शिनाख्ती कार्ड और रेशमी रिबन से बना कनवेंशन का बैज दिया । बिलथरे ने कार्ड अपनी जेब में रख लिया और वो बड़ा सा, गोलाकार बैज अपने कोट के कालर पर लगा लिया ।


एक अन्य सिक्योरिटी वाला उसे नेपोलियन हाल में उस टेबल तक छोड़ के गया जोकि उसके लिए रिजर्व थी । उसने सूटकेस खोले और उनमें से निकालकर दस डिस्पले रैक टेबल पर सजा दिए । टेबल के पीछे एक कुर्सी थी जिस पर वो ढेर हो गया ।


हाल में तब तक मुश्किल से आधी मेजें भरी थी, लेकिन कायन डीलर निरन्तर वहां पहुंच रहे थे ।


फिर दोपहरबाद दर्शकों की आवाजाही भी शुरू हो गई ।


डेढ बजे उसने अपनी टेबल को एक मेजपोश से ढंक दिया और वहां से निकलकर नीचे की ओर बढ़ा जहां कि रेस्टोरेंट और बार था ।


रेस्टोरेंट में उसे सहयोगी कायन डीलर आलोक पारेख मिल गया जोकि कायन कनवेंशन की ही खातिर बैंगलोर से जल्दी लौट आया था । उसने पारेख के साथ लंच किया और वापस हाल में आ गया ।


इस बार उसने अपनी टेबल पर जाने की कोशिश न की । वाकिफ कायन डीलरों का अभिवादन करता, किसी से कोई छोटी-मोटी बात करता वो हाल में फिरने लगा और खामोशी से वो माल ताड़ने लगा जोकि कीमती था । वैसी ही खामोशी से उसने एक ऐसी फ्लोरेसेंट पेंसिल से, जिसका बना निशान सिर्फ अंधेरे में ही चमकता था, कुछ निशान भी बनाए । वैसे उस काम की उसे कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि उसे अंजाम देने के लिए उसके पास अगले रोज रात आठ बजे तक का वक्त था जबकि कायन कनवेंशन के उस दिन का समापन होना था ।


गाहे-बगाहे उसे दर्शकों में दर्शक बनकर घुसे अपने साथियों की झलक भी मिल रही थी ।


शाम तक वहां डीलर भी लगभग पूरे पहुंच गए और दर्शकों की भी खासी भीड़ हो गई ।


उसी भीड़ में छ: बजे के करीब उसे जीतसिंह और सुकन्या दिखाई दिए । ये देखकर उसका कलेजा फुंक गया कि सुकन्या ने बड़ी आत्मीयता से जीतसिंह की बांह में बांह पिरोई हुई थी और वो उससे यूं हंस-हंस के बातें कर रही वी जैसे कि उसे बरसों से जानती थी ।


पौने आठ बजे के करीब उसने अपने डिस्पले रैक्स वापस दोनों सूटकेसों में भरे और उन्हें उठाए वॉल्ट के दरवाजे पर पहुंचा । वहां तैनात गार्ड ने सूटकेसों पर दो नम्बर लगाए और उसे उनकी रसीद सौंपी। उस रसीद के बदले अगले रोज सुबह वो अपने सूटकेस वापस हासिल कर सकता था ।


अपने कायन वॉल्ट में जमा करा देने के बाद भी काफी देर वो हाल में ही विचरता रहा ।


दस बजे कनाट रोड पर फायर ब्रिगेड के सायरन की आवाज गूंजी ।


सुकन्या उस वक्त होटल में जीतसिंह के साथ तीसरी मंजिल के उस कमरे में मौजूद थी जोकि उसने उसी शाम को होटल पहुंचकर अपने लिए लिया था ।


तब दूसरी मंजिल पर कोई कमरा उपलब्ध नहीं था । वस्तुत: किसी मंजिल पर भी कोई कमरा उपलब्ध नहीं था क्योंकि अधिकतर कमरे पूना से बाहर से आए कायन डीलर अपने लिए बुक करा चुके थे। वो कमरा संयोग से ही उसी शाम खाली हुआ था ।


“फायर ब्रिगेड के सायरन की आवाज बहुत करीब से आ रही है ।" - सुकन्या बोली ।


"हां ।" - जीतसिंह बोला- "लगता है जैसे होटल के बाहर से ही आ रही हो ।”


"नवलानी की कलाकारी ?"


"हो सकता है ।"


"चल के देखें ? "


" अभी नहीं ।”


सुकन्या की भवें उठी ।


"हमने आग नहीं देखनी, आग से हुआ नुकसान नहीं देखना, ये देखना है कि फायर ब्रिगेड के चले जाने के बाद, पीछे का माहौल हमारे मनमाफिक बन पाया है या नहीं ।"


"ओह !"


"यहां से एक ही बार बाहर निकलेंगे । "


"कब ? "


"जब फाइनल मीटिंग के लिए यहां से रवाना होंगे।"


सुकन्या खामोश हो गई ।


***

फाइनल मीटिंग के लिए वो सब रात एक बजे बिलथरे के घर पर जमा थे।


सबसे पहले दमकते हुए नवलानी ने आग की बधाइयां बटोरीं ।


"बढ़िया काम किया ।" - जीतसिंह बोला- "मैं खुद देख के आया ।"


"बढिया नहीं, साई" नवलानी चहका "झूलेलाल की किरपा से बहुत बढ़िया काम किया ।" -


"हां ।"


"धुआं ज्यादा, आग कम । हंगामा ज्यादा नुकसान कम । दहशत ज्यादा, फायर फाइटर्स का काम कम । ऐन फिट फायर ।"


"लगाई कैसे ?"


"वैसे ही जैसे बोला था । बिजली की वायरिंग में शार्ट सर्कट से ।"


"अब पोजीशन क्या है ?"


"चोखी पोजीशन है । ऐन वैसी पोजीशन है जैसी की कि हमें जरूरत है । इमारत दो दिन के लिए सील कर दी गई है । उसमें धुआं अभी भी भरा हुआ है जोकि छंटते-छंटते छंटेगा और वहां जगह जगह फायर ब्रिगेड के इंजनों का छोड़ा पानी जमा है । हमारा काम हो जाने तक तो, साई, वो वैसे ही इस्तेमाल के काबिल नहीं बनने वाली ।"


"बढिया । फर्श की क्या पोजीशन है ?"


"बढिया पोजीशन है ।" - जवाब इमरान मिर्ची ने दिया - "ऐन वैसे उधेड़ा जा चुका है जैसे कि मांगता था ।


अब फर्श का हमारी कारीगरी वाला हिस्सा इस पोजीशन में है कि मैं या बिलथरे या कोई और भारी बदन वाला शख्स उस पर जाकर खड़ा भी होगा तो धड़ाम से नीचे वॉल्ट में जाकर गिरेगा ।"


"बढिया । सिक्योरिटी का क्या इन्तजाम देखा ?" -


"जैसा कि सबने देखा था " - जवाब कार्लो ने दिया " दिन में तो वहां बहुत गार्ड थे । नेपोलियन हाल में ही कम से कम दस थे । सिक्योरिटी ऑफिस में भी कई बैठे हुए थे और हाल के बाहर लिफ्ट और सीढियों तक टहलते-फिरते भी कई थे। लेकिन नुमायश का टाइम खत्म होने के बाद वो हुजूम छंट गया था । आधी रात तक वहां जो पोजीशन देखी गई थी वो ये थी कि दो गार्ड नेपोलियन हाल में थे, दो वॉल्ट के भीतर थे, दो सिक्योरिटी ऑफिस में थे और एक बाहर टहलने के लिए था ।" -


"हाल में किसलिए ?" - जीतसिंह बोला - "खाली हाल को क्यों पहरेदारी की जरूरत थी ?"


"हाल खाली नहीं हुआ था ।" - जवाब बिलथरे ने दिया - "जैसा कि अपेक्षित था, सारे डीलरों ने अपना माल वॉल्ट में जमा नहीं कराया था, कुछ ने अपने डिस्पले रैक्स अपनी टेबलों पर ही पड़े रहने दिए थे। मैंने पहले भी बताया था कि रैक्स को काफी मजबूत ताले लगे होते हैं और उनके शीशे न टूट सकने वाली किस्म के होते हैं जिसे कि अनब्रेकेबल ग्लास कहते हैं। उन डीलरों को ये आश्वासन रहे कि ओवरनाइट मेजों पर पड़े उनके माल को कोई खतरा नहीं, जरूर इसीलिए हॉल में गार्ड लगाए गए हैं।"


"यूं" - सुकन्या बोली- "हमारी पकड़ में आने वाला माल घट न गया ?"


"घट गया लेकिन छंट भी गया । मैंने देखा है कि यूं हाल में छोड़े गए सिक्के कीमती किस्म के नहीं हैं । "


"लिहाजा" - जीतसिंह बोला- "जो हुआ है, उसमें हमारा ही फायदा है ?"


"हां"


“वैसे भी” - नवलानी बोला- "हाल से या सिक्योरिटी ऑफिस से या बाहर लॉबी से हमने क्या लेना देना है ? भले ही उन जगहों पर गार्डों की गारद मौजूद हो ।”


"मोटे तौर पर तो यही बात है ।" - बिलथरे बोला ।


" और ?" - जीतसिंह बोला ।


"वाल्ट वाले गार्ड" - कार्लो बोला- "बारह बजे तक तो वॉल्ट के अन्दर बाहर आते जाते रहे थे और अपने साथियों से बतियाते रहे थे लेकिन उसके बाद उन्होंने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया था । "


"भीतर क्या करते होंगे वो ?"


"कोई ताश-वाश खेलते होंगे। कोई बड़ी बात नहीं कि सो ही जाते हों।"


"क्या बड़ी बात है ?" - नवलानी बोला - "जब वॉल्ट को इतना मजबूत बताया जाता है तो क्या बड़ी बात है ?"


"ऐसे मजबूत वॉल्ट वाले कमरे में दो गार्ड भी किस लिए ?"


"होटल वाले हर डीलर से वॉल्ट के इस्तेमाल की एक फीस चार्ज करते हैं ।" - बिलथरे बोला - "वो गार्ड फीस भरने वालों की तसल्ली के लिए तैनात किए जाते होंगे ।"


"हो सकता है। बहरहाल अब हमारे काम में ये एक इजाफा हो गया कि हमने वॉल्ट में मौजूद गार्डों को भी काबू में करना है । "


"हां" 


"और ?"


"लॉबी में ट्रैवल एजेन्ट के स्टाल के करीब छत तक जाते एक पिलर के साथ-साथ गोल सोफा फिट है।" - कार्लो बोला - "लॉबी में वो ही एक ऐसी जगह है जहां से कि ऊपर सिक्योरिटी ऑफिस और नेपोलियन हाल का दरवाजा भी दिखाई देता है और नीचे आग लगी इमारत की दिशा में काफी दूर तक मेन रोड भी दिखाई देती है।"


"बढिया । ऐसी ही जगह की हमें तलाश थी ।


सुकन्या कल रात वहां उस सोफे पर मौजूद होगी ।"


"किसलिए ?" - सुकन्या बोली ।


"बाहर सड़क पर मौजूद कार्लो को इशारा करने के लिए । उसे ये जताने के लिए कि वॉल्ट खुल गया था और उसमें से निकला माल बगल की इमारत के रास्ते से सड़क पर पहुंचना शुरू होने वाला था ताकि वो एम्बुलैंस को ऐसी पोजीशन में लाकर खड़ा कर सके कि किसी को दिखाई न दे कि उसमें माल लादा जा रहा था । "


"ओह !"


“तुम्हें ऐसा इशारा दूसरी मंजिल से, मेरे कमरे के बाहर से मिलेगा ।”


"ठीक है ।"


"सिक्योरिटी ऑफिस पर तुमने खास निगाह रखनी है । अगर वहां कोई विशेष हलचल दिखाई दे तो हाउस टेलीफोन से मेरे कमरे में फोन करना है ।"


"फोन न लगे तो ?"


"तो ऊपर आकर दरवाजा खटखटाना है । "


"मुझे कब तक वहां रुकना होगा ?"


"जब तक तुम्हें ये सिग्नल न मिले कि माल एम्बुलेंस में लादा जाना शुरू हो चुका था ।”


"ऐसा तो हो सकता है कई घंटों में हो ?"


"कई घंटों में ही होगा । पहले तो, बावजूद चाबियां हमारे पास होने के, वॉल्ट खुलने में ही वक्त लग सकता है, फिर जरा सोचो, मिर्ची को सूटकेसों के साथ मेरे कमरे से लेकर नीचे एम्बुलैंस तक कितने फेरे लगाने पड़ेंगे ?"


"रात भर किसी अकेली औरत का लॉबी में बैठा रहना अजीब नहीं लगेगा ?"


"अजीब न लगे, इसीलिए तो तुम्हें वहां कमरा लेने के लिए कहा गया था । तुम होटल में ठहरी हुई हो, अगर तुम लॉबी में रात भर बैठना चाहती हो तो तुम्हें कौन रोक सकता है ?"


"फिर भी कोई सवाल करे तो मेरे पास कोई जवाब तो होना चाहिए !"


"जवाब यही है कि तुम्हारा पति या बॉयफ्रेंड या कोई और नजदीकी रिश्तेदार मुम्बई से वहां पहुंचने वाला था, पहुंचा नहीं था इसलिए तुम फिक्रमंद हो । कमरे में अकेले तुम्हें घबराहट हो रही थी इसलिए लॉबी में बैठी उसका इंतजार कर रही हो । "


"हूं।"


"वो चौबीस घंटे की चहल पहल वाला होटल है । रात डेढ दो बजे तक तो वहां बार और रेस्टोरेंट ही आबाद रहते हैं जिनमें आवाजाही लॉबी से होकर ही मुमकिन है । मुझे उम्मीद नहीं कि कोई इस बात को खास नोट करेगा कि कोई औरत वहां अकेली बैठी थी, अरसे से बैठी थी वगैरह।"


सुकन्या ने सहमति में सिर हिलाया ।


"कोई कुछ कहना या कुछ पूछना चाहता हो ?"


कोई कुछ न बोला ।


"मैं एक बात फिर दोहराना चाहता हूं । किसी को कोई दहशत हो, कोई जो होने वाला है, उससे किनारा करना चाहता हो तो अभी भी वक्त है । अब क्योंकि सब कुछ सैट हो चुका है, इसलिए एकाध आदमी की घट-बढ़ से अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ।"


“बॉस !” - कार्लो - “एक खून में शरीक हो चुकने के बाद अब कौन इन से आउट बोलेगा ?"


सबके सिर सहमति में हिले ।


"बढिया ।"


"खून के जिक्र पर याद आया ।" - बिलथरे बोला "एक बड़ी दिलचस्प बात सामने आई है जोकि हमारे लिए तो फायदेमन्द ही है ।”


"क्या ?"


"मकतूल उस्ताद की लाश नदी में से अभी तक बरामद नहीं हुई है । लेकिन उस छोकरे की, जिसे कि तुमने शेरों के पिंजरे में डाल दिया था, लाश बुधवार रात को ही बरामद हो गई थी क्योंकि शेरों ने एकाएक लगातार गर्जना गुर्राना शुरू कर दिया था । जब तक शेरों को हड़काकर लाश वहां से निकाली गयी थी तब तक उन्होंने उसका फुल काम कर दिया था । कहते हैं कि शेरों को उनकी परफारमेंस से पहले भूखा रखा जाता है, तभी वो रिंग मास्टर के कोड़े से डरते हैं । उनको खिलाने का काम आखिरी शो के खत्म होने पर होता है । परसों रात यूं समझो कि खाना उन्हें वक्त से जरा पहले मिल गया । कुछ नहीं छोड़ा उन्होंने छोकरे का ।"


"कैसे जाना ये सब ?"


“आज शाम के अखबार में छपा है । उस दूसरे आदमी के गायब हो जाने की वजह से ये समझा जा रहा है कि वो ही मगनया का कत्ल करके उसे शेरों के पिंजरे में डाल के फरार हो गया था।”


"कत्ल क्यों ?"


"उसके मगनया से होमोसैक्सुअल रिलेशंस बताए जाते हैं । ये बात सर्कस में तकरीबन सबको मालूम है । पुलिस के एक प्रवक्ता ने अखबार में ये राय जाहिर की है कि लड़के ने तेवर दिखाए होंगे, उस्ताद ताव खा गया होगा और ताव में उसका कत्ल कर बैठा होगा ।"


"ओह ! लेकिन उस्ताद की लाश कभी तो बरामद होगी ?" 


"कोई जरूरी नहीं । होनी होती तो अब तक हो गई होती । अब तक तो वो पूना से पता नहीं कितनी दूर बह गई होगी ! किसी दूरदराज जगह से फूली, बिगड़ी लाश बरामद हो भी गई तो उसकी शिनाख्त करने वाला कौन होगा ?"


"ठीक।"


फिर मीटिंग बर्खास्त हो गई ।

*****

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