"जब लड़की तुम्हारे इतने काबू में है तो उसी को बोलते चाबी तलाश करने को ?"


"बॉस, तुम सुना नहीं मैं क्या बोला ? मैं बोला नौकरों - चाकरों को बेसमेंट में जाना नक्को । एबसोल्यूट नो नो।"


"छुप के तो जा सकती है !"


"ये सिर्फ जा के आ जाने से हो जाने वाला काम नहीं । चाबी की तलाश में वहां टिकना भी जरूरी है । लम्बी तलाश के लिए लम्बा टिकना जरूरी हो सकता है । वो ये रिस्क नहीं ले सकती । कहती है मालकिन बहुत कड़क है। मामूली सी गलती पर खड़े पैर नौकरी से निकाल देती है । ऐग्नेस नौकरी का रिस्क लेना अफोर्ड नहीं कर सकती ।"


"ओह !"


"ऊपर से खानसामा उसके खिलाफ है। हमेशा उसकी ताक में रहता है और मालकिन से उसकी चुगलियां करता रहता है। बॉस, एग्नेस को चाबी तलाश करने के लिए कहना उसके साथ जुल्म होगा। मैं फिर बोलता है, एग्नेस के माली हालात ऐसे हैं कि वो नौकरी का रिस्क लेना अफोर्ड नहीं कर सकती ।”


"हमारी मदद करना भी तो नौकरी का रिस्क लेना होगा ?"


"उसने सिर्फ भीतर का कोई दरवाजा हमारे लिए खोलना होगा और बेसमेंट का रास्ता दिखाना होगा। हमारी वहां मौजूदगी के दौरान वहां जाग हो गई तो वो कभी ये बात कबूल नहीं करेगी कि चोरों को दरवाजा उसने खोला था।”


"ओह ! यानी कि उससे ऐसी मदद की ही उम्मीद की जा सकती है जिससे कि खुद उस पर हर्फ न आए ?”


"हां । इससे ज्यादा की उम्मीद करना उसके साथ ज्यादती होगी जो कि अब सेंट फ्रांसिस की कसम खा चुकने के बाद मैं नहीं कर सकता ।"


"हूं।"


फिर इस बात का जिक्र आया कि वारदात के लिए मुनासिब दिन कौन सा होता ?


नुमायश का पहला, दूसरा या तीसरा दिन ? शुक्र, शनि या रविवार ?


"शनिवार ।" - बिलथरे बोला ।


"क्यो ?" - मिर्ची बोला ।


"क्योंकि शुक्रवार नुमायश अभी फुल स्विंग पर नहीं होगी।" - बिलथरे बोला- "पहले रोज कुछ बड़े डीलर पहुंच नहीं पाते, पहुंच पाते हैं तो उनका माल नहीं पहुंच पाता, माल पहुंच पाता है तो वो पहले दिन पूरा माल खोलते नहीं। और इतवार को, यानी कि नुमायश के आखिरी दिन, डीलर नुमायश का टाइम खत्म होने के बाद, बल्कि उससे पहले ही, घर लौट चलने को उतावले दिखाई देने लगते हैं। अपने खुद के वाहनों पर आए डीलर तो उसी शाम वापसी के सफर पर निकल चलना पसन्द करते हैं। कहने का मतलब यह है कि पूरे माल की वॉल्ट में मौजूदगी की गारंटी शनिवार को ही हो सकती है । "


"ओह !"


"दूसरे, मुझे प्रदशनी में शामिल सिक्कों को परखने और फिर उसके डिस्प्ले रैक्स को मार्क करने के लिए वक्त चाहिए।"


"शनिवार ही ठीक है ।" - जीतसिंह बोला- "क्योंकि नुमायश के पहले दिन हम भी बतौर दर्शक उसमें शामिल हो सकते हैं और माहौल का जायजा ले सकते हैं । कोई ऊंच-नीच विचार सकते हैं । "


"सही बात है।" - बिलथरे बोला- "सिक्योरिटी के इन्तजाम की बाबत भी हमें नुमायश शुरू होने से पहले कुछ मालूम नहीं हो सकता ।”


"ठीक । असल में हमें ये मालूम करना है कि नुमायश का वक्त खत्म हो जाने के बाद, उस दिन के लिए नुमायश बन्द हो जाने के बाद, वहां सिक्योरिटी का क्या इन्तजाम होता है ! रात के वक्त नेपोलियन हाल और उसके इर्द-गिर्द मौजूद रहने वाले हर गार्ड की हमें खबर होना जरूरी है । और ये खबर कल रात से पहले हमें नहीं लग सकती ।"


बिलथरे ने सहमति में सिर हिलाया ।


कल पेश करना होगा ।" " लिहाजा नवलानी को अपना आग लगाने का करतब


"कोई प्रॉब्लम नहीं, साई।" - नवलानी बोला ।


"सर्कस वाले हरामियों से निपटने के लिए कल हमने जो टीम वर्क दिखाया था, उसके बाद मुझे उम्मीद तो नहीं कि कोई ऐन वक्त पर कदम पीछे हटा लेने की बाबत सोच रहा होगा, लेकिन फिर भी अगर किसी के मन में ऐसा कुछ हो या उसको अपने रोल की बाबत कोई शंका हो तो वो अभी बोले ।"


"मुझे बिलथरे मेरा रोल बताया ।" - कार्लो बोला "जो बताया वो ईजी । मेरे को एम्बुलैंस हैंडल करने का है । माल लादने और ढोने के लिये उसे कनाट रोड पर सैट करके रखने का है । माल लद जाने के बाद मैंने एम्बुलैंस को उधर से ड्राइव करके ले जाना है। मैं ये पूछना मांगता है कि क्या तब मेरे पीछे पुलिस या सिक्योरिटी वाले लग सकते हैं ? "


“ उम्मीद नहीं ।" - जीतसिंह बोला- "सब कुछ स्कीम के मुताबिक हुआ तो ऐसी कोई नौबत नहीं आने वाली ।”


" यानी कि मुझे एम्बुलैंस को भगा के नहीं ले जाना ? किसी के साथ दौड़ नहीं लगाना ?"


"नहीं लगाना ।"


"गुड ।"


"कोई पुलिस की गश्ती गाड़ी इत्तफाक से दिखाई दे भी जाए तो भी भाग निकलने जैसा कोई ख्याल नहीं करना है। ये नहीं भूलना है कि वो चोरी का माल ढोने वाला ट्रक नहीं होगा, गांधी हस्पताल की एम्बुलेंस होगी। एम्बुलैंस की रात की किसी भी घड़ी सड़क पर मौजूदगी आम नजारा होता है । एम्बुलैंस इमरजेंसी में इस्तेमाल में आती है और इमरजेंसी दिन या रात की तमीज किए बिना कभी भी आ सकती है ।"


"राइट।"


"तुम क्या कहते हो ?" - जीतसिंह ने मिर्ची से पूछा ।


"मैंने क्या कहना है ?" - मिर्ची लापरवाही से बोला - "मैं तो खच्चर हूं । खच्चरवाला काम करूंगा । माल ढोऊंगा|"


"वक्त आने पर डर के तो नहीं भाग जाओगे ?"


"कल सर्कस के आगे से भागा था ?"


" यानी कि खौफ नहीं खा जाओगे ?"


"नहीं।"


"ऐसा कोई अन्देशा हो तो अभी बोलो ।”


“क्या होगा अभी बोलने से ? मेरी जगह लेने के लिए खड़े पैर कोई दूसरा आदमी तलाश कर लोगे ?"


“काम मुश्किल होगा लेकिन नामुमकिन नहीं । तुम जल्दी जवाब दोगे, उतना ही ज्यादा वक्त मुझे तुम्हारी जगह लेने वाला तलाश करने के लिए मिलेगा ?"


"ये सवाल तुम मेरे से ही क्यों कर रहे हो ?”


"क्योंकि मैं तुमसे सबसे कम वाकिफ हूं। मैं तुम्हें नहीं जानता । मैं तुम्हारे मिजाज को नहीं जानता।"


"मैं पीठ दिखाने वाला आदमी नहीं ।”


"बढिया । तो मैं निश्चंत हो जाऊं ? "


"हां"


"तुम और कार्लो होटल में ठहरे हुए हो इसलिए कल रात नुमायश बन्द होने के बाद सिक्योरिटी वालों की ताक में लगना तुम्हारा और कार्लो का काम होगा।"


दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।


“एक दिन के लिए सुकन्या को भी होटल में रहना होगा ।"


सुकन्या की भवें उठी ।


"कल दोपहरबाद तुम होटल पहुंचोगी और दूसरी मंजिल पर कमरा हासिल करने की कोशिश करोगी। दूसरी पर कोई कमरा खाली न हो तो तीसरी मंजिल के कमरे के लिए तो तुम्हें बाकायदा जिद करनी पड़ेगी।"


"जिद की कोई वजह होती है।" - वो बोली ।


"बोल देना तुम्हें लिपट की सवारी से डर लगता है इसलिए तुम्हारे लिए ऐसा ही कमरा माकूल है जिस तक पहुंचने के लिए तुम्हें कम से कम सीढियां चढनी पड़े ।"


"ठीक है ।"


"तो फिर अब तीसरी चाबी की बात हो जाए जिसके लिए कि हमने आज ही रात कोशिश करनी है । "


तमाम सिर सहमति में हिले ।


फिर रात का कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए मन्त्रणा होने लगी ।


जीतसिंह होटल लौटा।


मीटिंग समाप्त होने के तुरन्त बाद नवलानी और मिर्ची होटल में अपना अधूरा काम पूरा करने के लिए शहर लौट गए थे लेकिन जीतसिंह कार्लो के साथ पहले कर्वे नगर गया था । काफी देर तक कोठारी की कोठी का और अगली पिछली सड़कों का जुगराफिया समझने के बाद कार्लो को आया की ताक में वहीं छोड़कर वो वापस होटल लौटा था।


भीतर कदम रखने से पहले उसने चारों तरफ निगाह दौड़ा कर ये तसदीक कर ली कि मैनेजर शिवारामन आसपास कहीं नहीं था ।


वो सावधानी उसने पिछली शाम भी बरती थी और उससे पहले रविवार रात को भी । ऐसा करना इसलिए जरूरी था क्योंकि शिवारामन को ये बात खटक सकती थी कि रविवार को जिस शख्स ने उसके पचास हजार रुपये के कीमती इलाज का सामान किया था, वो उसके होटल में ही ठहरा हुआ था । और नहीं तो वो इस बात का गिला जरूर करता कि उसने खुद शिवारामन को ये बात क्यों नहीं बताई थी ! अब तो शिवारामन की निगाह में आने से बचे रहना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि वो अपने पचास हजार रुपये बर्बाद हो गए होने की शिकायत कर सकता था ।


जोकि इलाज के नतीजे से नाउम्मीद हुआ वो जरूर करता।


वो भीतर दाखिल हुआ और फिर लिपट में दाखिल होने की जगह सीढियों की तरफ बढ़ा ।


पहली मंजिल पर पहुंचकर उसने दूसरी मंजिल की सीढियों पर कदम रखा ही था कि पीछे से आवाज आई"मिस्टर नाथ !"


जीतसिंह ठिठका, घूमा । उसने सामने निगाह दौड़ाई


नेपोलियन हाल से निकलकर शिवारामन उसकी तरफ बढ़ा चला आ रहा था ।


सत्यानाश !


फिर ये देखकर वो सकपकाया कि शिवारामन नाराज या हलकान या परेशान दिखने की जगह मुस्करा रहा था । मुस्कराहट की लकीर उसके चेहरे पर एक कान से दूसरे कान तक खिंची हुई थी ।


क्या माजरा था ?


वो करीब पहुंचा तो उसने बड़ी गर्मजोशी से जीतसिंह से हाथ मिलाया ।


“आप इधर कैसे ?" - वो बोला ।


"यूं ही जरा" - जीतसिंह ने फिर भी उसे गोलमोल जवाब ही दिया - "तीसरी मंजिल पर एक दोस्त से मिलने जा रहा था । "


"क्लब में आप दोबारा दिखाई ही नहीं दिए ।"


"मुझे एकाएक शहर से बाहर जाना पड़ गया था । आज ही लौटा हूं।"


"तभी तो । मैं तो तड़प रहा था आपसे मिलने के लिए|"


कम्बख्त अब अपनी रकम की बर्बादी का रोना शुरू करेगा।


"क्यों ?" - प्रत्यक्षत: वो सहज भाव से बोला ।


"आपको नहीं मालूम ?"


"मालूम तो है लेकिन... आप ही कहिए आप क्या कहना चाहते हैं ?”


“मिस्टर नाथ, मैं आप का शुक्रगुजार होना चाहता हूं|"


“जी !"


"फ्रॉम दि कोर ऑफ माई हार्ट । आपने मेरी जान बचा ली।"


"ए... ऐसा ?"


“जी हां । जो काम डॉक्टर सोनटाके जैसे बड़े स्पेशलिस्ट के महंगे इलाज ने न किया, वो आपके टोटके ने कर दिखाया । "


"मैं कुछ समझा नहीं, जनाब ।”


“आप सब समझ रहे हैं । अपने एफर्ट के लिए कोई क्रेडिट नहीं लेना चाहते इसलिए माडेस्टी दिखा रहे हैं। भले लोगों की ये ही तो खास खूबी होती है। इसी को तो आपकी जुबान में कहते हैं नेकी कर दरिया में डाल ।”


जीतसिंह खामोश रहा ।


"नहीं समझे ?" - शिवारामन बोला ।


जीतसिंह ने हिचकिचाते हुए इन्कार में सिर हिलाया ।


"मिस्टर नाथ, मैं ठीक हो गया हूं।"


"जी !"


“करिश्मा हो गया । आराम तो मुझे अगले ही दिन महसूस होने लगा था, लेकिन अब तो मैं एकदम ठीक हो गया हूं।"


“अच्छा ।"


"जी हां । " "फिर तो बधाई है आपको "


"बधाई तो आपको और सिर्फ आपको है, साहब । मेरी तो जिन्दगी ही बर्बाद हुई जा रही थी । आपने बचा ली । मरता क्या न करता के अन्दाज से मैंने आपकी सुझाई तरकीब आजमाई थी, लेकिन जो नतीजा सामने आया, उसकी रू में अब तो मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि विलायत तक से पढ के आए डॉक्टरों को कुछ नहीं आता। जो दम हमारे पुराने टोटकों में है, वो किसी कैप्सूल, किसी इंजेक्शन में नहीं । भई वाह ! क्या इलाज बताया ! ऊपर से मजा आया सो अलग। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बाकी जिन्दगी में कभी किसी कुमारी कन्या के साथ हमबिस्तर होने का इत्तफाक होगा।"


अब जीतसिंह उसे कैसे बताता कि कन्या कुमारी थी ही नहीं तो कथित इलाज कैसे कार आमद हुआ हो सकता था ! जरूर आखिरकार डॉक्टर सोनटाके की दवाई ने ही असर दिखाना शुरू किया था जिसे कि वो कुमारी कन्या का कमाल मान बैठा था ।


"और सुनाइए" - शिवारामन पूर्ववत् मुस्कराता बोला - "आपके फ्रेंड का क्या हाल है ?"


"फ्रेंड !"


“वही जिनके साथ आपने मेरे इलाज का इंतजाम था । जिन्हें मेरे वाली ही प्रॉब्लम थी । "


"नवलानी साहब !”


"वही ।"


"वो तो आप जितने खुशकिस्मत न निकले ।"


“अभी भी तकलीफ में हैं ?"


“जी हां । बदस्तूर ।"


"जरा भी फर्क नहीं पड़ा ?"


"न।"


“जरूर उनकी वाली छोकरी" - शिवारामन उसके कान के करीब मुंह ले जाकर राजदाराना लहजे में बोला "कुमारी कन्या नहीं होगी । वर्जिन नहीं होगी।”


"हो सकता है ।"


"वर्जिन गर्ल ब्लीड्स, यू नो । उनके वाली ने सिर्फ हाय-तौबा ही कुमारी कन्या जैसी मचाई होगी जिससे कि वो धोखा खा गए होंगे ।”


"हो सकता है ।"


"हो सकता है नहीं, है । वरना वो भी मेरी तरह ठीक न हो गए होते !"


"बात तो आपकी ठीक है । "


"आप उनके लिए फिर से कोई नई लड़की तलाश कीजिए लेकिन इस बार देखभाल के । गारण्टी करके ।"


"मैं ऐसा ही करूंगा।"


“आज आप क्लब में आ रहे हैं ?"


"कह नहीं सकता । क्यों ?"


"मैं आपको ट्रीट देना चाहता हूं।"


"क्या देना चाहते हैं?"


"ट्रीट | आपकी दावत करना चाहता हूं।"


“आज नहीं, जनाब । मैं ये इज्जत फिर कभी हासिल करूंगा।"


"ठीक है । फिर कभी सही । लेकिन एक बात याद रखिएगा ।"


"क्या ?"


“आज के बाद आप जिमखाना क्लब में मेरे और सिर्फ मेरे मेहमान होंगे। मैं उधर आपकी बाबत बोल के रखूंगा।"


"शुक्रिया ।"


"और कभी इस होटल में ठहरने का इत्तफाक हो तो आपके लिए सब कुछ फ्री। एवरीथिंग ऑन दि हाउस ।”


"शुक्रिया ! शुक्रिया !”


“अब आप मुझे इजाजत दीजिए । कल यहां एक बहुत बड़ी कनवेंशन शुरू हो रही है जिसकी वजह से मैं बहुत बिजी हूं । वरना आज मैं आपका पीछा नहीं छोड़ने वाला था ।"


"कोई वान्... बात नहीं । क्लब में मुलाकात होगी ।"


“जी हां । जी हां ।”


उसने फिर बड़ी गर्मजोशी से जीतसिंह से हाथ मिलाया और घूमकर वापस नेपोलियन हाल की ओर बढ चला ।


चमत्कृत सा जीतसिंह सीढियां चढने लगा ।


वो अपने कमरे के दरवाजे पर पहुंचा। उसने दरवाजे पर पूर्वनिर्धारित विशिष्ट दस्तक दी तो इमरान मिर्ची ने दरवाजा खोला । जीतसिंह भीतर दाखिल हुआ तो उसने फुर्ती से दरवाजा पूर्ववत् बंद कर दिया ।


"कैसा चल रहा है ?" - जीतसिंह बोला ।


"ठीक है।" - मिर्ची बोला ।


"सिन्धी भाई कहां है ? "


"टायलेट में ।"


"हूं।"


लगा । फिर जीतसिंह खोदे जा रहे फर्श का मुआयना करने


था ?" "बाप” - मिर्ची धीरे से बोला- "मैं कुछ कहना चाहता


जीतसिंह उठकर सीधा हुआ।


"क्या ?" - उसने पूछा ।


"बल्कि" - मिर्ची सशंक भाव से टायलेट के बन्द दरवाजे की ओर देखता हुआ बोला- "कुछ पूछना चाहता था |"


"क्या ?"


"ये अपना कार्लो कैसा आदमी है ?"


"क्या मतलब ?"


"मतलब यही कि... कैसा आदमी है ?"


"क्यों पूछ रहे हो ?"


"मैं उसे जानता नहीं । "


"जानते तो मुझे भी नहीं हो । नवलानी को भी नहीं हो । बिलथरे को भी नहीं हो । यहां आने से पहले किसे जानते थे तुम ?"


"उनकी बात अलग है । "


"क्यों अलग है ?"


"क्योंकि वो... तुम... सब... मेरे जैसे हैं लेकिन... लेकिन..."


"क्या लेकिन ? जो कहना है साफ कहो ।”


"मुझे फिरंगियों का एतबार नहीं ।"


“कौन फिरंगी ? कार्लो ?"


"हां ।”


"अरे अहमक, वो गोवानी है। गोवा हिन्दोस्तान का हिस्सा है । हिन्दोस्तानी है वो। जैसे कि हम सब हैं । "


"कभी तो फिरंगी होगा। सेंट फ्रांसिस की कसम खाता है। हमारे यहां ऐसे विलायती नामों वाले भगवान कहां होते हैं ! "


मुल्क “उसका मजहब अलग है। धर्म अलग है । हमारे की ये खूबी है कि इसमें किसी भी धर्म का भीडू इधर रह सकता है । बिलथरे मराठा, मैं हिमाचली, नवलानी सिन्धी और तू मुसलमान हो सकता है तो कार्लो गोवानी क्यों नहीं हो सकता, भई ? "


" यानी कि वो फिरंगी नहीं ?"


"हो भी तो क्या है ?"


"मुझे फिरंगियों पर एतबार नहीं, वो धोखेबाज होते हैं।”


"फिरंगी अंग्रेज को बोलते हैं। कालो गोवानी है । गोवा कभी पुर्तगाल के कब्जे में था जैसे कि हिन्दोस्तान कभी अंग्रेजों के कब्जे में था । जैसे पहले हिन्दोस्तान आजाद हुआ था वैसे ही बाद में गोवा आजाद हुआ था । गोवानी कार्लो पूरा पूरा हिन्दोस्तानी है ।"


"पक्की बात ?"


"हां, पक्की बात ।”


"फिर क्या वान्दा है !”


तभी नवलानी टायलेट से बाहर निकला ।


***

रात के साढ़े ग्यारह बजे थे जबकि कर्वे नगर में निर्मल कोठारी के चौकीदार ने बाहर सड़क पर से आती दो जनों के ऊंचा-ऊंचा बोलने की आवाजें सुनीं ।


उस घड़ी कोठी में अंधेरा था जो ये स्थापित करता था कि सब लोग सो चुके थे। केवल सामने बरामदे में एक लाइट जल रही थी जिसकी थोड़ी बहुत रोशनी फाटक तक भी पहुंच रही थी ।


फाटक को दस बजे ही भीतर से ताला लग जाता था जो किसी आगन्तुक के लिए तभी खोला जाता था जबकि चौकीदार फाटक में बनी एक छोटी-सी खिड़की को खोलकर बाहर झांककर आगन्तुक की बाबत अपनी तसल्ली कर लेता था ।


चौकीदार ने वो खिड़की खोली और बाहर झांका ।


जो नजारा सामने आया, वो दिलचस्पी से खाली नहीं था


कोई भीडू, जो साफ-साफ टुन्न मालूम होता था, पुलिस के एक हवलदार से उलझ रहा था ।


"क्या गश्त करता है शाला तुम ?" - मिर्ची आगे पीछे यूं झूलता हुआ बोला, जैसे नशे के आधिक्य में स्थिर खड़ा न हो या रहा हो- "थाने में शोता है, घर पर शोता है, जहां दांव लगे शोता है । आज शाला इत्तफाक से अपने किशी काम शे शडक पर निकल आया तो बोलता है गश्त करता है ?"


 "क्या बकता है ?" - हवलदार नवलानी कड़ककर बोला ।


“ए । ज्याश्ती श्याना बनने का नहीं है । हम शाला इधर का इज्जतदार शिटीजन है । अदब शे बोलना मांगता है । शलाम करना मांगता है । मैं शाला टैकश भरता है तो तेरे फू पगार मिलता है । मालूम ?"


"मैं तेरा लिहाज कर रहा हूं । चुपचाप चला जा वरना...


“जो पगार भरता है वो एम्प्लोयर होता है । मैं शाला तेरा एप्यलायर | कैशा एम्प्लोयी है जो शाब को शैलूट नहीं मारता !"


"बन्द कर दूंगा ।"


"किशको बन्द कर देगा ? मैं शाला चोर है ? डाकू है?"


"तू टुन्न है । नशे में सड़क पर बोम मारते फिरना मना है । गिरफ्तार कर लूंगा।"


"कैशे गिरफ्तार कर लेगा ? मैं शाला पुलिश को बुलाएगा। मिलिट्री को बुलाएगा ।"


"तू ऐसे नहीं मानेगा ।" - नवलानी ने उसे गिरहबान से पकड़ लिया ।


"पुलिश !" - मिर्ची चिल्लाया - "पुलिश ! "


"अबे, साले । मैं ही पुलिस हूं।"


"पुलिश ! पुलिश !"


नवलानी उसे गिरहबान से पकड़कर लगभग घसीटता हुआ बन्द फाटक के करीब लाया और झरोखे जैसी खिड़की से बाहर झांकते चौकीदार से बोला - "फाटक खोल । "


"क्यों ?" - चौकीदार सकपकाया ।


"देखता नहीं क्यों ? इस बेवड़े को ले जाकर हवालात में बन्द करना है वरना ये शोर मचा मचाकर सारे इलाके में जाग करा देगा । मैं इसे अकेला थाने नहीं ले जा सकता । फोन करके मदद मंगानी है ।"


“ओह ।”


चौकीदार ने फाटक खोला ।


“बाहर आके इसे दूसरी तरफ से पकड़ ।" - नवलानी बोला ।


चौकीदार बाहर निकला ।


तब मिर्ची ने यूं जाहिर किया जैसे गिरफ्तारी के अन्देशे ने उसके होश ठिकाने लगा दिए हों ।


“माफ कर दो, बाप ।” - वो गिड़गिड़ाता हुआ बोला "मैं नशे में ज्यास्ती बोल गया ।"


“अब नशा उतर गया ?" - नवलानी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला । 


"हां बाप । उतर गया।"


“अभी हवालात में चल के डंडा परेड होगी तो बिल्कुल उतर जाएगा।"


"अभी भी बिल्कुल उतर गया, बाप । इस बार माफ कर दो । आइन्दा ऐसी हरकत नहीं करूंगा।"


"फिर बाटली मारेगा, फिर भूल जाएगा।”


"नहीं भूलूंगा, बाप । मैं घर बैठ के पिऊंगा।" "लेकिन पिएगा जरूर ।"


"आदत से मजबूर है न ! लेकिन बोम नहीं । मसखरी नहीं। गलाटा नहीं । वादा करता है । "


"छोड़ दो, हवलदार साहब ।" - चौकीदार बोला - "क्या फायदा बेवड़े के मुंह लगने का !"


"मेरे को गाली देता था ।”


"खता हुई, बाप ।" - मिर्ची पहले से ज्यादा गिड़गिड़ाया - "माफ कर दो। पांव पड़ता है ।"


- "जाने दो, हवलदार साहब ।" - चौकीदार बोला . "पछता रहा है बेचारा ।”


"ठीक है।" - नवलानी बोला- "तुम कहते हो तो..."


उसने मिर्ची का गिरहबान छोड़ दिया ।


मिर्ची सरपट एक ओर भागा ।


नवलानी भी अपना डंडा हिलाता वहां से रुख्सत हो गया ।


*****

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