"रुकिये ।" - आनन्द व्यग्र भाव से बोला "प्लीज एक मिनट रुकिये ।" -


"ये रुकने दें तब न ?"


"ये आपका बड़प्पन है कि आप यूं जा रहे हैं वर्ना मैं क्या जानता नहीं कि ये आपको यहां रुकने से नहीं रोक सकतीं । आप पुलिस टीम का हिस्सा हैं, आप तो चाहे तो इसे यहां से बाहर कर सकते हैं । "


डॉक्टर मुस्कराया, उसने एक बार शैलजा की तरफ देखा और फिर बोला - "क्या कहना चाहते हो ?"


“कहना नहीं, पूछना चाहता हूं । आपकी बातों से मुझे लगता है कि आप इसे कातिल समझते हैं । "


"समझता नहीं हूं।"


"तो ?"


"जानता हूं।"


"क्या ?"


"ये कातिल है और कत्ल का इलजाम बेचारे गऊगणेश प्रभात चावला पर थोपने की तमन्नाई है । ।”


"लेकिन इसकी एलीबाई, मेरी गवाही, कि ये कत्ल के वक्त मेरे साथ मेरे मोटल में थी ?"


"झूठी है । और आप से बेहतर इस बात को कौन जानता है ?" 


“आप साबित कर सकते हैं कि मेरे गवाही झूठी है ?"


" पुलिस करेगी। पुलिस का काम है ये। एक बार आपकी गवाही शक के दायरे में आ जाने के बाद पुलिस के लिये ये कोई बहुत बड़ा काम नहीं होगा। देख लीजियेगा बहुत जल्द आप ही गा-गाकर असलियत बयान कर रहे होंगे ।”


वो बेचैन दिखाई देने लगा ।


"कत्ल के मामले में झूठी गवाही की सजा गम्भीर होती है।" 


"सजा ?"


" और क्या इनाम !"


"डॉक्टर साहब" - एकाएक वो निर्णायक स्वर में बोला "मैं गा नहीं सकता लेकिन असलियत बयान करना चाहता हूं।"


"गोल्डी !" - शैलजा चेतावनी भरे स्वर में चिल्लाई ।


“मैं अपना बयान बदलना चाहता हूं। मैं नया बयान दर्ज कराना चाहता हूं।"


"गोल्डी ! खबरदार !"


“आप इन्स्पेक्टर साहब को बुलाइये ।"


गोल्डी आनन्द ने जो बोला था, मुकम्मल झूठ झूठ वो नहीं था । उसमें सच का एक अंश बराबर था । शैलजा ने मोटल में ये कहकर उससे उसकी कार उधार मांगी थी कि वो लोकल शॉपिंग माल पर जाकर अपनी रोजमर्रा की जरूरत का कुछ सामान खरीदकर लाना चाहती थी जो कि वो घर से लेकर नहीं आ सकी थी। शॉपिंग माल जो कि गुड़गांव में थी, मोटल से सिर्फ पांच किलोमीटर दूर थी जहां से वो अपनी जरूरत की खरीददारी करके बड़े आराम से एक घण्टे के भीतर लौट सकती थी । आठ बजे वो मोटल से रवाना हुई थी और अपने कारोबार में व्यस्त गोल्डी आनन्द की इस बात की तरफ कतई तवज्जो नहीं गयी थी कि वो कब वापिस लौटी थी । उसे तो तब सूझा था कि अपनी खरीददारी से शैलजा एक घन्टे में वापिस नहीं लौटी थी जबकि पुलिस उस बाबत पूछताछ करने पहुंच गयी थी। उसे क्योंकि पूरा यकीन था कि शैलजा कातिल नहीं हो सकती थी इसलिये उसने उसे - अपनी मौजूदा माशूक को और होने वाली बीवी को किसी पचड़े से बचाने के लिये ये 'मामूली' झूठ बोलने में कोई हर्ज नहीं समझा था कि वो हर घड़ी उसकी निगाहों के सामने मोटल में थी । आखिर शॉपिंग माल तो वो गयी थी । वहां से की खरीददारी उसके पास थी, खरीददारी की उस तारीख की रसीद उसके पास थी । वो सच में शॉपिंग माल गयी थी तो क्योंकर वो कत्ल के लिये दिल्ली गयी हो सकती थी ? इश्कियाया हुआ वो शख्स नहीं जानता था कि वो शातिर औरत वो खरीदारी कर चुकने के बाद, उसे रास्ते में कहीं महफूज रख आने के बाद मोटल पहुंची थी। उसकी वो खरीददारी और खरीदारी की रसीद देखकर ही गोल्डी आनन्द को लगा था कि वो छोटा-सा झूठ बोलने में कोई हर्ज नहीं था । और फिर उसने अपने आपको समझाया था - उसने झूठ कहां बोला था ? उसने तो सच पूरा नहीं बोला था, उसने तो सिर्फ वे बात छुपायी थी कि वो शॉपिंग से एक घन्टे में नहीं, दो घन्टे में लौटी थी ।


"आपको हकीकत कैसे सूझी ?" - बाद में इन्स्पेक्टर अमरनाथ ने डॉक्टर बोला- "जैसे उसके शैलजा की बाबत ख्यालात थे और जो, हमें अब मालूम है कि, उसने प्रभात चावला पर भी जाहिर किये थे, उसकी रू में तो उसका वहां एक बार गया होना भी हैरानी की बात थी । बहरहाल एक बार तो किसी बहाने किसी को कहीं जाने के लिये बरगलाया जा सकता है; खासतौर से तब जबकि ऐसा करने वाली कोई हसीना हो, लेकिन दो बार की जहमत कोई भला क्यों करेगा ?"


"हूं।"


"तुमने पहले कदम से ही जिद पकड़ ली कि कातिल प्रभात था इसलिये उसकी किसी बात की तरफ, किसी दुहाई की तरफ तवज्जो नहीं दी । तुम इतना ही कबूल कर लेते कि मकतूल बार में उससे मिला था तो तुम्हें ये कबूल करना पड़ता कि तुरन्त बाद शैलजा के फ्लैट में उन दोनों की दोबारा मुलाकात का कोई मतलब नहीं था। दूसरे, मकतूल शैलजा के फ्लैट तक अपनी कार पर गया था और प्रभात ने वो फासला पैदल चलकर तय किया था । वो कहता है वो अतुल के बार से रुख्सत होने के बहुत देर बाद बार से रवाना हुआ था लेकिन अगर वो फौरन भी रवाना हुआ होता तो भी वो पैदल कैसे अतुल से पहले फ्लैट पर पहुंच जाता जहां कि वो अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोलकर अतुल की वहां आमद का इन्तजार कर रहा होता ताकि वो उसे शूट कर पाता ?"


"ठीक ।"


" अब हम जानते हैं जो किया था शैलजा ने किया था ।उसने किसी बहाने अतुल को नौ बजे के करीब अपने फ्लैट पर आने को तैयार कर लिया था, वो गोल्डी आनन्द की कार चलाती नौ बजे के पहले डकबिल मोटल से वहां पहुंची थी, फायर एस्केप के रास्ते चोरों की तरह अपने फ्लैट में दाखिल हुई थी इस काम के लिए कोई खिड़की-दरवाजा वो पहले ही खुला छोड़ गयी होगी- भीतर की तरफ से प्रवेश द्वार खोला था और प्रभात की रिवाल्वर लेकर अतुल के इन्तजार में छुपकर बैठ गयी थी।"


"प्रभात की रिवाल्वर उसके काबू में कैसे आयी ?"


"वो क्या बड़ी बात थी ? जब वो रहता ही वहीं था तो उसका साजोसामान भी तो वहीं होता !"


"फिर ?"


"पूर्वनिर्धारित अप्वायन्टमेंट के मुताबिक अतुल फ्लैट पर पहुंचा, शैलजा ने उसे शूट कर दिया - घन गर्जन के साथ होती तेज बरसात में गोली की आवाज किसी को सुनाई न दी शैलजा ने उसका मैकिंटाश और हैट कब्जाया दोनों चीजों को खुद पहना और वहां से निकल गयी ।"


"इसका मतलब ये हुआ कि मालती बतरा ने वहां पहुंचते अतुल वर्मा को देखा था लेकिन वहां से रुख्सत होते शैलजा माथुर को देखा था ?"


"बराबर यही मतलब हुआ । तुमने देखा ही होगा कि कदकाठ में अतुल और शैलजा एक जैसे हैं; अतुल मर्दों के लिहाज से ठिगना है और शैलजा औरतों के लिहाज से लम्बी है।"


"वापिसी में मालती बतरा ने बन्दा न पहचाना, पोशाक पहचानी !"


“ऐग्जैक्टली । वो पोशाक क्योंकि स्थापित था कि अतुल पहने था- जो कि एक बार बाहर बाल्कनी पर आया था और चमकती बिजली में मालती बतरा ने उसकी सूरत देखी थी इसलिये उस पोशाक में वहां से रुख्सत होते शख्स को अतुल समझना उसके लिये स्वाभाविक था । हकीकतन उस घड़ी अतुल फ्लैट में मरा पड़ा था और कातिला वहां से सेफ निकली जा रही थी ।" -


"हूं।"


- "वहां से निकल कर शैलजा दूर खड़ी मकतूल की कार के पास पहुंची, उसने कार की चाबी या तो मकतूल की जेब से निकाली थी या वो मैकिंटोश की जेब में थी, बहरहाल उसने कार खोली, मैकिंटोश और हैट भीतर डाला, चाबी को इग्नीशन में छोड़ा ताकि बाद में समझा जाता कि कार का मालिक ही बेध्यानी में चाबी वहां से निकालना भूल गया था - गोल्डी की उस कार में सवार हुई जिस पर वहां पहुंची थी, और शॉपिंग माल से खरीददारी के पहले से तैयार किये सबूत के साथ वापिस मोटल पहुंच गयी । उसकी इस चतुराई का हासिल ये निकला कि जो कत्ल नौ बजे हो भी चुका हुआ था उसे मालती बतरा की गवाही के सदके दस बजे के करीब हुआ समझा गया और दस बजे तो शैलजा मोटल में मौजूद थी । इसी वजह से गोल्डी आनन्द को ये झूठ बोलने में कोई हर्ज न दिखाई दिया कि वो हर घड़ी मोटल में मौजूद थी । " - -


"लेकिन दस बजे के करीब गोली की आवाज सुनी गयीं थी।"


"समझी गयी थी कि वो गोली की आवाज थी । किसी खुराफाती दिमाग वाले पड़ोसी ने किसी ट्रक या और वाहन के बैक फायर करने की आवाज सुनी थी, बड़े शक पैदा करने वाले हालात में प्रभात को चोरों की तरह पिछवाड़े में फायर एस्केप की सीढ़ियों पर देखा था और कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गया था कि वो कातिल था और कत्ल करके फरार हो रहा था।"


"कबूल । सब कबूल । लेकिन अब लाख रूपये का सवाल ये है कि उस औरत को अतुल वर्मा का कत्ल करने की जरूरत क्या थी ?"


"उस जरूरत को समझने के लिए तुम्हें इस मुहावरे को समझना होगा की हैल हैथ नो फ्यूरी लाइफ ए वूमैन स्कान्ड । तिरस्कृत महिला से ज्यादा कहरबरपा शै दुनिया में कोई नहीं । अतुल वर्मा एक तो उससे फंसा नहीं, ऊपर से 'सीमित ग्राहकों वाली वेश्या' बताकर उसे उसकी जात दिखा गया । ऐसी औरत का कहर वैसे ही टूटना होता है जैसे चोट खाई नागिन का टूटता है।"


"अतुल वर्मा का कत्ल उसने बाकायदा स्कीम बनाकर किया लेकिन बतौर सस्पैक्ट प्रभात चावला खामखाह हालात के लपेटे में आ गया ?"


"हां । और ये शैलजा के लिये फायदे की बात थी जो कि उसकी तरक्की का कोई स्कोप दिखाई देता न होने की वजह से उससे आजिज आ चुकी थी और यूं उसका उससे भी पीछा छूट सकता था और वो अपने नये मुर्गे गोल्डी आनन्द की तरफ मुकम्मल तवज्जो देने के काबिल बन सकती थी।"


"और ?”


"और यही कि प्रभात के कैरेक्टर को मैं पहले से जानता समझता था इसलिये मुझे यकीन था कि वो कत्ल जैसा कदम हरगिज नहीं उठा सकता था। एक बार उसको बेगुनाह मान लेने पर मेरी तवज्जो शैलजा की तरफ जाना स्वभाविक था जिसका फ्लैट मौकायवारदात था, जिसकी आलायकत्ल; प्रभात की रिवाल्वर, तक पहुंच थी और जो इन्तकाम के शोलों में झुलस रही थी। अब अगर वो लड़की कातिल थी तो जाहिर था कि उसको हासिल उसकी एलीबाई झूठी थी । फिर वो एल एलीबाई टूटने की देर थी कि तमाम किस्सा ही खत्म हो गया ।"


"हां । आप तो नाहक डाक्टर बने, जनाब, आपको तो जासूस होना चाहिये था । "


डाक्टर हंसा ।


“अब एक मेहरबानी और कीजिये ।"


"क्या ?"


"मौजूदा हालात में मेरा तो मुंह बनता नहीं उस लड़के के रूबरू होने का । अब आप ही जाकर प्रभात को खबर कीजिये कि वो आजाद है। उस पर कोई चार्ज नहीं है क्योंकि असल कातिल पकड़ा जा चुका है ।"


"मैं इससे बेहतर कुछ करूंगा।"


"क्या ?"


"मैं उसका उजड़ा घर बसाने की कोशिश करूंगा। पराई नार से जब मोह भंग होता है तो भार्या के पहलू में ही पनाह हासिल होती है। समझाऊंगा मैं ये बात उसे । उसकी ये रट भी बन्द कराने की कोशिश करूंगा कि उसकी तकदीर हमेशा उसके साथ डण्डीमार की तरह पेश आती है । सच में ऐसा होता तो उसके कदम फांसी के फन्दे की तरफ बढ़ रहे होते और उसको उस अंजाम तक पहुंचाने वाली औरत गोल्ड के बने गोल्डी के साथ अपने जगमग मुस्तकबिल के ख्वाब देख रही होती । देखना, बहुत जल्द प्रभात चावला नाम का भटका हुआ, कटी पतंग बना, नौजवान एक पत्नी का पति होगा, एक बेटे का बाप होगा, एक ईमानदारी और मेहनत से रिजक कमाने वाला गृहस्थ होगा और अपनी आइन्दा जिन्दगी को उसी तकदीर का तोफा तसलीम कर चुका होगा जो उसे हमेशा डण्डीमार लगती थी ।"


समाप्त