"नहीं सूझा था ?"


"इतनी शिद्दत से नहीं सूझा था । मैं... मैंने... बस सोचा था कि... मेरे सामने प्रभात की मुखालफत की उसके पास होगी कोई वजह ।”


" ऐसी कोई वजह आपको सूझती है ? "


“नहीं..."


"जरा सोच के जवाब दीजिये । "


"नहीं ।”


"मुझे सूझती है।"


वो सकपकाई, उसकी भवें उठीं ।


“शायद उसकी निसबत आप के मुकाबले में प्रभात से ज्यादा थी। शायद वो उस हद तक आपको गर्ल फ्रेंड नहीं समझता था जिस हद तक प्रभात को फ्रेंड समझता था ।"


"क्या मतलब हुआ इसका ?"


"शायद वो प्रभात के आपसे ताल्लुकात को गलत और नाजायज मानता था और चाहता था कि प्रभात आपके सम्मोहन का जाल तोड़कर अपने बीवी-बच्चे के पास लौट जाये।"


वो हकबकाई ।


" आपको मालूम है न कि वो शादीशुदा है और उसके एक बच्चा भी है ?"


“अपनी बीवी से उसकी अलहदगी हो चुकी है।" - वो बोली । 


"लेकिन तलाक नहीं हो गया हुआ । कानूनी तौर पर वो आज भी उसकी बीवी है और उसके बच्चे की मां है । "


"ये फिजूल की बातें हैं ।" - वो झुंझला कर बोली "अगर वो अपनी बीवी के पास लौट जाना चाहता था तो उसे कौन रोक सकता था ?"


" आप बताइये ।"


"कोई नहीं रोक सकता था। लेकिन वो लौटना कहां चाहता था । जाके पूछो उससे । उसे तो मेरे सामने अपनी दुनिया खत्म दिखाई देती थी । वो तो कुल जहान को छोड़ सकता था, मुझे नहीं छोड़ सकता था । "


"कहता था वो ऐसा ?"


"धमका के कहता था ।"


"जी !”


"जी हां । तभी तो कहती हूं कि शराब पी-पीकर उसका दिमाग हिल गया था, उसमें कोई फितूर घर कर गया था । नशे में अक्सर कहता था कि वो मेरे और अपने बीच किसी को नहीं आने देगा ।”


“आपको उसकी ऐसी बातों से डर नहीं लगता था ?"


"कभी-कभार लगता था लेकिन मैं उसे नशे की बड़क समझकर नजरअन्दाज कर देती थी ।"


"ये बात को बहुत कम करके कह रही है।" - आनन्द बोला - "असल में ये प्रभात के मिजाज से काफी खौफजदा थी।"


"आपको कैसे मालूम ?"


"कुछ अरसा पहले एक वीकएण्ड इन दोनों ने मेरे मोटल में गुजारा था । तब इसने मुझे प्रभात के सनकी मिजाज की बाबत बताया था । तब मैने इसे खासतौर से कहा था कि अगर प्रभात फिर कभी आपे से बाहर होता लगे तो ये फौरन मुझे फोन करे ताकि मैं आकर स्थिति संभाल पाता।"


" आप क्या करते ?"


"कुछ तो करता ही ।"


"कभी ऐसा फोन आया आपको ?"


"नहीं ।”


"फोन तो मैंने न किया" - वो बोली- "लेकिन इस बात से मुझे तसल्ली बहुत थी कि प्रभात की किसी ज्यादती के खिलाफ गोल्डी मेरे मुहाफिज बन सकता था।"


"पच्चीस मील के फासले से ?"


"ये कभी फोन तो करती" - आनन्द बोला- "मैं उड़कर न आता तो कहते ।"


"काफी जानिसारी की बात है ।"


“जी!”


"कुछ नहीं।" - डॉक्टर फिर शैलजा की तरफ आकर्षित हुआ - “प्रभात से आपके गहरे ताल्लुकात कैसे बने ?"


"ओमेगा में हमें इकट्ठे नौकरी करते थे। वो चीफ डिजाइनर था, मैं उसकी सैक्रेट्री थी, ऐसे माहौल में ताल्लुकात बन ही जाते हैं।"


"हर बॉस के तो अपनी सैक्रेट्री से नहीं बन जाते । लिहाजा प्रभात में आपको कोई खास खूबी दिखाई देती होगी |"


"पर्सनैलिटी तो है उसकी खूबी वाली । ऊपर से डिजाइनर के तौर पर उसकी बड़ी धाक थी । यहां तक चर्चा था कि बहुत जल्द वो ओमेगा में पार्टनर बन जाने वाला था ।”


"यानी कि आर्थिक रूप से उसका भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता था ?"


"हां"


“भविष्य में जो कुछ उज्ज्वल था वो क्या ओमेगा की नौकरी छोड़ने पर खत्म न हो गया ?"


"हो तो गया लेकिन नौकरी ही तो छूटी थी, उसका टेलेन्ट तो बरकरार था । वो कहीं और जायन कर सकता था, वो अपना खुद का बिजनेस शुरू कर सकता था लेकिन वो तो ओमेगा छोड़ने के बाद जैसे बोतल के ही हवाले होकर रह गया ।”


"मैडम, मगर मैं गलत नहीं समझ रहा हूं तो मूलरूप से आपकी और उसकी जुगलबंदी में प्रमुख वजह यही थी कि आपको उसका भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल दिखाई देता था । "


"कोई खराबी है इसमें ? औरत जिस मर्द से नाता जोड़ती है, उसकी तरक्की की उम्मीद करती ही है ।"


"वो तरक्की न हो सके तो क्या करती है ?"


"क्या करती है ?"


"उससे पल्ला झाड़ लेती है। जैसे आपने झाड़ लिया । वो चिट्ठी लिखकर जो आपने पीछे फ्लैट में उसके लिये छोड़ी|"


"मैंने जो मुनासिब समझा, किया।" - वो फिर झुंझलाई "मौजूद हालात में वो ही मुनासिब था । "


"क्या आप उससे खौफजदा थीं !"


"ये भी बात थी । जैसी बातें वो अतुल की बाबत करता था, उससे तो लगता था कि कभी भी पागलखाने में भरती कराये जाने लायक केस बन जाने वाला था । "


"क्यों करता था ? जब अतुल आपकी फिराक में नहीं था तो क्यों करता था ?"


“उसी से क्यों नहीं पूछते ?"


"आप इतनी सुन्दर हैं, मॉडर्न हैं, आजादख्याल हैं, फिर अतुल पर आपकी वैसी दीवानगी क्यों न तारी हुई जैसी कि प्रभात पर तारी हुई ?"


"क्योंकि वो साला... आई सर सॉरी... पता नहीं क्या समझता था अपने आपको ! फिल्मों की दुनिया में कदम रखने का चांस मिल गया तो समझता था सारी हीरोइनें उसी के इर्द-गिर्द फिरेंगी ।"


"लिहाजा आपको अपने काबिल नहीं समझता था ।”


"खुशफहमी और किसे कहते हैं ?"


"प्रभात के काबिल भी नहीं समझता था !"


"ऐसा कौन बोला ?”


"बोला तो कोई नहीं लेकिन... खैर जाने दीजिये । अब आपका क्या इरादा है ?"


"किस बाबत ?"


“आपकी लाइफ स्टोरी का प्रभात वाला चैप्टर तो अब क्लोज हो गया । अब आगे ?"


"आपको उससे मतलब ?"


"मतलब क्या होना है ! मैंने तो महज एक सवाल किया था !" 


"मैं जवाब देता हूं।" - आनन्द गम्भीरता से बोला "ताकि आपकी जिज्ञासा शान्त हो सके। डॉक्टर साहब, मैं और शैलजा शादी करने वाले हैं ।”


“अच्छा ! फिर तो बधाई हो ।”


"शुक्रिया ।"


"तो आखिरकार मैडम की मन की मुराद यहां आकर पूरी हुई ।"


"क्या मतलब ?"


"मतलब मैडम को मालूम है ।"


"क्या मतलब है आपका ?" - शैलजा तीखे स्वर में बोली।


“एक गाडी छूट जाये तो कोई सफर का ख्याल नहीं छोड़ देता, दूसरी गाड़ी पकड़ने की कोशिश करता है । "


“क्या कहना चाहते हैं आप ? किसकी कौन-सी गाड़ी छूट गयी ?"


"आपकी । मकतूल की सूरत में । जिन्दा रहता, आपकी उम्मीद के मुताबिक तरक्की करता, आपके कब्जे में रहता तो एक दिन आप बालीवुड की जादूनगरी की जगमग में जगमगा रही होतीं । लेकिन आप की पेश न चली । "


"पेश न चली ?"


"हां । मुर्गा न फंसा । काबू में न आया । आप पर हंस के चल दिया । "


"गोल्डी" - वो रुआसे स्वर में बोली- "देखो तो ये क्या अनाप-शनाप बक रहे हैं मेरे बारे में !"


"डॉक्टर साहब" - आनन्द ने एक कदम आगे बढ़ाया और सख्ती से बोला - "आप खामोश हो जाइये । मेरी होने वाली बीवी को हलकान करने वाली अब एक भी बात आपने अपनी जुबान से निकाली तो मेरे से बुरा कोई न होगा ।"


"खातिर जमा रखो, भाई, इनसे मैंने जो कहना था वो कह चुका । लेकिन तुमसे अभी कुछ कहना है ।"


"क्या ?"


"जो नए होटल मोटल खोलने हैं जल्दी खोल लो वरना मैडम को नाउम्मीदी होगी और नाउम्मीदी इन्हें रास नहीं आती।”


"क्या मतलब ?"


"मैडम को प्रभात चावला से नाउम्मीदी हुई तो उसे मैडम की जिन्दगी से ही धक्का न मिला, अपनी जिन्दगी से भी धक्का मिलने का सामान हो गया । अतुल वर्मा से नाउम्मीदी हुई तो बेचारा जान से गया । लगता है मैडम को नाउम्मीद करना बाज लोगों की तन्दुरुस्ती पर भारी गुजरता है ।"


"आपको मेरे खिलाफ ऐसी वाही- तबाही बकने का कोई अख्तियार नहीं है।" - शैलजा आपे से बाहर होती बोली 'आप पुलिस के डॉक्टर हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप कुछ भी बक देंगे । अब आपने फिर कोई वाहियात बात मेरे खिलाफ जुबान से निकाली तो मैं... मैं आप पर इज्जत हत्तक का दावा करूंगी ।"


"कोर्ट में जायेंगी आप ?"


"हां । "


"लौट नहीं पायेंगी । वहीं बिठा ली जायेंगी ।"


"क्यों ?"


"क्योंकि दुनिया की कोई भी एलीबाई सौ फीसदी एयरटाइट नहीं होती । ए वर्ड टु दि वाइज, मैडम । एण्ड आई होप टु गॉड दैट यू आर वाइज ।”


" देखिये" - इस बार आनन्द बोला तो उसका लहजा पहले जैसा सख्त नहीं था - "अगर आप ये कहना चाहते हैं कि इसकी एलीबाई में कोई खामी है तो..." हैं


“खामी है तो मुझे उसकी खबर नहीं ।"


"तो फिर..."


"लेकिन कोई मुझे करोड़ों की रकम भी दे तो तुम्हारी जगह अपना तसव्वुर करने में मुझ गुरेज होगा ।"


"मैं कुछ समझा नहीं ।"


"प्रभात से, उसकी फितरत से मैं वाकिफ हूं। उसकी ये स्थापित आदत है कि जहां उसे विपत्ति दिखाई देती है वो वहां से पलायन कर जाता है। ताजातरीन मिसाल मकतूल की है जिससे उसे अपने जिन्दगी के लिये विपत्ति दिखाई दी तो उसने बोतल में पनाह तलाश कर ली । लेकिन मैडम की फितरत ऐसी नहीं है । इनकी मेरी स्टडी कहती है कि ये मैदान छोड़कर भागने वाली नहीं हैं। किसी विषम परिस्थिति से इन्हें दो-चार होना पड़ता है तो ये उसका डटकर मुकाबला करती हैं । ये जो हासिल करने का सपना देखती हैं, उसे हासिल करके रहती हैं । "


"हासिल ?"


"पैसा ! रुतबा ! ऐसी मध्यमवर्गीय युवती का हासिल और क्या हो सकता है ! पहले इन्हें अपना सपना एक फैशन डिजाइनर में साकार होता दिखाई दिया, फिर एक होनहार फिल्मी लेखक में साकार होता दिखाई दे रहा है जो कि बहुत जल्द होटलों की एक चेन का मालिक होगा। मैडम, मिस्टर आनन्द अपनी विचारी हुई मंजिल की तरफ कदम न बढ़ा सके तो आप क्या करेंगी ? कोई अगला कैन्डीडेट पहले से लाइन्ड अप है या अभी, मिस्टर आनन्द से निजात पाने के बाद, तलाश करेंगी ?"


"म... मेरे से निजात पाने के बाद ! !"


“आपकी होटल चेन मैडम की तलब के मुताबिक जल्दी खड़ी हो जायेगी तो जाहिर है कि ऐसी नौबत नहीं आयेगी । पैसा कमाइये, जनाब, रुतबा बुलन्द कीजिये ! हैसियत बड़ी बनाइये । फिर आप को कोई खतरा नहीं !"


"गैट आउट !" - शैलजा एकाएक विक्षिप्तों की तरह चिल्लाई - "गैट आउट ऑफ माई हाउस दिस मिनट !"


"यस, मैडम । गुड लक, मिस्टर आनन्द । आई नो यू विल बी नीडिंग लॉट्स ऑफ इट । मैं चलता हूं वर्ना मैडम और भड़क जायेंगी ।"