वाकिफ नहीं हो और जिनसे वाकिफ हुए बिना तुम कत्ल के बारे में कोई पुख्ता राय नहीं कायम कर सकते हो ।”
"मुझे इसकी गुजश्ता जिन्दगी से कुछ लेना-देना नहीं ।" - इन्स्पेक्टर तनिक झुंझलाये स्वर में बोला- "इस वजह से इसके साथ कोई रियायत नहीं बरती जा सकती कि पहले ये ऐसा महापुरुष था जिसने कभी मक्खी नही मारी थी । कत्ल के कारोबार में डेबिट-क्रेडिट नहीं चलता । दस बार कत्ल की नौबत आने पर इसने कत्ल नहीं किया था इसलिये इसका एक बार का किया कत्ल नजरअन्दाज क्या जाना चाहिये, ऐसा नहीं हो सकता । आप पुलिस के डॉक्टर हैं, खुद बताइये, क्या ऐसा हो सकता है ?"
डॉक्टर का सिर स्वयंमेव इंकार में हिला ।
"सो देयर यू आर ।"
डॉक्टर कुछ क्षण खामोश रहा, उसने एक बार सहानुभूतिपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा और फिर इन्स्पेक्टर से बोला- "मुझे लड़की के बारे में कुछ बताओ।"
"कौन लड़की ?" - इन्स्पेक्टर बोला ।
"जिसका ये फ्लैट है । जो तुम्हारे कथित प्रेम तिकोन का एक कोण है ।"
"उसमें स्पेशल कुछ नहीं है। दिल्ली की आम लड़कियों जैसी लड़की है । उसके व्यक्तित्व का काफी सारा अन्दाजा आपकी इस भड़कीले रहन-सहन की चुगली करते फ्लैट से ही हो सकता है। जैसा फ्लैशी ये फ्लैट है, वैसा ही फ्लैशी उस लड़की का किरदार है । ओमेगा गारमेन्ट्स एक्सपोर्ट्स नामक फर्म में सैक्रेट्री की नौकरी करती है जहां कि बतौर चीफ डिजाइनर पहले ये भी मुलाजिम था । उसके बारे में सबसे बड़ी बात ये है कि वो प्रेम तिकोन का एक कोण जरूर है लेकिन शक से अकदम बरी है क्योंकि वारदात के वक्त वो यहां से चालीस किलोमीटर दूर डकबिल मोटल में थी जो कि गुडगांव के करीब है।"
“स्थापित है।”
"निर्विवाद रूप से । शाम से वहीं थी ।”
"मैं उससे मिलना चाहता हूं।"
"क्यों ?"
"शायद वो ऐसा कुछ बता सके जिसकी वजह से इस नौजवान की बाबत तुम्हारी विचारधारा में कोई हिलडुल हो|"
"लेकिन आप क्यों ? ये डॉक्टर का काम तो नहीं !"
"मैं डॉक्टर होने के अलावा इसका हितचिन्तक भी हूं क्योंकि फैमिली फ्रेंड रह चुका हूं।"
"इसलिये डॉक्टरी छोड़कर जासूसी करेंगे ?"
"डॉक्टरी छोड़कर नहीं । और जासूसी नहीं करूंगा - जासूसी मेरा काम नहीं मेरे मन में जो जिज्ञासा है, उसे शान्त करने की कोशिश करूंगा।"
"क्या जिज्ञासा है ?"
"यही कि ये आज भी वैसा ही पलायनवादी प्रवृति का नौजवान है जैसा कि हमेशा था या इसका आज तक का स्थपित बिहेवियर पैटर्न टूट चुका है ।"
"आपकी ये जिज्ञासा शैलजा से मिलकर शान्त होगी ?"
"उम्मीद तो है ।"
तभी एक हवलदार वहां पहुंचा ।
"साहब, वो औरत आ गयी है ।" - वो बोला ।
“यहीं लेकर आओ।" - इन्स्पेक्टर बोला ।
"कौन औरत ?" - डॉक्टर ने पूछा ।
"मालती बतरा नाम है। सड़क के पार की इमारत के जिस फ्लैट में रहती है, वो ऐन इसके सामने पड़ता है । अधेड़ औरत है, बाल-बच्चा कोई नहीं इसलिये शाम को खाना वाना बनाकर पति के इन्तजार में बाल्कनी में बैठ जाती है। उसकी बाल्कनी से ये ड्राईगरूम साफ दिखाई देता है । वो इस फ्लैट की मालकिन शैलजा माथुर को तो जानती ही है, उससे नियमित रूप से मिलने आने वालों को भी जानती-पहचानती है । जैसे इसे । जैसे मकतूल को । अपनी बाल्कनी से हो सकता है। जैसे इसे । जैसे मकतूल को। अपनी बाल्कनी से हो सकता है उसने यहां ऐसा कुछ देखा हो जो" - उसने घूरकर प्रभात की तरफ देखा- "हमारे काम का हो ।"
तभी मालती बतरा ने वहां कदम रखा ।
उसका बयान हुआ।
“नौ बजे के करीब मैंने अतुल वर्मा को नीचे सड़क पर देखा था । तब बारिश हो रही थी जिससे बचने के लिये वो हैट और ओवरकोट पहने था । वो यू ही इमारत में दाखिल हुआ था और फिर मुझे यहां ड्राईगरूम में दिखाई दिया था। "
"रात के वक्त फासले से कैसे पहचाना आपने उसे ?" - इन्स्पेक्टर बोला ।
"तब नहीं पहचाना, जब यहां ऊपर ड्राइंगरूम में पहुंच गया, तब पहचाना, तब वो एक बार बाल्कनी पर निकला था और तभी बिजली चमकी थी और चमक सीधे उसके चेहरे पर पड़ी थी। मैंने उसे तब पहचाना था ।"
" आई सी । यहां क्या कह रहा था वो ?” |
“चहलकदमी कर रहा था। जैसे किसी का इन्तजार हो"
“घर की मालकिन तो शाम से घर नहीं थी, फिर इन्तजार किसका ?"
"मुझे क्या पता ! लेकिन लग यही रहा था कि वो मुलाकात के लिये आया था जो कि हो नहीं पा रही थी ।”
"घर की मालकिन से ?"
“शायद ।”
"वो भीतर कैसे दाखिल हुआ ?" - डॉक्टर बोला "जब घर की मालकिन घर नहीं थी तो जाहिर है कि वो फ्लैट को ताला लगाकर गयी होगी। उसने ताला कैसे खोला ?"
"मुझे क्या पता ?"
"ताला इसने खोला होगा।" - इन्स्पेक्टर प्रभात की ओर संकेत करता हुआ बोला- "अप्वायन्टमेंट इसके साथ होगी । वो इससे मिलने आया होगा । आखिर ये यहीं तो रहता है।"
"मेरे साथ अप्वायन्टमेंट खामखाह !" - प्रभात आवेश से बोला - “जब वो मेरे से बार में मिल चुका था तो यहां दोबारा मिलने का क्या मतलब ?"
"तुमने किसी बहाने उसे यहां बुलाया होगा ताकि तुम उसका कत्ल कर सको। तुम्हारे पास यहां की चाबी है न ?"
"चाबी तो है लेकिन...”
“फिर अभी चुप करो ।" - वो गवाह की तरफ घूमा - " आप आगे बढ़िये ।”
"तब मैंने इसे यहां नहीं देखा था ।" - मालती बोली ।
“नहीं देखा होगा ।" - इन्स्पेक्टर लापरवाही से बोला - "ये कहीं ओट में होगा। आपको अपनी बाल्कनी से मुकम्मल ड्राईगरूम तो नहीं दिखाई देता होगा न ?”
"वो तो है लेकिन अतुल वर्मा तो यहां से वापिस चला गया था ।"
"क्या !" - इन्स्पेक्टर चौंका - "क्या कहा आपने ?"
"उसने थोड़ी देर यहां चहलकदमी करते इन्तजार किया था, फिर यहां से चला गया था ।"
"चला गया था ! कहां चला गया था ?"
"मुझे क्या पता कहां चला गया था ?"
“आपने उसे यहां से रुख्सत होते देखा था ?"
"हां । यहां से निकलते भी देखा था, इमारत से निकलते भी देखा था और फिर फुटपाथ पर उस तरफ चलते भी देखा था जिधर से कि वो आया था । "
खड़ी थी ।" "जिधर कि" - डॉक्टर धीरे से बोला- "उसकी कार
"तब वक्त क्या था ?" - इन्स्पेक्टर बोला ।
"नौ से दो-तीन मिनट ऊपर का था ।" - मालती बोली ।
"लिहाजा वो पांचेक मिनट यहां ठहरा था ?”
"हां । "
" और फिर यहां से चला गया था ?"
"हां । "
"लेकिन जब वो यहां मरा पड़ा है तो जाहिर है कि लौट के आया था । "
"मैंने उसे लौट के आते नहीं देखा था ।”
"आपकी सड़क पर से तवज्जो हट गयी होगी ।"
"कैसे हट जाती ? मुझे अपने हसबैंड का इन्तजार था । वो सड़क पर से ही तो आते, उड़ कर थोड़े ही आते ?"
"कब तक मौजूद रही थीं आप बालकनी में ?"
"जब तक वो लौट नहीं आये थे ?"
"अरे, टाइम बोलिये । टाइम बोलिए क्या था तब ?"
" पौने दस बजे । "
“उसके बाद आप बाल्कनी से उठ गयी थीं ?"
"हां । "
"मकतूल इन्हें दोबारा लौटा दिखाई नहीं दिया था" - डॉक्टर बोला - "तो इसका मतलब है कि वो पौने दस के बाद किसी वक्त लौटा था । यानी कि पौने दस तक वो जिन्दा था |"
“उसका पौने दस के बाद किसी वक्त लौटा होना और भी साबित करता है कि ये ही कातिल है ।"
"लेकिन वो टाइम फैक्टर... जिसका मैंने हवाला दिया, वो...'
"उस बाबत आप खामोश ही रहें वो बेहतर होगा ।"
"क्यों ? क्योंकि उससे तुम्हारा केस हिलता है ?"
"क्योंकि उससे कन्फ्यूजन पैदा होता है। मैडम की गवाही से अब साफ जाहिर हो गया है कि मकतूल यहां किसी से मिलने आया था तो वो इस शख्स के अलावा और कोई नहीं हो सकता क्योंकि घर की मालकिन तो शाम को ही गुड़गांव चली गयी थी । इसी ने किसी बहाने से दस बजे के करीब मकतूल अतुल वर्मा को यहां बुलाया और फ्लैट से फ्लैट की मालकिन की गैरहाजिरी का फायदा उठाकर उसे शूट कर दिया । "
"मकतूल दस बजे इसके बुलावे पर यहां आया था तो नौ बजे किसके बुलाने पर आया था ?"
"वो यहां का रेगुलर विजिटर था, उसे किसी के बुलावे की जरूरत नहीं थी । वो वैसे ही यहां चला आया होगा।"
"फ्लैट की मालकिन से मिलने ?"
"हां । "
"जो कि यहां नहीं थी ?"
"उसे तो ये बात नहीं मालूम थी न !”
"उसे दरवाजा किसने खोला ?"
"ये कोई अहम सवाल नहीं । दरवाजा या तो फ्लैट की मालकिन की बेध्यानी में खुला रहा गया होगा या उसके पास भी चाबी होगी ।"
" ऐसी कोई चाबी मकतूल के पास से बरामद हुई ?”
इन्स्पेक्टर ने बड़े अनिच्छापूर्ण भाव में सिर हिलाया ।
"मेरे लिये क्या हुक्म है ?" - एकाएक मालती बोली ।
'आप जा सकती हैं। आमद का शुक्रिया ।”
वो वहां से विदा हो गयी ।
"अब जब ये स्थापित हो गया है" - पीछे प्रभात बोला - "कि अतुल वर्मा ने यहां दो फेरे लगाये थे और पहले फेरे में वो हैट और मैकिंटोश पहने था तो दूसरे फेरे में वो दोनों चीजें उसके जिस्म पर से कहां गायब हो गयीं ?"
" इन बातों से तुम्हारा कुछ बनने वाला नहीं है । " - से इन्स्पेक्टर बोला - " और नशे का असर तुम्हारी याददाश्त पर भी हो गया जान पड़ता है। मैंने अभी बोला था कि नहीं बोला था कि वो दोनों चीजें उसकी कार में पड़ी हैं। क्यों पड़ी हैं ? क्योंकि पहली बार जैसी मूसलाधार बारिश हो रही थी, वैसी दूसरी बार नहीं हो रही थी । तुम खुद इस बात का सबूत हो । दस बजे के आसपास तेज बारिश हो रही होती तो तुम भी तर- ब - तर दिखाई देते जबकि ऐसा नहीं है । इसी वजह से दूसरे फेरे में उसने मैकिंटोश और हैट उतारकर पीछे कार में डाल दिया ।"
" और कार की चाबी भी इग्नीशन में लटकी छोड़ आया।" - डॉक्टर धीरे बोला ।
"बेध्यानी में लोग-बाग आम ऐसी नादानी कर बैठते हैं
“चाबी की क्या बात है ?" - प्रभात उत्सुक भाव से बोला।
"मकतूल की कार की चाबी इग्नीशन में लगी पायी गयी है।"
"ये कोई अहम बात नहीं।" - इन्स्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला - " ऐसी भूल किसी से भी हो सकती है । तुम बोलो, यूं चाबी कार के भीतर छूट जाना क्या बहुत बड़ी बात है ?"
प्रभात ने इनकार में सिर हिलाया ।
“सो देयर ।”
"वो मेरी शैलजा से मुलाकात वाली बात तो बीच में ही रह गयी ।" - डाक्टर बोला ।
"वो बगल के कमरे में है।" - इन्स्पेक्टर बोला - "यूं आपकी कोई तसल्ली होती है तो जाइये, मिल आइये । मैं तब तक इसकी और खबर लेता हूं।"
प्रभात पर एक आश्वासनपूर्ण निगाह डालता डॉक्टर वहां से बाहर की तरफ बढ़ा ।
"बाई दि वे" - पीछे से इन्स्पेक्टर बोला- "यहां उसके साथ गोल्डी आनन्द भी मौजूद है । "
"कौन ?" - डाक्टर ठिठकर बोला ।
"गोल्डी आनन्द । जो डकबिल नाम के उस मोटल का मालिक है जहां शैलजा रहने गयी थी । वारदात की खबर लगाने पर वो ही शैलजा को वापिस दिल्ली लेकर आया था "
“आई सी ।”
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