"इसका मैकिंटोश और हैट कहां गया ?" - फिर एकाएक वो बोला ।
"क्या ?" - इन्स्पेक्टर सकपकाया ।
"ये मैकिंटोश पहने था, हैट पहने था, अब तो वो दोनों चीजें नहीं दिखाई दे रहीं !"
"तुम्हें कैसे मालूम कि ये मैकिंटोश और हैट पहने था ।”
"ये मुझे नजदीकी बार में मिला था । तब बाहर बारिश हो रही थी जिसकी वजह से ये मैकिंटोश और हैट पहने बार में पहुंचा था ।"
"कब मिला था ? "
“काफी टाइम हो गया ?"
"कितना काफी ?”
"ध्यान नहीं । शायद साढ़े आठ बजे मिला था । या नौ भी बजे हो सकते हैं।"
"क्यों मिला था ?"
"उसकी मर्जी । "
"क्या कहता था ?"
“याद नहीं ।”
"कितनी देर ठहरा तुम्हारे पास ?"
"ठीक से याद नहीं लेकिन ज्यादा देर नहीं ठहरा था । शायद पांच मिनट | "
"वहां तुम दोनों में कोई झगड़ा, कोई तकरार हुई ?"
"नहीं।”
"कुछ तो जरूर हुआ होगा जिसकी वजह से तुम यहां उसके पीछे-पीछे चले आये और उसे शूट कर दिया । "
"बिल्कुल झूठ ।"
"तुम तो ऐसा कहोगे ही । "
मैं फिर चुप हो गया ।
"मैकिंटोश और हैट इसके जिस्म पर मौजूद न होना कोई बड़ी बात नहीं । वो दोनों चीजें इसकी कार में मौजूद हैं जो नीचे सड़क पर इस इमारत से थोड़ा दूर खड़ी है । "
"तब बारिश बन्द हो गयी होगी ।"
"वो तो अभी भी हो रही है । "
"तब बन्द हो गयी होगी ।"
"बारिश लगातार हो रही है । "
"अरे, थोड़ी देर के लिये बन्द हो गयी होगी ।
"लिहाजा वापिसी में कार तक भीगते जाना उसे मंजूर था !"
"देखो, इस बहसबाजी से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला । ये बातें इस हकीकत पर पर्दा नहीं डाल सकतीं कि तुम कातिल हो ।"
"मैं नहीं हूं।"
"हो। तुम अपने आपको गिरफ्तार समझो ।”
"अच्छी बात है लेकिन मेरा एक सवाल है । "
"क्या ?"
"वो कहां है ?"
"कौन कहां हैं ?"
"फ्लैट की मालकिन । शैलजा माथुर ।"
“क्यों पूछ रहे हो ?"
"मिलना चाहता हूं।"
"क्यों ?"
"ताकि मैं उसे यकीन दिला सकूं कि मैं कातिल नहीं ।”
" ऐसा कोई करतब कर सकते हो तो यहां पुलिस के सामने करके दिखाओ ताकि तुम्हारी जान छूटे।”
“आप लोगों का कारोबार है जिस पर शक बन जाये यकीन न करना, वो मेरे साथ ऐसे पेश नहीं आयेगी ।"
"क्या कहने !" - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला "अभी मुलाकात नहीं हो सकती ।"
"वजह ?"
"वजह क्या ! बोला न, नहीं हो सकती ।”
“फरार हो गयी ?”
"फरार मुजरिम होते हैं।" "जो कि वो नहीं है ?"
"हां । स्थापित हो चुका है कि नहीं है । कत्ल के वक्त वो यहां नहीं थी ।"
"कैसे मालूम ?"
"पीछे चिट्ठी छोड़कर गयी कि वो वीकएण्ड के लिये गुडगांव जा रही थी ।"
"चिट्ठी ! किसके लिये ?"
"तुम्हारे लिये ।"
"जी !”
"पढ़ लो ।"
इन्स्पेक्टर ने उसे एक तहशुदा कागज सौंपा । उसने उसे खोला और शैलजा के हैण्डराइटिंग में उसे पर फर्ज तहरीर को पढ़ा । लिखा था:
प्रभात,
अतुल को लेकर तुम्हारे मन में जो ईर्ष्या की भावना घर कर गयी है और उसको मुद्दा बनाकर तुम जो अक्सर बेहूदा व्यवहार करने लगे हो और जलील इलजाम लगाने लगे हो, उससे मैं आजिज आ गयी हूं। मेरा मन इतना खिन्न है कि यहां सांस लेना दूभर लग रहा है । चेंज के लिये मैं वीकएण्ड के लिये गुडगांव गोल्डी आनन्द के डकबिल मोटल में जा रही हूं। मेरे लौटने तक मेरे फ्लैट पर मौजूद तुम्हारा हर साजोसामान यहां से बाहर होना चाहिये । बाकी तुम खुद समझदार हो ।
शैलजा
प्रभात चिट्ठी पढ़ चुका तो इन्स्पेक्टर ने उसे बढ़ी नफासत से उसकी उंगलियों में से सरका लिया ।
वो बोला ।
"इस चिट्ठी से हत्या का उद्देश्य भी साफ जाहिर होता है ।"
“क्या है उद्देश्य ?"
"तुम्हें तो मालूम ही है।"
“अब कुछ कहिये भी तो सही ?"
"उद्देश्य साफ है । उद्देश्य है रकीब को रास्ते से हटाना । यहां एक ऐसी लव ट्रायंगल स्थापित है जिसमें एक जने का सफाया लाजमी होता है । "
"फिल्मों की तरह ?"
"यही समझ लो । इस चिट्ठी से साफ जाहिर होता है कि मकतूल अतुल वर्मा को शैलजा से मुहब्बत थी, तुम्हें भी शैलजा से मुहब्बत थी । मुहब्बत की दौड़ में अतुल वर्मा तुमसे आगे निकला जा रहा था इसलिये तुम उससे ईर्ष्या करते थे । आज तुम बर्दाश्त की हद से गुजर गये, नशे से हासिल हुई वक्ती दिलेरी में अपने हाथ खून से रंग बैठे और फिर मौकायवारदात से फरार होते पकड़े गये ।"
"नानसेंस ।"
“खामखाह ! तुम्हारे पास हथियार था, मौका था, उद्देश्य था, नशे से हासिल होसला था, और क्या चाहिये होता है कत्ल करने के लिये ?"
"टाइम फैक्टर मैच नहीं करता ।" - डॉक्टर कदम धीरे से बोला ।
"क्या ! - इन्स्पेक्टर तनिक सकपकाया-सा बोला ।
“घातक गोली चलने में और इसके फायर एस्केप पर पकड़े जाने में पन्द्रह मिनट से ज्यादा का वक्फा है । इसने गोली चलाई और रिवाल्वर पर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछने के लिये लाश के सिरहाने रुका, ये बात तो समझ में आती है लेकिन गोली चलने के पन्द्रह मिनट बाद भी अभी इसका बैकयार्ड में फायर एस्केप पर मौजूद होना समझ में नहीं आता । वो भी थोड़ी बहुत देर नहीं, पूरे पन्द्रह मिनट, जिस दौरान एक पड़ोसी इसे वहां देख लेता इसकी बाबत संदिग्ध होकर पुलिस को फोन करता, पुलिस आती, लाश बरामद करती, फिर नीचे उतरती, घूमकर पिछवाड़े में पहुंचती और फायर एस्केप की पहली सीढ़ी मौजूद इसे गिरफ्तार करती । इन्स्पेक्टर, आल दिस इज नाट स्टैण्ड टू रीजन ।" ।
"ये नशे में था । " - इन्स्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला - " बुरी तरह से धुत्त था, ये नहीं जानता इसने कब कहां क्या किया !"
"फिर भी कत्ल के बाद पन्द्रह मिनट तक मौकायवारदात पर मौजूद रहना...'
“ऊंघ गया होगा, भूल गया होगा कि हमने फौरन यहां कूच कर जाना था । इसे ये ही अहसास नहीं रहा होगा कि कत्ल के पन्द्रह मिनट बाद तक अभी ये यहीं था । " से
"लेकिन" - प्रभात ने तीव्र विरोध किया - "रिवाल्वर पर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछना न भूला ।"
“उस बात पर तुम्हारा जीना मरना मुनहसर था।" - इंस्पेक्टर बोला - "इतनी अहमतरीन बात कोई नहीं भूलता ।"
"ये तो वही बात हुई कि चित्त भी मेरी और पुठ भी मेरी । मैं टुन्न था इसलिये मौकायवारदात से फौरन कूच करना भूल गया, टुन्न नहीं था इसलिये रिवाल्वर पर से फिंगरप्रिंट पोंछना न भूला ।"
“अभी ये तफ्तीश का शुरुआती दौर है। बाद में थाने में जब तफसील से तुम्हारा बयान लिया जायेगा तो सब घुंड़ियां सब खुल जायेगी। अभी पहली नजर में जो कुछ दिखाई दे रहा है वो सब तुम्हारे खिलाफ है और तुम्हारी गिरफ्तारी के लिये काफी है । "
"क्या दिखाई दे रहा है ?"
"ये दिखाई दे रहा है कि मकतूल को यहां बुलाकर उसे शूट कर देने का इरादा तुम पहले बनाये बैठे थे । किसी बहाने से तुमने उसे यहां बुलाया, जब वो यहां पहुंचा तो तुमने उसे शूट कर दिया ।"
"उस रिवाल्वर से जो कि मेरी मिल्कियत है, मेरे नाम रजिस्टर्ड है ?"
"जाहिर है ।”
"फिर मैंने उसे यहां मौकायवारदत पर क्यों छोड़ा ?"
"क्योंकि ये बात छुपी नहीं रहने वाली थी कि तुम एक ऐसी रिवाल्वर के मालिक थे जिससे कि खून हुआ था। तब तुम्हारा रिवाल्वर पेश कर पाना भी तुम्हारे लिये घातक होता और न कर पाना भी । इसलिये उस पर से उंगलियों के निशान पोंछ कर उसे यहीं फेंक देने की चालाकी की...
"ऐसी चालाकी करने सोचने की हालत थी मेरी ?"
"... ताकि बाद में तुम ये दावा कर सकते कि तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी रिवाल्वर मौकायवारदात पर कैसे पहुंच गयी"
"यही हकीकत है, इन्स्पेक्टर साहब । मुझे नहीं पता मेरी रिवाल्वर यहां कैसे पहुंच गयी !"
"तुम तो ये कहोगे ही क्योंकि रिवाल्वर की बाबत इसके अलावा कोई जवाब तुम्हारा हो ही नहीं सकता ।”
"मैं कातिल नहीं हूं।" - प्रभात कातर भाव से बोला ।
"मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं।" - इन्स्पेक्टर सख्ती से बोला ।
"मुझे है ।" - डाक्टर धीरे से बोला ।
इन्स्पेक्टर ने हकबका कर डॉक्टर की तरफ देखा ।
"आप पुलिस टीम का हिस्सा हैं, डाक्टर साहब" - फिर वो बोला - "आपको पुलिस की मुखालफत में नहीं बोलना चाहिये ।”
"पहले कभी बोला ?"
"नहीं।"
"तो फिर...'
"अब क्यों बोल रहे हैं ?"
"क्योंकि तुम्हारा इस बार का मुलजिम सिर्फ एक नग नहीं है । ही इज नाट जस्ट एनीबाडी अंगेस्ट हूम आई एम पार्टी टु पुलिस इन्वैस्टिगेशन । मैं इस शख्स को जाती तौर पर जानता हूं।"
प्रभात ने हैरानी से डॉक्टर की तरफ देखा ।
"मैं इसकी मुकम्मल केस हिस्ट्री को जानता हूं इसलिये जानता हूं कि ऐसे हालात में जिन्हें तुमने लव ट्रायंगल कहा ये शख्स वायलेंट नहीं हो सकता ।" -
"आप" - प्रभात असमंजसपूर्ण भाव से बोला “आप..."
"तुम मुझे नहीं जानते हो लेकिन मैं तुम्हारे माता-पिता दोनों से वाकिफ था।"
"ये वायलेंट क्यों नहीं हो सकता ?" - इन्स्पेक्टर ने तनिक भड़के स्वर में पूछा ।
"क्योंकि जन्म से ही ये पलायनवादी प्रवृत्ति का नौजवान है । इसके बचपन से ही इसके साथ ऐसी बातें वाकया होती आ रही हैं जिनकी वजह से इसे रुसवा होना पड़ा लेकिन इसने कभी रिएक्ट नहीं किया, हर वाकये को अपनी नियति समझकर बर्दाश्त किया तकदीर की अपने साथ ज्यादती समझकर झेला । इसके अतुल वर्मा का कत्ल किया होने का मतलब है कि इसने अपनी जिन्दगी भर की स्थापित रवायत छोड़ दी, अपना निहायत पुख्ता बिहेवियर पेटर्न तोड़ दिया । ऐसा नहीं हो सकता । ऐसा होना मुमकिन होता तो अब तक ये कई खून कर चुका होता और इस कारोबार में इतना तजुर्बा हासिल कर चुका होता कि इतनी आसानी से तुम्हारी पकड़ाई में न आ गया होता।"
"आप तो इसकी वकालत कर रहे हैं ।"
“मैं वो पोशीदा बातें तुम्हें बता रहा हूं जिनसे तुम वाकिफ नहीं हो और जिनसे वाकिफ हुए बिना तुम कत्ल के बारे में कोई पुख्ता राय नहीं कायम कर सकते हो ।”
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