पैट्रोल पर दौड़ने वाली आग के समान अनूप की मृत्यु का समाचार सारे 'जिन्दल पुरम्' में फैल गया, जिसने सुना वही 'धक्क, से' रह गया । हक्का-बक्का, अवाक् – सा । जिन्दल परिवार से संबंधित फैक्ट्रियों, मिलों और दूसरे व्यापारिक संस्थानों का तो चक्का जाम हो ही गया, साथ ही जिन्दल पुरम् में मौजूद बाजार और ऑफिस तक बंद हो गए।
सभी मंदीर की तरफ उमड़ पड़े।
वैसा वातावरण था जैसा किसी भी राष्ट्र में किसी जनप्रिय नेता तो था, सबका प्यारा ।
जिन्दल पुरम् का प्रिय, गरीबों का मददगार, दुखियों का साथी और एक आदर्श युवक के रूप में वह जिन्दल पुरम् के हर निवासी के दिल में वास करता था । वह समूचा, छोटा-सा औद्यागिक नगर शोक में डूब गया।
हर आंख में आंसू । हर चेहरे पर दर्द ।
दुख में डूबी, भाव विहवह भीड़ मंदिर में घुस जाना चाहती थी ।
भीड़ को काबू करने के लिए समीप के महानगर से अतिरिक्त पुलिस फोर्स जिन्दल पुरम् बुलानी पड़ी थी, फोर्स मंदिर को घेरे भीड़ को नियंत्रित कर रही थी ।
और अंदर...
आई. जी. पुलिस तक रेंज के अधिकारी आ चुके थे, पुलिस के फोटाग्राफर लाश और दुर्घटना वाले कमरे के विभिन्न कोणों से फोटो ले रहे थे । फिंगर प्रिन्ट्स वाले अपना काम कर रहे थे। पोस्टमार्टम विभाग के लोग भी वहां पहुंच चुके थे।
विभा अनेक स्त्रियों से घिरी हॉल के एक कोने में बैठी सिसक रही थी, उसे सांत्वना देने वालों में ही मधु भी थी और मैं...उससे काफी दूर हॉल के दूसरे कोने में गुमसुम - सा खड़ा विभा को देख रहा था, अपनी विभा को, उसे, जिससे कभी मैंने बेइंतहां प्यार किया था। आज भी करता हूं, उसे, जिसके सुहागिन होने की मैंने कभी कल्पना की थी ।
और उसे, जिसकी जिंदगी में मैंने कदम रखते ही, जिसे विधवा कर दिया था ।
विधवा !
"आह !" मेरे अंदर से एक हूक-सी उठी ।
दिमाग में यह विचार आते ही मैं कंपकंपा गया कि मेरी विभा मैंने उसकी जिंदगी में दुबारा कदम रखा। उफ्फ ! क्या मेरी विभा के सुहाग को मेरी नजर बगी है। कहीं यह सब इसलिए तो नहीं हुआ हैं कि मैंने भी उसकी मांग, उसकी बिंदिया और उसके मंगलसूत्र को अपने लिए देखे जाने की कल्पना की थी ?
क्या मेरी नजर ने ही उसकी मांग से सिंदूर पोंछकर राख उड़ा दी है। क्या मेरी ही नजर उसकी बिंदिया, उसके मंगलसूत्र को डस गई है ?
जरूर मुझे विभा को अनूप के लिए श्रृंगार करते देखकर जलन हुई होगी।
हॉल के उस कोने में खड़ा मैं ऐसे ही ढेर सारे मूर्खातापूर्ण विचारों की मौजूदगी में खुद को अपराधी सा महसूस कर रहा था, न चाहते हुए भी मेरे दिल में ऐसे सैकड़ो विचार उठ रहे थे।
अचानक ही आई. जी. साहब मेरे पास आए, मेरा परिचय जिन्दल पुरम् में आने का उद्देश्य आदि पूछा। बिना कुछ छुपाए मैं सब कुछ बताता चला गया ।
सुनने के बाद उनके चेहरे पर हैरत के असीमित भाव उभर आए, फिर जेब से वही कागज निकालकर मुझे दिखाते हुए बोला- "यह कागज हमें लाश के पास से मिला है।"
"मैं जानता हूं।"
"क्या इस पर लिखा वाक्य मिस्टर अपूप ने ही लिखा था ?".
"ज... जी, मैं विश्वासपूर्वक नहीं कह सकता।"
"क्यों ?" उन्होंने मुझे कड़ी दृष्टि से घूरा ।
"मैंने पहले कहीं मिस्टर अनूप की राईटिंग कभी नहीं देखी है।"
"ओह !" कहकर वे चुप हो गए, फिर जाने क्या सोचकर उन्होंने मधु को स्त्रियों के बीच से बुलाया, उसके बयान लिए। सवाल लगभग वही थे, जो मुझसे किए गए थे, जवाब ठीक वहीं थे, जो मैंने दिए थे।
उसके बाद उन्होंने विभा के बयान लेने की इच्छा जाहिर की। बहुत से लोगों की यह राय थी कि उस वक्त वह बयान देने की स्थिति में नहीं परंतु विभा स्वयं ही बयान देने के लिए उठ खड़ी हुई। विभा और आई. जी. साहब एक कमरे में चले गए।
कमरा बंद कर लिया गया ।
मैं उस वक्त नहीं जान सकता था कि कमरे के अंदर क्या बातें हुई परंतु बाद में विभा से जो कुछ पता लगा वही यहां लिख रहा हूं। विभा से भी आई. जी. साहब को लगभग वही कहानी सुनने को मिली जो हमसे सुन चुके थे, तब उन्होंने पूछा- "क्या तुम्हें अपने यहां जो आने वाले मेहमानों पर कोई शक हैं ?”
"नहीं।" विभा ने दृढ़ता के साथ कहा था- "उनका इस सबसे कोई संबंध नहीं है।"
"ओह, खैर, क्या इस कागज पर यह वाक्य आपके पति ने ही लिखा है ?”
"जी हां लेकिन !”
"लेकिन ?" आई. जी. ने पूछा- "आप ऐसा किस आधार पर कह रही हैं ?"
"मैं उनके साथ से लगाए गए 'दशमलव' को भी एक नजर में देखकर पहचान सकती हूं और उसी आधार पर कह सकती हूं कि यह आकृति उन्होंने नहीं बनाई, वाक्य निसंदेह उन्होंने लिखा है, इसमें भी शक नहीं कि जिस पैन से वाक्य लिखा गया है, आकृति भी उसी पैन से बनाई गई है और वह पैन वही था जो मेज पर से आपको मिला होगा।"
"क्या वह पैन मिस्टर अनूप का ही था ?"
"जी हां ।"
"इसका मतलब ये है कि किसी अन्य ने मिस्टर अनूप से पैन लेकर कागज पर यह आकृति बनाई ?"
"ऐसा ही लगता है।"
"क्या आप बता सकती हैं कि उन्होंने आत्महत्या क्यों की ?"
"निश्चित ही इस आकृति का अर्थ न समझ में आने की वजह से उन्होंने आत्महत्या की है।"
"हम समझे नहीं। !”
"आत्महत्या उन्होंने की नहीं है, बल्कि उनसे कराई गई है और इसी वजह से मैं इसे आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का मामला समझती हूं, मेरे पति की हत्या की गई है।"
"हत्या ?"
"जी हां।" विभा का चेहरा कठोर होता चला गया, दांत भींचकर वह भभकते से स्वर में गुर्राती चली गई—"किसी को आत्महत्या के लिए विवश करना, हत्या करना ही होता है, बल्कि आप यह भी कह सकते हैं कि किसी की हत्या करने का यह एक नया तारीक है।"
"आपकी बातों ने मुझे हैरत में डाल दिया है।"
जाहिर है कि मुजारिम ने उनसे इस आकृति का अर्थ पूछा, अर्थ निकालने के लिए साढ़े तीन घंटे का समय दिया, और साढ़े तीन घंटे में इसका अर्थ न बताने की सूरत में मुजरिम ने उन्हे' संतरे से संबंधित भेद खोलने की धमकी दी, शायद वह भेद इतना गहरा था कि उन्होंने उसके खुलने से पहले ही मर जाना बेहतर समझा ।" "
"क... कमाल है, क्या आप शादी से पहले कहीं डिटेक्टिव रह चुकी है ?"
"जी नहीं, सिर्फ एल. एल. बी. पास की है, मुजरिमों की हिस्ट्री और उलझे हुए मर्डर केसों से संबंधित फायलें पढ़ने का शौक रहा है, एल. एल. बी के सैकिंड ईयर में मेरे एक साथी छात्र का मर्डर हो गया था, थोड़ी-सी तहकीकात उस केस में की थी और अब !" कहते हुए विभा का चेहरा सख्त हो गया-"कसम खाई कि उनके हत्यारे को मैं खुद तलाश करके अपने हाथों से बदला लूंगी।"
आई. जी. को लगा कि विभा भावुक होने जा रही है इसलिए शीघ्रता से बोले- "क्या आप दोबारा सामने आने पर संतरे वाले आदमी को पहचान सकती हैं ?"
"करोड़ों की भीड़ में भी ।" विभा का भभकता स्वर ।
"अच्छा आप एक बात बताइए, बड़ा ही अजीब-सा सवाल कुछ रहा हूं।" आई. जी. साहब ने पूछा- "मुजरिम आपके पति से ही इस आकृति का अर्थ क्यों पूछना चाहता था, किसी अन्य से क्यों नहीं ?"
"इस सवाल का जवाब सामने आते ही मुजरिम बेनकाब हो जाएगा।"
"इसी से सवाल दूसरा सवाल ये है कि मुजरिम ने यह पहेली हल करने के लिए साढ़े तीन घंटे का समय ही क्यों दिया, कम या ज्यादा क्यों नहीं ?"
"अभी मैं कुछ नहीं कह सकती ।"
"अब एक अंतिम सवाल ।" आई. जी. ने पूछा- "आप यह कागज देख चुकी हैं, इस वक्त भी देख रही हैं। क्या आप इस पर बनी पहेली को हल कर सकती हैं ?"
"फिलहाल नहीं कर पाई हूं, हां, आपसे रिक्वेस्ट हैं कि इसकी एक फोटो स्टेट कॉपी कराकर मेरे पास भिजवा दीजिएगा।"
आई. जी. साहब विभा को देखते रह गए।
विभा बोली-"आप यह सोचकर हैरान है न कि एक ऐसी पत्नी जिसके पति की मृत्यु कुछ देर पहले हुई है, लाश अभी तक उसी कमरे में पड़ी है। आपको बयान देने के लिए तैयार कैसे हो गई, बल्कि बयान से आगे भी बातें कैसे कर रही है। जवाब एक ही है आई. जी. अंकल । यह इतनी सब बातें करने की ताकत उन्होंने ही दी है, उस कमरे में पड़ी उनकी लाश ने। उसी ने चीख-चीखकर मुझसे कहा है कि विभा, तुझे साधारण पत्नी की तरह सिर्फ रो - बिलखकर या हत्यारे को गालियां देकर ही संतोष नहीं कर लेना है, तुझे हत्यारे को तलाश करना है। उसे सजा देनी है। बस, उनकी लाश की उसी चीख ने मुझे ताकत दी है आई. जी. साहब के जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई, चाहकर भी वे अपने मुंह से कोई शब्द न निकाल सके । विभा की आंखों से आंखें तक न मिला सके थे वे ।
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