“और उसने सच कहा था मधु !" मैं बताता ही चला गया -


"एक-एक शब्द बिल्कुल ठीक कहा था विभा ने। मैं समझ चुका था कि उसने मेरा प्यार ठुकरा दिया है। सच, उस वक्त कठोर हकीकत से भरी उसकी ढेर सारी बातों में से मेरे पल्ले एक नहीं पड़ी थी, मेरे सिर पर प्यार का भूत सवार था इसलिए केवल यही बात मेरे पल्ले पड़ सकी कि विभा ने मेरा प्यार ठुकरा दिया है। उसकी शेष बातों का मैंने यही अर्थ निकाला कि वह मुझे बच्चा समझकर शब्दों के खिलौनों से बहला रही है। बहुत दुःख हुआ था मुझे। लगा था कि इस चोट को पूरी ताकत लगाने के बावजूद मैं बदाश्त नहीं कर सकूंगा । मगर, अब विभा की तरफ से इतने स्पष्ट इंकार के बाद हो भी क्या सकता था ? एक तरफा प्यार से क्या होता है ! जिसके मन में मेरे लिए दोस्ती से आगे की कोई भावना ही नहीं है, उसके मन में मैं अपने लिए प्यार नहीं भर सकता। यह सोचकर मैंने उस केविन में उसकी बातों में आ जाने का नाटक किया। मैंने कहा कि उसे मैं अपनी दोस्त के रूप में ही याद रखूंगा। उसने मुझसे वादा लिया कि मैं अपने उपन्यास लेखन के काम में चारो तरफ से आंखे मूंदकर जुट आऊंगा । इस सारी उधेड़बुन में हम दोनों की चाच बिल्कुल ठंडी हो चुकी थी। हमने चाय दुबारा मंगाई। दोस्तों की तरह पी। वहां से उठकर दोस्तों की तरह ही होस्टल तक आए और फिर हमारे हाथ एक अनिश्चित समय तक की विदाई के लिए मिल गए ।"


"फ...फिर क्या हुआ ?" बहुत ध्यान से सुनती हुई मधु ने पूछा ।


"अपने होस्टल के कमरे में आकर मैं पलंग पर गिर पड़ा। फूट-फूटकर रोया। उसके इंकार से दिल पर लगी चोट मुझे बिल्कुल असहनीय महसूस दे रही थी। यहां तक कि एक बार को तो उसके शब्दों का ख्याल आ गया। उसने मुझसे उपन्यासकारों की श्रेणी में बहुत ऊचां उठने की इच्छा की थी। उस सारी रात मैं एक क्षण के लिए भी नहीं सोया । फूट-फूटकर रोता रहा। सुबह को सात बजे पता लगा कि विभा प्रातः पांच बजे वाली गाड़ी से चली गई है। मेरे दिल में पुनः दर्द की एक तीव्र लहर उठी। मैं फिर रो पड़ा । मन हल्का हो गया उसके बाद सचमुच मैंने पूरी लगन से, सब कुछ भुलाकर अपने काम में जुट जाने की ठान ली। यह सोचकर कि मेरी विभा की यही इच्छा थी । मेरी मेहनत रंग लाने लगी। नाम उभरने लगा। कुछ दिन तक विभा की याद एक कसक बनकर दिल में चुभती रही, फिर धीरे-धीरे उस पर गर्द - सी छाने लगी। लाखों पाठक मुझे प्यार करने लगे थे। उन्हीं के प्यार और अपने उपन्यासों की कहानी में डूब गया। उसने सच ही कहा था,  तुमसे शादी भी हो गई और मैंने विभा के साथ गुजारे वक्त को इतना भी महत्त्वपूर्ण नहीं समझा कि कभी उनका जिक्र तुमसे करता । किसी ने सच कहा है मधु, वक्त बड़े-से-बड़े जख्म को भर देता है।"


किंकर्त्तव्यविमूढ़ - सी मधु मेरी तरफ देखती रह गई।


चुप होने पर जब मैंने उसे इस तरह अपनी तरफ देखने पाया तो पूछा- "क्या हुआ मधु ? तुम मुझे इस तरह क्यों देख रही हो ?"


"क्या आप वाईक वैसे हैं जैसा अभी-अभी आपने कहा ?"


"क्या मतलब ?"


"क्या आप सचमुच विभा को भुला बैठे थे ?"


"कुछ भी न समझते हुए मैने कहा- हां, लगभग ।”


"आज मुझे चोट- सी लगी है। मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि आप इतने स्वार्थी हो सकते हैं। इतने खुदगर्ज, मेरी नजर में ऐसे तो नहीं थे 


"म... मधु, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम क्या कहना चाहती हो ?"


"आप उसे भूल गए, उसे ! जिसकी वजह से आज आपका नाम लाखों-करोड़ों पाठक जानते है, वर्ना आप, शायद आपका कोई अस्तित्व ही न होता। आप उसी को भूल बैठे थे। उफ्फ ! काश, आपने पहले कभी मुझे बताया  होता। काश, उस वक्त मुझे पता होता कि वह इतनी महान है तो मैं बड़ी श्रद्धा से सुनकर उसके चरण स्पेश करती ।"


"म...मधु ।" 


"जानते हो क्यों ?"


मैं हक्का-बक्का-सा उसे देख रहा था, जबकि वह कहती चली जा रही थी - और मैं उससे क्षमा मांगती । यह कहती कि मेरा पति खुदगर्ज है, उसे भूल गया था। अपने स्वार्थी पति की तरफ से मैं क्षमा मांगती हूं।"


मधु के तमतमाए चेहरे की तरफ मैं देखता ही रह गया। काफी देर तक तो कुछ कहने का साहस ही न जुटा सका, काफी कोशिश के बाद थोड़ी देर के बाद बोला- "लगता है कि तुम ठीक ही कह रही हो मधु, मुझे विभा को नहीं भूलना चाहिए था ।"


"अगर आप सच पूछें तो आपकी 'सरस्वती' विभा ही है। उस दिन, केबिन में जो बातें उसने आपसे कीं, वे इतनी सुलझी हुई और सत्यता से भरी बातें थी कि मैं वैसी बातें करने की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने तो आज से पहले यह भी नहीं सोचा था कि कोई लड़की इतने सुलझे हुए दिमाग की भी हो सकती है।"


"सचमुच मधु, मैं एक बार फिर कहूंगा कि विभा बेहद ब्रिलियेंट है। आज उसे देखते ही मैं बुरी तरह चौंक पड़ा। दिल के जख्म पर लगे टांके जैसे उधड़ते चले गए। वह बेहद सम्मानित है, मेरे लिए श्रद्धा की पात्र । मुझे देखते ही उसका चेहरा किस तरह खिल उठा था !”


"हे भगवान ! जल्दी ही डिनर का वक्त हो ताकि उस देवी के चरण छूकर मैं आपके गुनाह की माफी मांग सकूं।"


यह सोचकर मेरे मन में मधु के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ आया कि ये शब्द उसने उस लड़की के लिए कहे हैं जिसका मैं कभी तरह दीवाना रहा था ।