जब हम पहुंचे तो बंगला नंबर पी- सात सौं पैसठ के चारों तरफ पुलिस-ही- पुलिस नजर आ रही थी। पुलिस को देखकर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी, जिसे पुलिसमैन काबू में किए हुए थे। बंगला काफी भव्य और खूबसूरत था, गैलरी में ही हमें आई.जी. महोदय मिल गए।


"क्या रहा अंकल ?" विभा ने पूछा ।


"बंगले के भीतरी कमरे से हमें एक लाश मिली है।"


विभा बोली।” लाश शायद सुधा पटेल की रही होगी ?"


"ज। जी हां बड़ी वीभत्सा लाश हैं वह । उंगलियों रहित हाथ, कटी हुई जीभ, अंधी और उसके पास ही किसी टेढ़ी-मेढ़ी राईटिंग में यह पर्ची लिखकर डाल रखी थी।" कहते हुए आई. जी. साहब ने एक पर्ची आगे बढ़ाई, विभा ने पर्ची ले ली। उसके साथ ही पर्ची पर लिखा वाक्या मैंने भी पढ़ा, उस पर लिखा था ।" अब यह कुछ भी नही कर सकती ।


पर्ची को पढ़ने के बाद विभा ने पूछा- "और कोई विशेष बात अंकल ?"


"एक कमरे से ऐसे चिह्न मिले हैं, जैसे वहां किसी को कैद किया गया था और वह किसी तरह अपने बंधन काटकर खिड़की के रास्ते से भाग निकला, हमारे ख्याल से उस कमरे मे दो कैदी थे।"


"मतलब ये कि बंगले में कही भी अपराधी नही मिला ?"


“जी नही, अपराधी की तो बात ही दूर । ऐसा कोई चिह्न तक हाथ नही लगा हैं, जिससे उसके बारे में कुछ पता लगाया जा सके, वैसे हमारे मातहत अब भी किसी ऐसे चिह्न की तलाश कर रहे है।"


"क्या आपने किसी पड़ोसी का बयान लिया ?"


"कई का, सबका यही कहना हैं कि ये बंगला कर्नल बलवीर सिंह का हैं, वे मिलिट्री में कर्नल हैं और तीन साल में लद्दान में हैं, उनकी फैमिली भी लद्दाख ही मैं हैं, साल में महीना बीस दिन के लिए छुट्टियां गुजारने यहां आ जाते हैं, बाकी साल बंगले पर ताला ही लटका रहता हैं।"


"बंगला उन्होंने किराए पर क्यों नही उठा दिया ?"


"पड़ोसियों के अनुसार कर्नल बलवीर सिंह किराए की आमदनी को हराम की आमदनी समझते है।


"दुनिया में अजीब-अजीब लोग हैं।" बड़बड़ाने के बाद विभा ने कहा- “खैर, आपने पड़ोसियों से पूछा होगा कि उन्होनें पिछले दिनों बंगले में किसी को आते-जाते तो नही देखा, इस बार में उनका क्या बयान है ?"


"यही तो अजीब बात है, पड़ोसियों के मुताबिक उन्होने किसी को नही देखा, जबकि सुधा पटेल की लाश और उस कमरे में दो व्यक्तियों का कैद होना बताता हैं कि हत्यारा इस बंगले में सचमुच सक्रिय रहा है।


"कोई अजीब बात नही है अंकल, कर्नल बलवीर जैसे खफ्ती लोगों के मकान का लाभ अपराधी अक्सर उठा लेते हैं, हत्यारा कर्नल से भली-भांति परिचित होगा। इसीलिए उसने बंगले का इस्तेमाल बेखौफ किया ।"


"कोई अजीब बात नही हैं अंकल, कर्नल बलवीर जैसे खफ्ती लोगों के मकान का लाभ अपराधी अक्सर उठा लेते हैं, हत्यारा कर्नल से भली-भांति परिचित होगा। इसीलिए उसने बंगले का इस्तेमाल बेखौफ किया ।"


“इस तरह कब तक चलेगा बहूरानी, आज - ही - आज में यह दूसरी लाश है ।


"बस, जब तक चलना था चल लिया आई. जी. अंकल । दरअसल सुधा पटेल की लाश पर हत्यारे का काम खत्म हो गया हैं और इसी लाश पर मेरा भी । अब हत्यारें के लिए कोई काम बाकी नहीं बचा हैं यानि अब उसे कोई हत्या नही करनी और मेरा काम भी खत्म हो गया हैं, अर्थात् अब मुझें कोई खोज नहीं करनी है ।” 


"क्या मतलब ?"


"मतलब आपकों कल तेरहवी में पता लग जाएगा, कल आप आ रहे हैं न ?”


"जरूर ।" आई.जी साहब थोडें गंभीर नजर आए, शायद तेरहबी के नाम पर ?


विभा वापस चलने के लिए मुड़ गए, उसकी इस हरकत पर मैं तो मैं, आई.जी. साहब भी चौंक-"अरे, आप जा रही है बहूरानी। क्या लाश और बंगले का निरीक्षण नही करेंगी ?”


"मैं उसकी जरूरत नही समझती ।" विभा ने ठिठककर कहा ।


क. .. कमाल कर रही हैं आप ?"


“कोई कमाल नही हैं अंकल, इस केस के दौरान मे जान चुकी हूं कि हत्यारा किस स्तर तक समझदार हैं । मैं कम- से कम उससे इस बंगले मे सूत्र छोड़ जाने की उम्मीद नही करती । जो उम्मीद करती हूं वह आप कल देखेंगे।"


कार भीड़ को चीरने के बाद पुनः मंदिर की तरफ चल दी। मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था । घटनास्थल पर जाकर बिना लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किए वापस चल देना मुझें बहुत ही अजीब-सा लग रहा था। कम-से-कम मैं अपने किसी काल्पनिक उपन्यास में ऐसा दृश्य देने की कल्पना नही कर सकता था।


काफी देर की खामोशी के बाद मैंने पूछा- "क्या तुम हत्यारे तक पहुंच गई हो विभा ?”


"मैं तुम्हें वह कहानी सुनाती हूं वेद, जो अब तक प्राप्त सुबूतों और जानकारियों से तैयारी होती हैं। क्योंकि फिलहाल हम हत्यारे का वर्तमान नाम नही जानते हैं इसलिए मैं सुभाष नाम का ही प्रयोग करूंगी।" कहने के बाद विभा किसी टेप के समान शुरू हो गई - "गूंगे, बहरे ओर अनपढ़ आर्टिस्ट करीम द्वारा चित्र मिलने पर सुभाष ने उनमें से अनूप को तुरंत पहचान लिया होगा, क्योंकि वे एक प्रसिद्ध हस्ती थे, किंतु एकदम से उनका वह कुछ नही बिगाड़ सकता था। उसने सोचा होगा कि पूरी योजना के साथ बदला लेने के लिए यह पता लगाना भी बेहद जरूरी हैं कि शेष चार कहां रह रहे है। अनूप जिन्दल पूरम् में हैं तो शेष चारों भी यही होंगे, यही सोचकर सुभाष अपने परिवार सहित जिन्दलपुरम् मे आ बसा होगा । उसने सोचा होगा कि चार हत्यारे अनूप से मिलते जरूर होगे इसलिए अनूप पर नजर रखने लगा, परंतु दो साल तक इन हत्यारों में से अनूप से कोई नही मिला। सुभाष निराश - सा होने लगा होगा कि एक दिन उसने जोगा को अनूप से मिलते देखा, जब उसने जोगा की निगरानी शुरू की होगी और जाना कि जोगा इकबाल गजनबी के नाम से शेरू की चाल में रह रहा हैं। वह अपना एक लाख बुरे कामों में उड़ा चुका था और अब पैसे की कमी के कारण उसने अनूप को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। जोगा के पीछे लगा रह कर सुभाष सुधा पटेल तक पहुंच गया होगा। जोगा, सुधा पटेल, जो जिन्दल पुरम् में अब रजनी चतुर्वेदी के रूप में रह रही थी, से मिला करता था। इनके सम्बन्धों और बातचीत से सुभाष ने जाना होगा कि इनके बीच प्रेम संबंध हैं और सचिन नाम का इनका एक बच्चा भी हैं, जिसे ये बिरजू से छुपाकर रखते हैं, दरअसल सुधा ने जोगा से कह रखा था कि बिरजू भी उससे प्यार करता हैं, जबकि वह सिर्फ उसी से करती हैं और यदि बिरजू को उनके प्यार और बच्चे का पता लग गया तो वह गुस्से में बच्चे को मार डालेगा, सुघा जोगा के लाख पूछने पर भी उसे यह नहीं बताती थी कि बिरजू इस वक्त कहां, किस रूम में रह रहा हैं। बिरजू तक पहुंचने के लिए सुभाष सुधा के पीछे लग गया होगा। तब उसने जाना कि बिरजू जगमोहन के रूप मे जिन्दल पुरम् में ही रह रहा हैं और उसने शादी भी कर ली है।  सुधा ने ठीक वैसी ही बाते बिरजू से भी की जैसा जोगा से करती भी यानी उससे वह सचिन को उसका बच्चा कहती और टिंगू के नाम से डराती रहती, उसे टिंगू का नया रूप और पता कभी नह बताती । अब टिंगू की खोज मे सुभाष सुधा के • पीछे रहा और पता लगाया कि टिंगू ने मनीराम बागड़ी के नाम से वाराणसी में अपने एक लाख से कपड़े की दुकान खोल ली और और शादी करके आराम से रह रहा हैं। सुधा के टिंगू से भी वैसे ही संबंध थे जैसे जोगा और बिरजू से थे, सचिन को वह उसी का बच्चा बताती थी और विलेन के रूप में जोगा के नाम से डराए रखती थी। उसे भी सुधा पटेल ने कभी जोगा का बदला हुआ नाम पता नही बताया। अतः अब धीरे-धीरे सुभाष की समझ में यह बात आने लगी होगी कि सुधा पटेल एक बहुत ही चालाक ओर चरित्रहिन औरत हैं, उसके संबंध तीनों से समान हैं और अलग-अलग तीनों ही हो, सचिन को उसका बच्चा बात कर ठग रही हैं। इस प्रकार वह सचिन के नाम पर तीनों ही से पांच-पांच सौ रूपए महीना ले रही थी । ये सारी जानकारियां इकट्ठी करने और इन्हें समझने में सुभाष को पूरे दो की नब्ज सचिन है। सो, उसने बदला लेने के लिए अपनी योजना बना ली ।" 


विभा सांस लेने के लिए रूकी थी, मैं ये सोच रहा था कि विभा की कल्पना शक्ति कितनी प्रबल की कल्पना शक्ति कितनी प्रबल हैं, प्राप्त जाकारियों के आधार पर वह कैसी सुदृढ़ कहानी तैयार कर चुकी है।


उसने आगे कहा—“अपनी योजना के मुताबिक उसने सबसे सचिन को अपने-"अपनी योजना के मुताबिक उसने सबसे पहले सचिन को अपने कब्जे में किया, सचिन को मार डालने की धमकी देखकर सुधा पटेल से जोगा को तोर और टिंगू को पत्र लिखवाया । जोगा के आने पर उसे पकड़ा और फिर सुधा और सचिन को मार डालने की धमकी देकर जोगा से मनचाहा काम किया । जोगा, सुधा को पत्नी और सचिन को अपना बच्चा समझता ही था इसलिए सुभाष की योजना के मुताबिक उसने जो कुछ किया वह स्पष्ट ही है । "


"गुड !" मैं बरबस ही कर उठा- "यही हुआ होगा।"


"सुबूत और जानकारियां कहती हैं कि यही हुआ हैं।" विभा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा-"इससे आगे की कहानी मैं हत्यारे का नाम खुलने के बाद ही बता सकूंगी।" 


"लेकिन हत्यारे का वर्तमान नाम पता कैसे लगेगा ?"


"उसका प्रबंध भी मैं कर चुकी हूं।"


"क्या ?"


"वह तुम्हें कल ही पता लगेगा, इस वक्त केवल इतना ही कह सकती हूं कि मुझें एक व्यक्ति पर शक हैं और उस शक की कई वजह भी है। इस केस में वह कई बार हमारे सामने आया हैं, काफी सक्रिय रोल रहा हैं उसका, और जहां तक में समझती हूं हत्यारा वही होगा।"


मै सोचता ही रह गया कि विभा का संकेत किस व्यक्ति की तरफ हैं ? यही मैं आपसे यानि अपने प्रेरक पाठकों से संबोधित होता हूं। जितनी बातें हमें या विभा को पता हैं, उतनी ही आपकों भी। जितनी जानकारियां या सुबूत विभा के पास हैं, उतने ही आपके पास भी । क्या आप बता सकते हैं कि सुभाष कौन हैं और लिखकर एक कागज पर रख लीजिए और आप सही हैं या गलत । परखने के लिए अंतिम दृश्य पढ़िए | पृष्ट पलटते ही अपराधी का वर्तमान नाम आपकी आंखों को सामने होगा।


यूं तो तेरहवी में सारा जिन्दल पुरम् ही उमड़ पड़ा था। परंतु उल्लेखनीय लोग निम्न थे। मैं, मधु, सावरकर, रामनाथन, अभिक, श्रीकान्त, वीणा, गजेंद्र बहादुर जिन्दल, महेन्द्रपाल सोनी, दीनयदयाल, रामअवतार, आरती यानी जगमोहन उर्फ बिरजू की पत्नी, सचिन, कालू, आई.जी., एस. एस. पी सर्राफ शिखरचन्द्रजैन, जासूस विनोट भट्ट, रेवतीशरण, बिजेन्द्र अहलूवालिया और विभा के वकील के अलावा डॉक्टर सान्याल भी थे।


उस वक्त दस बजे थे और सब लोग मन्दिर के हॉल में उपस्थित थे जब विभा ने सभी को संबोधित करके कहा- "अब मैं आपको एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाती हूं, जिसे देखकर आप सब चौंक पड़ेगे।"


सभी के दिल धड़क उठे।


विभा ने सांकेतिक अंदाज़ में दो बार ताली बजाई और एक दरवाजे की तरफ देखने लगी। मुझ सहित सभी की दृष्टि उस दरवाजे पर टिक गई और फिर जो व्यक्ति दरवाजे को पार करके हॉल में प्रविष्ट हुआ उसे देखते ही सचमुख सभी चौंक पड़ें, कई के कंठों से तो चीख-सी निकल गई।" म......मनीराम बागड़ी ?"


“जी हां, आप लोगों ने ठीक पहचाना ये मनीराम बागड़ी ही है।" विभा ने कहा- "इसे देखकर आप इसलिए चौंक पड़ें है, क्याकि यह कल इन्ज्वॉय होटल के कमरा नंबर सेवंटी में मारा जा चुका हैं, लेकिन नही, दरअसल यह मरा नहीं था। जिस वक्त हत्यारे ने इस पर फायर किया था उस वक्त इसने बुलेट प्रूफ जाकेट पहन रखी थी, सीने में एक बकरे के खून से भरा गुब्बारा छुपाए था, जो इसके फायर के साथ ही फोड़ दिया और उसी क्षण से इसने लाश मे बदल जाने का नाटक किया । यह सब इसने खुद नही, बल्कि मेरे इशारे पर किया था। हत्यारे को बेनकाब करने के लिए इसे जिन्दल पुरम् मे रोककर मैंने ही वह नाटक कराया था। अब यह अपने मुंह से हत्यारे का नाम बताएगा, आप हत्यारे को पकड़ने के लिए मुस्तैद रहे आई. जी. अंकल ।" हॉल में सन्नाटा छा गया, ऐसा कि सूई भी गिरे तो आवाज सब सुन सके ।


"अब ज्यादा देर मत करो टिंगू, सब जानने के लिए उत्सुक है। बताओं कि वह कौन हैं ?" विभा ने कहा ।


टिंगू ने उपस्थित भीड़ पर अभी नजर दौड़ानी शुरू की ही थी कि ।" 


धांय।धाय।धाय।


सारा हॉल फायरिंग की जबरदस्त आवाज से गूंज उठा।


ये फायर सीधे मनीराम बागड़ी यानी टिंगू पर किए गए थे


एक क्षण के लिए तो हॉल में हड़बड़ी - सी फैल गई, परंतु अगले ही क्षण सारे हॉल में विभा का जबरदस्त कहकहा गुंज उठा।


वह इस तरह हंस रही थी, जैसे पागल हो गई हो ।


और सबसे अजीब हालत दीनदयाल की थी। उसके हाथ में दबे रिवाल्वर की नाल से अभी तक धुआं निकल रहा था। बौखलाया, हक्का-बक्का - सा वह कभी विभा को देख रहा था, कभी सुरक्षित खड़ें मनीराम बागड़ी को और कभी अपने रिवाल्वर को । उसके आस-पास से सभी हट गए थे। लोग सहमें से कभी दीनदयाल को देख रहे थे और कभी कहकहे लगाती हुई विभा को ।


दीनदयाल ऐसा खड़ा था जैसे उसका सब कुछ ठग लिया गया हो, जबकि मुझ सहिल हॉल में मौजूद हर व्यक्ति यह सोचकर हैरत में डूबा हुआ था कि हत्यारा दीनदयाल है।


"दीनदयाल को हथकड़ी लगा दीजिए आई. जी. अंकल।" विभा ने कहा- "इसके रिवाल्वर में सारी गोलियां नकली है।"


दीनदयाल को गिरफ्तार कर लिया गया, तब विभा बोली- तुम चक्कर में आ गए दीनदयाल, जिसे टिंगू समझकर अपना भेद तुम खुद ही खोल बैठे वह टिंगू नही, कोई और है ?"


उसके इस वाक्य के साथ ही टिंगू ने अपने चेहरे से एक फेसमास्क उतारा ओर यह देखकर मेरे कंठ-से-चीख निकलते-निकलते रह गई कि टिंगू शेरू मे बदल गया था। शेरू चाल वाला शेरू ।


लेकिन तुम्हें यह कैसे पता लगा विभा की दीनदयाल ही सुभाष है।" मैने पूछा ।


"मैंने इस केस मे आए सभी व्यक्तियों पर सुभाष होने का विचार किया और हर बार दीनदयाल के नाम पर ठिठक गई, क्योंकि हेयरपिन के बारे मे मेरे और तुम्हारे अलावा उस वक्त उसी कमरे मे सेफ के पीछें छुपे दीनदयाल ने ही जाना था और अगले ही दिन पिन से की गई जोगा की लाश मिली। पोटेशियम पॉयजन' और 'टाईम डैथ' जैसे धातक जहर किसी को आसानी से नहीं मिल सकते और दीनदयाल का मैडिकल स्टोर था। महेन्द्रपाल सोनी से परिचित होना भी मुझें इसी पर ठिठक रहा था, परंतु कोई ठोस सुबूत नही था। सो, त्रिवेदी का फोटो लेकर हरेन्द्रनाथ से मिलना पड़ा। लौटते वक्त मैने बूथ से श्रीकान्त को फोन करके हुक्म किया कि वह हरेन्द्रनाथ को लेकर दीनदयाल की दुकान के सामने से गुजरे और दीनदयाल को दिखाकर हरिन्द्रनाथ से पूछें कि क्या यही व्यक्ति त्रिवेदी का मास्क बनवाने आया था। हरिन्द्रनाथ ने दीनदयाल को पहचान लिया, अब मैं स्पष्ट जान गई कि दीनदयाल ही हत्यारा हैं, फिर भी मैने सोचा कि कल सबके सामने दीनदयाल को रंगे हाथों पकड़ना उचित होगा, हरेन्द्रनाथ से बागड़ी का फेसमास्क बनवाया, क्योकि जानती थी कि बागड़ी को देखते ही यह बौखला जाएगा, मगर समस्या यह थी कि वह मास्क को लगाकर बागड़ी कौन नजर आ सकता हैं, तभी मुझें शेरू का ख्याल आया। दरअसल शेरू टिंगू ही की कद-काठी का हैं अतः मैने रात में ही कालू को महानगर भेजकर शेरू को बुलवा लिया। दीनदयाल के रिवाल्वर से असली गोलियां निकालकर उसमें नकली डाल आने का काम कल रात ही अभिक कर आया था।"


विभा की बातें सुनकर सभी चकित रह गए थे, जबकि भीड़ में से किसी ने पूछा- "क्या आप यह भी बता सकती हैं बहूरानी कि दीनदयाल ने यह सब कुछ किस तरह किया ?"


"सबसे पहले दीनदयाल ने अपनी बीवी-बच्चों को मायके भेजा, फिर सचिन और सुधा को मार डालने की धमकी देकर इसने जोगा से मनचाहा काम लिया, सुधा के हाथ से अनूप के नाम ढेर सारे पत्र लिखवाकर यह हमारी तिजोरी में पहले ही रख चुका था और तभी इसने उसमें से रायतादान गायब किया था। मकसद हमें उलझाना और हमारी नजरों मे अनूप का चरित्र गिराना था। जोगा को कठपुतली बनाकर इसने उससे अपना ही फ्लैट इस्तेमाल कराया था, क्योंकि इसे उम्मीद नही थी कि पुलिस या इंवेस्टिगेटर फ्लैट तक पहुच सकते है, पुलिस इसे तलाश कर रही थी। सोचने लगा कि यदि इस पहले ही मोर्चे पर यह शिक्स्त खा गया है तो आगे का काम कैसे निपटाएगा अतः पुलिस से बचता - बचाता यह मेरे पास पहुंच गया। मंदिर के उस कमरे में मुझें इसने झूठी कहानी सुनाई जो इसलिए सच उतरी, क्योंकि सारे केस में इसने सचमुच जोगा को ही फ्रंट पर रखा था। सेफ के पीछे छुपे हुए इसने कमरे मे मेरे और वेद के बीच हेयरपिन के बारे में होने वाली सारी बातें सुन ली थी यानि जान गया था कि जोगा ने जो कच्चा लालच किया हैं, उसकी वजह से वह पकड़ा जा सकता हैं, अतः हवालात से निकलते ही इसने हेयरपिन को जहर मे बुझाकर जोगा की हत्या कर दी, मुझें दिए गए अपने बयान को सही साबित करने के लिए इसने जोगा की लाश अपने दोस्त महेन्द्रपाल सोनी के फ्लैट में पहुंचा दी। इस तरह यह, ये प्रचारित करने में कामयाब रहा कि हत्यारा दूसरों के फ्लैट इस्तेमाल करता है। उधर, सुधा पटेल इसके इशारो पर नाचने के लिए बाध्य थी ही, इसने उससे हमें फोन कराया, मकसद हमे सुधा पटेल के चक्कर में उलझा देना और यह जानना था कि तिजोरी से हमने अनूप के नाम लिखें गए सुधा के पत्र बरामद कर लिए हैं या नहीं। जब हम द्वारा बताए गए पते पर पहुंचे तो वहा किडनैप की कहानी कहने के लिए सारे सुबूत बिछाए गए थे। सावरकर अंकल ने अनूप के भेष में हत्यारे की तलाश में रेवतीशरण के पास जाकर अनजाने में हत्यारे की मदद की यानि केस में उलझने पैदा कर दी। उससे हमारा दिमाग व्यर्थ ही रेवतीशरण की तरफ बहक गया। उधर केस को उलझाने और आंतक फैलाने के लिए दीनदयाल ने सनील के बॉक्सों में सुधा के अंग भेजने शुरू कर दिए।


विभा एक पल के लिए रुकी।


फिर बोली- "अब सवाल उठता हैं त्रिवेदी का, उसके करेक्टर और इस केस में उसके पार्ट का। इसमें शक नहीं कि त्रिवेदी एक रिश्वतखोर इंस्पेक्टर था, परंतु कम-से-कम इस केस में, अनूप के प्रति श्रद्धा रखने के कारण वह पूरी ईमानदारी से काम कर रहा था, अपने ओर दीनदयाल के संबंध उसने केवल अपना भांडा फूट जाने के डर से छुपाए थे। दरअसल उसने दीनदयाल के मुझे दिए गए बयान पर बिल्कुल यकीन नहीं किया था, यानि उसे दीनदयान पर इस केस का हत्यारा होने का शक हो गया था, इसीलिए उसने सोनी से दीनदयाल का चैक करने के लिए कहा था। दीनदयाल के यहां तलाशी में उसे वे पांच चित्र भी मिल चुके थे, अतः वह महसूस कर रहा था कि शीघ्र ही मुझसे पहले हत्यारे को बेनकाब कर देगा। वह अपने चक्कर में लगा हुआ था, जबकि दीनदयाल सोनी की बातों से सब कुछ ताड़ गया। दीनदयाल जानता था कि त्रिवेदी के उससे और सोनी से संबंध होने के कारण हम उसे पर शक कर रहे है। दीनदयाल ये भी जान गया था कि यह शीघ्र ही त्रिवेदी को ठिकाने लगाकर और सारा शक उसी पर डालकर खुद स्वतंत्र हो जाने के लिए उसने हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से त्रिवेदी का मास्क बनवाया, सुधा से बयान दिलवाया। त्रिवेदी की लाश जयपुर पहुचाई । ये सारे काम करके इसने न केवल त्रिवेदी नाम की आफत से अपना पीछा ही छुड़ा लिया, बल्कि उसे हत्यारा भी साबित कर दिया। इधर इसने जगमोहन को भी इंजेक्शन लगाकर साढ़े तीन घंटे बाद मरने के लिए छोड़ दिया, क्योंकि इसकी सारी योजनाएं पुरी तरह सफल हो रही थी, इसलिए अब इसने बिरजू और टिंगू की हत्या बाकायदा मुझें चुनौती देकर की ।"


" आप इस कहानी में किसे दोषी मानती हैं बहूरानी ?" किसी ने पूछा ।


"यह लंबी कहानी आज से चार साल पहले हीरों की चोरी और फिर बंकम द्वारा बहनजी से किए गए व्याभिचार से शुरू होकर सुधा पटेल की लाश पर खत्म हो जाती है। सबसे बड़ा दोषी बंकम दास था, जोगा, बिरजू, टिंगू और सुधा पटेल तो अपराधी थे ही, बहन का बदला लेने के लिए कानून की शरण में न जाने का अपराध अनूप ने भी किया। उसी की सजा स्वरूप वे सारी जिदंगी संतरे से डरते रहे और अंत में उन्होंने आत्महत्या करके खुद ही खुद को सजा दे ली। अपनी लाश के पास बंकम दास सांकेतिक भाषा में सुभाष के लिए ही लॉकर नंम्बर लिख गया था, परंतु सुभाष उसे समझ नही सका, अगर समझ जाता तो शायद चार साल बाद यह हत्याकांड न होता । उस अवस्था में भाई के परिवार की हत्या को भूलकर सुभाष हीरे और नैकलेस के बेस पर ऐश कि जिदंगी गुजार रहा होता, लेकिन जुर्म के बीज जुर्म के पेड़ ही पैदा करते है। पूरी योजना बनाकर होशो-हवास में सुभाष या दीनदयाल ने पांच व्यक्तियों की हत्या करने का गंभीर अपराध किया हैं। इंसाफ के लिए कानून का दरवाजा न खटखटाकर, बदले लिए स्वय ही निकल जाना सबसे बड़ा अपराध है।"


दीनदयाल सिर झुकाए खड़ा था, मानों विभा के एक भी शब्द पर उसे कोई आपत्ति न हो। पूछने के लिए पर कोई सवाल न रह गया ।


अपने लेखन कक्ष में मैं ये 'साढ़े तीन घंटे;' नामक उपन्यास पूर्ण कर चुका हूं। आपके दिमाग में एक सवाल और होगा और वह ये कि जब मेरी दोस्त, मेरे दिल की धड़कन ने इस बारे में एक भी शब्द न लिखने की दृढ़ स्वर में हिदायत दी थी तो मैंने सब कुछ क्यों लिख दिया, मेरे पास कोई विशेष जवाब नहीं हैं, सिवाय इसके कि मैं एक लेखक हूं और खुद को रोकने की भरपूण कोशिश के बावजूद भी रोक नही सका। मुझे यह केस कथानक के रूप में बहुत अच्छा लगा और अपने पाठकों को इससे महरूम रखना पाठकों के प्रति अन्याय लगा, उसने जिन्दल पुरम् से हमें भाव-भीनी विदाई देते वक्त मुझें एक बार फिर इस बार में कुछ न लिखने के लिए कहा था, मगर मैंने उससे न लिखने का वादा नही किया । मुझें उसके शब्द याद आ रहे हैं । विभा निश्चय ही मुझसे हम उपन्यास के प्रकाशित होने पर नाराज होगी। शायद नफरत भी करने लगे। खैर, उसका प्यार तो न मिल सका। नफरत ही सही और फिर मधु ने लगातार जोर देकर कहा हैं कि मुझें विभा और पाठकों के प्रति अपना दायित्व निभाना ही चाहिए


विभा ने सारी जिंदगी मुजारिमों से जुझने की कसम खाई है और मैं जानता हूं कि वह जूझेगी भी परंतु शायद मेरी इस धृष्टता के कारण वह मुझें अपने किसी अगले केस के बारे में एक शब्द भी न बताए औरा शायद भविष्य में मैं उनके बारे में कुछ भी लिखने से महरूम रहूं । निर्णय नही कर पा रहा हूं कि इस कथानक को लिखकर मैंने सही किया हैं गलत । बस इतना ही लिख सकता हूं कि यदि विभा इन पंक्तियों को पढ़ रही हो तो वह केवल यह सोचकर मुझे माफ कर दे कि उसके दोस्त के अंदर एक लेखक बैठा हैं और यह सब कुछ उसी लेखक ने लिखा हैं, वेद ने नही। अगर उसे नफरत करनी हैं तो मुझसे करे, मेरे अंदर बैठे लेखक से नही। सच विभा, मुझे तुम्हारी नफरत की बहुत जरूरत है।


समाप्त