बस, डायरी में इतना ही लिखा था और उसे पढ़ने के बाद मेरे दिमाग की समस्त नर्से खुलती चली गई, बोला- "यह डायरी तो सारी ही कहानी स्पष्ट कर देती हैं, विभा ।"
"बेशक।” विभा बोली- 'इससे जाहिर हैं कि हत्यारों में से कोई भी नही जानता कि बाद में बंकम के सुभाष नामक भाई ने उनसे बदला लेने की कसम खाई । मुख्य सवाल वहीं-का- वही है। कैसे पता लगे कि सुभाष का वर्तमान नाम क्या है ?"
अभी इस सवाल का हमें कोई जवाब नही सूझा था कि कमरे में सावरकर प्रविष्ट हुआ। उसके आते ही विभा ने उससे कहा-“हमें उसके पास ले चलों सावरकर अंकल, जिससे आपने 'उनका' फेसमास्क बनवाया था।”
"चलिए ।" कहने के साथ ही सावरकर उठ खड़ा हुआ।
हम चारों गाड़ी में बैठकर वहां पहुंचे जहां सावरकर ले गया था। विभा की कार एक टूटे-फूटे झोपडीनुमा मकान के बाहर खड़ी थी और हम झोंपड़ी के अन्दर उस व्यक्ति के सामने जिसने विभा के पूछे जाने पर अनूप बाबू का फेसमास्क बनाया जाना स्वीकार किया था । वह व्यक्ति अत्यंत ही बूढ़ा था और अपना नाम उसने हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय बताया था। विभा ने उसे त्रिवेदी का फोटो दिखाते हुए पूछा- " जरा इस चित्र को देखकर बताइए बाबा कि क्या अपने किसी को इस चेहरे का फेसमास्क भी बनकर दिया था । "
"हां ।" चित्र पर नजर गड़ाए हरिन्द्रनाथ ने कहा ।
हमारे दिल धड़कने लगे । विभा की आंखें चमक उठीं, उसने पूछा- क्या आप बता सकते हैं कि इस चेहरे का मास्क बनाकर आपने किसको दिया था ?"
“उसने अपना नाम रामनरेश गोवर्धन बताया था बहुरानी।"
इस नाम को सुनकर मैं, मधु और सावरकर विभा की तरफ देखने लगे, जबकि विभा के चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं उभरे थे। उसने हरिन्द्रनाथा से पूछा- "क्या आप उसे पहचान सकते हैं, बाबा ?”
'हां बहूरानी । अगर सामने आ जाए तो जरूर पहचान लेंगे। इस बुढ़ापे में भी अगर आंखें इतनी तेज न होती तो भला ये फेसमास्क बनाने जैसा बारीक काम कैसे कर लेता ?"
"ठीक हैं बाबा | शायद कल मुझें आपकी जरूरत पड़ें।"
विभा ने कहा और फिर हम बाहर निकल आए । कार मंदिर की और रवाना हो गई। रास्ते में विभा ने स्वयं ही एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के नजदीक कार रोकी । हमें कार ही में बैठे रहने का इशारा करके बूथ के अंदर गई। फोन पर जाने किससे उसने क्या बातें कीं इस वक्त तों मैं केवल इतना ही कर सकता हूं कि वह केवल दो मिनट में लौट आई थी।
न तो किसी ने पूछा और न ही उसने खुद बताया कि फ़ोन पर उसने किससे क्या बातें की है। रास्तें में एक स्थान पर सावरकर को ड्राप करते हुए हम मंदिर पहुंचे और हॉल में कदम रखते ही मैं बुरी तरह चौंक पड़ा, सोफे पर एक व्यक्ति बैठा था, उसे देखे ही मैं चौंक पड़ा- "अरे, ये यहां कैसे पहुंच गया । ये तो जिंगारू है।" ।
जबकि जिंगारू हमें देखते ही ससम्मान खड़ा हो गया ।
“हां, यह जिंगारू हैं।" कहते वक्त विभा के होठों पर बड़ी ही चमकदार मुस्कान उभरी थी-“लेकिन डरने जैसे कोई बात नहीं हैं, यह अपना ही आदमी है ।"
" हैं ?" मेरी खोपड़ी नाच-सी उठी। "त......तुम्हारा... ..म.......मगर विभा.....।"
"एक मिनट।" विभा ने मुझे चुप रहने के लिए कहा, जबकि आश्चर्य के अथाह साहगर में गोते-से लगाता हुआ मैं उसे देख रहा था, उसे जिसके पैरों में मिलिट्री वाले कपड़े के बूट थे, खाकी रंग की पतलून, काई रंग का ही ओवर कोट, गलें में मफलर और सिर पर चिड़िया के पंखों वाली टोपी पहने था वह, मफलर और टोपी न उसके चेहरे के अधिकांश भाग को छुपा रखा था, इस वक्त उसके साथ एक बच्चा भी था, जिसकी उम्र करीब साढ़े तीन साल रही होगी । हैरत के कारण में कुछ बोलने तक की स्थिति में नही थी ।
"ये बच्चा कौन हैं ?" विभा ने उससे पूछा ।
"सचिन ।" जिंगारू ने कहा।
"ओह, इसका मतलब तुम उसके अड्डे तक पहुंच गए थे।"
"जी हां, आपका अनुमान ठीक ही निकला। मुझें खुद वही पकड़कर ले गया था। वहां उसने मूझें कैद कर लिया । जिस कमरे में मुझें कैद किया गया था, उसी में सचिन भी था। मैं वहां से सचिन को लेकर भाग निकला हूं।"
"वह कौन था ?"
“इंस्पेक्टर त्रिवेदी।” जिंगार के जवाब ने मेरे होश उड़ा दिए ? जबकि इसी जवाब को सुनकर विभा इस तरह मुस्कराई थी, जेसें उसे बहुत पहले से ही इस जवाब की उम्मीद थी, उसने तुरन्त ही जिंगारू से अगला सवाल किया - "क्या तुम इसी समय हमें उसके अड्डे पर लो चल सकते हो ?"
"जी हां "
"गुड ! " विभा हॉल में रखें फोन की तरफ बढ़ती हुई बोली- "हमें अड्डे का पता बताओ।”
"चर्च रोड़ बंगला नंबर पी- सात सौं पैंसठ ।"
आई.जी. साहब से फोन मिलाने के बाद विभा ने उपरोक्त पता बताते हुए कहा- "कृप्या आप फौरन दल-बल सहित इस बंगले पर रेड कीजिए, ये बंगला अपराधी का अड्डा है। हालांकि संभावना नहीं हैं, लेकिन फिर भी हो सकता हैं कि मुजरिम वही हो और मुकाबला करने की कोशिश करे। अतः सतर्क रहिएगा, मैं भी पहुंच रही हू।" कहने के बाद संबंध विच्छेद करके वह हमारी तरफ घूमी।
जिंगारू से बोली- "इस बार मेरे साथ-साथ मधु भी उछल पड़ी ।
कथित जिंगारू ने विभा के कहते ही मफलर और टोपी उतार ली, वह सचमुच कालू ही था । वही कालू, जिसने शेरू की चाल में जोगा के विषय में जानकारियां दी थी। मैं और मधू पलकें झपका-झपकार उसे देखने लगे। जबकि वह शोखी से मुस्करा रहा था, तभी विभा ने कहा- "हैरत के समुद्र से ज्यादा देर तक गोते लगाते रहना भी ठीक नहीं हैं वेद, यह कालू ही है ।"
"ल.. .. लेकिन, इसका तुमसे क्या मतलब ?"
"दरअसल जोगा से इसे दिली मोहब्बत थी, हमारे द्वारा जोगा के कत्ल की सूचना सुनकर इसे दुःख हुआ और इसके अनुसार जोगा को बिरजू ने ही मारा था, अतः बिरूज से अपने दोस्त की मृत्यू का बदला लेने के उद्देश्य से यह महानगर से जिन्दल पुरम आ गया, परंतु यहां आने से पहले इसने कोई जासूसी फिल्म देखकर, खुद को गुप्त रखने के लिए ये कपड़ें और जिंगारू नाम चुना। इसके दिमाग के अनुसार इस रूप में यह बिरजू का कत्ल करके महानगर लौट जाता और किसी को कानो-कान खबर तक न होती कि कत्ल कालू ने किया हैं। इसे नही मालूम था कि बिरजू कौन हैं, यहां आकर इसे पता लगा कि जोगा की लाश महेद्रपाल सोनी के फ्लैट में मिली थी। सो, इसने सोचा कि सोनी ही बिरजू और पुलिस को धोखा दे रहा हैं।"
"लेकिन इसने तो उससे नकली हेयरपिन का जिक्र किया था।"
"यहां भी इससे अपने माशा अल्लाह दिमाग का ही प्रयोग किया था। दरअसल इसने सोचा कि हमारे बयान देते वक्त यह बिरजू के खिलाफ रोष प्रकट कर चुका हैं अतः यदि बिरजू की हत्या हो गई तो हमारा शक इसकी तरफ जा सकता हैं, इसलिए नकली हेयर पिन का एक ऊट-पटांग ईशू सामने रखकर इसने सोनी के मुंह से यह उगलवाने की कोशिश की कि वह बिरजू है।
“रेन वाटर पाईप पर लटककर जब इसने कमरे में हमारे और सोनी की बीच होने वाली बाते सुनी तो इसका यह भय दूर हो गया कि सोनी ही बिरजू हैं, परंतु हमारी हरकत से बौखला गया और कुछ भी समझ न पाने की स्थिति में वहां से भाग गया, मुझें आज सुबह यह उस वक्त रास्तें में मिला, जब मैं चन्दनपुर से लौट रही थीं
"इसीलिए तुमने आते ही आदेश जारी किया था कि अब महेन्द्रपाल सोनी की निगरानी करने की कोई जरूरत नही है।;;
“हां।” विभा ने बताया- "इसने सुबह स्वयं ही हाथ देकर मेरी गाड़ी रोकी थी। उस वक्त इसने अपना चेहरा नही ढ़क रखा था, जिंगारू के कपड़ों में इसे देखकर मैं भी चोंकी थी। सो, गाड़ी रोक दी। इसने मुझें वह सब कुछ बताया जो मैं तुम्हें बता चुकी हूं। सुनकर मैने सोचा कि इस केस में जिंगारू की उपस्थिति से जितने परेशान हम थे, उससे कही ज्यादा हत्यारा रहा होगा । हमने सोचा कि हत्यारा यह पता लगाने की कोशिश जरूर करेगा कि आखिर 'जिगारू' है कौन और यह जानने के लिए उसे 'जिंगारू' पर हाथ डालना पड़ेगा। इस तरह कालू बड़े आराम से हत्यारे के अड्डे तक पहुंचा सकता हैं, मैंने सारी बातें समझाकर इससे ‘जिंगारू' के रूप में जिन्दल पुरम् में घूमने के लिए कहा । जोगा के हत्यारे तक पहुंचने के लिए इसने स्कीम स्वीकार कर ली । स्कीम इसके अलावा कुछ भी नही थी कि यह जिंगारू बनकर घूमता रहे और बस, उसके बाद यह हमें अभी मिला हैं और जो रिपोर्ट इसने दी हैं, वह तुमने भी सुनी हैं।”
मैं चुप रह गया, एकदमं कुछ बोलने की स्थिति तक मैं नही थी मैं। विभा ने कालू से प्रश्न किया- "तुम सुबह से अब तक घटी घटनाओं के बारे में हमें संक्षेप में बताओं।"
"ओह ।"
"आपसे विदा लेकर मैं आपकी राय के मुताबिक जिंगारू के इसी भेष में निरूद्देश्य सड़कों पर घूमने लगा, मैं जान-बूझकर सन्नाटेयुक्त स्थानों से गुजर रहा था कि ऐसे ही एक स्थान पर किसी ने मेरे सिर पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया । वार एक पेड़ के पीछे से बिल्कुल अचानक किया गया था। इसीलिए कोशिश के बाद भी संभल न सका और बेहोश हो गया, होश में आने पर मैंने खुद को एक कमरे में कुर्सी के साथ बंधे पाया। मेरे सामने इंस्पेक्टर त्रिवेदी खड़ा था, उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं और जिंगारू बना क्यों घूम रहा हूं। मैने उसे अपना असली परिचय दे दिया और बता दिया कि अपने दोस्त जोगा के हत्यारे को किसी कीमत पर नहीं छोडूंगा, मेरे बताने पर शायद वह समझ गया कि मैं उसके लिए खतरनाक नही हू। सो, वह कमरे को बाहर से लॉक करके चला गया। उसी कमरे में एक कुर्सी के साथ ये बच्चा भी बंधा पड़ा था। त्रिवेदी के जाते ही मैंने अपने नाखूनों में फंसे ब्लेड के टुकड़ों से बंधन काटने शुरू कर दिए। यह तरकीब भी मैंने एक जासूसी फिल्म से ही ली थी किंतु जब प्रयोग की, तो पता लगा कि यह बहुत कठिन काम था, सुबह से लगा-लगा में अब कही जाकर बंधन काटने में सफल हुआ, मेरे हाथ भी जगह-जगह से कट गए हैं, जबकि उस फिल्म में धर्मेन्द्र के हाथ बिल्कुल नही कटें थे। आजाद होते ही मैंने इस बच्चे के बंधन खोले, इससे नाम पूछा और जब इसने नाम बताया तो मैं समझ गया कि यह मेरे दोस्त जोगा का लड़का है। उसी कमरे में एक खिड़की थी, जो पीछें की तरफ खुलती थी, सचिन को साथ लेकर मैं उसी के जरिए भाग निकला।”
"बैरी गुड़, तुमने बहुत अच्छा काम किया हैं कालू "
उसकी प्रशंसा करने के बाद विभा ने सचिन से पूछा- "क्यों बेटे, क्या तुम्हारी मम्मी उसी के पास है, जिसने तुम्हें बांध रखा था ।"
सहमे और डरे से सचिन ने हां' मे गर्दन हिला दी ।
"हम अभी आते हैं मधु बहन, तुम सचिन का ख्याल रखना और तुम्हें भी यही रहना हैं कालू।" कहने के साथ ही विभा बाहर निकलने के लिए हॉल के दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
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