जिस व्क्त हम इन्जवॉय होटल पहुंचे उस वक्त रूम नंबर सेवंटी में पुलिस फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग वाले अपना काम निपटा रहे थे। होटल की इमारत के बाहर काफी भीड़ हो चुकी थी। गैलरी में पुलिस तैनात थी। हमें देखते ही एस.एस.पी. लपकता - सा हमारी तरफ आया और सबसे पहले उसने आई.जी. साहब को जोरदार सैल्यूट दिया। आई• जी• के प्रश्न के जवाब में उसने बताया कि वह संबंधित वेटर । होटल के स्टॉफ और मैनेजर का बयान ले चुका है।


"काउण्टर क्लर्क का कहना है कि सात बजे के करीब रूम नंबर सेवंटी से काउण्टर पर फोन आया। अपने कमरे से मि• बलदेव ठाकरे ही बोले रहे थे, जो बहूरानी द्वारा दिए गए चित्र के मुताबिक मनीराम बागडी है।” एस• एस• पी• ने सारी बातें स्पष्ट कीं-" उन्होंने काउन्टर क्लर्क से कहा कि इस वक्त वे अपने कमरे में जरूरी काम कर रहे हैं, अतः साढ़े तीन घण्टे तक उन्हें बिल्कुल डिस्टर्ब न किया जाए । "


साढ़े तीन घंटे का समय सुनकर मैंने विभा की तरफ देखा।


विभा के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान देखकर मैं चकित रह गया।


"फिर क्या हुआ ?” आई • जी• साहब ने एस• एस• पी• से पूछा ।


"काउण्टर क्लर्क ने यह संदेश संबंधित वेटर को दे दिया, वेटर का कहना है कि ये साढ़े तीन घंटे, साढ़े दस बजे पूरे होते थे और साढ़े तीन घंटे की तो बात ही दर वह साढ़े चार घंटे तक भी रूम नंबर सेवंटीके आस-पास तक नहीं गया। उस वक्त साढ़े ग्यारह बज चुके थे जब वह सेवंटी पर पहुंचा। वैल दबाई, अंदर से कोई जवाब नहीं उभरा। कई बार वेल दबाने पर भी जब कोई प्रतिक्रिया ने हुई तो दस्तक देने के लिए उसने दरवाजे पर हाथ मारा। हाथ लगते ही दरवाजा खुलता चला गया । वेटर की नजर लाश पर पड़ी और बुरी तरह खून - खून चिल्लाता हुआ गैलरी में भागा ।"


एकाएक विभा ने पूछा- "क्या आपने पूछा कि वह बलदेव ठाकरे के नाम से यहां ठहरने कब आया था ?”


"परसों।”


"गुड !” विभा मेरी तरफ पलटकर बोली । "शीराज होटल छोड़ते ही वह यहां आया और नाम बदलकर एक कमरा ले लिया ।”


एस.एस.पी. बोला- "होटल के स्टॉफ का कहना है कि जिस क्षण से मि• ठाकरे ने कमरा लिया है, वे उसी कमरे में बंद हैं। एक पल के लिए भी बाहर नहीं निकले।"


"शायद इसीलिए वह पुलिस को नहीं मिला ।" विभा बड़बड़ाकर रह गई।


जब फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग वाले अपना कान समाप्त कर चुके तो हत सब रूम नंबर सेवंटी में पहुंचे। इसमें शक नहीं कि वह लाश मनीराम बागड़ी उर्फ टिंगू ही की थी ।


दरवाजे के ठीक सामने कमरे की दीवार के साथ रखे लंबे सोफे की पुश्तगाह से पीठ टिकाए लाश ऐसी अवस्था में थी जैसे कोई अधलेटी अवस्था में बैठा हो । उसके सीने पर बाईं तरफ ठीक वहां गोली लगने का निशान था। जहां दिल होता है। जख्म से निकलने वाला खून अब बंद हो चुका था।


अपनी अधखुली आंखों से लाश दरवाजे की तरफ देख रही थी ।


लाश के ठीक सामने एक शानदार सेंटर टेबल थी जिस पर उसी पहेली के अलावा एक पैन भी खुला पड़ा था, मेज के इस तरफ सोफा सेट की एक कुर्सी पड़ी थी, जो ठीक लाश के सामने पड़ती थी।


सारी सिचवेशन देखकर आई • जी• साहब कह उठे। "पहेली हल करने के लिए शायद हत्यारे ने इसे भी साढ़े तीन घंटे का समय दिया था ?"


"वह तो जाहिर है ।"


"सुबह सात बजे के करीब हत्यारा इस कमरे में आया, रिवाल्वर से मिस्टर बागड़ी को कवर करके काउण्टर पर फोन करने के लिए विवश किया। फिर ये पहेली निकालकर इसके सामने रख दी। कहा कि खुद को बचाने के लिए इसके पास साढ़े तीन घंटे हैं, यदि इसने इस समय में पहेली हल कर दी तो वह उसे छोड़ देगा। साढ़े तीन घंटे तक बागड़ी पहेली को हल करने की नाकाम कोशिश करता रहा और इस बीच बिल्कुल सामने रखी सोफा सेट की इस कुर्सी पर बैठा हत्यारा रिवाल्वर से उसे कवर किए रहा, साढ़े दस बजते ही उसने बागड़ी के दिल पर गोली मार दी। गोली की आवाज किसी ने नहीं सुनी, इससे जाहिर है कि हत्यारे के रिवाल्वर में साईलेंसर लगा था। अपने स्थान पर बैठा बागड़ी गोली लगते ही पीछे को उलट गया।"


"मैं आपकी राय से सहमत हूं।" कहती हुई विभा लाश की तरफ बढ़ी, लाश ओर सेंटर टेबल के बीच में पहुंच गई वह, लाश उसके पीछे ढक गई । इस वक्त हम में से कोई भी लाश को नहीं देख सकता था, मगर हां। विभा के एक्शन्स से लगता था कि वह तलाशी ले रही है... तलाशी लेती हुई वह दो पल के लिए लाश के पैरों में बैठ गई। फिर खड़ी होकर कोट की जेंबें टटोलने लगी और कोट की जेब से वह एक तह किया हुआ कागज लेकर हमारी तरफ घूमी। आई• जी • तक पहुंचते-पहुंचते उसने कागज की तहें खोल ली थीं ।


कागज लगभग हम सभी ने साथ-साथ पढ़ा, उसमें लिखा था ।


प्राण प्यारे, टिंगू ।


न जाने कैसे कम्बख्त बिरजू को सब कुछ पता लग गया है, यह भी कि सचिन तुम्हारा बेटा है। तुम तो जानते ही हो कि बिरजू मुझ पर बुरी नजर रखता है और इसे काफी पहले से हमारे संबंधों पर शक है, वह कल रात मेरे पास आया था, धमकी दे गया है कि सचिन को मार डालेगा और उसने यह भी कहा है कि तुम्हारी पत्नी को सब कुछ बताकर तुम्हारी पारिवारिक ज़िंदगी को बिखेर देगा। मुझे बहुत डर लग रहा है टिंगू। ये क्या कम है कि तुम मुझे जीवन गुजारने के लिए हर महीने पांच सौ रूपए देते हो। मैं कभी नहीं चाह सकती कि तुम्हारी पारिवारिक जिंदगी बिखरे या ये कमीना तूम्हारे सचिन को कोई नुकसान पहुंचाए। इसका तुम ही कोई इलाज कर सकते हो अतः पत्र मिलते ही जिन्दल पुरम् चले आओ। यहां तुम शीराज होटल में ठहरना, बिरजू की चकना देकर मैं तुमसे खुद संबंध स्थापित कर लूंगी। सिर्फ तुम्हारी, सुधा ।


पत्र पढ़ने के बाद कई पल तक हमारे बीच सन्नाटा - सा छाया रहा, फिर विभा बोली। "ये रहा इसके जिन्दल पुरम् आने का असली मकसद ।”


"तो फिर यह शीराज होटल छोड़कर इन्जवॉय में क्यों आ गयां ?" मैंने पूछा ।


"इसे यहां बुलाने के लिए यह पत्र हत्यारे ने सुधा पटेल से जबरदस्ती लिखवाया था, उसी ने इसके पास आंखें भिजवाईं, मकसद हमारी बातें सुनने और यह जानने के बाद वह बौखला उठा कि आंखें सुधा पटेल की हैं। इसके दिमाग में धारण यह बनी कि हो -न- हो बिरजू ने सुधा को पकड़ लिया है और उसे सता रहा है। घबराकर इसने होटल छोड़ दिया, परंतु यह दिल से नहीं चाहता था कि बिरजू सचिन या उसकी पत्नी तक पहुंचे। अतः गुप्त रूप से किसी तरह पता लगाकर बिरजू तक पहुंचने के मकसद से नाम बदलकर यहां रहने लगा। हालांकि अपनी तरफ से इसने हर तरह की होशियारी बरती थी, किंतु होटल और नाम बदलने के बावजूद भी यह हत्यारे की नजर में था ।"


विभा की बातें सुनने के बाद आई जी • महोदय लाश की तरफ बढ़े, निरीक्षण करते रहे ओर फिर अचानक ही चौंककर बोले-"अरे, यह क्या बहूरानी ?"


हम सबने चौंककर उसकी तरफ देखा ।


वे लाश के दाएं जूते की एड़ी को खोलकर दिखा रहे थे, ऐड़ी में एक ढक्कन-सा सरक गया था और ऐड़ी अंदर से खोखली नजर आ रही थी । देखकर विभा बड़ी तेजी से उस तरफ लपकी और फिर कुछ देर तक ध्यान से ऐड़ी को देखने के बाद बोली- " हत्यारा कोई महत्वपूर्ण सुबूत अपने साथ ले गया है।"


"क्या मतलब ?"


"ऐड़ी खोखली होने का अर्थ है कि इसमें कुछ था और खाली होने का मतलब है कि जो था निकाल लिया गया है। निकालने वाला हत्यारा ही हो सकता है, जाहिर है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण चीज को ही इस तरह गुप्त रखेगा और उसी महत्वपूर्ण चीज को हत्यारा निकाल ले गया है।"


"मगर वह महत्वपूर्ण चीज क्या हो सकती है ?"


"इस बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, हां। इतना स्पष्ट है कि यदि वह महत्वपूर्ण वस्तु हमारे हाथ पड़ जाती तो शायद अब तक हम बहुत कुछ जान चुके होते ।"


कमरे में एक बार पुनः गहरा सन्नाटा छा गया । जैसे कहने के लिए किसी के पास कुछ रह ही ने गया हो। विभा ने सामान के नाम पर एकमात्र सूटकेस की तलाशी ली। उसमें से ऐसा कुछ भी हाथ नहीं लगा, जिसका अउल्लेख किया जाए। अतः हम लोग बाहर निकल आए । गैलरी में विभा ने अचानक ही आई• जी • से कहा-"क्या कुछ देर के लिए मुझे इंस्पेक्टर त्रिवेदी का चित्र मिल सकता है ?”


"उसकी फाइल आप ही के यहां है, उसमें चित्र होगा।"


"ओह, हां। थैंक्यू ।" "लेकिन त्रिवेदी के चित्र का आप क्या करेंगी ?"


विभा ने अजीब-सी मुस्कान के साथ कहा- "उससे सुभाष का वर्तमान नाम पूछूंगी ।"


"लेकिन यह बात हमारी समझ में नहीं आई कि भला इंस्पेक्टर त्रिवेदी का बेजान फोटो आपको उसका नाम कैसे बता सकता है ?"


"बेजान वस्तुऐं सबसे ज्यादा बोलती हैं आई• जी• अंकल, दरअसल गलती हमारी है। हम उनकी भाषा समझ नहीं पाते।" कहने के बाद विभा तेजी से आगे बढ़ गई।


हमने उससे बहुत से सवाल पूछे थे, किंतु उसने उनमें से किसी का भी जवाब नहीं दिया। ऑफिसनुमा कमरे में पहुंचते ही उसने सबसे पहले फाइल में त्रिवेदी का फोटो निकाला, कुछ देर तक उसे देखती रही और फिर सावरकर को फोन किया, बोली- "हमें आपसे इसी वक्त एक बहुत जरूरी काम है सावरकर अंकल, आपके हाथ में जो भी काम है, उसे छोड़कर तीस मिनट के अंदर यहां पहुंच जाएं।"


संबंध विच्छेद । फोटो हाथ में लिए वह उठी और बोली- "मैं अभी आती हूं वेद, तुम लोग यहीं रहना ।"


हम कोई सवाल भी नहीं कर सके और वह हवा में झोंके की तरह कमरे से बाहर चली गई। हमारे दिमाग में जकड़न-सी थी, जैसे सारी नसें उलझकर एक गोला-सा बन गई हों, पन्द्रह मिनट तक मैं और मधु विभा के बारे में बातें करते रहे, एकाएक ही कमरे में दाखिल होती हुई विभा ने कहा- "इसे पढ़ो वेद ।”


मैंने देखा कि उसके हाथ में नीले कवर वाली एक बहुत छोटी-सी डायरी थी, डायरी को मैं विभा से लेता हुआ बोला- "ये क्या है ?"


"टिंगू की डायरी" 


"क... क्या ?" मैं उछल पड़ा।


"हां, उसके जूते की ऐड़ी से सबकी नजर बचाकर इसे मैंने ही निकाल लिया था और पढ़ भी चुकी हूं। डायरी में काफी काम की बातें हैं, इससे तुम्हें पता लगेगा कि बंकमदास के परिवार की हत्या क्यों हुई ?"


मैं उत्सुक होकर डायरी को पढ़ने लगा, उसमें लिखा था- "मेरी असली नाम टिंगू है। इस नाम से मैं चन्दनपुर में रहता था। मेरे तीन दोस्त थे। बंकम, बिरजू और जोगा। हम चारों चन्दनपुर में 'चौकड़ी' के नाम से प्रसिद्ध थे, चारों ही अपरध प्रवृति के थे, किंतु अपराध छोटे-मोटे की करते थे। राहजनी और चोरी जैसे।


हम अक्सर महानगर जाते रहते थे। एक दिन वहीं हमारी नजर सेठ शिखर चन्द पर पड़ी । वह जौहरी था और हीरों का व्यापार करता था । हम आपस में हीरों के बारे में बाते करने लगे, यह कि, एक-एक हीरा लाख-लाख रूपए का होता हैं। बातें ही बातों में कोई कह बैठा कि यदि हम एक बार शिखर चन्द के यहां चोरी कर लें तो वारे के न्यारे हो जाएगें। बात गंभीर रूख ले गई और हम सचमुच चोरी करने की योजना बनाने लगे। बंकम ने कहा कि इतनी बड़ी चोरी करने से पहले हमें खूब अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए, अपने परिवार की जीविका के लिए बंकम प्रत्येक सीजन में संतरे के बाद का ठेका ले लेता था और और उस दिन हम बंकम के बाग में बैठे चोरी करने के बारे में ही बात कर रहे थे कि एक पेड़ के पीछें छुपी सुधा ने हमारी बातें सुन लीं, सुधा चन्दनपुर की एक खूबसूरत लड़की थी, उसे हमने देख लिया । वह कहने लगी कि या तो हमे चोरी की स्कीम में उसे भी शामिल कर लें अन्यथा वह हमारा भांडा फोड़ देगी। विवश होकर हमें सुधा को भी शामिल करना पड़ा और शिखर चन्द के यहां चोरी की, वहां से बीस हीरे हमारे हाथ लगे, परंतु धूर्त बंकम वे सारे ही हज़म कर गया । उसने साफ कह दिया कि हममें से किसी को एक भी हीरा नहीं देगा, हम उसका जो बिगाड़ना चाहे बिगाड़ ले। पुलिस में रिपोर्ट करवाने से पकड़े जाने का डर था, पकड़ें जाने से हम लोग बहुत डरते थे। बंकम हम सबसे धवल था, अतः हम उसका कुछ नही बिगाड़ सके और उससे हीरे तथा दुश्मनी निकालने की ताक में रहे, भगवान ने हमें बहुत जल्दी ही ऐसा मौका दे दिया।"


"बंकम बहुत ही अय्याश और व्यभिचारी था, जब एक दिन अलका नाम की लड़की अपनी सहेलियों की बस को विदा करके 'क्वाईट फॉ' की तरफ लौट रही थी तो उधर से गुजरते बंकम की नजर उस पर पड़ गई, सन्नाटें का फायदा उठाकर उसने अलका को किडनैप कर लिया और फिर संतरे के बाग में उसके साथ मुंह काला किया अलका के गले में कीमती नैकलेस था, जिसे उसने उतार लिया, सब कुछ लुट जाने के बाद अलका रोटी-पीटती नदी की तरफ चली गई, हां नही में कूदते उसे अनूप ने देख लिया। उसने अलका को पानी से निकाला, मरने से पहले वह सिर्फ 'संतरे का बाग' कह सकी थी, परंतु उसकी अवस्था देखकर अनूप समझ गया था कि उसके साथ क्या हुआ हैं, गलें से नैकलेस गायब होने का अर्थ भी अनूप लगा चुका था। उसने वही अलका की लाश पर हाथ रखकर अपनी बहन की ऐसी अवस्था बनाने वाले से बदला लेने की कसम खाई और निश्चय किया कि अन्य किसी को भी यह पता नहीं लगने देगा कि मरने से पहले अलका के साथ क्या हुआ था। उसकी समझ के मुताबिक लोगों को वह सब पता लगना उसकी बहन का अपमान ही था, यह सारे दृश्य हमने देखें थे और हम बंकम से बदला लेने के मौंके की तलाश में थे ही। उस वक्त तो हममें से कोई कुछ नही बोला, परंतु अगले दिन जब अलका की लाश का दाह संस्कार हो चुका था तो हम चारों अनूप से अकेले में मिलें। हमने कहा कि हम उसे अलका की ऐसी हालत करने वाले का नाम बता सकते है। जब हमने वह सब कुछ बताया जो उसने नदी पर किया था तो उसे यकीन हो गया कि हमें सब कुछ मालूम हैं और अधीर होकर उसका नाम पूछने लगा । नाम बताने के हमने उससे चार लाख रूपए मांगे । पैसे की उसके लिए कोई अहमियत थी ही नही और शायद अलका के लिए तो बिल्कुल भी नहीं हमने अगले दिन उससे चार लाख लेकर इस शर्त के साथ नाम बता दिया कि बंकम से बदला लेने में हम भी उसके साथ रहेंगे।" मैं सांस रोके पढ़ रहा था ।


"बंकम का घर चन्दनपुर की बस्ती से काफी अलग-अलग एक ऊंची पहाड़ी पर था। अनूप के साथ हम हथियारों से पूरी तरह लैस होकर उसके घर पहुंचे। उस वक्त घर में बंकम, उसकी पत्नी और एक तेरह साल की लड़की थी । बंकम पर जख्मी चीते की तरह अनूप झपट पड़ा, वह उसे लेकर अंदर वाले कमरे में चला गया था, जबकि मकान का मुख्य द्वार बंद करके बंकम की बीवी और लड़की को मार डाला, तभी । भीतरी कमरे का दरवाजा खोलकर अनूप इस कमरे में आया। उसके सारे कपड़ें खून तर-बतर थे। इस कमरे की अवस्था देखते ही वह हम पर गुर्राने लगा, कहने लगा कि ये हमने क्या किया है। इन बेचारियों का क्या दोष था । उधर तब तक जोगा अंदर वाले कमरे में पड़ी बंकम की लाश देख आया था, बंकम के अंदर वाले कमरे में संतरों के टोकरे भरे रखे रहते थे। सभी संतरे फर्श पर बिखर चुके थे और संतरों के बीच बंकम की लाश पड़ी थी । जोगा उन्ही में से एक संतरा उठा लाया और उसे गेंद की तरह ऊपर उछालकर खेलता हुआ बोला- "ज्यादा चीखने-चिल्लाने की जरूरत नही हैं बेटे, यदि ये संतरा हमने किसी के सामने छील दिया तो हम तो बेरूवा, वीरान हैं ही, यहां रोटी नही खाएंगें, तो जेल में खा लेंगे। ये सोचों कि तुम्हारा क्या होगा। जिन्दल पुरम् के अकेले चिराग हो तुम।" यह सुनकर अनूप का रंग उड़ गया और फिर हमने उसे बताना शुरू किया कि हमने बंकम से किस बात का बदला लिया है। सुनकर वह भौंचक्का रह गया । वह वहां से जाना चाहता था, लेकिन हमने निश्चय कर लिया था कि बंकम के पूरे खानदान को ही खत्म करके दम लेंगे, बंकम का एक छः वर्षीय छोटा लड़का मिन्टू था जो घटना के वक्त स्कूल गया हुआ था, हम जानते थे कि स्कूल की छुट्टी होते ही वह यहां आएगा, अतः उसके आने की इंतजार करने लगे। इस बीच हम सारे घर में हीरों की तलाश करते रहे जो हमें कहीं न मिल सके। अनूप इस पक्ष में बिल्कुल नही था, परंतु अब वह हमारे चंगुल में फंस चुका था और बिल्कुल नही था, और हम मिन्टू के आने पर उसे भी खत्म करके ही बंकम के घर से बाहर निकले ।'


"जोश में हमने इतना भयानक नर संहार कर तो दिया, परंतु उसी रात अपने किए से खुद ही को डर लगने लगा, हालांकि पूरा विश्वास था कि हमें किसी ने नही देखा हैं, परंतु फिर भी दिल में डर बैठ गया और यह भी डर लगने लगा कि कही हीरों के चोरों को तलाश करती पुलिस हम तक न पहुंच जाएं। इस पर सुधा ने कहा कि हमें चन्दनपुर से भागा जाना चाहिए। मैंने कहा कि भागकर जाएंगे कहा। बिरजू बोला कि दुनिया बहुत बड़ी है। जोगा ने कहा कि हमारे पास चार लाख रूपए भी है। इस तरह, उसी रात हमने एक-एक लाख रूपए बांट लिए और निर्णय किया कि सब हमेशा के लिए अलग हो जाएं अपना एक लाख लेकर जिसका जहां जी चाहे जाए और अपने ढंग से बिल्कुल नई जिंदगी शुरू करें नया नाम रेखें, हममे तय हुआ कि अपनी बाकी जिंदगी में हम कभी हीरों की चोरी, बंकम के परिवार की हत्या और दूसरे को याद तक नही रखेंगे। यह भी जानने की कोशिश नहीं करेगें कि हममें से कौन, कहां, किस रूप में, किस हालत में किस नाम से रह रहा है। हम सब सहमत हो गए क्योंकि कानून से बचे रहने का हमें यही एक मात्र रास्ता सुझाई दिया था और अगली सुबह ही हम सब चन्दनपूर को छोड़कर नई जिंदगियों की हमने स्थापना भी की। और ये सच हैं कि तुझें, जोगा को और बिरजू को एक-दूसरे का बिल्कुल पता नही है । यह अलग बात हैं कि मैं सुधा से आज भी प्यार करता हूं और मौका निकालकर उससे मिलता रहता हूं।"