नैकलेस को देखने के बाद गजेन्द्र बहादुर ने कहा- "हां बहूरानी, ये अलंका का नैकलेस है, मगर आज इतने दिन बाद यह तुम्हारे हाथ कहां से लग गया ?"


"उनके कमरे में मिला है ।" साधारण-सा झूठ बोलने के बाद विभा ने अगला सवाल किया-"क्या आप उस दिन की घटना को विस्तारपूर्वक बता सकेंगे, जिस जिन बहनजी ने आत्महत्या की ?"


गजेन्द्र बहादुर के चेहरे पर दुःख की अनेक लकीरें उभर आई बोले- "उस महसूस दिन को हम कैसे भूल सकते हैं बहूरानी, लेकिन तुम आज व्यर्थ ही उस दिन का जिक्र करके हमारे और अपने दिल को क्यों दुखाती हो ?"


"मुझे विस्तार से बताइए कि उस दिन क्या हुआ था ?"


"विशेष कुछ भी नहीं, पड़ोस में चन्दनपुर नाम का एक छोटा-सा पहाड़ी नगर है। वहां एक झरना है, जिसे 'क्वाईट फॉल' कहते हैं। शायद इसलिए क्योंकि वहां कई सौ गज ऊंची एक पहाड़ी से पानी नदी में गिरता है, किन्तु आवाज बिल्कुल नहीं होती यही देखकर किसी ने उसका नाम 'क्वाईट फॉल' रख दिया है। इस झरने को देखने दूर-दूर से बहुत से पर्यटक आते हैं। अलका अनूप से महीनों से जिद कर रही थी कि वह उसे झरना दिखाकर लाए, किंतु अनूप व्यस्तता के कारण जा नहीं पा रहा था अलका के अनुरोध को हंसकर टालता रहा था, किंतु उस मनहूस दिन हम ही ने अनूप को हुक्म दिया कि वह अलका को 'क्वाईट फॉल’ दिखाकर लाए, वे गाड़ी से 'क्वाईट फॉल' देखने चन्दनपुर चले गए और बस वह शान्त झरना ही हमारी बेटी को डस गया। रात को गाड़ी में डालकर अनूप उसकी लाश की जिन्दल पुरम् लाया था।"


“क्या उस दिन जाते समय बहन जी कुछ उदास आ अपसेट सी थीं?"


"बिल्कुल नहीं।”


"घटना के बारे में उन्होंने क्या बताया था ?"


"अनूप ने कहा था कि शाम चार बजे तक उन्होंने झरने पर मिल-जुलकर खूब पिकनिक मनाई। अलका अच्छी-खासी हंस खेल रही थी, तितली की तरह उड़ती फिर रही थी कि वहां अनूप के कुछ दोस्त मिल गए। अलका की सहेलियां। वे अलग-अलग हो गए। उसके बाद छः बजे के करीब जब वापस लौटने के लिए अनुप ने अलका को तलाश किया तो वह कहीं न मिली और न ही वे सहेलियां, जिनके साथ वह थी। पूछताछ करने पर अनूप को पता लगा कि लड़कियों का वह झुंड तो एक बस में सवार होकर जा चुका है। अनूप एक घंटे तक अलका की तलाश में झरने पर मारा-मारा फिरता रहा। पिकनिक मनाने आए लगभग सभी लोग लौट चुके थे। झरने के आस-पास पूरी तरह सन्नाटा फैल गया, वातावरण में अंधेरा भी फैल गया था। तब अनूप के दिमाग में ख्याल आया कि कहीं अलका अपनी सहेलियों के साथ ही तो जिन्दल पुरम् नहीं चली गई है। उसे अपना विचार जंचा, क्योंकि शोख अलका ऐसी शरारतें करती रहा करती थी, उसे लगा कि उसे परेशान करने के लिए ही अलका ने यह हरकत की है और गाड़ी लेकर जिन्दल पुरम् की तरफ चल दिया। फिर भी, अलका का गायब होना उसे बार-बार खटक रहा था । वह सोच रहा था कि अगर अलका सहेलियों के साथ जाती तो उससे कहती जरूर । बिना कहे नहीं जाती। बिन कहे उसे जाना भी नहीं चाहिए था और वह यही सोचता चला आ रहा था कि अगर अलका ने शरारत की है तो मंदिर में पहुंचकर उसे डांटेगा। इसी उधेड़-बनु में वह कार बहुत तेज गति से चला रहा था । जिस वक्त उसकी कार पहाड़ों के बीच में गुजरती हुई  पुल पर पहुंची उस वक्त हेडलाईट में अचानक ही उसे एक लड़की नजर आई। रेलिंग के साथ-साथ लड़की पुल के मध्य की तरफ भाग रही थी। हेडलाईट में वह आधे मिनट के करीब रही और इस आधे मिनट में अनूप ने उसे अच्छी तरह पहचान लिया । अलका को पहचानते ही वह भौंचक्का रह गया । ब्रेकों पर पैर जमाने के साथ ही वह अलका का नाम लेकर जोर से चीखा। पता नहीं अलका ने उसकी आवाज सुनी या नहीं, परंतु कार के रूकने तक वह नदी में कूद चुकी थी ।" गजेन्द्र बहादुर सांस लेने के लिए रूके।


हम बहुत ही ध्यान से उनका एक - एक शब्द सुन रहे थे ।


उन्होंने आगे कहा- "अलका - अलका चिल्लाता हुआ अनूप भी दौड़कर उस स्थान पर पहुंचा जहां से वह कूदी थी । अनूप भी उसके पीछे ही नदी में कूद पड़ा । वह अलका को बचाने के लिए कूदा था परंतु रात का समय होने के कारण पानी में अलका को ढूंढ लेना आसान बात न थी। गनीमत यह थी कि वह चांदनी रात थी । इसलिए वह अलका को ढूंढ सका । बहाव भी काफी तेज था । अनूप के मुताबिक वह करीब दस मिनट तक पानी में हाथ-पैर मारता हुआ अलका को तलाश करता रहा। वह उसे मिल तो गई, किन्तु  बहुत देर हो चुकी थी। पेट में बहुत ज्यादा पानी चला गया था, वह बेहोश हो चुकी थी। बड़ी कठिनाई से अनूप कंधे पर डालकर उसे नदी से बाहर लाया । एक पत्थर पर लिटाकर पेट से पानी निकाला । मुश्किल से एक क्षण के लिए अलका होश में आई और 'संतरे का बाग' कहकर अनूप की बाहों में झूल गई ।"


"स....संतरे का बाग" विभा की आंखें बुरी तरह चमकीं।


"हां, अनूप के मुताबिक मरने से पहले वह यही मात्र चन्द शब्द कह सकी थी, जिसका कोई मतलब न तो कभी अनूप की ही समझ में आया, न ही हमारी । पता नहीं वह अभागी क्या कहना चाहती थी ?"


"उसके बाद क्या हुआ?"


“होना ही क्या था । रोता-पीटता अनूप अपनी प्यारी बहन की लाश कार में डालकर ले आया ।”


"बस... उन्होंने आपको इतना ही बताया था ?"


"हां ।"


"ठीक से याद कीजिए बाबूजी, मुमकिन है कि उन्होंने कुछ और भी कहा हो, कुछ ऐसा जिसे आप भूले हुए हों उस वक्त उनके मुंह से निकला एक-एक अर्थ रखता है बाबूजी।" मैं नहीं समझ सका कि इतना जोर डालकर विभा आखिर क्या पूछना चाहती है।


"हमारे ख्याल से हम कुछ नहीं भूल रहे हैं।"


सुनकर विभा कुछ देर के लिए खामोश रहकर जाने क्या सोचने लगी, फिर बोली- "अब मैं आपसे सिर्फ दो सवाल और करूंगी बाबूजी और उन दोनों ही सवालों को जवाब आपको अच्छी तरह याद करके, सोच-समझकर देना है। पहला सवाल ये है कि जब बहन जी क्वाईट फॉल के लिए मंदिर से रवाना हुई, तब क्या ये नैकलेस उनके गले में था?"


"हां, हमें अच्छी तरह याद है।"


"दूसरा सवाल । क्या यह नैकलेस उस वक्त भी उनके गले में था जब लाश यहां पहुंची ?"


"हम अलका की लाश देखते ही अपने होश खो बैठे थे, हमें यह देखने की सुध कहां रह गई थी कि लाश के गले में नैकलेस है या नहीं। अतः हम विश्वासपूर्वक नहीं कह सकते कि उसे वक्त नैकलेस था या नहीं ?"


इसके बाद विभा ने उनसे कोई सवाल नहीं किया। हम उनके पास से उठकर उसी ऑफिसनुमा कमरे में आ गए। उत्साहित-सी विभा अपनी कुर्सी पर बैठते ही बोली- "बाबूजी विश्वासपूर्वक नहीं कह सकते, लेकिन आज मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि नैकलेस अलका बहन जी की लाश के गले में नहीं था।"


मैंने बिना सोचे-समझे प्रश्न कर दिया-"कैसे ?"


"अगर गले में रहा होता तो बंकमदास के लॉकर से कैसे निकल आता ?"


"ओह !” समझ में आते ही झेंपकर रह गया, क्योंकि विभा का जवाब बहुत ही सीधा-सादा समीकरण था।


"हां, इसके अलावा मैं दावे के साथ एक बात और कह सकती हूं। वह ये कि या तो अनूप ने बाबूजी को बताते समय कोई बात छुपाई थी या वह बात बाबूजी के दिमाग से उतर गई।"


“आखिर कौन-सी बात विभा, तुम बतातीं क्यों नहीं ?"


"वह मैं कल बता सकूंगी ।"


"ओफ्फो, अब तो तुम खुद एक पहेली होती जा रही हो।”


सुनकर विभा के चेहरे पर अजीब-सी कठोरता उभर आई, उसकी आंखें शून्य में स्थिर हो गईं, कहीं खोई-सी बोली-"हां, अब मैं खुद एक पहेली बन गई हूं दोस्त । हत्यारे के लिए बहुत ही जबरदस्त पहेली। कल में उसके ऊपर ऐसी बिजली बनकर गिरूंगी कि वह राख की तरह निस्तेज हो जाएगा।"


मैं अवाक्-सा उसे देखता रह गया, मधु और आई• जी• साहब की अवस्था भी लगभग मेरे ही जैसी थी। अभी हम कुछ और बात नहीं कर पाए थे कि अनूप, जोगा और बिरजू से संबंधित फाइल लिए वहीं एस एस पी• का भेजा हुआ एक पुलिस इंस्पेक्टर पहुंच गया।


उसे विदा करने के बाद विभा ने सबसे पहले पांचों चोरों की उंगलियों के निशान अनूप की उंगलियों के निशान से मिलाए, अनूप के निशान पांचों चोरों में किसी से नहीं मिलती थे। विभा की आंखों में चमक उभर आई, मैं उसे खुशी की चमक ही कहूंगा।


बिरजू और जोगा के निशान चोरों के निशानों से मिल गए। विभा की आंखों में दूर-दूर तक सफलता-ही-सफलता चमकने लगी। फिर उसने वह बॉक्स निकाला जिसमें सुधा पटेल की उंगलियां थीं । एक साफ कागज पर उन उंगलियों के निशान लेकर चोरी वाली फाइल के निशानों से मिलाए ।


विभा बोली-"ये रही आपकी तीसरी चोर आई•जी• अंकल| आप जानते हैं कि ये सुधा पटेल की उंगलियों हैं।"


"कमाल हो गया।" आई• जी• साहब बड़बड़ाए ।


"अब केवल दो चोर ऐसे रह गए हैं, जिनकी उंगलियों के निशान नहीं मिले हैं, उनमें से एक यानी बंकमदास मर चुका है, दूसरा यानी टिंगू अब तक मौत के घेरे में फंस युका होगा।"


विभा का वाक्य पूरा हुआ ही था कि टेलीफोन की घंटी टनटना उठी, रिसीवर उठाकर विभा ने कहा- "हैलो।"


"मनीराम बागड़ी मिल गया है बहूरानी।" एस एस• पी• की आवाज |


"वैरी गुड, कहां ?"


"स.... सॉरी बहूरानी। दरअसल पुलिस को उसकी लाश मिल सकी है।"


"ओह !” विभा के चेहरे पर उभरा जोश कुछ फीका- सा पड़ गया बोली-"कहां ?"


"होटल इन्जवॉय के रूप नंबर सेवंटी में।"


"पुलिस उस तक कैसे पहुंची ?"


"दरअसल मैनेजर ने पुलिस को फोन पर सूचना दी थी कि उसके होटल के रूम नंबर सेवंटी में ठहरे बलदेव ठाकरे नामक व्यक्ति की कुछ देर पहले किसी ने हत्या कर दी है। मैं स्वयं वहां पहुंचा और लाश को देखते ही पहचान गया। लाश मनीराम बागड़ी की ही है, आपको तुरंत फोन कर रहा हूं।”


"कृपा किसी वस्तु को छेड़िएगा नहीं, हम लोग पहुंच रहे हैं।"