उस वक्त रात के करीब दस बज रहे थे जब हम जयपुर से वापस महानगर में आए । रास्ते ही में विभा और आई•जी• के बीच निश्चय हो गया था कि आज की रात हम सब महानगर आई जी के बंगले पर ही रहेंगे। विभा ने कहा भी था कि वह रात ही में जिन्दल पुरम् निकल जाना चाहती है, किंतु में विभा को उनके स्नेह भरे अनुरोध को मानना ही पड़ा और कम-से-कम मेरे लिए यह बड़ी अजीब बात थी। मैं जानता हूं कि विभा कभी भी, किसी के भी दबाव में कोई काम नहीं करती। हमेशा वही करती है, जो उसके दिल में होता है।


इसीलिए मैं नहीं मान सकता था कि उसने आई• जी • साहब के अनुरोध पर रात को उनके बंगले पर रूकना और सुबह होने पर जिन्दल पुरम् के लिए रवाना होना स्वीकार किया है।


मैं सोच रहा था कि निश्चय ही आज की रात महानगर में रहने की विभा की अपनी ख्वाहिश थी ।


मैं यह भी जानता हूं कि विभा बिना कारण कोई काम नहीं करती। उसके प्रत्येक निर्णय के पीछे कोई मकसद जरूर होता है और मेरी यह शंका उस वक्त - शत-प्रतिशत सच निकली, जब ग्यारह बजे हमारे कमरे पर दस्तक हुई।


दरअसल आई• जी• साहब ने अपने बंगले पर विभा का अलग कमरे में और हम दोनों का अलग कमरे में रहने का प्रबंध कर दिया था और अपना कमरा बंद करके अभी हम लेटने की तैयारी कर ही रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई।


दरवाजा खोलने पर मैंने देखा कि नाईट गाउन पहने स्वयं आई • जी• साहब सामने खड़े थे, मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने पूछा । क्या बहूरानी यहां है?"


"न.... नहीं तो । क्यों ?"


"कमाल है। पता नहीं कहां चली गई ?" मैंने उन्हें चिंतित पाया।


"अपने कमरे में होगी।


"वहां नहीं है, यही तो हैरत की बात है। हमने सोचा कि शायद रात को सोने से पहले उन्हें दूध पीने की आदत है, इसलिए 'वाईफ' के हाथ दूध भिजवाया, वाईफ ने आकर बताया कि वे कमरे में नहीं है। कमरा खुला पड़ा है।"


मैं भी दंग रह गया और तब शुरू हुई बंगले में विभा की खोज, गैरेज से विभा की कार भी गायब देखकर हम चकित रह गए। द्वार पर खड़े सशस्त्र पुलिस कांस्टेबल ने बताया कि वे स्वयं ही अपनी कार ड्राईव करती हुई कुछ देर पहले गई हैं। कह रहीं थीं कि वे आपकी इजाजत से एक जरूरी काम से जा रही हैं।


सुनकर चौंक पड़े आई•जी • साहब, बोले- "हमारी इजाजत से ?"


"जी हां ।"


"क्या वे कुछ बता गई हैं कि कब तक लौटेगी?”


"नो सर, इस बारे में न तो मैंने ही कुछ पूछा न उन्होंने बताया ।”


असमजंस में फंसे हम सब उस कमरे में लौट आए  जिसमें विभा के ठहरने का प्रबंध किया गया था। सबके

दिमाग में केवल एक ही प्रश्न था, यह कि बिना कुछ कहे ऐसे रहस्यमय ढंग से विभा आखिर क्यों और कहां चली गई? मेरी शंका ठीक ही निकली थी । किंतु यह मैं भी नहीं सोच पा रहा था कि विभा कहां गई होगी ?


"अरे। वह क्या?" एकाएक ही आई जी  साहब चौंककर बेड पर पड़े तकिए की तरफ बढ़े, तकिए के नीचे से एक कागज का कोना झांक रहा था, वह कागज विभा के हाथ का लिखा हुआ था ।


"आई• जी• अंकल, उम्मीद है कि मुझे यहां न देखकर जो असुविधा आपको होगी उसके लिए क्षमा कर देंगे, मगर विवश हूं, दरअसल एक जरूरी काम से मुझे जाना पड़ रहा है। सुबह दस बजे तक आप मधु और वेद को लेकर जिन्दल पुरम् जरूर पहुंच जाएं। लॉकर से मिला सामान और केस से संबंधित फाइल साथ लेना न भूलें, ताकि मुझे अपने संदेह की पुष्टि करने में दिक्कत न हो। उम्मीद है कि सुबह दस बजे तक मैं भी मंदिर में जरूर पहंच जाऊंगी। विभा ।"


पढ़ने के बाद हम एक-दूसरे की शक्ल देखते रहे। जैसे बातें करने के लिए बाकी कुछ न रह गया हो। सारी रात हमने वहीं बातें करते गुजार दी। सुबह होते ही जिन्दलपुरम् की तरफ रवाना हो गए। उस वक्त केवल नौ बजे थे जब हम मंदिर में पहुंच गए। पता लगा कि विभा वहां अभी तक नहीं पहुंची है।


हम बड़ी व्यग्रतापूर्वक दस बजने की प्रतीक्षा करने लगे।


उस वक्त हम खुशी से लगभग उछल पड़े, जब पोर्च में विभा की गाड़ी प्रविष्ट हुई। दरअसल हम मन्दिर के लॉन ही में कुर्सियां डलवाकर बैठ गए थे। गाड़ी के रुकते ही सेवक ने ससम्मान दरवाजा खोला।


विभा बाहर निकली।


उसके चेहरे पर थकान के स्पष्ट भाव थे। आंखों में नींद । फिर भी वह पूरी चुस्ती-फुर्ती के साथ हमारी तरफ बढ़ी। औपचारिकतावश हम लोग खड़े हो गए, नजदीक आकर वह बोली- "इसका मतलब आप लोग समय से पहले यहां पहुंच चुके हैं।"


"कहां चली गई थीं आप ?" आई • जी• ने पूरी अधीरता के साथ पूछा।


"मैं जरा तैयार हो लूं, आप ऑफिस में बैठिए, वहीं आराम से बात करेंगे।" कहने के बाद वह मुड़ गई और इस दौरान मैंने उसकी आंखों में वही विशेष चमक देखी थी, जिसका मतलब किसी गुत्थी को सुलझा लेना होता है, मैं समझ गया की रात भर मे निश्चय ही उसने यदि इस केस को हल नहीं कर लिया है तो सारे मामले को बहुत हद तक समझ जरूर गई है।


यह जानने के लिए मैं बुरी तरह बेचैन हो उठा कि रहस्यमय ढंग से गायब होने के बाद से अब तक उसने क्या जानकारियां इकट्ठी की हैं। तीस मिनट बाद जब विभा ऑफिस मे दाखिल हुई तब वह 'ओस' से धुला हुआ कमल का फूल लग रही थी। बिना किसी मेकअप के ही मुखड़ा दमक रहा था । जिस्म पर सफेद रेशमी साड़ी और टेरिकॉट का सफेद ब्लाऊज पहने थी वह । लम्बे बालों को मस्तक के इर्द-गिर्द से समेटकर पीछे बहुत ही कसकर बांधे थी । गरिमा और शालीनता की जीती-जागती मूर्ति-सी लग रही थी विभा । जैसे शांति की देवी हो।


मुखड़े पर से थकान जाने कहां चली गई थी?


अभी वह अपनी कुर्सी पर बैठी ही थी कि आई• जी• साहब ने पुनः अपना सवाल ठोक दिया, जवाब में उसके

पंखुड़ियों से होठों पर बड़ी ही सौम्य मुस्कराहट उभरी, बोली- "मैं चन्दनपुर गई थी आई • जी• अंकल ।”


"च... चन्दनपुर ?" आई•जी• साहब चौंक पड़े। "लेकिन, वहां क्यों गई थीं आप ?”


"पता लगाने कि बंकमदास और उसका सारा परिवार किस दुर्घटना में मारा गया?”


"क्या पता लगा?"


"बंकमदास का एड्रेस बैंक रजिस्टर में था ही, उसी के आधार पर मैं चन्दनपुर में उसके मकान पर पहुंची, इस वक्त वह मकान किसी खंडहर के समान पड़ा हुआ है, मैंने वहां किसी को अपना परिचय नहीं दिया और काफी पूछताछ की, ज्यादातर लोग यही कहते थे कि बंकमदास का परिवार एक भयानक दुर्घटना में मारा गया। कोई यह नहीं बताता था कि वह भयानक दुर्घटना क्या थी । अंत में मैं रहमत अली से मिली, रहमत अली एक छोटे से परिवार का मुखिया है। उसने मुझे बताया कि किन्हीं पांच लोगों ने मिलकर बंकमदास और उसके सारे परिवार की हत्या कर दी थी। मैंने पूछा कि वे पांच हत्यारे कौन थे तो रहमत अली ने बताया कि उन्हें सिर्फ करीम ने देखा था और बदनसीब करीम अब दुनिया में नहीं है। मैंने पूछा कि करीम कौन था तो रहमत अली ने बताया कि वह मेरा बड़ा बेटा था । और फिर सवाल-जवाबों के बाद जो जानकारी मेरे हाथ लगी उसे संक्षेप में यूं कहा जा सकता है कि करीम एक गूंगा, बहरा और अनपढ़ आर्टिस्ट था, उसने पांचों हत्यारों को देखा था, परंतु किसी को बता नही सकता था। बंकम का एक भाई था सुभाष वह अपनी पत्नी और एक बच्चे के साथ सहारनपुर में रहता था, जिसे बस्ती वालों ने तार भेजकर बुलवा लिया था। अपने भाई और उसके सारे परिवार का दाह संस्कार सुभाष ही ने किया । हफ्तों तक वह पागलों की तरह बस्ती में पूछता फिरा कि यह सब कैसे हो गया और किसने किया। संयोग से एक दिन वह रहमत अली के यहां भी पहुंच गया, तब करीम ने उसे पांचों हत्यारों के चित्र बनाकर दिए, तब रोते हुए सुभाष ने रहमत अली को एक कागज पर बनी पहेली दिखाई और बोला कि यह पहेली उसके भाई ने कमरे के फर्श पर अपनी उंगली अपने ही खून में डुबोकर बना रखी थी। जिसका वह अब तक मतलब नहीं समझा है, हां। इतना समझ रहा है कि बंकम मरते वक्त इस पहेली के जरिये उससे कुछ कहना चाहता है। सुभाष ने कसम खाई कि इस पहेली को समझकर रहेगा और करीम द्वारा दिए गए चित्रों के आधार पर ही दुनिया के पर्दे से हत्यारों को ढूंढकर उनसे बदला लेगा। इशारे से करीम ने यह भी बता दिया था कि वह हत्यारें बंकमदास के मकान में पूरे साढ़े तीन घंटे रहे थे।"


"तो बस।" मैं उछल पड़ा - "अब बाकी रहा ही क्या है विभा, सारी गुत्थियां तो सुलझ गई हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सुभाष यानी बंकम का छोटा भाई ही ये सब हत्याएं कर रहा है।”


"मान लेना हूं, लेकिन सुभाष है कहां, किसे गिरफ्तार कर लें?”


आई॰जी• साहब बोले- "बस्ती से उसका सहारनपुर का एड्रेस मिल सकता था ?”


"घटना चार साल पुरानी हो गई है, अब वहां किसी को वह एड्रेस याद नहीं है और फिर मेरे ख्याल से अब वह सहारनपुर में नहीं, जिन्दल पुरम् में होगा, क्योंकि हत्याएं वह यहीं कर रहा है, अपने पुराने यानि सुभाष नाम को बदलकर वह यहां रह रहा है, सवाल ये है कि किसे सुभाष कहें। करीम पिछले साल हैजे से मर चुका है, गर वह होता तो मुझे भी सुभाष का चित्र बनाकर दे देता। सारी प्रॉब्लम ही हल हो जाती ।"


"ओह।" मैं कसमसा उठा।


"खैर।" कहने के साथ ही विभा ने रिसीवर उठाकर किसी से संबंध स्थापित किया और बोली-"हां, हैलो, श्रीकान्त, सुनो। अब तुम्हें सोनी की निगरानी करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम आराम करो।” 


मेरी समझ में नहीं आया कि अचानक ही विभा की नजरों में महेन्द्र पाल सोनी की निगरानी करने की आवश्यकता क्यों खत्म हो गई है, परंतु मुझे सवाल करने का कोई अवसर दिए बिना, रिसीवर रखे ही विभा ने कहा-"क्या आप अपने साथ फाइल और लॉकर से निकला सामान लाए हैं अंकल ?”


“हां।” कहते हुए आई॰जी• ने सूटकेस खोला और जब तक उन्होंने फाइल, हीरे और नैकलेस निकलाकर मेज पर रखे तब तक विभा वीणा और अभिक से संबंध स्थापित करके पूछ चुकी थी कि उसकी अनुपस्थिति में जिन्दल पुरम् में कोई विशेष घटना तो नहीं घटी है। उत्तर नहीं में ही रहा होगा, यह बात इसी से जाहिर थी कि विभा के चेहरे पर सामान्य भाव थे और उसने ज्यादा देर बातें नहीं की थीं।


"इस वक्त मुझे सिर्फ नैकलेस की जरूरत है।" कहती हुई विभा ने नैकलेस अपनी तरफ सरका लिया, बोली । "अगर आपको कष्ट न हो आई• जी• अंकल तो कृपा फोन पर एस• पी• महोदय से पूछ लें कि उन्हें इंस्पेक्टर त्रिवेदी या मनीराम बागड़ी में से कोई मिला है या नहीं?"


"इंस्पेक्टर त्रिवेदी ?"


"हां, कृपा अभी किसी को न बताएं कि त्रिवेदी मर चुका है और हां अनूप जोगा और बिरजू से संबंधित फाइल यही मंगा लें ताकि मैं अपने संदेह की पुष्टि कर लूं। तब तक मैं याद करने की कोशिश करती हूं कि आखिर यह नैकलेस मैंने कहां देखा है ?"


उसके बाद आई॰जी• साहब अपने काम पर जुटा गए, विभा अपने पर । लगातार नैकलेस पर दृष्टि गड़ाए विभा कुछ याद करने की कोशिश कर रही थी और मैं इस अजीब नजारे को देखता हुआ सोच रहा था कि यहां, मेरे सामने अपराधी तक पहुंचने के लिए कितने आराम और शांति से बैठकर प्रयत्न किए जा रहे हैं और मैं इसके बिल्कुल विपरीत अपराधी के पीछे विजय - विकास की कितनी जबरदस्त भाग-दौड़ दिखाता हूं। इतने आराम से बैठने की तो बात ही दूर, उन्हें खाने-पीने तक का होश नहीं रहता।


कैसे है ये विभा, जो सिर्फ अपने दिमाग के बूत पर ऑफिस में बैठी-बैठी अपराधी तक पहुंच जाती है। अपने अकाट्य तर्कों से उलझी से उलझी समस्या का विश्लेषण और फिर उसका समाधान कर देती है। अपने ऑफिस में बैठी यह बिखरी हुई घटनाओं को बातों ही बातों में इस तरह जोड़ देती है जैसे वह एक जंजीर हो ।


मैं चुपचाप बैठा अब भी अपराधी तक पहुंचने की उस अजीब कोशिश को देख रहा था। मेरे कान फोन पर बात कर रहे आई जी के शब्दों पर थे तथा आंखें विभा पर जमीं थीं । जो बातें आई जी• साहब ने की, उनका सार यह था कि पुलिस त्रिवेदी या बागड़ी में से किसी तक नहीं पहुंच सकी है तथा संबंधित फाइलें कुछ ही देर में यहां पहुंच जाएंगी। उधर विभा लगातार अपने दिमाग पर जोर डालती हुई याद करने की कोशिश कर रही थी । वह नैकलेस की स्पर्श करके भी कई बार देख चुकी थी। अपना काम खत्म करके आई • जी • साहब भी उसकी तरफ देखने लगे थे, एकाएक ही विभा 'आह' कहकर चुटकी बजा उठी।


मेरा और मधु का दिल धड़क उठा।


"कुछ याद आया ?" आई• जी• ने उत्सुक स्वर में पूछा।


"दो मिनट ठहरिए ।" कहने के साथ ही एक झटके से विभा उठी, झटका लगने के कारण रिवाल्विंग चेयर अपने स्थान पर घूमती ही रह गई, जबकि हम सबको हक्का-बक्का छोड़कर वह तीर की-सी तेजी के साथ कमरे से बाहर गई । हमारा दिमाग विभा की रिवाल्विंग चेयर की तरह घूम रहा था। दिल के धड़कने की गति स्वयं ही तेज हो गई थी और विभा दो मिनट से कुछ पहले ही कमरे में दाखिल हुई।


उसके हाथ में एक एलबम थी ।


हमारी तरफ देखा तक नहीं उसने। सीधी अपनी कुर्सी पर पहुंची, जो उसके आने तक रूक चुकी थी, एलबम खोलकर उसने मेज पर रख ली और फिर नैकलेस की एलबम के एक पृष्ठ पर रखकर जाने क्या देखने लगी?


मैंने देखा कि देखते ही देखते विभा का चेहरा किसी देवी की तरह आभायुक्त हो गया, आंखें किसी हीरे की तरह चमकने लगीं। मैंने महसूस किया कि विभा के सारे जिस्म में अभी-अभी सफलता की जबरदस्त झुरझुरी दौड़ी है, एकाएक ही उसने नैकलेस सहित एलबम उठाकर हम तीनों के सामने रख दी और बोली- "हो सकता है कि मुझे भ्रम हो रहा हो, आप देखकर बताइए । क्या ये यही नैकलेस है ?"


मैंने देखा । एलबम के उस पृष्ठ पर अनूप, गजेन्द्र बहादुर जिन्दल और एक युवती का चित्र था। यह चित्र किसी पार्टी में लिया गया था और युवर्ती के गले में नैकलेस पड़ा था, ठीक वैसा ही।


"व... वैरी गुड | " आई• जी • साहब उछल पड़े - "आप शक कर रही हैं, मैं दावा कर सकता हूं बहूरानी कि यह वही नैकलेस है ।"


"म....मगर।” मैंने पूछा- "ये युवती है कौन ?”


"अलका ।" "क... क्या ?" हम तीनों ही उछल पड़े।


"हां ।" विभा का स्वर जाने क्यों गंभीर हो उठा - "ये अलका है, मेरी ननद । उनकी प्यारी बहन । वही, जिसने आज से चार साल पहले नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। कारण कभी किसी को पता नहीं लगा ।"


"लेकिन अलका का नैकलेस बंकमदास के लॉकर में कैसे पहुंच गया?"


"यह कहानी भी खुलेगी, मेरे साथ आइए । बाबूजी से कुछ बातें मालूम करनी बहुत जरूरी हो गई हैं। उठती हुई विभा ने कहा, उसके साथ ही हम तीनों भी उठ लिए, गैलरी में से गुजरते वक्त विभा ने कहा-"सॉरी आई•जी• अंकल, हीरे चुराने वाले चोरों के नाम में अब मैं थोड़ा-सा परिवर्तन करूंगी।"


"कैसा परिवर्तन ?"


"उन चारों में 'वे' नहीं थे।"


"हम तो पहले ही कह रहे थे, अनूप बाबू को भला हीरे चुराने की क्या जरूरत थी?”


"उनके स्थान पर सुधा पटेल का नाम जोड़ लीजिए । हीरे पांच व्यक्तियों ने चुराए थे, उनमें से एक यानि बंकमदास चार साल पहले ही मर चुका है, बचे चार और हत्यारा उन्हीं के कत्ल कर रहा है।"


"लेकिन अनूप और त्रिवेदी के कत्ल ?"


"सारे रहस्यों पर से मैं कल पर्दा हटा दूंगी ।" कहने के साथ ही पर्दा हटाकर वह गजेन्द्र बहादुर जिन्दल के शयनकक्ष में प्रविष्ट हुई थीं हम उसके साथ ही थे। गजेंद्र बहादुर को नैकलेस देती हुई निभा ने सबसे पहले सवाल किया- "ध्यान से देखकर बताइए बाबू जी । क्या आप इस नैकलेस को पहचानते हैं।"