जयपुर पहुंचने के बाद हमारा काफिला सीधा एस एन त्रिवेदी के पुश्तैनी मकान पर पहुंचा, हां मैं उसे काफिला ही कहूंगा, क्योंकि हमारी कार प्रत्येक क्षण दो पुलिस जीपों से घिरी रही थी । ऐसा इसलिए था, क्योंकि हमारे साथ आई• जी • साहब थे और उनके पास बैंक लॉकर से निकला कीमती सामान ।
गुलाबी रंग से पुता वह मकान दो मंजिला था, ऊपर के हिस्से में एक छोटा-सा परिवार किराए पर रहता था । किराए पर रहने वाले परिवार का मुखिया एल• आई • सी• विभाग में क्लर्क था और उसका नाम राधेश्याम स्वामी था। मकान के निचले हिस्से मे ताला लगा हुआ था।
पहले तो इतनी सारी पुलिस और आई• जी• को देखकर स्वामी घबरा ही गया, लेकिन जब उसे बताया गया कि त्रिवेदी के बारे में पूछताछ करने आए हैं तो कुछ आश्वस्त हुआ। स्वामी ने बताया कि मकान के निचले हिस्से में त्रिवेदी का अपना ताला पड़ा है। बहुत से किराएदारों ने उसे किराए पर लेने की पेशकश की, परंतु इस हिस्से को त्रिवेदी ने कभी किराए पर नहीं उठाया । अपना किराया वह हर महीने मनीआर्डर द्वारा त्रिवेदी के पते पर जिन्दल पुरम् भेजता रहा है। पूछने पर स्वामे ने बता कि त्रिवेदी मकान पर अंतिम बार लगभग तीन महीने पहले आया था।
चैक करने के लिए विभा ने हेयर पिन से निचले हिस्से का ताला खोला। जगह-जगह मौजूद गर्द से ही जाहिर था कि इस हिस्से को एक लंबे समय से खोला नहीं गया है।
सबसे अंतिम कमरे के बंद दरवाजे पर भी एक मोटा ताला लटका हुआ था, विभा ने ताले को खोला और दरवाजे खुलते ही हम सब बुरी तरफ उछ पड़े। मधु के कंठ से तो एक जबरदस्त चीख ही जो उबल पड़ी।
मेरे मुंह से निकलने वाली चीख हलक ही में घुटकर रह गई थी।
स्वयं आई॰जी॰ और विभा के चेहरे पर भी हैरत नाच रही थी। हम सबकी दृष्टि कमरे के एक कोने में पड़े पलंग पर स्थिर होकर रह गई थी, पलंग पर एक लाश पड़ी थी
एस. एन. त्रिवेदी की लाश ।
हमारी तो बात ही दूर, शायद आई • जी• और विभा ने भी यहां त्रिवेदी की लाश की कल्पना नहीं की थी । इसलिए वे अभी तक हक्के-बक्के से खड़े लाश को देख रहे थे। सबसे पहले विभा ने ही खुद को नार्मल किया और बहुत ही सावधानीपूर्वक पलंग की तरफ बढ़ी। आई• जी• साहब भी लगभग उसके साथ ही थे ।
हम अपने स्थान पर ऐसे जड़ होकर रह गए थे कि हिल तक न सके ।
नजदीक जाकर विभा ने देखा । लाश का रंग बिल्कुल नीला पड़ा हुआ था, मरने से पहले त्रिवेदी के मुंह से निश्चय ही झाग निकले थे क्योंकि उसके होठों से नीचे गर्दन और वर्दी के गिरेबान पर धब्बे से पड़े हुए थे ।
पलंग पर दाईं तरफ एक छोटी-सी शीशी लुढ़की पड़ी थी, जिसके लेबिल पर 'पॉयजन' लिखा था। उसक समीप ही शीशा काटने वाला एक 'हीरा' पड़ा हुआ था ।
विभा और आई• जी• की दृष्टि लगभग साथ ही पीछे की संकरी गली में खुलने वाली खिड़की की तरफ गई। खिड़की बंद थी, अंदर से चटकनी भी चढ़ी हुई थी, परंतु शीशे का एक वर्गाकार हिस्सा कटा हुआ था ।
संकरी गली में खड़ा होकर कोई भी व्यक्ति कटे भाग में से हाथ डालकर चटकनी खोल सकता था। खिड़की के नीचे फर्श पर शीशे के वर्गाकार हिस्से का कांच बिखरा हुआ था।
"लगता है कि यह केस पूर्ण रूप से खत्म हो गया है ।"
विभा ने चौंककर पूछा- "क्या मतलब ?"
"घटनास्थल पर मौजूद शाहदतें एक कहानी कह रही हैं।"
"क्या वह कहानी आप मुझे सुनाएंगे ?"
"दरअसल वर्तमान केस में होने वाली हत्याएं त्रिवेदी ही कर रहा था, इसे विश्वास था कि इसकी योजना सुदृढ़ है और कोई भी इस तक नहीं पहुंच सकता, परंतु आपने इसके फ्लैट तक पहुंचकर इसे नर्वस कर दिया। यह समझ गया कि अब दुनिया को कोई भी ताकत इसे कानून की गिरफ्त से नहीं बचा सकती। यह पूरी तरह निराश होकर जयपुर आया, यह सोचकर कि कोई देख न ले, संकरी गली में पहुंचा। पलंग पर पड़े हीरे से शीशा काटा, चटकनी खोली। कमरे में आकर खिड़की बंद की । पलंग पर लेटकर जेब से पॉयजन की शीशी निकाली जो इसने पहले ही खरीद रखी थी। जिल्लत, बेइज्जती, मुकदमे और फांसी की सजा से बचने के लिए अपने इस पुश्तैनी मकान में जहर खाकर आराम की नींद सो गया।"
"हत्यारा हमें यही कहानी समझाना चाहता है।" विभा ने शांत स्वर में कहा ।
"क्या मतलब?"
"अब मैं दावे के साथ सकती हूं कि त्रिवेदी कभी मुजरिम नहीं था ।”
"ये आप क्या कह रही हैं?"
"मुंह से निकलने वाले झागों के दाग केवल त्रिवेदी की गर्दन और कमीज के कालर तक सीमित हैं, पलंग पर बिछी चादर पर कोई दाग नहीं है, जबकि झाग गर्दन और कालर से होते हुए गिरे हैं। ये दाग असल में वहां जरूर गिरे होंगे, जहां इसे ज़हर दिया गया ।"
"ओह ।"
विभा कहती ही चली गई- "लाश को जयपुर लाकर यहां, त्रिवेदी के पुश्तैनी मकान में, इस अवस्था में डालने से हत्यारे की अद्भुत दूरदर्शिता का परिचय मिलता है। वह जानता था कि जिन्दल पुरम् से कोई भी त्रिवेदी के इस मकान पर पहुंचने वाला नहीं है। चार-पांच दिन बाद जब लाश से बदबू उठेगी तो पड़ोसियों की शिकायत पर पुलिस यहां पहुंचेगी, वहां जिन्दल पुरम् में वर्तमान केस के हत्यारे के रूप में त्रिवेदी की तलाश हो ही रही है, हत्यारा यहां ऐसी शाहदतें छोड़ गया, जिनसे वही कहानी बने जो आपने सुनाई और जिन्दल पुरम् में होने वाली हत्याओं के मुजरिम को इस तरह मृत मानकर फाइल बंद कर दी जाए। असली हत्यारा मजे से जिंदगी गुजारे।"
"क्या इतनी बातें केवल आप चादर पर दाग न होने के आधार पर कह रही हैं।"
"अन्य प्वाईंट भी हैं।"
"जैसे ?"
"हमारे सुधा पटेल तक पहुंच जाने, रायतादान हासिल कर लेने आदि से यदि त्रिवेदी टूट गया था और जिल्लत आदि से बचने के लिए इसने आत्महत्या का विचार बना लिया था तो इसे अपने फ्लैट से, अभिक पर हमला करके सुधा पटेल को गायब करने की जरूरत ही नहीं रह गई थी, जिसे आत्महत्या करनी है वह भला बचाव के उपाय क्यों करेगा ?"
"ल... लेकिन ।” आगे बढ़कर मैं बोल उठा- "तुम अभिक के बयान को भूल रही हो विभा ।"
विभा ने मेरी बात पूरी की - "उसने कहा था कि उस पर हमला करने वाला इंस्पेक्टर त्रिवेदी ही था ।”
"हां।"
"भूल तुम रहे हो वेद, अगर सावरकर अंकल रेवतीशरण को धोखा दे सकते हैं तो हत्यारा अभिक को क्यों नहीं ?"
मेरी बोलती पर ढक्कन लग गया।
"ऐसी परिस्थितियों में केस और भी उलझ गया है, अभी तक त्रिवेदी को हत्यारा समझा जा रहा था और अब इसी की लाश हमारे सामने है। अगर हत्यारा त्रिवेदी नहीं है तो कौन है ?"
“फिलहाल आप संबंधित थाने को फोन करके सूचित कर दें, वे आकर अपने क्षेत्र में पड़ी इस लाश पर कार्यवाही शुरू कर देंगे। पोस्टमार्टम और फिंगर प्रिंट्स विभाग को भी सूचित कर दीजिए । परसों मंदिर में 'उनकी' तेहरवीं है और उसी दिन मैं सबसे सामने हत्यारे को बेनकाब कर दूंगी ।"
आई• जी• साहब हैरत अंगेज निगाहों से विभा की तरफ देखने लगे, हम पति-पत्नी की भी यही हालत थी, जबकि विभा उस कमरे की तलाशी लेने में जुट गई ।
0 Comments