स्टेट बैंक की शंकर स्ट्रीट पर स्थित शाखा के अंदर अंडर ग्राउण्ड, लॉकर हॉल में इस वक्त मैं, मधु, विभा, वकील, आई• जी• पुलिस, बैंक मैनेजर, बैंक चेयरमैन, मजिस्ट्रेट महोदय, दो आम जनता से लिए गए व्यक्ति और गोदरेज कंपनी से आए लॉकर तोड़े वाले कर्मचारी थे।
सबकी सहमति से लॉकर नंबर सैंतालीस तोड़ा जाने लगा।
यह सोच-सोचकर मेरा दिल धड़क रहा था कि आखिर इस लॉकर में क्या निकलेगा ?
जो भी निकलेगा, क्या वह वर्तमान केस पर कोई रोशनी डाल सकेगा ?
कुछ ही देर में लॉकर टूट गया। उसके अंदर से एक पुड़िया निकाली गई, जिसमें बीस जगमगाते हुए हीरे थे। उनके अलावा एक नैकलेस था, चांदी का बना हुआ और उसमें जगह-जगह कीमती हीरे जड़े हुए थे ।
नैकलेस को देखकर विभा की आंखें अजीब से अंदाज में सिकुड़ती चली गई, जबकि आई• जी• साहब अचानक ही चौंककर कह उठे-"अरे, ये हीरे तो सर्राफ शिखर चन्द जैन के हैं।"
“कौन शिखर चन्द जैन ?" विभा ने चौंककर पूछा।
"महानगर के माने हुए रईस हैं, इन हीरों की कीमत शिखर ने इन्हें चोरी कर लिया था ।”
विभा की आंखें चमकने लगीं, बोली- "पहले यहां की कार्रवाई निबट जाए आई जी• साहब, उसके बाद हम आराम से बैठकर इस बारे में बातें करेंगे।"
आई.जी. साहब ने आगे बढ़कर मजिस्ट्रेट महोदय से कहा- "लॉकर से निकला हुआ ये सामान वर्तमान केस की छान–बीन के लिए, कुछ दिनों के लिए पुलिस को चाहिए। आप सामान का पंचनामा तैयार करके, इन सब गवाहों के सामने यह सामान पुलिस कस्टडी में देने की कृपा करें ।"
मजिस्टेट महोदय ने यह अपील स्वीकार कर ली ।
पंचनामे के बाद हीरे और नैकलेस आई जी साहब को सौंप दिए गए।
आई• जी • पुलिस हमारी गाड़ी में, विभा के समीप अगली सीट पर बैठे थे। मैं और मधु पिछली सीट पर थे । कार के आगे पीछे इस वक्त पुलिस मैंनों से भरी दो जीपें चल रहीं थीं। हम सर्राफ शिखर चन्द जैन से मिलने महानगर जा रहे थे। अन्य लोगों को विदा करके बैंक से हम सीधे महानगर के लिए ही रवाना हो गए थे।
काफी देर से छाई खामोशी को तोड़ती हुई विभा ने आई• जी से सवाल किया- "इन हीरों को देखते ही आपने कैसे कह दिया कि ये शिखरचन्दजैन के हैं।"
"मेरे इस पद पर रहते यही एक ऐसा अपराध हुआ था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता । "
"इस अपराध में ऐसी क्या खास बात थी?"
"सबसे पहली तो यही कि ये हीरे पांच लाख के थे, इतनी बड़ी रकम के हीरे चोरी हो जाना ही काफी सनसनीखेज था, शिखर चन्द जैन की महानगर में तूती बोलती है। उन्होंने अखबार वालों को पैसे दे-देकर पुलिस विभाग पर कीचड़ उछलवानी शुरू कर दी। पुलिस इन हीरों के चारों का पता नहीं लगा पा रही थी और बस, पुलिस की इसी नाकामी पर बुरी तरह हो-हल्ला मच गया । शिखर चन्द के संबंध सीधे केन्द्रीय मंत्रियों से भी हैं और इसी वजह से कई मंत्रियों के फोन सीधे मेरे पास आए। आप तो जानती ही हैं कि हम जैसे अधिकारियों से मंत्रियों के बात करने और आदेश देने का ढंग क्या होता है। उस वक्त तो ये लोग बिल्कुल चिढ़ ही जाते हैं जबकि पूरी कोशिश के बावजूद भी पुलिस कुछ कर न पा रही हों। संक्षेप में आप इतना समझ लीजिए कि कई मंत्रियों ने मुझसे यहां तक कह दिया कि अगर शिखर चन्द के हीरे नहीं मिले तो मैं अपने पद पर बना नहीं रह सकूंगा, इसलिए ये चोरी का केस मुझे खुद देखना पड़ा। अपनी तफ्तीश मैंने सबसे पहले शिखरचन्द के यहां से ही शुरू की। हीरे उनके घर से ही गायब हुए थे। सबसे पहले मैंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां से चोरों के निशानादी उठवाए। उसके बाद शिखर चन्द से कहा कि क्या वे हमें अपने हीरों की पहचान बात सकते हैं ताकि कहीं मिलने पर पहचाने जा सकें, जब उन्होंने हमें दो फोटोग्राफ्स दिए। एक फोटोग्राफ सभी हीरों का था जो संख्या में बीस थे, फोटो कुछ इस ढंग से लिया गया था कि बीसों हीरों को अलग-अलग बड़ी आसानी से गिना जा सकता था, दूसरे फोटोग्राफ में उनमें से एक हीरे का बहुत बड़ा फोटो था, उसमें हीरे की बनावट बिल्कुल स्पष्ट देखी जा सकती थी ओर शिखर चन्द ने बताया था कि इन हीरों की विशेषता यही है कि ये बीस के बीस - हू-ब-हू एक ही बनावट के हैं, जैसे प्रकृति ने इन्हें एक ही 'ढाल' में ढाला हो । मैंने हीरे की बनावट और प्रत्येक कटाव अच्छी तरह दिमाग में बैठा लिया।"
"ओह, तो इसलिए आपने हीरों को देखते ही पहचान लिया ?"
“जी हां, उन हीरों को भला मैं कैसे भूल सकता हूं जिन्होंने न केवल मेरा ट्रांसफर करा दिया था, बल्कि मेरे कैरियर पर लापरवाही तथा अकर्मठता का दाग भी लगा दिया था।"
"दाग?"
"जी हां ।" आई•जी• महोदय ने बताया- "घटनास्थल से हमें पांच व्यक्तियों के निशान मिले, जिससे मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि चोरों की संख्या पांच थी । वे निशान मैंने महानगर के एक-एक चोर से मिला लिए । सर्राफे में पता नहीं कितने मुखबिर छोड़े, गर्ज यह कि एक महीने तक हम अपनी सभी कोशिशों के बावजूद भी न तो चोरों को ही तलाश कर सके, न एक भी हीरे को । फाइल बंद कर देनी पड़ी, परिणामस्वरूप ऊपर से मुझ पर लापरवाही और अकर्मठता का आरोप लगाकर मेरा ट्रांसफर कर दिया गया। मेरी आंखों के सामने यही हीरे चमकते रहे। अभी एक वर्ष ही हुआ है कि संयोग से मेरा ट्रांसफर पुनः यहां हो गया ।"
"और संयोग से आज ये हीरे आपको मिल गए । "
"हां, मैं इसे संयोग ही कहूंगा। मैंने कभी ख्वाब में नहीं सोचा था कि कुदरत कभी ऐसे चमत्कारिक ढंग से ये हीरे मेरे ही सामने ला पटकेगी और मैं अपने करेक्टर पर लगे दाग को किसी हद तक साफ कर सकूंगा, लेकिन यह सब कुछ आपकी वजह से हो सका है बहुरानी । न कभी कोई उस पहेली को हल कर पाता, न कभी कोई उस लॉकर को तुड़वाने के लिए इतनी जिद्दोजहद करता और न ही मेरा नसीब जागता ।”
"हमने तो अपना केस हल करने के लिए लॉकर तुड़वाया था । "
"मुझे अफसोस है कि लॉकर टूटने से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिली, लेकिन आपकी वजह से हमे जो मिला है उसके लिए हम हमेशा आपके आभारी रहेंगे, आपका शुक्रिया अदा करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं।"
"आपने यह कैसे समझ लिया कि लॉकर के टूटने से हमें कोई मदद नहीं मिली है।"
"क्या मतलब ?"
"दरअसल आपका चार साल पहले का केस हमारे वर्तमान केस से जुड़ गया है।"
"आप ये क्या कह रही हैं, हम समझे नहीं।"
"क्या आप इन हीरों को चुराने वाले मुजरिमों के नाम बता सकते हैं?”
"उनमें ससे एक तो वही होना चाहिए, जिसके नाम से यह लॉकर था, यानी बंकमदास।"
"बाकी चार ?"
आई • जी • साहब उलझ गए। "बाकी चार का नाम अभी कैसे जान सकते हैं?"
"शायद मैं बात सकती हूं।"
"अ... आप?" आई• जी• साहब ने चौंककर विभा की तरफ देखा।
"जी हां ।"
"आपने अपने वाक्य में 'शायद' शब्द लगाया है, इस शायद से क्या मतलब ?"
"यह कि फिलहाल मैं अपना अनुमान पेश कर सकती हूं, पुष्टि थोड़ी-सी जांच के बाद हो सकेगी।"
"कैसी जांच?"
"आपको इन हीरों की चोरी से संबंधित फाइल रिकार्ड से निकालनी होगी, उसमें उन पांचों चारों के फिंगर प्रिन्ट्स आदि चिन्ह होंगे, उन्हें उन आदमियों से मिलाने भर की देर है, जिन पर मुझे शक है । "
"आपको किन लोगों पर शक है?"
‘‘उन्हीं लोगों पर जिनके वर्तमान केस में मर्डर हो रहे हैं यानि अनूप, जोगा उर्फ इकबाल गजनवी, जगमोहन उर्फ बिरजू चौथे का नाम है टिंगू उर्फ मनीराम बागड़ी ।”
"य...ये आप क्या कह रही हैं?" आई•जी• साहब चकित रह गए- "भ..भला अनूप बाबू हीरों की चोरी में क्यों शामिल होंगे। ये हीरे केवल पांच लाख के हैं। उनके लिए पांच लाख भला मायने ही क्या रखते थे। अगर सच पूछा जाए तो अनूप बाबू शिखरचन्दजैन जैसे सैकड़ों सेठों को खरीद कर डाल दें।"
विभा के होठों पर बड़ी ही फीकी-सी मुस्कान उभरी, बोली- "भगवान करे आप ही की बात सच हो, लेकिन जांच के बाद दूध-का- दूध, पानी-का-पानी हो जाएगा।"
"अगर आपका अनुमान यही है तो मैं सच्चे दिल से यही प्रार्थना करूंगा कि अनुमान गलत हो ।”
इन शब्दों से आई जी • साहब के मन में अनूप के लिए छुपी श्रद्धा अनावृत होती थी, यह सोचकर विभा धीमे से मुस्करा उठी, बोला- "लॉकर में से हीरों के साथ एक नैकलेस भी मिला है ।"
"हां।"
"उसके बारे में आप क्या सोचते हैं?"
"हम समझे नहीं।"
विभा ने कहा- "नैकलेस पर नजर पड़ते ही मैं चौंकी थी, वजह ये थी कि नैकलेस पर नजर पड़ते ही मुझे लगा था कि मैं उसे पहचानती हूं। लगा कि नैकलेस आज से पहले भी मैंने कहीं देख है।"
"कहां ?"
"काफी दिमाग लगाने के बावजूद भी अभी तक याद नहीं आ सका है।"
"अजीब बात है?"
"खुद मुझे भी अपनी बात अजीब-सी लग रही है, पता नहीं नैकलेस कहां देखा है। जब तक मैं उसे देखती रही तब तक लगता रहा कि बस, मुझे याद आने वाला है। लॉकर में से चोरी के हीरे मिलना साबित करता है कि बंकमदास एक चोर था, निश्चय ही यह नैकलेस भी उसने कहीं से चुराया होगा। अगर याद आ जाए तो शायद स्पष्ट हो जाए कि बंकमदास ने इसे कहां से चुराया था ?"
"आपको याद करने की कोशिश करनी चाहिए।"
"इस भाग । दौड़ से फुर्सत मिलने पर जरूर करूंगी।"
विभा ने कहा- "लेकिन उसके लिए आपको मेरी थोड़ी मदद जरूरी करनी होगी।"
अगर मैं यहां अपनी अवस्था का वर्णन करूं तो वह बड़ी अजीब थी-घटनाएं जिस तेजी से जिस सुलझे हुए अंदाज में आगे बढ़ रहीं थीं, उनसे मुझे लग रहा था कि शीघ्र ही बुरी तरह उलझा हुआ यह केस सुलझने वाला है, इसकी सारी गुत्थियां एक-एक करके बिखरने वाली हैं।
विभा और आई•जी• महोदय सारे रास्ते इसी केस के संबंध में बातें करते रहे, मैं और मधु बुद्धिमत्ता से भरे उनके डिसकशन को सुनते रहे थे। महानगर में दाखिल होने के बाद हमारी कार सीधी सर्राफ शिखर चन्द जैन के शानदार बंगले की तरफ बढ़ी और कुछ ही देर बाद हमारी कार बंगले के पोर्च में खड़ी थी और हम उसे बंगले के भव्य ड्राईंग रूम में शिखर चंद जैन के सामने बैठे थे।
जैने अपने हीरों को देखते ही न केवल पहचान गया, बल्कि खुशी से झूम भी उठा। आई• जी• सहाब को उसने लपककर गले लगा लिया था, कहने लगा- "आपने कमाल कर दिया, चार साल बाद इन हीरों को ढूंढ निकालना वाकई हैरत की बात है, अगर सच पूछा जाए तो मैं अपने हीरों को भूल ही चुका था । "
"भले ही आप भूल गए हों, लेकिन कम-से-कम मेरे लिए इन्हें भूलना संभव नहीं था । "
नाश्ते आदि के बाद जब हम चलने लगे तो जैन ने आई• जी• से अपने हीरे मांगे, जवाब में आई.जी. साहब ने कहा-"धैर्य रखिए सेठजी, हीरे आपके हैं और जब मिल ही गए हैं तो अंततः आप ही के पास पहुंच जाएंगे। फिलहाल ये पुलिस कस्टडी में हैं और इस वक्त तो मैं आपसे सिर्फ इनकी शिनाख्त कराने लाया था। वह हो चुकी है, अब हमारा अगला काम इन्हें चुराने वालों का पता लगाना है। जरा उन चोरों की शक्ल तो देखें जिन्होंने हमारे बेदाग कैरियर पर धब्बा लगा दिया था।"
शिखरचन्द जैन केवल ठहाका लगाकर हंस पड़ा। वहां से हम आई•ज़ी• साहब से ऑफिस में पहुंचे। चार साल
पहले हुई चोरी से संबंधित फाइल आई• जी• साहब ने वहीं मंगा ली थी । फाइल में मौजूद फोटोग्राफ्स से हीरों को मिलाने पर विभा सहित हम सबको मानना पड़ा कि हीरे वही हैं। फाइल में पांचों चोरों के फिंगर प्रिंट्स भी मौजूद थे।
आई.जी. साहब ने कहा- "लाशों का दाह संस्कार करने से पहले पुलिस अपने रिकार्ड के लिए मृतक के फिंगर प्रिंट्स आदि रखती है। संबंधित फाइलों में उनकी उंगलियों के निशान भी होंगे जिन पर आपाके चोर होने का शक है, पुष्टि करने के लिए अब केवल इन निशानों से मिलना ही बाकी है।"
"जी हां ।"
"तो वापस जिन्दम पुरम् चलें । "
"अंततः जिन्दलपुरम् तो जाना ही है, मगर मैं ये सोच रही थी कि जिन्दल पुरम् जाने से पहले हमें जयपुर हो आना चाहिए।"
“जयपुर क्यों ?"
"मैं वर्तमान केस के संदिग्ध मुजरिम एस एन त्रिवेदी के पुश्तैनी मकान का निरीक्षण करना चाहती हूं।"
"ओह, श्योर।" कहने के साथ ही आई जी साहब उठ खड़े हुए।
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