उस आफिसनुमा कमरे में पहुंचते ही विभा कुर्सी पर बैठी। हमने अपनी कुर्सियों पर बैठकर अभी पहली सांस भी नहीं ली थी विभा ने किसी से संबंध स्थापित करके कहा- "हैलो, वकील साहब ।"
"यस बहूरानी।"
"क्या रहा ?"
दूसरी तरफ से कहा गया- "अभी तक तो कुछ नहीं रहा, शायद कल ।”
"कल....कल....।" विभा अचानक उत्तेजित होकर चीख पड़ी - "आखिर कितनी कल करेंगे आप। यहां हत्यारे के हौंसले इतने बढ़ गए हैं कि वह कत्ल पर कत्ल किए जा रहा है । "
"स... सॉरी बहूरानी।"
"सॉरी कहने से कुछ नहीं होगा वकील साहब।" मैं पहली बार विभा को इतने गुस्से में देख रहा था - "एक नई एप्लीकेशन लिखिए, उस पहेली से संबंधित एक और हत्या हो गई है। मजिस्ट्रेट से कहिए कि वे कब तक जिन्दल पुरम् में इस किस्म की हत्याएं कराते रहेंगे।”
"मैं कल पूरी कोशिश करूंगा बहूरानी।"
"कल उस लॉकर को तोड़ डालने के आदेश जारी होने ही चाहिए और यदि कल भी आप इतनी हत्याओं के बावजूद अदालती आर्डर निकलवाने में कामयाब न हुए तो आप जानते हैं कि हम भी वकील हैं, हमें खुद ही अदालत में जाकर मजिस्ट्रेट से जिरह करनी होगी।"
"मुझे पूरा यकीन है बहूरानी की कल मुझे पूरी कामयाबी मिल जाएगी ।"
"कल वह लॉकर टूटना ही चाहिए वकील साहब । अपनी दलीलों से मजिस्ट्रेट को समझाइए कि इन हत्याओं को हत्यारा उस लॉकर में बंद है, जब तक लॉकर नहीं टूटेगा तक तक न केवल यूं ही दनदनाता रहेगा, बल्कि इसी तरह हर रोज निर्मम हत्याएं करता रहेगा।" कहने के बाद उसने दूसरी तरफ से बोलने वाले वकील का उत्तर सुने बिना रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया।
कुर्सी की पुश्त से पीठ टिकाकर विभा बुरी तरह हांफने लगी थी ।
आप जरूर सोच रहे होंगे कि विभा ने फोन पर ये बातें किससे की हैं। जिन्दल पुरम् में होने वाली हत्याओं का किसी लॉकर से क्या संबंध है आदि ! आपके दिमाग में अनेक सवाल चकरा रहे होंगे और उस समय स्वयं हमारे दिमागों में भी वे ही सवाल चमक रहे थे । चाहने के बाद भी मैं अपनी उत्सुकता को दबा नहीं सका और सवाल किया-"ये फोन पर तुम किससे बातें कर रही थीं विभा ?”
"अपने वकील से ।" उसने शांत स्वर में जवाब दिया।
"वह तो मैं समझ गया, लेकिन यह नहीं समझा कि तुम्हारी बातों का आखिर मकसद क्या था - तुम अदालत से कौन-से लॉकर को तोड़ डालने के आदेश जारी करवाना चाहती हो, होने वाली हत्याओं से किसी लॉकर का क्या संबंध है, तुमने एक वाक्य बोला था कि उसी लॉकर में हत्यारा बंद है ! आखिर कैसा लॉकर है, वह कितना बड़ा लॉकर है, जिसमें हत्यारा बंद हो सकता है ?"
उसने बड़े इत्मिनान के साथ कहा -"तुम्हारे सभी सवालों का जवाब कल तक मिल जाएगा।"
उस वक्त करीब साढ़े ग्यारह बजे थे जब भुर्राट सफेद बालों वाले अधेड़ आयु के एक वकील ने कमरे में प्रवेश किया । वकील के लंबे - तगड़े और हृष्ट-पुष्ट जिस्म पर सफेद पतलून और काला कोट था, उसका चेहरा चौड़ा, रंग गोरा और नाक मोटी थी, मोटी नाक पर काली कमानी वाला, मोटे लैंसों का चश्मा रखा था।
कुल मिलाकर वकील को आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक कहा जा सकता है।
उससे हुई वार्ता से पहले मैं आपको यह बात दूं कि डॉक्टरों की भरपूर कोशिश के बाद भी पिछले दिन जगमोहन उर्फ बिरजू को साढ़े चार बजे के बाद जीवित नहीं रखा जा सका था - श्रीकान्त ने रिपोर्ट दी थी कि वह बराबर महेन्द्रपाल सोनी की निगरानी कर रहा है, जिंगारू ने उससे किसी भी जरिए से संबंध स्थापित करने की कोशिश नहीं की है, उधर, वकील के आने से पांच मिनट पूर्व की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस त्रिवेदी या मनीराम बागड़ी में से किसी को भी तलाश नहीं कर पाई थी ।
मनीराम बागड़ी की भी लाश कहीं नहीं मिली थी ।
वकील के कमरे में प्रविष्ट होते ही विभा ने खड़े होकर उसका स्वागत किया, बहुत ही अधीरतापूर्वक बोली- "क्या रहा वकील साहब?"
"आदेश जारी हो गए हैं।" कहने के साथ ही अदालत के हुक्म की नकल वकील ने मेज पर रख दी।
"गुड !" कहती हुई विभा ने लगभग झपटकर कागज उठा लिया। पढ़ने लगी, अत्यधिक उत्साह के कारण न तो वह स्वयं ही बैठी थी और न ही वकील से बैठने के लिए कहा था। अदालत के हुक्म को वह पढ़ती ही चली गई । पूरा पढ़ते-पढ़ते उसका चेहरा चमक उठा, बोली। "वैरी गुड़, ये आदेश तो आज ही के लिए हैं । "
"जी हां ।”
"क्या इसकी नकल बैंक और पुलिस अधिकारियों पर पहुंच गई है ?"
"जी हां, मैं इधर आया हूं। फैसले की नकल लेकर अदालत के आदमी उनके पास पहुंच गए होंगे।"
"आपके ख्याल से आज लॉकर किस वक्त तक टूट जाएगा।"
"जी, डेढ़ बजे तक ।" विभा अपनी कुर्सी पर बैठ गई और अचानक ही मुझसे संबोधित होकर बोली- "कल तुम वकील और लॉकर से संबंधित जो सवाल कर रहे थे वेद । अब मैं तुम्हें उन सभी सवालों को सवाल दे सकती हूं।"
"मैं जानने के लिए बहुत उत्सुक हूं।"
"दरअसल बहुत पहले ही मैंने वह पहेली हल कर ली थी, जिसे हल न कर पाने की सूरत में अनूप को आत्महत्या कर लेनी पड़ी या जोगा तथा बिरजू को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े।"
"ये तुम क्या कह रही हो?" हम इस तरह उछल पड़े जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
"अगर तुमने यह सोचा था कि मैं उस पहेली को भूली हुई हूं, या अत्याधिक व्यस्तता के कारण उसे हल नहीं कर रही हूं तो यह तुम्हारी भूल ही थी ।" विभा ने कहा- "जिस पहेली को हल कर पाने की सूरत में उन्होंने आत्महत्या कर ली, जिस पहेली को हत्यारा अपने प्रत्येक शिकार से हल करवाना चाहता है, जरा सोचो कि उस पहेली का इस केस से कितना गहरा संबंध होगा और फिर यह सोचो कि मैं, जिसने इस केस को हल करने की कसम खाई है, क्या उस पहेली को इतने समय तक डिले करूंगी, कभी नहीं वेद ।"
"तुमने पहेली कब हल की ?"
"उनकी मृत्यु वाली रात ही को ।”
"लेकिन तुमने बताया नहीं !"
"उसकी मैंने जरूरत नहीं समझी ।"
"ल... लेकिन उस पहेली का हल आखिर है क्या?"
"कमरे से तुम्हारे जाते ही मैं उसे पहेली को लेकर बैठ गईं और सच मानना अपने पास ही रिवाल्वर भी रख लिया, मैंने मन ही मन प्रतिज्ञा की थी कि इस पहेली को साढ़े तीन घंटे में हल करूंगी और न कर सकी तो उनकी तरह आत्महत्या कर लूंगी, लेकिन जब लेकर बैठी तो केवल तीस मिनट में हल कर दी।"
"तीस मिनट में ?"
"हां, पहली चीज ही ऐसी होती है कि यदि समझ में आए तो एक मिनट में आ जाए, न आए तो सात जन्म भी समझ में न आए, इसमें शक नहीं कि पहेली का हल हमें हत्यारे तक पहुंचा देगा।"
"तो फिर अब तक हत्यारा तुम्हारी पकड़ से दूर क्यों है?"
"बताती हूं।" कहने के साथ ही विभा ने दराज से एक कागज निकालकर मेरे सामने मेज पर फैला दिया, उस कागज पर वही पहेली बनी हुई थी, बोली- "अब जरा ध्यान से इस पहेली को देखो, सबसे बड़े त्रिभुज को घेरे अंग्रेजी वर्णमाला का अक्षर 'एस' बना हुआ है।"
"इतना तो मैं भी समझ गया था । "
"इस 'एस' का क्या मतलब है स्टेट बैंक ।"
"ये क्या बात हुई ?" मैं बोला- "एस से हम स्टेट बैंक की क्यों बनाएं, 'एस' से तो अनगिनत शब्द बन सकते हैं।
"लेकिन इस 'एस' के अंदर छः छोटे-छोटे वृत्त बने हुए हैं, ये वृत्त भरे हुए हैं। केवल प्रत्येक वृत्त के केंद्र से निचले सिरे तक एक साफ और सीधी रेखा नजर आ रही है।"
"बेशक, लेकिन इन वृत्तों से क्या अर्थ निकलता है ?"
"अब जरा स्टेट बैंक का चिन्ह याद करो।"
"ओह! मेरे मस्तिष्क की नसें खुलती चली गई।"
"स्टेट बैंक का चिन्ह यही है, यानी एक भरा हुआ वृत्त । वृत्त के केन्द्र से निकली हुई एक सरल रेखा-वृत्त का भरा हुआ भाग अंधेरे को प्रतीक है और केन्द्र से निकली रेखा प्रकाश का, ये चिन्ह कहता है कि अंधेरे में प्रकाश की किरण, स्टेट बैंक ।"
"गुड!"
"ये चिन्ह बताता है कि इस 'एस' का मतलब केवल स्टेट बैंक है, अन्य कुछ नहीं।"
"आगे ?"
"त्रिभुज के अन्य बाईं तरफ लिखा है श्स्श् । दाई तरफ श्छव् यानी नंबर । कॉमन सेन्स की बात है कि जहां स्टेट बैंक और नंबर आ गया वहां 'एल का मतलब 'लॉकर' ही हो सकता है, यानी अब हमारे पास शब्द इकट्ठे हो गए। स्टेट बैंक लॉकर नंबर ।"
"लेकिन नंबर तो कहीं लिखा नहीं है।"
"ये त्रिभुज क्या है?"
"मतलब ।"
"तुम्हारे सामने फीगर है। एक बड़े त्रिभुज के अंदर ढेर सारे छोटे-छोटे त्रिभुज । जरा इन त्रिभुजों को गिनों और गिनकर जल्दी से बताओ कि ये कितने त्रिभुज हैं?”
मैं इन त्रिभुजों को गिनने लगा, मेरे अलावा मधु भी गिन रही थी। विभा आराम से अपनी कुर्सी की पुश्त से टेक लगाकर बैठ गई, गिनने के बाद मधु ने कहा- "बारह"
विभा के होठों पर बरबस ही मुस्कान उभर आई, बोली- "इतनी जल्दी मत करो मधु बहन, मुझे आधा घंटा इन्हीं त्रिभुजों को गिनने में लगा था, यही कह सकती हूं तुमने जो बताए हैं वास्तव में ये उससे दुगने, तिगुने से कहा हैं ।"
मैं अभी तक गिन रहा था, मधु भी पुनः लगी थी । त्रिभुजों के गिनता - गिनता मैं हर बार चक्कर में आ जाता, दरअसल मैं जिधर देखता वहीं मुझे एक नया त्रिभुज नजर आता । जब मुझे लगा कि मैं सारे त्रिभुज गिन चुका हूं और अब कोई नहीं बचा है तो बोला । इकत्तीस ।”
"अभी तो तुम आस-पास भी नहीं पहुंचे हो दोस्त ।”
तब फिर तुम ही बताओ, मैं पूरी कोशिश कर चुका हूं। इकत्तीस से ज्यादा नहीं गिने गए।
"ये सैंतालीस त्रिभुज हैं।"
"स...सैंतालीस ?" मेरे मुंह से अविश्वसनीय स्वर निकल पड़ा।
"हां, पूरे सैंतालीस ।”
"किस तरह, क्या तुम गिनवा सकती हो ?"
"जरूर ।" कहने के बाद वह कागज पर झुकी और फिर उस आकृति में बने त्रिभुज गिनवाने लगी, जैसे-जैसे वह गिनवाती जा रही थी, इकत्तीस के बाद वह ऐसे ऐसे त्रिभुज गिनवाने लगी जो दरअसल मुझे नजर नहीं आए थे और उसने मुझे पूरे सैंतालिस त्रिभुज गिनवा दिए, जब मैंने स्वीकार कर लिया तो बोली ।" अब पूरा मतलब ये निकला ।" स्टैट बैंक लॉकर नंबर, सैंतालीस ।
"वैरी गुड, लेकिन इससे लाभ क्या हुआ ?
"इस पहेली से जो मतलब निकलता है उससे जाहिर है कि किसी ने अपने उत्तराधिकारी को सांकेतिक भाषा में अपना लॉकर नंबर बताया है, निश्चय ही इस लॉकर में उस उत्तराधिकारी के लाभ की कोई वस्तु होगी।"
"लॉकर में तो आमतौर से लोग जेवर- गहने आदि ही रखते हैं ।"
“जरूरी नहीं है, कुछ और भी रख सकते हैं। कोई वसीयत या किसी किस्म के जरूरी कागजात। हां, ये तय है कि प्रत्येक व्यक्ति लॉकर में अपनी अमूल्य वस्तु रखता है, वही अमूल्य वस्तु वे अपने-अपने उत्तराधिकारी को सौंपना चाहता है, इस पहेली का हल भी यही कह रहा है। अब हम हत्यारे पर आते हैं, क्योंकि हत्यारा इस पहेली को हल न करने वाले ही हत्या कर देता है, जाहिर है कि पहेली को वह स्वयं भी हल नहीं कर सका है, यदि कर चुका होता तो अब तक लॉकर तक पहुंच चुका होता और किसी से इसका हल न पूछता । हत्यारे के कृत्य से यह भी जाहिर है कि उसके किसी अभिभावक ने उसे इस रूप में अपना लॉकर नंबर बताया, परंतु वह समझ नहीं सका और इसी झुंझलाहट पर कत्ल-पर- कत्ल करने लगा ।”
"लेकिन स्टेट बैंक की लाखों शाखाएं हैं, फिर यह कैसे समझा जाए कि यह लॉकर नंबर कौन-सी शाखा का है?"
"तुमने एक अच्छा सवाल किया है ।" विभा बोली- "यही प्रॉब्लम मेरे सामने भी आई थी, मगर फिर मैंने सोचा कि जहां घटनाएं हो रही हैं उसी जगह के स्टेट बैंक को चैक किया जाए, जिन्दल पुरम में स्टेट बैंक की केवल चार शाखाएं, दो में लॉकर नहीं है और दो में हैं। जिन दो में हैं, हमारा वकील उनमें से एक के मैनेजर से मिला । पता लगा कि लॉकर नंबर सैंतालिस का मालिक कोई 'सुब्त मुखर्जी' हैं जो नियमपूर्वक हर महीने अपने लॉकर खोलने आता है। वकील दूसरे बैंक के मैनेजर से मिला, पता चला कि पिछले चार साल से लॉकर किसी 'बंकमदास' के नाम है, परंतु वह पिछले चार साल से लॉकर खोलने नहीं आया हैं बस, ये प्वाइंट इस बात को साबित करने के लिए काफ़ी है कि पहेली का संकेत इसी लॉकर की तरफ है ।"
"वैरी गुड । " मेरे मुंह से बरबस ही निकल पड़ा।
"बंकमदास पास के पहाड़ी गांव, चन्दनपुर का रहने वाला था, बैंक के रजिस्टर में उसका पूरा पता दर्ज है, जिसके आधार पर बैंक के आदमी ने चन्दनपुर जाकर बंकमदास की खैर - खबर ली। पता लगा कि चार साल पहले किसी दुर्घटना में बंकमदास और उसका सारा परिवार मर चुका है, बैंक परिवार के किसी वारिस को ढूंढने में नाकामयाब रहा और हमारे पास लॉकर की चॉबी भी नहीं, बिन चॉबी के लॉकर खुल नहीं सकता, सिर्फ टूट सकता है और लॉकर तुड़वाने में तो लॉकर के असली मालिक को भी दांतों पसीना आ जाता है, जबकि हमारा तो यह लॉकर भी नहीं है, इसलिए हमारे द्वारा लॉकर को तुड़वना बेहद कठिन काम था। किसी का लॉकर बैंक वाले भी बिना अदालत के आदेश के नहीं तोड़ सकते। हमें उम्मीद थी कि लॉकर में ऐसी कोई न कोई वस्तु जरूर होगी तो वर्तमान केस के हत्यारे पर प्रकाश डालेगी, इसीलिए लॉकर तुड़वाना जरूरी थी। हमने अपने वकील को इसी काम पर लगा दिया। ये तभी से, अदालत से यह आदेश प्राप्त करने की कोशिश कर रहे थे, आज सफल हुए हैं।"
“आज भी बड़ी मुश्किल से सफलता मिली है, बहुरानी ।" वकील बोला- "माननीय मजिस्ट्रेट ने आदेश तभी जारी किए जब मैं उन्हें ठीक से इस पहेली का हल और यह समझाने में कामयाब हुआ कि लॉकर नंबर सैंतालीस का संकेत इसी शाखा के लॉकर नंबर सैंतालीस से है और इस पहेली के चक्कर में कत्ल-पर-कत्ल हुए चले जा रहे हैं। यदि लॉकर को तोड़कर न देखा गया कि उसमें क्या है नहीं तो अभी और कत्ल होंगे।"
"लेकिन बंकमदास ने अपने उततराधिकारी को लॉकर नंबर इस पहेली के जरिए ही क्यों बताया ?"
"ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनके अभी हमें जवाब खोजने है।" विभा ने कहा ।
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