हमारे सामने एक बार फिर लगभग वही दृश्य था, जो तब देखा था जब डिनर पर पहली बार मंदिर में गए थे। आरती बुरी तरह रो रही थी। विभा के पैरों पर पड़ी वह गिड़गिड़ाकर अपने पति को बचा लेने के लिए सिसक रही थी। हमारे सामने लायब्रेरी का बंद दरवाजा था।
विभा उसे समझा रही थी - "रोने से कुछ नहीं होगा, बहन, अगर अपने पति को बचाना चहाती हो तो सबसे पहले मेरे कुछ सवालों का जवाब दो।"
"जी पूछिए।" वह उठकर खड़ी हो गई।
"उस वक्त क्या बजा था जब जगमोहन घर आया ?"
"डेढ़ ।"
दो बजा रही रिस्टवॉच पर नजर डालती हुई विभा ने पूछा- "क्या तुमने पूछा कि वह कहां गया था?"
"जी हां। मैंने कोशिश की थी, परंतु उन्होंने कुछ बताया ही नहीं। वे बहुत जल्दी में थे। आते ही सीधे लायब्रेरी में घुस गए, यह भी कहा कि में साढ़े घंटे से पहले उन्हें डिस्टर्ब न करूं।"
"क्या तुमने उसे बताया था कि हम उससे मिलना चाहते हैं?"
"उन्होंने मौका ही कहां दिया ?"
"क्या लायब्रेरी में जाता हुआ जगमोहन कुछ डरा हुआ-सा था ?"
“उनके चेहरे पर पीलापन था । ऐसा, जैसे मृत व्यक्ति के चेहरे पर होता है। आंखे वीरान और निस्तेज थीं, जैसे जानते हों कि कुद देर बाद उन्हें मर जाना है।"
विभा ने बड़ा अजीब-सा सवाल किया । "तुम्हारा बच्चा कहां है?"
"उस कमरे में सो रहा है, लेकिन आप पिंकी के बारे में क्यों पूछ रही हैं ?"
विभा दौड़कर उस कमरे में गई जिसकी तरफ आरती ने इशारा किया था। बच्चे को बेड पर आराम से सोता हुआ देखकर विभा के चेहरे पर इत्मिनान के भाव उभरे। मैं समझ रहा था कि विभा ने बच्चे के बारे में क्यों पूछा है, शायद उसे डर था कि कहीं हत्यारे ने जगमोहन को उसके बच्चे को कत्ल करने की धमकी न दे रखी हो ।
आरती के समीप आकर विभा ने कहा-"क्या जगमोहन के पास कोई रिवाल्वर आदि है?"
"मेरी जानकारी में नहीं है । "
रिस्टवॉच की तरफ देखती हुई विभा ने एक पल कुछ सोचा और कोई दृढ़ निश्चय करके लायब्रेरी के बंद दरवाजे की तरफ बढ़ गई, दरवाजे पर दस्तके देने के साथ उसने पुकारा । "मिस्टर जगमोहन ।”
"क....कौन है ?" मौत के डर से कांपता स्वर ।
"दरवाजा खोलो, ये हम हैं, विभा । "
"म.... मुझे डिस्टर्ब मत करो, मैं काम कर रहा हूं।"
"शायद तुम समझे नहीं जगमोहन, हम जिन्दल पुरम् की बहूरानी हैं और हमारे लिए इसी वक्त तुमसे कुछ बातें करनी जरूरी हैं। दरवाजा खोलो।"
"यहां से चली जाओ, मुझे कोई बात नहीं करनी ।"
"बात किए बिना हम यहां से नहीं जाएंगे बिरजू । दरवाजा नहीं खोलोगे तो हम इसे तोड़ डालेंगे।”
"ओह, आप मेरा नाम भी जानती हैं लेकिन नहीं, अब कुछ नहीं हो सकता बहूरानी। उफ् । आप मेरा समय बर्बाद कर रही हैं, प्लीज । आप यहां से जाइए। मैं जरूरी काम कर रहा हूं।"
"हम जानते हैं कि तुम क्या जरूरी काम कर रहे हो, हत्यारे ने पहेली हल करने के लिए तुम्हें साढ़े तीन घंटे का समय दिया है न, तुम सोच रहे हो कि उसे हल करके बच जाओगे, लेकिन नहीं बिरजू । वह पहेली तुमसे साढ़े तीन जन्म में भी हल नहीं होगी। मैं तुमसे हत्यारे के बारे में बात करना चहाती हूं, इस समय का उपयोग तुम सारी कहानी सुनाने के लिए कर सकते हो।”
"आप यहां से जाइए बहूरानी । प्लीज, चली जाइए यहां से । आह, अरे । ये मुझे क्या हो रहा है?" इन शब्दों के बाद अन्दर से जगमोहन के चीखने की आवाजें आने लगीं, ऐसी । जैसे वह किसी असहनीय पीड़ा से गुजर रहा हो। इन आवाजों को सुनकर हम सब घबरा गए।
"बिरजू, बिरजू।" विभा बुरी तरह दरवाजा पीटती हुई चिल्लाई ।
अंदर से उभरने वाली चीखें तेज और तेज होती चली गईं।
विभा ने जल्दी से चीखकर दरवाजा तोड़ डालने के लिए कहा और स्वयं भी पीछे हटकर अपने कंधे की जबरदस्त चोट दरवाजे पर की। मैं, मधु और आरती थी उसकी मदद करने लगे।
अंदर से ऐसी चीखें उभर रही थी जैस जगमोहन को किसी ने आग की भट्टी में डाल दिया हो।
पांच मिनट बाद। चौखट से टूटकर बंद दरवाजा धड़ाम् से कमरे में गिरा।
हम सब एक तेज झोंक में कमरे के अंदर दाखिल हो गए, बड़ी मुश्किल में हम सबने खुद को गिरने से बचाया था और जगमोहन पर दृष्टि पड़ते ही हमारे हलकों से चीखें उबल पड़ीं।
इस बार चीख विभा के कंठ से भी निकल गई थी ।
सबसे जबरदस्त और भयानक चीख आरती की थी ।
हम सब हक्के-बक्के रह गए, जड़वत् से जहां के तहां, चेहरे पर खौफ और आंखों में डर लिए जगमोहन की तरफ देखते ही रह गए हम और हमारी इस अवस्था की वजह जगमोहन की अवस्था थी ।
चीखता हुआ वह सारे कमरे में भागा-भागा फिर रहा था,
उसके सारे जिस्म से ढेरों पसीना फूट रहा था । वह इस तरह चिल्ला-चिल्लाकर अपने कपड़े फाड़े रहा था जैसे किसी दहकती भट्टी में पड़ा हो ।
जिस्म पर मोटे-मोटे फफोले पड़ने लगे थे।
इस तरह के जैसे उसे किसी ने उबलते पानी में डाल दिया हो।
"बिरजू - बिरजू ।" उसी तरफ दौड़ती हुई विभा चीखी, उसे पकड़कर झंझोड़ती हुई चिल्लाई- "ये तुम्हें क्या हुआ है, बोलो । प्लीज बोलो बिरजू ।"
"म... मुझे एक इंजेक्शन ।" एक । एक शब्द उसके मुंह से बड़ी मुश्किल से निकल रहा था- "ल...लगाया गया है। म... मैं, मैं साढ़े तीन घंटे बाद मर जाऊंगा । आह.... आह। म...मुझे छोड़ दो। बहुत गर्मी लग रही है। सारा शरीर जल रहा है।"
"किसने ?" विभा चीखी- "तुम्हें इंजेक्शन किसने लगाया ?" -
"च.च. द.न.प पर ब क म दास के....भ..भ....भ और बस ।" भ....भ करते हुए जगमोहन की जुबान ऐंठती चली गई। जुबान के साथ ही सारा शरीर भी कुछ इस तरह जैसे कोई अदृश्य ताकत उसके सारे जिस्म को वैसे अंदाज में मरोड़ रही हो जैसे कपड़ा निचोड़ने के लिए मरोड़ा जाता है। विभा स्वयं ही छिटककर दूर जा गिरी।
बिरजू के कंठ से मर्मान्तक चीखें निकलने लगीं।
उसका सारा जिस्म घूमकर फर्श पर गिरा पड़ा । थरथराते हुए अपने स्थानों पर खड़े हम भी देखने के अलावा उसकी कोई मदद नहीं कर सकते थे। फर्श पर पड़ा वह ठीक उसी तरह तड़प रहा था जैसे सूखी रेत पर पड़ी मछली तड़पा करती है। हम महसूस कर रहे थे कि कोई अदृश्य ताकत उसे मरोड़ रही है।
हाथ, पांव, उंगलियां और सारा लगभग सारा शरीर ही ऐंठ गया था, जिस्म पर फूट-फूटकर उभरने वाले फफोलों की संख्या बढ़ गई थी ।
कुछ फफोले फूट चुके थे और उन फूटे फफोलों से गंदा पानी बह रहा था। कुछ ही देर के बाद उसने तड़पना बंर कर दिया, जिस्म एकदम निश्चयल होकर फर्श पर अकड़ा पड़ा रहा।
हमारे देखते-ही-देखते जगमोहन मर चुका था, किंतु शायद नहीं । मेरा उस वक्त का अनुमान गलत था। वह मरा नहीं था, उसकी पलकों को झपकतें मैंने अपनी आंखों से देखा था ।
"बिरजू, बिरजू ।" विभा दौड़कर उसके नजदीक पहुंची।
वह लाश के समान पड़ा रहा ।
"क्या तुम बोल सकते हो मिस्टर | बोलो, क्या तुम सुन सकते हो ?"
पलकें झपकाने के अलावा जैसे जगमोहन कुछ भी नहीं कर पा सकता था और सच्चाई थी भी यही "पलकों के अलावा कोई भी इन्द्री उसके अपने वश में नहीं थी ।"
वह न शायद सुन सकता था; न देख सकता था, न बोल सकता था, निर्विकार भाव से वह सिर्फ पलकें झपका सकता था और वही कर भी रहा था। इस ठोस हकीकत को जानने के बाद विभा उसके समीप से उठी और दौड़कर दूसरे कमरे में रखे फोन के नजदीक पहुंची, नंबर डायल किए ।
पहला फोन उसने हरिकेश बहादुर अस्पताल के मुख्य डॉक्टर को किया था, दूसरा एस एस • पी• पुलिस को । तीस मिनट के अंदर ही वहां दोनों अपने दल-बल सहित पहुंच गए।
एस॰एस॰पी• साहब के साथ पुलिस थी, मुख्य डॉक्टर के साथ एम्बुलेंस तथा अन्य कई जुनियर डॉक्टर्स। फोन करने और उन लोगों के आने के बीच में विभा मेज पर पड़े कागज और खुले हुए पैन को देख चुकी थी ।
कागज पर वही पहेली बनी हुई थी ।
विभा ने जगमोहन के जिस्म पर चीथड़ों की शक्ल में झूल रहे कपड़ों की जेबें भी टटोली थीं, परंतु उनमें से कोई ऐसी वस्तु नहीं मिली थी, जिसका यहां उल्लेख किया जाए ।
एस• एस• पी• महोदय जगमोहन को उस अवस्था में देखकर चकित रह गए थे, उस वक्त तो उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना ही नहीं रहा, जब उन्हें विभा ने सारी वारदात सुनाई। यहां उल्लेखनीय बात ये है कि विभा ने जगमोहन के अंतिम शब्दों का उनसे कोई जिक्र नहीं किया था ।
मुख्य चिकित्सक ने वहीं चैक करके बताया । "फिलहाल मिस्टर जगमोहन जीवित हैं, परंतु... "
"परंतु क्या डॉक्टर ?"
"इन्हें बचाया नहीं जा सकेगा, हत्यारे द्वारा निश्चित किए गए समय बाद ये खुद मर जाएंगे।"
"क्या मतलब?"
"एक इंजेक्शन का नाम है 'टाईम डैथ' इन्हें वही इंजेक्शन लगाया गया है, इंजेक्शन कहीं मिलता नहीं है, मुझे तो हैरत है कि हत्यारे के पास आखिर वह कहां से आ गया।"
"हत्यारा अपने काम की चीजें प्राप्त कर लेता डॉक्टर ।" एस• एस• पी• बोले।
" कहा नहीं जा सकता कि इंजेक्शन इन्हें किस समय लगाया गया है, इंजेक्शन लगने के एक से सवा घंटे के बीच 'जहर' इंसान के जिस्म में दौड़ रहे खून में पूरी तरह मिल जाता है और पूरी तरह घुलने के तुरंत बाद ही वह खून को बूरी तरह उबाल डालता है, इंसान को जबरदस्त गर्मी लगने लगती है । जिस्म से बेशुमार पसीना छूटने लगता है। ऐसा महसूस देता है जैसे जिस्म के अंदर आग लग गई हो और फिर खून के उसी उबाल की वजह से सारे जिस्म पर ये फफोले पड़ जाते हैं, फफोलों के पांच से सात मिनट के बाद जिस्म ऐंठने लगता है। जुबान तक ऐंठ जाती है, इंसान ऐसे महसूस करता है जैसे उसे अंदर से मरोड़ा जा रहा हो, इसके दो मिनट बाद ही वह गिर जाता है। सारी इन्द्रियां बेकार हो जाती हैं। पलकें झपकाने के अलावा इंसान कुछ भी नहीं कर सकता। हां, नब्ज और दिल जरूर क्रियाशील रहता है, जिसकी वजह से हम डॉक्टर लोग कहते हैं कि मरीज अभी तक जीवित है, मगर सच्चाई तो ये है कि इस अवस्था में मरीज जीवित लाश से बढ़कर कुछ नहीं है।"
"अभी यह कितनी देर तक इस अवस्था में रह सकेगा ।"
"इंजेक्शन लगने के साढ़े तीन घंटे बाद नब्ज रूक जाती है, दिल धड़कना बंद हो जाता है। नाखून और बाल बढ़ने बंद हो जाते हैं, इस अवस्था को हम डॉक्टर लोग मृत्यु कहते हैं।"
"साढ़े तीन घंटे” विभा के होंठों से भभकता-सा स्वर निकला। उसका चेहरा कनपटियों तक लाल सुर्ख हो गया था, रिस्टवॉच पर नजर डालती हुई विभा बोली मेरे ख्याल से इसे इंजेक्शन एक बजे के करीब लगाया गया, आपकी थ्यौरी के मुताबिक साढ़े चार बजे तक यह इसी अवस्था में रहेगा, उसके बाद मर जाएगा, इस बीच भी यह लाश के समान ही रहेगा ?"
"जी हां ।"
"क्या 'टाईम-डैथ' इंजेक्शन के असर को काटने वाली अब तक कोई दवा नहीं बनी है ?"
"अफसोस के साथ कहना पड़ता है बहूरानी कि नहीं।”
"तो क्या आप इस बीच जगमोहन को बचाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे?"
“जब तक मरीज मर नहीं जाता बहूरानी तक तक उसे मौत के मुंह से निकालकर जिंदगी के हाथों में सौंपने की कोशिश करते रहना ही हम डॉक्टरों का धर्म और कर्तव्य है, भले ही जानते हों कि हम कामयाब नहीं होंगे। उसी धर्म और कर्तव्य का पाल हमें इस जीवित लाश की धड़कने चलने तक करना है।"
"तो समय बरबाद मत कीजिए डॉक्टर, इसे ले जाइए। ब्लड टेस्ट कीजिए, कुछ भी कीजिए। इस खतरनाक इंजेक्शन की काट दुनिया में होनी ही चाहिए डॉक्टर, इसी काट का अविष्कार करने वाले को हम मुंह मांगा पुरस्कार देंगे।"
जगमोहन का जिस्म वहां से उठाकर एम्बुलेंस में रखवाया गया। डॉक्टरों का काफिला उसे लेकर अस्पताल की तरफ चला गया। विभा ने एस• एस• पी• से कहा- "क्या बागड़ी का कुछ पता लगा?"
"अभी तो कहीं से रिपोर्ट भी नहीं आई है।"
"आप जितनी कोशिश कर सकते हैं एस एस• पी• साहब कीजिए । हत्यारे का अगला शिकार मनीराम बागड़ी है और वही उसका अंतिम शिकार भी है, यदि हत्यारा उसकी भी हत्या करने में कामयाब हो गया तो समझो कि वह हमारी पकड़ से बहुत दूर निकल जाएगा।"
"पुलिस ऐड़ी-से-चोटी तक का जोर लगा रही है । "
"पता लगते ही हमें सूचित कीजिएगा।" कहने के बाद विभा ने उससे विदा ली और हम तीनों पुनः मंदिर की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में काफी देर तक कार के अंदर खामोशी छाई रही। हमारी आंखों के सामने अभी तक जगमोहन के तड़पने का दृश्य चकरा रहा था ।
एकाएक मैंने उस तनावपूर्ण सन्नाटे को भंग करने की गर्ज से सवाल किया- "क्या तुम्हें लगता है विभा कि पुलिस मनीराम बागड़ी को तलाश कर लेगी?"
"मैं एक बार फिर कहती हूं वेद कि मैं भविष्यवकता नहीं हूं और तुम्हारे सवाल का जवाब देना भविष्वाणी करना ही होगा। यदि मैं भविष्यवाणी कर सकती हूं तो यह करती हूं कि मनीराम बागड़ी तक पहुंचने में चाहे हत्यारा सफल हो या पुलिस, लेकिन हत्यारा किसी भी सूरत में मेरी पकड़ से नहीं बच सकता।”
“अगर उसने बागड़ी को भी खत्म कर दिया तो....?"
“सामने वाला भले ही हजार रास्ते बंदर कर दे, किंतु निकलने वाले रास्ते निकाल ही लेते हैं वेद" । इस वक्त विभा के स्वर में मैं अजीब-सी दृढ़ता महसूस कर रहा था। "हत्यारे ने टिंगू को मेरे पास भेजा, बिरजू को इंजेक्शन लगाने के बाद जान बुझकर मेरी आंखों के सामने मरने के लिए छोड़ा गया। इन दो घटनाओं से लगता है हत्यारा मुझे चुनौती दे रहा है। चुनौतियां दे-देकर अपने काम को अंजाम दे रहा है, जगमोहन ने रेत पर पड़ी मछली के समान दम तोड़ दिया और मैं कुछ भी नहीं कर सकी, शायद हत्यारा ऐसे हालातों के ज़रिए यह कहना चाहता है कि मैं उसका कुछ नहीं कर सकती । वही होगा जो वह चाहेगा। अगर ये उसकी चुनौती है तो तुम्हारी विभा भी इस चुनौती को स्वीकार करती है दोस्त, अब तक आक्रमण, जिसमें जिसमें फंसकर वह सांप खुद ही अपने केंचुली बदली देगा ।"
विभा के शब्दों का अर्थ मैं ठीक से समझा नहीं था फिर भी कोई सवाल नहीं किया, अगर सच लिखा जाए तो वह ये है कि उस वक्त विभा से कोई सवाल करने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ी थी। इस वक्त उसकी मुद्रा ही इतनी कठोर थी कि मैंने उससे कोई भी सवाल करना ठीक नहीं समझा।
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