‘शीराज' होटल के मैनेजर स्टॉफ और संबंधित वेटर से बातें करने पर भी कोई विशेष परिणाम नहीं निकला, हां अगर यह लिखा जाए तो गलत नहीं होगा कि उन बयानों से मनीराम बागड़ी का करेक्टर कुछ उलझ ही गया था। आंखों वाला बॉक्स मिलने से संबंधित बागड़ी ने जो कुछ कहा था उसकी सारे स्टॉफ ने पुष्टि की। अतः हम इस नतीजे पर पहुंचे कि बागड़ी ने उसे बारे में कहीं भी झूठ नहीं बोला था।


परंतु, सवाल यह उठता था कि उसने जिन्दल पुरम् आने कील अपनी वजह गलत क्यों बजाई?


मैनेजर ने बताया था कि उसी ने बागड़ी को बॉक्स लेकर मंदिर चले जाने की सलाह दी थी, परंतु मंदिर से आते ही वह सीधा काउन्टर पर गया और बिल बनाने के लिए कहा। काउन्टर क्लर्क ने चौंककर पूछा भी कि अचानक ही उन्होंने जिन्दल पुरम् में दो-तीन दिन ठहरने का इरादा त्याग क्यों दिया है। जवाब में उसने कहा कि अब वह एक पल भी इस शहर में नहीं रह सकता।


बिना कोई कारण बताए अपने सूईट में गया। वहां से अपना सूटकेस उठाकर फौरन ही काउन्टर पर आया । सामान के नाम पर उसके पास वही एक सूटकेस था। तब तक काउन्टर क्लर्क उसका बिल बना चुका था। बिल अदा करने के बाद एक मिनट भी वहां ठहरे बिना मनीराम बागड़ी चला गया ।


स्टॉफ का कोई व्यक्ति यह भी नहीं बता सका कि वह कहां गया है?


पता लगाने की भरपूर कोशिश के बाद इस वक्त हम बैरग लिफाफों कीतरह मंदिर की तरफ लौट रहे थे। कार में पूरी तरह खामोशी छाई हुई थी, बातों का सिलसिला जारी करने के के लिए मैं बोला- "ये मनीराम बागड़ी तो अचानक ही बहुत रहस्यमय करेक्टर महसूस देने लगा है।"


"केवल इस वजह से कि सारी वारदारत बिल्कुल ठीक बताने के बावजूद भी उसने जिन्दल पुरम् आने के अपने मकसद के बारे में झूठ क्यों बोला, अचानक ही वह इतना क्यों उखड़ गया । वह दो-तीन दिन ठहरने के लिए यहां आया था, क्यों? क्या काम था उसे और फिर अचानक ही ऐसी क्या बात हो गई, जिसकी वजह से उसने तुरंत सारा प्रोग्राम रद्द करके जिन्दल पुरम् छोड़ देने का निश्चय कर लिया ?”


"अब तो तुम्हें यह याद करना इस केस के लिए भी जरूरी हो गया है विभा कि आखिर उसकी शक्ल तुम्हें कहीं देखी-सी क्यों लग रही थी ?"


ड्राईविंग करती हुई विभा ने पूछा- "मेरे कुछ सवालों का जवाब दो वेद ।"


"पूछो।"


"क्या वह उस आंख वाली घटना से डरकर भागा है?"


"यदि वह उस घटना से इतनी बुरी तरह डरा होता तो मंदिर में आता ही नहीं, आंख को यहीं छोड़कर भाग जाता।"


"गुड, मेरा भी यही ख्याल है। मंदिर से लौटने के तुरंत बाद वी सीधा होटल पहुंचा। होटल छोड़ दिया, छोड़ते वक्त वह बहुत ही जल्दी में था । क्या इसका मतलब यह नहीं कि होटल छोड़ने की वजह, मंदिर में उसके और हमारे बीच होने वाली बातें या कोई एक बात है?"


"ऐसा ही लगता है। "


"हमने उससे क्या बातें कीं थीं। याद करो वेद अक्ष छान बालों को याद करो और फिर यह अनुमान लगाने की कोशिश करो कि उनमें से कौन-सी बात ऐसी थी, जिसकी वजह से उसने होटल छोड़ा ?"


"वह सुधा पटेल के नाम पर चौंका था ।" मधु बोली ।


मैंने कहा- "वहां उसके चौंकने की वजह उसका नाम सुनना था, जिसकी वह आंखें लाया था ।”


"उस वक्त मैंने भी यही सोचा था ।" विभा बोली ।


"दूसरी बार वह चित्रों पर नजर पड़ते ही चौंका था, तब मैंने उसके चौंकने को इसलिए महत्व नहीं दिया, क्योंकि उसने अनूप को पहचानना स्वीकार किया था, किंतु अब लगता है कि उसके चौंकने की वजह कुछ और थी ।"


"क्या ?"


"शायद उन पांचों में से वह किसी अन्य को भी पहचानता था, शायद सुधा पटेल को उन सभी । ओह !” विभा एक दम इस तरह जछल पड़ी मानो करेंट लगा हो, अचानक ही उसे कोई बहुत जबरदस्त बात याद आ गई थी, बोली- "याद आ गया वेद, मुझे याद आ गया। सारी गुत्थियां सुलझ गई ?"


"क्या याद आ गया ?"


"यह कि मैंने उसे कहां देखा है ?" कहने के साथ ही विभा ने अचानक ही अपने पैरों का दबाव एक्सीलेटर पर बढ़ा दिया, मध्यम गति से चलने वाली कार अचानक ही तेज हो जाने के कारण मेरे और मधु के जिस्मों के झटका सा लगा, किंतु इस बात की कोई परवाह किए बिना विभा एक्सीलेटर पर पैरों के दबाव बढ़ती ही चली गई। हमने चौंककर विभा की तरफ देखा। इस वक्त उसका चेहरा पत्थर की तरह सख्त था । भभका हुआ-सा लाल सुर्ख, गाड़ी अब हवा की-सी गति से सड़क पर उड़ी चली जा रही थी ।


हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ही विभा को आखिर क्या हो गया है ?


हमने पूछा भी परंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया और अंत में कार एक तीव्र झटके के साथ मंदिर के पोर्च में रूकी। झपटने के से अंदाज में उसने दराज से वे पांचों चित्र निकाले और उनमें से टिंगू का चित्र मेरे सामने मेज पर फैंककर बोली- "ये है मनीराम बागड़ी ।"


"क्या....क्या?" मेरे साथ ही मधु भी उछल पड़ी ।


"इसे जरा ध्यान से देखो वेद और फिर बागड़ी के चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ थीं। बस दोनों में यही फर्क है। मनीराम बागड़ी की दाढ़ी-मूंछ उसके चेहरे से हटा दो तो वह टिंगू बन जाएगा, वही। जिसका ये चित्र है।"


"म... मगर तुम तो कह रही थ कि जिंगारू ही टिंगू है ।”


" है नहीं कहा था। कहा था कि हो सकता है, हो सकता है एक अनुमान होता है और 'है' प्रमाणिक हकीकत । वही हमारे सामने है, तुम जरा बागड़ी के चेहरे से मूंछ- दाढ़ी हटाने के कल्पना तो करो ?”


त-प्रतिशत ठीक कह रही हो, लेकिन बड़ी हैरत की बात है कि... ।'.' "तुम शत-प्र


"हां, यह हैरत की ही बात है वेद कि वह यहां आया। बैठा, हमसे बाते कीं। उसी को हमने यह चित्र भी दिखाए। मुझे वह देखा हुआ-सा लग भी रहा था, किंतु पहचान नहीं सकी। मैं चूक गई वेद । इसलिए तो मैंने कहा था कि चूक हरेक से होती है। असावधानी के कारण हुई इस चूक का मुझे अफसोस है।"


"मेरे ख्याल से तो अब भी तुम चूकी नहीं हो, हकीकत ये है कि दाढ़ी की वजइ से उसकी शक्ल बिल्कुल बदली हुई थी। फिर भी तुम्हें लगा कि उसे कहीं देख है, मुझे और मधु को तो ऐसा भी नहीं लगा।"


"मैं उसे समय रहते न पहचान सकी, इसे मैं अपनी चूक और असावधानी ही कहूंगी। खैर, अब अफसोस करने से कुछ नहीं होगा। हां, बागड़ी ही टिंगू था । यह बात साबित होने के बाउ उसके भागने की वजह सामने आ जाती है। हमसे सब कुछ सुनने के बाद वह डर गया, मौत से किसे डर नहीं लगता और फिर इस हकीकत ने तो उसके छक्के ही छुड़ा दिए होंगे कि त्रिवेदी दो खून कर चुका है। तीसरी की आंखें भिजवाई हैं।”


"लेकिन जिन्दल पुरम् आया किस मकसद से था ?"


"इस सवाल का जवाब अभी अंधेरे में है ।।"


"क्या त्रिवेदी जानता होगा कि मनीराम बागड़ी ही टिंगू है ?"


"यकीनन्।"


"तो क्या इस हालत में वह मनीराम बागड़ी को जिन्दल पुरम् से सुरक्षित निकल जाने देगा ?"


"शायद नहीं।" "फ...फिर?” मैंने धड़कते दिल से पूछा ।


"यहां तक पहुंचने और सब कुछ पता लगने के बाद भी बागड़ी ने यहां से जाकर बहुत बड़ी भूल की है, अनावश्यक रूप से अपने व्यक्तित्व को न छुपाकर उसने खुद को खतरे में डाल लिया है ।"


"क्या मतलब ?”


"मनीराम बागड़ी को कत्ल करने के लिए ही शायद जिन्दल पुरम् बुलाया गया है।" विभा ने कहा- "इसे हत्यारे का जीवटपन की कहा जाएगा कि टिंगू को हमारे पास भेजता है, हम उसे तत्काल पहचान पाने में असफल रहते हैं, इसे रूप में हत्यारे ने हमें शिकस्त दी है। इन सारी वारदातों के बीच एक अच्छाई हुई है।"


"वह क्या ?"


"टिंगू, यानी मनीराम बागड़ी को शायद यह नहीं पता था कि उसे जिन्दल पुरम् किसलिए बुलाया गए है। हमसे मिलकर उसे इल्म हो गया है, अब शायद सतर्क रहकर अपनी हिफाजत खुद करेगा।"


"क्या हम उसे किसी ढंग से बचा नहीं सकते?”


"किसी भी ऐसे व्यक्ति को बचाया जाना हमारा कर्तव्य है जिसे कत्ल किया जाना हो और टिंगू को बचाना तो हमारे लिए इस केस को हल करने के लिए भी जरूरी हैं यकीनन्, उसका बयान इस केस की सारी गुत्थियों को सुलझा देगा, परंतु हमें खुद मालूम नहीं है कि इस वक्त वह कहां है, अतः हालात ऐसे बन गए हैं कि हम उसके लिए विशेष कुछ भी नहीं कर सकते हैं, जितना कर सकते हैं उतना किया जाएगा।"


"हम क्या कर सकते हैं?"


- विभा ने किसी से संबंध स्थापित किया और बोली- "हैलो वीणा, तुम फौरन मंदिर में आकर हमसे मिलो।" बस यही एक वाक्य कहकर उसने संबंध-विच्छेद कर दिया। तुरंत ही किसी अन्य स्थान पर संबंध स्थापित करके बोली- "हैलो एस. एस. पी. साहब, ये मैं बोल रही हूं। देखिए, मैं वीणा नामक अपनी एक कर्मचारी के हाथों आपके पास पैंसिल से बना एक चित्र भेज रही हूं। जी हां, इसका नाम मनीराम बागड़ी है। दरअसल इसका कत्ल किया जाने वाला है। जी हां, चौंकिए नहीं। समय कम है, सारी बातें विस्तारपूर्वक बाद में बताऊंगी । फिलहाल इतना ही समझ लीजिए कि बागड़ी नामक ये व्यक्ति इस केस को हल करने की कुंजी है। हत्यारे की कोशिश इस कुंजी को खत्म कर देना होगी। पुलिस की कोशिश इसे बचाना और जीवित अवस्था में गिरफ्तार कर लेना होनी चाहिए। इसे तलाश कर गिरफ्तार करे लेने का काम आपके युद्ध स्र पर करना है। जी हां, थैंक्यू ।" कहकर विभा ने रिसीवर रख दिया।


"म... मगर इस चित्र में पुलिस वाले मनीराम बागड़ी को कैसे पहचान सकते हैं?" मैंने पूछा ।


कोई जवाब देने के स्थान पर विभाग ने टिंगू का चित्र उठाया, दराज, खोलकर उसमें से एक पैंसिल निकली और फिर विभा की पतली उंगलियों में दबी पैनिस्ल तूफानी गति से चित्र की नाक के नीचे और ठोड़ी पर चलने लगी। मैं और मधु अवाक्-से विभा की इस क्रिया को देख रहे थे ।


मैं पहली बार ही जान रहा था कि विभा इतनी अच्छी आर्टिस्ट है देखते ही देखते चित्र में मूंछ- दाड़ी बना दीं। वीणा के आने तक वह अपने काम को फाइनल 'टच' दे चुकी थी, यह देखकर मेरी और मधु की आंखों में हैरतभरी चमक उभर आई कि अब वह चित्र टिंगू का नहीं मनीराम बागड़ी का नजर आ रहा था । चित्र को मुझे दिखाती हुई वह बोली- "अब देखो वेद, क्या यह चित्र मनीराम बागड़ी का ही नहीं है?"


"स.... सौ प्रतिशत, मैं तो चकित हूं कि... | "


मेरी बात बीच में ही काटकर विभा ने वीणा से कहा- "तुम यह चित्र लेकर एस• एस• पी• के पास चली जाओ वीणा, मैंने उनसे फोन पर बात कर ली है। उनसे कहना कि इस चित्र की ढेर सारी फोटो-स्टेट कापिया कराकर पुलिस वालों में बांट दें। पुलिस को हर हालत में इसे जीवित अवस्था में गिरफ्तार करना है।"


विभा ने चित्र वीणा को दे दिया और चित्र लेकर वीणा हवा के झोंके की तरह कमरे से चली गई। अपने स्थान पर बैठा मैं अभी यही सोच रहा था कि विभा ने कितनी जल्दी कितनी खूबसूरती से चित्र में ठीक वैसी ही मूंछ- दाढ़ी बना दी, जैसी मनीराम बागड़ी के चेहरे पर थी, मैं कह उठा - "कमाल है विभा, मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी अच्छी आर्टिस्ट भी हो, बागड़ी की मूंछ- दाढ़ी की नकल तुमने हू-ब-हू की है।"


"जी।"


"जितना करना इस वक्त हमारे वश में था कर चुके हैं, अगर अब भी बागड़ी हत्यारे के हाथ में से ने बच सके तो यह हमारी और बागड़ी की भी बदनसीबी ही होगी।"


"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह यहां से तुरंत ही वाराणसी के लिए रवाना हो चुका हो ?” •


"मैं इसी बारे में सोच रही हूं।"


विभा का वाक्य बीच ही में रह गया, इस वक्त फोन की घंटी का घनघनाना हमें अच्छा नहीं लगा था, विभा ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़कर रिसीवर उठाया, बोली- "हैलो, विभा हियर ।"


"मैं आरती बोल रही हूं बहूरानी ।" आरती की आवाज बौखलाई हुई-सी थी | व...वे आ गए हैं और आते ही 

लायब्रेरी में घुस गए हैं, उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया है बहूरानी ।"


"अनूप बाबू की तरह वे अंदर यह कहकर गए हैं कि साढ़े तीन घंटे तक उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे ।” "उसे आए कितनी देर हुई है?"


"अभी-अभी आए हैं। आप जल्दी से आ जाइए बहूरानी, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है। उन्हें आप ही बचा सकती हैं, कहीं ऐसा न हो कि साढ़े तीन घंटे बाद वे भी अनूप बाबू की तरह... | "


"मैं आ रही हूं।" कहने के साथ ही एक झटके से खड़ी होती हुई विभा ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया, हम दोनों भी उछलकर खड़े हो चुके थे। लगभग भागते हुए हम कमरे से बाहर निकले।