अगले दिन ।


सुबह के करीब दस बजे थे, उसे ऑफिसनुमा कमरे में बैठी विभा हमसे कह रही थी- "रायतादान हमारे खानदान से सम्बन्ध रखने वाला ही है। उधर, एस.एस.पी. ने बताया है कि सारी रात की जबरदस्त भाग-दौड़ तथा भरपूर खोजबीन के बावजूद भी निरन्तर उसे खोल निकालने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है।"


"त्रिवेदी के अतीत का क्या हुआ ?"


"मैंने एस.एस.पी. से उसकी सर्विस फाइल मांगी है।" विभा ने बताया- "उन्होंने कहा है कि वे एक घंटे अंदर सर्विस फाइल यहां मेरे पास भिजवा रहे हैं।"


"अभीक की कोई रिपोर्ट आई ?”


"हां, उसने कहा है कि महेन्द्र पाल सोनी के साथ शेष रात में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं घटी, सोनी आराम से सोया, जबकि अभिक किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए सारी रात मुस्तैदी से जागता रहा, कुछ ही देर पहले सोनी अपने काम पर फैक्ट्री गया है, अभिक को आराम करने के लिए कहकर मैंने सोनी की सुरक्षा के लिए श्रीकान्त को लगा दिया है ।"


"जगमोहन के बारे में कुछ पता लगा ?"


"मैं उसी के यहां फोन करने के बारे मे सोच रही थी।"


कहती हुई विभा ने रिसीवर की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि एक सेवक ने आकर सूचना दी कि एक व्यक्ति उनसे मिलना चाहता है, विभा के पूछने पर सेवक ने बताया कि वह व्यक्ति अपना मनीराम बागड़ी बताता है।


विभा ने सेवक से उसे भेज देने के लिए कहा।


फिर रिसीवर उठाकर जगमोहन के घर का नंबर डायल किया। विभा की बातों से मैंने अनुमान लगाया कि दूसरी तरफ से आरती ही बात कर रही है और यह भी जगमोहन अभी तक ने तो लौटा ही है और ने ही उसने अपनी कोई सूचना भेजी है। विभा के रिसीवर रख देने तक एक आकर्षक नौजवान कमरे में दाखिल हो चुका था ।


अपने व्यक्तित्व और पहनावे से वह सम्पन्न युवक नजर आता था । वह करीब साढ़े छः फुट लम्बा, गोरा-चिट्टा युवक था, चेहरे पर मौजूद घनी और काली मूंछ- दाढ़ी की मौजूदगी में वह कुछ ज्यादा ही गोरा और आकर्षक नजर आ रहा था, आंख नीली थीं। नीले कांच के समान चमकती - सी - जिस्म पर शानदार नीला सूट, कई उंगलियों में कीमती अंगूठियां पहने था वह।


उसने बड़े ही शालीनता भरे स्वर में पूछा- "क्या आप ही बहूरानी हैं ?"


"हां, बैठिए । विभा ने कहा।


वह एक खाली कुर्सी पर बैठने के बाद बोला- "मेरा नाम मनीराम बागड़ी है, वाराणसी में रहता हूं और वहीं पर कपड़े का छोटा-छोटा व्यापार करता हूं। जिन्दल पुरम् आपकी कपड़ा मिल के जनरल मैनेजर मिस्टर बिजेन्द्र अहलूवालिया से व्यापार के सिलसिले में कुछ बातें करने आया था, यहां में 'होटल शीराज' के सूईट नंबर अड़तीस में ठहरा हूं, मैंने रात ही फोन ४छ अहलूवालिया से अपने आदामन की सूचना दे दी थी और उनसे मिलने का समय ले लिया था । "


"यहां कैसे आना हुआ ?"


"मिस्टर अहलूवालिया ने मुझे आज अपने ऑफिस में साढ़े दस बजे बुलाया था और उस वक्त मैं अपने कमरे में वहीं जाने की तैयारी कर रहा था कि अचानक ही वेटर ने आकर मुणे यह बॉक्स दिया ।" कहने के साथ ही मनीराम बागड़ी ने अपनी जेब से एक बॉक्स निकालकर मेज पर रख दिया।


बॉक्स को देखते ही हम तीनों चौंक पड़े। बॉक्स सनील का बना ठीक वैसा ही था जैसे दो बॉक्स हम पहले भी देख चुके थे, मैं और मधु हैरतअंगेज दृष्टि से मनीराम बागड़ी को देखते रह गए, जबकि विभा ने स्वयं को संयत रखते हुए सवाल किया- "उस बॉक्स में कया है ?"


"मेरे दिमाग में भी यही सवाल उभरा था जिसे मैंने वेटर से किया, वेटर ने कहा कि वह नहीं जानता। यह बॉक्स उसे साइकिल पर आए एक गांव के चौधरी जैसे व्यक्ति ने देकर कहा था कि वह इसे सूईट नंबर अड़तीस में ठहरे मिस्टर बागड़ी तक पहुंचा दे और बॉक्स को खोलकर देखने की बिल्कुल कोशिश न करे। इस काम के लिए उस चौधरी जैसे व्यक्ति ने उसे दस रूपए भी दिए थे।"


"फिर ?"


"मैंने बॉक्स को खोला और इसमें मौजूद वस्तु को देखते ही मेरे मुंह से चीख निकल गई, आंखें हैरत से फट पड़ीं, वह हालत मेरे समीप खड़े वेटर की भी हुई थी । "


"बॉक्स में क्या था ?"


"दो आंखें ।"


"आंखें ?"


"हां, समचुच की आंखें । जैसे किसी ने किसी की आंखें निकालकर इसमें रख दी हों। इन्हें देखकर मेरी हालत बड़ी अजीब हो गई मैं वेटर पर बरस पड़ा, आखिर ये क्या मजाक हैं क्या इस होटल में कस्टमर्स से इतने वीभत्स और भद्दे मजाक किए जाते हैं। वेटर बेचारे की हालत तो मुझसे भी कहीं ज्यादा खराब थी। इन आंखों के लिए मैं मैनेजर के पास पहुंचा। सारा स्टॉफ इकट्ठा हो गया, तब मैनेजर मुझे अपने प्राईवेट कमरे में ले गया और बोला- "आपकी जान खतरे में है मिस्टर बागड़ी ?


"क्या बकते हैं आप?" मैं चीख- सा पड़ा।


"जी हां, पता नहीं क्या हो गया है। अनूप बाबू के मारने बाद से जिन्दल पुरम् में बड़ी ही अजीब-अजीब-सी घटनाएं घट रही हैं। मुझे यह घटना भी उन्हीं विचित्र घटनाओं की एक कड़ी लगती है, हत्यारा जुर्म करने के लिए कभी किसी का फ्लैट इस्तेमाल करता है तो कभी किसी को मारकर किसी का फ्लैट इस्तेमाल करता है तो कभी किसी को मारकर किसी के फ्लैट में डाल देता है। आपको फौरन बहूरानी से मिलना चाहिए । "


"कौन बहूरानी ?”


"फिर उसने मुझे आपका परिचय दिया, बॉक्स लेकर सीधा आपके पास आ गया हूं। मैं यहां बिजनेस के सिलसिले में आया था और जाने यह क्या हो गया। मैं हैरान हूं, आखिर ये बॉक्स मेरे ही पास क्यों पहुंचाया गया, किसी चौधरी जैसे व्यक्ति को मेरा नाम और सूट नंबर कैसे मालूम हुआ ?" 


"क्या जिन्दल पुरम् में आपका कोई परिचित है ?"


"जी नहीं, मैं पहली बार ही यहां आया हूं।"


"क्या इस बॉक्स में आंखों के अलावा कोई चिट भी है? विभा ने पूछा ।


"जी हां, एक चिट हैं जिस पर लिखा है कि -"अब वह देख भी नहीं सकती।" मेरी समझ में उस वाक्य का अर्थ बिल्कुल नहीं आ सका है। पता नहीं कौन क्या नहीं देख सकेगी। लगता है कि ये आंखें किसी लड़की की हैं।"


"आंखें सुधा पटेल की ही होंगी विभा।" मैं कह उठा ।


"क.... कौन सुधा पटेल ?" मनीराम बागड़ी एकदम चौंककर मेरी तरफ घूमा।


कुछ बोलने की वाला था कि विभा ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और बोली- "तुम्हें चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है मिस्टर वागड़ी, भले ही आप ने समझे हों, लेकिन हम समझ गए हैं कि ये आंखें किसी हैं और हत्यारा आपको नहीं, सब कुछ हम ही को समझाना चाहता है।"


"जी.... जी, मैं समझा नहीं।"


“दरअसल हत्यारा इन आंखों को केवल हम तक पहुंचाना चाहता था, सो पहुंच गई हैं। बस, इससे ज्याद इस सारे झमेले से आपका कोई संबंध नहीं है। आप बिना डरे, निश्चित होकर अपने व्यापार के कामों में व्यस्म हो सकते हैं।"


"म....मगर ये आंखें अगर किसी को आपके पास पहुंचानी थीं, तो मेरे पास क्यों पहुंचाई ?..


"क्योंकि वह सीधे हमारे पास पहुंचाने से डरता है, साथ ही यह भी जानता है कि जिन्दल पुरम् की सरहदों में वह इन्हें जहां भी पहुंचाएगा हमें मिल जाएंगी।"


"ल... लेकिन जिन्दल पुरम् में तो बहुत से लोग रहते हैं, आखिर मैं ही क्यों?”


"हां, यह सवाल जरूर उठा सकता है, हमारे दिमाग मे भी उठा रहा है, परंतु इसका जवाब केवल ये है कि वह अपनी सहूलियत के मुताबिक किसी को भी चुन लेता है, पहले दीनदयाल । फिर महेन्द्र पाल सोनी... हां । यहां मैं एक सवाल जरूर करूंगी। ये कि क्या आप एस• एन• त्रिवेदी नामक इंस्पेक्टर को जानते हैं?"


"त्रिवेदी । हां, मैं एक इंस्पेक्टर त्रिवेदी को जानता हूं।"


"गुड । विभा की आंखें चमक उठीं- "कैसे ?"


"कुछ साल पहले वह वाराणसी में हमारे ही इलाके से संबंधित थाने में रहा था, उन्हीं दिनों मेरा उससे परिचय हुआ था और फिर यह परिचय दोस्ती में बदल गया, हम साथ बैठकर पीने-पिलाने भी लगे । ओह हां । अपना ट्रांसफर होने पर उसने कहा था कि वह जिन्दल पुरम् जा रहा था, क्या त्रिवेदी यहीं है?"


"जी हां, यही थे ।" 


"थे से मतलब ?"


"आपके सवाल का जवाब मैं बाद में दूंगी, पहले आप सच-सच यह बताइए की क्या त्रिवेदी वाराणसी में एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ इंस्पेक्टर था, हमारा मतलब वह किसी से रिश्वत आदि तो नहीं लेता था?”


"जी, बिल्कुल नहीं।"


विभा का स्वर थोड़ा कठोर हो गया- "आपे इतने दृढ़ स्वर से दावा कैसे कर सकते हैं?”


"ज... जी !" बागड़ी थोड़ा बौखला गया- "वह मेरा दोस्त था । "


"इसीलिए पूद रहीं हूं कि वह आपका दोस्त क्यों बन गया, क्या इलाके का हर इंस्पेक्टर आपका दोस्त होता है?


"ज... जी, वह...म.... मेरा मतलब !"


"झूठ बोलने की कोशिश मत कीजिए मिस्टर बागड़ी ।”


विभा के चेहरे पर कठोरता उभर आई थी- "झूठ बोलकर आप अनजाने ही में हत्या के एक मुजरिम को बचाने का जुर्म कर बैठेंगे।”


"हत्या का मुजरिम ?'


"त्रिवेदी ने एक नहीं, अब तक ढ़ाई हत्याएं की हैं । ढ़ाई इसलिए कह रही हूं कि जिसकी आंखे इस बॉक्स में है, उसे अभी तक उसने पूरी तरह नहीं मारा है। आप उसके परिचित हैं, महज इसीलिए ये आंखें आपके पास पहुंचाई गईं। ऐसे कामों के लिए वह अपने परिचितों को ही चुनता है।"


"म... मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा हूं।"


"पहले आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए।"


कुछ देर तक चुप रहा मनीराम बागड़ी। जैसे सोच रहा हो कि सच उगले या नहीं, तभी उसे विभा ने यह कहकर उत्साहित किया कि यदि वह सच बोलेगा तो उस पर कोई आंच नहीं आएगी, तब वह बोला-"आपकी शंका ठीक की है, मैं अपना नंबर दो का काम चलाने के लिए उसे रिश्वत देता था । यही मेरी और उसकी दोस्ती थी ।"


"वैरी गुड ।" कहने के साथ ही विभा ने दराज खोली, उसमें से पांचों चित्र निकाले और उसके सामने डालती हुई बोली- "जरा गौर से देखकर बताइए कि क्या आप इनमें से सिकी को पहचानते हैं ?"


चित्र देखने के बाद बागड़ी हल्के से चौंका, बोला- "इन्हें कौन नहीं जानता, ये तो अनूप बाबू हैं ।"


"इनके अलावा चारों में से किसी को जानते हो?"


"जी नहीं ।"


आर्ट पेपर्स को समेटकर दराज में रखते हुई हुई विभा बोली ।" अब आप जा सकते हैं।"


"ल...लेकिन पता तो लगे कि आखिर ये सब चक्कर क्या है, अगर आप नहीं बताएंगी तो मैं यही सोच-सोचकर परेशान होता रहूंगा कि आखिर आंखें। मेरे जी गुरा क्यों भेजी गई, मुझसे पूछे गए आपके ढेर


सारे सवालों का अर्थ क्या है?"


"संक्षेप में केवल आप इतना ही समझ लीजिए कि त्रिवेदी किसी अज्ञात वजह से इन पांचों का खून करने निकला है जिनके अभी-अभी आपने चित्र देखे। इनमें से दो खून वह कर चुका है, तीसरी यानी सुधा पटेल की हत्या कव उसे बहुत तड़पा-तड़पाकर कर रहा है। आप इस इझमेले में महज इसलिए फंस गए, क्योंकि त्रिवेदी के परिचितों में से हैं, जैसा काम उसने आपसे लिया है वैसा वह अपने परिचितों से ही लेता है।"


"अजीब बात है?"


"आपको इस बारे में सोचकर पेरशान होने की काई जरूरत नहीं है, अप्रत्यक्ष रूप से हत्यारे ने जितना काम आपको सौंपा था, वह आप कर चुके हैं।"


अजीब से असमंजस में फंसा मनीराम बागड़ी वहां से चला गया ।


विभा ने बॉक्स खोला। बॉक्स में दो लिजलिजी और गिलगिली सी आंखें रखी थीं, रुई पर इस तरह रखीं आखें बड़ी ही डरावनी लग रही थीं। ऐसी कि जिन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति के कंठ से बरबस ही चीख निकल सकती थी। उन आंखों को देखते हुए हमारे दिल बहुत जोर-जोर से धड़कने लगे ।


आंखों के समीप ही एक कागज रखा था, उस पर लिखा हुआ था कि 'अब वह देख भी नहीं सकती । राईटिंग वैसी ही गंदी और आड़ी-तिरछी थी ।


" आंखें सुधा पटेल की ही हैं।" विभा ने कहा ।


अजीब से भावावेश में मैंने कहा- "ये कमीना आखिर सुधा पटेल की मार ही क्यों नहीं देता, इस तरह उस बेचारी को तड़पा क्यों रहा है। पहले जीभ, फिर उंगलियां और अब आंखें भी।"


"यह हरकत हत्यारे की क्रूर मानसिक हरकत को उजागर करती है और...?"


"वह हम से डर रहा है, उसे लग रहा है कि हम उसे तक पहुंच जाएंगे और उसी वजह से अपनी ये ऊटपटांग हरकतें करके हमें अपनी नजर में आतंकित करने की कोशिश कर रहा है ।


- "अब त्रिवेदी जल्दी से जल्दी पकड़ा जाना चाहिए विभा।" मैं अनजाने में ही त्रिवेदी से नफरत करने लगा था। "उसे अपने किए की सता मिलनी ही चाहिए।"


"मुझे उम्मीद है कि अब इस सिलसिले का अंत आ ही गया है ।" विभा ने कहा- "वैसे वेद, मनीराम बागड़ी जितनी देर भी यहां बैठा रहा, मुझे लगता रहा कि मैंने उसे कहीं देखा है। मैं बराबर दिमाग पर जोर डालकर यह जानने की कोशिश करती रही थी कि आखिर कहां देखा है, लेकिन कुछ याद नहीं आया, क्या तुम्हें भी ऐसा कुछ लग रहा था?"


"नहीं तो ?”


"फिर मुझे क्यों लग रहा था ?" कहती हुई विभा ने दिमाग पर जोर डालना शुरू किया ही था कि कमरे में एक इंस्पेक्टर दाखिल हुआ, उसने कहा कि एस• एस• पी• साहब ने भेजा है।


इंस्पेक्टर त्रिवेदी से संबंधित फाइल उसने मेज पर रख दी।


उसे विदा करने के बाद विभा ने फाइल उठा ली और पढ़ने लगी। फिर वह पढ़ने में कुछ इस तरह मशगूल हुई कि जैसे उसे वहां हमारी उपस्थिति का कुछ पता ही न हो। वह पढ़ती रही, हम बोर होने लगे और पूरे एक घंटे तक बोर हुए। एक घंटे में पूरी फाइल पढ़कर विभा ने मेज पर डाल दी।


"क्या लिखा है इसमें ?" मैंने पूछा ।


विभा ने कहा- "इसे पढ़कर मुझे बहुत निराशा हुई है । "


"क्यों ?"


"क्योंकि इसमें कहीं कोई ऐसी बात नहीं हैं, जिससे वह कारण जान सकें, जिसके वशीभूत त्रिवेदी ये हत्याएं कर रहा है।"


"क्या मतलब?"


"इसमें त्रिवेदी का सीधा-सादा परिचय है, वह जयपुर का रहने वाला है, मां का नाम शारदा और पिता का नाम हरवंश त्रिवेदी था, हरवंश त्रिवेदी बैंक में क्लर्क थे। एस• एन• त्रिवेदी अपने माता-पिता की एक मात्र संतान है, मां का देहान्त तब हो गया था जब यह दस साल का था । आठ साल पहले यह पुलिस में हैडकांस्टेबल के पद पर नियुक्त हुआ, इसकी नियुक्ति के एक साल बाद यानि आज से सात साल पहले हरवंश त्रिवेदी तपेदिक की लंबी बीमारी के बाद मरे । विभिन्न ट्रांसफरों के बाद तीन साल पहले जिन्दल पुरम् आया है। फाइल में कुछ ऐसे कारनामें भी हैं जो उसने अपनी सर्विस के दौरान अंजाम दिए और जिनका उल्लेख इस फाइल में करना विभाग ने स्वीकार । फाइल में उसके करेक्टर को किसी भी रूप में दागदार नहीं कहा गया है। जयपुर में इसके पिता द्वारा बनाया गया एक मकान है, जिसके एक हिस्से में इसने किराएदार बसा रखे हैं और दूसरे हिस्से पर अपना ताला लटका रखा है।”


मधु ने पूछा-"फाइल पढ़कर तुम किस नतीजे पर पहुंची विभा बहन ?”


"केवल इत नतीजे पर कि त्रिवेदी के बारे में हमें खुद जानकारियां जुटानी होंगी।"


"किस तरह ।"


"जब त्रिवेदी स्थाई रूपसे यहां रहता है तो उसने अपने मकान के दूसरे हिस्से को भी किराए पर क्यों नहीं उठा दिया, शायद इस सिलसिले में मुझे जयपुर जाना पड़े। उफ् ! ये क्या हो रहा है वेद, मुझे फिर मनीराम बागड़ी का ख्याल क्यों आ गया। बार-बार क्यों लग रहा है कि मैंने उसे कहीं देख है ।"


"यदि ऐसी बात थी उससे पूछ लेतीं, मुमकिन है कि वह कभी कहीं तुम्हारी साथ पढ़ा हो ।"


"ऐसा मैंने चाहा नहीं सोचा कि अजीब-सा लगेगा। लेकिन बात दिमाग में अटककर रह गई है बाल क्लियर होने से पहले उलझन दूर नहीं होगी, पूछ ही लेती हूं।" कहकर उसने रिसीवर उठाया और नंबर डायल किए, संबंध स्थापित होने पर बोली- "हैलो मिस्टर अहलूवालिया ।"


"ओह, बहूरानी । जी कहिए ।”


"मिस्टर बागड़ी इस वक्त आपके पास ही हैं या चले गए ?"


"कौन बागड़ी बहूरानी ?"


चौंककर विभा ने पूछा- "क्या मिस्टर मनीराम बागड़ी अभी तक आपके पास


नहीं पहुंचे ?”


"जी, नहीं तो। मगर आप किस मनीराम बागड़ी की बात कर रही हैं?"


"वही, जिन्हें बिजनेस के सिलसिले में तुमने वाराणसी से बुलाया है।"


“आप कैसी बात कर रही हैं बहूरानी, वाराणसी में तो इस नाम का हमारा कोई कस्टमर है ही नहीं ।”


"क्या तुमने कल रात इस नाम क किसी व्यक्ति को फोन पर आज सुबह साढ़े दस बजे का 'अपाइंटमेंट' नहीं दिया था?"


“जी, नहीं तो।" दूसरी तरफ से उभरने वाली अहलूवालिया की आवाज सुनते ही विभा ने बिना एक भी क्षण गंवाए संबंध विच्छेद कर दिया और फिर अचानक ही वह बेहद चौकस और फुर्ती में नजर आने लगी, हमसे बिना कुद कहे उसने बहुत ही जल्दी में दूसरा नंबर डायल किया और बोली- "मैं विभा बोल रही हूं...देखिए, आपके सूईट नंबर अड़तीस में मिस्टर बागड़ी ठहरे हैं, मुझे जरा उनसे बातें करनी है। क्या कहा, चले गए। कब...अभी-अभी...लेकिन कहां । ठहरिए, मैं वहीं आती हूं।"


विभा ने रिसीवर पटकने के से अंदाज में रख दिया।


"क्या हुआ ?" मैं बोला।


"मेरे साथ आओ वेद ।" कहने के साथ ही विभा फुर्ती के साथ कुर्सी से उठा गई ।