‘‘हां, अगर वह मिल जाता तो इस केस की बहुत-सी गुत्थियां यहीं सुलझ जातीं ।"
"मगर तुम आरती से, जगमोहन के अतीत से संबंधित सवाल क्यों कर रही थीं?"
"यह जानने के लिए कि जगमोहन ने आरती को अपने अतीत के बारे में सब कुछ सच-सच बता रखा है या झूठ बोल रखा है और मैं इस नतीजे पर पहुंची कि आरती को अपने पति के वास्तविक अतीत का एक जर्रा भी नहीं पता है।”
"क्या मतलब?" "सुधा पटेल के संबंध आरती के पति से भी थे।"
"ऐसा तो तुम शायद उस गुलाब के फूल की वजह से कह रही हो, लेकिन ये बार-बार तुम उसे आरती का पति क्यों कह रही हो, सीधे उसका नाम ही क्यों नहीं लेती ?"
"उसका नाम जगमोहन नहीं है । "
"फिर ?"
"बिरजू है।"
"ब... बिरजू ।" मैं उछल पड़ा । "क... क्या, वही बिरजू, जिसका जिक्र कालू ने किया था। क्या जगमोहन की बिरजू है, मगर यह बात तुम्हें कब और कैसे पता लगी ?"
"एक किताब के बीच में बहुत से पत्र रखे थे, मैंने उनमें से कई पत्र पढ़े । वे पत्र सुधा पटेल ने बिरजू को लिखे थे, मजमून लगभग वही था । जैसा अनूप और जोगा को लिखे गए पत्रों में था, पत्रों के माध्यम से सुधा पटेल ने सचिन को बिरजू का लड़का बताया है, और इन पत्रों के मुताबिक सुधा और बिरजू के बीज विलेन का काम कोई 'टिंगू' नामक व्यक्ति कर रहा था।”
"टिंगू।"
"घटनाओं के आधार पर मेरे द्वारा लगाए गए अनुमाननुसार इस व्यक्ति का नाम टिंगू होना चाहिए।" कहने के साथ ही विभा ने एक मात्र अपरिचित का चित्र मुझे पकड़ा दिया, विभा की बातों ने मुझे हैरत में डाल दिया था। कुछ देर तक तो किंकतर्व्यविमूढ़-सा उस चित्र को देखता रहा, फिर बोला ।" मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है विभा, आखिर तुम क्या किस आधार पर कही रही हो । सुधा पटेल ने दिमाग ही घुमाकर रख दिया है ।"
“ये पांच चित्र और इनमें से चार के करेक्टर मुझे अपनी पुरानी थ्यौरी पर लौटने के लिए विवश कर रहे हैं।” "कौन-सी थ्यौरी ?"
"इन पांचों में से अभी तक हम चार को जानते हैं और इन चार में से तीन अपना नाम बदल कर रह रहे होते हैं, जोगा, सुधा, पटेल और जगमोहन । जरा सोचो वेद, कोई व्यक्ति अपना नाम कब बदलता है। तभी ने, जब वह अपना अतीत वर्तमान से छुपाए रखना चाहता हो और कोई व्यक्ति अतीत को छुपाता कब है, तभी न, जब उसने अपने अतीत में कोई घिनौना कृत्य या जुर्म किया हो। अनूप अपना नाम नहीं छुपाता, वह इतनी बड़ी हस्ती है कि चाहकर भी नाम नहीं छुपा सकता, लेकिन अपना अतीत छुपाने की कोशिश वे भी करते हैं ।
अर्थात् चारों ही अपना छुपाते हैं, इससे जाहिर है कि पांचवां यानी टिंगू भी अपना अतीत जरूर छुपाता होगा।"
" यानी वह भी किसी अन्य नाम से कहीं रह रहा होगा ?"
"लगता तो यही है कि पांचों के चित्र एक ही स्थान पर मिलने का मतलब है कि वह घिनौना कृत्य या जुर्म इन पांचों ने मिलकर एक साथ किया है, जिसे ये छुपाना चाहते हैं। चित्रों का त्रिवेदी के यहां से मिलना जाहिर करता है कि वह घिनौना कृत्य या जुर्म त्रिवेदी से मिलना जाहिर करता है कि वह घिनौना कृत्य या जुर्म त्रिवेदी से कोई-न-कोई संबंध जरूर रखता है। जिस वक्त कृत्य या जुर्म किया जा रहा था उस वक्त घटनास्थल पर त्रिवेदी नहीं था, किसी आर्टिस्ट ने कृत्य या जुर्म होते देखा। उसने मुजरिमों के चित्र बनाकर त्रिवेदी को दे दिए और जब त्रिवेदी इन सबसे इनेक द्वारा किए गए उसी कृत्य या जुर्म का बदला ले रहा है।"
"लेकिन ये सुधा पटेल का क्या चक्कर है, यह अनूप, जोगा ओर बिरजू को एक ही मजमून के प्रेमपत्र क्यों लिखती है। हरेक से सचिन को उसका बेटा क्यों कहती है। विलेन के रूप में एक-दूसरे के नाम प्रयोग करती है।"
"मेरे ख्याल से उसने ऐसे ही पत्र टिंगू को भी लिखे होंगे।"
"लेकिन क्यों ?"
"इस सवाल का जवाब तलाशना उतना आसान नहीं है वेद जितना तुम समझ रहे हो।" विभा ने कहा- "इस केस की गुत्थियों को खोलने वाले अब केवल पांच ही व्यक्ति बाकी बचे हैं- त्रिवेदी, सुधा पटेल, जगमोहन, टिंगू और वह आर्टिस्ट जिसने ये चित्र बनाए हैं, फिलहाल ये सभी हमसे दूर हैं।"
"इस सारे मामले में जिंगारू कहां फिक्स होता है ?"
"फिलहाल तो मुझे शक है वह टिंगू है।"
"ज...जिंगारू, टिंगू।"
"मुमकिन है कि अपने अतीत के साथियों की हत्याओं के सिलसिलें ने उसे बौखला दिया हो और जिंगारू के रूप में वह हत्यारे का पता लगाने की कोशिश कर रहा हो ।"
"म... मगर महेन्द्र पाल सोनी से तो वह सिर्फ पिन की बात करता है ।'
"मेरे ख्याल से इस केस में दिलचस्पी लेने का उसका कुछ और ही उद्देश्य है, पिन का जिक्र तो वह केवल खुद को और अपने असली मकसद को छुपाने के लिए करता है। खैर, कल मैं त्रिवेदी के अतीत का पता लगाने की कोशिश करूंगी, शायद उसका अतीत इस केस पर कुछ रोशनी डाल सके।”
"अब शायद हमें इस केस के बारे में इतनी बारीकी से कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है ।" मैं बोला-“हत्यारा इंस्पेक्टर त्रिवेदी ही है और गिरफ्तार होने के बाद उसे सब कुछ उगलना ही होगा।"
"बशर्ते कि वह गिरफ्तार हो ।”
मैं चुप रह गया, शायद इसीलिए कि विभा की इस वक्त की थ्यौरी से मैं सहमत था, सहमत होने के बावजूद भी मैं यह नहीं सोच पा रहा था कि जोगा, सुधा, जगमोहन और टिंगू जैसे स्तरहीन लोगों से अनूप का क्या संबंध रहा होगा। अनूप जैसी हस्ती के व्यक्ति ने कोई जुर्म क्यों किया होगा ?
मेरी सोचों को एक हल्के-से झटके ने तोड़ा।
दिमाग को भी झटका-सा लगा और मैंने देखा कि कार मंदिर के पोर्च में खड़ी है। हम बाहर निकले, विभा भी कार में रखा रायतादान निकालकर बाहर निकल आई। हॉल में पहुंचने तक रायतादान हाथ में होने की वजह से विभा ने उस ऑफिस बनाए गए कमरे की चाबी मुझे दे दी।
मैं समझ गया कि हाथ घिरा होने की वजह से विभा का संकेत है कि ऑफिस का ताला मैं खोलूं। और नजदीक पहुंचकर मैं अभी ताले पर झुका ही था कि विभा लगभग चीख पड़ी-"ठहरो वेद ।"
मैं ठिठका, चौंककर उसकी तरफ देखने लगा ।
मधु भी अवाक् – सी विभा की तरफ देख रही थी, जबकि विभा की दृष्टि ताले के ठीक नीचे बंद दरवाजे के पास ही फर्श पर पड़ी कागज की बिंदी पर स्थिर थी। यह कागज की बिंदी वैसी ही और उतनी ही बड़ी थी जैसी पंच- मशीन से कागज में छेद करने पर बन जाती है ।
उसे देखती हुई विभा की आंखें चमक उठीं, बड़बड़ाई। "इसका मतलब हत्यारा यहां तक भी पहुंच गया।"
"क... क्या मतलब?" बरबस लगभग एक साथ हम दोनों
के मुंह से निकल गया।
"चाबी दो।" कहती हुई विभा ने रायतादान मुझे पकड़ा दिया, मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रह गया, कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा था मेरी । वैसी अवस्था मधु की भी थी, जबकि विभा ने रायतादान मुझे पकड़ाकर चाबी स्वयं ले ली।
सबसे पहले उसने ताले की अच्छी तरह चैक किया ।
हमारे दिल धड़क रहे थे, यह तो समझ में आ रहा था कि कोई-न-कोई बात है, किंतु दिमाग जाम - सा होकर रह गया, दिल बुरी तरह धक् धक् कर रहे थे। आखिर मैंने पूछ ही लिया- "बात क्या है विभा?”
"देखते रहो।” विभा ने बहुत सावधानी से ताला खोल कर एक तरफ रख दिया।
फिर पूरी सावधानी के साथ सरकाकर उसने कुंडा खोला, हमसे बोली- "दरवाजे से दूर हट जाओ।"
सस्पैंस में फंसे हम दूर हट गए।
विभा सीधी खड़ी हो गई और फिर बहुत ही तेजी से उसने दरवाजे पर ठोकर मारी । भड़ाक् की एक जोरदार आवाज के साथ दरवाजा खुल गया और उसके खुलते ही मधु के कंठ से चीख निकल गई।
विभा फुर्ती से उछलकर पीछे हटी।
दरवाजा खुलते ही एक साथ ढेर सारे बिच्छू चौखट के ऊपरी भाग से 'टप-टप' करते हुए फर्श पर गिरे थे, और इस वक्त वे फर्श पर गिजबिजाते हुए, इधर-उधर भाग रहे थे, मधु उन्हें ही देखकर चीखी थी और उन खतरनाक तथा जहरीले काले बिच्छुओं को देखकर मैं पसीने-पसीने हो गया ।
"इन्हें कुचलो वेद ।” कहती हुई विभा ने अपने नज़दीक पहुंचे एक बिच्छु को सैंडिल से कुचल दिया। आगे बढ़कर मैंने शीघ्रता से एक बिच्छू को कुचला। दरवजा खुलने की जोरदार आवाज के कारण बहुत से सेवक वहां पहुंच गए थे, वे भी आगे बढ़ - बढ़कर बिच्छुओं को कुचलने लगे।
पांच मिनट बाद ही फर्श पर पन्द्रह के करीब बिच्छू कुचले पड़े थे।
उन्हें देखकर सभी हैरत में थे और जानना चाहते थे कि बिच्छू वहां कहां से आए, जबकि विभा ने सेवकों से ऊंची आवाज में पूछा कि उसकी अनुपस्थिति में कमरा किसने खोला था ?
सब चुप, चेहरे पीले पड़ गए ।
विभा ने अगला सवाल किया-"किसी ने किसी को यहां आते देखा हो ?”
सेवक एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे।
"इसका मतलब हमारे सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है और इसका मतलब ये भी है कि आप लोग लापरवाह होते जा रहे हैं, किसी ने यहां तक आकर कमरा खोला और आप में से किसी को कुछ पता ही नहीं है, हम भविष्य में इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेंगे, खैर। ये कूड़ा यहां से हटा दिया जाए।”
कई सेवक एक साथ आगे बढ़ आए ।
फर्श मिनटों में साफ हो गया, मैंने पूछा- "ये सब क्या चक्कर था विभा ?"
"आओ, मैं तुम्हें दिखाती हूं।" कहती हुई विभा कमरे में दाखिल हो गई, उसके पीछे हम भी । कमरे के अंदर पहुंचते ही वह दरवाजे की तरफ घुमकर बोली- "इधर देखो ।"
हमने देखा । ऊपर वाली चौखट के करीब कपड़े की एक पोटली लटक रही थी। उसका मुंह खुला हुआ और नीचे की तरफ था। पोटली के मुंह पर 'नेफा' बना हुआ था । नेफे में पड़ी मजबूत डोरी का एक सिरा दाएं किवाड़ में बंधा हुआ था दूसरा बाएं में ।
अभी हम उसे पोटली को देख ही रहे थे कि विभा बोली- "पोटली में बिच्छू थे, इसे काफी कारीगरी से यहां फिक्स किया गया है, इस तरह कि दरवाजा बंद होने तक पोटली का मुंह बंद रहे, दरवाजा खुलते ही, डोरी किवाड़ों के साथ खिंचनी थी और डोरी के खिंचते ही पोटली का मुंह खुलना था, सारे बिच्छू दरवाजा खोलने वाले के ऊपर ।”
"म... मगर तुम्हें कैसे पता लग गया कि कि दरवाजा खुला है।"
“कागज की वह बिंदी मैं कुंडे और किवाड़ के बीच फंसाकर गई थी, बिना कुंडा खुले वह फर्श पर नहीं गिर सकती, उसे फर्श पर पड़ी देखते ही मैं समझ गई कि दरवाजे को किसी ने छेड़ा है।"
"ओह ! मगर, तुमने यह प्रबंध क्यों किया । क्या तुम्हें ऐसा ही कुछ होने का शक था ?
‘‘डिटेक्टिव का सबसे पहला धर्म सतर्क रहना है, चूकते ही मृत्यु निश्चित है और उस वकत तो विशेष रूप से सतर्क रहना पड़ता है, जब हत्यारा एक धमकी भरा पत्र लिख चुका हो ?"
"तो यह प्रबंध हत्यारे ने तुम्हें मारने के लिए किया था ?”
"नहीं।" विभा धीमे से मुस्कराई- "पोटली में ये बिच्छू मेरे स्वागत के लिए टांगे गए थे।"
मैं गंभीर स्वर में बोला-"तुम इस केस के पीछे भाग-दौड़ करनी बंद कर दो विभा, अगर तुम्हें कुछ हो गया तो।"
"रात काफी हो गई है वेद, तुम थक गए हो । जाकर आराम करो।"
"मैं उसे देखता रह गया ।"
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