हम डॉक्टर सान्याल के सामने बैठे थे ओर विभा के साथ ही उस हेयरपिन को मैं और मधु भी बहुत ध्यन से देख रहे थे। विभा ने पिन अपने सामने मेज पर रखा, अपनी जेब से दूसरा पिन भी निकालकर उसी के बराबर में रख दिया। मेज पर रखे टेबललैम्प को घुमाकर विभा ने उसका फोकस पिनों पर स्थिर कर दिया ।


अब विभा दोनों पिनों का तुलनात्मक अध्ययन कर रही थी।


मेरी और मधु की कोशिश भी दोनों पिनों में किसी अंतर को तलाश करने की थी। कम-से-कम हम दोनों में से तो किसी को उनमें कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था ।


डॉक्टर सान्याल चकित से हमारी तरफ देख रहे थे ।


"बकवास" एकाएक विभा अपना पिन उठाकर जेब में रखती हुई बोली ।


मैंने उत्सुक होकर पूछा-"क्या मतलब ?"


"ये पिन असली है, जिसे कथित जिंगारू ने नकली कहा था ।"


डॉक्टर सान्याल बोले—"क्या मैं पूछ सकता हूं बहूरानी कि आप क्या चैक कर रही थीं ?”


विभा ने संक्षेप में उन्हें बता दिया, तब कहीं जाकर डॉक्टर सान्याल के चेहरे से तरदुद के भाव दूर हुए। जाने क्या सोचकर विभा ने पांच चित्रों में से दो अपरिचितों के चित्र डॉक्टर सान्याल को दिखाए और उनमें पूछा कि क्या वे इनमें से किसी को जानते हैं?


चित्र देखेन के बाद सान्याल ने इंकार में गर्दन हिला दी।


विभा ने चित्र वापस जेब में रखे और फिर हम डॉक्टर सान्याल से विदा लेकर महेन्द्र पाल सोनी के फ्लैट पर पहुंचे। फ्लैट में सोनी के साथ अभिक भी मौजूद था। उन्होंने कमरे की किसी वस्तु को नहीं छेड़ा था।


विभा ने कमरे का निरीक्षण किया, परंतु उसे कोई उल्लेखनीय सूत्र नहीं मिला, तब वह सोनी से बोली- "हमने उस पिन को चैक किया है सोनी, जिससे जोगा या इकबाल की हत्या की गई थी ।”


“क्या रहा?” उसने उत्सुकतापूर्वक पूछा।


"वह पिन असली था ।"


सुनकर महेन्द्रपाल सोनी का चेहरा पहले तो पीला पड़ गया, फिर बोला- "इसका मतलब जिंगारू को हर मामले में वहम हुआ है, वह मुझे कोई बिरजू समझता है और उस पिन को नकली ।”


इस बीच विभा उसे बड़ी की कड़ी दृष्टि घूर रही थी, बोली- "अभी यह पता लगाना बाकी है कि उस कथित जिंगारू का कोई.....।" इतना कहने के बाद वह रूकी, एक क्षण मात्र के लिए चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे किसी आहट को सुनने की चेष्टा कर रही हो, मगर अगले ही पल अपना वाक्य पूरा करती हुई बोली- "अस्तित्व है भी या नहीं?"


"अ... आप मेरा यकीन क्यों नहीं करती बहूरानी, मैं कसम खाकर कह सकता हूं कि....." महेन्द्र पाल सोनी गिड़गिड़ाता हुआ सा कहता ही चला जा रहा था, जबकि मैं, मधु और अभिक हैरतअंगेज नजरों से विभा को देखा रहे थे। उस विभा को जो सोनी का एक भी लफ्ज नहीं सुन रही थी। उसका एक हाथ गाउन की जेब में था और दबे पांव वह कमरे की एक बंद खिड़की की तरफ बढ़ रही थी ।


खिड़की के नजदीक पहुंचकर उसने जल्दी से चटकनी गिराई, झटके से खिड़की खोली । जेब के अंदर वाला हाथ निकाला, उसमें रिवॉल्वर था और खिड़की खुलते ही हमें खिड़की के दूसरी तरफ छाया - सी नजर आई जो केवल एक क्षण के लिए झलक दिखाकर गायब हो गई थी।


विभा का रिवॉल्वर वाला हाथ खिड़की के दूसरी तरफ लगी जाली से टकराया ।


"उफ् वह छत पर गया है वेद, कमॉन !” चीखने के साथ ही विभा हाथ में रिवॉल्वर लिए कमरे में दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी। मैं और अभिक भी पागलों की तरह उसके पीछे भागे ।


वह बेतहाशा भागती हुई गैलरी को पार करके सीढ़ियों की तरफ जा रही थी ।


उसके पीछे भागते समय अचानक ही मुझे विभा के गर्भवती होने का ख्याल आया और फिर मैं यह सोचकर कांप उठा कि विभा बहुत तेजी-सी दौड़कर जीना चढ़ने वाली है, इसी भयानक आशंका में फंसा मैं चीख पड़ा - "न... नहीं विभा, तुम जीना मत चढ़ना । प्लीज, रुक जाओ।"


परंतु, उसने मेरी एक न सुनी। आंधी-तूफान की तरह सीढ़ियां चढ़ती ही चली गई वह और उसके पीछे मैं और अभिक भी, छत पर पहुंचते ही हमने विभा को एक साए का पीछा करते देखा ।


साए के पैरों में मिलिट्री वाले कपड़े के बूट, काई रंग का आवेर कोट, खाकी पतलून, गले में मफलर और सिर पर चिड़िया के पंखों वाली टोपी थी । विभा से कोई बीस कदम आगे वह दौड़ा चला जा रहा था, उसके पीछे दौड़ती हुई विभा ने जोर से चीखकर चेतावनी दी- "रुक जाओ, वर्ना गोली मार दूंगी ।"


साया रुका नहीं, वह छत पर भागता ही चला गया ।


मैं चिल्लाकर विभा को रूक जाने के लिए कहता हुआ

उसके पीछे था।


सबसे आगे दौड़ते हुए साए के सामने इस इमारत की छत का अंतिम किनारा आ गया, उस तरफ एक पतली-सी गली थी । गली के दूसरी तरफ इस इमारत से एक मंजिल कम इमारत की छत ।


साया बेहचिक गली के पार वाली छत पर कूद पड़ा ।


इस शंका ने मेरे पैरों में तूफानी गति भर दी कि कहीं विभा भी जोश में उसके पीछे गली के पार वाली छत पर न कूद पड़े और सच है कि अगर में एक मिनट के लिए भी चूक जाता तो विभा कूद ही चुकी थी, मैंने उसे जकड़ लिया, चीखा- "व.. विभा, ये क्या बेवकूफी है, पागल हो गई हो क्या ?"


"मुझे छोड़ दो वेद, मुझे छोड़ दो" चीखती हुई विभा कसमसा उठी।


"भगवान के लिए विभा, भगवान के लिए रुक जाओ।" मैंने उसे छोड़ नहीं और तब तक गली के पार वाली छत पर कूदा हुआ जिंगारू, हां। मैं अब उसे जिंगारू ही लिखूंगा, गायब हो चुका था ।


अभिक हमारे समीप ही खड़ा हांफ रहा था ।


हांफ मैं और विभा भी रहे थे, मैंने विभा को छोड़ दिया झुंझलाई सी, विभा कह उठी, "उफ्फ वेद, वह निकल...


"निकल गया तो निकल जाने दो" मैंने दृढ़तापूर्वक कहा ।


"अगर वह पकड़ा जाता तो इस पहेलीनुमा केस की बहुत सी गुत्थियां सुलझ सकती थी ।"


"कोई भी गुत्थी सुलझना, जिन्दल वंश से ज्यादा महत्व नहीं रखता।" कहने के बाद मैं वहां रूका नहीं, तेजी से वापस सीढ़ियों की तरफ बढ़ा । विभा और अभिक अवाक् से कुछ देर तक वहीं खड़े रह गए, फिर वे भी मेरे ही पीछे हो लिए । अचानक ही मची इस अजीब-सी भगदड़ और हमारे चीखने के कारण इमारत में जाग हो गई थी ।


विभा को वहां देखकर सभी चौंक पड़े । तरह-तरह के सवाल करने लगे। खुद विभा ने हीं उन्हें बड़ी मुश्किल से समझा-बुझाकर अपने-अपने कमरे में भेजा।


जब विभा ने महेन्द्र पाल सोनी को बताया कि वह व्यक्ति जिंगारू था तो भयवश सोनी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। अभिक ने पूछा- "हम सब यहीं थे बहूरानी, हममें से किसी को इल्म नहीं हुआ कि उस बंद खिड़की के पास कोई है, फिर आप... | "


"बातों के दौरान अचानक ही मैंने बंद खिड़की के उस तरफ से हल्की-सी आहट सुनी, उसी आहट ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैंने सोचा था कि झटके से खिड़की खोलते ही उसे कवर कर लूंगी, परंतु खिड़की पर लगी जाली ने मेरे इरादे पर पानी फेर दिया। मैं नहीं जानती थी कि खिड़की जाली से ढकी है। वह 'रेन वाटर पाईप' पर लटका हमारी बातें सुन रहा था, खिड़की के खुलते ही पाईप पर चढ़ता हुआ छत पर पहुंच गया।"


"क्या आपको जिंगारू के अस्तित्व पर अब भी यकीन नहीं आया बहूरानी ?" सोनी ने पूछा।


"अस्तित्व पर यकीन न करने जैसी तो कोई वजह ही नहीं रह गई है । "


‘‘भगवान का लाख-लाख शुक्र है, लेकिन इसका मतलब तो ये भी हुआ बहूरानी कि उसके दिमाग में बैठे वहम अभी तक बरकरार हैं और वह मेरी फिराक में है। मेरे आस-पास ही मंडरा रहा है, मुझे बचाइए बहूरानी । लगता है कि अग इस बार उसे मौका मिल गया तो वह मुझे जान से मार डालेगा।"


"फिक्र मत करो, अभिक चौबीस घण्टे तुम्हारे साथ रहेगा।" सांत्वना देने के बाद विभा ने जेब से पुनः वे दोनों अपरिचित वाले चित्र निकाले और महेन्द्र पाल सोनी को दिखाती हुई बोली- "इन दोनों चित्रों को ध्यान से देखो सोनी और बताओ कि क्या तुम इन दोनों में से किसी को जानते हो?"


"अरे !” उनमें से एक को देखते ही सोनी कह उठा-"यह तो जगमोहन है !"


"कौन जगमोहन ?” विभा ने अधीरतापूर्वक पूछा ।


"म... मेरा दोस्त ।"


"ओह, क्या तुम उसी जगमोहन की बात कर रहे हो जो शंकर- स्ट्रीट पर रहता है और जिसके यहां तुम उस शाम दोस्तों के साथ पी रहे थे जिस रात यहां जोगा या इकबाल गजनवी की लाश मिली ?"


"हां बहूरानी, यह उसी जगमोहन का चित्र है।"


"गुड !” विभा की आंखें चमकने लगीं- "तुम इसी वक्त हमें लेकर जगमोहन के यहां चलोगे। हमें उससे मिलना है, लेकिन पहले जरा ध्यान से इस दूसरे चित्र को भी देखो। ये किसका है?”


"इसे मैं नहीं पहचानता।"


"कोई बात नहीं, आओ। हमें इसी समय जगमोहन के यहां चलना है।" कहने के साथ ही विभा ने आर्ट पेपर जेब में रख लिए। मैं, अभिक और मधु भी इस वक्त बहुत आशावान और उत्सुक नजर आ रहे थे |


शीघ्र ही हम सब उसके घर पहुंच गए।


एक सौ पचास गज में बना जगमोहन का घर एक मंजिला, छोटा किंतु सुंदर था। कई बार कॉलबेल दबाने पर दरवाजा खुला । खोलने वाली आरती नामक जगमोहन की पत्नी थी। विभा को अपने दरवाजे पर देखते ही वह चौंक पड़ी। बौखलाकर एकदम रास्ता छोड़ती हुई बोली- "...बहूरानी आप हमारे यहां ? आइए।”


"हमें जगमोहन से मिलना है आरती बहन" अंदर दाखिल होती हुई विभा ने कहा।


खुद को नियंत्रित करके आरती ने कहा- "वे तो घर पर नहीं हैं बहूरानी।"


हम सब निराशा में डूब गए, जबकि विभा ने पूछा- "कहां गए हैं?"


"आज सुबह की जिन्दल पुरम् से कहीं बाहर गए हैं, बता कर नहीं गए कि कहां जा रहे हैं?"


"आपने पूछा था?”


"जी हां, कहने लगे कि वे एक गुप्त और जरूरी काम से जा रहे हैं। दो-चार दिन में लौट आएंगे, लेकिन बात क्या है बहूरानी, आप उन्हें क्यों पूछ रही हैं?"


'कोई विशेष बात नहीं है, दरअसल फैक्ट्री के अंदर जगमोहन के विभाग में चोरी हो गई है। चोर पकड़ा भी जा चुका है। जगमोहन को सिर्फ शिनाख्त करनी है । "


"ओह!" आरती के चेहरे पर छाए चिंता के ढेर से भाव संतुष्टि के भावों में बदल गए।


विभा ने जेब मे बाकी बचे हुए एक अपरिचति का चित्र निकाला, आरती को दिखाती हुई बोली- "ये उस चोर का चित्र है, क्या तुमने इसे कभी कहीं देख है आरती बहन ?”


चित्र देखने के बाद आरती ने इंकार कर दिया ।


"कोई बात नहीं” विभा ने कहा- "क्या इस घर में जगमोहन का कोई प्राईवेट कमरा था, हमारा मतलब किसी ऐसे कमरे से हैं, जहां जगमोहन अध्ययन आदि के लिए ज्यादातर अकेला रहता हो ?”


“जी हां, उनकी छोटी-सी लायब्रेरी है ।"


"क्या हम उसे देख सकते हैं?"


"आइए" कहकर आरती हमें बेडरूम में से गुजारकर लायब्रेरी में ले गई, बेडरूम में पड़े पलंग पर हमने करीब दो साल के बच्चे को गहरी निद्रा में सोए देखा, साईड ड्राज पर पति-पत्नी का एक फोटो रखा था । फोटो आर्ट–पेपर पर बने चित्र से नब्बे प्रतिशत मिलता था।


आरती ने जिस कमरे को लायब्रेरी कहा था वह काफी छोटा था, बीचों-बीच एक रीडिंग टेबल और एक कुर्सी पड़ी थी, मेज पर बहुत सी किताबें बिखरी पड़ी थीं और एक तरफ टेबल लैम्प रखा था।


मेज पर एक गुलदस्ता भी रखा था जिसमें टहनी समेत एक गुलाब का फूल मुस्करा रहा था । विभा की दृष्टि गुलाब के उसी फूल पर अटककर रह गई, बोली- "ये गुलाब का फूल यहां क्यों लगा है ?"


"जी, उन्हें गुलाब बहुत पसंद है बहूरानी।" आरती ने बताया- "मकान के पिछले भागों में उन्होंने एक छोटा-सा बगीचा बना रखा है, वहां तरह-तरह के गुलाब के पौधे लगे हैं। बगीचे की देखभाल वे खुद ही किया करते हैं और उनकी तरफ से मुझे प्रति सुबह इस गुलदस्ते में ताजा गुलाब लगाने के निर्देश हैं !”


"ओह!" कहती हुई विभा ने अर्थपूर्ण दृष्टि से मेरी तरफ देखा, मैं भी वही सोच रहा था जो शायद विभा सोच रही थी, यह कि, क्या जगमोहन का भी सुधा पटेल से कोई संबंध है, परंतु इस बारे में यहां बातें करने का कोई माहौल नहीं था, विभा कमरे की दीवारों के सहारे खड़ी पारदर्शी शीशेदार सेफों को देखने लगी।


प्रत्येक सेफ में सलीके से किताबें रखी हुई थी ।


विभा मेज की तरफ बढ़ी, दराजें खोल-खोलकर तलाशी लेने लगी। एक दराज में उसे चाबियों का गुच्छा मिला। फिर उसी गुच्छे की मदद से वह प्रत्येक सेफ को खोल-खोलकर देखने लगी ।


बीच-बीच में से किताबें निकालकर उनके दो-चार पृष्ठ भी पढ़ लेती थी ।


इस प्रकार लायब्रेरी की तलाशी लेने में उसे पूरे पैतालीस मिनट लगे, पैंतालीस मिनट बाद आरती के नजदीक पहुंचकर उसने सवाल किया- "क्या आप किसी सुधा पटेल नाम की लड़की को जानती हैं । "


"जी नहीं।"


"याद कीजिए ।” कभी यह नाम आपने जगमोहन के मुंह से सुना हो ?”


जब आरती ने इससे भी इंकार कर दिया तो विभा ने कहा- "हमारे ख्याल से तुम्हारी शादी हुए तीन या चार साल के करीब हुए हैं, क्या हमारा अनुमान गलत है ?"


"आप ठीक सोच रही है बहूरानी, सवा तीन साल हुए हैं।”


"क्या आप बता सकती हैं कि उससे पहले जगमोहन कहां 

रहते थे और क्या करते थे ?"


" जी हां, वे अपने पिता के साथ मैनपुरी में रहते थे और पढ़ते थे । अपने माता-पिता की ये अकेली ही संतान हैं, मांजी इनके बचपन में ही स्वर्ग सिधार चुकी थीं और पिता भी इनके जवान होने तक ।"


" यानि यह सब कुछ जगमोहन ने तुम्हें बताया है ?"


"जी हां ।"


"ठीक है, खैर । जगमोहन के आते ही उसे हमारे पास भेजना।" कहने के बाद हमने आरती से विदा ली। अभिक को विभा ने महेन्द्र पाल सोनी के साथ उसके फ्लैट पर भेज दिया और हम तीनों शंकर- स्ट्रीट से मंदिर उसके फ्लैट पर भेज दिया और हम तीनों शंकर-स्ट्रीर से मंदिर की तरफ रवाना हुए, रास्ते मै मैंने कहा- "जगमोहन के न मिलने ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।"