“ज... जी हां, बहूरानी।"
"हम पूरी वारदात सुनना चाहते हैं । "
"आपको गए अभी पांच मिनट ही गुजरे थे कि किसी ने मेरे सिर पर किसी सख्त वस्तु का जोरदार वार किया, मेरी आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच गए। फिर भी मैं हमलवार से मुकाबला करने के लिए तेजी से घूमा, तभी उसने दूसरी बार मेरे सिर पर वार किया। इस बार मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाता चला गया, परंतु बेहोश होने से पहले मैंने देखा था कि वह त्रिवेदी था, अपनी पूरी वर्दी में । रिवॉल्वर उसके हाथ में था और शायद उसने मेरे सिर पर दो वार उसी रिवॉल्वर के दस्ते से किए थे।
"यह घटना हमारे यहां से जाने के केवल पांच मिनट बाद घटी ?"
" जी हां, शायद आप इमारत के बाहर खड़ी अपनी कार तक ही पहुंची होंगी। श्रीकान्त ने कहा - "आपके द्वारा सौंपा गया कार्य सफलता के साथ पूरा न कर पाने के कारण मैं बहुत शर्मिंदा हूं बहूरानी । मगर क्या करता, उसने आक्रमण ही अचानक और इतनी तेजी से किया कि मैं संभल तक न सका, मुकाबला करना तो दूर । "
"कोई बात नहीं श्रीकान्त, इस पेशे में हमेशा सफलता ही हाथ नहीं लगती है और वैसे भी तुम आंशिक रूप से सफल हुए हो।" विभा ने कहा- "अचानक और जिस तेजी से तुम पर आक्रमण हुए उससे जाहिर है कि आक्रमणकारी तुम्हारी आंखों से खुद को छुपाना चाहता था, फिर भी तुमने उसे पहचान ही लिया ।”
"वह त्रिवेदी ही था बहूरानी।"
"तुम जा सकते हो।" विभा ने कहा ।
श्रीकान्त चला गया, मैंने विभा से कहा- "इस बार तुम चोट खा गईं विभा, यदि मेरे मुताबिक करतीं और सुधा पटेल को इसी फ्लैट में छोड़कर न जातीं तो हत्या चश्मदीद गवाह को गायब न कर देता । एक सुधा पटेल ही उसके खिलाफ ठोस गवाही दे सकती थी और त्रिवेदी उसी को ले गया ।”
"मैं इंसान से बढ़कर कुछ भी नहीं हूं वेद ओर चूकते इंसान ही हैं। दरअसल मेरी तरह जो लोग बहुत दूर तक तक ही सोचकर कोई स्कीम बनाते हैं वे अपने बहुत पास धोखा खा जाते हैं, लेकिन... ।”
"लेकिन क्या?
"अगर सच पूछो तो जो कुछ हुआ है, मुझे अभी तक उस पर आश्चर्य है ।”
"क्या मतलब ?"
"श्रीकान्त पर आक्रमण हमारे यहां से जाते ही हो गया, इसका मतलब ये है कि त्रिवेदी कम-से-कम उस वक्त गैलरी में कहीं छुपा हुआ था जब हम श्रीकान्त को यहां की निगरानी करने के लिए कह रहे थे, सबसे बड़ा सवाल ये है कि वह चारों की तरह यहां क्यों छुपा हुआ था ?"
"एक मात्र यही वजह से सकती है।" विभा ने स्वीकार किया- - इसीलिए वह हमारे आदेश देने पर दीनदयाल की निगरानी करने नहीं गया, फ्लैट बंद करके गैलरी में ही कहीं छुप गया । छुपे हुए स्थान से उसने हमें यहां आते देखा, उसने उस वक्त हम पर कोई आक्रमण नहीं किया। वजह ये हो सकती है कि हम पर आक्रमण करने का वह साहस ही न जुटा पाया हो, वैसे भी वह अकेला और हम तीन थे। किंतु यह सोचकर वह घबरा तो गया ही होगा कि हमने सुधा पटेल को देख लिया है। श्रीकान्त पर हमला करके सुधा को यहां से ले जाना ही उसकी बौखलाहट का परिचायक हैं इतना सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बाद भी मेरे दिमाग में एक सवाल है जिसका मुझे कोई जवाब नहीं मिल पा रहा है।"
"कैसा सवाल?” मैंने पूछा ।
"ऐसा शक उसे क्यों हुआ कि हम उसे पर संदेह कर रहे हैं। किस स्पॉट पर। ऐसी क्या भूल हो गई हमसे ?” विभा के दिमाग में खटक रहे प्रश्न में जाने थी किंतु इस प्रश्न का जवाब हममें से भी किसी के पास नहीं था इसलिए चुप ही रहे और कुछ देर के लिए हमोर बीच गहरी खामोशी छा गई।
"खैर!" विभा ही बोली- "फिलहाल हमारे चारों तरफ इतने सवाल बिखरे पड़े हैं कि किसी एक ही में उलझकर बरबाद करने के लिए समय नहीं है। जो बात समझ में नहीं आती उसे छोड़कर हमें आगे बढ़ जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में तुम्हारे ख्याल से हमें सबसे पला कदम क्या उठना चाहिए ?"
"मेरे ख्याल से तो किसी भी तरह सबसे पहले त्रिवेदी को खोज निकालना चाहिए।"
"यही ठीक रहेगा।" कहने के साथ ही विभा ड्राईंग रूम में रखे फोन के नजदीक पहुंची, नंबर डायल किए और उसके द्वारा की गई बातों से मैं समझ गया कि वह एस.एस.पी. से बातें कर रही है।
संबंध-विच्छेद करने के बाद मेरी तरफ घुमकर बोली । "कुछ ही देर बाद यहां पुलिस दल-बल और फोटोग्राफर के साथ एस. एस. पी• आने वाले हैं, उनके आने और उन्हें सब कुछ समझाने के बाद ही हम यहां से जा सकते हैं।"
मैं चुप रह गया।
"तुम्हें उस सेफ से कुछ आर्टपेपर मिले थे विभा बहन।" मधु ने कहा।
“हां।” एक सोफे पर बैठते हुई विभा ने जेब से आर्ट पेपर निकाल लिए।
“क्या हैं इनमें ?”
पेपर्स को देखते हुई विभा ने कहा- "किसी बहुत ही अच्छे आर्टिस्ट ने इस आर्ट पेपरों पर केवल पैंसिल से कुछ लोगों के चित्र बनाए हैं।"
"किन लोगों के ?"
"देखों" कहती हुई विभा ने एक आर्ट पेपर मेरी तरफ बढ़ा दिया, चित्र पर नजर पड़ते ही मैं चकित स्वर में चीख-र -सा पड़ा - "अरे, यह तो अनूप बाबू का चित्र है ।"
"इसे देखो" विभा ने मुझे दूसरा चित्र दिया ।
चित्रों को देखने स ही लगता था कि जिसने भी वे बनाएं हैं, वह आर्ट का पुजारी है। दूसरे चित्र को देखते ही मैं एक बार फिर उछल पड़ा, इस बार मधु चीख पड़ी - "ये तो जोआ या इकबाल गजनवी है।”
"अब इसे देखो" कहने के बाद जब विभा ने तीसरा पेपर हमें दिया तो हतारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। यह चित्र सुधा पटेल का था, पैंसिल ने बने इस चित्रों की पहेली हमारी समझ में बिल्कुल नहीं आई।
मधु ने तो कह भी दिया- "ये सब क्या मामला है विभा बहन?"
"तुम्हारी समझ में कुछ आया वेद ?" विभा ने मुझसे पूछा।
"समझ में नहीं आता, आखिर ये चित्र किस आर्टिस्ट ने किस मकसद से बनाएं हैं और चित्र त्रिवेदी की सेफ में क्यों रखे थे, क्या त्रिवेदी चित्रकार भी है?"
"ये चित्र त्रिवेदी ने नहीं बनाए हैं, बल्कि किसी अन्य ने बना कर उसे दिए हैं।"
"किसलिए?"
"त्रिवेदी से इन सबका मर्डर कराने के लिए"
'क... क्या मतलब ?"
"मतलब जानने से पहले ये दो चित्र और देखो" कहने के साथ ही विभा ने दो आर्ट पेपर मुझे पकड़ा दिए। मैं उन चित्रों को देखता रह गया, क्योंकि वे दोनों ही व्यक्ति मेरे लिए नितांत अपरिचित थे। काफी देर तक देखता रहने के बाद मैं बोला- "मैं अभी कुछ नहीं समझ सका ।” "
"अभी इन दो व्यक्तियों की हत्याएं होनी बाकी हैं ।"
मैं भाड़-सा मुंह फाड़े हैरत से विभा का मुंह देखता रह गया, जबकि विभा बोली-"अब तुम कहोगे कि मैं ऐसा कैसे कह सकती हूं, जवाब मेरे पास है। ये कुल पांच चित्र हैं, पांच में से दो की हत्या हो चुकी है। तीसरी यानी सुधा हत्यारे के जुल्मों की शिकार है। दुश्मन का उद्देश्य शायद अंततः उसकी भी हत्या कर देना है और फिर नंबर आएगा बाकी बचे हुए इन दोनों का।"
"ये दोनों कौन हैं, क्या तुम इन्हें जानती हो ?"
"अगर जानती होती तो मैं इस वक्त यहां इतने आराम से न बैठी होती ।" विभा ने कहा- "बल्कि इनमें से किसी के पास जाकर उसका बयान लेती, इनमें से किसी का भी बयान हत्यारे के भेद को खोल सकता है ।"
"तुम कसे कह सकती हो कि चित्र त्रिवेदी ने नहीं बनाए, बल्कि किसी अन्य ने उसे दिए हैं?"
‘‘अगर चित्र वह स्वयं बनाता तो अपनी सेफ में कभी न रखता, चित्र निश्चय ही उसे बनाकर दिए गए हैं और इन पांचों की हत्या का सौदा किया गया है ।"
" मगर पहचान के लिए पैंसिल के बने चित्र क्यों दिए गए फोटो क्यों नहीं ?"
"गुड, यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है वेद और इसके जवाब में फिलहाल इता ही कह सकती हूं कि किसी व्यक्ति ने इन पांचों को केवल एक - एक बार देखा और ऐसे किसी भी समय पर उसके पास कैमरा नहीं रहा होगा, निश्चय ही वह व्यक्ति आर्टिस रहा होगा, जिसने बाद में अपनी स्मृति के आधार पर ये चित्र बना दिए ।”
"ये चित्र इस केस में हमारी क्या मदद कर सकते हैं?"
"मैं भविष्यवक्ता नहीं हूं वेद, फिलहाल केवल इतना ही कहा जा सकता है कि इन चित्रों का इस केस से कोई न कोई संबंध जरूर है। हां, यदि इन दो में से हमें कोई मिल जाए तो... ।”
बात अधूरी ही रह गई।
गैलरी में भारी बूटो की आवाज गूंजी थी।
विभा फुर्ती से खड़ी हुई, मुझसे आर्ट पेपर लेकर जल्दी सेजब में रखती हुई बोली- "इन चित्रों के बारे में पुलिस के सामने हमें काई जिक्र नहीं करना है।"
हममें से अभी कोई कुछ बोल भी नहीं सका था कि कमरे में हवा के झोंके की तरह एस.एस.पी• साहब दाखिल हुए। विभा ने उन्हें श्रीकान्त और वीणा द्वारा बताई गई, दीनदयाल और महेन्द्र पाल सोनी से मिलने वालों की लिस्टों से लेकर अब तक की सारी वारदात संक्षेप में सुना दी।
अपनी कहानी में उसने रायतादान और चित्रों का बिल्कुल जिक्र नहीं किया था ।
सुनकर एस•एस•पी• साहब दंग रह गए, शायद यह सोचकर कि मुजरिम उन्हीं के विभाग का इंस्पेक्टर हैं एस• एस• पी• साहब ने विभा को पूरा आश्वासन दिया कि वे जल्दी-से-जल्दी इंस्पेक्टर त्रिवेदी को खोज निकालेंगे। इसके बाद हमने एस. एस• पी• महोदय से विदा ली।
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