न केवल दीनदयाल के फ्लैट ही के बल्कि जिस इमारत में उसका फ्लैट था उस इमारत के इर्द-गिर्द का चप्पा-चप्पा हम तीनों ने छान भारा, किन्तु इंस्पेक्टर त्रिवेदी हमें कहीं भी मिला और यह बहुत ही हैरतअंगेज बात थी. लगातार एक घंटे की मेहनत के बाद भी जब हमें त्रिवेदी कहीं नजर न आया तो हम कार के समीप इकट्ठे हो गए, मैं बोला- "कमाल हो गया, त्रिवेदी गधे के सींग की तरह गायब है।"


"उसे यहीं तो उलझन है।" विभा सोचती हुई-सी बोली- हम चुप रहे, जब उसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था तो हम क्या समझ सकते थे. एकाएक ही वह बोली। "उसके ठाट-बाट से यह तो जाहिर हो ही चुका है वेद कि वह अपने पद पर ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ नहीं है। दीनदयाल उसका दोस्त है ही, ओह ! हां, ऐसा हो सकता है कि वह दीनदयाल के फ्लैट में बैठा उसके साथ ही पीने-पिलाने में व्यस्त हो, सोच लिया हो कि बाद में कोई भी अंट-शंट रिपोर्ट हमें दे देगा।"


"ऐसा ही लगता है।"


"आओ! कहने के साथ ही एक बार फिर इमारत की तरफ बढ़ गए, हम उसके साथ ही थे। दीनदयाल के फ्लैट के बंद दरवाजे पर विभा ने स्वयं दस्तक दी दस्तक कम-से-कम पांच बार देनी पड़ी तब कहीं जाकर कमरे के अंदर लाईट ऑन हुई और अलसाया सा स्वर उभरा- कौन है?"


"दरवाजा खोलो दीनदयाल, ये हम हैं ।"


"अरे, बहूरानी ?" दीनदयाल का चौंका हुआ स्वर ओर साथ ही ऐसी आवाज जैसे वह दरवाजे पर झपटा हो, अगले ही पल एक झटके से दरवाजा खुल गया, सामने अस्त-व्यस्त हक्का-बक्का और बुरी तरह हैरत में डुबा दीनदयाल खड़ा था, उसके मुंह से निकला - "ब... बहूरानी, आप इस वक्त यहां । मुझे हुक्म किया होता !"


उसके शब्दों पर कोई ध्यान ने देती हुई विभा हवा के झोंके की तरह अंदर दाखिल हुई। दीनदयाल अवाक् – सा ही खड़ा रह गया जबकि विभा केवल तीन मिनट में फ्लैट के तीनों कमरों का निरीक्षण करके वापस लौट आई थी ।


"क... क्या बात है बहूरानी, आप क्या तलाश कर रही है?" हैरत के कारण दीनदयाल का बुरा हाल था।


उसे कड़ी दृष्टि से घूरती हुई विभा ने सवाल किया- "त्रिवेदी कहां है ?"


"त...त्रिवेदी ?" दीनदयाल एकदम घबरा गया ।" कौन त्रिवेदी ?"


विभा के जबड़े भिंच गए, चेहरा सख्त हो गया, आंखों में कठोरता उभर आई, दांत पीसती हुई-सी गुर्राई- मैं इंस्पेक्टर एस•एन• त्रिवेदी की बात कर रही हूं।"


"इंस्पेक्टर त्रिवेदी ! ल.... लेकिन उसका यहां क्या काम बहूरानी ?"


इस बार गुस्से में तमतमाती हुई विभा ने झपटकर दोनों हाथों से दीनदयाल का गिरेबान पकड़ लिया, बड़े ही खतरनाक स्वर में गुर्राई- "अगर तुमने एक क्षण भी और ये नाटक किया तो... | "


"त.... त्रेवदी यहां नहीं आया ।"


दीनदयाल का वाक्य पूरा होने से पहले ही 'तड़ाक' से विभा का भरपूर थप्पड़ दीनदयाल के गाल पर पड़ा और दीनदयाल के आगे के शटद हल्की-सी चीख में बदल गए, उसके निचले होठ से खून बहने लगा था, विभा चीख रही थी- "हमें झूठ से नफरत है दीनदयाल, सख्त नफरत।"


उस वक्त की, बेचारे दीनदयाल की स्थिति को तो क्या लिखूं। स्वयं मैं और मधु एक सर्द-सी झुरझुरी लेकर रह गए थे, विभा के उस नए अनोखे और भयानक रूप को देखकर हम कांप गए। वह किसी जहरीली नागिन की तरफ फुंफकारती - सी नजर आ रही थी जबकि दीनदयाल हाथ जोड़कर बोला । म.. मुझे माफ कर दो बहूरानी मगर ये झूठ नहीं है, त्रिवेदी यहां नही आया । "


"क्या तुम उसे जानते नहीं हो ?”


"ज... जानता हूं।"


"फिर तुमने उसका और अपना परिचय क्यों हमसे छुपाया उसके नाम पर चौंकने का नाटक क्यों किया तुमने?”


"व... वह ।” दीनदयाल कुछ कहना चाहता था।


बोलो । वर्ना.... ।'


र ...र.... रहने दीजिए बहूरानी ।" दीनदयाल गिड़गिड़ाकर विनती - सी कर उठा - "म... मैं बरबाद हो जाऊंगा। रोजी-रोटी तक का सहारा नहीं रहेगा मुझे। म... मैं आपको यकीन दिलाता हूं। अनूप बाबू के मर्डर से हमारा कोई संबंध नहीं है। प्लीज, मत पूछिए बहूरानी। म... मैं कहीं का नहीं रहूंगा।"


"हमने पूछा है कि त्रिवेदी के नाम पर तुमने चौंकने का नाटक क्यों किया ?" विभा ने एक-एक शब्द को चबाया ।


एक बार नहीं, बल्कि दीनदयाल ने कई बार गिड़गिड़ाकर विभा से यह सवाल न करने की विनती की, परंतु विभा ने उसकी एक न सुनी और दीनदयाल को टूटना ही पड़ा, जब अंतिम बार विभा ने पूछा कि त्रिवेदी से उसका क्या संबंध है तो इस तरह बोला जैसे लुट गया हो- "उसी की बदौलत मुझे मैडिकल स्टोर चलाने का लाईसेंस मिला है।"


"क्या मतलब?”


"मैडिकल स्टोर चलाने के लिए लाईसेंस की जरूरत होती है और लाईसेंस केवल उसे मिलता है जिसे 'मैडिसन्स' की जानकारी हो, मुझे कोई जानकारी नहीं है। संबंधित व्यक्ति को दवाओं की पर्याप्त जानकारी है या नहीं, इस बात की रिपोर्ट संबंधित थाने से मांगी जाती है। त्रिवेदी के हस्ताक्षर से मुझे लाईसेंस मिल सकता था और जांच पर आते ही उसने जान लिया कि मुझे दवाओं की कोई जानकारी नहीं है, तब मुझसे पांच हजार लेकर उसने हस्ताक्षर कर दिए, उन्हीं हस्ताक्षरों से मुझे लाइसेंस मिल गया। मैं स्टोर ही से अपने परिवार का पेट भर रहा हूं बहूरानी, स्टोर ने रहा तो कुछ भी न रहेगा, इसीलिए मैं उसके और अपने संबंधों को छुपाता रहा । हम दोनों ही को डर था, मुझ लाईसेंस रद्द हो जाने का और उसके रिश्वत के चक्का में फंस जाने का, अतः हम महीने में एक दिन गुप्त रूप से इन्जवॉय होटल में मिलते थे।"


"क्यों?" विभा ने पूछा- "हमारा मतलब तुम्हें बोगस लाईसेंस दिलाने के लिए उसने कीमत ले ली, तुम्हें लाईसेंस मिल गया। उसके बाद तुम्हारे मिलने की क्या वजर रह गई ?"


"मेरा लाईसेंस रद्द कराने की धमकी देकर वह मुझसे लगातार दो सौ रुपए महीना और महीन में एक दिन इन्जवॉय में शराब पीता रहा है, उसी दिन वह पैसे लेता था । लाईसेंस रद्द होने डर से मैं उसकी मांगें मानने के लिए मजबूर था।"


"दो अनुभवी सेल्समैन रख रखे हैं बहुरानी"


अपना लाईसेंस दिखाओ।"


दीनदयाल ने सेफ के लॉकर से लाईसेंस निकालकर दिखाया, विभा लाईसेंस पर त्रिवेदी के हस्ताक्षर देखने के बाद संतुष्ट हुई बोली- "तो आज रात वह यहां, तुम्हारे पास नहीं आया ?"


"बिल्कुल नहीं बहूरानी, मैं कसम खाकर कह सकता हूं।"


"बोगस लाइसेंस से स्टोर चलाकर तुम आज तक बहुत बड़ा अपराध करते रहे दीनदयाल, इस केस से निपटने के बाद हम तुम्हें इस जुर्म की सजा दिलाकर रहेंगे" कहने के बाद विभा एक क्षण के लिए भी वहां नही रूकी। दीनदयाल गिड़गिड़ाता रह गया, जबकि हम भी उसके साथ ही बाहर निकल आए। विभा ने दीनदयाल के बोगस लाईसेंस को अपने गाउन की जगक में डाल लिया था। विभा के साथ ही हम कार में बैठ गए।


चेहरे पर गंभीरता लिए विभा कार को काफी तेज गति से ड्राईव कर रही थी।


"अब हम कहां चल रहे हैं विभा?" मैंने पूछा ।


जाने क्या सोचती हुई विभा ने जवाब दिया- "इंस्पेक्टर त्रिवेदी के फ्लैट पर ।"


"यानी वापस, मगर क्यों?"


"मेरा अनुमान ठीक ही निकला वेद, दीनदयाल के बयान और उसकी पुष्टि करने वाले इस लाईसेंस ने सिद्ध कर दिया है कि त्रिवेदी एक बेईमान और रिश्वतखोर इंस्पेक्टर के बयान से उनके संबंध स्पष्ट हो गए हैं, साथ ही यह प्रश्न भी हल हो गया है कि त्रिवेदी सारी दुनिया से अपने और दीनदयाल के संबंधों को क्यों छुपाता था। अब केवल त्रिवेदी को गिरफ्तार करना बाकी रहा है, मुमकिन है कि वह अपने फ्लैट की तरफ गया हो ।"


मैं चुप रह गया ।


शायद इसलिए, क्योंकि कहने के लिए मुझे कुछ सूझा ही नहीं था, मैं स्वयं भी वही सब कुछ सोच रहा था जो विभा ने कहा था । शीघ्र ही हम अपनी मंजिल पर पहुंच गए। कार हमारत के पोर्च में खड़ी की और तेजी से चलते हुए अंदर दाखिल हो गए। गैलरी का मोड़


घूमते ही हम तीनों चौंक पड़े!


"गैलरी के फर्श पर श्रीकान्त बेहाश पड़ा था ।"


चौंककर हम उसके नजदीक पहुंचे, तभी मेरी नजर इंस्पेक्टर त्रिवेदी के फ्लैट के खुले दरवाजे पर पड़ी और में अनायास ही चीख- सा पड़ा - "अरे, त्रिवेदी का फ्लैट तो खुला पड़ा है विभा । "


विभा ने चौंककर उस तरफ देखा और फिर अगले ही पल जेब से रिवॉल्वर निकालवर वह आंधी-तूफान की तरह खुले दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी।


मैं समझ गया था कि यहां जरूर कोई दुर्घटना हो गई है, अतः मधु को श्रीकान्त के पास ही रूकने की आज्ञा देकर मैं विभा के पीछे लपका।


फ्लैट के अन्दर की सारी लाईटें ऑन पड़ी थीं, सारे दरवाजे खुले पड़े थे और विभा के साथ-साथ मैं भी उस कमरे के दरवाजे पर ही ठिठक गया, जिसमें सुधा पटेल होनी चाहिए थी ।


वहां सिर्फ कुर्सी थी, फर्श पर वह रस्सी पड़ी थी जिससे हमने सुधा पटेल को बंधे देखा था। कोने में रखा संदूक भी खुला पड़ा था और उसके सारे कपड़े फर्श पर इधर- उधर बिखरे थे।


"स... सुधा कहां गई । ?" मेरे मुंह से एक अनावश्यक वाक्य निकल पड़ा।


विभा कुछ नहीं बोली, बड़ी ही तीक्ष्ण दृष्टि से वह कमरे का निरीक्षण कर रही थी। मैं उसके चेहरे पर मौजूद भावों को देखता सोच रही है?


कुछ ही देर बाद मेरी तरफ घूमकर बोली- "श्रीकान्त को उठाकर फ्लैट के अंदर ले आओ वेद ।" "


मैं गैलरी की तरफ बढ़ गया, विभा बैडरूम की तरफ । जब श्रीकान्त को कंधे पर डाले मधु के साथ बैडरूम में दाखिल हुआ तब विभा ने कहा- "इसे बैड पर लिटा दो।"


मैंने वैसा ही किया ।


फिर विभा ने मुझे श्रीकान्त को होश में लाने का निर्देश दिया और खुद हेयरपिन से कमरे में मौजूद सेफ को खोलने का प्रयत्न करने लगी। मैं मधु को बाथरूम में से पानी लाने की आज्ञा देकर दिलचस्प निगाहों से विभा को देखने लगा, थोड़ी देर की कोशिश के बाद विभा अपने प्रयास कामयाब हो गई ।


मधु पानी ले आई।


मैं श्रीकान्त के चेहरे पर पानी के छींटे मारने का उपक्रम जरूर कर रहा था, किंतु यदि सच पूछा जाए तो मेरा सारा ध्यान विभा की तरफ था, वह सेफ की तलाशी ले रही थी और फिर मैंने उसके हाथ में सेफ से बरामद होने वाले कुछ आर्ट-पेपर देखे। दूर ही से भांप लिया कि उन 'आर्ट-पेपरो' पर किसी अच्छे आर्टिस्ट ने केवल पैंसिल का इस्तेमाल करके कुछ व्यक्तियों के चित्र बना रखे थे।


कुछ देर तक विभा पैंसिल से बने उन चित्रों को देखती रही। फिर वे सभी आर्ट पेपर उसने संभालकर अपने गाउन की जेब में रख लिए। मैंने उधर से दृष्टि हटाकर श्रीकान्त के चेहरे पर छपाके मारे ।


दस मिनट बाद ही श्रीकान्त को होश आ गया ।


तब तक विभा ही अपना काम निपटाकर हमारे करीब आ गई थी, होश में आते ही श्रीकान्त का हाथ अपने सिर के पिछले हिस्से पर गया, वह दर्द से कराह-सा उठा था।


कराहते हुए श्रीकान्त ने आंखें खोल दीं और विभा पर नजर पड़ते ही वह उछल कर खड़ा हो गया, हक्का-बक्का। सा बोला- "ब... बहूरानी आप, वह कहां गया?"


"कौन ?"


"इंस्पेक्टर त्रिवेदी ।"


विभा ने पूछा- "क्या तुम्हें इंस्पेक्टर त्रिवेदी ने बेहोश किया था?"