शिवजी रोड पर स्थित 'मयूर' नामक इमारत की दूसरी मंजिल पर इंस्पेक्टर त्रिवेदी आर पैंसठ नंबर के फ्लैट में रहता था, जिस वक्त हम वहां पहुंचे तब फ्लैट के बाहर ताला लटका हुआ था । दूर तक सीधी चली गई गैलरी में छत में थोड़े-थोड़े अंतराल से बल्ब लगे हुए थे जिनके कारण गैलरी में पीला प्रकाश बिखरा हुआ था और वह बिल्कुल सुनसान पड़ी थी ।
एकाध फ्लैट में ही जाग और रोशनी का अहसास होता था, बाकी सभी फ्लैटों में लोग शायद लाईटें ऑफ करके सो चुके थे। विभा ने बालों से हेयरपिन निकाला और बड़ी सरलता से ताला खोल दिया। उसके पीछे हम दोनों भी फ्लैट के अंदर दाखिल हो गए।
विभा ने निर्देश पर मैंने दरवाजा बंद करके अंदर से संकल चढ़ा दी ।
विभा ने अपने गाउन की जेब से एक टॉर्च निकालकर ऑन कर ली थी, प्रकाश दायरा कमरे में नृत्य करने लगा, सोफा - सेट सेन्टर - टेबल और एक दीवान की मौजूदगी के कारण मैं उस कमरे को ड्राईंग रूम कह सकता हूं। फर्श पर एक खूबसूरत और कीमती कालीन बिछा हुआ था।
हम तीनों खामोश थे।
सन्नाटा इतना गहरा था कि एक-दूसरे की आवाज स्पष्ट सुन सकते थे। प्रकाश दायरा स्विच बोर्ड पर स्थित हुआ और फिर विभा ने आगे बढ़कर लाईट ऑन कर दी ।
दो-तीन बार लपलपाने के बाद ट्यूब भक्क से रोशन हो गई।
सारे कमरे में दूधिया प्रकाश बिखर गया ।
टॉर्च ऑफ करती हुई विभा ने सारे कमरे में नजर दौड़ाई और फिर बुदबुदाकर उसने जैसे स्वयं से ही कहा- "मेरा शक ठीक ही था । "
"कैसा शक ?" मैं पूछे बिना न रह सका।
"मैं त्रिवेदी के हाथ में एक कीमती विदेशी घड़ी देखती रही हूं जिसकी कीमत भारतीय मुद्रा के अनुसार तीन हजार के करीब होती है और सरकार एक इंस्पेक्टर को इतनी तनख्वाह नहीं देती कि वह तीन हजार की घड़ी इस्तेमाल कर सके, मेरे दिमाग में पहले ही दिन यह विचार उभरा था कि या तो त्रिवेदी ईमानदारी पूर्वक अपने पद का निर्वाह नहीं कर पा रहा है या उसकी आय का अन्य स्त्रोत है और फ्लैट में मौजूद कीमती सामान मेरे उसी संदेह की पुष्टि कर रहा है।"
मुझे एक बार फिर मानना पड़ा कि विभा की नजर बहुत तेज है।
ड्राइंगरूम से अटैच्ड दो कमरे थे, एक का दरवाजा सामने वाली दीवार में था, दूसरे का दाईं तरफ की दीवार में। दोनों दरवाजे बंद और इस तरफ से वोल्ट थे।
विभा पहले सामने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ी |
हम उसके साथ ही थे, दरवाजा खोलकर भीतरी कमरे में पहुंचे, लाईट-ऑन करने पर हमने देखा, वह कमरा बैडरूम था। कुछ देर तक विभा चहलकदमी-सी करती हुई सारे कमरे का निरीक्षण करती रही, फिर वापस ड्राईंगरूम में आई और उसके साथ ही हम भी तीसरे कमरे की तरफ बढ़ गए।
दरवाजा खोलते ही हमें कमरे के अंदर से किसी के कराहने की आवाज आई।
तीनों चौंक पड़े।
आवाज ऐसी थी कि जैसे कोई व्यक्ति असीमित पीड़ा से गुजर रहा हो, ड्राईंगरूम के रॉड की रोशनी पर्याप्त रूप से उस कमरे में नहीं पहुंच रही थी इसलिए वहां अंधेरा था।
मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
"कमरे में कौन है ?" विभा की आवाज में बिजली की सी कड़क थी ।
कमरे के अंदर से उभरने वाली कराह कुछ और तेज हो गई, इस बीच विभा फुर्ती के साथ जेब में टॉर्च निकालकर ऑन कर चुकी थी । प्रकाश झागों का दायरा तेजी से दौड़कर एक कोने से जा टकराया और उसी कोने में कुर्सी पर एक इंसानी जिस्म बंधा बैठा था |
किसी ने उसे रस्सियों से जकड़ रखा था।
मेरा दिल धक्क-धक्क करने लगा। कुर्सी पर बंधा व्यक्ति आंखों को मिच-मिचाकर टॉर्च की तरफ देख रहा था, उसके मुंह में जीभ नहीं थी। हाथों से उंगलियां नदारद ।
सु... सुधा पटेल ? " मेरे और मधु के कंठ से चीख-सी निकल गई।
उसके जीभ रहित मुंह से निकलने वाली कराह कुछ और तेज हो गई ।
विभा ने जल्दी से स्विच बोर्ड तलाश करके स्विच ऑन कर दिया। होल्डर में फंसा एक कम वॉट का बल्ब खिल उठा, सारे कमरे में धुंधली- सी पीली रोशनी भर गई। विभा ने टॉर्च ऑफ करके जेब में रखी ।
विभा दौड़कर उसके नजदीक पहुंची। विभा को देखकर सुधा पटेल की आंखों में जीवन ज्योति - सी नजर आने लगी। मैं और मधु भी दौड़कर उसके नजदीक पहुंचे।
सुधा की अवस्था बहुत ही दयनीय थी ।
चेहरा गन्दा हो गया था, हर तरफ वीरानी ! एक-दूसरे से उलझे हुए बाल बुरी तरह बिखरे पड़े थे। जीभ रहित हलक में खून-सा जमा हुआ था। कटी हुई उंगलियों की जड़ों में पट्टियां बंधी हुई थीं।
दोनों कलाइयां कुर्सी के हत्थों के साथ बंधी हुई थीं।
"त... तुम सुधा पटेल हो न ?" विभा ने पूछा ।
" गूं...गूं करती हुई सुधा पटेल ने अपना सिर स्वीकृति में हिलाया ।
अत्यधिक उत्साह में विभा ने सवाल किया- "तुम यहां कैसे पहुंच गई ?"
मुंह खोलकर आंखों के इशारे से सुधा पटेल ने कुछ बताने की कोशिश तो भरपूर की थी, परंतु हम तीनों में से किसी की भी समझ में कुछ नहीं आ पाया ।
विभा ने पूछा- "क्या तुम्हें यहां इंस्पेक्टर त्रिवेदी ने कैद कर रखा है ?"
सुधा पटेल ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई ।
"कब से ?" विभा ने सवाल कर तो दिया, परंतु अगले ही पल स्वयं उसकी समझ में आ गया कि सुधा पटेल इस सवाल का जवाब नहीं दे सकेगी, वह किसी भी सवाल का जवाब केवल गर्दन हिलाकर 'हां' या 'नहीं' दे सकती है, अतः उससे केवल वे ही सवाल किए जा सकते थे जिनके जवाब 'हां' या 'ना' में हो सकें।
शायद यही सोचकर विभा ने पूछा- "क्या तुम्हारी जीभ और उंगलियां त्रिवेदी ने काटी हैं ?”
उसने गदर्न हिलाकर जवाब दिया-"हां।"
"क्या तुम्हारे फ्लैट से तुम्हें त्रिवेदी ने ही किडनैप किया है ?”
इंकार !
"फिर किसने, ओह, सॉरी! क्या तुमने अनूप को पत्र लिखे थे ?"
स्वीकार !
"क्या सचिन अनूप का बेटा है ?"
इंकार !
"इस वक्त सचिन कहां है, मेरा मतलब क्या वह हॉस्टल में है ?"
इंकार !
"फिर किसके पास है, क्या त्रिवेदी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले रखा है ?"
इंकार !
"क्या अनूप और जोगा का कातिल इंस्पेक्टर त्रिवेदी ही है।"
स्वीकार ।
"क्या तुम्हें उस पहेली की अर्थ पता है, जिसका हल इंस्पेक्टर ने अनूप और जोगा से चाहा था ?”
इंकार !
"संतरे का रहस्य जानती हो ?"
स्वीकार !
“क्या है उसका रहस्य । उफ्फ! सॉरी सुधा, मैं बार-बार भूल जाती हूं कि तुम किस सवाल का जवाब दे सकती हो और किसका नहीं।" विभा का चेहरा आवश्यक सवालों का जवाब न मिल पाने के कारण तमतमा–सा गया था—“क्या संतरा छीलने का मतलब तुम्हारे और अनूप के फोटुओं तथा लैटर्स को उजागर कर देना था ?"
अगला सवाल करने के लिए विभा ने पुनः मुंह खोला, परंतु फिर जाने क्या सोचकर बिना कुछ पूछे ही सुधा पटेल की कुर्सी के पास से हट गई। अब उसकी दृष्टि सारे कमरे में विचरण कर रही थी ।
विभा कमरे के एक कोने में पड़े भारी से संदूक की तरफ बढ़ी। संदूक पर मोटा ताला लटका हुआ था, जिसे विभा ने हेयर पिन की मदद से खोल लिया ।
संदूक में पुराने कपड़े भरे हुए थे ।
विभा फुर्ती से उन कपड़ों को निकाल-निकालकर फर्श पर फेंकने लगी। अंदाज से ही जाहिर था कि उसे किसी वस्तु की तलाश है, काफी दिमाग लगाने के बावजूद भी मैं नहीं सोच सका कि वह क्या चाहती है, परंतु उस वक्त मैं और मधु उछल ही पड़े जब संदूक से रायतादान' निकला।
रायतादान को हाथ में लिए विभा उसे ध्यान से देख रही थी।
"क्या यह वही रायतादान है विभा?" मैंने पूछा।
"कह नहीं सकती, क्योंकि मैंने कभी इसे नहीं देखा था और वैसे भी इस पर कोई नामादि नहीं लिखा है फिर भी अधिक संभावना यही है" कहने के बाद विभा सुधा पटेल के नजदीक पहुंची, बोली- "क्या तुम इस रायतादान के बारे में कुछ जानती हो ?"
सुधा पटेल के 'स्वीकारात्मक' जवाब के बाद विभा ने पूछा- "क्या यह रायतादान हमारा है?”
सुधा ने पुनः 'हां' में गर्दन हिलाई, विभा ने पूछा- "क्या इसे मंदिर से त्रिवेदी ने चुराया था ?"
स्वीकारा !
"अनूप के नाम तुमसे वे पत्र त्रिवेदी ने ही लिखवाए थे ?"
स्वीकार !
"गुड ।।" विभा की आंखें चमक उठीं- "अनूप ने तुम्हें कभी कोई पत्र नहीं लिखा था, तुम्हारा अनूप से कभी कोई वैसा संबंध नहीं रहा था जैसा तुम्हारे उन पत्रों से नजर आता था। अपने मनचाहे मजमून के वे पत्र तुमसे जबरदस्ती त्रिवेदी ने लिखवाए। मुझे धोखे में डालने के लिए पत्रों को हमारी तिजोरी में रखा। उसी वक्त ये रायतादान तिजोरी से निकाल लिया गया था, यही कहानी सच है न?"
सुधा ने गर्दन हिलाकर 'हां' कहा ।
विभा सीधी खड़ी हो गई । इत्मिनान की बहुत ही लंबी और गहरी सांस ली थी उसने । शायद इसीलिए कि उसकी नजर में उसके पति के करेक्टर पर लगा धब्बा बिल्कुल झूठा साबित हुआ था। इस वक्त अपनी विभा के चेहरे पर मैं बड़ी जबरदस्त आभा देख रहा था, पहले से कई गुना ज्यादा उत्साहित - सी वह मेरी तरफ घूमकर बोली- "आओ वेद, ड्राईंगरूम में चलें । तुमसे कुछ विचार विमर्श करना है।"
कहने के बाद वह रूकी नहीं, तेजी के साथ उस कमरे से बाहर निकल गई। मैं और मधु लपकते हुएसे उसके पीछे ड्राइंगरूम में पहुंच गए। विभा ने खुद ड्राइंगरूम और उसके कमरे के बीच का दरवाजा बंद किया जिसमें सुधा थी, विभा ने एक क्षण भी गंवाए बिना मुझसे सवाल किया- "अब तुम्हारा क्या ख्याल है वेद ?" "किस बारे में ?”
"मेरा मतलब यहां की स्थिति और सुधा के सीमित बयान के बाद तुम किस नतीजे पर पहुंचे हो?"
"इसके अलावा और क्या नतीजा निकलता है कि मुजरिम इंस्पेक्टर त्रिवेदी है।"
"तुम्हारे ख्याल से हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए?"
"मेरे ख्याल से तो एक क्षण भी गंवाए बिना इंस्पेक्टर त्रिवेदी को गिरफ्तार कर लेना चाहिए, वह हत्या स्पष्ट हो चुका है कि सब कुछ उसी ने किया है। ऐसा उसने क्यों किया, यह उसे उगलना ही होगा।"
विभा चुप रही, कदाचित बड़ी गहराई से वह कुछ सोच रही थी ।
"क्या सोच रही हो?" मैंने अधीरतापूर्वक पूछा ।
"मेरे ख्याल से यदि उसे फौरन गिरफ्तार करने के स्थान पर हम एक नाटक करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।"
"कैसा नाटक ?"
"हमें यहां से इस तरह निकल जाना चाहिए जैसे कभी आए हीं नहीं थे।" विभा ने कहा- "यानि हमें यहां से अपने आगमन का हर सूत्र मिटाकर चले जाना है, उसके बाद इंस्पेक्टर को यहां भेजना है।"
"उससे लाभ ?"
"तुम्हारे सोचने में अवगुण ये हैं कि तुम हल्का-सा सूत्र मिलते ही एकदम से किसी निर्णय पर पहुंच जाते हो, जबकि मैं खूब सोच-स -समझकर, हालातों और सुबूतों को हर कसौटी पर खरा उतरकर ही निर्णय निकालना चाहती हूं।"
"तुम्हारी थ्यौरी क्या है?"
"माना कि हत्यारा त्रिवेदी नहीं, कोई अन्य है, वह त्रिवेदी को फंसाना चाहता है। फ्लैट से त्रिवेदी के जाने और हमारे आने के बीच काफी समय रहा है, उसे समय में वह सुधा पटेल और रायतादान को यहां पहुंचा गया । हत्यारे की कठपुतली बनी सुधा पटेल हत्यारा त्रिवेदी को कह रही है।"
“हत्यारे ने उसकी जीभ और उंगलियां काट डालीं, क्या सुधा पटेल अब भी कोई बयान उसके संकेत पद दे सकती है? नहीं, मैं नहीं मान सकता, इतना सब कुछ खोने के बाद सुधा हत्यारे के इशारे पर झूठा बयान नहीं दे सकती।
"एक मां तो दे सकती है।
मैं हक्का-बक्का रह गया, एकदम से कुछ कहते ने बन पड़ा। गड़बड़ाकर बोला- "क्या मतलब?"
"याद रखने वाली बात है वेद, सुधा पटेल का एक बेटा भी है, सचिन, और यह पता नहीं चल पा रहा कि वह कहां, है, माना कि वह त्यारे की गिरफ्त में है। अपना सब कुछ लुटाने के बावजूद भी सुधा सचिन को बचाने के लिए यह सब कुछ कर रही हो सकती है।"
मैं लाजवाब- सा हो गया, फिर भी बोला- "इसका मतलब तुम इंस्पेक्टर त्रिवेदी को मुजरिम नहीं मानती, यह मानती हो कि असल मुजरिम खुद को बचाने के लिए उसे चारे के रूप में पेश कर रहा है ?"
"क्यों नही हो सकता ?"
"त्रिवेदी का दीनदयाल के संबंधो को छुपाना और उसक द्वारा सोनी से की गई बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है?"
"उसकी कोई दूसरी वजह भी हो सकती है, तुम फिर गलत सोच रहे हो। मैं न तो यही दावा पेश कर रही हूं कि त्रिवेदी हत्यारा है और न ही ये कि नहीं है। दोनों ही बातें हो सकती हैं और जो नाटक मैं करने के लिए कह रही हूं, उससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।"
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