कमरे की चटकनी अंदर से लगाकर मैं अभी घूमा ही था कि मधु ने पूछा- "कहिन जनाब, कौन हैं ये विभा देवी ?"
"क... कौन हैं क्या मतलब ?" मैं थोड़ा बौखलाया- "तुम्हें परिचय दिया तो था, वह एल. एल. बी. में मेरे साथ पढ़ी है !"
"पढ़े तो और भी बहुत से स्टुडेंट्स होंगे। "चंचल मुस्कराहट के साथ मधु ने मुझे गहरी दृष्टि से देखते हुए कहा- "लेकिन वह विभा देवी मुझे कुछ विशेष ही आपके साथ पढ़ी हुई नजर आई। जी उठीं जैसे किसी गरीब को खजाना मिल गया हो ।”
" ऐसे मत करो मधु !" मैं गंभीर हो गया - "विभा के बारे में ऐसा सोचना भी पाप है !"
मधु का चंचल स्वर- "कैसा सोचना ?"
"वैसा ही, जैसा तुम सोच रही हो ।”
"कैसा सोच रही हूं मैं ?"
"शायद यही कि जब वह मेरे साथ पढ़ती थी तो मुझसे कुछ प्यार - व्यार करती थी !"
"क्यों नहीं हो सकता, उम्र ही ऐसी होती है। स्टुडेंट लाईफ में अक्सर यह रोग लग ही जाता है।” मधु मुझे छेड़ रही थी, जबकि मैं पूरी तरह गंभीर था, बोला- "ये माना मधु कि स्टुडेंट लाईफ में अक्सर प्यार हो जाता है, लेकिन सच मानो, वह सब लड़कियों से अलग थी। बहुत ही ब्रिलियेट। समझदार और सुलझे हुए, पैने दिमाग की मालिक !"
"आप तो बड़ी तारीफ कर रहे है उसकी ?"
"मधु, सचमुच विभा है ही तारीफ के काबिल । अभी तुम उसके बारे में कुछ नहीं जानतीं, कुछ ही देर की मुलाकात है न, मेरे साथ वह तीन साल पढ़ी है। उसका दिमाग बहुत तेज है। बहुत ही पैना। सिर्फ मैं या दूसरे सब स्टुडेंट्स ही नहीं, बल्कि एल. एल. बी. के हमारे प्रोफेसर भी विभा के दिमाग का लोहा मानते थे । वह अपनी सुंदरता से हजार गुना ज्यादा बुद्धिमान है। सैकिंड ईयर में एक दिन अचानक ही होस्टल के कमरे में हमारे एक साथी स्टुडेंट की लाश पाई गई। सभी चौंक पड़े थे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हत्या कब, किसने और क्यों की ? केस जब पुलिस के बस का न रहा तो प्रशासन ने केन्द्रीय खुफिया विभाग को सौंप दिया। खुफिया विभाग के जासूसों से पहले ही अत्यन्त जटिल केस को विभा ने अपनी बुद्धि और तफ्तीश से हल करके सबको चकित कर दिया था ।"
मैं उसके दिमाग की नहीं जनाब, सुंदरता की बात कर रही हूं।"
"स... सच मधु, प्यार - व्यार की तरफ उसका कोई ध्यान नहीं था ।"
"अरे, आप तो सीरियस हैं !" हल्के से चौंककर इस बार मधु भी गंभीर हो गई- "कमाल कर रहे हैं आप भी । क्या मैं आपको नहीं जानती हूं !"
"क्या मतलब ?"
"मैं तो मजाक कर रही थी, आप शायद सचमुच यह समझे कि मैं आपके और विभा के संबंधों पर शक कर रही हूँ।"
"ऐसा नहीं है मधु, मैं जानता हूं कि मेरे बारे में कम से कम तुम ऐसा कभी नहीं सोच सकतीं !”
"फिर आज अचानक ही इतने सीरियल कैसे हो गए ?"
"दरअसल तुम्हारा यह सोचना ठीक ही था कि स्टुडेंट लाईफ में युवक-युवतियां अक्सर बहक जाया करते हैं, बात तुमने बिल्कुल उल्टी कही थी। दरअसल विभा कभी नहीं बहकी, उसे लेकर अक्सर लड़के ही बहक जाया करते थे। उन बहकने वाले लड़कों में मैं भी शामिल था।"
"क्या मतलब ?" मधु चौंकी !
" मैं तुम्हें आज अपनी जिंदगी की किताब के कुछ ऐसे पृष्ठ पढ़ाना चाहता हूं जिन्हें तुमने कभी नहीं पढ़ा था, यूं समझो कि जिन्हें मैं खुद भूल चुका था।"
"आपके साथ फेरे ही आपकी जिंदगी की किताब पढ़ने के लिए लिए है । "
"तो सुनो !" मैं एक लंबी सांस लेने के बाद शुरू हो गया "एल. एल. बी. में हम तीन साल साथ-साथ पढ़े | मैं भी होस्टल में रहता था और विभा भी। हमारे अन्य सहपाठी भी । एल. एल. बी. पढ़ाई ही दिमाग की है और दिमाग में हम सब में तेज विभा थी। मैं मध्यम श्रेणी के दिमाग वाले विद्यार्थियों में से तो क्या उस जमाने में पूरे कॉलेज में विभा से सुंदर लड़की नहीं थी । अनेक मनचले और रोमांटिक मिजाज के लड़के विभा का सामीप्य पाने के लिए बहाने ढूंढ़ा करते थे। लेकिन विभा का ध्यान कभी इस तरफ रहा ही नहीं। उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई में ही था । मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि फर्स्ट ईयर से ही वह मुझे अच्छी लगती थी। उसका ख्याल आते ही मेरे मन में मीठा-मीठा दर्द होने लगात था। उसके सामने पहुंचते ही दिल बड़ी जोर से धड़कने लगता था । मेरा मन उससे बातें करने, उसे देखते रहने के लिए किया करता था। उसके ख्यालों में गुम होकर मैं रात-रात-भर जागता रहता । उसे देखने के क्षण से ही मैं उसकी तरफ आकर्षित होने लगा था और यह आकर्षण समय के साथ बढ़ता ही चला गया । संयोग से जिस किसी दिन वह मुझ नहीं दिखती तो मन बेचैन, सब कुछ खाली-खाली-र - सा महसूस देता। ऐसा लगता जैसे कि वह दिन बिल्कुल बेकार गुजरा। संक्षेप में आज भी मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि मैं उससे प्यार करने लगा था। परंतु मैंने कभी दूसरे लड़कों की तरह उससे कभी कुछ कहा नहीं, बातें करने का बहाना तक तलाश नहीं किया। यहां तक कि फर्स्ट ईयर में मेरी विभा से कभी कोई बात नहीं हुई। मेरा प्यार पूर्णतया एक तरफा और मूक था। पूरी तरह खामोश हां, दूसरे की तरह मैं भी उसके दिमाग का लोहा मानने लगा था। उन दिनों विभा अत्यंत ही सादगी थी। चेहरे पर पूर्ण गंभीरता लिए । वह पूरी यूनिवर्सिटी में प्रथम आई, जबकि मैं केवल सेकिंड क्लास मार्क्स ही प्राप्त कर सका। दिमाग और पढ़ाई के मामले में मैं उसके सामने कहीं भी नही ठहरता था । खैर, हम सैकिंड ईयर में प्रवेश कर गए। इस साल वह मेरी दोस्त बन गई। हम कैंटीन और मैस एक साथ अटैंड करने लगे। वह मुझसे खुलकर दोस्तों जैसा व्यवहार करती थी। उस सारे साल में प्रत्येक रात को दृढ़ निश्यच करता रहा कि कल विभा से अपने मन की बात कह दूंगा। परंतु दिन में सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती । विभा की गंभीरता, उसकी निश्छल और स्वच्छ बातें मुझे कुछ कहने ही नहीं देतीं। साहस टूट जाता। हर दिन यही हुआ, कई बार यह सोचकर कि मैं जुबान से कुछ नहीं कह पा रहा हूं तो पत्र लिखे, मगर दे न सका। पत्र दो-चार दिन जेब में पड़ा रहता, फिर उसे फाड़कर नया लिख लेता। सारे साल मैं यूं ही पत्र लिखता रहा और फाड़ता रहा। उन दिनों मेरे लिखे उपन्यास भी प्रकाशित होने लगे थे, मगर मेरे नहीं, किसी अन्य के नाम से। विभा ने पुनः यूनिवर्सिटी टॉप की। इस बार मेरे फर्स्ट क्लास के मार्क्स थे। शायद उसी के साथ रहने के कारण। हम तीसरे साल में प्रविष्ट हो गए। वह
सारा साल भी यूं ही निकल गया, मैं कभी अपनी प्यार को जुंबा पर भी नहीं ला सका। न ही अन्य किसी माध्यम से विभा को अपने दिल की बात सका। हमारे पेपर शुरू हो गए और अंतिम पेपर छूटने के बाद।"
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