वीणा के जाने के बाद कमरे में पुनः हम तीनों ही शेष रह गए, काफी देर तक ब्लेड की धार जैसी पैनी खामोशी छाई रही। मैं कभी मधु की तरफ देख रहा था कभी विभा की तरफ । मधु के चेहरे पर मेरे ही जैसे भाव थे, जबकि विभा पूर्णतयाः विचार मग्न - सी आ रही थी, एकाएक मैंने पूछा- "क्या सोच रही हो विभा ?"
"वीणा के बयान के बारे में ! बड़ा ही महत्वपूर्ण बयान है।" विभा ने कहा- "सारा मामला बड़ा ही जटिल - सा बनता जा रहा है। हर अगले कदम पर उलझनें कुछ बढ़ ही जी हैं और कोई-न-कोई ऐसा रहस्योद्घाटन होता है जिसकी वजह से हमें अपने सोचने का रास्ता बदलना पड़ता है, वैसे तुमने भी तो वीणा की पूरी रिपोर्ट सुनी है वेद, सुनने के बाद तुम किस ढंग से सोच रहे हो ?"
"अगर इंस्पेक्टर त्रिवेदी हत्यारा साबित नहीं होता है तो संदिग्ध जरूर नजर आता है।"
"क्यों ?"
“कई सवाल उठते हैं, पहले तो दोनों की लिस्टों में त्रिवेदी के नाम की मौजूदगी ही उसे संदिग्ध बनाती है, दूसरे वह अपने और दीनदयाल के संबंधों को गुप्त रखता है। दीनदयाल को यह नहीं मालूम है कि त्रिवेदी के संबंध सोनी से हैं और सोनी को उसने दीनदयाल से अपने संबंध होने की बात स्पष्ट नहीं की। क्यों ? महेन्द्रपाल सोनी के दिमाग में भी वही बात आती है, जो तुम्हारे दिमाग में आई थी, यानि हत्यारा कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो उससे और दीनदयाल से बराबर का परिचित हो। अपनी इस शंका को वह त्रिवेदी के सामने उगल देता है, सुनने के बाद त्रिवेदी उसे बड़ी अजीब-सी एक नई कहानी में उलझा देता है। झूठी किंतु दमदार दलीलों से वह अपनी कहानी को सोनी के दिमाग में बैठा देता है, मैं उस कहानी को त्रिवेदी की बौखलाहट ही कहूंगा।"
"किस रूप में ?"
"उसे डर हुआ कि यदि सोनी ने दीनदयाल से वे बातें कीं, जो करने के लिए कह रहा है तो दोनों के परिचित के रूप में उसका नाम सामने आ सकता है। उसी खतरे से बचने के लिए उसने सोनी का दिमाग उधर से हटा दिया। उस बारे में कोई बात न करने की हिदायत दी । इस तरह उसने खुद को सुरक्षित करने की कोशिश की है विभा, त्रिवेदी अत्यंत ही रहस्यमय और चालाक नजर आ रहा है । "
"मुझे खुशी हुई वेद, कि तुम्हारे सोचने का ढंग काफी पैना होता जा रहा है" विभा ने कहा- "खैर, तुम्हारी राय में अब आगे बढ़ने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?"
"मेरे ख्याल से तो हमें त्रिवेदी से बात करनी चाहिए।"
“अभी नहीं, उस पर हाथ डालने से पहले मैं कुछ और ठोस सुबूत जुटाना उचित समझती हूं।"
"किस तरह के सुबूत और कैसे ?"
जवाब देने के स्थान पर विभा ने रिसीवर उठाकर नंबर डायल किए। संबंध स्थापित होने पर उसने अपना परिचय देने के बाद पूछा- "क्या इंस्पेक्टर त्रिवेदी थाने में हैं ?"
"जी नहीं, वे घर जा चुके हैं।"
"हमें उनके घर का नंबर दीजिए" कहने के साथ ही विभा ने कलमदान से एक 'बॉल पैंसिल' उठा ली और अगले ही पल वह एक कागज पर दूसरी तरफ से बताया जाने वाला नंबर लिख रही थी।
संबंध–विच्छेद करने के बाद उसने वही नंबर डायल किया, दूसरी तरफ से रिसीवर उठने पर उसने अपना परिचय दिया, दूसरी तरफ से तुरंत ही चौंका हुआ स्वर - "ओह, बहूरानी । कहिए, मैं इंस्पेक्टर त्रिवेदी बोल रहा हूँ।"
"हम तुम्हें कष्ट देना चाहते हैं इंस्पेक्टर ।”
“आप कैसी बात कर रही हैं बहूरानी, हुक्म कीजिए । "
"हमारी इच्छा है कि तुम इसी समय से दीनदयाल की निगरानी शुरू कर दो । "
“जो आज्ञा बहूरानी, लेकिन, लेकिन मैं कुछ समझा नहीं। क्या आपको दीनदयाल पर कोई शक है ?"
"हां।"
"क्या मैं जान सकता हूं बहूरानी कि आप उस पर क्यों और क्या शक कर रही हो ?”
“फिलहाल तो इतना ही बता सकते हैं कि हमारे हाथ कुछ ऐसे सुबूत लगे हैं जो ये संकेत करते हैं कि इस केस का असल हत्यारा दीनदयाल ही है, हम समझते हैं कि उसका फ्लैट किसी अन्य ने नहीं, बल्कि खुद उसी ने इकबाल उर्फ जागा से इस्तुमाल कराया था और अब उसने खुद को संदेह के दायरे से दूर रखने के लिए महेन्द्र पाल सोनी का फ्लैट इस्तेमाल किया है, उसकी मंशा हमें धोखा देने की लगती है।"
“व... वैरी गुड, मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था बहूरानी लेकिन...।”
"लेकिन क्या ?”
"क्या मैं उन सुबूतों के बारे में जान सकता हूं ?"
“अभी नहीं, तुम्हारी रिपोर्ट के बाद ही मैं इस बारे में कोई स्पष्ट धारण बना सकूंगी । तुम इसी वक्त उसकी निगरानी के लिए निकल जाओ विस्तारपूर्वक बातें बाद में होंगी।" कहने के बाद विभा ने संबंध विच्छेद कर दिया। मैं और मधु हैरत में डूबे उसकी ओर देख रहे थे। उसके रिसवीर रखते ही मैं बोला- "मैं कुछ समझा नहीं विभा ?"
"क्या नहीं समझे ?"
"क्या तुम भी सचमुच दीनदयाल को ही मुजरिम मानती हो ?"
"यह फोन केवल त्रिवेदी को उसके फ्लैट से हटाने और व्यसत कर देने के लिए किया गया है । "
"इससे लाभ ?"
"हमें त्रिवेदी के फ्लैट की तलाशी लेनी है । "
थोड़े से विचार विमर्श के बाद अब हम त्रिवेदी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए उठने ही वाले थे कि एक सेवक ने आकर सूचना दी कि कोई व्यक्ति विभा से मिलने आया है, विभा ने पूछा- "अपना क्या नाम बताया उन्होंने?"
"महेन्द्र पाल सोनी।"
नाम सुनकर जैसा झटका मुझे और मधु को लगा वैसा ही विभा को भी, एक नजर विभा ने मेरी तरफ देखा । अंदाजा ऐसा था जैसे पूछ रही हो कि इस वक्त महेन्द्र पाल सोनी यहां क्यों आया है, हम क्या जवाब देते । हमारी आंखों में खुद वही प्रश्न था, जिसका आशय समझकर विभा ने सेवक से उसे भेज देने के लिए कहा।
सेवक चला गया ।
कुछ देर बार महेन्द्र पाल सोनी कमरे के अंदर प्रविष्ट हुआ। उसे देखते ही हम बुरी तरह चौंक पड़े, दरअसल इस वक्त उसकी अवस्था ही ऐसी थी कि विभा के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा- "अरे ये क्या हुआ सोनी?”
"ब.... बहूरानी !" वह एकदम रो पड़ा और अधीर-सा होकर विभा की मेज की तरफ बढ़ता बोला- "मुझे बचा लो बहूरानी, मैं आपकी कसम खाकर कहता हूं मैंने कुछ नहीं किया है। मैं बिल्कुल बिल्कुल निर्दोष हूं। मेरे पास कोई हेयर पिन नहीं है। वह मुझे बिरजू कहता है। मैं बिरजू नहीं हूं बहूरानी, मेरा नाम महेन्द्र सोनी है। मैं आपके पैर पड़ता हूं। आप ही मुझे बचा सकती हैं।" कहने के साथ वह रोता हुआ सचमुच मेज के इस तरफ से नीचे बैठकर विभा के पैरों में गिर पड़ा।
इतना सब कुछ वह ऐसी अवस्था में और इतनी जल्दी-जल्दी कह गया कि हममें से किसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया था, पहले तो उसकी अवस्था ही ऐसी थी, जिसे देखकर हम चौंक पड़े, दूसरे, जिस अंदाज में जो बातें उसने कहीं थीं, हमें उन्होंने चकराकर रख दिया, उसकी सारी बातें ही ऐसी थी, जिनमें से किसी का भी अर्थ कम-से-कम मेरी समझ में तो आया नहीं था। मैं अब भी उसे मेज के नीचे विभा के पैरों में पड़ा देख रहा था। उसके तन पर मौजूद कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे, उन्हीं स्थानों पर छोटे-छोटे जख्म भी थे। चेहरे पर कई जगह नील पड़े थे। दायां गाल और बाईं आंख के पास का हिस्सा फूल कर कुप्पा हो गया था |
अपने शब्दों को दोहराता हुआ वह बुरी तरह रोए चला जा रहा था।
- विभा अपनी कुर्सी से उठी, मेज की दाईं तरफ से घूमकर उसके समीप आई, बोली- "उठो मिस्टर सोनी। और खुद को नियंत्रित करो। तब आराम से बताओ कि बात क्या है?”
सुबकता हुआ सोनी उठा।
विभा ने उसे एक कुर्सी पर बैठाया, थोड़ी देर बाद सामान्य हुआ तो विभा ने पूछा- "अब बताओ तुम्हारी ये हालत किसने बनाई, कौन कहता है कि तुमने कुछ किया है या तुम बिरजू हो?”
"उसने अपना नाम जिंगारू बताया था।"
विभा ने बुरा-सा मुंह बनाया, बोली- "यह नाम नकली है । अपराधी प्रवृत्ति के लोग किसी स्टंट फिल्म या जासूसी उपन्यास के रहस्यमय पात्र से प्रभावित होकर अपना वास्तविक परिचय छुपाने के लिए ऐसा नाम रख लेते हैं, खुद को अनावश्यक रूप से रहस्यमय और खतरनाक दर्शाने के लिए।”
“मैं उस वक्त अपने कमरे में पलंग पर लेटा कल की अद्भुत घटना के बारे में सोच रहा था कि किसी ने आहिस्ता से बंद दरवाजे पर दस्तक दी, पलंग से उठकर मैंने दरवाजा खोल दिया, परंतु आगंतुक को देखते ही चौंक पड़ा। वह मेरे लिए नितांत अपरिचित था बहूरानी, उसने मिलिट्री वाले कपड़े के जूते, खाकी रंग की गर्म पतलून, घुटनों तक की लंबाई वाला काई रंग का ओवर कोट पहन रखा था। उसके सिर पर काले रंग की चिडिया के पंखों वाली टोपी थी, गले में मफलर और आंखों पर गहरे काले लैंसो का चश्मा पहने था वह।"।
"उसकी लंबाई क्या रही होगी ?"
"पांच फुट छह या सात इंच के करीब, वह बहुत स्वस्थ था बहूरानी, बेहद ताकतवर ।"
“खैर, फिर क्या हुआ ?"
"पहनावे ही से वह मुझे बहुत अजीब-सा लगा था, अतः मैंने पूछा- आप कौन हैं, किससे मिलना चाहते हो ?”
जवाब में जिंगारू ने कहा- 'क्या आप मेहमानों से दरवाजे पर खड़े-खड़े ही बातें करते हैं ?'
मैंने शिष्टाचार के नाते एक तरफ हटकर उसे अंदर आने को रास्ता दिया। कमरे के अंदर पहला कदम रखते ही वह मुझ पर किसी चीते की तरह झपट पड़ा । अनायास ही मेरा मुंह चीख पड़ने के लिए खुला, किंतु चीख की आवाज होठों से बाहर नहीं निकल सकी, क्योंकि उसका मजबूत हाथ बहुत पहले ही मेरे मुंह पर कुकर का ढक्कन' बनकर चिपक चुका था, मैं घबराया और हड़बड़ाया-सा उसकी गिरफ्त में मचलकर रह गया। वह बहुत ही ताकतवर था, बहुत ही ज्यादा । उसके हाथ फौलाद के बने मालूम देते थे, अपनी भरपूर चेष्टा के बावजूद मैं उसके चंगुल से निकल नहीं पा रहा था । अचानक ही मुंह से किसी भेड़िए की-सी गुर्राहट निकली। "रूक जा, अगर हाथ-पैर चलाए तो हड्डी- पसली तोड़ कर जेब में रख दूंगा ।"
आवाज इतनी ज्यादा सर्द, कड़क और खतरनाक थी कि मेरे सारे जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई, मानो किसी ने जिस्म के किसी हिस्से पर करंटयुक्त नंगे तार छुआ दिए हों । फिर खुद-ब-खूद मैंने उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश छोड़ दी, अगले ही पल मैंने अपनी पीठ पर रिवॉल्वर की नाल का ठंडा स्पर्श महसूस किया ।
मेरा पोर-पोर कांप उठा।
'मैं तेरे मुंह से हाथ हटा रहा हूं, लेकिन याद रख, अगर तूने जोर से बोलने की कोशिश की तो ये रिवॉल्वर तुझसे कहीं ज्यादा जोर से चीखेगा और तेरी बोलने की शक्ति हमेशा के लिए छीन लेगा ।” मरता क्या न करता ?
वही हुआ जो उसने चाहा, पहले उसने दरवाजा बंद करके अंदर से वोल्ट किया। मैं खड़ा कांप रहा था, रिवॉल्वर मेरे सीने पर रखकर गुर्राया - नाम बदलने से इंसान नहीं बदल जाता ।'
'क... . क्या मतलब ?' मैंने बड़ी मुश्किल से पूछा ।
'तेरा नाम बिरजू है।'
'ब...बिरजू। न...नहीं तो !' मैं जल्दी से बोला- 'मेरा नाम महेन्द्र पाल सोनी है। आप किसी से भी पूछ सकते हैं। मैं यहां सर्विस करने से पहले महानगर में रहता था ।'
'तू सारी दुनिया को धोखा दे सकता है बिरजू, लेकिन जिंगारू को नहीं ।'
'ज... जिंगारू कौन ?"
'मेरा नाम है हरामजादे ।'
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