लौटते वक्त सावरकर भी हमारे साथ ही था, सारी बातें स्पष्ट होने के बाद रेवतीशरण के चेहरे पर जीवन के चिन्ह उभरे थे, विनोद चड्ढा को विभा ने ड्यूटी से मुक्त कर दिया था। अब शायद उसने रेवतीशरण की निगरानी या सुरक्षा किए जाने की आवश्यकता नहीं समझी थी ।


अचानक ही मेरी सारी थ्यौरी, अनुमानों का वह महल जिसे मैं बहुत ही पुख्ता समझ रहा था, सूखे रेत के घरौंदे की तरह टूटकर बिखर गया था और यह लिखने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि इसी वजह से मैं निराश-सा हो गया था, अनुप के चेहरे का फेसमास्क मेरे हाथ में था और लगातार उसे उलट-पुलट कर देख रहा था, उससे सम्बंधित बहुत से प्रश्न मेरे दिमाग में चकरा रहे थे। ।


एकाएक ही मेरी मनः स्थिति भांपकर विभा ने पूछा- "क्या सोच रहे हो वेद ?"


"मैं इस फेसमास्क को देखकर हैरत में हूं।"


"तुम, और इस मास्क को देखकर हैरत में ?" विभा ने आश्चर्य - सा व्यक्त किया- "तुम तो लगभग अपने हर उपन्यास में फेसमास्कों का जिक्र करते रहते हो, कभी विकास, विजय बन जाता है, कभी विजय विकास। ऐसे ही फेसमास्कों का जिक्र करके तुम कभी अलफांसे को कुछ और बना देते हो, कभी किसी अन्य को अलफांसे । फिर भला तुम्हें इस फेसमास्क ने किस किस्म की हैरत में डाल दिया ?"


"ओफ्फो, तुम उपन्यास की बातें मत किया करो विभा, कितनी बार कहा है कि वह सब कुछ वास्तविक नहीं, बल्कि सिर्फ कल्पना होती है। केवल मनोरंजन के लिए लिखा गया ख्याली कथानक लिखते समय मैं खुद भी जानता हूं कि वास्तव में मैं कई चीजें ऐसी लिख रहा हूं, जो बिल्कुल असंभव हैं, उन्हीं में से एक फेसमास्कों का जिक्र भी है। मैं उसे आज तक अपनी कल्पना ही समझता रहा था, किन्तु ये फेसमास्क । हू-ब-हू अनूप का मास्क है, इसे देखकर लगता है कि मैं गलत नहीं लिखता रहा हूं।"


"तुम गलत भी लिखते रहे हो और ठीक भी।"


"ये तुम्हारी बहुत गंदी आदत है विभा, फिर वही बात दुहरी बात !”


हल्की-सी मुस्कान के साथ विभा ने कहा- "मैं कोई दुहरी बात नहीं कर रही हूं वेद, दरअसल ये फेसमास्क इस सच्चाई का जीता-जागता प्रमाण है कि हमारे देश में अभी भी ऐसे अनेक कलाकार पड़े हैं, जो कि किसी भी व्यक्ति के चेहरे का फेसमास्क बना सकते हैं, जब तक देश में ऐसे कलाकार हैं तब तक किसी भी कथानक में मास्क के जिक्र को गलत नहीं कहा जा सकता। हां, गलत तब होता है जब तुम जैसे लेखक ऐसे प्वाईंट को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हो, अतिशयोक्ति कर देते हों । मास्क होते तो हैं, परंतु उनसे साधारण लोग ही धोखा खा सकते हैं, बुद्धिमान नहीं, और तुम मास्क से अपने विजय, विकास तथा अलफांसे जैसे करेक्टरों को धोखे में फंसा देते हो ।”


"जब मास्क होते हैं तो बुद्धिमान भी धोखा क्यों नहीं खा सकते ?”


"जिस व्यक्ति ने मास्क पहना होता है उसकी केवल आंखें ही आंखें चमक रही होती हैं, अतः किसी भी घटना या दुर्घटना का प्रभाव हमें उसकी आंखों में तो दीखता है, बाकी चेहरे पर नहीं। बस, हमें समझ जाना चाहिए कि बाकी चेहरा नकली है, यदि असली होता तो भाव सम्पूर्ण चेहरे पर उभरते । गर्मी लगने या किसी उत्तेजक घटना पर किसी के भी वास्तविक चेहरे पर पसीना उभर जाएगा, मास्क पर नहीं उभर सकता । वह सपाट रहेगा, ज्यों-का-त्यों । क्या यह साधारण-सी बात हमें नहीं बता देगी कि सामने खड़े व्यक्ति के चेहरे पर मास्क है ?"


"ओह !" मेरे मुंह से निकला ।" मास्क लगाए व्यक्ति को पहचानना कितना असान है ?”


"जब बैठक का दरवाजा टूटने पर मैंने अनूप को देखा तो पाया कि रेवतीशरण से संघर्ष करने के बावजूद भी चेहरे पर पसीने की एक बूंद तक नहीं थी, मैं समझ गई कि चेहरा वास्तविक नहीं, बल्कि मास्क है। उसके बाद आंखों और जिस्म की बनावट ने मुझे बता दिया कि वे सावरकर अंकल हैं।"


“आपके पास बुद्धि, पैनी दृष्टि और ज्ञान भंडार है बहूरानी।" अनायास ही सावरकर कह उठा- "मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि इतनी सरलता से पहचान लिया जाऊंगा।”


इसके बाद कार में खामोशी छा गई। कुछ देर बाद जब हम 'मंदिर' पहुंचे तो वहां श्रीकान्त और वीणा हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। सावरकर को विदा कर दिया गया। ऑफिस जैसे कमरे में श्रीकान्त और वीणा की रिपोर्ट ली गई, उन दोनों ने ही अपने-अपने शिकार से मिलने वालों की लिस्ट बना रखी थी।


वीणा और श्रीकान्त की रिपोर्ट तथा लिस्टों से जहां यह रहस्योद्घाटन होता था कि महेन्द्र पाल सोनी और दीनदयाल अच्छे दोस्त है, वहीं इन दोनों से मिलने वालों में एक व्यक्ति का नाम कॉमन था ।


दोनों ही लिस्टों में इंस्पेक्टर त्रिवेदी का नाम था ।


वह नाम था । इंस्पेक्टर आर. एन. त्रिवेदी ।


इस नाम को पढ़ते ही हमारे विभा भी चौंक पड़ी। वीणा महेन्द्र पाल सोनी से मिलने वालों की तथा श्रीकान्त ने दीनदयाल से मिलने वालों की लिस्ट बना रखी थी ।


दोनों ही लिस्टों के सामने त्रिवेदी का चेहरा घूम गया ।


काफी देर तक विभा भी खामोश रहकर जाने क्या सोचती रही, मेरे ख्याल से उस वक्त वह भी त्रिवेदी के बारे में ही सोच रही थी, दोनों लिस्टों में नाम होने की वजह से इंस्पेक्टर अचानक ही संदिग्ध नजर आने लगा था। जाने क्या सोचकर विभा ने वीणा को बाहर जाकर हॉल में बैठने की आज्ञा दी ।


वीणा के जाने के बाद विभा ने श्रीकान्त से पूछा- "इंस्पेक्टर त्रिवेदी दीनदयाल से कब मिला था ?"


"कल रात ।"


"इन्जवॉय होटल के बार रूम में ।" श्रीकान्त ने बताया- "साढ़े आठ के करीब दीनदयाल अपना 'स्टोर' बंद करके फ्लैट पर पहुंचा, जल्दी में नजर आ रहा था। जैसे किसी को मिलने का समय दिया हो । नौ बजे करीब वह तरोताजा होकर कपड़े बदलकर फ्लैट से बाहर निकला और इन्जवॉय होटल के बाररूम में पहुंचा, वहां त्रिवेदी बैठा पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । "


"त्रिवेदी उस वक्त यूनिफार्म में था या ?”


“जी, सिविल में।"


“खैर, उसके बाद क्या हुआ । यानि वे किस ढंग से मिले ?”


"मिलने का अंदाजा ऐसा था जैसे अच्छे दोस्त काफी दिन बाद मिले हों।" श्रीकान्त ने बताया- "हाथ मिलाते । ही त्रिवेदी ने दीनदयाल से देर से आने की शिकायत की, दीनदयाल ने औपचारिक क्षमा मांगीं। उसके बाद वे 

बैठकर व्हिस्की पीने लगे, मुझे भी उनके समीप वाली ही एक सीट पर बैठकर बीयन पीनी पड़ी।"


"क्या तुमने उनके बीच होने वाली बातें सुनी ?"


"नहीं, मैंने काफी कोशिश की थी, परंतु सफल न हो सका क्योंकि उन्होंने जो भी बातें की थी, बहुत ही धीमे स्वर में, उनमें से किसी की भी आवाज उनके बीच पड़ी मेज को पार नहीं कर रही थी ।"


"वे कितनी देर तक साथ रहे?"


"करीब एक घंटे तक, सवा दस बजे के करीब वे विदा हो गए । "


"ठीक है, तुम जा सकते हो । "


श्रीकान्त श्रद्धापूर्वक अभिवादन करके चला गया, कुछ ही देर बाद वीणा कमरे में प्रविष्ट हुई, विभा के पहले सवाल के जवाब में वह बोली- "आज सुबह उस वक्त करीब आठ बजे थे जब इंस्पेक्टर त्रिवेदी महेन्द्र सोनी से मिलने उसके फ्लैट पर आया, उस वक्त त्रिवेदी ने सादे कपड़े पहन रखे थे। वे अच्छे दोस्तों की तरह मिले थे।"


“क्या तुमने उनकी बातें सुनीं ?”


"जी हां, बंद खिड़की से कान लगाकर ।"


"गुड, उन्होंने क्या बातें की ?"


"मिलते ही त्रिवेदी ने कहा कि उसे अफसोस और आश्चर्य है, सोनी ने पूछा कि किस बात पर । जवाब में त्रिवेदी ने कहा- उसे पता लगा है कि कल रात पुलिस को इस फ्लैट से एक लाश मिली है । "


"ओह, हां, मैं तो घबरा ही गया था त्रिवेदी ।" महेन्द्र पाल सोनी बोला- "पता नहीं कम्बख्त हत्यारे को लाश रखने के लिए मेरा ही फ्लैट क्यों मिला, मुझसे ही उसे क्या दुश्मनी थी ।"


"किसी न किसी का फ्लैट तो उसे चुनना था ।"


"जिन्दल पुरम् में हजारों फ्लैट हैं, क्या उसे मेरा ही फ्लैट मिला था ?"


हंसते हुए त्रिवेदी ने कहा- "दूसरों का फ्लैट इस्तेमाल करने के लिए उसे समय और सहूलियत चाहिए, वह और सहूलियत उसे तुम्हारे फ्लैट से मिल गई । वह जानता होगा कि आज तुम दोस्तों के साथ पीने में व्यस्त हो ।"


"हां, मगर बात कुछ समझ में नहीं आई त्रिवेदी । हत्यारे ने पहले दीनदयाल का फ्लैट इस्तेमाल किया और फिर मेरा, इस मामले में मुझे दीनदयाल से मिलना पड़ेगा ।"


"क्या तुम उसे जानते हो ?"


"तुम उसे मेरा दोस्त भी कह सकते हो।"


"वह भला तुम्हारा दोस्त कब से और कैसे बन गया ?"


“तुम तो जानते ही हो यार कि मैं 'डाईबिटीज' का पुराना मरीज हूं। नियमपूर्वक दवाएं चल रही हैं। उसका स्टोर फैक्ट्री के रास्ते में पड़ता है। सो, उससे दवांए ले लिया करता हूं। कुछ दिन तक हमारा संबंध सिर्फ ग्राहक और दुकानदार वाला ही रहा, लेकिन फिर दोस्त बन गए । कभी-कभी उसकी दुकान में बैठ जाया करता हूं।"


"ओह, वैसे मैं तुम्हें एक राय दूं सोनी ?"


"बोलो।"


"तुम दीनदयाल के स्टोर से दवांए न लिया करो।”


"क्यों ?"


“बस, नहीं पूछो तो ज्यादा अच्छा है।”


"लेकिन क्यों भाई, आखिर पता तो लगे ?"


"त्रिवेदी ने कहा- "वह आदमी मुझे कुछ जंचा नहीं।"


"क्या तुम भी उसे जानते हो ?"


"पहले नहीं जानता था, उस रात जाना जिस रात हवालात में उसे बंद रखा ।"


"तुम्हें वह जंचा क्यों नहं ?"


"हालांकि पुलिस को उसके खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला है और इसीलिए सुबह होते ही उसे छोड़ दिया गया, परंतु जाने क्यों मुझे बार-बार लग रहा था कि मुजरिम वही है और तुम्हारे यह कहने से कि वह तुम्हारा दोस्त है, उस पर मेरा शक और बढ़ गया है । "


"वह क्यों ?"


"जरा सोचो, ऐसे काम के लिए किसी का फ्लैट कौन इस्तेमाल कर सकता है, कोई परिचित ही न ?”


"रात भर सोचने के बाद इसी निष्कर्ष पर तो मैं भी पहुंचा था ।"


सोनी ने कहा- "किसी दूसरे का फ्लैट इस्तेमाल करने वाला फ्लैट के मालिक की दिनचर्या जरूर जानता होगा और किसी की दिनचर्या उसका दोस्त या परिचित ही जान सकता है, पहले हत्यारे ने दीनदयाल का फ्लैट इस्तेमाल किया, फिर मेरा। इससे यही नतीजा निकलता है कि हत्यारा कोई ऐसा व्यक्ति है, जो हम दोनों से ही बराबर परिचित है। उससे उसके परिचितों के बारे में पूछने के लिए ही मैं आज उससे मिलने की सोच रहा था । शायद कोई ऐसा व्यक्ति निकल आए जो उसका भी परिचित हो और मेरा भी ।"


"हालांकि मैं पुलिस वाला हूं इसलिए मुझे रहस्य की कोई भी बात किसी से कहनी नहीं चाहिए, लेकिन जब बात आ ही गई है और तुम मेरे क्लासफैलो रहे हो तो बताने में हर्ज भी नहीं समझता । "


"ओफ्फो, वादा करता हूं, यार, अब बताओ भी।"


“दरअसल मुझे दीनदयाल पर शक है, लग रहा है, झिा फूस का हत्यारा वही है।"


सोनी का हैरत में डूबा स्वर - "यह तुम क्या कह रहे हो ?"


"मैं ठीक कह रहा हूं सोनी, दरअसल उसके बारे में तुम उतना नहीं जानते जितना मैं जानता हूं। वह एक नंबर का हरामी मुजरिम है। मुमकिन है कि उसी ने तुम्हारे फ्लैट का इस्तेमाल किया हो ।"


"खुद उसी ने।"


"फिर उसके फ्लैट का इस्तेमाल किसने किया ?"


"क... क्या मतलब, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं त्रिवेदी ?"


"तुम्हें बताने के लिए मुझे वारदात को संक्षेप में क्रम से बताना होगा।" त्रिवेदी बोला- "सुनो, संतरे वाला आदमी अनूप बाबू को विवश करके अपने साथ ले जाता है, उससे पहले ही वह गजेन्द्र बहादूर जिन्दल को अपनी गिरफ्त में ले चुका था और फिर सारा ड्रामा दीनदयाल के फ्लैट पर होता है। हत्यारा संतरे वाले आदमी को ही समझा रहा था, यह भ्रम तुम्हारे फ्लैट से उसकी लाश मिलने पर टूटा। तब से यह धारण बनी कि संतरे वाला आदमी केवल कठपुतली था, असल मुजरिम तो वह है, जिसने इस कठपुतली को मारकर तुम्हारे फ्लैट में डाल दिया।"


"यह तो जाहिर ही है । "


"कठपुतली का नाम इकबाल गजनवी था, वह महानगर का थर्ड क्लास गुंडा था, अतः दौलत के लालच में वह ये काम करने लिए आसानी से तैयार हो गया होगा।”


"और यह दौलत उसे दीनदयाल ने दी थी ?"


"हो भी सकता है और नहीं भी, फिलहाल मेरा शक उसी पर है । "


"शक की वजह ।"


"बस, फिलहाल तो इतना ही कह सकता हूं कि पुलिस वालों की नजर बहुत तेज होती है । "


"लेकिन यदि उसने ऐसा किया होता तो अपना ही फ्लैट इस्तेमाल करने का खतरा मोल क्यों लेता ?"


"तुम अभी मुजरिमों की फितरत को नहीं जानते हो सोनी, मैं इन हरामजादों की नस-नस से वाकिफ हूं। कानून से बचने के लिए ऐसे-ऐसे हथकंडे इस्तेमाल करते हैं जिनके खुलने पर दंग रह जाना पड़ता है। जरा सोचो, हत्यारे ने दीनदयाल के फ्लैट को छुपाए रखने की क्या कोशिश नहीं की थीं ?"


"क्या मतलब ?"


"इसमें शक नहीं कि मुजरिम कोई भी जुर्म अपने फ्लैट में करने से हिचकता है और कतराता है, किंतु जुर्म के लिए दिलेर से दिलेर अपराधी भी किसी अन्य फ्लैअ का इस्तेमाल करने की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि ऐसा करने में बहुत ज्यादा खतरा है, सुरक्षा अपने ही फ्लैट में रहती है और फिर वह अपराधी कभी दिलेर नहीं हो सकता जो जुर्म खुद न करके कठपुतली से कराता हो, दिलेर मुजरिम पर्दे के पीछे नहीं रहते। कोई भी मुजरिम किसी अन्य के फ्लैट को इस्तेमाल करने की अपेक्षा अपने ही फ्लैट को ज्यादा सुरक्षित समझेगा और उस स्थिति में तो निश्चिय ही, जबकि उसे यह भी विश्वास हो कि फ्लैट का पता कभी किसी को नहीं चलेगा। हत्यारे की तरफ से ऐसा कोई लीक प्वाईंट नहीं छोड़ा गया था, जिससे पुलिस या किसी इन्वेस्टिगेटर को फ्लैट का सुराग लग सकता । वह तो बहूरानी की ही होशियारी कही जाएगी कि वे फ्लैट तक पहुंच गई। बस, उनके फ्लैट पर पहुंचते ही दीनदयाल घबरा गया, ऐसी आशा उसे कदापि न थी। सो, तुरंत एक कहानी ग़ढ़कर उसने बहूरानी को सुना दी। ताले आदि पर कठपुतली के निशान तो मिलने ही थे। उस स्पॉट पर पुलिस और बहूरानी की धारण यह बनी कि दीनदयाल के फ्लैट को किसी अन्य ने इस्तेमाल किया है। खुद को बचता देखकर दीनदयाल खुश हो उठा, साथ ही मन में यह शंका भी उठी कि कहीं इकबाल उसका भांडा न फोड़ दे, और इसी खतरे से बचने के लिए उसने इकबाल को खत्म कर दिया, लाश तुम्हारे फ्लैट में, पुलिस की यह धारणा पक्की कर देने के लिए डाल दी कि हत्यारे की आदत ही दूसरों का फ्लैट इस्तेमाल करने की है। दीनदयाल ने सोचा होगा कि यदि वह पुलिस की इस धारणा को पक्की कर दे तो संदेह के दायरे से कोसों दूर रहेगा।"


"मगर अनूप बाबू की हत्या उसने क्यों की होगी ?" "अगर वजह पता लग जाए तो मैं उसे गिरफ्तार ही न कर लूं।?" त्रिवेदी ने कहा- "लेकिन फिक्र मत करो, वह ज्यादा दिन तक छुपा नहीं रह सकेगा। मैं इस केस की गहराई तक पहुंच कर रहूंगा।"


"मुझे तुम्हारी बातें बहुत अजीब लग रही हैं त्रिवेदी । "


"जब तक कोई बात साबित न हो जाए तब तक साधारण लोगों को पुलिस के सोचने का अंदाज अजीब ही लगता है, लेकिन दरअसल हम अपने इन्हीं अंदाजों से मामले की तह में पहुंच जाया करते हैं।"


"कुछ भी कहो त्रिवेदी, मुझे नहीं लगता कि दीनदयाल हत्यारा होगा।"


"मैं भी किसी प्रकार का दावा पेश नहीं कर सकता। केवल एक अनुमान है और इस अनुमान को विश्वास में बदलने में तुम मेरी मदद कर सकते हो सोनी ?"


"म... मैं, मैं भला क्या कर सकता हूं ?"


"तुम उसके दोस्त हो, आज उससे मिलने के लिए अभी कह ही रहे थे। तुम उससे जरूर मिलना, किंतु वे बातें बिल्कुल मत करना जो तुम सोचे हुए थे। हां, तुम्हें बातें इसी केस को बारे में करनी हैं। टोह लेने के अंदाज में, उससे तुम्हारी जो भी बातें हों, वे अक्षरशः मुझे बतानी होगी।"


"ठीक है।"सोनी ने त्रिवेदी से प्रभावित होकर कहा ।


“इसके बाद वे करीब दस मिनट तक और इसी सिलसिले में बातें करते रहे ।" अपनी रिपोर्ट पूरी करती हुई वीणा ने बताया- "उन बातों को विस्तार से कहने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि उनमें करीब-करीब उन्हीं बातों का रिपीटेशन था, जो बता चुकी हूं, हां, त्रिवेदी की सभी बातों का उल्लेखनीय सार ये है कि वह सोनी के दिमाग में हर कोण से दीनदयाल को ही हत्यारे के रूप में बैठाने की कोशिश कर रहा था और महेन्द्रपाल सोनी भी अंततः मुझे उससे प्रभावित ही नजर आया था।”


विभा ने पूछा- "क्या आज दिन में सोनी दीनदयाल से मिला था ?"


"कहां और कब?"


"फैक्ट्री से लौटते वक्त, दीनदयाल के स्टोर पर ही ।"


"जी हां । "


"वे कितनी देर साथ रहे ?"


"करीब तीस मिनट | "


"क्या तुमने उनकी बातें सुनी थीं ?"


"जी नहीं, मैं उनसे काफी दूर थी। कोई दवा लेने के बहाने यह सोचकर स्टोर पर गई भी कि शायद मेरे सामने वे बातों का क्रम जारी रखें और मुझे उनके 'टॉपिक' का पता लग जाए, परंतु उस वक्त उन्होंने क्रम तोड़ दिया था । "


"तुम जा सकती हो ।" विभा ने कहा ।