‘मंदिर' के उस कमरे में जिसे ऑफिस जैसा रूप दे दिया गया था, विभा के सामने खड़ा अभिक अपनी रिपोर्ट दे रहा था और जो रिपोर्ट वह दे रहा था, कम-से-कम मेरे लिए वह बहुत ही निराशाजनक थी, क्योंकि उसकी सारी रिपोर्ट से केवल यही एक मात्र तात्पर्य निकलता था कि जब उसने रेवतीशरण की निगरानी शुरू की है तब से वह एक क्षण के लिए भी अपने घर से बाहर नहीं निकला, न केवल घर से बल्कि अभिक की रिपोर्ट का सारांश तो यह था कि रेवती शरण अपनी बैठक में बंद होकर रह गया है, अभिक ने यह भी कहा था कि एक अन्य व्यक्ति को भी उसने रेवतीशरण की निगरानी में महसूस किया है, अभिक ने उसका हुलिया बताया ।


"वह पुलिस का आदमी रहा होगा।" विभा ने कहा- "एक मिनट ठहरो, मैं अभी मालूम करती हूं।"


कहने के साथ ही उसने रिसीवर उठाया और पुलिस कंट्रोल रूम में संबंध स्थापित करके अपना परिचय देने के बाद बोली- "पुलिस का एक आदमी रेवती शरण की निगरानी कर रहा है ?"


"जी हां, बहूरानी।" सम्मानित स्वर ।


"क्या आप उसका हुलिया बता सकेंगे ?"


“जी हां, उसका नाम विनोद चड्ढ़ा है, कद पांच फुट, रंग गेहूंआ, नाक छोटी, मस्तक चौड़ा, आंखों पर मोटे लैंसों का चश्मा लगाता है, वह क्रीम कलर का सूट पहने हुए है।"


"गुड, क्या उसने कोई रिपोर्ट दी ?"


"जी हां, विनोद चड्ढा का कहना है कि रेवतीशरण एक क्षण के लिए भी तब से अब तक अपनी बैठक से बाहर नहीं निकला है, मगर उसने ऐसा महसूस किया है कि एक अन्य व्यक्ति भी रेवतीशरण की निगरानी कर रहा है।”


“उसका हुलिया ?"


जवाब में जो हुलिया बताया गया वह अभिक का ही था ।


सुनकर विभा बोली- "उसके बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है, वह हमारा ही आदमी था ।”


“आपका आदमी ?” चौंका हुआ स्वर ।


"हां, अधिक व्यस्तता की वजह से भूल हम ही से हो गई थी, रेवतीशरण की निगरानी के लिए हमने पुलिस की मदद भी ले ली और अपना भी एक आदमी लगा दिया, किसी से भी एक-दूसरे का जिक्र करने का मौका न लगा, अतः जो वहम हमारे आदमी को देखकर विनोद को हुआ वही विनोद को देखकर हमारे आदमी को ।”


"ओह, कोई बात नहीं। हम विनोद को सूचना दे देंगे।”


'थैंक्यू' कहती हुई विभा ने संबंध विच्छेद कर दिया। हम समझ गए थे कि अभिक ने जिसे रेवतीशरण की निगरानी करते पाया था वह विनोद चड्ढा था, रिसीवर रखने के बाद वह अभिक से बोली- "क्या तुम पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हो कि अभिक, कि रेवतीशरण एक मिनट के लिए भी कहीं नहीं गया ?"


"एक सैकिंड के लिए भी नहीं बहूरानी ।"


"तुम झूठ बोलते हो।" निराश होने के कारण शायद मुझे ताव आ गया था।


अभिक चौंकता हुआ बोला । "क... क्या मतलब साहब ?"


"म... मेरा मतलब है तुम चूक गए होंगे, वह बाहर जरूर निकला होगा।" मैं बात को सम्भालता हुआ बोला- "ऐसा भी तो हो सकता है कि बैठक का दरवाजा अंदर से बंद ही रहा हो और वह खिड़की आदि से तुम्हारी आंखों में धूल झोंक कर निकल गया हो ।”


"ऐसा नहीं है साहब।"


अभिक ने दृढ़तापूर्वक जवाब देना शुरू किया, लेकिन विभा ने बीच में हाथ उठाकर उसे चुप रहने का संकेत किया, विभा का हाथ देखकर अभिक ने अपना वाक्य बीच में ही छोड़ दिया। विभा ने उसे चले जाने के लिए कहा और वह चला भी गया, किंतु जाते वक्त उसने एक अंतिम दृष्टि मुझ पर इस तरह डाली थी जैसे मैं उसे जंचा न होऊं ।


विभा ने कहा- "रेवतीशरण की बैठक में मैं तुम्हारे ही साथ हो आई हूं वेद, भले ही तुमने ध्यान न दिया हो किंतु मैंने देखा था, उस बैठक में ऐसी कोई खिड़की नहीं है, जिसके रास्ते से आदमी बाहर निकल सके ।"


मैं चुप रहा।


"अभिक को विनोद के और विनोद को अभिक के बारे में न बताना मेरी भूल नहीं थी, बल्कि दोनों की मुस्तैदी को परखने की एक तरकीब थी, इन दोनों ने एक-दूसरे को ताड़ा । इसका मतलब है कि दोनों ही अपनी-अपनी ड्यूटी पर पूरी तरह मुस्तैद थे और दोनों की रिपोर्ट भी एक ही है, दो ऐसे मुस्तैद जासूसों की आंखों में धूल झोंककर रेवतीशरण नहीं निकल सकता, अतः हमें मानना ही पड़ेगा कि वह कहीं नहीं गया।"


"म.... मगर ।"


"सीधी-सी बात है कि रेवतीशरण कम-से-कम हत्यारा नहीं है, हत्यारा वह है जो खुद को और अपनी राईटिंग को छुपाने की कोशिश करता है, यानी सनील के बॉक्स पहुंचाने वाला साईकिल सवार ।”


"यानी वह चार साल पहले वाला बिरजू भी नहीं है । "


"फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता।"


"तो फिर आखिर इस सारे मामले में रेवतीशरण फिक्स कहां होता है, उसने यहां खुद आकर जो एक बिल्कुल असंभव - सी कहानी हमें सुनाई थी, उसके बारे में तुम क्या सोचती हो?"


कमरे में काफी देर के लिए खामोशी छा गई, फिर इस खामोशी को विभा ने ही तोड़ा- "मेरे ख्याल से हमें इस विषय पर बातें करने के लिए एक बार रेवतीशरण से मिलना जरूर चाहिए।"


दिल से मैं यही चाहता था, इसलिए तुरंत ही खड़ा होता हुआ बोला- "यही ठीक रहेगा ।”


रेवतीशरण बहुत बुरी तरह डरा हुआ था और बहूरानी के जाते ही उसने खुद को बैठक में एक प्रकार से बंद कर लिया था, पत्नी सहित उसने घर के सभी सदस्यों को चेतावनी - सी दे दी थी कि बैठक में वह जरूरी काम कर रहा है और अनावश्यक रूप से उसे डिस्टर्ब न किया जाए। सारी रात जागते बीत गई थी । हल्की-सी आहट पर भी वह बूरी तरह चौंक पड़ता। किसी तरह रात बीत गई। सुबह हुई, साथ ही बैठक के दरवाजे पर दस्तक ।


वह पसीने-पसीने हो गया ।


दरवाजा पक्की तरह यह यकीन कर लेने के बाद ही खोला कि बाहर उसकी पत्नी है, पत्नी ने नित-कमों से फारिग होने के लिए कहा, उसने इंकार कर दिया । लघुशंका तक की हरारत नहीं थी, होती भी कैसे ?


दिमाग पर भय का भूत जो सवार था ।


रेवतीशरण के व्यवहार तथा अवस्था पर पत्नी भी चकराकर रह गई । तरह-तरह के सवाल किए परंतु उसने एक का भी तो ठीक जवाब नहीं दिया, हां, बीच-बीच में पत्नी से वह बैठक ही में चाय जरूर मंगाता रहा ।


दिन भी गुजरने लगा । ढलने को आया ।


वह बैठक में बंद ही रहा, कुछ ही देर पहले पत्नी आई थी। उसने एक और चाय लाने का हुक्म दे दिया और सोफे पर लेटा वह इस वक्त पत्नी के लौटने की इंतजार कर रहा था ।


दरवाजे पर दस्तक हुई ।


रेवतीशरण ने दरवाजा खोल दिया।


मगर सामने खड़े व्यक्ति पर नजर पड़ते उसके कंठ से चीख- से निकलने को हुई, चीख के वातावरण को झंझोड़ डालने से पहले आगंतुक ने झपट कर उसका मुंह भींच लिया। रेवतीशरण कसमसाकर रह गया, जबकि आगंतुक ने दूसरे हाथ से दरवाजा बंद करके सांकल भी चढ़ा दी ।


फिर आगंतुक ने अपने ओवरकोट की जेब से रिवॉल्वर निकाल कर उसकी पसलियों पर रखा और गुर्राया-"अगर जरा भी चूं-चपड़ की रेवतीशरण, तो वक्त से पहले ही गोली पसलियों में उतार दूंगा।"


रेवतीशरण कांपकर रह गया, सिट्टी-पिट्टी गुम


आगंतुक ने हाथ उसके मुंह से हटाया, रिवॉल्वर से कवर किए उससे जरा दूर हटा, रिवॉल्वर की नाल से ही उसने अपने ललाट पर झुके कैप के कोने को ऊपर सरकाया, दूसरे हाथ से ओवरकोट के खड़े हुए कॉलर गिराए ।


वह अनूप था ।


रेवती शरण गिड़गिड़ा उठा । "म...मुझे बख्श दो अनूप बाबू। मैं सच कह कहता हूं।"


"खामोश।” अनूप गुर्राया- "इसका मतलब ये कि तू अपने साथियों के नाम नहीं बताएगा ?”


"मेरा कोई साथी नहीं है अनूप बाबू । "


अनूप की सिर्फ आंखों में खूंखार - भाव उभरे, चेहरे पर अन्य कहीं कोई भाव नहीं था, रिवॉल्वर तान कर वह गुर्रा उठा- "मैंने तुझे सिर्फ आज तक का समय दिया था, केवल इसलिए कि तेरे बाकी साथियों तक पहुंचने के लिए मुझे ज्यादा मेहनत न करनी पड़े, लेकिन तू नहीं मानता तो न मान । तेरे जैसे बाकी हरामखोरों को भी मैं तलाश कर ही लूंगा। ले, मरने के लिए तैयार हो जा।" कहने के साथ ही तने हुए रिवॉल्वर के ट्रेगर पर अनूप की उंगली का दबाव बढ़ने लगा।


रेवतीशरण बुरी तरह रोने और गिड़गिड़ाने लगा।


"मैं तुझे एक मौका और देता हूं रेवती, आखिरी मौका, मैं तीन तक गिनूंगा और तब तक भी, अगर तूने कुछ नहीं बताया तो... ["


अपना वाक्य खुद ही अधूरा छोड़कर अनूप ने कहा - "एक ।"


रेवतीशरण की गिड़गिड़ाहट तेज हो गई ।


अनूप का चेतावनी भरा स्वर - "दो।"


और तीन कहने के लिए अनूप ने अभी मुंह खोला ही था कि बाहर से किसी ने बैठक के बंद दरवाजे की सांकल जोर से दबाई, बुरी तरह चौंककर अनूप ने उस तरफ देखा। ऐसा रेवतीशरण ने भी किया था। परंतु अनूप कुछ ज्यादा ही हक्का-बक्का नजर आ रहा था, उसके मुकाबले रेवतीशरण ने हालातों को जल्दी समझ लिया और हड़बड़ाहट में अनूप पर झपट पड़ा।


असावधान अनूप एकदम लड़खड़ा गया, वह सोफे की पुश्त से उलझकर गिरा "रिवॉल्वर हाथ से निकलकर फर्श पर कहीं गिर गया था और यही वह क्षण था जब रेवतीशरण ने 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाते हुए हड़बड़ाहट में फर्श पर पड़े अनूप पर जम्प लगा दी।


इधर बैठक में ये दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए और उधर, रेवतीशरण को बचाओ-बचाओ की पुकार के बाद बैठक के दरवाजे को तोड़ डालने के लिए प्रहार होने लगे और एक साथ प्रयास करने वालों में मैं भी था, मेरे साथ थे विनोद चड्ढा, विभा और मधु ।


हुआ दरअसल यह था कि हमारे वहां पहुंचते ही विनोद चड्ढा ने विभा को रिपोर्ट दी थी कि कुछ ही देर पहले एक रहस्यमय व्यक्ति रेवतीशरण से मिलने आया है, रहस्यमय इसलिए, क्योंकि उसके हैट के झुके हुए कोने तथा ओवरकोट के खड़े कॉलरों की वजह से विनोद उसका चेहरा नहीं देख सका था ।


जो कुछ मैंने ऊपर लिखा वह हमें बाद में पता लगा था। सवाल ये है कि कैसे पता लगा ?


जवाब थोड़ी देर में मिल जाएगा।


बहरहाल, विभा के निर्देश पर हम रेवतीशरण की पुकार सुनते ही दरवाजे को तोड़ डालने की कोशिश करने लगे थे, अंदर से लगातार रेवतीशरण मदद के लिए चिल्ला रहा था। उसका स्वर ऐसा था जैसे कि चिल्लाने में भी उसे काफी कष्ट हो रहा हो। कुछ ही देर में हम दरवाजे को तोड़ डालने में कामयाब हो गए।


हमने देखा कि रेवतीशरण और अनूप गुथे हुए थे, दरवाजा टूटते ही रेवतीशरण का ध्यान हमारी तरफ गया और ठीक इसी अवसर लाभ उठाते हुए अनूप ने फर्श पर पड़े अपने रिवॉल्वर पर जम्प लगा दी।


हममें से अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि अनूप रिवॉल्वर तानकर गुर्राया-"अगर कोई भी हिला तो मैं उसका काम तमाम कर दूंगा ।"


हम सभी जड़वत् से खड़े रह गए ।


कुछ क्षणों के लिए तो बड़ा ही गहरा-सा सन्नाटा छा गया था वहां, हम सभी हक्के-बक्के से सामने खड़े अनूप को देख रहे थे, उसकी आंखें बुरी तरह भभक रही थीं, अपने स्वर को बेहद खतरनाक बनाता हुआ वह गुर्राया- "एक तरफ हटकर रास्ता दो वर्ना मुझे तुम सबकी लाशों पर से गुजरकर यहां से जाना होगा।"


रेवतीशरण सहित हम चारों ने विभा की तरफ देखा, जबकि वह वह बहुत ही गौर से अनूप की आंखें देख रही थी, वह पुनः गुर्राया—"हट जाओ विभा, मैं तुम्हारी भी परवाह नहीं करूंगा।"


"मैं तुम्हारे फेसमास्क के चक्कर में आने वाली नहीं हूं।" विभा ने अजीब से लहजे में कहा ।


अनूप हड़बड़ा-सा गया । "क... क्या मतलब विभा ?"


"बेशक ये फेसमास्क काबिले तारीफ बना है, धोखा देने में सक्षम है, किंतु केवल रेवतीशरण जैसे साधारण लोगों को, हम जैसे लोग धोखे में नहीं फंसेंगे जो फेसमास्क के बारे में जानते हैं।"


"ब.... बहूरानी।" आवाज कांप गई ।


विभा का दृढ़ स्वर- "मैं तुम्हारा नाम लेकर भी पुकार सकती हूं सावरकर ।"


"स... सावरकर ?" मैं उछल पड़ा- "त... तुम्हारा मैनेजर विभा ?"


उसे घूरती हुई विभा ने कहा- "हां ।"


कथित अनूप के हाथ में दबे रिवॉल्वर की नाल स्वतः ही झुकती चली गई, विभा आगे बढ़ी, वह पत्थर की मूर्ति-र - सा खड़ा रहा, जबकि विभा ने उसके चेहरे से फेसमास्क नोच लिया। शर्मिंदा से सावरकर को देखकर हम चारों भौंचक्के से खड़े रह गए थे, उसके चेहरे पर पसीने की नन्हीं बूंदें स्पष्ट चमक रही थीं।


विभा ने बड़े ही सामान्य स्वर में पूछा- "ये सब क्या नाटक है सावरकर अंकल "


"ब...बहूरानी। ।" वह सिर्फ इतना ही कह सका।


"बोलिए ?" "मैं... मैं रेवतीशरण को मारने वाला नहीं था।"


"जानती हूं, आप रेवतीशरण को केवल धमका रहे थे और उसका सबूत है अभी तक आपके हाथ में झूल रहा रिवॉल्वर, यह बिल्कुल खाली है। चैम्बर में एक भी गोली नहीं है।"


सावरकर ने रिवॉल्वर की तरफ देखा, फिर प्रशंसा भरी नजरों से विभा की तरफ, विनोद की आंखों में मैं भी विभा के लिए हैरत और प्रशंसा के भाव देख रहा था, उसने पूछा- "मगर सवाल ये उठता है सावरकर अंकल कि आप ऐसा क्यों कर रहे थे ?"


"अनूप बाबू के हत्यारे तक पहुंचने के लिए "


"किस तरह ?"


"यह सोचकर कि मेरी हरकतों से निश्चय ही जिन्दल पुरम् में यह अफवाह फैलेगी कि अनूप बाबू जिंदा हैं, कई लोग अनूप बाबू के जिंदा होने और अपनी आंखों से देखने का दावा करेंगे और यह अफवाह जब हत्यारे के कानों तक पहुंचेगी तो वह निश्चय ही चौंकेगा, भ्रमित भी हो सकता है। सोच सकता है कि कहीं अनूप बाबू ने उसे किसी अन्य की लाश को अपनी लाश दिवाकर धोखा न दे दिया हो, इस तरह की अनेक शंकाओं से परेशान होकर सच्चाई का पता लगाने के लिए वह मुझ तक पहुंचने की कोशिश जरूर करता और ऐसी अवस्था में मैं उस बेहरहम हत्यारे तक पहुंच जाता, यही मेरा मकसद था, परंतु उससे पहले आप मुझ तक पहुंच गई और मेरा सारा षड्यंत्र बिखर गया ।"


"लेकिन इस खतरनाक षड्यंत्र में तो आपकी जान को पूरा खतरा था सावरकर अंकल । हत्यारा बिना सामने आए कहीं दूर से भी आपको गोली का निशाना बना सकता था ।"


"ये जान अनूप बाबू से कीमती तो नहीं है बहूरानी।" सावरकर के स्वर में दर्द था ।


सावरकर का बयान सुनकर हम चारों चकित-से रह गए। मैं कभी ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि अनूप के जीवित होने का रहस्य खुलने के बाद भी हम केस के उसी स्पॉट पर खड़े होंगे, विभा कह रही थी- "मैं आपकी भावनाओं की कद्र करती हूं सावरकर अंकल, जानती हूं कि आप सच बोल रहे हैं। अपने मालिक के हत्यारे को बेनकाब करने के लिए यह अत्यंत जोखिम भरा कदम उठाया परंतु... ।”


"परंतु क्या बहूरानी ?"


"मैं इसे समझदारी या दिमाग से सोचा हुआ कदम न कहकर अत्यधिक जोश और उत्साह में उठाया गया कदम ही कहूंगी, क्योंकि चालाक हत्यारा इस जाल में नहीं फंस सकता था।"


"वह क्यों बहूरानी ?"


" "हत्यारा जानता है कि अनूप बाबू उसे (हत्यारे को) अच्छी तरह जानते थे अतः अगर वे जीवित होते तो वह सब कुछ न करके जो तुमने किया सीधा आक्रमण उसी पर करते। अनूप के रूप में तुम्हारे रेवतीशरण जैसों के पास आने जैसी हरकतों से ही वह समझ गया होगा कि तुम अनूप नहीं हो, यानी कोई अन्य हो और इतना समझने के बाद वह अनूप बनने का मकसद भी समझ गया होगा, तुम्हारे चूहे को यदि मालूम हो जाए कि रोटी का टुकड़ा चूहेदान में लटका है तो भले ही वह भूखा मर जाए, टुकड़े के पास नहीं फटकेगा ।"


सावरकर हैरतअंगेज निगाहों से विभा की तरफ देखता रह गया ।