जीभ करीब डेढ़ इंच लंबी थी, बॉक्स के अंदर रखी रूई के ऊपर उसे बड़े सलीके से रखा गया था, जीभ के कटे हुए पिछले हिस्से से खून बहा था, जो रूई में जज्ब हो चुका था।
जीभ सुकड़कर चुड़चुड़ा-सी गई थी ।
हमारी आंखें हैरत से फटी रह गई, जीभ के समीप ही कागज की एक 'स्लिप' पड़ी थी और उस पर बड़े-बड़े अक्षरों का उपयोग करके बहुत ही गंदी राईटिंग में लिखा था- "अब वह बोल नहीं सकेगी।”
"ओह !” मैं बरबस ही कह उठा- "यह जीभ तो सुधा पटेल की लगती है।"
"कम-से-कम स्लिप पर लिखे वाक्य को पढ़ने से तो ऐसा ही मालूम पड़ता है"
"मैंने चौंकते हुए पूछा- "क्या तुम इस जीभ को सुधा पटेल की नहीं मानतीं ?”
"मैंने ऐसा कब कहा ?"
"फिर तुम्हारे वाक्य का अर्थ ?"
"सिर्फ यह कि 'स्लिप' पर लिखे वाक्य को हम पूर्ण विश्वसनीय नहीं मान सकते, पता नहीं उसे किसने किस मकसद से लिखा है और उसके अलावा इस बात का कोई दूसरा सबूत नहीं है कि यह जीभ सुधा पटेल ही की है, संभव है कि वैसा ही नाटक किया गया हो, जैसा हमें सुधा पटेल के फ्लैट पर देखने को मिला था और यह भी संभव है कि जीभ सुधा पटेल ही की हो । "
"पता नहीं तुम क्या कहना चाहती हो, किसी एक विचार पर दृढ़ता से नहीं टिक पा रही हो ।”
"मेरा मतलब केवल ये है कि इस वाक्य के आधार पर हमें कोई धारण नहीं बना लेनी चाहिए, हां इस वाक्य से एक बार फिर यह जरूर जाहिर हो जाता है कि हम हत्यारे को जानते हैं।"
"वह कैसे ?"
“वास्तविक राईटिंग को छुपाने की कोशिश की गई है, मेरे ख्याल से वाक्य बाएं हाथ से लिखा गया है।”
"तुम व्यर्थ ही मामले को उलझा रही हो विभा, सारा केस बिल्कुल स्पष्ट है । हत्यारा बिरजू ही है यानी रेवती शरण, उसने अपना रहस्य खोलने वाली एकमात्र गवाह यानि सुधा पटेल की वाक्-शक्ति छीन ली है, हमें देर नहीं करनी चाहिए, अगर जल्दी ही उसे गिरफ्तार न कर लिया गया तो वह सुधा को खत्म ही कर देगा।"
"तुम शायद, ठीक ही कहते हो, लेकिन उस पर हाथ डालने से पहले हमें अभिक की रिपोर्ट तो लेनी होगी।"
विभा का वाक्य अभी पूरा हुआ ही था कि फोन की घंटी घनघना उठी, विभा ने रिसीवर उठाकर 'हैलो' के साथ अपना परिचय दिया तो दूसरी तरफ से आवाज उभरी- "मैं इंस्पेक्टर त्रिवेदी बोल रहा हूं बहूरानी।"
"कहिए।"
"क्या आप इसी समय केवल दो मिनट के लिए थाने आ सकती हैं ?"
"क्यों ?"
मेरे पास एक बॉक्स है, उसके ऊपर लिखा है कि केवल बहूरानी ही खोलें। इसीलिए आपको फोन किया है, आपके नाम की वजह से मैने अभी तक इसे खोलकर नहीं देखा है।"
"मैं आ रही हूँ।" कहकर विभा ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और उठा खड़ी हुई।
कुछ ही देर बाद गाडी हम तीनों को लिए थाने की तरफ दौड़ी चली जा रही थी, विभा ने इंस्पेक्टर त्रिवेदी से हुई वार्ता हमे रास्ते ही में बताई, सुनकर हम एक बार पुनः दंग रह गए। मधु रेवतीशरण और बिरजू के मसले को लेकर अभी उलझी हुई थी, मैंने उसे महानगर में हुई कार्यवाही तथा अपने और विभा के रास्ते में हुए डिस्कसन के बारे में बताया। अब वह भी इस बात पर सहमत थी कि हत्यारा रेवतीशरण ही है।
हम थाने में पहुंचे।
इंस्पेक्टर त्रिवेदी ने बताया कि जिस वक्त यह बॉक्स थाने में आया उस वक्त वह थाने में नहीं था, कोई साइकिल सवार बॉक्स को थाने के द्वार पर खड़े सिपाही को देकर चला गया था, उसने बॉक्स त्रिवेदी की मेज पर रख दिया। सिपाही का बयान लेने और बॉक्स पर लिखा वाक्य पढ़ने के बाद त्रिवेदी ने फोन कर दिया।
सिपाही ने भी साइकिल सवार का हुलिया लगभग वही बताया था ।
सारी बातें कहने के बाद त्रिवेदी ने बॉक्स दराज से निकाल कर मेज पर रख दिया, बॉक्स ठीक वैसा ही था जैसे में हमें जीभ मिली थी फर्क यह था कि उस बॉक्स पर नीले रंग की सनील चढ़ी हुई थी, जबकि इस बॉक्स पर चढ़े सनील का रंग 'सुर्ख' था। यह सोचकर मेरे मस्तक पर पसीना उभर आया कि उसमें तो जीभ थी, इसमें क्या ?
बॉक्स पर उसी राईटिंग में लिखी एक चिट चिपक रही थी, लिखा था ।" केवल बहूरानी के लिए "
विभा ने बॉक्स खोला।
इस बार मेरे और मधु के साथ इंस्पेक्टर त्रिवेदी की भी चीख निकल गई, जबकि विभा के जबड़े भिंच गए थे, चेहरा बुरी तरह सख्त और खुरदुरा होता चला गया, आंखों में वहशियत के भाव उभर आए थे।
बॉक्स के अंदर का दृश्य ही ऐसा था ।
बॉक्स के पूरे फर्श पर रूई की एक मोटी तह बिछी हुई थी और किसी इंसानी हाथ की दसों उंगलियों को उस पर बड़े सलीके से सजाकर रखा गया था, रूई में जगह-जगह जज्ब हुए खुन के धब्बे थे | धब्बे थोड़े काले पड़ गए थे। उंगलियां पतली-पतली और बेहद कोमल थीं।
बॉक्स के अन्दर के दृश्य को देखकर मुझे तो 'उबकाई' सी आने को हुई, उंगलियों के बीच वैसी ही एक 'स्लिप' रखी थी, उस पर वैसी ही राईटिंग में लिखा था- "अब वह लिख भी नहीं सकती।"
"ये किसी की उंगलियां हैं ?" त्रिवेदी बड़बड़ाया । "हत्यारा बहुत ही क्रूर है । "
जवाब में विभा कुछ बोली नहीं, उसने बॉक्स में से एक उंगली उठाई। उंगली के सिरे को सूंघा उसने । मुझे पुनः उबकाई- सी आई, परंतु अगले ही पल उंगली को वापस बॉक्स में रखती हुई वह बोली- "ये उंगलियां सुधा पटेल ही की हैं।"
"क... क्या मतलब ?" त्रिवेदी उछल पड़ा।
"मैं बोला- "मैं तो बहुत पहले से यही कह रहा ।”
"तुम केवल लिखे हुए वाक्य के आधार पर कह रहे थे, जबकि मैं सुबूत के आधार पर कह रही हूं। उंगली के सिरे पर 'एमिक्स' तेल की खुशबू बरकरार है।"
"अगर उंगली में खुशबू न होती तो क्या तुम इन्हें सुधा पटेल की नहीं मानती ?"
"सिर्फ शक कर सकती थी, विश्वास नहीं।"
"ये तो कोई बात नहीं विभा, क्या जरूरी है कि जो तेल मैं प्रयोग करता हूं, उसकी खुशबू मेरी उंगलियों में भी हो ?"
- "लगभग जरूरी ही है, वेद, सारे दिन में कम से कम एक बार व्यक्ति का हाथ अपने सिर पर चला जाना बहुत स्वाभाविक है और 'एमिक्स' इतनी तीव्र तथा मन को भाने वाली खुशबू का तेल है कि उंगलियां उसकी खुशबू पकड़ ही लेंगी, हां, कम खुशबू वाले तेल में उंगलियां प्रभावित होना जरूरी नहीं है।" मैं चुप रह गया।
बहुत देर से तरदुदद में फंसे त्रिवेदी ने पूछा- "आप लोग किस सुधा पटेल की बातें कर रहे हैं।”
"क्या मतलब ?" त्रिवेदी घूम गया ।
“दरअसल रजनी चतुर्वेदी का ही असली नाम सुधा पटेल है।" गहन आश्चर्य के कारण इंस्पेक्टर त्रिवेदी का मुंह भाड़ - सा खुला रह गया ।
विभा संक्षेप में उसे सब कुछ बताती चली गई, सुनने के बाद त्रिवेदी के चेहरे पर सारे जहां की हैरत उभर आई, बोला—“आप तो सचमुच जादूगरनी लगती हैं बहूरानी, इतना सब कुछ आप कैसे जान लेती हैं ?"
"हर वस्तु को ध्यान से देखकर और प्रत्येक घटना पर बारीकी से सोचकर ।"
"क्या मतलब ?"
"ठीक इस तरह ।" कहने के साथ ही विभा ने बॉक्स के अंदर रखी चिट निकालकर उलट दी, त्रिवेदी के साथ ही हम दोनों भी चौंक पड़े, चिट की पीठ यानी कागज के दूसरी तरफ भी कुछ लिखा था, विभा कहती ही चली गई—“चिट को हम सबने देखा, परंतु यह बात मेरी ही नजरों में आ सकी कि इसके पीछे पर भी कुछ लिखा है, फर्क यह रहा कि आप लोगों से मैंने कुछ ज्यादा ध्यान से इसे देखा था ।”
इंस्पेक्टर चकित भाव से विभा की तरफ देखता रह गया।
विभा बोली- "प्लीज इंस्पेक्टर, इसे पढ़कर सुनाओ।"
त्रिवेदी ने चिट की पीठ पर लिखा मजमून पढ़ा। "बहूरानी, यदि अपनी खैरियत चाहती हो तो इस केस के पीछे भाग-दौड़ करनी बंद कर दो। यदि कहना नहीं माना तो तुम्हारा भी वही हश्र होगा जो अनूप और जोगा का हुआ। ऐसा होने पर मुझे भी अफसोस होगा, क्योंकि तुम्हारे साथ ही गर्भ में पल रहा जिन्दल पुरम् का अकेला और अंतिम वारिस भी खत्म हो जाएगा।"
"व...विभा।" अपने स्वर में मैंने कंपन महसूस किया ।
वह आत्मविश्वास से भरी उस मुस्कान के साथ बोली-
"मुजरिम जितना ज्यादा बौखलाता है उतना ही ज्यादा खुलता है और जितना ज्यादा खुलता है उतने ही ज्यादा प्वाईंट दे जाता है।" जासूस को
"आप क्या कह रही है बहूरानी ?"
"इस छोटे से मजमून को लिखने की भूल करके वह मुझे कई प्वाईंट दे गया, सबसे पहला तो यह कि वह मेरी तफ्तीश से घबरा गया है, मेरी तरफ से अपने लिए खतरा महसूस कर रहा है। उसे लग रहा है कि यदि मैं तफ्तीश करती रही तो वह शीघ्र ही पकड़ा जाएगा। दूसरा ये कि मुजरिम उन चन्द लोगों में से कोई एक है, जो यह जानते हैं कि अनूप के साथ ही जिन्दल पुरम् के वंश का अंत नहीं हो गया है, वारिस मेरे गर्भ में है। तीसरा प्वाईंट यह कि अभी तक हुई दोनों हत्याओं का हत्यारा एक ही है और चौथा यह कि उसे जिन्दल वंश से कोई दुश्मनी नहीं है, जिन्दल वंश यदि आगे न बढ़ा तो उसे दुःख होगा अतः अनूप की हत्या की वजह व्यक्तिगत है, किसी खानदानी दुश्मनी के कारण उनका मर्डर नहीं हुआ है।"
"त... तुम इस मजमून में से भी प्वाईंट ही निकालने में व्यसत हो विभा ?" मैं बोला ।
विभा ने कहा- "जब हत्यारे तक पहुंचना ही ठहरा तो प्वाईंट क्यों न निकालें ?"
"शायद तुम मजमून के प्वाईंटों में ही उलझी रही हो विभा, उसमें छिपी धमकी के बारे में तुम्हारा क्या कुछ कहना है ?”
"वह धमकी नहीं, हत्यारे की बौखलाहट है ।"
"बौखलाहट में वह... | "
"जानती हूं।" विभा मेरे वाक्य बीच में ही काटकर बोली- "जब कोई हत्यारा किसी को धमकी भरा पत्र लिखे तो पुलिस और इन्वेस्टिगेटर को समझ लेना चाहिए कि हत्यारा बौखला रहा है और जब हत्यारा बौखलाने लगे तो समझ लो कि उसकी उम्र खत्म हो चुकी है, यह भी जानती हूं वेद, कि बौखलाया हुआ हत्यारा दो-चार हत्याएं और कर सकता है, यही सोचकर तुम चिंतित हो उठे हो, परंतु यकीन रखो जिस दिन वह मुझ पर हाथ डालेगा, वह उसका आखिरी दिन होगा।"
" अ... अगर तुम्हें कुछ हो गया विभा तो..?".
"फिक्र मत करो दोस्त, तुम्हारी विभा गाजरर-मूली नहीं है। "
बड़े ही गंभीर स्वर में कहा विभा ने- "बच्चे की फिक्र मां से ज्यादा किसी को नहीं हो सकती।"
मैं आवाक्-सा उसे देखता रह गया, उसे, जो बहुत ही कम शब्दों में सब कुद कह जाती है, उसे, उसकी हर अदा, हर बात पर मुझे प्यार आता है। उसके उपरोक्त वाक्य के बाद चाहकर भी मैं कुछ नहीं कह सका था। मैं अपने विचारों में गुम हो गया और वह त्रिवेदी से इसी केस के संबंध में जाने क्या-क्या डिस्कस करती रही, मैं तो तब चौंका जब उसने चलने के लिए कहा।
हम कार में आ बैठे ।
ड्राइविंग सीट पर बैठकर विभा ने कार आगे बढ़ा दी, एकाएक ही विभा ने मुझसे पूछा- "हत्यारा सुधा पटेल का कत्ल क्यों नहीं कर रहा है वेद ?"
अचानक ही हुए इस अटपटे सवाल ने मुझे चकरा दिया, बोला- "क्या मतलब ?”
"मैंने अपना सवाल हिन्दी में ही किया है।"
"किया तो है, लेकिन बड़ा अटपटा-सा सवाल है, मैं भला इस बारे में क्या कह सकता हूं। उसकी मर्जी, नहीं करता कत्ल ।"
"फिर इन सनील के बॉक्सों में उसकी जीभ और उंगलियां भेजने का मकसद ?"
मैं उकताकर बोला-"कम-से-कम मेरी समझ में तो कुछ आ नही रहा है ।"
“मामला थोड़ा अजीब-सा जरूर है। ।" विभा जैसे अपने ही दिमाग पर सोचने के लिए जोर डालती हुई बोली- "सुधा पटेल की जीभ और उंगलियां उसने इसलिए काट डालीं, क्योंकि वह बयान देकर हत्यारे को बेनकाब कर सकती थीं, किंतु सवाल ये उठता है कि उसने इतना लंबा रास्ता क्यों चुना | सीधा सुधा पटेल की हत्या क्यों नहीं कर दी ?"
"संभव है कि वह हमें डराना-धमकाना और आतंकित करना चाहता हो ?" मधु ने संभावना व्यक्त की ।
"गुड, यही वजह है ।" विभा एकदम स्वीकार करती हुई बोली- "इस किस्म के ऊल-जलूल करके वह हमें बताना चाहता है कि वह हत्यारा ही नहीं, बल्कि वहशी, क्रूर और बेहरहम भी है।"
"तुम तो बेकार ही भटक रही हो विभा, मैं कह चुका हूं कि जो भी कुछ है, रेवतीशरण है। उसकी गिरफ्तारी होते ही इस सारे बखेड़े का अंत हो जाएगा, ये हरकतें भी वही कर रहा है।"
विभा कुछ बोली नहीं, हां, सोचने के से भाव उसके मुखड़े पर जरूर थे।
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