“गुड !" विभा की मुस्कान में जान थी।" तुम काफी पैने सवाल उठाने लगे हो ।”


"बात को टालो मत विभा, जवाब दो ।"


"मैं टाल नहीं रही हूं, बल्कि स्वीकार कर रही हूं कि तुम्हारे सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, फिर भी यह तो तुम्हें मानना ही होगा कि तुम्हारे हैसियतदार अनूप बाबू का जोगा और सुधा पटेल जैसे स्तरहीन लोगों से काई न कोई संबंध तो था ही ?"


“मेरे ख्याल से इन संबंधों को लेकर तुम अनावश्यक रूप से बहुत आगे तक सोच गई हो, अनूप बाबू का संबंध केवल सुधा पटेल से था । मोहब्बत वाला संबंध | यह माना जा सकता है, क्योंकि जब मोहब्बत होती है तो हैसियत की सारी दीवारें टूट जाती हैं। सुधा से संबंध होने की वजह से अनूप बाबू का संबंध जोगा से भी जुड़ गया, इस कहानी को मैं यूं भी कह सकता हूं कि जोगा की रखैल सुधा ने अनूप बाबू को अपने प्रेमजाल में फंसाया। जोगा और सुधा की संयुक्त चाल थी वह अपने पाप को उन्होंने अनूप बाबू के सर थोप दिया, किसी स्पॉट पर जाकर अनूप बाबू को इस साजिश का पता लग गया, मगर तब अनूप बाबू और सुधा के बैडरूम फोटो उतारे जा चुके थे, संतरा छीलने की धमकी उन्हें उजागर कर देना ही था।"


"गुड, तुम मुझे एक नई और जमने वाली थ्यौरी दे रहे हो । अब जल्दी से यह भी बता दो कि जोगा ने सोने का अंडा देने वाली मुर्गी अर्थात तुम्हारे अनूप बाबू को कत्ल क्यों कर दिया ?"


मैं उत्साहित होकर बोला- "कत्ल जोगा ने अपनी इच्छा से नहीं किया ।”


"फिर ?”


"कालू के बयान से जहिर है कि किसी बिरजू नामक व्यक्ति से जोगा और सुधा पटेल बहुत डरते थे, बिरजू के हाथ कहीं से वह पहेली लग गई, पहेली और साढ़े तीन घंटे से निश्चय ही बिरजू का कोई भावनात्मक संबंध था, वह पहेली को हर हालत में हल करना चाहता था, कोशिश के बावजूद भी उससे हल नहीं हुई, वह समझता होगा कि पहेली को जोगा हल कर सकता है, उसने सचिन को अपनी गिरफ्त में लिया । महानगर से जोगा को जिन्दल पुरम् बुलाने के लिए सुधा पटेल को विवश किया। जोगा के सामने उसने पहेली रख दी और कहा कि यदि उसने इस साढ़े तीन घंटे में हल नहीं कर दिया तो वह सचिन को मार डालेगा। जोगा हल नहीं कर सका और जब बिरजू सचिन को मारने पर आमादा हो गया तो जोगा और सुधा उसके कदमों में लिपटकर गिड़गिड़ा उठे, जोगा ने कहा कि वह पहेली को किसी अन्य से हल करा देगा । बिरजू ने उसे इस शर्त के साथ समय दे दिया कि पहेली को जो भी हल करे साढ़े तीन घंटे में ही करे। बौखलाए हुए जोगा को मुसीबत की उस घड़ी में अनूप बाबू की याद आई, क्योंकि उनकी नस उसके हाथ में थी।"


"तुम काफी सफाई से सोचते जा रहे हो वेद ।" विभा ने पुनः प्रशंसा की ।


मैं खुद नहीं जानता था कि वह कौन है, जो मेरे दिमाग के अंदर बैठा बिखरी हुई सारी कड़ियों को मिलाता जा रहा है, अजीब से जुनून में मैं कहता ही चला गया- "इस तरह जोगा ने अपनी बला अनूप बाबू पर टाल दी, किंतु वे भी सफल न हो सके, भेद खुलने के डर तथा बाबूजी को बचाने के लिए उन्होंने अपनी बलि दे दी। उधर जोगा पुनः उसी संकट में फंस गया, इस बीच वह हेयर पिन के लालच में फंसने की भूल भी कर बैठा था, सो बिरजू ने उसी पिन से उसे मार डाला। इन सब घटनाओं ने सुधा पटेल को तोड़ दिया, घबराकर उसने तुम्हें सब कुछ बताने के लिए फोन कर दिया । बिरजू की नजर उस पर रही होगी अतः वह हमसे पहले ही फ्लैट पर पहुंचा, सचिन तब तक उसके कब्जे ही में होगा। सचिन को छोड़ देने के लिए कहकर बिरजू ने सुधा से अपहरण का ड्रामा करवा लिया और अपने साथ ले गया।"


"इस सारे किस्से में रेवतीशरण कहां फिट होता है ? '


“केस में उसका पार्ट ही कहां है, उसने सिर्फ यही तो कहा कि अनूप बाबू उसके पास आए ?" 


"क्यों?"


"उसे वहम हुआ होगा। उसके बयान को वहम नहीं माना जा सकता वेद ।"


"त... तो क्या तुम यह सोच रही हो कि अनूप बाबू वाकई जिंदा हो सकते हैं ?"


"नहीं।"


"फिर ?"


"क्या ये नहीं हो सकता कि चार साल पहले रेवतीशरण ही बिरजू रहा हो ?"


“हैं!” मैं उछल पड़ा ।" यह भला कैसे हो सकता है ?"


"जब सुधा और जोगा के दो नाम हैं तो बिरजू के क्यों नहीं हो सकते, माना कि वह बिरजू है। केवल हमें उलझाने और चकमा देकर अपने से दूर रखने के लिए ही गढ़ा - गढ़ाया किस्सा हमें सुना गया।”


"हां, ये हो सकता है।" मुझे बात जमी।


"इसका मतलब तो ये हुआ कि हमने सारा केस हल कर लिया है, कोई भी सवाल बाकी नहीं रहा ।"


यही महसूस करके मैं अत्यधिक उत्साहित हो गया था बोला- "जिन्दल पुरम् पहुंचते ही हमें रेवतीशरण को गिरफ्तार कर लेना चाहिए, अभी तक सुधा पटेल और सचिन भी उसी के कब्जे में होंगे।


"इतनी जल्दी नहीं वेद् अभी हमने सिर्फ सारी गुत्थियां सुलझाई हैं। कोई सुबूत नहीं है जबकि हत्यारे को हत्यारा साबित करने के लिए सुबूतों की जरूरत होती है, वैसे भी जरूरी नहीं है जबकि हत्यारे को हत्यारा साबित करने के लिए सुबूतों की जरूरत होती है, वैसे भी जरूरी नहीं है कि रेवतीशरण ही बिरजू हो, ऐसा जुटाने के लिए हमें रेवतीशरण के चारों तरफ कोई मजबूत जाल बिछाना होगा।”


"कैसा जाल ?"


"सोचना पड़ेगा।” कहने के साथ ही विभा के चेहरे पर सोचने के भाव उभर आए ।


मैं हैरान था कि इतना सब कुछ सोच गया, बातों ही बातों में पूरा केस ही जो हल कर दिया था मैंने। अपनी कहानी में मुझे कहीं भी कोई लोच नजर नहीं आ रहा था ।


कहना चाहिए कि मैं खुश था । सफलता के नशे में चूर ।


उसी नशे में मैं इस कदर डूब गया कि 'जिन्दल पुरम्' तथा फिर 'मंदिर' तक आना भी न देख सका। चौंका तब, जबकि गाड़ी एक झटके से रुकी, मेरे मुंह से निकल पड़ा- "अरे, हम जिन्दल पुरम् में आ गए ?"


“जिन्दल पुरम् ही नहीं जनाब 'मंदिर' में भी आ गए हैं।"


मैं झेंप गया ।


विभा ने कहा ।


उस ऑफिस जैसे कमरे में पहुंचकर हम बैठे ही थे कि मधु आ गई, उसे देखते ही विभा ने पूछा- "गुडलक, ड्राईक्लीन वाले ने क्या कहा ?"


"कुछ विशेष नहीं, ग्राहक के बारे में उसे कुछ याद नहीं है। हां, यदि कभी कोई उस शॉल को लेने आएगा तो वह फोन पर सूचित कर देगा ।"


"कोई और खास बात ?"


"तुम्हारे लिए कोई आदमी शहनील का एक चौकोर डिब्बा दे गया है।"


"शहनील का डिब्बा ?” विभा चौंकी, मैं सोचने लगा कि अब ये क्या नई मुसीबत आ गई ?


इस बार हम कुछ कहने के स्थान पर कमरे में पड़ी छोटी मेज की तरफ बढ़ गए, मेरा दिल पुनः बेकाबू होकर धड़क रहा था और मैं सोचने लगा कि डिब्बे के रूप में पता नहीं अब क्या नई मुसीबत सामने आने वाली है, पता नहीं मुझे ऐसा अहसास क्यों हो रहा था कि डिब्बे में निश्चय ही कोई मुसीबत है।


मधु ने दराज से डिब्बा निकाला और उसे लेकर विभा की तरफ बढ़ गई, मेरी दृष्टि डिब्बे पर ही चिपककर रह गई थी। डिब्बा तीन इंच लंबा, दो इंच चौड़ा और ढाई इंच के करीब ऊंचा था, चौकोर ।


देखने में बहुत सुंदर लग रहा था, नीले रंग का चमकदार सनील चढ़ा हुआ था उस पर। सभी किनारों पर गोटा लगा था, मधु ने उसे विभा के सामने वाली मेज पर रख दिया। कुछ देर तक विभा उसे ध्यान से देखती रही, फिर बड़ी आहिस्ता से उसने डिब्बा उठाया हाथ में लेकर तोला । अंदाज ऐसा था कि जैसे वजन से विभा अंदाजा लगा लेना चाहती हो कि उसमें क्या है। मुझे उसमें मौजूद वस्तु को देखने की उत्सुकता थी और एक प्रकार से मन-ही- मन मैं झुंझला रहा था, सोच रहा था कि विभा उसे खोलती क्यों नहीं है ?


विभा ने मधु से पूछा- "इसे कौन दे गया ?"


"मैं नहीं जानती, मेरे पास मुख्य द्वार पर खड़ा दरबान आया था। उसने बताया कि एक व्यक्ति साइकिल पर आया, उसने डिब्बा हाथ में ले रखा था, सबसे पहले दरबान से पूछा कि मंदिर में आप हैं या नहीं, दरबान के इंकार करने पर डिब्बा देता हुआ बोला, यह डिब्बा बहूरानी के लौटने पर उन्हें देना, साथ ही वह हिदायत भी दे गया था कि इसे बहूरानी के अलावा कोई न खोले, इसमें उन्हीं के काम की चीज है ।"


"फिर ?"


“मैं उस वक्त अपने कमरे में थी जब सब कुछ बताते हुए दरबान ने डिब्बा मुझे दिया।"


"तुमने दरबान से उस व्यक्ति का हुलिया आदि तो पूछा नहीं होगा ?"


"तुम्हारे साथ रहकर ऐसे प्राथमिक सवाल पूछने की अक्ल आ गई है विभा बहन।”


"इसका मतलब तुमने पूछा था । गुड, क्या बताया उसने ?”


"जैसे ही कुछ बताते हुए दरबान ने डिब्बा मुझे किया। मुझे लगा कि.त्तिश्चय ही इस डिब्बे का वर्तमान केस से

कोई-न-कोई संबंध है, दरबान की अधूरी बात सुनते ही मैं डिब्बा हाथ में लिए बाहर की तरफ दौड़ी, लॉन पार करके मुख्य द्वार पर पहुंची, किंतु सड़क पर कहीं भी मुझे दूर-दूर तक कोई साईकिल वाला नजर नहीं आया, निराश होकर लौट ही रही थी कि लॉन में दरबान मिल गया मैंने उससे हुलिया पूछा तो कहने लगा कि साईकिल सवार ने मैला सा धोती-कुर्ता और एक जाकेट पहन रखी थी, सिर पर पगड़ी बांधे था । चेहरे पर घनी मूंछ दाढ़ी थी, रौबीले चेहरे वाले व्यक्ति की आंखें बड़ी-बड़ी और लाल थीं । "


"इसका मतलब वह जो भी कोई था, विशेष प्रकार का मेकअप करके आया था।"


"इससे क्या फर्क पड़ता है ?" मैं बोला ।


विभा ने मेरी तरफ देखा, कुछ इस तरह जैसे मेरी बुद्धि पर तरस खा रही हो, बोली- "अब मैं दावे के साथ घोषण कर सकती हूं कि हम कहीं-न-कहीं कम-से-कम एक बार हत्यारे से मिल चुके हैं।"


"क्या मतलब ?" चौंकती हुई मधु ने पूछा।


“उसका यहां भेष बदलकर आना ही इस बात का सुबूत है, जिससे हम मिले ही नहीं। जिसे हम जानते ही नहीं, उसे भला यहां भेष बदलकर आने की क्या जरूरत थी । सीधी-सी बात है कि हुलिए के आधार पर उसे अपने पहचान लिए जाने का खतरा था, इसलिए उसने भेष बदलने की आवश्यकता समझी।”


"रेवतीशरण से भी यों हम मिल चुके हैं। "


"अगर यह सब उसी ने किया होता तो अभिक से रिपोर्ट मिल जाएगी, खैर।" कहने के बाद वह पुनः मधु से मुखातिब हुई, बोली- "तुमने इस डिब्बे को अभी तक खोलकर तो नहीं देखा ?" -


"नहीं।"


एक बार फिर विभा की दृष्टि डिब्बे पर चिपक गई, इस बार धैर्य का बांध तोड़कर मैं कह ही उठा- "डिब्बे को खोलो तो सही, देखना तो चाहिए कि इसमें क्या है ?"


विभा ने डिब्बा खोल लिया, उसमें झांका और उस वक्त मैंने विभा के चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव देखे । डिब्बे के अंदर रखी किसी वस्तु को देखकर ही चौंकी थी वह, मैं या मधु उस वस्तु को नहीं देख पाए थे। चौंकने के बाद विभा के चेहरे पर घृणा - सी फैलती चली गई और उसी घृणा को देखकर, कारण न जानने की वजह से हम बुरी तरह बेचैन हो उठे, दिल नियंत्रण से बिल्कुल बाहर होकर धड़क रहे थे। ।


“क...क्या है उसमें ?” मैंने जल्दी से पूछा ।


"एक जीभ ।"


"ज... जीभ ?" हम दोनों उछल पड़े - "ज... जीभ से क्या मतलब ?"


विभा मेरी तरफ देखती हुई बोली- "जीभ का मतलब जीभ होती है,


लो, अपनी आंखों से देख लो।"


बौखलाई-सी अवस्था में मैंने विभा के हाथ से डिब्बा ले लिया । हम दोनों ने एक साथ ही डिब्बे के अंदर झांककर देखा था और बरबस ही मुंह से चीख निकल गई । वह जीभ ही थी, सचमुच की प्राकृतिक जीभ ! किसी अभागे की जीभ काटकर डिब्बे में रख दी गई थी।