सुबह के सात बज रहे थे और नित - कर्मों से फारिग होने के बाद में बहुत तेजी से कपड़े पहनने में जुटा हुआ था, मधु मेरी मदद कर रही थी, रात हमें आराम करने के लिए कमरे में भेजते समय विभा ने कहा था कि सुबह साढ़े सात बजे वह आई. जी. के साथ महानगर जाएगी। मैंने भी उसके साथ चलने की इच्छा जाहिर की थी, शायद इसलिए क्योंकि मैं इस सारे केस को बहुत नजदीक से देखना चाहता था।
विभा ने इजाजत दे दी, साथ ही कहा कि ठीक सात बजे तैयार हा जाऊं ।
जूतों के फीते बांधकर मैं अभी सीधा खड़ा हुआ ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई, दरवाजा खोलने पर मैंने वहां विभा को खड़े पाया, बेदाग सफेद साड़ी और ब्लाऊज में, वैसा ही उसकी अपनी त्वचा का रंग भी था ।
गोल मुखड़ा, गुलाबी होठ और मृगनयनी बेहद चमकदार आंखें | विभा बेहद सुंदर लग रही थी, परंतु क्या मैंने उसके ऐसे रूप की कल्पना की थी ?
क्या उसके लिए मैंने ऐसा सोचा था ?
अंदर से हूक-सी उठी, रूलाई जैसे फूट पड़ना चाहती थी।
उफ्फ, भगवान ! तू सचमुच पत्थर का है। कठोर, किसी के दर्द को समझ नहीं सकता । मेरी विभा को देने के लिए क्या तेरे पास यही एक उपहार था ।
सफेद लिबास ?
मेरी भावनाओं को वही समझ सकता है, जिसके साथ ऐसी ट्रेजडी हुई हो, जिसे किसी ने टूट-टूटकर चाहा हो, अटूट प्यार किया हो, उसी का यह रूप । नहीं, भगवान किसी दुश्मन को भी न दिखाए।
उस एक क्षण के लिए मैं भावनाओं के झंझावात् में भटक गया था, विभा के पुकारने पर चौंका । उसने पूछा था कि क्या मैं तैयार हूं। मैं जल्दी से संभलकर बोला- "हां, क्या आई. जी. साहब आ गए हैं?”
"अभी नहीं । "कहती हुई वह अंदर आ गई ।
मैं घूमा, मधु तो पहले ही विभा की तरफ देख रही थी ।
"मैं रायतादान के बारे में बाबूजी से बात कर चुकी हूं।"
मैने उत्सुक होकर पूछा - " क्या कहा उन्होंने ?”
"कहते हैं कि रायतादान नंबरों वाली सेफ में ही होना चाहिए।"
"म... मगर उसमें तो नहीं था, कहां चला गया?"
" "इस प्रश्न ने सारे मामले को कुछ और ज्यादा उलझा दिया है।" विभा बोली- " मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि सेफ में रायतादान नहीं है, केवल उसके बारे में बातें ही कीं। मकसद केवल यह जानना था कि ऐसे किसी रायतादान का अस्तित्व है?”
मैं और मधु चकित-से खड़े रह गए हर घटना बड़ी रहस्यमय सी - महसूस दे रही थी ।
कमरे में चहलकदमी - सी करती हुई विभा ने कहा- "उधर इंस्पेक्टर त्रिवेदी ने अपनी रिर्पोट दे दी है। पड़ोसियों से बातचीत करने के बाद उसने पता लगाया है कि रजनी चतुर्वेदी करीब अट्ठाईस वर्षीय, दुबली पतली गोरी और आकर्षक औरत है, उसकी आय का साधन किसी को पता नहीं है। उसका एक लड़का भी है, जिसका नाम सचिन है और उसे फ्लैट पर केवल सर्दियों से देखा गया है। वह पड़ोसियों से सचिन का जिक्र करके कहा करती थी कि वह किसी कैम्ब्रिज में पढ़ता और वही रहता है। वह सुहागिनों वाला पूरा मेकअप किया करती थी और पूछने पर उसने अपने पति के बारे में किसी पड़ोसिन से कहा था कि वे मिलिट्री में कर्नल हैं । उसके पास अक्सर चार-पांच आदमी आया करते थे जिनमें से एक का हुलिया जोगा या इकबाल गजनवी से मिलता है।"
"ओह, बाकी लोगों का हुलिया ?"
"वे हुलिए कम-से-कम अभी तक तो अपरिचित लोगों के ही हैं।"
"सुधा पटेल बड़े रहस्यमय ढंग से वहां रह रही है।"
"पड़ोसियों का कहना है कि एक हफ्ते से वह कुछ बेचैन और विचलित अवस्था के बारे में उसने किसी के पूछने पर कुछ नहीं बताया । " - सी महसूस दे रही थी, अपनी उस
हम सुधा पटेल के बारे में सोचते रह गए ।
" एकाएक ही विभा पुनः बोली- " तुम यह पर्ची लेकर 'गुडलक ड्राईक्लीनर्स' के यहां चली जाना मधु बहन, उससे कहना है कि तुम्हें मैंने भेजा है, रजनी चतुर्वेदी के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करना , अगर वह कुछ विशेष न बता सके तो कह आना कि अगर कोई व्यक्ति इस पर्ची से संबंधित शॉल को लेने आए तो वह उसे रोककर तुरंत हमें सूचित करे।"
मधु ने पर्ची ली, मैं बोला- "पर्ची के बिना भला वहां शॉल लेने कौन पहुंचेगा?”
"सुधा स्वयं पहुंच सकती है ।"
"स... सुधा, म... मगर उसका तो अपहरण कर लिया गया है?"
"मुझे शक हो रहा है वेद, लगता है कि उसका अपहरण नहीं किया गया, बल्कि... .।"
"बल्कि ?"
"यह सारा ड्रामा खुद उसी ने फैलाया है।"
"क... क्या ?" मुझे जैसे बिच्छू ने डंक मारा ।
"रात कुछ विशेष चीजों पर गौर करने से मैं चूक गई थी, अच्छा सोचकर जरा एक बात का जवाब दो ।"विभा ने पूछा – "लिहाफ फर्श पर पड़ा था, बेडशीट में सलवटें थीं। इसका क्या मतलब?”
"स्पष्ट है, दुर्घटना से पहले सुधा पटेल लिहाफ ओढ़े बेड पर लेटी थी ।”
“क्या तुम्हारे ख्याल से उसने उस वक्त चप्पल आदि कुछ पहन रखी होगी?”
"सवाल ही नहीं उठता बिस्तर में भला कोई चप्पल वह कर क्यों घुसेगा?"
" यानी वह नंगे पैर थी, लिहाफ ओढ़े बैड पर पड़ी थी। बैड ही पर पड़े-पड़े उसने मुझे फोन किया, उसके बाद मुश्किल से दो मिनट बाद किडनैप करने वाले या वाला वहां पहुंचा, वह बिस्तर में ही थी। उसने संघर्ष किया, दूसरी चीजों के अलावा ड्रेसिंग टेबल भी गिरी ।
सारे फर्श पर शीशा बिखर गया । फर्श पर खून का कहीं हल्का सा धब्बा भी नहीं था वेद । क्या फर्श पर बिखरा कांच उसे नहीं चुभा, क्या यह स्वाभाविक है?"
"वह कहती गई, "जितनी सम्पन्न सुधा थी उतनी सम्पन्न औरत के यहां से उसका और उसके लड़के का फोटो न मिलना भी एकदम अस्वाभाविक है, जरा सोचो, जब वह बिस्तर में थी तो निश्चय ही फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद करके लेटी होगी, सारी खिड़कियां अंदर से बंद थीं। कोई भी दरवाजा कम- -से-कम टूटा हुआ नहीं था, फिर हमलावार फ्लैट के अंदर दाखिल कैसे हो गए ?"
"संभव है कि उन्होंने दस्तक दी हो, सुधा ने तुम्हें बुलाया तो था ही, यह समझकर कि तुम ही आई हो सुधा ने बिस्तर से निकलकर फ्लैट का दरवाजा खोला हो ।"
"तब अपहरणकर्ता और सुधा में संघर्ष बाहरी कमरे में होना चाहिए था।"
“कमाल है, तुम खुद ही अपनी रात की थ्यौरी को काट रही हो और अब लग रहा है कि वह गलत ही थी, तुम अब सही सोच रही हो ।"
"वह भी सबूत के आधार पर सोचा गया एक अनुमान और यह भी, जब हम आधार रूपी सुबूतों को ही गलत नजर से देखें तो सोया हुआ अनुमान भी गलत होगा, संभव है कि जो मैं अब सोच रही हूं वह भी गलत ही हो, मगर सारी वारदात में कुछ अस्वाभाविक जरूर है ।"
"सबसे बड़ा सवाल तो ये ही है कि भला सुधा पटेल खुद ही अपने अपहरण का नाटक क्यों करेगी, उसने तुम्हें खुद ही तो फोन करके वहां बुलाया था।"
"संभव है कि वहीं सब कुछ दिखाने के लिए बुलाया हो ।”
"क्यों?”
"यह तो वही जाने, लेकिन फिलहाल मुझे लग रहा है सारा ड्रामा सुधा पटेल ने खुद रचा था। उपरोक्त चंद स्वाभाविक बातों की वजह से मैं ऐसा सोचने के लिए विवश हूं। हां, फिलहाल तुम्हारे क्यों का जवाब मेरे पास नहीं है।"
मैं समझ गया कि इस मामले में खुद विभा भी डबल माईंड हो रही है।
अभी हममें कोई किसी एक निश्चय पर नहीं पहुंचा सका था कि आई. जी. साहब के आने की सूचना मिली । मैं और विभा उनके साथ गाड़ी में महानगर के लिए रवाना हो गए।
हैडक्वार्टर से इकबान गजनवी की फाइल निकाली गई ।
फाइल के सबसे पहले पृष्ठ पर 'जोगा' का एक बड़ा-सा फोटो लगा था, जिसके नीचे लिखा था- 'इकबाल गजनवी' वल्द आफताब गजनवी, पता मुंगैया रोड, शेरू की चाल कमरा नंबर पैंतीस । - "
विभा ने पृष्ठ पलटा । फिर वह हर दो मिनट बाद पृष्ठ पलटती रही। कदाचित वह प्रत्येक पृष्ठ को पढ़ने के बाद ही पलटती थी, फाइल बहुत ज्यादा मोटी नहीं थी इसलिए विभा ने करीब पन्द्रह मिनट में ही पूर्ण पढ़ ली। बंद करती हुई बोली- "फाइल में उसके बारे में कुछ विशेष नहीं है, सिर्फ इतना ही लिखा है कि वह थर्ड क्लास गुंडा है, किसी बड़े दांव की ताक में रहता है । छुरा मारने या चोरी-चकारी के जुर्म में कई बार छोटी-मोटी सजा भी काट चुका है, उसके उन्हीं कारनामों का विवरण भी है । "
"पुलिस को उसके बारे में इतनी ही जानकारियां मिली होंगी ।"
आई. जी. बोले ।
"मेरे अनुभव के मुताबिक वह कत्ल जैसा बड़ा जुर्म भी कर चुका था । खैर, इस फाइल में सबसे बड़ी कमजोरी ये है आई. जी. साहब कि इसमें इकबाल गजनवी के पिछले चार साल का लेखा-जोखा है, इससे पहले का नहीं ।” "
"पुलिस को मिला ही नहीं होगा ।"
"इसका मतलब ये कि इकबाल निश्चय ही चार साल पहले 'जोगा' था और उनसे' इसका परिचय कम-से-कम चार साल पहला जरूर था, वे नहीं जानते थे कि आजकल उसका नाम इकबाल है।” "ऐसा ही लगता है ।"
"क्या वह बअ भी इस फाइल पर लिखे पते पर ही रहता है ?"
"हम अभी मालूत कर देते हैं।" आई. जी. साहब ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया। "ये सारी जानकारियां संबंधित थाना इंचार्ज को होंगी ?"
"ठहरिए, क्या संबंधित थाने में जाना ही हमारे लिए ज्यादा उचित नहीं होगा?”
" जैसी तुम्हारी इच्छा ।"
उसके बाद हम संबंधित थाने में पहुंचे थाना इंचार्ज का नाम देवेन्द्र भट्ट था । वह करीब चालीस वर्ष की आयु का एक स्वस्थ व्यक्ति था, इकबाल गजनवी के बारे में भट्ट ने बताया कि आजकल वह बंदरगाह के कुलियों से नाजायज हफ्ता वसूलने वालों का सरदार बना हुआ है। उसने यह भी बताया कि इकबाल करीब एक हफ्ते से इलाके में नजर नहीं आ रहा है, भट्ट यह नहीं बता सका कि वह कहां गया है ? "
हां, उसे गजनवी का पता जरूर मालूम था ।
विभा ने उसके कमरे का निरीक्षण करने की इच्छा जाहिर की, हम सब 'शेरू की चाल' की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में विभा ने भट्ट से कहा कि जितनी देर में वह गजनवी के कमरे का निरीक्षण करे तब तक हफ्ता वसूलने वाले मावालियों के ग्रुप के एकाध गुंडे और चाल के मालिक शेरू को पकड़कर गजनवी के कमरे पर ही ले आए ।
भट्ट ने बताया कि ग्रुप के ज्यादातर गुंडे शेरू की चाल में ही रहते हैं
चाल में पुलिस की जीप घुसते ही वहां सरगर्मी सी फैल गई।
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