मंदिर के उस एक कमरे को विभा ने ऑफिस की-सी शक्ल दे दी थी, एक बड़ी-सी और चमकदार सनमाईका वाली मेज के पीछे इस वक्त वह रिवाल्विंग चेयर पर बैठी थी, हम दोनों उसके दाईं तरफ एक छोटी मेज के पीछे गद्देदार कुर्सियों पर, हम पति-पत्नि महेन्द्र पाल सोनी के फ्लैट से निकलने के बाद अब तक चकित से मूक रहकर विभा की चुस्ती-फुर्ती और कार्यविधि देख रहे थे ।


इस वक्त भी एक युवक ससम्मान हाथ बांधे उसके सामने खड़ा था, विभा हुक्म देने वाले स्वर में उससे कह रही थी- "तुम इसी समय दीनदयाल के फ्लैट पर चले जाओ श्रीकान्त । तुम्हें उससे मिलना नहीं है बल्कि गुप्त रूप से केवल उसके फ्लैट पर नजर रखनी है।”


"जो आज्ञा बहूरानी ।" श्रीकान्त ने कहा।


“कल शाम तक वह कहीं भी जाए, कुछ भी करे, चाहे जिससे मिले, तुम्हें कुछ नहीं करना है। तुम सिर्फ साए की तरह उसके पीछे रहोगे और उन आदमियों के नामों की एक लिस्ट बनाओगे जिनसे वह मिले या जो उससे मिलें, याद रहे, तुम्हारा काम उससे मिलने वालों की केवल लिस्ट बनाना है।"


"मैं समझ गया बहूरानी ।" 


"साथ ही, किसी को यह पता न लगे कि हमने तुम्हें इस काम पर लगाया है।” 


"जी!"


"तुम जा सकते हो, हॉल में वीणा बैठी होगी, उसे भेज दो।"


श्रीकान्त चला गया, मैं और मधु विभा के किसी भी आदेश का कोई अर्थ नहीं निकाल पा रहें थे। हां, मैं ये जरूर महसूस कर रहा था कि इस केस को हल करने के लिए विभा ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। कुछ ही देर बाद कमरे में वीणा नामक युवती प्रविष्ट हुई, विभा ने उससे पहला सवाल किया, "वीणा, तुम्हें उन्होंने डिस्टलरी के उसी विभाग में नियुक्त कर रखा था न जहां रम बनती है?"


"जी हां । "


"क्या तुम जानती हो कि पिछले तीन साल से रेवतीशरण रम चुरा रहा है ?"


"जी हां बहूरानी ।" "क्या तुमने यह सूचना अपने अनूप बाबू को दी थी?" 


"जी हां ।" 


"गुड, अब तुम्हें यहां से सीधे शिवाजी रोड जाना है... ।”


इस प्रकार विभा ने वीणा को भी ठीक वही आदेश दिया जो श्रीकान्त को दे चुकी थी, फर्क केवल यह था कि श्रीकान्त को दीनदयाल से मिलने वालों की लिस्ट बनानी थी और वीणा को महेन्द्र पाल सोनी से मिलने वालों की । वीणा को विदा करते वक्त उसने हॉल में बैठे अभिक को भेजने के लिए कहा।


'अभिक ' गोरे रंग का एक स्वस्थ और आकर्षक युवक था। विभा ने उसे रेवतीशरण का पता देकर उस पर नजर रखने का काम सौंपा, उसने अभिक को यह भी बता दिया था कि पुलिस का एक जासूस भी रेवतीशरण पर नजर रखे हुए है। अभिक को विदा करने के बाद विभा ने अभी सांस ली ही थी कि मैंने अपने दिमाग में चकरा रहे सवाल को उस पर ठोक दिया- "ये श्रीकान्त वीणा और अभिक कौन हैं विभा ?"


"ये लोग उनके' (अनूप) बेहद विश्वसनीय कर्मचारी हैं। अपनी प्रत्येक फैक्ट्री के हर विभाग की भीतरी और वास्तविक रिपोर्ट लेने के लिए उन्होंने एक दल बनाया हुआ था, इस दल को वे 'खोजी दल' कहते थे और किसी साधारण व्यक्ति को यह जानकारी बिल्कुल नहीं थी कि उनका कोई 'खोजी दल' भी है। ये तीनों उनके उसी 'खोजी दल के सदस्य थे, ऐसे लोगों के जरिए वे अपने व्यापार पर वास्तविक नजर रखते थे।"


"ओह, काफी अच्छा तरीका है।"


"तुम समझ सकते हो कि ये लोग एक प्रकार से जासूसी का ही धंधा करते रहे हैं, विश्वसनीय भी हैं, इसीलिए मैंने इनसे यह काम लेने का निश्चय किया ।"


"मगर तुम तो कह रही थीं कि दीनदयाल और महेन्द्र पाल सोनी बेकसूर हैं? यदि वे मुजरिम नहीं हैं तो श्रीकान्त और वीणा को उनके पीछे लगाने का मकसद ?"


"मैंने आई. जी. से हत्यारे द्वारा की गई भूल का जिक्र किया था, मेरा संकेत इस बार हत्यारे द्वारा महेन्द्र पाल सोनी के फ्लैट में लाश को छोड़ जाने की तरफ था । "


"इसमें हत्यारे ने क्या भूल कर दी ?"


"हत्यारा अपने परिचितों के फ्लैट ही इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति केवल उपने परिचितों की ही दिनचर्या जान सकता है, जब तक हत्यारे ने केवल दीनदयाल के फ्लैट का इस्तेमाल किया था तब तक हमें सिर्फ उसके परिचितों में से किसी ऐसे व्यक्ति को तलाश करना था, जो यह कर सके, लेकिन अब पहेन्द्र सोनी का नाम भी जुड़ गया । सीधी-सी बात है कि हत्यारा कोई ऐसा व्यक्ति है जो इन दोनों ही के टच में है, श्रीकान्त और वीणा की लिस्ट में जो नाम कॉमन होगा वही संदिग्ध है ।”


" गुड । " मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा।


- एकाएक ही काफी देर से बैठी मधु चुप ने पूछा "रात के आठ बजे के बाद से घटनाएं बहुत तेजी से घटी हैं विभा बहन, रेवतीशरण का यहां आना, उसका बयान । जोगा का मर्डर, उसके दुहरे व्यक्तित्व का रहस्य खुलना आदि ऐसी बातें हैं जिनमें से किसी का भी अर्थ समझ में नहीं आता, क्या तुम इन सब बातों का कोई अर्थ निकाल सकी हो, रेवतीशरण के बयान में क्या दम है?"


"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता "- विभा का वाक्य पूरा हुआ ही था कि अचानक उसकी मेज पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी, हाथ बढ़ाकर उसने रिसीवर उठा लिया।


हम केवल विभा की ही आवाज सुन सकते थे। दूसरी तरफ के व्यक्ति की नहीं, और उसने बड़े ही व्यग्रतापूर्ण अंदाज में बातें की थी अतः काफी देर तक ठीक से कुछ भी समझ में न आने की वजह से हम जबरदस्त तरदुंदद के शिकार रहे। फोन पर हुई पूरी बात विभा ने हमें बाद में बताई थी, तब तक हम तरदुदद में ही रहे थे, किंतु पाठकों को उसी बेचैनी से बचाने के लिए वह वार्ता यहीं, सीधी लिख रहा हूं।


"हैलो!” कहते हुए विभा ने रिसीवर कान से लगाया । दूसरी तरफ से घबराई हुई - सी आवाज आई-"आ...आप कौन हैं, खैर, आप जो भी कोई हैं जरा जल्दी से फोन पर बहूरानी को बूला दीजिए, मुझे उनसे जरूरी काम है।"


"मैं विभा ही बोल रही हूं, कहिए। आप कौन हैं?"


"ओह, गॉड। आप ही बहूरानी हैं। द...देखिए, मैं सुधा पटेल बोल रही हूं।"


स... सुधा ।?" विभा कुर्सी से एकदम खड़ी हो गई, हम भी उछल पड़े थे, मगर अगले ही पल विभा ने खुद को आश्चर्य जनक ढंग से नियंत्रित कर लिया, बोली- "कौन सुधा पटेल?"


मैं और मधु चौंके, सुधा पटेल को तो विभा जानती थी फिर भला फोन पर वह अनजान क्यों बन रही थी, हम समझ नहीं सके, जबकि उस समय दूसरी तरफ से कहा जा रहा था - "क्या आप मुझे नहीं जानती हैं, ओह हां, जानेंगी भी कैसे। हम पहले कभी नहीं मिले। मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, हड़बड़ाहट में जाने क्या-क्या कहती चली जा रही हूं। खैर, देखिए बहूरानी, मैं मरने से पहले आपको कुछ बताना चाहती हूं।"


मरने से पहले ?"


"जी हां, क्या आप थोड़ी देर के लिए यहां आ सकती हैं बहूरानी?”


"ल... लेकिन आपको मर जाने का खतरा क्यों है?"


"व... वह...म... मेरे चारों तरफ । उफ्फ बात लंबी है, मैं फोन पर समझा नहीं सकती । कृपया आप जल्दी - से - जल्दी यहां आ जाएं । मै आपको अपने और अनूप के बारे में कुछ बताना चाहती हूं। अनूप के हत्यारों के बारे में भी थोड़ा बहुत जानती हूं, प्लीज आ जाइए बहूरानी।"


"आप कहां से बोल रही हैं?"


दूसरी तरफ से पता बताने से साथ ही संबंध-विच्छेद कर दिया गया, विभा बहुत ही तेजी में नजर आई। रिसीवर पटककर वह दरवाजे की तरफ झपटती-सी बाली - "मेरे साथ आओ वेद ।"


पूरी बात समझे बिना मैं और मधु हड़बड़ाए से उसके पीछे लपक लिए, अगले दो मिनट बाद हमारी कार मंदिर से निकलकर सुनसान पड़ी एक सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी, बहुत ही तेज- ड्राइविंग करती हुई विभा ने अचानक ही मेरी तरफ देखा, बोली- "मेरे मना करने पर भी तुमने मधु को तिजोरी से मिले पत्रों के बारे में बताया है वेद । "


"मैंने नजरें झुका ली, मधु भी चुप थी ।


"स... सॉरी विभा, मैं मधु से कुछ नहीं छिपा सकता ।"


कार में कई पल के लिए सन्नाटा छा गया, फिर मधु बोली-

"मुझे इनके इस गुण पर फख है, बात अच्छी हो या बुरी ये मुझसे कुछ नहीं छिपाते ।"


"ये अच्छी बात है। ।" विभा बोली- " पति-पत्नि के बीच वाकई कोई पर्दा नहीं होना चाहिए। किसी भी किस्म के छुपाव से संदेह का जन्म होता है और संदेह रिश्तों को बिखेर डालता है। यह पर्दा अनूप ने मेरे साथ रखा, इसीलिए मैं आज अंधेरे में भटक रही हूं, अगर उन्होंने मुझे संतरे का रहस्य बता दिया होता तो आज शायद यह सब कुछ नहीं होता। खैर, बात तुमसे आगे नहीं जानी चाहिए मधु ।"


"मैं इन्हीं की कसम खाकर वादा करती हूं। " मधु ने कहा।


“लेकिन आपको यह कैसे पता लग गया कि ये मुझे सुधा पटेल के बारे में बता चुके हैं?"


"जब मैं फोन पर सुधा पटेल के नाम पर अनजान बनी थी, तब तुम दोनों ने चौंककर एक-दूसरे की तरफ देखा था ।"


"ओह!”मेरे मुंह से यही एक शब्द निकल सका, एक बार फिर मुझे मानना पड़ा था कि विभा की नजरों से छोटी-से-छोटी बात भी नहीं छुप सकती, मधु ने उससे पूछा- " क्या दूसरी तरफ से फोन पर सचमुच सुधा पटेल ही बात कर रही थी ?"


"हां।" कहने के बाद विभा ने हमें वे सब बातें बताई जो मैं ऊपर ही लिख आया हूं। सुनने के बाद मैंने विभा से पूछा था -


"लेकिन तुमने सुधा पटेल के नाम पर अनभिज्ञता जाहिर क्यों की थी?"


"मैं किसी पर भी जाहिर क्यों करूं कि मैं सुधा पटेल के नाम से परिचित हूं?”


“विभा तुम वाकई बहुत... "


उसके लिए प्रशंसा के दो शब्द मैं अभी कहना ही चाहता था कि टायरों की तीव्र चरमराहट के साथ एक झटके से कार रूक गई। विभा बड़ी तेजी से बाहर निकली, हमने भी उसका अनुकरण किया ।


कुछ ही देर में हम एक इमारत के ग्राऊंड - फ्लोर पर स्थित फ्लैट नंबर चवालीस के बंद दरवाजे के सामने खड़े थे, दरवाजे पर कोई वैल नहीं थी, इसलिए विभा ने दस्तक दी।


प्रत्युतर में अंदर से कोई ध्वनि न उभरी।


इस बार जब विभा ने ज्यादा जोर से दस्तक देनी चाही तो किवाड़ पीछे को खुले दरवाजा भीतर से बंद नहीं था, बल्कि केवल भिड़ा हुआ था, विभा बड़बड़ाई- "शायद कोई दुर्घटना हो गई है । "


मेरा दिल धक से रह गया- "कैसी दुर्घटना ?"


क्या इस फ्लैट में अब हमें सुधा पटेल की लाश देखने को मिलेगी?


विभा ने अपने गाउन की जेब से टॉर्च और रिवाल्वर निकाल ली थी। बाएं हाथ में दबी टॉर्च को ऑन करने के साथ ही उसने दरवाजे पर धीरे से ठोकर मारी ।


दरवाजा खुल गया ।


पहले कमरे में अंधेरा था, टॉच का प्रकाश वहां रखे सोफों आदि पर नृत्य करता रहा। वहीं से हमें दूसरे कमरे का दरवाजा भी नजर आ रहा था । दरवाजा बंद था, किंतु उसकी झिरियों में से दूधिया प्रकाश झांक रहा था, जो इस बात का सबूत था कि उस कमरे की ट्यूब ऑन फिर आगे विभा और उसके पीछे हम दोनों फ्लैट में दाखिल हो गए। फ्लैट केवल दो ही कमरों का था और हम पहला कमरा पार करके दूसरे दरवाजे की तरफ बढे ।


मैं नहीं जानता था कि उस वक्त मधु और विभा की क्या हालत थी। अपनी जानता हूं, और सच्चाई ये है कि मेरा दिल बुरी तरह धक् धक् कर रहा था । शायद यह सोचकर कि उस बंद कमरे में क्या है ?