हम चारों भीड़ से अलग गैलरी में एक तरफ खड़े थे, आई. जी. साहब ने पूछा- " आप अपनी जांच बीच ही में क्यों छोड़ आईं, फोटो ग्राफर और फिंगर - प्रिंट्स विभाग वाले तो बाद में भी काम कर सकते थे।
"आगे की जांच के लिए मुझे लाश की स्थिति बदलने की जरूरत थी, जबकि फोटो आदि उसी अवस्था में लिए जाने जरूरी थे, जिसमें लाश मिली थी ।"
"हम समझे नहीं।"
"मुझे उस हथियार की तलाश करनी है, जिसकी मदद से हत्या की गई है।"
एकाएक ही विभा ने मुझसे कहा- "वेद, अपनी जेब से निकाल कर हेयर पिन देना ।”
कुछ भी न समझते हुए मैंने हेयरपिन निकालकर उसे दे दिया, पिन आई. जी. को दिखती हुई ने कहा।" ये वो हथियार है जिससे हत्या की गई ।"
"यह तो हेयर पिन है।"
"अपने ठीक पहचाना, ये मेरा हेयरपिन है। इसके साथ का पिन जोगा के साथ जाते समय संयोग से उन्होंने अपनी जेब में डाल लिया था, मैंने उसी पिन को उनकी लाश की जेबों में तलाश करने की कोशिश की थी, मगर आप भी जानते हैं कि पिन मुझे मिल नहीं सका था । "
"विभा ने पिन से संबंधित सारा किस्सा उन्हें बाता दिया ।
धैर्यपूर्वक और ध्यान से सुनने के बाद आई. जी. साहब ने पूछा- "लेकिन आपने यह कैसे जान लिया कि हत्या पिन की मदद से की गई है ?"
"लाश की गर्दन पर दाईं तरफ ऐसे ही पिन की नोकों के दो छोटे-छोटे जख्म हैं, पिन के दोनों सिरों को पॉटेशिसम पॉयजन में बुझाकर मक्तूल की गर्दन पर वार किया गया है।"
"ओह!” आई. जी. की आंखों में विभा के लिए प्रशंसा के भाव उभर आए । "मगर फिर भी आप यह कैसे कह सकती हैं कि हत्यारा हथियार यानी पिन को मक्तूल के आस-पास ही कहीं छोड़ गया होगा, पिन काफी कीमती है|लालच में फंसा हत्यारा उसे अपने पास भी तो रख सकता है। "
"उसी लालच ने जोगा की जान ली है।"
"क्या मतलब?"
"हम सबकी धारणा यह थी कि उनका कत्ल जोगा ने किया है, परंतु जोगा की लाश इस बात का ठोस प्रमाण है कि जोगा मुख्य हत्यारा नहीं, बल्कि मुख्य हत्यारे की कठपुतली मात्र था, इसने मुख्य हत्यारे की गैर जानकारी में लालच में फंसकर पिन अपने कब्जे में ले ली। हत्यारे की इस पर कड़ी नजर रही होगी, अतः वह जान गया कि इसने पिन ली है। मुख्य हत्यारे को इतनी समझ है कि ये कच्चा लालच पुलिस को उस तक पहुंचा सकता है, इस स्थिति में हत्यारे की दृष्टि में जोगा ने पिन अपने पास रखकर भरी गलती की थी, हत्यारे ने उसी पिन से इसकी हत्या करके इसकी गलती की सजा दी है और जिस गलती के लिए उसने यह हत्या की है, वही गलती खुद नहीं कर सकता । इसलिए मैं कह रही हूं कि पिन को हत्यारा मक्तूल के आस-पास ही कहीं छोड़ गया होगा।"
आई. जी. साहब के दिमाग की सारी नसें जैसे खुलती चली गई।
निश्चय ही वे विभा से बेहद प्रभावित नजर आ रहे थे और उनके अगले सवाल ने उनकी मनः स्थिति को उजागर ही जो कर दिया, वे बोले- "अगर आप बुरा न मानों तो एक बात पूछें?"
"जरूर पूछिए ।"
"किसी भी घटना का इतना जल्दी और इतना अच्छा विश्लेषण तो ट्रेंड डिटेक्टिव भी नहीं कर पाते फिर आप कैसे कर लेती हैं, इतनी जल्दी बिखरी हुई सारी कड़ियों को जोड़कर कहानी तैयार कर लेना ।"
उनकी बात बीच में ही काटकर विभा ने प्रश्न किया- "क्या आपने कभी किसी मुजरिम से संबंधित फाइल का अध्ययन किया है ?"
"ऑफकोर्स, अनेक बार ।"
"आपने उनमें क्या समानता पाई?"
"सॉरी, हम सवाल का तात्पर्य नहीं समझे।"
- विभा के गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान उभरी, बोली-
"इसका मतलब ये है कि आपने सिर्फ सरसरी तौर पर वे फाइलें देखी हैं, ध्यान से अध्ययन करके उस पर सोचा नहीं है। अगर आपने ऐसा किया होता तो मेरे सवाल का तात्पर्य आप खुद ब- खुद समझ जाते ।”
"मैंने आपसे पूछा था कि... ।”
"आपके उसी सवाल का जवाब देने जा रही हूं, लेकिन उससे पहले आप जरा इस प्रश्न जवाब दें कि किसी भी व्यक्ति की हत्या क्यों होती है?"
“कमाल कर रही हैं आप ? हत्या के अनेक कारण हो सकते हैं।"
"अनेक कितने?"
"ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि हत्या किसकी हुई है, प्रत्येक हत्या का कारण अलग हो सकता है।"
"मैं ऐसा नहीं सोचती, आपने कहा कि हत्या के अनेक कारण हो सकते हैं, सवाल ये है कि अनेक कितने , क्या आपने कभी हत्या के कारणों को गिनने की कोशिश की है?"
" ऐसी कोशिश तो हमने कभी नहीं की।"
“आज कीजिए । आप हत्या के अलग-अलग कारण बताइए, मै गिनती रहूंगी।"
पहले तो आई. जी. साहब ने विभा को अजीब सी नजरों से देखा, फिर वे कारण बताने लगे । जायदाद, लड़की, जमीन किसी हत्यारे का जुनून खानदानी दुश्मनी जैसे बीस कारण आई. जी. साहब एक ही सांस में बता गए। उसके बाद सोच-सोचकर बताने लगे, आई जी द्वारा हर नया कारण बताया जाने पर विभा बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ उसे नंबर दे देती, इस प्रकार रोते-पीटते आई. जी. साहब तीस कारण बताने में कामयाब हो गए, किंतु काफी देर तक सोचते रहने के बावजूद इकत्तीसवां कारण न बता सके और जब उन्होंने मौन फुल स्टॉप लगा दिया तो विभा बोली-
"आप हत्या के केवल तीस ही कारण बता सके हैं और तीस कारण बताने वाले आप पहले व्यक्ति हैं, अक्सर लोग दस पन्द्रह कारणों पर ही अटक जाते हैं, जबकि गिनने से पहले वे ही कह रहे होते हैं कि हत्या के अनेक कारण हो सकते हैं। अगर बहुत ज्यादा जोर लगाकर पूरे दिमाग से सोचा जाए तो हत्या के ज्यादा से ज्यादा सौ कारण प्रकाश में आएंगे, बल्कि मैं तो ये कहूंगी कि हत्या के सौ से ज्यादा कारण हो ही नहीं सकते, मैंने हत्या के केसों की कम-से-कम पांच सौ फाइलों का अध्ययन किया है और उनमें से ज्यादातर केसों में समानता थी, माना कि हम हत्या के सौ कारण कंटस्थ कर लेते हैं, उसके बाद किसी भी लाश को देखते ही उसे उन सौ कारणों की तराजू पर रखते हैं, लाश की स्थिति, मृतक में स्थान और उसका करेक्टर आदि हमें एक पल में बता देगा कि इस हत्या का कारण उन सौ कारणों में से कौन -सा है। बस हम उसी फाइल को दिमाग में लाते हैं, जिसमें हमने इसी कारण से हुई हत्या या हत्याओं का विवरण पढ़ा था । उसी फाइल में जब हम उस केस से संबंधित हत्यारे का नाम उसकी मानसिकता, व्यक्तित्व और हत्या करने के तरीके को याद करते हैं तो सामने पड़ी लाश के हत्यारे की एक धुंधली - सी आकृति निश्चय ही उभर आती है, वर्तमान लाश के आस-पास की स्थिति उस आकृति को साफ करने में मदद करती है, थोड़ी-सी तफ्तीश और मृतक के आस-पास के लोगों के बयान हमें हत्यारे के बहुत निकट ले जाकर खड़ा कर देते हैं।"
"कमाल है, बड़ी अजीब थ्यौरी है आपकी ?"
"क्यों, पसंद नहीं आई क्या?”
“आप पसंद की बात कर रही हैं, हम तो ऐसा महसूस कर रहे हैं कि अगर हर डिटेक्टिव इस थ्यौरी पर चलने लगे तो हत्या के केस का कोई भी मुजरिम कानून की पकड़ से बचा न रहे ।"
"थैंक्यू।"
"क्या वर्तमान केस से मिलती-जुलती घटनाएं भी आपने किसी फाइल में पढ़ी हैं?"
“क्यों नहीं, आप राजधानी सुप्रीम कोर्ट की फाइल नंबर एक हजार चार, अपराध संख्या तीन सौ दो, 'अपॉन बारह सौ पिच्चास्सी वाले केस की फाइल पढ़ सकते हैं । "
"बड़ी गजब की मैमोरी है आपकी, वैसे उस फाइल में क्या था?"
"बलदेव नामक हत्यारे ने बदले की भावना से कत्ल किए थे।"
“क्या आप केस के पीछे भी बदले की भावना ही महसूस करती है।
"हां ।"
"किस बात का बदला यानि ।” ...
"अभी यह नहीं कहा जा सकता है, हां। उस फाइल में बलदेव अपनी प्रेमिका की हत्या का बदला ले रहा था, कुछ लोगों ने मिलकर कुछ वर्ष पहले न केवल उसकी प्रेमिका की हत्या ही की थी, बल्कि उसकी अस्मत भी लूटी थी, बदले के रूप में बलवीर उन्हीं हत्यारों की हत्या कर रहा था।"
"क्या आप इन हत्याओं के पीछे भी कोई ऐसा ही कारण महसूस करती हैं?”
विभा ने इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि बोली-
"आइए, फोटोग्राफ और फिंगर प्रिंट्स विभाग वाले अपने काम निपटा चुके हैं।"
हम सब पुनः कमरे में आ गए।
पलंग के समीप खड़ी विभा कुछ देर तक लाश को देखती रही, फिर उसने लाश को करवट दे दी। लाश के नीचे विभा का दूसरा हेयर पिन पड़ा था, जिसे देखकर हम तीनों के मुंह से चकित रह जाने वाली सिसकारी निकल पड़ी, विभा के होठों पर सफलता की मुस्कान नाच रही थी, बोली- "फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग के लोगों से कहिएगा कि इस पिन पर अपना-अपना काम करके वे इसे जांच के लिए लैबोरेट्री भेज दें। मेरे ख्याल से इसके दोनों सिरों पर पॉटेशियम पॉयजन ही पाया जाएगा।"
विभा ने यह कोशिश कतई नहीं की कि उसके शब्दों का आई. जी. पर क्या प्रभाव हुआ है, बल्कि वह लाश की तलाशी लेने में जुट गई, तलाशी में अन्य चीजों के साथ एक कागज भी निकला, वैसा ही जैसा अनूप की मेज पर से मिला था । कागज पर वैसी ही आकृति बनी हुई थी, आकृति को देखती हुई विभा का चेहरा कठोर हो गया, बोली- " हत्यारे ने बचाव के लिए इसे भी साढ़े तीन घंटे का समय दिया था।" "
"ये पहेली और साढ़े तीन घंटे का क्या चक्कर है ?"
"लगता है कि पहली हत्यारे के लिए खुद एक समस्या बनी हुई है, उसे उम्मीद है कि पहेली के हल हो जाने पर उसके दिमाग की कोई गुत्थी सुलझ जाएगी तथा साढ़े तीन घंटे से उसका कोई भावनात्मक रिश्ता लगता है, पहेली के हल के लिए वह इस समय को घटा या बढ़ा नहीं सकता ।”
“एक यह बात समझ में नहीं आई कि हत्यारा आखिर हर बार अलग और दूसरों का फ्लैट क्यों इस्तेमाल कर रहा है, पहले जुर्म के लिए दीनदयाल का फ्लैट, दूसरे के लिए महेन्द्रपाल सोनी का । "
"इस फ्लैट को जुर्म के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया है।"
“क्या मतलब है?"
“हत्या कहीं और की गई है, यहां तो हत्यारे ने लाश लाकर केवल पलंग पर लिटा दी ।"
"आप यह कैसे कह सकती हैं?"
"
"जब हत्यारे ने पिन का वार इसकी गर्दन पर किया तब यह किसी प्रकार के बंधनों में जकड़ा हुआ नहीं था, अगर होता तो इसके हाथ सा पैरों पर निशान होते वे नहीं हैं जाहिर है कि यह स्वतंत्र था और स्वतंत्र व्यक्ति जब यह जान ले कि सामने वाला उसे जान से मारने पर आमादा है तो हर हालत में बचाव के लिए संघर्ष जरूर करता है, संघर्ष करने के चिन्ह इसके जिस्म पर हैं अर्थात् इसने संघर्ष किया था, किंतु कमरे में ऐसा कोई चिन्ह नहीं । स्पष्ट है कि वह संघर्ष यहां नहीं हुआ। कत्ल कहीं और हुआ लाश लाकर यहां डाल दी गई ।"
"हत्यारा ऐसा क्यों कर रहा है?"
"हमें उलझाने और खुद को संदेह के दायरे से बहुत दूर रखने कोशिश में ।"
"मगर मेरे ख्याल से वह बहुत बड़ी भूल कर बैठा है।"
आई. जी. साहब ने चौंकते हुए पूछा। "कैसी भूल?"
"अभी नहीं, वह मैं समय आने पर ही बता सकूंगी।" कहने के बाद विभा घूमी और बड़ी तेजी से बाहर निकल गई, आई. जी. साहब के चेहरे पर मौजूद अवाक् रह जाने वाल भावों का देखते हुए हम भी विभा के पीछे ही कमरे से बाहर निकल गए थे।
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