इकहरे बदन और गेहुए रंग वाले उस युवक का नाम महेन्द्र पाल सोनी था । उम्र करीब चौबीस, हेयर स्टाइल जितेन्द्र जैसी थी | काली आंखों, भरी-भरी भंवों और तोते जैसी नाक वाला यह युवक देखने में आकर्षक लगता था, जिन्दल पुरम् की शुगर फैक्ट्री में वह जूनियर इंजीनियर के पद पर नियुक्त था ।


सर्विस लगे अभी सिर्फ एक साल ही हुआ था ।


महेन्द्र सोनी के माता-पिता पास के महानगर में रहते थे, फैक्ट्री की तरफ से उसे जिन्दल पुरम् में ही शिवाजी रोड पर एस ब्लाक में चौथी इमारत में फ्लैट नंबर बीस अलाट हुआ था ।


हफ्ते में छः दिन वह अपने फ्लैट में ही रहता था ।


शनिवार को ड्यूटी के बाद महानगर जाता । रविवार की छुट्टी वहीं व्यतीत करके सोमवार की सुबह ही पुनः जिन्दल पुरम् आ जाता । उसे पीने की लत नहीं थी, मगर परहेज भी नहीं करता था।


यार ! दोस्तों की महफिल में बैठकर दो-तीन पैग वह लगा लिया करता था, अभी उसकी शादी नहीं हुई थी, हां, जबसे जिन्दल पुरम् में उसकी सर्विस लगी थी तभी से रिश्ते वाले चक्कर लगाने लगे थे।


जिन्दल पुरम् के दूसरे निवासियों की तरफ अनूप की मृत्यु का उसे भी हार्दिक दुख था। उसकी नजर में भी अनूप एक आदर्श और देवता सरीखा व्यक्ति था। अंतिम संस्कार से फारिग होने के बाद महेन्द्र पाल सोनी अपने ऑफिस के ही एक दोस्त के घर चला गया था ।


वह अकेला नहीं, बल्कि कुल मिलाकर वे पांच दोस्त थे, उनमें से एक वह भी था, जिसके यहां सब इकट्ठे हुए थे, शाम छः बजे ही उन्होंने गम गलत करने के लिए 'एरिस्टोक्रेट' की एक बोतल खोल ली ।


पांचो पीते रहे, बातचीत का विषय अनूप ही था ! बीच-बीच में विभा का नाम भी आ जाता, जिसे वे सभी केवल बहूरानी कह रहे थे । पीने का दौर करीब सवा आठ बजे तक चलता रहा।


फिर सभी दोस्त विदा हुए।


एक थ्रीव्हीलर के जरिए महेन्द्र पाल सोनी उस इमारत में आया था, जिसमें उसका फ्लैट था, सीढ़ियां चढ़ते वक्त उसने महसूस किया कि आज बातों ही बातों में क्षमता से कुछ ज्यादा ही पी गया है। -


कदमों में हल्की-सी लड़खड़ाहट थी ।


फिर भी वह दूसरी मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट के बाहर पहुंच ही गया । हल्के से सुरूर में झूमते हुए उसने जेब से चावी निकाली, दरवाजा खोलकर लाईट-ऑन की ।


पलग पर दृष्टि पड़ते ही वह चौंका ।


उसे महसूस दिया कि पलंग पर कोई सो रहा है। शुरू के क्षणों में उसने कवाचित इसे अपना भ्रम समझा इसीलिए आंखें मिच-मिचाई, सिर को झटका देकर फटी-सी आंखों से पलंग की तरफ देखा ।


वहां सचमुच कोई कंबल ताने पड़ा था । सिर से पांव तक !


पलंग पर सोए व्यक्ति के जिस्म का एक भी हिस्सा चमक नहीं रहा था, इसलिए थोड़ा सचेज- सा होता हुआ सोनी बोला- "कौन है, पलंग पर कौन सो रहा है?"


इस वाक्य के साथ ही वह पलंग के नजदीक पहुंच गया और शायद नशे की झोंक में ही उसने एक झटके से कंबल खींचकर एक तरफ फेंक दिया, इतना होने पर भी पलंग पर लेटा व्यक्ति निश्चल पड़ा रहा । वह आंखें  खोले महेन्द्र सोनी की तरफ ही देख रहा था । 


"तुम कौन हो भाई, और यहां कैसे आ गए?" महेन्द्र सोनी ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा।


पलंग पर पड़े व्यक्ति की पलकें तक नहीं झपकीं ।


अब महेन्द्र सोनी चौंका, उसका नशा हिरन होने लगा था।


ध्यान से देखा तो पाया कि पलंग पर पड़े व्यक्ति की आंखे शीशे की तरह चमक रहीं थीं, जीवन का कोई चिन्ह नहीं था उनमें।


महेन्द्र सोनी ने हड़बड़ाकर उसके मस्तक पर हाथ रखा और अगले ही पल वह बदहवास - सा खून - खून चिल्लाता हुआ फ्लैट से बाहर की तरफ भागा। पागलों की तरफ गैलरी में इधर से उधर भागता हुआ खून - खून चिल्ला रहा था, आस पास के फ्लैटों में रहने वाले हड़बड़ाकर बाहर निकले ।


यह बयान था महेन्द्र पाल सोनी का, जो हमें खुद सोनी के मुंह से वहां पहुंचने पर सुनने को मिला, हम इस वक्त दूसरी मंजिल की गैलरी में खड़े थे, गैलरी में काफी भीड़ थी और महेन्द्र सोनी ने सबके सामने ही अपना बयान दिया था, कि उपरोक्त हालातों में फंस कर उसका नशा काफूर हो गया था ।


"पुलिस स्टेशन फोन किसने किया था ?”


"म... मैंने बहूरानी ।" नाईट गाउन पहने एक बूढ़ा व्यक्ति बोला- "जब सारी इमारत में हंगामा मच गया और सभी लोग यहां गैलरी में जमा हो गए। तो मैंने कोतवाली फोन कर दिया ।"


उसका वाक्य खत्म होते-होते वहां धड़धड़ाती पुलिस भी पहुंच गई, पुलिस का नेतृत्व खुद आई. जी. महोदय कर रहे थे, वहां आते ही उन्होंने पूछा- "कहां कत्ल हुआ है ?"


"लाश इनके फ्लैट में पड़ी है। "विभा ने सोनी की तरफ इशारा किया ।


आई. जी. साहब ने बड़ी ही खूंखार दृष्टि से महेन्द्र सोनी की तरफ देखा, सोनी के तिरपन कांप गए। चेहरा सफेद पड़ गया था, बड़े ही नर्वस अंदाज में उसने अपने शुष्क होठों पर जीभ फेरी, आई. जी. साहब ने अचानक ही उस पर सवाल ठोक दिया-


"किसको मारा है तुमने ?"


महेन्द्र सोनी एकदम गिड़गिड़ा उठा । "म... मैंने किसी को नहीं मारा साहब!"


"ओह, तुम तो शराब भी पिए हुए हो । "


महेन्द्र सोनी कांपकर रह गया, जबकि विभा बोली । "मैं

इनका बयान ले चुकी हूं आई. जी. साहब ।"


"इस हालात में इसने क्या बयान दिया होगा बहूरानी?"


विभा ने महेन्द्र सोनी का सारा बयान दोहरा दिया, तब बोली-


"यानि वह सबके लिए अपरिचित है?"


"हां ।"


"ये बकता है बहूरानी। आई. जी. साहब गुर्राए- "झूठ बोल रहा है, बोल, कौन से दोस्त के यहां बैठकर शराब पी थी तूने । क्या नाम है उसका ?" 


"ज... जगमोहन साहब।"


"कहां रहता है?”


"श... शंकर स्ट्रीट में ।"


आई. जी. साहब ने उससे जगमोहन का फोन नंबर पूछा, उसके द्वारा नंबर बताए जाने पर एस.एस.पी. को आदेश दिया कि वह उक्त नंबर पर फोन करके महेन्द्र सोनी के बयान की जांच करे और फिर विभा की तरफ घूमकर बोले- "क्या आप लाश को देख चुकी हैं बहूरानी ?"


"जी नहीं, यहां पहुंचने के बाद मैंने महेन्द्र सोनी के बयान लिए ही थे कि आप पहुंच गए।"


"तो आईए लाश का निरीक्षण कर लें ।" कहने के साथ ही वे बीस नंबर फ्लैट की तरफ बढ़ गए। विभा उनके पीछे थी, मैं और मधु विभा के साथ कमरे की तरफ जाते हुए आई. जी. साहब ने एक अधिकारी को फोन द्वारा फिंगर प्रिन्ट्स, पुलिस फोटो ग्राफर और पोस्टमार्टम वालों को बुला लेने का आदेश दे दिया था, हम फ्लैट के चौपट पड़े द्वार पर ठिठके। "


फिर कमरे के अंदर दाखिल हो गए।


अब पलंग पर बिल्कुल चित अवस्था में पड़ी लाश को हम सभी बिल्कुल स्पष्ट देख सकते थे, मैं, मधु और आई. जी. साहब अभी उसे ध्यान से देख ही रहे थे कि विभा चौंक सी पड़ी, उसके मुंह से निकला"जोगा।" -


हम तीनों ने एक साथ चिहुंककर विभा की तरफ देखा।


विभा की दृष्टि लाश के चेहरे पर ही केंद्रित थी, वह बड़ी अजीब - सी अवस्था में बड़बड़ा रही थी—“हां, यह तो वही है, जोगा । इसे मैं करोड़ों की भीड़ में भी पहचान सकती हूं। संतरा दिखाकर यही उन्हें धमकाया करता था, यही उन्हें अपने साथ ले गया था । "


मैं और मधु चकित से विभा की तरफ देख रहे थे, जबकि आई. जी. साहब ने पूछा ।"ये आप क्या कह रही हैं बहूरानी । कहीं आप धोखा तो नहीं खा रही हैं?"


"क्या मैं इस कमीने को पहचानने में भी धोखा खा सकती हूं, कभी नहीं । ध्यान से देखिए, क्या इसका हुलिया वही नहीं है, जो मैंने आपको बताया था?”


"हुलिया तो वही है, लेकिन ...।” 


चौंकती हुई विभा ने पूछा ।" लेकिन ?” मैं


इसे जानता हूं, इसका नाम जोगा नहीं इक़बाल गजनवी है।


"क्या मतलब?" विभा के साथ ही मैं भी चौंक पड़ा था ।


आई. जी. ने बताया - "ये हिस्ट्रीशीटर गुंडा है। पुलिस हैडक्वार्टर में इससे संबंधित पूरी फाइल मौजूद है, पिछले दो साल से यह महानगर स्थित बंदरगाह के मवालियों की अगवानी कर रहा है, उन मवालियों का काम बोझा ढोने वाले कुलियों से हफ्ता वसूल करना है, मगर यह बात समझ में नहीं आई कि यह जिन्दल पुरम् में क्या कर रहा है और किसने इसे कत्ल करके यहां डाल दिया ?"


"भले ही इसका नाम इकबाल गजनवी हो, लेकिन मैं दावे से कह सकती हूं कि संतरे वाला आदमी यही है, संभव है कि मेरे पति इसे जोगा के नाम से जानते हों।"


"हो सकता है, लेकिन हमें अपनी स्मृति पर आश्चर्य है, इसका हुलिया ठीक वैसा ही है, जैसा आपने बताया था, किंतु उस वक्त हमें इकबाल गजनवी का ख्याल क्यों नहीं आया। शायद इसलिए कि हम इसकी जिन्दल पुरम् में मौजूदगी की कल्पना भी नही कर सकते थे।"


" यही वजह रही होगी, लेकिन इसका मतलब तो ये है कि यह दुहरी जिंदगी जी रहा था, कुछ लोग इसे इकबाल गजनवी के नाम से जानते हैं और कुछ लोग जोगा के नाम से।"


"संभव है कि जोगा के नाम से इसे केवल अनूप बाबू ही जानते हों।"


"नहीं, उनके अलावा भी मैं कम-से-व -कम एक और ऐसे व्यक्ति का नाम जानती हूं, जो इसे जोगा के नाम से ही जानता था । कहने के साथ ही विभा ने मेरी तरफ देखा, मैं समझ गया कि उसका इशारा सुधा पटेल की तरफ है, आई. जी. ने पूछा-


"आप ऐसे किस दूसरे व्यक्ति को जानती हैं?”


"स... सॉरी, इस प्रश्न का जवाब मैं इस वक्त नहीं दे सकती ।"


आई. जी. साहब चुप रह गए, जबकि में किंकर्त्तव्यविमूढ़-सा उस लाश को देख रहा था, उसे, जिसको विभा, जोगा की लाश बता रही थी, हालांकि आई. जी. साहब उसी का नाम इकबाल गजनवी बता रहे थे, किंतु मेरे लिए विभा के कथन पर शक करने मे गुंजाइश ही नहीं थी। मैं जानता था कि उसकी नजर धोखा नहीं खा सकती । जोगा की लाश ने मेरे दिमाग को कुंद कर दिया था, क्योंकि यह उसी व्यक्ति की लाश थी, जिसे मैं मन-ही-मन पक्के तौर पर अनूप का हत्यारा मान चुका था, इस लाश ने मेरे अनुमानों की इमारत को धराशाई कर दिया ।


"बोलिए।"


"मुझे इस व्यक्ति से संबंधित फाइल चाहिए।"


"मिल जाएगी, लेकिन कमाल है, ये इकबाल गजनवी तो बड़ा रहस्यमय आदमी निकला । 


" कहते हुए वे बड़ी सावधानी से पलंग की तरफ बढ़ गए थे, विभा भी उनके बराबर में ही खड़ी ध्यान से लाश को देख रही थी, मैं सोच रहा था कि रेवतीशरण के बयान और जोगा की इस लाश ने तो सारे मामले को एक अनोखा ही मोड़ दे दिया है, कुछ भी तो समझ में आने को तैयार न था।


“कमाल है, कहीं कोई जख्म । कोई घाव नहीं।" आई. जी. साहब बड़बड़ाए ।  खून का हल्का सा धब्बा तक भी तो कहीं नहीं है।"


"जहर से मरे व्यक्ति के जिस्म पर कोई घाव नहीं होता आई. जी. साहब ।”


क... क्या मतलब क्या ये हत्या जहर से हुई है?" 


"जी हां। " आई. जी. साहब लाश को कुछ ध्यान से देखने के बाद बोले।


"हमें तो नहीं लगता। जहर से मरे व्यक्ति का जिस्म नीला पड़ जाता है। मुहं से झाग निकलने लगते हैं, लेकिन यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है।"


"एक जहर का नाम 'पॉटेशियम पॉयजन ' है आई. जी. साहब, उसके उसर से जिस्म पर कहीं कोई प्रभाव नहीं पड़ता, हां, नाखूनों की जड़ों में हल्का कालापन सा उभर आता है, मैं लाश के नाखूनों की जड़ में वही देख रही हूं।"


"तो क्या इसने जहर खाकर खुद आत्महत्या की है?"


"जी नहीं, इसे मारा गया है। जहर खिलाकर नहीं, बल्कि किसी अन्य माध्यम से इसके जिस्म में 'पॉटेशियम पॉयजन' पहुंचा कर ।"


"किसी इंजेक्शन आदि द्वारा ?"


विभा लाश कि गर्दन पर झुकी, कुछ देर तक बहूत ही ध्यान से जाने क्या देखती रही और फिर अगले ही पल वह एक झटके से सीधी खड़ी हो गई, मैंने उसकी आंखों में चमक देखी । विशेष चमक! मैं अच्छी तरह उस चमक को पहचानता हूं जानता हूं कि यह चमक विभा की आंखों में केवल तभी उभरती है, जब वह किसी रहस्यमय गुत्थी को सुलझा लेती है, मैं यह जानने के लिए बुरी तरह व्यग्र हो उठा कि आखिर विभा ने किस गुत्थी को सुलझा दिया है, आई. जी. साहब की तरफ घूमकर वह बोली- "जी नहीं, इसके जिस्म में जहर किसी इंजेक्शन द्वारा नहीं पहुंचाया गया है।"


"फिर ?"


"आइए बाहर चलें, फिलहाल मैं चाहती हूं कि फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग के लोग अपनी कार्यवाही निपटा लें, उसके बाद हम एक बार फिर लाश का निरीक्षण करेंगे।" -


जाने वह कौन सी ताकत थी, जिसके वशीभूत विभा के सामने आई. जी. तक दबे-दबे से नजर आते थे, कम-से-कम मैं तो उसे विभा के व्यक्तित्व की ताकत ही कह सकता हूं। वह बेहद सुंदर है, इतनी ज्यादा कि कोई भी व्यक्ति उसके मुखड़े की तरफ देखकर अपनी आंखों के लिए नई ज्योति अर्पित कर सकता है।


विभा के मुखड़े पर कुछ ऐसा तेज, ऐसी गंभीरता और गरिमा है कि बहुत देर तक कोई व्यक्ति उसकी तरफ देख भी नहीं सकता और यदि वह आपकी आंखों में डाल दे तो निश्चय ही आप चकाचौंध हो जाएंगे । उसकी आंखों में ऐसा आकर्षण, ऐसी दिव्य ज्योति-सी चमकती है कि आप पलकें झुकाने पर विवश हो जाएंगे।


कदाचित आई. जी. साहब उसके इसी व्यक्तित्व से प्रभावित फ्लैट से बाहर निकल पड़े।


उनके इशारे पर फोटो ग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग के लोग अंदर चले गए, एस. एस. पी. ने रिपोर्ट दी कि वह जगमोहन की पत्नी से बात करके महेन्द्र सोनी के बयान की पुष्टि कर चुका है।