हम होटल नहीं गए । 'मंदिर' में ही आराम करने के लिए हमें एक कमरा दे दिया गया था, किंतु आराम करने का होश या जरूरत किसे थी। हां, इस बहाने हत्या के बाद से अब जाकर मैं और मधु अकेले में मिले । मधु भी सब कुछ जानने के लिए बेहद आतुर थी, इसलिए मिलते ही उसने प्रश्नों की झड़ी-सी लगा दी। मैंने अक्षरशः शुरू से लेकर अंत तक उसे सब कुछ बता दिया । सेफ से मिले पत्रों के बारे में भी, किंतु साथ ही उसे पत्रों का जिक्र किसी अन्य से न करने की हिदायत दे दी थी । सुनकर मेरी ही तरह मधु भी अवाक् रह गई थी।


आपस की बातचीत के बाद हम दोनों इस बात पर एकमत थे कि सारे रहस्य खुल चुके हैं, जले-भुने जोगा ने ही अनूप का मर्डर किया है, परंतु शीघ्र ही यह पता लगा कि हम कितना गलत सोच रहे थे।


यह तो हमने बाद में जाना कि उलझाव खत्म नहीं हुआ थे, बल्कि बनने शुरू हुए थे ।


उस वक्त हम दोनों बातें ही रहे थे जब पोस्टमार्टम विभाग के लोग अनूप का शव लेकर वहां आ गए, रिपोर्ट में कोई विशेष बात नहीं थी, मृत्यु गोली लगने से ही हुई थी। विभा भी अपने कमरे से बाहर निकल आई। उसकी आंखें लाल सुर्ख थीं। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी देवी ने अकेले कमरे में जी भरकर अपने मन की भडास निकाली है।


सात बजे के करीब डॉक्टर्स गजेन्द्र बहादुर को भी वहां ले आए । जवान पुत्र की मृत्यु का आघात वह सह चुके थे। बुरी तरह विलाप कर रहे थे वे, विभा भी उनके वक्ष से लिपटकर फूट-फूटकर रोई। अंतिम संस्कार की तैयारियां होने लगीं।


जिन्दल पुरम् का हर निवासी मंदिर के बाहर इकट्ठा होने लगा ।


आठ बजते ही मैं सर्राफे की तरफ रवाना हो गया, किंतु वहां पहुंचकर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी आई । एक भी दुकान खुली हुई नहीं थी, सारा बाजार बंद और कम से - कम आज वह खुलना भी नहीं था । -


मैं वापस आ गया |


उस वक्त जिन्दल पुरम् के नागरिक अनूप के अंतिम दर्शन कर रहे थे। चारों तरफ रूदन - ही - रूदन था। भीड़ में मुझे आई.जी. साहब भी नजर आए, उनसे पता लगा कि दीनदयाल को छोड़ दिया गया है, क्योंकि उसके फ्लैट के ताले से मिलने वाले फिंगर- प्रिन्ट्स उसके नहीं हैं।


उस वक्त शाम के पांच बजे थे, जब अनूप की ठंडी पड़ गई चिता से फूल चुने जा रहे थे।


रात के आठ बजे मैं मधु और विभा गुमसुम से एक कमरे में बैठे थे, तभी एक सेवक ने आकर कहा कि एक व्यक्ति आपसे (विभा) मिलना चाहता है। मैंने सेवक को लगभग डांटते हुए कहा कि इस वक्त विभा किसी से नहीं मिलेगीं, तब सेवक ने बताया कि उसने मिलने वाले से यही कहा था कि वह जाता ही नहीं है, कहता है उसका इसी वक्त बहूरानी से मिलना बहुत जरूरी है, वह बहूरानी से अनूप बाबू के बारे में कुछ बात करना चाहता है।


हम तीनों ही चौंक पड़े।


विभा ने उसे भेज देने के लिए कहा। कुछ ही देर बाद कमरे में सहमा, घबराया और आतंकित व्यक्ति आया वह थेड़ा मोटा और गुट्टा था । आंखें नीली थी तथा वह धोति कुर्ता पहने था । 


"कहो, क्या बात है ?” मैंने उससे पूछा।


"मुझे बहूरानी से दो विभा की तरफ देखा, विभा ने आगंतुक से कहा – “ये लोग हमारे विश्वसनीय हैं तुम्हें जो कहना है बेहिचक इसके सामने ही कहो ।” - "


उसने सहमे हुए से अंदाज में मेरी और मधु की तरफ देखा और फिर बोला "आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा बहूरानी, कि अनूप बाबू मरे नहीं हैं।"


"क... क्या ?" एक साथ तीनों ही मुंह से चीख-सी निकल गई थी।


"जी हां, वे जिंदा हैं ।"


मेरी खोपड़ी भक्क से उड़ गई थी और शायद वही अवस्था मधु और विभा की भी थी । सारे जमाने की हैरत जैसे सिमटकर सिर्फ हम तीनों के ही चेहरों पर एकत्रित हो गई। कई क्षण तक हममें से कोई कुछ बोल नहीं सका, भौंचक्के-से अविश्वसनीय नजरों से उसे देखते रह गए। उसे जो उस क्षण हमें कोई पागल ही महसूस दिया था, विभा ने धीमे से कहा- यह तुम क्या कह रहें हो ?" 


"मैं ठीक ही कह रहा हूं बहूरानी, मैंने उन्हें उपनी आंखों से देखा है। उन्होंने मुझसे और मैंने उनसे करीब दस मिनट बातें की हैं...लेकिन....!"


"वे मुझे मार डालेंगे बहूरानी, आप मुझे बचा लीजिए। केवल आप ही मुझे बचा सकती हैं।"


"क्यों मार डालेंगे ?”


"प... पता नहीं कैसे वे मेरे द्वारा किए भ्रष्टाचार के बारे में

जान गए हैं?"


"भ्रष्टाचार?"


“हां बहूरानी, दरअसल मेरा नाम रेवतीशरण है। आपकी डिस्टलरी के उस विभाग में हूं जहां 'रम' बनती है, पिछले तीन सालों से मैं भ्रष्टाचार में शरीक रहा हूं। सबसे छुपाकर मैं गैलन के गैलन 'रम' जिन्दल पुरम् से बाहर चोर बाजार में भिजवाता रहा हूं । अब, यह बात जाने कैसे अनूप बाबू को पता लग गई है, वे मेरे पास आए थे । जेब से निकालकर उन्होंने मुझे एक बहुत लम्बा चाकू भी दिखाया और कहने लगे कि या तो 'रम' की चोरी में शरीक अपने दूसरे साथियों का नाम बताऊं, अन्यथा वे मुझे उसी चाकू से मार डालेंगे।"


उसकी अजीब बातें सुनकर हम हक्के-बक्के रहे गए ।


"क्या तुम्हें यकीन है रेवतीशरण कि वे तुम्हारे अनूप बाबू ही थे ?"


"जी हां बहूरानी सोलह आने ।" "


मगर वे तो मर चुके हैं, आज ही तो उनके शव का अंतिम संस्कार हुआ है।"


"इसीलिए तो उन्हें देखते ही मैं हैरान रह गया था, मैं खुद भी तो उनकी अंतिम यात्रा में शरीक था बहूरानी । शमशान से करीब पांच बच्चे हैं, किंतु हैं सबसे अलग बैठाक डाले कमरे में अकेला पड़ा अनूप बाबू के बारे में 

ही सोच रहा था, यह कि हमारे छोटे मालिक कितने नेक थे। विचारों की धुन में मुझे यह भी होश न रहा कि अंधेरा छा चुका है और अब मुझे बत्ती जला लेनी चाहिए, उस वक्त सवा सात बजे थे जब अचानक ही किसी ने बैठक का दरवाजा खटखटाया, मैं चौंककर उठ बैठा । उस क्षण पहली बार मुझे अहसास हुआ कि कमरे में अंधेरा है। मैंने सोचा कि शोभा होगी, शोभा मेरी पत्नी का नाम है। सो, पहले लाईट जलाई और उसके बाद दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही मैं हक्का बक्का रह गया, नीचे की सांस नीचे, और ऊपर की ऊपर। बदहवास सा मैं भूत-भूत कहकर अभी चिल्लाने ही वाला था कि दरवाजे पर खड़े अनूप बाबू ने फुर्ती से झपटकर मेरा मुंह दबोच लिया, उनके बंधनो में कैद में छटपटाता ही रह गया, जबकि उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद करके सांकल चढ़ा दी थी, फिर उन्होंने जेब से चाकू निकालकर उसे 'खट्ट' से खोला और मेरी गर्दन पर रखकर गुर्राए ।" अगर तुम चीखे या मुंह से कोई आवाज निकाली रेवतीशरण, तो याद रखो, ये चाकू तुम्हारी गर्दन के आर-पार कर दूंगा।" - -


मैं बहुत डर गया था, कांपता हुआ आंखों में खौफ लिए उनकी तरफ देखता रहा ।


फिर वे खुद ही बोले- "मैं तुम्हारे मुंह से अपना हाथ हटाता हूं, याद रखो जोर से नहीं बोलोगे मैं तुमसे कुछ पूछने आया हूं और तुम धीमे स्वर में ही मेरे सवालों का जवाब दोगे।"


उन्होंने मेरे मुंह से हाथ हटा लिया ।


चाकू गर्दन पर ही रखा था।


उन्हें देखकर मेरी जो हालत हो रही होगी उसका अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं, पहले तो मैंने उन्हें उनका भूत ही समझा था फिर जब यह याद आया कि भूत के स्पर्श का अहसास नहीं हो सकता तो मानना पड़ा कि वे साक्षात् अनूप बाबू ही थे, डरते-डरते मैंने पूछ भी लिया । अ...अनूप बाबू आप?”


"हां मैं ।" 


"मैं मरा नहीं हूं हरामजादे ।" वे दाँत किटकिटाकर बोले।


'बल्कि तुम जैसे भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने के लिए मरने का नाटक किया है, बोलो ? इस कमरे में अकेले पड़े क्या कर रहे थे?'


'अ... अ आप ही की मृत्यु पर अफसोस कर रहा था मालिक ।"


‘अफसोस।' वे दांत भींचकर गुर्राए । मेरी मौत पर और तुम अफसोस मना रहे थे, तुम्हें तो खुश होना चाहिए रेवतीशरण, अब तो तुम्हारी रम की चोरी और ज्यादा खुलकर चलेगी?'


"अ... आप ये कैसी बातें कर रहे..."


'बको मत रेवतीशरण'। मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही गर्दन पर चाकू की नोक चुभाते हुए वे गुर्राए, - ' मुझसे झूठ बोलने की कोशिश मत करो, जानता हूं कि तुम हर महीने कम- -से-कम दो गैलन रम जिन्दल पुरम् से बाहर भेजते रहे हो, समीप के महानगर में स्थित फाईव स्टार होटल 'मनोरंजन' के मालिक को ।'


मेरी जुबान तालू से चिपक गई, सिट्टी-पिट्टी गुम ।


मैं नहीं समझ सका कि अनूप बाबू इतना सब कुछ कैसे जान गए हैं, गुर्राते हुए जब उन्होंने मुझसे फिर बोलने के लिए कहा तो मैंने हकीकत स्वीकार कर ली. तब वे बोले- जिन्दल पुरम् से तुझ जैसे राक्षसों का संहार करने के लिए ही मैंने खुद को मृत घोषित किया है, बोल ! इस काम में और कौन कौन तेरा साथी है?' -


'क... कोई नहीं मालिक । 


'झूठ बोलता है, तेरे कुछ और भी साथी होंगे। उनके नाम बता ?'


'मैंने बहुत कहा बहूरानी कि इस काम में मेरा कोई साथी नहीं है, मैं अकेला ही हूं, लेकिन वे नहीं माने । लगातार धमकियां देकर मुझसे नाम पूछते रहे । जब मेरे साथ कोई है ही नहीं तो किसका नाम ले देता, उन्हें यकीन नहीं हुआ। नाम बताने के लिए उन्होंने मुझे आज तक का समय दिया है। कह गए हैं कि कल वे मुझसे फिर मिलेंगे और उनके जीवित होने का रहस्य किसी पर खोला तो वे मेरा ही नहीं, बल्कि मेरे सारे खानदान का खून कर देंगे।'


"तुमने फिर भी यहां आकर वह सब कुछ बता दिया ?" मैंने पूछा ।


"क्या करता साहब यह तो मेरी मजबूरी है। उनके जाने के बाद मैं परेशान सा हो गया, सोचने लगा कि जब कल वे आएंगे तो किसका नाम बताऊंगा, लिहाजा वे मुझे मार डालेंगे। मैं मरने से बहुत डरता हूं। सोचने लगा कि मालिक के चाकू से बचने के लिए क्या करूं, तभी दिमाग में बहूरानी का ख्याल आया। सोचा कि आप ही मुझे बचा सकती हैं। मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं कि बैठक से सीधा यहीं आया हूं। किसी अन्य से बात तक नहीं की, उनके जीवित होने का रहस्य बताने की तो बात ही दूर । "


विभा ने कहा - "मगर हम इसमें क्या कर सकते हैं?"


"अ... आप मुझे अपने साथ ही रखिए, इस बार जब वे मुझसे मिलें तो उनसे कह दीजिएगा कि सचमुच उस काम में मेरा कोई साथी नहीं था, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं। आप मुझे उनसे माफी दिलवा दें, कसम खाता हूं कि फिर कभी ऐसा कोई काम नहीं करूंगा, मुझे बचा लीजिए बहूरानी । "


हम दोनों और हमारे साथ ही विभा भी बड़ी अजीब सी उलझन में फंस गई थी। रेवती शरण ने जो कुछ कहा था वह बिल्कुल अविश्वसनीय था, किंतु उसे झूठा भी नहीं कहा जा सकता था, खुद यहां आकर भला कोई क्यों यह सब कहेगा, बेवजह भला वह क्यों अपने भ्रष्ट और चोरी के किस्से को बेनकाब करेगा? 


कुछ देर तक सोचती रहने के बाद विभा ने सवाल किया-


"क्या तुम्हें अच्छी तरह याद है रेवतीशरण, कि तुमने कमरे की लाईट ऑन करने के बाद ही दरवाजा खोला था?" 


"यह बात भी कोई भूलने की है बहूरानी, आप यकीन कीजीए यह घटना बिल्कुल सच है। मेरे पास सुबूत भी है, ये देखिए । मेरी गर्दन पर चाकू का जख्म ।" कहने के साथ ही उसने गर्दन का वह हिस्सा आगे किया जहां जख्म था, चाकू के उस छोटे से जख्म को हम तीनों पहले ही देख चुके थे।


"क्या तुम हमें अपनी बैठक दिखा सकते हो ?"


"क्यों नहीं, आप इसी वक्त मेरे साथ चलिए ।”


इस तरह हम तीनों रेवतीशरण के साथ कार द्धारा उसके घर पहुंचे। बैठक देखी। विभा ने बहुत ही पैनी दृष्टि से बैठक का निरीक्षण किया था परंतु कियी विशेष नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। कुछ देर बाद हम कार द्वारा वापस 'मंदिर' की तरफ लौट रहे थे। रेवतीशरण को उसके घर ही छोड़ आए थे, यह कहकर कि वह किसी से अनूप के जीवित होने का जिक्र न करे। साथ ही उसे आश्वासन दिया था, कि उस पर नजर रखी जाएगी, दुश्मन के किसी भी किस्म के आक्रमण से उसे बचा लिया जाएगा।


विभा ने एक पंब्लिक टेलीफोन बूथ के समीप कार रोकी, हमें कार में ही बैठे रहने दिया और बातें करने लगी। मैंने और मधु ने एक-दूसरे की तरफ देखा, दोनों ही को अपनी खोपड़ी इस नए झमेले से उल्टी हुई-सी महसूस दे रही थी। रेवतीशरण के बयान का अर्थ किसी भी रूप में हमारी समझ में नहीं आ रहा था ।


पांच मिनट बाद ही विभा वापस आ गई ।


कार थोड़ी ही दूर चलकर एक ऐसे मोड़ पर घूम गई जो रास्ता मेरी जानकारी के मुताबिक कम-से-कम मंदिर की तरफ बिल्कुल नहीं जाता था, शायद इसलिए मैंने हल्के से चौंकते हुए कहा- "क्या हम मंदिर नहीं जा रहे हैं विभा?"


"नहीं, हम शिवाजी रोड चल रहे हैं।"


"क्यों?"


"वहां एक हत्या हो गई है । "


"क...क्या?” मेरे साथ ही मधु के कंठ से भी चीख- सी उबल पड़ी अपने कान के समीप मैं सन्नाटे से उत्पन्न होने वाला बड़ा ही अनोखा - सा और रहस्यमय शोर सून रहा था, काफी कोशिश के बाद मैं अपने दिमाग को नियंत्रित कर सका, फिर पूछा- "किसका खून हो गया ?”


"अभी यह पता नहीं लग सका । "


"क्या मतलब?"


"महानगर से आए हुए आई. जी. साहब अभी यहीं यानि जिन्दल पुरम् में ही हैं, मैंने यह सोचकर कोतवाली फोन किया था कि किसी अधिकारी से कहकर किसी अच्छे से जासूस को रेवतीशरण पर नजर रखने के काम पर लगवा दूंगी, किंतु फोन पर खुद आई. जी. साहब ही मिल गए । पहले उन्होंने मेरे फोन करने का सबब पूछा, मेरे बताने पर बोले- जासूस को तो मैं अभी भेज देता हूं बहूरानी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि अचानक ही जिन्दल पुरम् में आखिर ये होने क्या लगा है?'


"क्या कुछ और भी हुआ है ?" मेरे इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि मेरा फोन आने से कुछ ही क्षण पहले ‘शिवाजी रोड’ से किसी आनंद ने फोन पर सूचना दी है। कि ब्लॉक एस की इमारत नंबर चार में किसी ने किसी की हत्या कर दी है। उनकी इस सूचना पर मैंने पूछा कि क्या वे वहां जा रहे हैं, उनके 'हां' कहने पर मैंने भी पता पूछा और वहां पहुंचने के लिए कह दिया ।"


कार में मौत की-सी खामोशी छा गई थी।