रात के करीब बारह बज गए थे। कार 'जिन्दल पुरम्' की चिकनी, चौड़ी और साफ सड़क पर तैरने के से अंदाज में दौड़ी चली जा रही थी। कार में केवल हम दोनों ही थे। ड्राईव वह स्वयं ही कर रही थी। मैं उसके समीप ही बैठा कागज पर बनी पहेली को देख रहा था । उस पहेली को जिसको मैं अपनी विभा के सुहाग की हत्यारी कह सकता था ।


विभा की आंखें कार के आगे-आगे दौड़ रहे हैडलाईट के प्रकाश पर थीं, सड़क पर दृष्टि गड़ाए ही उसने मुझसे पूछा–“आया कुछ समझ में ?”


"नहीं, मेरे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ रहा है।"


"उस पर से ध्यान हटा लो, इस तरह कुछ पल्ले पड़ेगा भी नहीं।"


"क्या मतलब ?” मैंने विभा की तरफ देखते हुए पूछा ।


"वह पहेली इतनी सरल नहीं हो सकती जिसे वे साढ़े तीन घंटे में हल नहीं कर सके, वे जानते थे कि अगर वे इसे हल नहीं कर सके तो वे साढ़े तीन घंटे उनकी जिन्दगी के आखिरी घंटे होंगे अतः इसे हल करने में उन्होंने पूरी तन्मयता से अपनी सम्पूर्ण दिमाग लगाया होगा, हर वह कोशिश की होगी जो वे कर सकते थे, किंतु फिर भी सफल न हो सके। इसका मतलब है कि पहेली कठिन है और यूं दिमाग खर्च करने से समझ में नहीं आएगी। इसको हल करने के लिए अलग से समय चाहिए।"


"शायद तुम ठीक कह रही हो ।”


"इसे मैं करूंगी और साढ़े तीन घंटे में हल करूंगी ।"


"व... विभा !" चौंकते हुए कहते वक्त मेरा लहजा कांप गया, बल्कि यूं लिखना चाहिए कि मेरा सारा अस्तित्व ही कांप उठा था। जब मैंने ड्राइविंग करती विभा की तरफ देखा तो जिस्म में झुरझुरी - सी दौड़ गई, उसके चेहरे पर अजीब-सी सनसनी फैला देने वाली दृढ़ता थी । आंखे पथराई - सी महसूस हुई, उसने उसी चट्टानी और खुरदुरे स्वर में कहा - "हां वेद, पूरे साढ़े तीन घंटे में और ये भी वादा रहा कि अगर मैं उतने ही समय में हल न कर सकी तो उनकी तरह आत्महत्या कर लूंगी।"


"न... नहीं !" मेरे जिस्म का सारा रोयां खड़ा हो गया । "ऐसा मत कहो ।"


"क्यों, क्या तुम समझते हो कि उस समय में मैं इसे हल नहीं कर सकूंगी ?"


"नहीं, यह बात नहीं है। मुझे तुम्हारे दिमाग पर भरोसा है, फिर भी ऐसी प्रतिज्ञा मत करो।”


"प्रतिज्ञा तो मैं कर चुकी हूं, चिंता मत करो दोस्त। मैं मरने वाली नहीं हूं।" कहती हुई विभा के चेहरे पर विश्वास के सारे लक्षण उभर आए- "मैं जिंदा रहूंगी, किसी और के लिए नहीं, बल्कि मुजरिमों के लिए, उनके लिए जो किसी का सुहाग उजाड़ते है, किसी मां से उसका बेटे, किसी बहन से उसका भाई या किसी भाई से उसकी बहन छीनते हैं, मुजरिम कहलाई जाने वाली ये कौम हमारे समाज के मस्तक पर लगा कोढ़ का बदनुमा धब्बा है, इस दाग को, इस कोढ़ को साफ करने के लिए मैं जिंदा रहूंगी।"


"व... विभा!"


"डिटेक्टिव बनना, डिटेक्टिव बनकर जुर्म और मुजरिमों के खिलाफ जंग छेड़ना ही मेरा मकसद था, वेद, वही मकसद जिसका संकेत उस दिन मैंने तुम्हें होटल के उस केबिन में दिया था। मैं डॉक्टर बनना चाहती थी वेद, जुर्म और मुजरिमों का इलाज करने वाली डॉक्टर और अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए ही कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद भी मर्डर के उलझे हुए केसों से संबंधित फाईलों में ही डूबी रहती थी। मेरा दिमाग इस विषय के अलावा किसी तरफ नहीं था। झटका उस दिन लगा जिस दिन मम्मी-पापा से पता लगा कि उन्होंने मेरी शादी जिन्दल पुरम् के इकलौती वारिस अनूप से तय कर दी है। रोई, चीखी, उनसे कहा कि मैं शादी करना नहीं चाहती, मुझे जासूस बनना है, किंतु किसी ने एक न सुनी। मम्मी-पापा ने समझाया कि लड़की होना एक आवश्यक सामाजिक व्यवस्था है, किसी लड़की की शादी न हो तो लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। मैंने कहा कि मुझे किसी के कुछ कहने की कोई परवाह नहीं है, अब उन्होंने मुझे समझाया कि नारी का जन्म कुछ और नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ किसी कुल की मर्यादामयी बहू गृहिणी और किसी की ममतामयी मां बनने के लिए होता है। मैं इस बात से सहमत नहीं थी, फिर भी मेरी इच्छा के विरूद्ध शादी कर दी गई । सारे सपने, सारे मंसूबे टूट-टूटकर बिखर गए और जब शादी हो ही गई तो ये सच्चाई है वेद कि मैं अपने मकसद के बारे में सब कुछ भूल गई। हलातों से फैसला कर लिया था मैंने इस हद तक कि मैं केवल एक पत्नी, आर्दश गृहिणी और इस कुल की मर्यादामयी बहू बन गई। खुद भूल गई कि कभी मैंने क्या बनने की सोची थी, जब इंसान हालातों से फैसला कर लेता है तो खुश रहने लगता है। सो, मैं खुश थी। यकीन मानो दोस्त, मैं बहुत खुश थी कि अचानक ही आज किस्मत ने मुझे फिर झटका दिया ऐसा झटका जिसने कि मुझे विधवा कर दिया, मेरा सब कुछ लूट लिया, जिसने और जिसने लूटा है वह मुजरिम है, उसी घृणित जाति का एक जानवर जिसका इलाज मैं कभी डॉक्टर बनकर करना चाहती थी। अब ये सफेद लिबास मेरे तन पर सारी जिंदगी रहेगा वेद, और यह लिबास मुझे जुर्म की वजह से मिला है, उसी जुर्म की वजह से जिसे समूल नष्ट करने की मैंने कसम खाई थी। अब वह कसम पूरी होगी, यह सफेद लिबास हर क्षण याद दिलाता रहेगा कि मुझे जुर्म और मुजरिमों को खात्मा करना है। जो बनने की बात मैं शादी के बाद भूल गई थी आज वही बनने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। सो, विभा के मुंह से अलफाज नहीं आज निकलने लगी थी, चेहरा यूं भभकने लगा था जैसे किसी फैक्ट्री का ब्वॉयलर हो ।


जाने किस भावना के वशीभूत मेरा सारा जिस्म पसीने से तर हो गया।


मैं चाहकर भी कुछ बोल न सका, जुबान तालू से चिपककर रह गई थी जैसे ! कार के अंदर केवल इंजन की मद्धिम - सी आवाज ही गूंजती रही। खुद को सामान्य दर्शाने के लिए मैंने पूछा- "वैसे विभा, तुम्हारे ख्याल से दीनदयाल क्या निकलेगा ?"


"क्या मतलब ?”


"मेरा मतलब क्या उसके मुजरिम होने की संभावना है ?"


" कम से कम दीनदयाल को देखे बिना उसके बारे में कोई भी धारणा बना लेना तो न्यायोचित होगा और न ही बुद्धिमानी । वह मुजरिम हो भी सकता है, नहीं भी। हां, इतना जरूर है कि उसका बयान इस केस में महत्वपूर्ण जरूर साबित होगा, दीनदयाल का गायब होना कहता है कि इस बारे में उसे कुछ-न-कुछ मालूम जरूर है।"


अभी मैंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि कार एक हल्के से झटके के साथ रूक गई। मैंने देखा कि कार हरिकेश बहादुर अस्पताल के पोर्च में रूकी थी, हम दोनों गाड़ी से उतर गए।


अस्पताल में विभा डॉक्टर से मिली ।


अपने श्वसुर के बारे में मालूम किया। डॉक्टर ने बताया कि वैसे तो वे स्वस्थ हैं, किंतु बार-बार अनूप से मिलने के लिए कह रहे हैं, जब विभा ने कहा, अनूप की मृत्यु के बारे में उन्हें बताना तो पड़ेगा ही तब डॉक्टर बोला- "हम समझते हैं बहूरानी, बताए बिना काम नहीं लानेगा! आखिर कल अंतिम संस्कार भी तो उन्हें ही करना है।"


"क्या उस वक्त बाबूजी को शॉक नहीं लगेगा ?"


"हमारे ख्याल से नहीं।"


"क्यों ?"


"आज सारी रात वे यहीं रहेंगे" डॉक्टर ने बताया । "अनूप बाबू से बार-बार मिलने की वे जिद कर रहे है, कुछ तो उन्हें शक हो ही रहा है। जब हम उनके सारी रात के अनुरोध के बावजूद अनूप बाबू से न मिलवा सकेंगे तो उनका शक विश्वास में बदल जाएगा, यानी सुबह तक बिना किसी के बताए धीर-धीरे उन्हें खुद ही मालूम हो जाएगा। फिर जब हम बताएंगे तो उन्हें कोई शक नहीं लगेगा, क्योंकि यह बात तो उनका मस्तिष्क पहले ही समझ और स्वीकार कर चुका होगा।"


मुझे डॉक्टर की राय जमी।


विभा भी सहमत थी, शायद इसलिए चुप रह गई, फिर काफी देर तक वह डॉक्टर से उनके बारे में ही बातें करती रही, तीस मिनट बाद हम वापस आकर गाड़ी में बैठे ।


गाड़ी मंदिर की तरफ रवाना हो गई।


बड़ी तेजी से घटने वाली घटनाओं के संबंध में मेरे दिमाग में बहुत से सवाल चकरा रहे थे, जानता था कि यदि विभा उन सारों का नहीं तो उनमें से कुछ सवालों का जवाब दे सकती है, किंतु जाने किन विचारों में गुम वह ड्राइविंग किए जा रही थी, उससे कोई भी सवाल करने का मेरा साहस न हुआ अभी मंदीर से एक-डेढ़ फर्लांग इधर ही थे कि विभा बुरी तरह चौक पड़ी।


"द... दीन दयाल !" विभा के कंठ से चीख-सी निकली थी और अगले ही पल विभा के पैरो का दबाव ब्रेकों पर बढ़ता चला गया, टायरों की तीव्र चरमराहट के साथ कार फिसलती चली गई।


मगर, अब वह व्यक्ति कहीं नजर नहीं आ रहा था जिसे देख कर हम चौंके थे या विभा ने फुर्ती से ब्रेक लगाए थे, विभा के कहने से मैं समझ गया था कि वह साया दीनदयाल ही था वह जो कार की हैडलाईट के प्रकाश में नहाया था । केवल एक क्षण के लिए ।


अगले ही क्षण वह सड़क की दाईं तरफ अंधेरे में लुप्त हो गया था ।


बाई तरफ से बेतहाशा भागते हुए उसने सड़क पार की थी, वह सब कुछ एक क्षण के भी हजारवें हिस्से में हो गया था, कार के रूकने तक अभी मैं ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाया था कि रात के गहरे सन्नाटे के बीच फायर की एक जोरदार आवाज गूंजी।


मैं सहम- सा गया ।


जलता हुआ बुलेट बाईं तरफ से निकलकर हमारी कार के सामने से गुजरता हुआ दाई तरफ छाए अंधेरे में गुम हो गया था। मेरे होश संभालने से पहले ही बाई तरफ छाए अंधेरे से भागते कदमों की आवाज उभरी, साथ ही कड़ाकेदार चेतावनी - "भागने की कोशिश मत करो दीनदयान, तुम बच नहीं सकोगे।" 


तभी बाईं तरफ के अंधेरे से निकलकर कई पुलिसकर्मी सड़क पर पहुंचे।


हैडलाईट के प्रकाश में सड़क पर वे सभी ठिठके थे, वे सभी, क्योंकि भागते हुए वहां पहुंचे थे इसलिए हांफ रहे थे, इंस्पेक्टर त्रिवेदी भी उन्हीं में था और अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर को कार की तरफ तानकर वहीं गर्जा- "कौन है उधर, हैडलाईट ऑफ करो।"


"ये हम हैं इंस्पेक्टर ।" विभा ने जोर से कहा ।


"ओह, बहूरानी" त्रिवेदी एकदम सकपका-सा गया, रिवॉल्वर की नाल स्वंय ही झुक गई, जबकि विभा ने जल्दी से कहा। "दीनदयाल को हमने बाईं तरफ गुम होते देखा है इंस्पेक्टर" पीछा करो ।


इंस्पेक्टर त्रिवेदी को जैसे अब याद आया हो कि वह दीनदयाल का पीछा कर रहा था, चीखकर अपने साथियों को भी वही हुक्म देते हुए उसने बाईं तरफ के अंधेरे में जंप लगा दी, उसके बाएं हाथ में रिवॉल्वर और दाएं हाथ में टार्च थी। सब कुछ इतनी तेजी से और कुछ ऐसी हड़बड़ाहट के साथ हो रहा था कि मैं समझ न पा रहा था।


एकाएक मेरे शरीर को तेज झटका लगा।


कार को अचानक ही विभा ने गेयर डालकर पीछे हटाया, मैं कुछ समझ नहीं सका कि वह क्या कर रही है और अगले ही पल कार सड़क पर रास्ता रोकने के अंदाज में खड़ी थी और जब मैंने सभी पुलिसकर्मियों को प्रकाश में नहाते देखा तो विभा का अभिप्राय समझ गया ।


दरअसल बाईं तरफ का सारा हिस्सा जिधर हमने दीनदयाल को गुम होते हुए देखा था, हैडलाईट के तीव्र प्रकाश से जगमगा-सा उठा । उस तरफ गन्ने का खेत था ।


त्रिवेदी और उसके साथी चारों तरफ भागे-भागे फिर रह थे और उस अनोखे दृश्य को देखता हुआ मैं सोच रहा था कि दीनदयाल इस ईख में कहीं गुम हो गया है, शायद वह अब हाथ नहीं आएगा ।


वही हुआ ।


पन्द्रह मिनट बाद निराश त्रिवेदी कार के समीप आया, बोला- "जाने कहां गुम हो गया बहूरानी ?"


"वह इधर गया था ।" विभा ने कहा ।


"हां, देखा तो हमने भी था बहूरानी, फायर भी किया था, लेकिन... आप चिंता न करें। वह बचकर निकल नहीं सकेगा। जिन्दल पुरम् में उसे एक घर भी ऐसा नहीं मिलेगा जो अनूप साहब के हत्यारे को पनाह दे सके। सुबह होने से पहले ही वह हमारी गिरफ्त में होगा।"


“सुनो त्रिवेदी, तुम उसे मारोगे नहीं, जिंदा गिरफ्तार करोगे।" एकाएक ही मैंने विभा के लहजे को कड़ा होते महसूस किया-" और हमारा यह आदेश वॉयरलैस के जरिए सभी पुलिसकर्मियों को दे दो।"


"ज... जी बहूरानी ।" त्रिवेदी सकपका-सा गया ।


विभा चुप रह गई, कई क्षण के लिए कार के इर्द-गिर्द सन्नाटा - सा छा गया फिर अगला प्रश्न विभा ने ही किया-"मगर ये दीनदयाल तुम्हें टकरा कहां गया ?"


"क्या मतलब ?"


"अपने दोस्त राम अवतार के घर पर ।"


"वॉयरलैस पर दीनदयाल के बारे में आदेश मिलते ही मैं भी उसकी तलाश में लग गया, मैंने सोचा कि इस तरह उसे कहां तलाश किया जाता तभी मेरे दिमाग में आईडिया आया कि हो-न- हो ऐसे कठिन समय में वह अपने किसी परिचित रिश्तेदार या दोस्त के यहां छुपने की कोशिश करेगा। दीनदयाल के बराबर में ही राम अवतार की किताबों की दुकान है, मैंने सोचा कि राम अवतार से जरूर उसके परिचितों का पता मिल जाएगा, सो पता लगाकर राम अवतार के घर पहुंच गया। संयोग देखिए, दीनदयाल वहीं मिल गया, हमें देखते ही बंदूक से निकली गोली के समान भगा तभी से हम उसका पीछा कर रहे हैं।"


"राम अवतार कहां है ?"


"यहां पास ही मुश्किल से दो फर्लांग दूर उसका घर है। दीनदयाल के पीछे मैं वहां से हवलदार लखनसिंह को वहीं ठहरने और राम अवतार को गिरफ्तार कर लेने का हुक्म देकर भागा था । "


"यानि इस वक्त राम अवतार लखनसिंह की गिरफ्त में होगा ?"


"जी हां।" "गाड़ी में बैठो और हमें उसके घर ले चलो।"


इस तरह, त्रिवेदी गाड़ी में बैठ गया। बाकि पुलिसकर्मियों को वहीं तैनात रहने का निर्देश देने के बाद बोला- "चलिए बहूरानी।"


विभा ने गाड़ी इंस्पेक्टर के बताए हुए रास्ते पर बढ़ा दी, शीघ्र ही वे माध्यम श्रेणी के एक मकान में पहुंचे, हवलदार अधेड़ आयु के रामअवतार के हाथों में हथकड़ियां डाले कदाचित त्रिवेदी के लौटने की ही इंतजार कर रहा था। उसी कमरे में एक औरत और दो बच्चे बिलख-बिलख कर रो रहे थे ।


बेचारे राम अवतार का चेहरा पीला जर्द पड़ा हुआ था ।


विभा को देखते ही वह औरत जो शायद राम अवतार की पत्नी थी, विभा के कदमों में गिरकर रोती हुई गिड़गिड़ाने लगी, वह बार-बार यही रही थी कि -"बहूरानी, ये बेकसूर हैं। इन्होंने कुछ नहीं किया । "


कुछ देर की खामोशी के बाद विभा ने गंभीर स्वर में कहा - "आप उठिए मां जी, आपका इस तरह हमारे पैरों में गिरना हमें बिल्कुल पसंद नहीं है। यकीन रखिए, अगर राम अवतार बेकसूर है तो उसे कुछ नहीं होगा।"


बड़ी मुश्किल से उसे समझाया गया ।


तब, गिड़गिड़ाते से राम अवतार ने कहा- "आपकी कसम बहूरानी, मैंने कुछ नहीं किया । "


"बिल्कुल सही जवाब दो राम अवतार, क्या उस समय दीनदयाल यहीं था जब यहां पुलिस आई ?”


"हां बहूरानी, लेकिन....।”


"लेकिन ?”


"स... सच, मुझे नहीं मालूम था कि वह यहां क्या करके आया है, यहां वह बहुत ही कम आया करता था और इतनी रात गए तो पहले कभी भी नहीं आया। जब मैंने दरवाजा खोलने पर देखा तो चौंक पड़ा, वह बहुत ही बदहवास और घबराया - सा था, मुझे लगभग धकेलता - सा वह अंदर दाखिल हुआ। अंदर आते ही उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया, चौंककर मैंने उसकी बदहवासी, फूली सांस, घबराहट और इतनी रात गए आने का सबब पूछा तो हांफता हुआ सोफे पर बैठ गया और कि वह सब कुछ बताएगा, हलक सूख रहा है, पहले एक गिलास पानी पिलाया जाए। मैंने राजू की मां से उसके लिए पानी लाने के लिए कहा। पानी पीने के बाद वह गहरी-गहरी सांसे लेने लगा, हम पति-पत्नी अचंभे से उसे देख रहे थे, जब वह थोड़ा सामान्य हुआ तो मैंने उससे पूछा, बताने के लिए अभी उसने मुंह खोला ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई । वह हड़बड़ाकर खड़ा हो गया ।"


बंद दरवाजे की तरफ मुंह करके मैंने ऊंची आवाज से पूछा- "कौन है ?"


.. पुलिस | " बाहर से आवाज सुनते ही मैं चकरा गया ।


दीनदयाल पागलों की तरह चीख पड़ा-"नहीं राम अवतार दरवाजा नहीं खोलना!"


"क्यों ?" चक्कराकर मैं चीख पडा-"क्या करके आया है तू ?"


हमारी ये आवाजें शायद पुलिस ने सुन ली थीं, क्योंकि तभी दरवाजा खोलने के गुर्राहट ओदश के साथ दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की जाने लगी। उस वक्त बौखलाया सा दीनदयाल यहां से भाग निकलने का रास्ता ढूंढ रहा था ।


"तूने जरूर कुछ किया है, मैं तो दरवाजा खोलूंगा।" ऐसा कहकर मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा, वह भागकर अंदर वाले कमरे में चला गया था, मेरे दरवाजा खोलते ही यहां पुलिस घुस गई, मुझे हवलदार ने पकड़ लिया, इंस्पेक्टर साहब अंदर वाले कमरे की तरफ लपके। इन्होंने उसे खिड़की के रास्ते से बाहर कूदते देख लिया था, हवलदार को यहीं रूकने का हुक्म देकर ये अपने बाकी साथियों के साथ.....


"तुम बिल्कुल सच कह रहे हो न ?" विभा ने गुर्राकर पूछा।


"ब... बिल्कुल सच बहूरानी, मैं आपकी कसम खाकर कहता हूं। हवलदार साहब ने ही बताया कि दीनदयाल ही अनूप बाबू का हत्यारा है। उफ्फ, मुझे पहले क्यों नहीं मालूम था । काश, मुझे पहले पता होता बहूरानी, कि उसी कमीने ने हमारे देवता जैसे अनूप बाबू को मारा है तो मैं दीनदयाल के टुकड़े-टकड़े कर देता । उस कुत्ते की लाश बिछा देता मैं यहां ।"


अंतिम शब्द कहते-कहते राम अवतार के चेहरे पर जो भभक उभर आई थी वह देखने लायक थी, उस भभक से ही मैं अंदाजा लगा सकता था कि जिन्दल पुरम् के निवासी केवल अनूप के लिए ही नहीं बल्कि पूरे जिन्दल परिवार के लिए दिलों में कैसी श्रद्धा रखते हैं कुछ देर तक विभा भी रामअवतार के चेहरे पर उतर आई उसी अलौकिक भभक को देखती रही, फिर एकाएक ही इंस्पेक्टर त्रिवेदी की तरफ घूमकर बोली- "क्या तुमने कमरे के अंदर से राम अवतार और दीनदयाल की आवाजें सुनी थीं ?"


"जी हां ।"


"क्या तुमने उन्हीं वाक्यों को सुनकर सिपाहियों को दरवाजा तोड़ डालने का हुक्म दिया था ?”


"हां बहूरानी। दीनदयाल यहीं था, उसकी आवाज मैंने बिल्कुल साफ सुनी थी।"


"रामअवतार को छोड़ दो, यह बिल्कुल बेकसूर है।।" कहने के साथ ही विभा किसी फिरकनी के समान तेजी से घूमी और हवा के झोंके की तरह मकान से बाहर निकल गई ।