कार विभा स्वयं ड्राईव कर रही थी, मैं अगली सीट पर उसके बराबर में ही बैठा था, पिछली सीट पर मिस्टर सावरकर बैठे थे। सावरकर ने कहा था कि कार वह ड्राईवर कर लेगा, वे आराम से पिछली सीट पर बैठें परंतु विभा ने उसकी बात न मानकर उन्हें पीछे बैठने का आदेश दिया।


कार के पीछे आई. जी. की कार और उसके पीछे पुलिस कर्मियों से भरी जीप चली आ रही थी, हमारी कार सबसे आगे इसलिए थी, क्योंकि जिस फ्लैट पर हम जा रहे थे उसका पता सिर्फ विभा को ही ज्ञात था । कार में पूरी तरह खामोशी छाई हुई थी ।


एकाएक ही विभा ने मुझे पुकारा - "वेद !"


"हुं !" विचार श्रंखला बिखर जाने के कारण मैं उछल सा पड़ा।


"तुम जासूसी उपन्यास लिखते हो न ?” सड़क पर दृष्टि गड़ाए उसने अजीब सा सवाल किया ।


उसके सवाल का अर्थ न समझते हुए मैंने कहा- "हां ।"


"क्या तुम इस केस के हत्यारे की मानसिक स्थिति का विश्लेषण कर सकते हो ?"


"मैं समझा नहीं।"


"तुमने आई. जी. के मुंह से बाबू जी के बयान सुने, उनसे लगता है कि अनूप ने हत्यारे द्वारा दी गई पहेली हल कर दी होती तो हत्यारे को कुछ भी चाह नहीं थी ।"


"हां, मगर ये बड़ी अजीब सी बात है।"


"इसका मतलब ये कि हत्यारे की दिलचस्पी उन्हें मारे देने से कहीं ज्यादा उस पहेली के हल में थी ।" विभा ने कहा- "ऐसा उस पहेली में क्या है ?"


"मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है विभा। बेशक, मैं जासूसी उपन्यास लिखता हूं, लेकिन इतने उलझे हुए नहीं। मेरे पात्र विजय और विकास है, उनका संबंध भारतीय सीक्रेट सर्विस से है, अतः ज्यादातर वे किसी अन्तर्राष्ट्रीय आपरेशन पर ही काम करते है, ऐसे आपरेशन का रहस्य तो पहले ही खुला रहता है, सवाल सिर्फ ये होता कि वे आपरेशन में कैसे सफल होंगे। पाठकों को हल्का - फल्का मनोरंजन देना ही मेरे उन उपन्यासों का ध्येय है, उसमें इतने सवाल, इतने पेंच या इतने उलझाव बिल्कुल नहीं होते। ऐसे कथानक शायद पाठक पसंद भी नहीं करेंगे।"


"तुम्हारी गलतफहमी है, मेरे ख्याल में तुम्हें पेंचदार कथानक ही लिखने चाहिए। ऐसे कथानकों से तुम मनोरंजन के साथ उनकी बुद्धि भी पैनी करोगे । मेरी राय है कि तुम भविष्य में ऐसे ही कथानक लिखो ।"


"अपने किसी उपन्यास में पत्र के जरिए पाठकों से राय लूंगा।" मैंने विषय को खत्म किया और वापस इस केस पर आता हुआ बोला- "क्योंकि मैं ऐसे कथानक नहीं लिखता इसलिए मिस्टर अनूप के हत्यारे की मानसिक स्थिति का विश्लेषण भी नहीं कर सकता।"


वह चुप रह गई।


कुछ देर तक मैं उसके बोलने की प्रतीक्षा करने से निराश होकर बोला- "क्या तुम हत्यारे की मानसिक स्थिति का विश्लेषण कर सकती हो विभा ?" 


"मेरे ख्याल से जिन्दल पुरम् में अभी मर्डर और होने चाहिए।"


"क... क्या मतलब ?" मैं उछल पड़ा ।


"फिलहाल यही हत्यारे की मानसिकता स्थिति का विश्लेषण है, उसे पहेली का हल चाहिए। अपनी नजर में वह जिसे भी बुद्धिमान समझेगा उसके सामने पहेली रख देगा, हल न कर पाने की सूरत में उसकी हत्या कर देगा।"


"बड़ी अजीब बात कह रही हो तुम। ?" मैंने पूछा- "क्या तुम इस खाली समय में मुझे उस हेयर पिन के बारे में बताओगी?"


"उस बारे में हम बाद में बात करेंगे।" विभा ने मेरी बात बीच में काटकर जल्दी से कहा, मैं समझ गया कि विभा सावरकर के सामने हेयर पिन के बारे में कोई बात करना नहीं चाहती है, मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ और फिर एकाएक ही दिमाग में सवाल उठा कि क्या बिभा मिस्टर सावरकर पर शक कर रही है ?


"यदि हां, तो कैसा शक ?"


हत्यारा तो बिल्कुल स्पष्ट है- जोगा !


क्या विभा जोगा को इस केस का मुख्य मुजरिम नहीं मानती, यदि ऐसा है तो विभा की धारणा के पीछे तथ्य क्या है। सावरकर पर वह कैसे, क्यों और क्या शक कर रही है ?


मैं अभी इन्हीं प्रश्नों में उलझा हुआ था कि एक हल्के से झटके के साथ गाड़ी रूक गई। मैंने देखा कि गाड़ी तीन मंजिले फ्लैट्स के दूर तक फैले सिलसिले और चारदीवारी से घिरे स्थान पर रूकी थी । एक स्थान पर लिखा था- "मानसरोवर कॉलोनी ।"


आई. जी. की कार और पुलिस जीप भी हमारे पीछे ही रूक गईं ।


विभा के नेतृत्व में पूरा काफिला एक इमारत की दूसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 'सी- इक्यावन' के बाहर गैलरी में रूक गया, विभा ने कहा- "यही वह फ्लैट होना चाहिए।"


"म... मगर यह तो बंद है।" आई. जी. ने फ्लैट के बाहर लटके ताले को देखते हुए कहा ।


"जी हां, लेकिन ठहरिए । इस ताले पर कोई हाथ नहीं लगाएगा। अगर फ्लैट वही है तो ताले पर जोगा की उंगलियों के निशान जरूर होने चाहिएं।" कहने के तुरंत बाद ही वह मेरी तरफ घूमी, बोली "क्या तुम्हारे पास रूमाल है वेद ?"


मैंने जेब से रूमाल निकालकर उसे दिया ।


उसने अपने बालों से एक हेयर पिन निकाला, बाएं हाथ में रूमाल लेकर उससे ताले को इतनी आहिस्ता से पकड़ा कि उस पर बने उंगलियों के निशान मिट न पांए, दांए हाथ से हेयर पिन की मदद से वह ताले को खोलने का प्रयास करने लगी, मेरे और सावरकर के अलावा सभी पुलिस कर्मी आई. जी. तक विभा की कार्रवाई को हैरत में डूबे देख रहे थे। उस वक्त तो सबकी आंख लगभग फट-सी पड़ी, जब विभा की पांच मिनट की कोशिश के बाद ही ताले ने मुंह- फाड़ दिया ।


ताला सावधानी से एकतरफा रखा गया ।


दरवाजा खोलकर विभा और उसके पीछे हम सभी फ्लैट में दाखिल हो गए। फ्लैट तीन कमरों का ही था, डायनिंग, ड्राइंग और बेडरूम । ड्राइंग रूम के दरवाजे पर हम सभी ठिठक गए ।


एक कुर्सी और उसके समीप ही फर्श पर नॉईलॉन की रस्सी पड़ी थी, कुर्सी से थाड़ी दूर एक बाल्टी रखी थी। कुर्सी और उसके आसपास का फर्श अभी तक गीला था । बाल्टी की तली में थोड़ा सा पानी शेष था।


हम सभी समझ गए कि गजेन्द्र बहादुर इसी कुर्सी से बंधे रहे होंगे।


विभा ने कहा–“फ्लैट यही है, मैं ड्राइंग रूप में रखे फोन का नंबर देख चुकी हूं, कोई भी फ्लैट में मौजूद किसी वस्तु को छेड़ेगा नहीं, आई. जी. साहब कृपया आप फिंगर प्रिंट्स विभाग को फोन कर दीजिए, अपने फोटोग्राफर को भी । यहां के फोटो और निशान लेने बहुत जरूरी हैं।


आई. जी. साहब बिना कुछ कहे मुड़ गए।


"ठहरिए !" विभा ने पूछा- "आप फोन कहां से करेगें ?"


"इसी इमारत के किसी दूसरे फ्लैट से।”


"गुड, इस फ्लैट के फोन पर हत्यारे की उंगलियों के निशान होंगे।"


आई. जी. साहब बाहर चले गए।


मैंने विभा से पूछा - "जब यह स्पष्ट है विभा कि वह जोगा था तो निशान आदि के लिए इतनी सावधानी की क्या जरूरत है, हुलिए और नाम से ही उसे तलाश किया जा सकता है।"


"इस फ्लैट में रहने वाले का नाम दीनदयाल है।"


"यह बात तुम्हें कब, कहां और कैसे पता लगी गई ?"


“एक्सचेंज से, फोन दीनदयाल के नाम से ही है । जोगा नाम और हुलिया दोनों ही नकली हो सकते हैं, संभव है कि दीनदयाल अनूप से 'जोगा' नाम और उसी हुलिए में मिलता रहा हो। जब उंगलियों के निशान दीनदयाल से मिलाए जाएंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि दीनदयाल ही जोगा था या नहीं ?"


मैं विभा की बुद्धि की विलक्षणता और दूरदर्शिता पर चकित - सा उसे देखता रह गया, जबकि वह सारे कमरे में घूम-घूमकर जाने क्या तलाश कर रही थी । हम सभी पूरी तरह मौन उसे देखते रहे। हम सबको अपने पीछे न आने की आज्ञा-सी देती हुई वह बेडरूम में चली गई। दस मिनट बाद लौटकर कमरे में आई।


तभी आई. जी. साहब भी कमरे में आए । सामने पड़ते ही विभा ने उसने फोन के बारे में पूछा, जवाब में आई. जी. साहब बोले- "फोन तो हमने कर दिया है, लेकिन हमें पता लगा है कि इस फ्लैट के मालिक का नाम जोगा नहीं दीनदयाल है।"


"शायद आपने किसी पड़ोसी का बयान लिया है ?"


"हां।"


"तब तो आपको यह भी पता लगा होगा कि 'गांधी बाजार' में दीनदयाल की कैमिस्ट की दुकान है।" 


"अरे आपको कैसे मालूम ?"


“दीनदयाल की उम्र तीस-पैतीस के बीच की है, आंखें छोटी, नाक लंबी, माथा चौड़ा और सिर पर नाम मात्र के बाल हैं, कद पांच फुट दो या तीन इंच है। स्वास्थ्य अच्छा है। उसकी पत्नी का नाम निर्मला है, जो आजकल मायके गई हुई है, इनके दो बच्चे हैं सात वर्षीय बंटी और तीन वर्षीय शिखा । दीनदयाल सुबह के नौ बजे दुकान चला जाता है और रात साढ़े आठ के करीब वापस लौटता है।"


आई. जी. के चेहरे पर सारे जमाने भर की हैरत उभर आई, बोले- "अ... आप कहीं जादूगरनी तो नहीं हैं ?"


"निर्मला का मायका देहली में है।"


"क... कमाल कर रही हैं आप, भला आपको यह सब कुछ... ।”


"इसमें कमाल या जादूगरी जैसी कोई बात नहीं है आई. जी. साहब, जो बातें आप बाहर पड़ोसियों से मालूम कर रहे थे उससे कहीं ज्यादा बातें इस फ्लैट में रहकर जानी जा सकती हैं। बेडरूम में पूर परिवार का एक फोटो है, एक अलमारी में कैमिस्ट की दुकान का पैड रखा है। बेड पर देलही से आया निर्मला का एक पत्र पड़ा है जो शायद कल ही दीनदयाल को मिला था और उसने पढ़ कर सिरहाने रख दिया था, पत्र में बहुत-सी बातों के अलावा यह भी लिखा है कि बंटी और शिखा अपने पापा को बहुत याद करते हैं।"


"ओह !" आई. जी. के दिमाग को सुकून- सा मिला ।


"फ्लैट में मौजूद सामान से यह अनुमान भी सहज ही लगाया जा सकता है कि दीनदयाल का स्टोर ठीक ही चलता है, दो से लेकर ढाई हजार के बीच की आय उसे हो ही जाती है।"


"कमाल है, आप इतनी छोटी-छोटी चीजों से...।"


"ये छोटी-छोटी चीजें ही, जिन्हें हम देखते है किंतु महत्वहीन समझ कर उन पर मनन नहीं करते, दरअसल किसी भी व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व का दर्पण होती है, किसी ने पानी की एक बूंद को देख कर घोषणा कर दी कि कहीं-न-कहीं समुद्र जरूर है। पानी की वह बूंद दूसरे लोगों ने भी देखी थी, किंतु सिर्फ देखी ही थी, उस पर मनन नहीं किया था। जिसने मनन किया वह जान गया कि कहीं-न-कहीं समुद्र जरूर है। किसी व्यक्ति के रहने के स्थान को देखकर उसकी रूचियों और आर्थिक स्थिति के बारे में जाना जा सकता है।"


"आपके इस तरह बताने के बाद सब कुछ कितना आसान लगता है ?"


"कोई भी उलझन केवल तब तक उलझन है जब तक कि हम उस पर सोचते नहीं हैं, यदि हम सोचें और हमारे सोचने की धारा ठीक हो तो उलझन को सुलझते देर नहीं लगती और जब उलझन सुलझ जाती है तो लगता है कि उलझन थी ही कहां, हम तो व्यर्थ ही परेशान हो रहे थे।"


"हम तो कभी सोच भी नहीं सकते थे बहूरानी, कि आप इतने सुलझे हुए विचारों की होंगी।"


“खैर, आगे की जानकारी के लिए दीनदयाल का मिलना बहुत जरूरी है।" विभा ने कहा- "दुकान बंद होगी, उसका इस वक्त यहां न मिलना संदेहास्पद है, कहां है वह। क्या आपने पड़ोसियों से मालूम किया ?"


"पड़ोसियों ने उसे सुबह दुकान पर जाते देखा था, उसके बाद नहीं देखा ।"


विभा ने मानों स्वयं ही सवाल किया-"दीनदयाल कहां गया, क्यों गायब हो गया ?” 


"कहीं वही तो जोगा नहीं है विभा। ?" मैंने राय व्यक्त की।


"उसे तलाश करवाई आई. जी. अंकल, बहुत से सवाल ऐसे हैं, जिनका जवाब दीनदयाल ही दे सकता है।"


आई. जी. साहब ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि वहां पुलिस फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग के लोग पहुंच गए, विभा ने मुझसे कहा- "चलो वेद, फिलहाल हमारे लिए यहां कोई काम नहीं है।"


"आपने यह मांगी थी ।" आई. जी. ने जेब से एक 'तह' हुआ कागज निकालकर विभा को दे दिया- "उस पहेली की फोटोस्टेट कॉपी, जिसे हल न करने की सूरत में मिस्टर अनूप ने आत्महत्या कर ली।"


कागज लेते वक्त विभा का सारा चेहरा भभक रहा था ।