“कहिए आई. जी. अंकल, क्या बाबूजी ने कोई बयान दिया ?"
"हां।"
"जल्दी बताइए, क्या ?"
"उनका कहना है कि उस वक्त करीब ढाई बजे थे जब वे अपनी गाड़ी से कपड़ा मिल से शुगर फैक्ट्री की तरफ जा रहे थे तब " चैपलिन रोड" पर एक व्यक्ति ने हाथ के इशारे से उन्हें रूकने के लिए कहा, वह व्यक्ति साढ़े छह फुट लंबा और पतला- दुबला था, लाल आंखों वाले उस व्यक्ति के होठ काले, मोटे और भद्दे थे, जिस्म पर काले कपड़े पहने हुए था । "
"ओह, यह तो उसी संतरे वाले आदमी का हुलिया है ।"
आई. जी. ने आगे बताया- " क्योंकि गजेन्द्र बहादुर जी स्वयं ही ड्राईव कर रहे थे और वह व्यक्ति लिफ्ट मांगने वाले अंदाज़ में रूकने के लिए कह रहा था इसलिए उन्होंने गाड़ी रोक ली। उसने 'सुभाष चन्द्र बोस' मार्ग तक के लिए लिफ्ट की याचना की, उसने कहा था कि वहां अस्पताल में उसकी बीवी की डिलीवरी होने वाली है, आप जानती है कि शुगर फैक्ट्री सुभाष बोस मार्ग पर ही है, अतः जिन्दल साहब ने उसकी परेशानी समझते हुए लिफ्ट देने में कोई बुराई नहीं समझी ।”
"फिर क्या हुआ ?”
"जिन्दल साहब ने पिछला दरवाजा खोल दिया, वह गाड़ी में बैठा गया, अभी गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी ही थी यानि ज्यादा दूर नहीं निकली थी कि उस व्यक्ति ने जेब से रिवाल्वर निकालकर इनकी कनपटी पर रख दिया। वे बुरी तरह चौंक पड़े, जबकि उसने उन्हें ड्राईविंग सीट से उठाकर, खुद संभाल ली, अभी ये कुछ समझ भी नहीं पाए थे कि उसने बिजली की-सी तेजी से रिवाल्वर के दस्ते का वार इनकी कनपटी पर किया, एक चीख के साथ ये बेहोश होकर सीट पर लुढ़क गए ।
"ओह !" विभा के जबड़े कस गए। थे।
"होश आने पर इन्होंने खुद को तीन कमरों वाले फ्लैट के एक कमरे में कुर्सी पर बंधे पाया। उनके चहेरे पर ढेर सारा पानी डालकर उन्हें होश में लाया गया, सामने वही व्यक्ति था । इस वक्त वह चेहरे पर पूरा दरिंदगी लिए ठहाके लगा-लगाकर हंस रहा था, इन्होनें चीखकर उससे इस व्यवहार की वजह जाननी चाही तो उसने केवल यही कहा कि वजह कुछ देर बाद खुद ही पता लग जाएगी। उसके बाद इन्हें उसी अवस्था में छोड़कर वह चला गया, कदाचित् वह फ्लैट का दरवाजा बाहर से बंद करके गया था।”
उत्सुक विभा ने पूछा- "फिर क्या हुआ ?"
“उस वक्त करीब पौने चार बजे थे, जब वही व्यक्ति पुनः कमरे में दाखिल हुआ, इस बार उसके साथ अनूप साहब भी थे, अनूप और जिन्दल साहब वहां एक-दूसरे को आमने-सामने देखकर बुरी तरह चौंक पड़े। दोनों ही के एक-दूसरे को हैरत के साथ पुकारा था और अनूप साहब दौड़कर कुर्सी के साथ बंधे जिन्दल साहब के नजदीक पहुंचे। उस वक्त लाल आंखों वाला ठहाका लगाकर हंस पड़ा, अनूप साहब ने चौंकते हुए घूमकर उस तरफ देखा, परंतु तब तक वह जेब से रिवाल्वर निकालकर उन पर तान चुका था । "
गुस्से में अनूप साहब चीख पड़े - "जोगा, इस हरकत का क्या मतलब ?'
"ओह, तो उस संतरे वाले आदमी का नाम जोगा था ?"
"शायद ।"
"फिर क्या हुआ ?"
"वह हंसता रहा और दिल खोलकर हंसने के बाद बोला- "इस फ्लैट पर मैं तुम्हें केवल यही दिखाने लाया था अनूप, उम्मीद है कि तुम अपने पिता की वस्तु स्थिति से परिचित हो गए होगें ?"
"म... मगर इस हरकत का मतलब क्या है ?"
"अभी समझाता हूं।" कहने साथ ही जोगा आगे बढ़ा और उसने अनूप की जेब से उसका पैन निकाला लिया, अपनी जेब से एक कागज निकाला और कागज पर एक आकृति बनाई है।"
"फिर ?" कागज को देखते हुए अनूप ने पूछा ।
"यह आकृति एक पहेली है और यह पहेली तुम्हें हल करनी है ।"
"ल... लेकिन पहेली हल करने का इस बात से क्या मतलब ?"
"पहेली हल करने के लिए तुम्हें केवल 'साढ़े तीन घंटे का समय दिया जाएगा और यदि तुम उन साढ़े तीन घंटे में इस पहेली को हल नहीं कर सके तो तुम्हारे पिता का कत्ल कर दिया जाएगा।"
"न... नहीं !" अनूप साहब चीख पड़े ।
"इतना ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया के सामने संतरा भी छील दिया जाएगा।
"न...नहीं जोगा, तुम ऐसा नहीं करोगे। तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते !" अनूप साहब चीखे जरूर थे, किंतु उनका चेहरा पीला पड़ चुका था, अगले ही पल वे गिड़गिड़ा से उठे - "ऐसा मत करना जोगा, प्लीज, ऐसा मत कहो। तुम जो चाहोगे मैं तुम्हें दूंगा, लेकिन ऐसा मत करना ।"
"नही करूंगा, लेकिन... ।”
"लेकिन ?"
"उस अवस्था में तुम्हें आत्महत्या कर लेनी होगी।"
"ज...जोगा !"
"चीखो मत अनूप, गला खराब हो जाता है। दरअसल जो दो बातें मैनें कही हैं, उनमें से एक तो होनी ही है। हां, उनमें से तुम क्या होना पसंद करते हो, यह हम तुम्हारी ही इच्छा पर छोड़ते है । "
"मैं समझ नहीं पा रहा हूं जोगा कि आखिर तुम "
"इतने घबरा क्यों रहे हो ? एक पहेली ही तो है। उसे तुम हल भी कर सकते हो, उस सूरत में...।”
"क...किंतु आखिर क्या सनक है जोगा, सिर्फ एक पहेली के लिए तुम.. आखिर क्या है इस पहेली में ?"
"इस मामले में तुमसे बहस करने के लिए मेरे पास समय नहीं है, केवल इतना ही समझ लो कि जो मैं कह रहा हूं वह पत्थर की लकीर है, यकीन दिलाता हूं कि तुम्हारे सफल होने पर न ही संतरा छीलूंगा, न तुम्हारे पिता को कत्ल करूंगा और न ही तुम्हें आत्महत्या करने की जरूरत पड़ेगी। हां, असफल होने पर इन दोनों कामों में से एक जरूर होगा। पसंद तुम्हारी रहेगी।"
एक बार अनूप साहब चाहकर भी कुछ न बोल सके ।
उसने अपनी कलाई पर बंधी रिस्टवाच में समय देखते हुए कहा- "इस वक्त चार बजे हैं, टैक्सी द्वारा यहां से मंदिर तक का रास्ता पन्द्रह मिनट का है यानी तुम साढ़े चार के करीब मंदिर पहुंच जाओगे, साढ़े तीन घंटे मैं तुम्हें इस फ्लैट में बैठाकर भी दे सकता था, तुम्हें आजाद छोड़ रहा हूं तो यह भी मैंने सोच ही लिया होगा कि तुम क्या-क्या कर सकते हो । संतरा मेरी जेब में है और तुम्हारे यहां से निकलते ही मैं भी यहां न रहूंगा, किसी गुप्त स्थान पर चला जाऊंगा । तुम्हारे पिता मेरे द्वारा खरीदे गए किराए के दो गुंडों की निगरानी में यहीं रहेगें, बेचारे वे दो गुंडे मेरे द्वारा खरीदे गए किराए के दो गंडों की निगरानी में यहीं रहेंगे, बेचारे वे दो गुंडे मेरे बारे में कुछ नहीं जानते है, अगर यहां पुलिस ने छापा मारा तो यहां से उन्हें तुम्हारे पिता की लाश और ज्यादा से ज्यादा वे दो गुंडे मिलेंगे, उस आज्ञात स्थान पर रहकर भी मैं हर पल इस फ्लैट को नजर में रखूंगा, ऐसी कोई गड़बड़ महसूस करते ही मैं वही संतरा छीलना शुरू कर दूंगा ।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।"
"उम्मीद तो यही है ।" जोगा के भद्दे होठों पर जहरीली मुस्कान थी।
"न...नहीं... नहीं अनूप, तू इस कमीने की धमकी में क्यों आ रहा है बेटे, हमें मर जाने दे, मगर तू अपनी जिंदगी को खतरे में मत डाल ।" कुर्सी पर बंधे गजेन्द्र पागलों की तरह चीख-चीखकर ऐसे ही शब्द कहने लगे थे, किंतु अनूप ने उनकी एक न सुनी, जोग से बोला- "मुझे वह फोन नंबर की सूचना देनी है।"
"और तब जोगा ने अनूप साहब को नंबर बता दिया ।”
आई. जी. ने कहा।
सब कुछ सुनती हुई विभा का गुलाबी चेहरा किसी कोयले की तरह काला पड़ गया, पत्थर की तरह सख्त और खुरदरा। उसके जबड़े भिंचे हुए थे, आंखों में आग बरस रही थी। विभा का उस अवस्था में देखकर आई. जी. तक के जिस्म में झुरझुरी - सी दौड़ गई, वह किसी नागिन के समान फुंफकारी- "क्या वह नंबर बाबूजी ने सुना था ?"
"जी हां।" "क्या उन्हें नंबर याद रहा यानि क्या उन्होंने आपको बताया ?"
"जी हां ।"
विभा ने उसी मुद्रा में पूछा - "क्या वह नंबर डबल फाईव, सेविन, थ्री, फोर, ऐट है ?"
हां, अरे ?" आई. जी. साहब हैरत से उछल पड़े
"म... मगर आपको यह नंबर कैसे मालूम ?"
"मरने से पहले उन्होंने इसी नंबर पर फोन किया था। विभा उसी पत्थर की तरह सख्त स्वर में कहती चली गई—“फोन पर उन्होंने कहा था कि वे पहेली को हल करने में कामयाब नहीं रहे हैं और अपना वादा पूरा कर रहें है अतः वह भी अपना वादा पूरा करे । खैर, आप बात आगे जारी रखिए। उसके बाद क्या हुआ ?"
चकित निगाहों से विभा को देखते हुए आई. जी. ने कहा- "उनका कहना है कि अनूप के वहां से जाते ही जोगा ने उन्हें बेहोश कर दिया, दुबारा होश में आने पर उन्होंने खुद को यहां पाया। वे नहीं जानते कि इस बीच वे कहां रहे और क्या हुआ । वे बार- बार अनूप साहब के बारे में पूछे रहे हैं, पागलों की तरह वे यही कहे जा रहे हैं कि उन्हें अनूप से मिलाया जाए।”
"क्या वे उस फ्लैट का पता जानते हैं जहां उन्हें ले जाया गया था । ?"
"नहीं।"
"अगर वे दुबारा उस फ्लैट के अंदर पहुंच जाए तो क्या उसे पहचान लेंगे?"
"इस सवाल के जवाब में कहना है- 'हां', लेकिन जिन्दल पुरम् में अनगिनत फ्लैट हैं, हम भला उन्हें किस-किस फ्लैट के अंदर ले जाऐंगे ?"
"फ्लैट का पता मैं जानती हूं।"
"क... क्या ? म... मगर कैसी ?" हैरतवश आई. जी. की आंखे फैल गई।
"मैंने एक्सचेंज से मालूम कर लिया है कि मरने से पहले उन्होंने किस नंबर के फोन पर किससे क्या बातें की थीं, एक्सचेंज से यह भी पता लग गया है कि उपरोक्त नंबर का फोन किस फ्लैट में है, अब बाबूजी को वहीं ले जाकर तो सिर्फ यह पुष्टि करानी है कि वह फ्लैट वही है, जहां उन्हें कैद किया गया था यह नंबर किसी दूसरे फ्लैट का दिया गया था ?”
"ओह !" आई. जी. का तरदुद दूर हुआ।"
"क्यों डॉक्टर ?" विभा ने समीप ही खड़े डॉक्टर से पूछा ।
"स... सॉरी बहूरानी, दरअसल अभी ।"
"ओह !" विभा के मस्तक पर चिंता की लकीरें उभर आई।
खैर फिलहाल, उन्हें रहने दीजिए। हम ही चैक करते हैं, क्यों आई. जी. अंकल । आपकी क्या राय है ?”
किंकर्त्तव्यविमूढ़ से आई. जी. ने कह दिया- "यही ठीक रहेगा।"
"चलिए। " कहने के साथ ही विभा किसी सनसनाते तीर की तहर आगे बढ़ी |
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