मुझे लगा कि जो विभा ऊपर से इस वक्त कठोर और सामान्य नजर आ रही है, असल में अंदर ही अंदर वह
बुरी तरह टूटी हुई है और विचलित है वरना मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं। वह निराशा से भरा कभी कोई वाक्य नहीं बोला करती और इस वक्त तो वह ये भी भूली हुई थी कि सावरकर के आने से पहले मुझे कुछ बताने वाली थी, जो वह बताने वाली थी, उसे जानने की तीव्र जिज्ञासा मेरे मन में मचल रही थी, इसलिए बोला-' -- "तुम मुझे यह बताने वाली थी कि लाश की जेब में तुम क्या...?
"हां सॉरी, वह बात तो मेरे दिमाग से उत्तर ही गई।"
"क्या था वह ?"
"एक हेयर पिन ।”
"हेयर पिन ?" मैं उछल ही जो पड़ा ।
"हां, हेयर पिन ।”
विभा अभी कुछ कहने ही जा रही थी कि कमरे का ढुलका हुआ दरवाजा 'भड़ाक' से खुला। हम दोनों ने चौंककर उधर देखा। दरवाजे पर खड़ा सावरकर हांफ रहा था। उसका चेहरा फक्क था, बुरी तरह उड़ा हुआ रंग | बहदवासी की-सी हालत में उसने कहा- "म...मालिक मिल गए है ।"
"क... कहां हैं बाबूजी, वे ठीक तो हैं न ?”
"न... नहीं।" मैं कांप गया, विभा चीख-सी पड़ी - "क... क्या मतलब क्या हुआ उन्हें ?"
"म... मालिक बेहोश हैं ।"
"क... क्या ? मगर कहां बाबूजी कहां है ?”
"इस वक्त वे 'हरिकेश बहादुर अस्पताल में हैं।"
“उफ्फ, आप पहेलियां क्यों बुझा रहे हैं सावरकर अंकल ? आखिर एक ही सांस में क्यों नही बता देते कि बाबूजी कहां मिल |
बेहोश कैसे हो गए ?"
अभी-अभी 'भारत शुगर मिल' के जनरल मैनेजर मिस्टर एस. रामानाथ का फोन आया था, वह हरिकेश अस्पताल से बोल रहा था। उसने बताया कि मालिक 'रूकमणी पार्क में बेहोश अवस्था में पड़े मिले हैं, उसने उन्हें वहां से उठाकर अस्पताल में पहुंचाया। कोई नहीं जानता कि वे कब और कैसे बेहोश हुए, डॉक्टर उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रहे है, शायद होश में आने के बाद ही वे कुछ बता सकें।" "1
"ओह, जल्दी कीजिए सावरकर अंकल । हमे अस्पताल पहुंचना है।"
विभा बुरी तरह व्यग्र और बेचैन उस कमरे के सामने गैलरी में टहल रही थी, जिसमें गजेन्द्र बहादुर थे। कमरे का दरवाजा बंद था। गैलरी में मेरे और सावरकर के अलावा भी बहुत से लोग थे। सभी बेचैन, चिंतित और व्यग्रतापूर्वक बंद दरवाजे की तरफ देख रहे थे ।
वे सभी जिन्दल परिवार की किसी-न-किसी फर्म के कर्मचारी थे। विभा की मौजूदगी की वजह से वे सभी सम्मानपूर्वक, हाथ बांधे खामोश खड़े थे। सभी के चेहरों पर दुःख-दर्द के स्वाभाविक भाव थे।
अच्छी-खासी भीड़ के बावजूद गैलरी में सन्नाटा था, बहुत ही पैना सन्नाटा ।
इसी भीड़ में एक तरफ 'भारत शुगर मिल' का जनरल मैनेजर एस. रामानाथन भी खड़ा था, वह एक पतला-दुबला, तोते- सी नाक, सांवले रंग, बड़ी-बड़ी आंखों वाला करीब पांच फिट छह इंच लंबा युवक था । पतले होठों वाले रामनाथन की आयु तीस के करीब थी । विभा ने वहां पहुंचने पर सबसे पहले उसी से बात की थी। रामानाथन केवल इतना ही बता पाया था कि गाड़ी से, रूक्मणी पार्क के सामने से गुजरते वक्त उसने पार्क में कुछ लोगों की भीड़ देखी । तभी एक व्यक्ति ने हाथ के इशारे से उसे कार रोकने के लिए कहा। उसने कार रोक ली, तब उस व्यक्ति ने बताया कि पार्क में गजेन्द्र बहादुर जिन्दल बेहोश अवस्था में पड़े हैं। सुनकर वह चौंक पड़ा। भागकर पार्क में पहुंचा। उसके बाद पहले उसने उन्हें यहां पहुंचाया। तब 'मंदिर' फोन किया ।
अस्पताल में पुलिस और स्वयं आई. जी. भी पहुंच चुके थे। वे भी एक तरफ हाथ बंधे खामोश खड़े थे।
सभी को गजेन्द्र बहादुर जिन्दल के होश में आने की प्रतीक्षा थी ।
होती भी क्यों नही ।
शायद मेरी तरह ही सब सोच रह थे कि होश में आने पर वे निश्चयं ही अपने इतनी देर गायब होने और बेहोश होने ही वजह बताए । मैं अभी यह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि उनके बेहोश होने का संबंध अनूप की आत्महत्या या हत्या से है या नहीं ?
अचानक ही दरवाजा खुला।
गैलरी में टहलती विभा ठिठकी, और फिर उस तरफ लपक- सी पड़ी ।
गले में टेलिस्कोप डाले डॉक्टर बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने दरवाजा वापस भिड़ा दिया था । उसके समीप पहुंचती हुई विभा ने पूछा-"क्या हुआ डॉक्टर, क्या बाबूजी को होश आ गया है ?"
"जी हां।" डॉक्टर का अंदाज और लहजा बहुत ही सम्मानित था ।
“थ...थैक्स गॉड। मैं उनसे बात करना चाहती हूं डॉक्टर।" कहने के साथ ही विभा ने दरवाजे की तरफ लपकना चाहा था कि डॉक्टर सहम-सा गया, कांपते हुए मैंने उसे साफ देखा था, फिर कुछ इस तरह बोला जैसे अपनी किसी बहुत बड़ी गलती के लिए माफी मांग रहा हो- "म... माफ कीजिएगा बहूरानी, वे अभी-अभी होश में आए हैं और उन्हें बताया नहीं गया है कि अनूप बाबू नहीं रहे । यह खबर उन्हें नहीं बताऊंगी।" कहने के बाद इस बार वह तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ ही जो गई थी ।
"म...मगर बहूरानी । अ... आपका लिबास !" हकलाकर डॉक्टर ने जल्दी से कह दिया।
विभा एकदम ठिठक गई।
"उफ्फ !" कहते हुए उसने दांए हाथ का घूंसा बहुत जोर से बाईं हथेली पर मारा ।
उसकी इस बेबसी पर वहां खड़े सभी लोगों की आंखें डबडबा गई। मेरे सारे जिस्म में एक अजीब-सी सिहरन दौड़ गई थी, कसमसाकर, आंखें फाड़े डॉक्टर की तरफ देखती रह गई थी विभा। जबकि डॉक्टर इस तरह खड़ा था जैसे विभा का मुजरिम हो ।
कई क्षण के लिए अजीब-सी उत्तेजना का वातावरण बन गया।
फिर विभा ने ही डॉक्टर से पूछा- "होश में आने के बाद वे क्या कर रहे है ?"
"बार-बार अनूप बाबू के बारे में पूछ रहें हैं, कह रहे हैं कि उन्हें उनसे मिलाया जाए । "
"ओह, इसका मतलब बाबूजी को उनके बारे में जरूर कुछ शक है । वे जरूर कुछ जानते हैं लेकिन ? वे क्या जानते हैं, कैसे पता लगे ?" बड़बड़ाती हुई विभा ने शिकारी के जाल में फंसी हिरनी के समान चारों तरफ देखा और फिर बंदूक से छूटी गोली की तरह आई. जी. की तरफ बढ़ गई।
"आई. जी. अंकल !” वह उनके निकट पहुंचते ही बोली
"मुझे लगता है कि बाबूजी 'उनके हत्यारे बारे में जरूर कुछ जानते है, प्लीज आप अंदर आइए और उनसे बयान लीजिए ।"
"आई. जी. साहब डॉक्टर के पास पहुंचे, उससे पूछा- डॉक्टर ने इस शर्त के साथ इजाजत दे दी कि उन्हें अनूप के बारे में कुछ नहीं बताएंगे । आई. जी. साहब कमरे के अंदर चले गए।
दरवाजा पुनः बंद हो गया ।
गैलरी में मौजूद लोगों के दिल इतनी तेजी से धकड़ने लगे जैसे निर्धारित समस्त धड़कनें अभी और इसी वक्त पूरी कर लेना चाहते हों ।
विभा पुनः पहले से भी कहीं ज्यादा बेचैन-सी गैलरी में टहलने लगी।
अभी पांच ही मिनट गुजरे थे कि एकाएक वह ठिठकी और फिर बड़ी तेजी से फोन की तरफ बढ़ी |
विभा ने रिसीवर उठाकर किसी का नंबर डॉयल किए।
संबंध स्थापित होते ही बोली- "हैलो, मैं विभा बोल रही हूं।
जिन्दल पुरम् की बहूरानी।"
दूसरी तरफ से कुछ कहा गया।
"आठ बजे से एक, तीन, चार या ज्यादा-से-ज्यादा पांच मिनट पहले 'मंदिर' से मिस्टर अनूप ने फोन पर किसी से कुछ बातें की थीं, क्या आप बता सकती हैं कि वह फोन कहां किया गया था और क्या बातें हुई थीं?"
दूसरी तरफ से पुनः कहा गया ।
विभा ने कहा- "जितनी जल्दी हो सके पता करके मुझे इस फोन पर बताया जाए, अभी मैं यहीं हूं। फोन नंबर लीजिए, यह नंबर फोन पर बताया जाए, अभी मैं यहीं हूं। फोन नंबर लीजिए, यह नंबर 'हरिकेश बहादुर अस्पताल' का है।"
फिर, नंबर बताने के बाद उसने रिसीवर रख दिया।
धड़कनें बढ़ती ही जा रही थीं ।
पांच मिनट और गुजर गए, दिल में सवाल उठा कि आखिर इतनी देर तक आई. जी. साहब अंदर क्या कर रहे हैं और अचानक ही मैं बुरी तरह उछल पड़ा । जिस्म के सभी मसामों ने एक साथ पसीना उगल दिया।
चौंक सभी पड़े थे और चौंकने की वजह थी उस तनावपूर्ण सन्नाटे को झकझोर देने वाली फोन की वैल।
फोन क्योंकि ठीक मेरे पीछे और अत्यंत समीप रखा था इसलिए सबसे ज्यादा बुरी तरह मैं ही चौंका। विभा हवा के झोंके की तरह फोन पर पहुंची, रिसीवर उठाकर कुछ देर तक वह दूसरी तरफ से बोलने वाले की आवाज सुनती रही और कुछ देर बाद 'थैंक्स' कहकर रिसीवर रख दिया। इधर उसने रिसीवर रखा था और उधर आहिस्ता से कमरे का दरवाजा खुला।
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