बात तब की है जब पुलिस कार्रवाई समाप्त हो चुकी थी, शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने की तैयारियां हो रही थीं, स्त्रियों के बीच में विभा गुमसुम - सी बैठी थी । किसी बुजुर्ग महिला ने उस बेचारी को सफेद ब्लाउज और बेदाग सफेद साड़ी पहना दी थी ।


विधवाओं वाला लिबास !


विभा को उस रूप में देखकर मेरा दिल दहाड़ें मार-मारकर रो पड़ने के लिए मचल उठा, मेरे दांत और मुट्ठियां भिंच गई, रोंगटे खड़े हो गए। पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी मैं अपनी आंखों को छलक पड़ने से न रोक सका।


अचानक ही हॉल में मौजूद लोगों के मुंह से दबी-दबी सी चीत्कारें निकल गई।


पोस्टमार्टम विभाग के दो व्यक्ति शव को स्ट्रेचर को लिए वे हॉल से गुजरते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ रहे थे । अनायास ही मेरी दृष्टि विभा पर जा पड़ी ।


उसके संगमरमरी चेहरे पर दुख-दर्द या वेदना का कोई भाव नहीं था ।


पत्थर की पवित्र मूर्ति–सी, सपाट मुखड़े वाली विभा एकटक स्ट्रेचर की तरफ देख रही थी, वक्त चौक पड़ा, जब वह झटके के साथ उठ खड़ी हुई । एकाएक मैं उस वक़्त चौंक पड़ा, जब वह झटके के साथ उठ खड़ी हुई।


उसके इर्द-गिर्द बैठी मधु सहित अन्य स्त्रियां भी चौंकीं ।


"ठ... ठहरो !" पत्थर की प्रतिमा के मुंह से एकाएक आवाज निकली।


सभी उछल पड़े, एक झटके से समाप्त निगाहें उस पर स्थिर हो गई। स्ट्रेचर ले जाने वाले कर्मचारी भी दरवाजे के समीप ठिठक गए थे, विभा ने अगला आदेश दिया- "स्ट्रेचर को वहीं रख दो ।" तुरंत फर्श पर रख दिया ।


एक झटके से उसने लाश के ऊपर से चादर खींच ली ।


अनेक चीखें उबल पड़ीं, परंतु उनमें विभा की चीख शामिल नहीं थी, वह तो पागलों तरह अनूप की जेबें टटोल रही थी, कोई नहीं समझ सका कि वह क्या तलाश कर रही है। जानना सभी चाहते थे, किंतु सवाल करने का साहस तक किसी में नही था । जेबों की तलाशी इच्छित वस्तु नहीं मिली थी ।


एकाएक ही वह घूमी और गुर्राते से स्वर से स्वर में आई. जी. साहब से बोली- "क्या आपमें से किसी ने इनकी तलाशी ली है ?"


"न...नहीं।" मैंने आई. जी. की आवाज को भी कांपते महसूस किया ।


"ओह !" विभा के मुंह से एकमात्र यही शब्द निकला और साथ ही उसकी आंखें सिकुड़ती चली गई, परेशानी पर सोचने की प्रतीक ढेर सारी लकीरें उभर आई थी।


‘‘म..मगर आप मिस्टर अनूप की जेबों में क्या तलाश रही थीं ?" आई. जी. ने वह प्रश्न पूजा जो मेरे विचार से उस वक्त सभी के दिमाग में चकरा रहा था ।


"सॉरी, वह मेरी एक पर्सलन चीज थी, जिसके बारे में मैं किसी को भी कुछ बताना जरूरी नहीं समझटी और 

वैसे भी, उस वस्तु का हत्यारे से कोई संबंध नहीं है । "


"फिर भी ।"


आप शव का पोस्टर्माटम के लिए ले जा सकते हैं।"


विभा ने कुछ ऐसे ढंग से कहा कि उसके बाद स्वयं आई. जी. भी उससे कोई सवाल करने का साहस नहीं कर सके। शायद मेरी इस तरह वक्त भी सब यही सोच रहे थे कि विभा ने लाश की जेबों में से क्या तलाश करना चाहा था ।